________________
( ८ ) मर्यादाके प्रतिकूल तथा पञ्चाङ्गीके प्रनाक भी विरह होकरके गयाग्रहके पक्षपातर दोश्रावण होते भी प्रत्यक्षपणे ८० दिने भाद्रपद में पर्युषणा करनेका वृथा आग्रह कदापि नहीं करेंगे। और उपरोक्त शास्त्रानुसार तथा युक्ति पूर्वक ५० दिने दूसरे श्रावणमें वा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणा करनेवाले श्रीजिनाजाके आराधक पुरुषों पर द्वेष बुद्धिसे वृथा उत्सत्र सप मिथ्यानाषणसे आज्ञा का दूषण लगाकर बालजीवोंको भ्रममें गेरनेका साहस भी कदापि नहीं करेंगे।
और फिर अपनी चातुराईसे आप निर्दूषण बननेके लिये जैन शास्त्रोंमें अधिक मासको गिनतीमें नहीं गिना है ऐसा उत्सूत्र भाषणरूप कहके अज्ञजीवोंके आगे मिथ्यात्व फैलाते हैं उसीका निवारण करने के लिये और भव्य जीवों निःसन्देह होनेके लिये इसजगह अधिक मासकी गिनतीके प्र. माण करने सम्बन्धी पहाडीके अनेक प्रमाण यहां दिखाता। __ श्रीजुधर्मस्वामीजी कृत श्रीचन्द्रप्राप्तिसूत्र में १, तथा श्रीसूर्य प्रज्ञप्तिसूत्रमें २, औरसंवत् १३० के अनुमान श्रीमलय गिरिजी कृत उपरोक्त दोनों सूत्रोंकी दोनों वृत्तियोंमें ४, श्रीभद्रबाहुस्वामिजी कृत श्रीदशवकालिकसूत्रके चूलिकाकी नियुक्ति में ५, तथा श्रीहरिभद्रसूरिजी कृत तत् नियुक्तिकी यत्तिमें ६, श्रीनिशीथसूत्रके लघुभाष्यमै, पहदायमें 9, चूर्णिमें ८ श्रीसहकल्पके लघु भाष्य में, सहदाव्यमे, चूर्णिमें १० और कृत्तिमै ११ श्रीसमवायांगजी में १२, तथा सदवृत्तिमें १३ मौरीस्थानांगजीसत्रकी वृत्तिमें १४, श्रीनेमीचन्द्रसरिजी कृत श्रीप्रवचनसारोद्वार में १५, श्रीसिद्धसेनसरिजी कृत तत्सूत्रकी वृत्तिमें १६, श्रीउदयसागरजी कृत तत्सत्रको लघुत्तिमें १७, श्रीजिमपतिमरि जीकृत श्रीसमाचारी ग्रन्थ में १८,श्रीसंघपटक लघवृत्तिमें, यत्ति में १९ श्रीजि मप्रससरिजी कृत श्रीविधिप्रपासमाचारीमें २० और श्रीसमय
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com