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[ २२६ ] माल्याकी गिनती में अधिक मासको प्रमाण किया है और अधिक मासकी उत्पत्तिका कारण कार्यादि गिणित पूर्वक श्रीमलयगिरिजी महाराजने श्रीज्योतिषकरण्डपयन्नाकी वृत्तिमें विस्तार किया है इस ग्रन्थको न्यायरत्नजीने अनेक चार देखा है और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ महाराजोंने अधिक मासको गिनतीमें प्रमाण किया है सो भनेक शास्त्रोंके पाठ प्रसिद्ध है और खास न्यायरत्नजीने मानवधर्मसंहिता पुस्तकके पृष्ठ २४ की पंक्ति २० वी से २२॥ पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि ( उत्सूत्र भाषण समान कोई बड़ा पाप नही सब क्रियाधरी रहेगी उक्त पाप दुर्गतिको ले जायगा जमालिजीने गौतमगणधर जैसी क्रिया कि लेकिन देख लो किस गतिको जाना पड़ा ) और पृष्ठ ५८८ की पंक्ति १४-१५ में फिर भी लिखते हैं कि ( सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्रके पाठको उत्थापन करेगा उसका निर्वाण होना मुश्किल है) इस लेखपरसें सज्जन पुरुषोंकों विचार करना चाहिये कि-श्रीअमन्त तीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ महाराजोंने अधिकमास को गिनतीमें प्रमाण किया हुवा है सो अनेक शास्त्रोंके पाठ प्रसिद्ध है तथापि पक्षपातके जोरसें न्यायरत्नजीने अनन्ततीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ भगवानोंके विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषण करनेके लिये सर्वज्ञ प्रणीत अनेक शास्त्रोंके पाठोंकों उत्यापन करके उत्सूत्र भाषणका बड़ा भारी पाप दुर्गतिको देनेवाला तथा संसारमें रुलानेवाला अपना लिखा हुवा उपरका लेखको भी सर्वथा भूल गये इसलिये मेरेकों बड़ा खेद उत्पन्न हुवा कि न्यायरत्नजी जानते हुए भी उत्सूत्र भाषणरूप
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