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[ १४८ ] दिन भी स्वभाविक रहते थे तथापि इन तीनों महाशयोंने उत्सूत्र भाषणरूप मासवृद्धि होनेसे वर्तमानिक दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा और पीछाड़ी के 90 दिन शास्त्रोंके प्रमाण विरुद्ध हो करके स्थापन किये और तीनों महाशय खास आप भी स्वयं एक जगह अधिकमास को कालचूला की उत्तम ओपमासे लिखते हैं दूसरी जगह नपंशककी तुच्छ ओपमासे लिखते हैं आगे और भी एक जगह अधिकमाके ३० दिनोंका धर्मकर्मको गिनती में लेते हैं दूसरी जगह ३० दिनोंको ही सर्वथा निषेध करते है इसी तरहसे कितनी ही जगहपूर्वापरविरोधी (विसम्वादी) उटपटांगरूप वाक्य लिखके गच्छपक्षी जनोंको शास्त्रानुसार की सत्य बात परसें श्रद्धा छोड़ा कर शास्त्रकारोंके विरुद्धार्थमें मिथ्यात्वरूप कदाग्रहमें गेर दिये तथा आगे अनेक जीवोंको गेरनेका कार्य कर गये हैं इसलिये खास तीनों महाशयोंकी
और इन्होंके शास्त्र विरुद्ध लेखको सत्य मान्यकर उसी तरह में अधिक मासकी निषेधरूप मिथ्यात्वके पीष्ट पेषणको पीसते रहेंगे जिससे भोले जीव भी उसी में फसते रहेंगे उन्होंकी आत्माका कैसे सुधारा होगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने तथा और भी थोडासा सुन लिजिये श्रीभगवतीजी सूत्रमें १ और तत् वृत्तिमें २ श्रीउत्तराध्ययनजी सत्रमें ३ और तीनकी छ व्याख्यायों में ए श्रीदशवैकालिक सत्रमें १० और तीनकी चार व्याख्यायोंमें १४ श्रीधर्मरत्नप्रकरणवृत्तिमें १५ श्रीसङ्घपटक वृहत् वृत्तिमें १६ श्रीश्राद्धविधिवृत्तिमें १९ इत्यादि अनेक शास्त्रों में उत्सूत्रभाषक श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वाचार्यादि परम गुरुजन महा.
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