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और इसके अगाड़ी फिर भी तीनों महाशयांने प्रत्यक्ष मायावृत्तिसे उत्सूत्र भाषयरूप अनेक शास्त्रों के विरुद्ध लिखके अपनी बात बनाई है कि ( एवं यत्र कुत्रापि पर्युषणा मिलपर्णम् तत्र भाद्रपदविशेषितमेव नतु काप्यागमे भवबसुद्ध पञ्चमीए पज्जोसविज्जइति पाठवत् अभिवद्द्वियवारिसे सावण बुद्धपञ्चमीए पज्जोसविज्जइति पाठ उपलभ्यते ) इन वाक्योंको तीनो महाशयांने लिखके इसका मतलब ऐसे हाये है कि श्रीया कल्प चूर्णि तथा श्रीनिशीपचूर्णि में भाद्रपद में पर्युषणा करनी कहीं है इसी प्रकार से जिस किसी शास्त्र में पर्युषणाकी व्याख्या है तहां भाद्रपदके नामसे है परन्तु कोई भी शास्त्र में भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी का पर्युषणा करनी ऐसा पाठकी तरह मारुवृद्धि होनेसे अभिवर्द्धत सम्बत्सर में श्रावण शुक्लपञ्चमीको पर्युषणा करनी ऐसा पाठ नही दिखता है, इस तरहके तीमा महाशयों के लेख पर मेरा इतनाही कहना है कि इन तीनों महाशयांने ( अभिवद्वित सम्बत्सर में श्रावण शुक्ल पञ्चमीका पर्युषणा करनेका कोई भी शास्त्रों में पाठ नहीं दिखता है ) इस मतलबको डिला है सो सर्वथा मिथ्या है क्योंकि जिन जिन शास्त्रों में इन्द्रसंवत्सर में पचास दिने, ज्ञात, याने गृहस्थी लोगों की जामी हुई पर्युषणा करनेका निमय दिखाया है उसी शास्त्रों में अभिवर्द्धित संवत्सर में वोश दिने ज्ञात पर्युषणा कर मेका मियम दिखाया है तो यह बात अनेक शास्त्रोंमें खुलासा पूर्वक प्रगटपने लिखी है तथापि इन तीनों महाशयांमे मोठे जीवों का मिथ्या भ्रम में गेरनेके लिये अभिवर्द्धित संवत्सर में श्रावण शुक्लपचमीको पर्युषणा करनेका कोई भी शाम में पाठ नहीं दिखाता है ऐसा लिख दिया है तो अब ऐसे : मिथ्या श्रमको दूर करने के लिये इस जगह शास्त्रोंके प्रसाण
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