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२७-२८ ॥ और मासवृद्धि होनेपर भी पर्युषणा के पिछाडी ७० दिन र• हनेका किसीभी शास्त्र में नहीं लिखा, समवायांगका पाठ तो मास बृद्धिके अभावका है, इसलिये अधिकमास होनेपरभी ७० दिन रहनेका - कहना शास्त्रकारोंके अभिप्रायविरुद्ध होनेसे मिथ्या है, देखो लघुपर्युपण निर्णय के पृष्ठ १८-१९-२० २१ ॥ इसीतरहसे दोनों आषाढ वगैरहका खुलासाभी लघुपर्युषणा के पृष्ठ २५-२६ में अच्छी तरहसे दिख. ला दिया था । जिसपर भी न्यायरत्नजी आपने मेरे लेखोंका आगे पीछेका संबंध तोडकर मैरे अभिप्रायके विरुद्ध होकर अधूरे अधूरे लेख, भोलेजीवोंको दिखलाकर अपनी दोनों किताबों में आप वारंवार अधिक महीने के दिनोंको गिनतीमेंसे उड़ा देनेकेलिये कोईभीशास्त्रकापाठ बतलाये बिनाही, और लघुपर्युषणा के पृष्ठ २७-२८ का लेखको पूरा विचारे बिनाही, ' अधिकमासनिर्णय' के दूसरे पृष्ठकी आदिमें आप लिखते होकि 'अधिकमहिने में विवाह सादी वगेरा कामनहीकि० जाते, दीक्षा प्रतिष्ठा वगैरा धार्मिक कामभी अधिकमहीने में नहींकिये जाते, फिर पर्युषणापर्व जैसा उमदापर्व अधिकमहिने में कैसेकियाजाय. ' तथा ' पर्युषणापर्व निर्णय ' के मुख्यपृष्ठ परभी 'दीक्षा प्रतिष्ठा और दुनियादारीके विवाह सादी वगेराकाम अधिकमहीने में नही किये जाते, तो फिर पर्युषणापर्व जैसा उमदापर्व कैसे किया जाय ' यह दोनों लेख आपके जिनाशाविरुद्ध उत्सूत्र प्ररूपणारूपही हैं. यदि मुहुर्त्तवाले दीक्षा प्रतिष्ठा व संसारी विवाह सादीकी तरह पर्युषणा भी आप मानोंगे, तबतो चौमासेमें, तथा १३ महीनों तक सिंहस्थवाले वर्षमै भी पर्युषणा करनाही नहीं बनेगा, मगर शास्त्रों में तो चौ मासेमेही और सिंहस्थवाले वर्ष भी वर्षा ऋतुमेही दिनोंकी गिनती से५०वेदिन अवश्यही पर्युषणा करना कहा है, मुहूर्त्तवाले विवाहसादी वगैरह लौकिक कार्यों के साथ, बिना मुहूर्तवाले लोकोत्तर पर्युषणाप
का कोईभीसंबध नही है. सिंहस्थ, अधिकमास, क्षयमास, गुरु शुक्रका अस्त, चौमासा, व्यतिपात, भद्रा, और चंद्र व सूर्य ग्रहण वगैरह कोई भी योग पर्युषणा करने में बाधक नही होसकते, इसलिये आपका उत्सू त्र प्ररूपणाका और प्रत्यक्ष अयुक्त व मिथ्यालेखको पीछा खींच लीजिये और मिच्छामिदुक्कडं प्रकट करिये, नहीं तो सभामें सिद्ध क रने को तैयार हो जाइये ॥ १ ॥ औरभी आपने ' मानव धर्म संहिता के पृष्ठ ८०० में लिखा है कि " अगर अधिकमास गिनती में लियाजाता हो तो पर्युषणापर्व दूसरे वर्ष श्रावणमें ओर इसतरह अधिकम
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