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[ १७४ ] तब तो अनेक शास्त्रोंके विरुद्ध है और आप चौथकाही पर्युषणा करते होवेंगे तब तो शुद्धसमाचारी कारको दूषण लगामा कृथा है इसको भी पाठकवर्ग विचार लो;
और पर्युषणाके पीछाड़ी जो 90 दिन न्यायाम्भोनिधि जी रख्खना कहते हैं सो किस हिसाबसें गिनती करके रखते हैं इसका विवेक बुद्धिसे हृदयमें विचार किया होता तो शुद्ध समाचारी कारको दूषण लगानेका लिखनाही भूल जाते क्योंकि तिथियोंकी हानी वृद्धिसें किसी वर्षमें ६९
और किसी वर्षमें ६८ दिन भी होजाते हैं सो पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष न्याय दृष्टिसें विचार कर लेना
और भी आगे जैन सिद्धान्तसमाचारी पुस्तकके पृष्ठ पर की पंक्ति २० वीं से पृष्ठ ८० की पंक्ति १७ वीं तक ऐसे लिखा है कि [पूर्वपक्ष, आप तो मुख सेंही बाता बनाई जाते हो परन्तु कोई सिद्धान्तके पाठसे भी उत्तर है वा मही-उत्तरहे समीक्षक दृढ़तर उत्तर देते हैं देखो कि श्रावणमास बढ़ने से दूसरे श्रावणमें और भाद्रव बढ़नेसें प्रथम भाद्रव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने ८० (अशी) दिनकी प्राप्तिके भय, अङ्गीकार किया परन्तु श्रीसमवायाङ्गजी सत्र में ऐसा पाठ है, यथा-सवीसइ राइमासे वइकते सत्तरिराइदिएहिं सैसेहिं वासावासं पज्जोसवेत्ति, भावार्थ:-जैसे आषाढ़ चौमासेके प्रतिक्रमण किये बाद एकमास और वीश दिनमें पर्युषणा करें तैसे पर्युषणाके बाद ७० सत्तर दिन क्षेत्रमें ठहरे-हे परीक्षक-अब इस पाठके विचारणेसें तुमको मास की वृद्धि हुये कार्तिक सम्बन्धी कृत्य आश्विनमासमें करना पड़ेगा और कार्तिक मासमें करोंगे तो १०० रात दिनकी
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