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सो अधिक मास नियम करके होने से युगके मध्य में दो पौष तथा युगके अन्तमें दो आषाढ़ होते हैं जब दो आषाढ़ होते हैं तब ग्रीष्म ऋतु में चेव निश्चय वो अधिकमास अतिक्रान्त (व्यतित) होगया इस लिये अभिवर्द्धित संवत्सरमें आषाढ़ चौमासीसे वीश दिन तक अनियत वास, परन्तु वीशमें दिन जो श्रावण शुक्लपञ्चमी उसी दिनसें नियत वास निश्चय पर्युषणा होवे और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिन तक अनियत वास, परन्तु पचासमें दिन जो भाद्रपदशुक्लपञ्चमी उसी दिनसे नियत वास निश्चय पर्युषणा होवे
अब उपरके पाठसे पाठकवर्ग पक्षपात रहित होकर स्वयं विचार करेंगे तो प्रत्यक्ष निर्णय हो सकेगा कि खास चूर्णिकार महाराजनें मास वृद्धिको गिनतीमें चेव (निश्चय) अवश्यमेव कहा है और प्रथम उद्देशेका जो पहिले पाठ लिखचुके हैं जिसमें कालचूलाकी भी उत्तम ओपमा दिवी है सो अधिक मासकी गिनती करनेसेही अभिवर्द्धित नाम संवत्सर बनता है सो विशेष उपर लिख आये है तथापि जैन सिद्धान्त समाचारीके कर्त्ताने चूर्णिकार महाराजके विरुद्वार्थमें कालचूला कहनेसे अधिक मासकी गिनती नही करना ऐसा लिखने में क्या लाभ उठाया होगा सो पाठकवर्ग विचार लेना-दति ॥ __तथा और इसके अगाड़ी श्रीतपगच्छके अर्वाचीन (थोड़े कालके) तथा वर्तमानिक त्यागी, बैरागी, संयमी, उत्क्रष्टि क्रिया करनेवाले जिनाज्ञा मुजब शास्त्रानुसार चलने वाले शुद्धपरूपक सत्यवादी और सुप्रसिद्ध विद्वान् नाम धराते भी प्रथम श्रीधर्मसागरजीने श्रीकल्पकिरणावली में
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