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[ १०१ ] परन्तु वीशमें दिन श्रावण शुक्लपञ्चमीसे निश्चय प्रसिद्ध पर्युपणा होवे, भौर चन्द्रवर्षमें पचाश दिन तक अनिश्चय पर्युषणा परन्तु पचाशमै दिन भाद्रपद शुक्लपञ्चमीसे निश्चय प्रसिद्ध पर्युषणा होवे, सो जब आषाढ़पूर्णिमासेही योग्यक्षेत्र मिले और उपयोगी वस्तुका योग्य होवे तो ग्रहण करके चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद उसी रात्रिको पर्युषणा कल्प को याने जो अकेला साधु होवे तब तो उस रात्रिको श्रीकल्पसूत्रका पठन करके अनिश्चय पर्युषणा स्थापन करे भौर साधुओंका समुदाय होवे तो सर्व साधु कायोत्सर्गमें सुने और वृद्धसाधुजी मधुर स्वरसे श्रीपर्युषणा कल्पका उच्चारण करके अनिश्चय पर्युषणा स्थापन करे तथा योग्यक्षेत्र न मिले तो फिर पाँच दिन तक दूसरे स्थान ( गांव ) में जाके उपयोगी वस्तु ग्रहण करके प्रावण कृष्ण पञ्चमीको पर्युषणा करे इसी तरहसे योग्यक्षेत्राभावादि कारणे अपवादसे पांच पांच दिनकी सद्धि करते यावत् भाद्रपदशुक्लपञ्चमीको अवश्यही पर्युषणा निचय करे तथापि भाद्रपदशुक्लपञ्चमी तक योग्यक्षेत्र नही मिलेतो जङ्गलमें रक्ष नीचे भी अवश्यही पर्युषणा करे परन्तु पञ्चमीकी रात्रिको उबलन करना मही कल्पे और भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीके पहले भाषाढ़ पूर्णिमासे योग्यता मिलनेसे अनिश्चय पर्युषणा स्थापन करने में आते है जिसमें स्थापन करे उसी रात्रिको श्रीपर्युषणा कल्प कहके पर्युषणा स्थापे जिसको गृहस्थी लोगोंके न जानी हुई पर्युषणा कहते हैं और पचासमें दिन भाद्रपद शुक्लपञ्चमी की निश्चय प्रसिद्धसे पर्युषणा उसी में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करे जिसको गृहस्थी लोगोंके
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