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[ १६६ ] में लौकिक टिप्पणाके अनुसार हरेक मासोंकी वृद्धि होनेसें श्रावण और भाद्रवकी भी वृद्धि होती है ॥ तिसमें उनकी वृद्धि होने से भी दशपञ्चक व्यवस्थाके विषे, आषाढ़ चौमासी से पचाश दिनेही पर्युषणा करना सिद्ध होता है" ॥ आगे इसीकी सिद्धिके वास्ते कल्प सूत्रका ओर विशेष कल्प भाष्य चूर्णिका पाठ दिखाया है, कि-"जाव सवीसह राइमासो" इत्यादि (इतना लेख शुद्धसमाचारी प्रकाशकी पुस्तक सम्बन्धी अधूरा लिखके इसका न्यायाम्भोनिधिजी लिखते हैं उत्तर )
हे मित्र! मासवृद्धिका जो जैन टिप्पणादिकका विशेष दिखाया है, यह तो अज्ञजनोंको केवल अरमानेके वास्ते है क्योंकि यद्यपि जैन टिप्पणाके अनुसार श्रावण और भाद्रव मासकी वृद्धिका अभाव है तो भी पौष और आषाढ़मास की तो वृद्धि होती थी, अब हम आपको पूछते है कि-जैन टिप्पणाके अनुसार जब पौष अथवा आषाढमासकी वृद्धि हुई तब संवछरीको अप्भुडिओ सूत्रके पाठमें क्या 'तराणं मासाणं छवीसपखाणं' वैसा पाठ कहोगें ? क्योंकि तिस वर्ष में तेरह मासतो अवश्य होजायगें। और जैनसिद्धान्तो में तो किसी भी स्थानमें वैसा नही लिखा है कि अधिक मास होवे तब तेरहमास और छवीस परुख संवछरीकों कहना। तो अब आपका प्रयास क्या काम आया परन्तु यह तो निःशङ्कित मालम होता है कि-जैनटिप्पणाके अनुसारसे भी अधिक मासकों कालचूलामें ही गिनना पड़ेगा । पूर्वपक्ष-कालचूला क्या होती है ? उत्तर हे परीक्षक! आगे दिखावेंगे और दशपञ्चक व्यवस्था लिखते हो। सो तो कल्पव्यवच्छेद हुवा है, यह सर्वजन प्रसिद्ध है। और लौकिक टिप्पणाके
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