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पंक्ति १६॥ से पृष्ठ ९५ की पंक्ति १३ वीं तक चूला सम्बन्धी लेखका उतारा नीचे मुजब जानो
[हम अधिक मासको कालचूला मानते हैं सो अब दिखाते हैं, चूला चार प्रकारकी शास्त्रों में कथन करी है, यथा-निशीथे दशवकालिक वृत्तौ च ॥. तथाहि-'चला चातुर्विध्यं । द्रव्यादिभेदात् तत्र द्रव्य चूला ताम्र चू लादि १ क्षेत्रचूला मेरोश्चत्वारिंशद्योजन प्रमाण चूलिका २ कालचला युगे तृतीयपञ्चमयोर्वर्षयोरधिकमासकः ३ भावच ला तु दशबैकालिकस्य धूलिकादयं ४ इति॥
(भावार्थः) जैसें निशीथसूत्र विषे और दशवैकालिक वृत्ति विषे है तैसें दिखाते हैं, चूला चार प्रकारकी है, द्रव्यादि भेद करके. तिसमें द्रव्य चूला उसको कहते है कि. जो मुरगादिके शिरपर होती है. १ क्षेत्रच ला यह है किमेरुपर्वतकी चालीश योजन प्रमाण जो चला है. २ काल चला उसको कहते है कि-जो तीसरे वर्ष और पाँचमें वर्षमें अधिक मास होता है.३ भावच ला उसको कहते है कि-जो दशवकालिक की चूलिका है ॥४॥
(पूर्वपक्ष ) कालघूला कहने से आपकी क्या सिद्धि
(उत्तर) हे परीक्षक ! कालचूला कहने से यह सिद्ध होता है कि-चूलावाले पदार्थके साथ प्रमाणका विचार करना होवे तो उस पदार्थ से चला न्यारी नही गिनी जाती है. जैसें मेरुका लक्ष योजन प्रमाण कहेंगे तब च लिकाका प्रमाण भिन्न नही गिणेंगे।
तैसें चतुर्मासके विचारमें और वर्षके विचार करने के
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