________________
टाल दिया.अब वोही किताब छपवानाचाहतेहैं, उस किताबमें सामा. यिक-कल्याणक-पर्युषणा-अभयदेवसूरिजी-तिथि वगैरह बातोसं. बंधी शास्त्रानुसार सत्य २ बातोंको झूठी ठहराने के लिये शास्त्रकार महाराजोंके अभिप्राय विरुद्ध होकर अधूरे २ पाठ लिखकर उन पाठोंके अपनी कल्पना मुजब जान बुझकर खोटे खोटे अर्थ करके कुयुक्तियोंसे उत्सूत्र प्ररूपणारूप और प्रत्यक्ष मिथ्या बहुतजगह लिखाहै, उसका थोडासा नमूना पाठकगणको यहांपर बतलाते हैं, जिसमें प्रथम सामायिक संबंधी लिखते हैं :
१- श्रावकके सामायिक करनेकी विधि संबंधी सर्व शास्त्रों में पहिले करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेसे इरियायही करनेका लिस्नाहै,देखो-श्रीजिनदासगणिमहत्तराचार्यजी कृत आवश्यक सूत्रकी चूर्णिमें १, श्रीहरिभद्रसूरिजीकृत वृहद्वत्तिमें २, तिलकाचार्यजी कृत लघुवृत्तिमे ३,देवगुप्तसूरिजी कृत नवपदप्रकरण वृत्तिमें ४, लक्ष्मीतिलकसूरिजी कृत श्रावकधर्म प्रकरण वृत्तिमे ५,श्रीनवांगी. त्तिकार अभयदेवसूरिजी कृत पंचाशक मूत्रकी वृत्तिमे६, विजयसिंहा. चार्यजीकृत वंदीतासूत्रकीचूर्णिमें ७, हेमचंद्राचार्यजी कृत योगशाल वृत्ति, ८, तपगच्छीय देवेंद्रसूरिजी कृत श्राद्धदिनकृत्यसूत्रकी त्ति ९, कुलमंडनसूरिजी कृत विचारामृत संग्रहमें १०,मानविजयजी कृत धर्मसंग्रह वृत्तिमें ११, इत्यादि अनेक शास्त्रोंमें खास तपगच्छादि सर्व गच्छोंके पूर्वाचार्योंने प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेसे इरियावही करनेका बतलायाहै.
२- श्रीमान् देवेंद्रसूरिजी कृत श्राद्धदिनकृत्य सूत्रवृत्तिका पा. उ यहां पर बतलाताहू. सो देखिये :___“श्रावकेण गृहे सामायिकं कृतं, ततोऽसौ साधुसमीपे गत्वा किं करोति इत्याह-साधुसाक्षिकं पुनः सामायिकंकरवा इर्याप्रतिकम्यागमनमालोचयेत् । तत आचार्यादीन बंदित्या स्वाध्यायं काले. चावश्यकं करोति " इत्यादि
इस पाठमें गुरुपास जाकर करेमिभंतेका उचारण किये बाद पी. से हरियावहोकरके भाचार्यादिकोंको चंदनाकरके स्वाध्यायकरना बसलाथाहै और पीछे अवसर आवे तष छ आवश्यक रूप प्रतिक्रमण करनेकाभी बतलाया है।
३-श्रीहीरविजयसूरिजीके संतानीय श्रीमानविजयोपाध्याय• जीकत धर्मसंग्रह वृत्तिका पाडभी देखो--
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com