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-[ ७६ ] अधिक मासकी गिनती निषेध नही करेगा तथापि श्रीतपगच्छके तीनो महाशय विद्वान् नाम धराते भी अपने बनाये ग्रन्थोंमें अपने स्वहस्ते श्रीतीर्थङ्करादि महाराजांके विरुद्ध होकर अधिक मास की गिनती निषेध करते हैं सो कैसे बनेगा अपितु कदापि नहीं इस लिये इन तीनो महाशयोंका कालचूलाके नामसे अधिक मासको गिनतीमें निषेध करना सर्वथा जैन शास्त्रों के विरुद्ध है तथा और भी सुनिये जैन शास्त्रों में पांच प्रकारके मासोंसे और पांच प्रकारके संवत्सरोंसे एक युगके दिनोंका प्रमाण श्रीतीर्थङ्करादि महाराजोंने कहा है सो सर्वही निश्चयके साथ प्रमाण करके गिनती करने योग्य है जिसके कोष्टक नीचे मुजब जानो यथा
दिनांका और उपर एक अहोरात्रिके मासोंके नाम
प्रमाण भाग करके | ग्रहण करना
नक्षत्र मास
चन्द्रमास
R००
ऋतु मास सूर्य मास | अभिवद्धित मास
३१
।
१२४
१२१
संवत्सरों के नाम
दिनांका | और उपर एक अहोरात्रिके
प्रमाण | भाग करके । ग्रहण करना नक्षत्र संवत्सर ३२७ चन्द्र संवत्तर ऋतु संवत्सर सूर्य्य संवत्सर अभिवर्द्धित सं० ३३ ।।
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