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[ ४७ ] आत्मार्थी जिनाज्ञाके आराधक पुरषोंको प्रमाण करने योग्य हैं।
. इस संसारको अनन्त काल हो गये हैं जिसमें अनन्त चौवीशी व्यतित हो गइ चन्द्र सूर्यादिके विनान भी अनन्त कालसें सरू हैं इस लिये जैनज्योतिष भी अनन्ते कालसें प्रचलित हैं जिसमें अधिक मास भी अनन्त कालसें चला आता हैं-मास सृद्धिके अभावसे बारह मासके संवत्सरका नाम चन्द्र संवत्सर हैं और मासवृद्धि होनेसें तेरहमासकी गिनतीके कारणसें संवत्सरका नाम अभिवर्द्धित संवत्सर हैं तीन चन्द्रसंवत्सर और दोय अभिवति संवत्सर इन पांच संवत्सरोंसें एकयुग होता हैं एकयुगमें पांच संवत्सरोंके बासठ (६२) मासोंकी बासठ (६२) पूर्णिमासी और बासठ (६२) अमावस्याके एकसो चौवीश (१२४) पर्वणि अर्थात् पाक्षिक अनन्त तीर्थङ्करादिकोंनें, कही हैं जितसै अनन्तकाल हुए अधिकमासकी गिनती दिन, पक्ष, मात, वर्षादिमें चली आती हैं किसीने भी अधिकमासकी गिनती का एकदिन मात्र भी निषेध नही किया हैं तथपि बड़े आफसोस की बात हैं कि, वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमास की गिनती बड़े जोरके साथ वारंवार निषेध करके एकमासके ३० दिनोंकी गिनती एकदम छोड़ देते हैं और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर महाराजोंकी श्रीगणधर महाराजोंकी श्रीपूर्वधर पूर्वाधार्योजी की तथा इनलोगोंके खास पूज्य श्रीतपगच्छके ही प्रभाविकाचार्योजी की आज्ञा भङ्गका भय नही करते हैं और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाधार्योजी की आज्ञा मुजब वर्तमान में श्रीखरतरगच्छादिवाले अधिक
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