________________
( २ )
अवलोकन करनेसे असत्यको छोड़कर सत्यको ग्रहण करके . मोक्षाभिलाषी जन अपने आत्म कल्याण में उद्यम करें, एही इस ग्रन्थकारका तथा इस ग्रन्थका मुख्य प्रयोजन है । और इस ग्रन्थका अधिकारी तो वही होगा जो कि अपने गच्छ संबंधी परंपरा के पक्षपातका कदाग्रह रहित तथा जिनाज्ञा इच्छक और शास्त्रोक्त शुद्ध व्यवहारको अङ्गीकार करनेवाला सम्य. क्त्वधारी मोक्षाभिलाषी, नतु अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी बहुलसंसारी गड्डरोह प्रवाही ।
मङ्गलाचरण और सम्बन्ध चतुष्टय कहे बाद सर्व सज्जन पुरुषोंको निवेदन करनेमें आता है कि- वर्त्तमानकाल में संवत् १९६६ के लौकिक पञ्चाङ्गमें दो श्रावण होने से श्रीखरंतर गच्छादिवाले पञ्चाङ्गी प्रमाण पूर्वक तथा श्री पूर्वाerrint आज्ञामुजब आषाढ़ चौमासी से ५० दिने दूसरे श्रावगर्मे श्रीपर्युषण पर्वका आराधन करते हैं जिन्हें को प्रथम श्रीवल्लभविजयजीने अपनी मति कल्पना से कोई भी शास्त्र के प्रमाण विना जैनपत्रद्वारा आज्ञा भङ्गका दूषण लगाकर के 'संपके वृक्षका बीज लगाया तथा प्रत्यक्ष श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध दो श्रावण होते भी भाद्रपद में यावत् ८० दिने श्रीपर्युषण पर्वका आराधन करके भी मायावृत्तिसे आप आज्ञाके आराधक बनना चाहा, तथा उन्हींकाही अनुकरण करके दूसरे काशी से श्रीधर्म विजयजीने अपने शिष्य विद्याविजयजी के नामसे 'पर्युषणा विचार' का लेख प्रगट कराया जिसमें भी उत्सूत्र भाषणका तथा कुयुक्तियोंका संग्रह करके अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से शास्त्रों के आगे पीछे के पाठोंकों छोड़करके बिना सम्बन्धके अधूरे अधूरे पाठ लिखकर शास्त्रकार महाराजांके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com