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५- पौष - आषाढ श्रावणादि बढे तब पांच महीनोंसे फाल्गुनआषाढ- कार्तिक चौमासी प्रतिक्रमण करनेमें आता है, जिसपर भी श्रावणादि बढ़ें तब आलोजमेकी महीनोंसे चौमासी प्रतिक्रमण करने का बतलाया सो भी पांचवी भूलकी है।
६- पहिले मास बढताथा तब भी २० दिने वार्षिक कार्यकरते थे, उसको सर्वथा उडादिये सो यह छठ्ठी भूलकी है ।
७- मास बढे तब १३ महीनोंके क्षामणे वार्षिक प्रतिक्रमण में वा पांच महीनोंके क्षामणे चौमासी प्रतिक्रमणमें हम लोग करते हैं, जिसपर भी १२ महीनोंके वार्षिक क्षामणे वा ४ महीनों के चौमासी क्षा मणे करनेका प्रत्यक्ष झूठ लिखा लोभी यह सातवी भूलकी है ।
८- पौष- चैत्रादि महीने बढे तब प्रत्यक्षमें १० कल्पी बिहार होता है, जिसपरभी मास वृद्धिके अभाव संबंधी ९कल्पी विहारकी बात बतलाकर १० कल्पीविहारका निषेध किया सोभी यह आठवी भूलकी है ।
९- अधिक महीने में सूर्याचार होता है, जिसपर भी नहीं होनेका बतलाया सोभी यह नवमी भूलकी है ।
१० - श्रावणादि महीने बढे, तब उसकी गिनतीसहित पांचवें महीनेके नवमें पक्षमें ४ || महीनोंसे दिवाली पर्व करनेमें आता है, और कभी दो कार्तिक महीने होवे तब प्रथम कार्तिक महीने में दीवा ली पर्व करनेमें आता है. जिसपर भी दिवाली वगैरह पर्वो में अधिक महीना नहींगिननेका प्रत्यक्षही झूठ लिखा सोभी यह दशवी भूलकी है
११ - यज्ञोपवित, दीक्षा, प्रतिष्ठा, विवाह, सादी वगैरह मुहूर्तवाले कार्य तो अधिक महीने में, क्षय महीने में, चौमासेमें, और सिंहस्था दिमें भी नहीं करते. मगर चौमासी पर्व व पर्युषणापर्व तो अधिक महीने में, क्षयमहीने में, चौमासेमें, और सिंहस्थादिमभी करते हैं। जिसपर भी मुहुर्तवाले कार्यों की तरह अधिक महीने में पर्युषणा करनेकाभी निषेध किया तो यहभी जिनाशा विरुद्ध उत्सूत्रप्ररूपणारूप इग्यारहवी भूलकी है.
- १२ - ५० दिने प्रथमभाद्रपद में पर्युषणा करना चाहिये जिसके बदले दूसरे भाद्रपद में करनेका लिखा सो ८० दिन होने से यहभी शास्त्र. विरुद्ध बारहवी भूल की है।
१३- जैसे देवपुजा, मुनिदान आवश्यकादि कार्य दिन प्रतिबद्ध हैं, वैसेही पर्युषणापर्व भी ५० दिन प्रतिबद्ध हैं, इसलिये जैसे अधिक
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