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न्यारा नही करेंगे इस वास्ते अधिकमासको कालचूला कहते हैं ) इन अक्षरोंको लिखके अधिक मासको काल चूला कहनेसें चतुर्मासकी और वर्षकी गिनती में नही लेना ऐसा कहते हैं सो भी अयुक्त है क्योंकि अधिक मासको कालचूला कहनेसें भी अवश्यमेव गिनती में लेना योग्य है सो उपर में विस्तारसे लिख आये है, इसलिये अधिक मासकी गिनती कदापि निषेध नही हो सकती है श्रीतीर्थङ्क रादि महाराजांने प्रमाण किवी है और अधिकमासको काल धूलाकी ओपना देनेवाले श्रीजिनदास महत्तराचार्य्यजी पूर्वधर महाराज भी अधिक मासकी गिनती निश्चयके साथ करते हैं सोही दिखाते हैं श्रीनिशीथसूत्रकी चूर्णिके दशवें उद्देशे में पर्युषण की व्याख्या के अधिकारमें पृष्ठ ३२२का तथाच तत्पाठः
अविढिय वरिसे बीसती राते गते गिहिणा तं करंति तिसुचन्दवरिसे मवीसति राते गते गिहिणा तं करंति जत्य अधिमासगो पड़ति वरिसे तं अभिवयि वरिसं भस्मति जत्य ण पड़ति तं चन्द वरिसं— सोय अधिमासगो जुगस्सगंते मज्जे वा भवंति जतितो णियमा दो आसाढ़ा भवंति अहमज्जे दो पोसा - सीसी पुछति जम्हा अभिवदिय वरिसे वोरुति रातं, चन्द वरिसे सवीसति मासो उच्यते, जम्हा अभिवढिय वरिसे गिम्हे चेव सो मासो अतिकृंतो तम्हा वीस दिना अणभिग्गहियं करंति, इयरेसु तिसु चन्द वरिसेसु सवीसति मासो इत्यर्थः ॥
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देखिये उपरके पाठमें अधिक मास जिस वर्ष में पड़ता हैं उसीको अभिवर्धित संवत्सर कहते हैं जहाँ अधिक मास जिस वर्ष में नही पड़ता है उसीको चन्द्र संवत्सर कहते हैं
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