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[१०३] ना होवे, तथा भगवान् "उपर और गुरुमहाराज उपर लोगोंकी श्रद्धा बढे, बहुत जीवोंको धर्म प्राप्तिका महान् लाभ होवे, इसलिये घरसे सामायिक लेकर नंगे पैरसे पैदल इरियासमितियुक्त आनेके बदले बडे आडंबरसे गुरुपास आकर पीछे सामायिक करें.
२१ - राज्यऋद्धिकी सोभा युक्त गुरुपास आकर जो नजदीक भगवान्का मंदिर होवे तो पहिले वहां मंदिरमें जाकर विधिसहित उपयोग युक्त भावसे- केशर चंदनादिसे पहिले द्रव्य पूजा करें बाद पीछे चैत्यवंदन स्तवनादिसे भाव पूजा करें उसके बादमें गुरु पास आकर “यथासंभवं साधु समीपे मुखपोतिका प्रत्युपेक्षणपूर्व" अर्थात्- स्त्रमासमणपूर्वक भुहपत्तिकापडिलेहणकरके सामायिक सं. दिसाहणे वगैरहके आदेश लेकर ऊपर मुजब विधिसे पहिले करे। मिभंतेका उच्चारणकरके पीछे इरियावही पूर्वक स्वाध्यायादि करे.
२२- राजादिक सामायिक करें तब तक राज्यचिन्ह मुकुटादि. कको अलग रख्खे, त्याग करें. . २३-इसप्रकार सामायिक करनेवाले वहां विकथादि कर्मबंधन केहेतुभूत कोईभी कार्य न करें, किंतु स्वाध्याय ध्यानादि कोकीनिजर्जराके हेतुभूत धर्मकार्य करनेमें अपना समय व्यतीत करें, इत्यादि,
३४- अब देखिये-ऊपर मुजब सर्वमान्य प्राचीन शास्त्रपाठोपर विवेक बुद्धिसे तत्व दृष्टिपूर्वक विचार किया जावे तो सामायिक करनेके लिये प्रत्येकवार स्वमासमण सहित 'सामाइय मुहपत्ति पडिले. हेमि' 'सामाइयंसंदिसावेमि' 'सामाइयंठावेमि' इत्यादि वाक्योंसे सा. मायिक करनेका आदेश लेकर नवकारपूर्वक विनयसहित 'करेमिभं. ते ! सामाइयं' इत्यादि संपूर्ण सामायिकका पाठ उच्चारण कियेबाद पीछेसे इरियावही करनेका सुस्पष्टतासे साफ खुलासापूर्वक सब शा. त्रकार सर्व गच्छोंके पूर्वाचार्योंने लिखा है, सो अल्प बुद्धिवालाभी ऊपरके शास्त्र पाठोपरसे सामायिकका अधिकारको अच्छी तरहसे समझ सकताहै. जिसपरभी ऊपरकी तमाम सर्व बातोको छोडकर "ऊपरके शास्त्रपाठ आलोयणा संबंधी है, या स्वाध्याय संबंधी हैं, वा वंदनासंबंधी हैं, अथवा सामायिक संबंधी हैं. इसकी हमको अ. च्छी तरहसे मालूम नहीं पडती, इसलिये ऊपरके शास्त्र प्रमाणोसे सामायिकमें प्रथम करेमि भंते और पीछे इरियावही कैसे किया जा घे?" ऐसी २ कुतर्क जान बुझकरके या उपरके शास्त्रपाठोको वांचे, विचारे, समझे बिनाही परंपराकी अज्ञानतासे करते हैं, सो तोश्री.
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