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( १३ ) साम्वत्सरिककृत्याविशिष्टा गृहिज्ञातमात्राच, तत्र साम्ब. सरिककृत्यानि “सांवत्सर प्रतिक्रांति १ लुञ्चनं २ चाष्टमंतपः ३ सहिद्भक्तिपूनाच ४ संघस्यक्षामणमिथः ५ ॥१॥" एतत्कृत्य विशिष्टा भाद्रपदसित पंचम्यामेव कालिका चायादेशाच्चतुर्थ्यामपिकार्या, केवलं गृहितातातु सा यद् अभिवर्द्धितवर्षे चातुर्मासिकदिनादारभ्य विंशत्यादिनैर्वयमत्रस्थितास्माति पृच्छता गृहस्थानी पुरोवदंति तदपि जैनटिप्पनका. नुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगांतेचाषाढएव व ते नान्येमासास्तहिप्पन कन्तु अधनासम्यग न ज्ञायते अतः पंचाशतै वदिनेः पर्युषणायुक्ततिवृद्धाः ॥ - उपरोक्त श्रीखरतरगच्छ तथा श्रीतपगच्छ उन दोनों गच्छवालोंके छ पाठोंका संक्षिप्त भावार्थ:-अंतरा वियसे कप्या। अन्तरापिच अर्वागपि कल्पते पर्युषितं. इत्यादि कहने से-जो आषाढ़ चौमामीसे ५० दिने पर्युषणा करने में आती है जिसमें कारण योगे ५० दिनके अंदर ४ वे दिन पर्युषणा करना कल्पता है पन्तु ५२ वे दिनकी जो भाद्रपद शुक्लपंचमीकी रात्रि है उसीको उल्लंघन करना नहीं कल्पता है और उषधातुमे उषणा बनता है तथा परिउपसर्ग लगनेसे पर्युषण बन जाता है मो उषधातु निवास अर्थ में वर्तती है अथवा गण संबंधी वस धातु भी निवासार्थ में वर्तती है और ग्रामानुग्राम विहार करनेका निवारण करके सर्वथा प्रकारसे वर्षाकाले एकस्यानमें निवास करना सो पर्युषणा कही जाती है वो पर्युषणा इहां दो प्रकारकी है गहस्पी लोगोंकी जानी हुई तथा गृहस्यो लोगोंकी नहीं जानीदुई तिसमें गृहस्थोडोगों की नहीं जानी हुई पर्युषणा जिसमें बांकाल सषित
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