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॥ भोम् ॥ ॥ श्रीपञ्चपरमेष्ठिभ्यो नमः ॥ श्रीपर्यषणा निर्णय नामाग्रंथः प्रारभ्यते
मत्वा श्रीशासनाधीशं, विघ्न व्यूह विदारणं, पर्युषणादि कार्याणां. निर्णयः क्रियते खलु ॥१॥ पात्मार्थिनाञ्च लाभाय, पाखण्ड पथ शान्तये वाणी गुरु प्रसादेन, शास्त्रयुक्त्यनुसारतः॥२॥ युगमम् , विघ्नोंके समूहकोनाश करने वाले शासन नायक श्रीवर्द्धमानखामीको नमस्कार करके श्रीसरस्वती देवी तथा श्रीगुरु महाराजके प्रसादसे, शाखोंके प्रमाण पूर्वक तथा युक्तियों के अनुसार, आत्मार्थि अध्यजीवोंको श्रीजिनाजाकोप्राप्ति रूप डाभके वास्ते और उत्सूत्रपरूपणा रूप पाखण्डमार्गकी शा. न्तिके लिये श्रीपर्युषणपर्वादि सम्बन्धी कार्योंका निश्चय के साथ निर्णय करता हूं। सो इस ग्रन्थमें सम्बन्ध तो मुख्य करके अधिक मासके ३० दिनोंकी गिनतीके प्रमाण करनेका है। और दो श्रावण अपवा दो भाद्र पद होनेसे आषाढ़ चौमासी से ५० दिने दूसरे प्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें श्रीपयु. षणपर्वका आराधम करने सम्बन्धी निर्णयरूप कथन कर. नेका इस ग्रन्थमें मुख्य विषय है और वर्तमानकालमें गच्छोंके पक्षपातसे आपसमें जूदी जूदी प्ररूपणाके होनेसे भोलेजीवोंको श्रीजिनामाको शुद्ध श्रद्धा मिथ्यात्वरूप भ्रम पड़ता है, उसीको निवारण करने के लिये पञ्चाङ्गी प्रमाण पूर्वक मुक्ति अनुसार इस ग्रन्यकी रचना करता हूं, सो इसको
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