________________
अभिप्रायसे विरुद्धहोकरके दूसरे श्रावणमें ५० दिने श्रीपर्यषण पर्वका आराधन करने वालोंपर खूबही आक्षेपेकी बड़े जोरसे वर्षा करी और पञ्चाङ्गीके प्रत्यक्ष प्रमाणेांको उत्था. पन किये और जो संपसे धर्मकार्य होते थे जिन्होंमें विघ्नकारक छोटीसी १० पृष्ठकी पुस्तक प्रगट कराके कुसंपके वृक्षको उत्पन्न कराया और तीसरे जैन पत्रवालेने भी इन्होकेही अनुसार चल करके दूराग्रहके हठसे पर्युषणा विचारके लेखका गुजराती भाषान्तर जेनपत्रके २३ वें अङ्ककी आदिमें प्रगट करके उत्सत्र भाषणांके फल विपाक प्राप्त करने के लिये और गच्छकदाग्रहके झगड़ेको बढ़ाने के लिये श्रीजिनाजाके आरा. धक पुरुषोंको अनेक तरहसे आक्षेपरुप कटुक वचन लिसके कुसंपके वृक्षको बढ़ानेका कारण किया।
इनतीनोंमहाशयोंके इसतरहकेलेखांको मैंने अवलोकन किये तो जिनाजा विरुद्ध एकान्त अपने गच्छ संबन्धी आग्रहके पक्षपातसे दूसरोंको मिथ्या दूषण लगानेवाले और आत्मार्थि भव्य जीवोंको श्रोजिनाज्ञाकाआराधन करने में विघ्न रूप मालूम हुए तब इस विघ्नको दूर करनेकी इच्छाहुई इसलिये मोक्षाभिलाषी जिनाज्ञा इच्छुक भव्य जोवोंको श्रीजिनाजाको शुद्ध श्रद्धा में दृढ़ करनेके वास्ते और उत्साभाषक गच्छकदाग्रहियोंको हितशिक्षाके लिये शास्त्रानुसार तपा शास्त्र युक्ति पूर्वक श्रीपर्युषणपर्वका आराधन सम्बन्धी वर्तमानिक विवादका निर्णय करना उचित समझा सो करके तत्वान्दोषि पुरुषों को दिखाता हूं:- श्रीगणधर महाराज कृत श्रीनिशीथ सूत्रमें १, श्रीपूर्वा. चार्यनी कृत श्रीनिशीपसूत्रके लघु भाथमें २, तपा बाबा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com