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नीही जगह प्रत्यक्ष मिथ्या कथन करके, आपसमेही खंडनमंडनके झगडे चलातेहैं,और सब जीवोंकी जगह केवल जैनीमात्रसभी मित्रता नहीं रख सकते, उससे मैत्री भावनाका भंग, विरोधभावकी वृद्धि व खंडन मंडनसे रागद्वेष करके कर्म बंधनका कारण करते हैं । औ र शास्त्र विरुद्ध प्ररूपणा करनेसे जिनाज्ञाकीभी विराधना करते हैउससे परिणामोंकी मलिनता होने से पर्व दिनों में वर्षभरके अतिचा. रोकी आलोचना करके आत्माको निर्मल करनेकेबदले विशेष मलीन करते हैं। और खंडन भंडनके झगडेके लिये सब जीवोसे क्षमत क्षामणे करनेकेबदले अपने सब जैनीभाईयोसेभी क्षमत क्षामणे नहीं करसकते. उससे अनंतानुबंधी कषायके उदय होनेका प्रसंग आनेसे सम्यक्त्वकी व संयमकी विरोधना होकर संसार भ्रमणका कारण करते हैं, इसलिये कर्मक्षय कारक महा मंगलमय शांतिके दिनों में व्याख्यानमें श्री महावीरस्वामीके छ कल्याणक आगमों में कहेहैं उ. न्होको व अधिक महिनेके ३० दिनोंको गिनती में लिये हैं उन्होंको निषेध करनेकेलिये खंडनमंडनके विवादके झगडे कितनेक तपगच्छ के मुनि महाराज जो चलातेहैं सो पर्वकी विराधना करनेवाले, शांतिके भंग करनेवाले, अमंगलरूप अशांतिको बढानेवाले, व उत्सू. प्रारूपणासे संसार बढानेवाले होनेसे, तत्त्वदर्शी,विवेकी,आत्मार्थीभव भिक, सज्जनोंको अवश्यही छोडना योग्य है। इसको विशेष निष्पक्षपाति पाठकगण स्वंय विचार सकते हैं। ४३- पर्युषणाके मंगलिक दिनोमें क्लेशकारक अमंग
लिक करना योग्य नहीं है। यहबात व्यवहारसे प्रत्यक्ष अनुभवपूर्वक देखने में आती है, कि मांगलिकरूप वार्षिक पर्व दिन सुखशांतिसे हर्षपूर्वक व्यतीत होवे, तो,वो वर्ष संपूर्ण सुखशांतिसे व्यतीत होता है, मगर मांगलिकरूप पर्व दिनों में किसीके साथ विरोध भाव कलेश होकर अमंगलरूप भपशुकन होवे, तो, वर्षभर चिंतासे कलेशमेही जाता है। इसलिये पर्वके दिनों में तो अवश्यही शांति रखना योग्य है । इसप्रकार व्य. वहारिक बातकेभी विरुद्ध होकर तपगच्छके कितनेही मुनिमहारा. ज पर्युषणा जैसे परम मांगलिकके दिनोभी शांतिसे नहीं बैठते, और सुबोधिका-दीपिका-कारणावलि वगैरहके विवादवाले विषय हाथमे लेकर श्रीमहावीरस्वामिके छ कल्याणक आगमपंचांगी अने
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