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[ १७६ ] पीछाड़ी १०० दिन शास्त्रानुसार रहते है इसलिये मासवृद्धि होते भी पर्युषणाके पीबाड़ी ७० दिन रहने का और १०० होनेसे दूषण लगाने का न्यायाम्भोनिधिजीका लिखना सर्वथा वृथा है इसका विशेष निर्णय तीनों महाशयोंकी समीक्षामें सूत्रकार वृत्तिकार महाराजके अभिप्राय सहित संपूर्ण पाठसमेत युक्तिपूर्वक विस्तारसें पृष्ठ ११८से पृष्ठ २२९ तक छपगया है और आगे भी कितनीही जगह छप चुका है सो पढ़नेसें अच्छी तरहसें निर्णय होजावेगा तथापि उपरोक्त लेखमें न्यायाम्भोनिधिजीने उटपटाङ्ग लिखा है जिसकी समीक्षा करके दिखाता हुं-[ श्रावणमास बढ़ने से दूसरे प्रावणमें और भाद्रव बढ़नेसें प्रथम भाद्रव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने अशीदिनका प्राप्तिके भयसे अङ्गीकार किया ] इस लेखको लिसके आगे श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका (सवीसह राइमासे वाकुन्ते) इस पाठसे पचासदिने पर्युषणा दिखाई॥ इन अक्षरोंसे तो जैसे शुद्ध समाचारी कारने ५० दिने पर्युषणा ठहराई थी तैसेही न्यायाम्भोनिधिजीने भी ठहराई इसमें तो शुद्ध समाचारी कारका लेखको विशेष पुष्टिमिली और न्यायांभोनिधिजीको अपना स्वयं लेख भी बाधक होगया तो फिर दो श्रावण होनेसे भी भाद्रपद,
और दो भाद्रपद होनेसे दूसरे भाद्रपदमें न्यायांभोनिधिजी पर्युषणा करते हैं तब तो प्रत्यक्ष ८० दिन होते है और श्रीसमवायाङ्गजी आदि अनेक शास्त्रोंमें ५० दिने पर्युषणा करनी कही है और अधिकमास भी अनेक शास्त्रों में प्रमाण किया है तैसे ही खास न्यायांभोनिधिजी भी शामणा के सम्बन्धमें अधिकमास होनेसे [ तिसवर्षमें तेरांमास तो
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