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में ११, रत्नकोष में १८, लग्नचन्द्रिका में १९, ज्योतिषसार में २०, और ज्योतिर्विदाभरण वृत्ति में २९, इत्यादि अनेक ज्योतिष शास्त्रों में कितनेही मास १, कितनीही संक्रान्ति २, कितनेही वार ३, कितमीही तिथियां ४, कितनेही योग ५, कितनेही नक्षत्र ६, और जन्मका नक्षत्र 9, जन्मका मास ८, अधिक मास ९, क्षयमास १०. अधिक तिथि १९ क्षय तिथि १२, व्यतीपात १३, और कृष्णपक्षको तेरस चौदश अमावस्या इन क्षीण तिथियों में १४, पापग्रहयुक्त चन्द्र में १५, पापग्रह
लग्न १६, गुरुका अस्तमें ११, शुक्रका अस्तमें १८, गुरु शुक्रकी बाल और वृद्धावस्थामें १९, ग्रहण के सात दिनोंमें २०, लग्नका स्वामी नीचा में २१, और अस्त में २२, सन्मुख योगिनी में २३, चन्द्रदग्ध तिथिमें २४, सन्मुख राहुमें २५, सिंहस्व में २६, मलमासमें २१, हरिशयनका चौमासामें २८, भद्रामें २९, और तिथि, वार, नक्षत्र, लग्न, दिशा वगैरह आपस में अशुभ योगोंमें ३०, इत्यादि अनेक निमित्त कारणों में मुहूर्त्त निमित्तिक शुभकार्य्यं वर्जन किये हैं इस लिये न्यायां भोनिधिजी तथा उन्होंके परिवारवाले जो ज्योतिषशास्त्रों के अशुभ योगोंसे शुभकायोंका वर्जन देखके धर्मकायोंका भी वर्जन करेंगे तब तो उन्होंको धर्मकार्य कब करनेका वस्त मिलेगा अथवा शुभयोग बिना धर्मकार्य्य न करते किसीका आयुष्य पूर्ण हो जाये तो उन्हकी आत्माका सुधारा कब होगा सो पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष बिचार लेना - और मेरा इसपर आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको इतनाही कहना है कि न्यायांभोनिधिजी उपरोक्त ज्योतिष शास्त्रों के शुभाशुभयोगोंको न देखते सिंहस्थ में तथा हरिशयन का
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