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[ १८५ ] वर्गको अवश्यही निर्णय हो जायेगा कि अधिक मासको कालचूला की उत्तम ओपमा अवश्य ही गिमती करने योग्य शास्त्रकारोंने दिवी है इस लिये अधिकमासकी निश्चय करके मिनती करना ही सम्यक्त्वधारियोंको उचित है तथापि भ्यायाम्भोनिधिजी अधिक मासकी गिनती निषेध करते हैं सो कदापि नही हो सकती है इतने पर भी आगे फिर भी पृष्ट ९९ के पंक्ति १४ वीं में पंक्ति १८ वो तक लिखते है कि (इस अधिकमासकों कालचूलामें तुमको भी अवश्य ही मानना पड़ेगा और नही मानोंगे तो किसी तरहसें भी आज्ञा भग रूप दूषणको गठडीका भार दूर नही होगा क्योंकि पर्युषणाके बाद ७० ( सत्तर) दिन रहने का कहा है काल. चूला न मानोंगे तो १०० दिन हो जायगें ) इन अक्षरोंको लिसके शुद्धरामाचारी कारको पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन होनेसे दूषण लगाते हैं सो म्यायाम्भोनिधिजीका सर्वथा मिथ्या है क्योंकि मासवृद्धि होते पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन होने में कोई दूषण नही है इसका विस्तार उपरमें तथा तीनों महाशयों के नामकी समीक्षा और भी कितनी ही जगह छप गया है उसीकों पढ़ के पाठकवर्ग सत्यासत्यका निर्णय कर लेना ;___ और शुद्धसमाचारीकार तथा श्रीखरतरगच्छवाले अधिक मासको कालचूलाकी उत्तम ओपमा जानके विशेष करके गिनती बरोबर लेते हैं और न्यायांनिधिनी अधिक मामको कालचूला कह करके भी शास्त्रकारोंका तात्पर्य समझे बिना श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके तथा श्रीमियोपचूर्णिकार और प्रोदशवकालिकके चूलिकाको वृहद्
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