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सहित होती थी सो निश्चय निःसन्देहकी बात है और पर्युषणा अज्ञात तथा ज्ञात दो प्रकारकी सबी शास्त्रकारोंने कही है इसलिये इन तीनों महाशयोंने ज्ञात पर्युषणाका भी दो भेद लिखके वीशदिनकी कहने मात्र ठहराई तथा पचास दिनकी वार्षिक कृत्योंसे ठहराई सो सर्वथा शास्त्र विरुद्ध हैं क्योंकि जैसी ज्ञात पर्युषणा चंद्रसंवत्सर में पचास दिने होती थी तैसीही अभिवर्द्धित संवत्सरमे वीशदिने होती थी सो ज्ञात पर्युषणाका एकही भेद सर्व शास्त्रकारों लिखा है परन्तु ज्ञात पर्युषणाका दो भेद कोई भी प्राचीन शास्त्रोंमें नही है इसलिये तीनों महाशयोंका ज्ञात पर्युषणा दो प्रकारकी लिखना प्रत्यक्ष शास्त्र विरुद्ध हैं
और आषाढ़ पूर्णिमाको योग्यक्षेत्राभावादि कारणे श्रावण कृष्ण पञ्चमी, दशमी वगैरह पाँच पाँचदिने जो पर्युषणा कही है सो गृहस्थी लोगों की न जानी हुई और अनिश्चय होती हैं इसलिये अज्ञात और अनिश्चय पर्युषणामें वार्षिक नही बनते हैं किन्तु वीशे तथा पचासे ज्ञात और निश्चय पर्युषणा में वार्षिक कृत्य बनते हैं ।
कृत्य
और श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्रके अष्टमाध्ययन (पर्युषणाकल्प ) की चूर्णिका और श्रीनिशीथसूत्र के दशवें उद्देशे की चूर्णिका पाठमें श्रीकालकाचार्य्यजीने कारणयोगे चतुर्थीकी पर्युषणा किवी है सो भी चंद्रसंवत्सरमें किवी थी नतु अभिवर्द्धितमें क्योंकि खास चूर्णिकार महाराजने अभिवर्द्धितमें बीशे तथा चंद्र में पचासे ज्ञात निश्चय पर्युषणा करनी कही है जिसका सब पाठ उपरोक्त छपगया हैं इसलिये मासवृद्धि होते भी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापते हैं सो मिथ्यावादी है क्योंकि
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