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भद्रबाहुसंहिता
है। आ ई ऐ औ मात्राओं से संयुक्त क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स इन प्रश्नाक्षरों के होने पर अल्प लाभ होता है । अ आ इ ए ओ मात्राओं से संयुक्त उपर्युक्त प्रश्नाक्षरों के होने पर जीव लाभ और रुपया, पैसा, सोना, चांदी, मोती, माणिक्य आदि का लाभ होता है । ई ऐ औ ङ न ण न म ल र ष प्रश्नाक्षर हों तो लकड़ी, वृक्ष, कुर्सी, टेबुल, पलंग आदि वस्तुओं का लाभ होता है।
शुभाशुभ प्रकरण में प्रधानतया रोगी के स्वास्थ्य लाभ एव उसकी आयु का विचार किया जाता है । प्रश्नवाक्य में आद्य वर्ण आलिंगित मात्रा से युक्त हों तो रोगी का रोग यत्नसाध्य; अभिधूमित मात्रा से युक्त हो तो कष्टसाध्य और दग्ध मात्रा से संयुक्त संयुक्ताक्षर हो तो मृत्यु फल समझना चाहिए । पृच्छक के प्रश्नाक्षरों में आद्य वर्ण आ ई ऐ ओ मात्राओं से युक्त संयुक्ताक्षर हो तो पृच्छक जिसके सम्बन्ध में पूछता है उसकी दीर्घायु होती है। आ ई ऐ औ इन मात्राओं से युक्त क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स वर्गों में से कोई भी वर्ण प्रश्न वाक्य का आद्यक्षर हो तो लम्बी बीमारी भोगने के बाद रोगी स्वास्थ्य लाभ करता
पृच्छक से किसी फल का नाम पूछना तथा कोई एक अंक संख्या पूछने के पश्चात् अंक संख्या को द्विगुणा कर फल और नाम के अक्षरों की संख्या जोड़ देनी चाहिए । जोड़ने के पश्चात् जो योग आये, उसमें 13 जोड़कर 9 का भाग देना चाहिए। 1 शेष में धनवृद्धि, 2 में धनक्षय, 3 में आरोग्य, 4 में व्याधि, 5 में स्त्री लाभ, 6 में बन्धु नाश, 7 में कार्यसिद्धि, 8 में मरण और 0 शेष में राज्य प्राप्ति होती है।
कार्य सिद्धि-असिद्धि का प्रश्न होने पर पच्छक का मुख जिस दिशा में हो उस दिशा की अंक संख्या (पूर्व 1, पश्चिम 2, उत्तर 3, दक्षिण 4), प्रहर संख्या (जिस प्रहर में प्रश्न किया गया है, उसकी संख्या प्रातःकाल सूर्योदय से तीन घंटे तक प्रथम प्रहर, आगे तीन-तीन घण्टे पर एक-एक प्रहर की गणना करनी चाहिए), वार संख्या (रविवार 1, सोम 2, मंगल 3, बुध 4, बृहस्पति 5, शुक्र 6, शनि 7) और नक्षत्र संख्या (अश्विनी 1, भरणी 2, कृत्तिका 3 इत्यादि गणना) को जोड़ कर योगफल में आठ का भाग देना चाहिए । एक अथवा पांच शेष रहे तो शीघ्र कार्यसिद्धि, छः अथवा चार शेष में तीन दिन में कार्य सिद्धि, तीन अथवा सात शेष में विलम्ब से कार्यसिद्धि एवं अवशिष्ट शेष में कार्य असिद्धि होती है।
हंसते हुए प्रश्न करने से कार्य सिद्ध होता है और उदासीन रूप से प्रश्न करने पर कार्य असिद्ध रहता है।
पृच्छक से एक से लेकर एक सौ आठ अंक के बीच की एक अंक संख्या पूछनी चाहिए । इस अंक संख्या में 12 का भाग देने पर 1171913 शेष में विलम्ब से कार्य सिद्धि; 81411015 शेष में कार्य नाश एवं 21611110 शेष में शीघ्र कार्य