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[ ७५ ] शयोंके जान लेना-अब तीनो महाशयोंके लेखकी शास्त्रानु सार और युक्तिपूर्वक समीक्षा करता हु-इन तीनो महाशयों का मुख्य तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि अधिकमासको गिनतीमें नही लेना इस बातको पुष्ट करनेके लिये अनेक तरहके विकल्प लिखे हैं जिसको और अबमें समीक्षा करता हुँ उसीको मोक्षाभिलाषी सत्यग्राही पुरुष निष्पक्षपातसे पढ़के सत्यासत्यका स्वयं विचारके गच्छका पक्षपातके दृष्टि रागका फंदको न रखते असत्यको छोड़ना और सत्यको ग्रहण करना येही सज्जन पुरुषोंकी मुख्य प्रतिज्ञाका काम है अब मेरी समीक्षा को सुनिये-श्रीधर्मसागरजी तथा श्रीजय विजयजी और श्रीविनयविजयजी इन तीनों श्रीतपगच्छके विद्वान् महाशयोंको प्रथमतो अधिक मासको कालचूला जानके गिनती में निषेध करना ही सर्वथा अनुचित है क्यों कि श्रीअनन्ततीर्थङ्करगणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंने तथा श्रीतपगच्छके पूर्वज और प्रभाविकाचाोंने अधिक मासकी दिनोंमें, पक्षों में, मासीमें, वर्षों में, गिनती खुलासा पूर्वक किवी है तथा कालचूलाको उत्तम ओपमा भी शास्त्रकारोंने गिनती करने योग्य दिवी है और कालचूलाकी ओपमा देनेवाले श्रीजिनदास महत्तराचार्यजी पूर्वधर भी अधिक मासको निश्चयके साथ गिनते हैं जिसका और श्रीतीर्थङ्करादि महाराजांने अधिक मासको गिनतीमें लिया है जिसके अनेक शास्त्रोंके प्रमाणों सहित विस्तार पूर्वक उपरमें लिख आया हुं जिन शास्त्रोंके पाठोंसें जैनश्वेताम्बर सामान्य पुरुष आस्मार्थी होगा और शास्त्रोंके विरुद्ध परूपनासे संसारवृद्धिका भय रखनेवाला सम्यकवी नामधारी होगा सो भी कदापि
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