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[५] और विशेष सूचनायें विज्ञापन, नंबर ६ से समझ लीजिये. और नि. यमभी जो आपकीइच्छा हो सो प्रतिज्ञापत्रके साथ १५ दिनके भीत. रप्रगट करीये, आनंदसागरजी, विजयधर्मसूरिजी, विद्याविजयजी वन्यायविजयजीकी तरह आडीआडी बाते निकालकर शास्त्रार्थ क. रना मजूर न करोगे,तो-आपकीभी हार समझीजावेगी. अथवा श्री. कच्छी जैनएसोसीयनकी विनतीके अनुसार व मेरे विज्ञापनोक अ. नुसार यदि आपको मुंबईमें ठहरकरसभामे शास्त्रार्थ करने में अनुकू. लतानहो तो लीजिये चलिये-लेख द्वाराही सही, मगर विज्ञापन नं. बरद मुजब प्रतिज्ञा वगैरह नियमोके साथ उत्तर दीजिये. देखो
न्यायरत्नजी मैरे बनाये लघुपर्युषणानिर्यय के प्रथम अंक 'के सब लेखोंका न्यायसे पूरेपूरा उत्तर देनेकी आपमें ताकत नहीं है, य. दि होती तो उसके पृष्ठ३-४-५.६.७ और १०में अधिकमासमें सूर्यचा. र न होवे, वनस्पति न फूले, वैगरह सुबोधिकाकी ११बातोका खुलासा मैने लिखाथा. उनसबको लिखकर अनुक्रमसे पूरा उत्तर क्यों न दिया,यदि भूल गयेहो, तो अभीही देवो । और पृष्ठ १७ के अंतके पाठका खुलासाभी साथही करो ॥ और मैने 'लघुपर्युषणा निर्णय' में निशीथचूर्णि और दशवकालिक बृहदुवृत्तिके पाठसे अधिकमास. को कालचूला कहकरकेभी दिनोंकी गिनतीमेलेनेका सिद्धकर दिखा. याहै, इसलिये दिनोंकीगिनतीमें निषेधनहींहो सकता, देखो-लघुपयुषणानिर्णयके पृष्ठ २४-२५ ॥ और लौकिक शास्त्रानुसारभी अधिकभासको दिनोंमें गिनाहै, देखो-लघु पर्युषणानिर्णय के पृष्ट २८-२९ ॥ और अधिकमासमें मुहूर्तवाले शुभकार्य न होवें, उसीतरह चौमासे. में, सिंहस्थमें,गुरुशुक्रके अस्तमें, पौष चैत्र मलमासमें, क्षयमासमें, वदीपक्षकी १३.१४ और अमावास्या इन तीनक्षीणतिथीयोंमें,और वै. धृति-गंडांत-व्यतिपात-भद्रा वगैरह कुयोगोंमें, तिथी, वार, नक्षत्र चंद्रादि बहुत मास-पक्ष-वर्ष-दिन वगैरह योगों मेंभी मुहुर्तवाले शुभ. कार्य न होवे, देखो-ज्योतिःशास्त्रे “जभारिति पुरोहिते हरिगते,सुप्ते मुकुंदेविभौ । जातेधर्मघने धनशफटयोः क्षीणे कुवारस्तिथिः॥ अस्ते. भार्गव जीवयोः कुदिने, मासाधिके वैधृतौ । गंडांते व्यतिपात विष्टि. क शुभं, कार्य न कार्य बुधैः ॥१॥" मगर दान, शील, तप, भाव, सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रेषिघ वगैरह. धर्मकार्य अधिक मासमे भी होसकतेहै। उसी तरह पर्युषणापर्वभी दिन प्रतिबद्ध होनेसे अधिक मासमें करने में कोई बाधा नहीहै । देखो लघुपर्युषणा निर्णयके पृष्ठ
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