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पुरुषोंका अच्छी बरहने सन्देहका (पर्युषमा सम्बन्धी भने कल्याणक सम्बन्धी सी) निवारण किया है जो स्थिरचितसे बाँचके सत्यवाही होगा उसीका तो अवश्य करके मिथ्यात्व रूप सन्देह निकलके सम्यक्त्वरूप सत्यबातकी प्राप्ति हो जागा इसमें कोई शक नही- .. ___ और श्रीहरतरगच्छके तो क्या परन्तु श्रीतपगच्छ के ही पूर्वाधारयोंने मासवृद्धिके अभाव भाद्रपदमें पर्युषणा करनी कही है और दो श्रावण होने में पचासदिने दूजा श्रावण में भी पर्युषणा करनी कही है इसका विस्तार उपरमें अनेक जगह उपगया है। इसलिये श्रीखरतरगच्छ के पूर्वाचार्यजी कृत मन्यका मा सद्धि सम्बन्धी पाठको छुपाकर मासवृद्धि के अभाबका पाठ मासवृद्धि होते भी भोले जीवोंको दिखा कर सत्य बात परसें श्रद्धाभङ्ग करके अपनी कल्पित बातमें गेरनेका कार्य करना न्यायांसोनिधिजीको उचित नही था;-. ___ और आगे फिर भी न्यायाम्भोनिधिजीनें अपनी जैन सिद्धान्त समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ ९२ की दूसरी पंक्ति में सोलवी पंक्ति तक जो लिखा है सो नीचे मुजब जामो,
- [पष्ट १५ पंक्ति ६ में मारचंद्र ज्योतिष ग्रन्थका प्रमाण दिया है सो तो हीरीके स्थानमें वीरीका विवाह कर दिया है। क्योंकि इसी द्वितीय प्रकरण में ऐसा श्लोक है। पथा-हरिशयनेऽधिकमासे, गुरुशुक्रास्नलममन्वेष।
लमेशांशाधिपयो,र्मीवास्तगमे च न शुभं स्यात् ॥ १॥ ... • भावार्यः अधिक मासादिक जितने स्थान बताये उसमें शुभ कार्य नही होते है। तो अब बारामासिक पर्युषणा
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