________________
[ ६० ] अवसरमें अधिक मासका विचार न्यारा नही करेंगे इस वास्ते अधिक मासकों कालचला कहते है ।
उपरके लेखकी समीक्षा करते हैं कि-प्रथमतो जैन सिद्धान्त समाचारीकारने निशीथ सूत्रके नामसे चूलाका पाठ लिखा है सो सूत्रमें बिलकुल नहीं है किन्तु निशीथ सूत्रकी चूर्णिमें जिनदास महत्तराचार्यजीने चूलासम्बन्धी व्याख्या किवी है और दशवकालिक सूत्रकी वृत्तिके पाठका नाम लिखा लोभी नहीं है किन्तु दशवैकालिक सूत्रकी प्रथम चूलिका की वृहत् वृत्तिमें पाठ हैं और उपरमें जो चूला चातुर्विध्य इत्यादि पाठ लिखा है सो न तो चूर्णिकारका है और न वृत्तिकारका है क्योंकि चूर्णिकारने और वृत्तिकारने द्रव्यनूला, आगम नो आगमसे भव्यशरीर और सचित्त, अचित्त, मिश्र, तथा क्षेत्रचूला भी सिद्धपिला और मेरुपर्वत अथवा मेरुचूलिका इत्यादि कालचूला भाव चूलाको विस्तारसे व्याख्या किवी हैं सो हम उपरमें सम्पूर्ण पाठ लिख आये हैं। जिप्तको और जैन सिद्धान्त समाचारी कारका लिखा पाठको वांचकवर्ग आपस में मिलावेंगे तो स्वयं मालुम हो सकेगा कि जैनसिद्धान्त समाचारीकारने जो पाठ लिखा है सोनिकेवल बनावटी है क्योंकि हमने उपरमें सम्पूर्ण पाठ लिखा है जिसके साथ इस पाउका अक्षर अक्षर और पंक्ति पंक्ति नहीं मिलती है तथा चूर्णिकार की प्राकृत संस्कत मिली हुवी भाषा है और वृत्तिकारकी नियुक्ति सहित व्याख्या किवी हुई है। जिनसे उपरका पाठ बिलकुल भाषा वर्गणादिमें बरोबर नही है इस लिये उपरका पाठ बनावटी हैं सो प्रत्यक्ष दिखता है तथापि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com