Book Title: Jain Tirth Parichayika
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ संस्करण परिचायिका भारत देशे तीर्थ दर्शनम् । ofth 2010_03 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीभगरा तीर्थ Kahilaमनाजिनालय हलालाबासी) श्री आशापूरण पार्श्वनाथ तीर्थ जुन गाँव, जिला सिमोही मायन) श्री श्रवणबेलगोला तीर्थ मरवापरी चिन्तामणि पाना असमान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 11 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 67 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 161 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 97 पर श्री भद्रेश्वर तीर्थ श्री चम्पापुरी तीर्थ श्री अमर सागर तीर्थ श्रीदेलवाड़ा(आबूतीथ भगवानमत्यवीर स्वामी श्रीवासुपूज्य भगवान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 129 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 25 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 75 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 104 पर भी हथुण्डी तीर्थ (श्री. राता महावीर भ.) श्री डीसा तीर्थ श्री गौडी पार्श्वनाथ बावन जिनालय आहोर (जिला जालौर) जीजामाता यामनाराज श्री जीरावला तीर्थ भगवान महावीर स्वामी विस्तृत जानकारी पृष्ठ 67 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 89 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 115 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 106 पर Saldeio Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ श्री अष्टापद जैन तीर्थ श्री चमत्कारी पार्श्वनाथ जैन तीर्थ बाकरा रोड श्री भाण्डवपुर तीर्थ (संपूर्ण भारतवर्ष में अपने रंग का प्रथम प्रयास) प्रोजयदेव-आदिवाभावाज गुरू मन्दिर MINIMIMICHHATHRIT विस्तृत जानकारी पृष्ठ 87 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 68 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 71 पर श्री गांधीनगर जैन मन्दिर, बैंगलोर श्री गिरनार तीर्थ श्री नाकोड़ा अवटित 18 पार्श्वनाथ जैन तीर्थ धाम विक्रम स्थूलभद विहार, देवनहल्ली, बेंगलोर श्रीनाथलान श्री नेमिनाथ भगवान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 155 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 157 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 125 पर श्री कोरटा तीर्थ श्री चन्द्रप्रभुजी महाराज जैन जना मन्दिर । श्री हस्तिनापुर तीर्थ श्री शान्तिनाथ भगवान मूलनायक श्री आदिश्वर भ. श्री महावीर भगवान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 91 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 166 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 21 पर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका सम्पूर्ण भारत वर्ष के जैन तीर्थ क्षेत्रों का नवीनतम संशोधित परिचय, मार्ग दर्शक मानचित्र तथा निकटवर्ती दर्शनीय स्थलों की जानकारी मार्गदर्शन एवं पावन निश्रा श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वर प्रधान संपादक श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रबन्ध सम्पादक राजेश सुराना सह-सम्पादक संजय सुराना 2010_03 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 पुस्तक : जैन तीर्थ परिचायिका चतुर्थ संस्करण : जनवरी सन् 2004 o आवृति : 3000 : 120/- (रुपये एक सौ बीस मात्र) प्रकाशक : राजेश सुराना दिवाकर टैक्स्टोग्राफिक्स ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, महात्मा गाँधी मार्ग, आगरा-282 002 दूरभाष : 0562-2150296,2520129 E-mail : diwakar@sancharnet.in o सह-प्रकाशक : श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, महात्मा गाँधी मार्ग, आगरा-282 002 दूरभाष : 0562-2151165, 3203291 0 © सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन शंखेश्वर तीर्थ में प्राप्ति-स्थान : |शत्रुजय महातीर्थ में प्राप्ति-स्थान : श्री पार्श्वनाथ जैन पुस्तक भंडार श्री पार्श्वनाथ जैन पुस्तक भंडार धार्मिक पुस्तकें, उपकरण, गिफ्ट आइटम, पूजा धार्मिक पुस्तकें, उपकरण, गिफ्ट आइटम, पूजा के वस्त्र आदि खरीदने का विश्वासपात्र स्थान के वस्त्र, चखला आदि के थोक व्यापारी प्रदीपभाई कोठारी महेन्द्रभाई कोटारी जैन भोजनशाला के सामने, शंखेश्वर तीर्थ-384246 || आरीसा भवन के बाज में, तलेटी रोड, पालीताणा-3642701 फोन : 02733-60)273522, (R)273303 फोन : 02848-40)253323, (R)253103 2010_03 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका ঙ্গি 1-8 E तिम 9-24 पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं जम्म काश्मीर दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा 25-31 33-36 मध्य प्रदेश 37-50 राजस्थान 51-110 वषय नीय; उन्हें र्थ से ६ की समय गुजरात 111-144 महाराष्ट्र 145-154 कनार्टक 155-162 बताने गाना तमिलनाडु 163-172 आन्ध्र प्रदेश 173-176 ___ नोट : परिचायिका में तीर्थों को जिले के अनुसार रखा गया है तथा जिलों को अंग्रेजी के वर्णक्रम के अनुसार लगाया गया है। अतः तीर्थों को उनके नामानुसार क्रमवार देखें। कारी कलीं। ' और म्बन्ध आदि प्रायः ।। इस प्रयत्न श का साथ ही ना रही | बहुत [ लोढ़ा v 2010_03 Wiiw.jainelibary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ परिचायिका का आवश्यक परिचय सन्त पुरुषों ने तीर्थ की एक सरल परिभाषा की है तारे सो तीर्थ-इस परिभाषा में जंगम-स्थावर दोनों प्रकार के तीर्थ आ जाते हैं। जंगम यानी चलते-फिरते जीवित तीर्थ। तीर्थंकर भगवान जंगम तीर्थ के संस्थापक होने से तीर्थ के कर्ता कहे जाते हैं। वे स्वयं भी सर्वोत्तम तीर्थ रूप हैं, तथा उनके पथ के अनुगामी सन्तजन, त्यागी साधु-साध्वी तथा श्रावक-श्राविका भी तीर्थ रूप हैं। इनके सत्संग से पवित्र वातावरण मिलता है। आत्मा में दिव्य प्रेरणाएँ जगती हैं, इसलिए वे सब तीर्थ रूप हैं। ___ स्थावर तीर्थ भी अनेक प्रकार के होते हैं, मुख्यतः इसके तीन भेद किये जा सकते हैं। सिद्ध क्षेत्र, अतिशय क्षेत्र तथा प्रभावक क्षेत्र । जहाँ जिस स्थान पर त्यागी, तपस्वी, ऋषि, महर्षियों ने तपःसाधना, ध्यान साधना करके सिद्ध गति-मोक्ष प्राप्त किया है वह सिद्ध क्षेत्र या सिद्ध शिला कहलाता है। शत्रुजय, गिरनार, अष्टापद, शिखर जी, पावापुरी आदि ऐसे ही सिद्ध क्षेत्र हैं। ___जहाँ तीर्थंकर भगवान के जन्म से निर्वाण तक पंच कल्याणक होते हैं या उनके चरण-स्पर्श से जो भूमि विशेष पवित्र हुई है वह अतिशय क्षेत्र कहा जाता है। जैसे अयोध्या, हस्तिनापुर, चम्पा, कौशाम्बी, कुण्डलपुर आदि। इसके अलावा जिन स्थानों का अपना विशेष प्रभाव होता है, तथा पूजा, प्रतिष्ठा, तप, जप आदि के कारण जहाँ का वातावरण विशेष प्रभावक होता है वे सभी तीर्थ क्षेत्र प्रभावक तीर्थ की परिभाषा में आते हैं। ___ तीर्थ भूमि का आकर्षण, उसके प्रति श्रद्धा और वहाँ की धरती पर जाकर आराध्य पुरुषों की वन्दना, पूजा आदि करके जीवन को कृतार्थ करने की भावना प्रत्येक आस्तिक और श्रद्धालु मानस में स्वाभाविक रूप में होती है। इसी श्रद्धा से प्रेरित होकर प्रति वर्ष हजारों, लाखों व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट सहकर भी स्वयं तीर्थयात्रा करते हैं और बड़े-बड़े यात्रा संघ निकालकर अपने जीव को धन्य मानते हैं। भारत भूमि एक प्रकार से देव भूमि है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक फैले हजारों प्राचीन, नवीन तीर्थ इस धरती को स्वर्गादपि गरीयसी बताते हैं। प्रत्येक श्रद्धालु व्यक्ति चाहता है, जीवन में एक बार तो तीर्थयात्रा करें, सब तीर्थों की यात्रा वन्दना नहीं, तो कम से कम जितने सम्भव हो उतने ही सही। और नहीं तो शत्रुजय और शिखर जी जैसे शास्वत तीर्थों की यात्रा तो जीवन में एक बार अवश्य करें। प्राचीन समय में तीर्थयात्रा करना बड़ा कठिन और अत्यन्त कष्ट साध्य व अर्थ साध्य काम था। किन्तु धीरे-धीरे यात्रा के मार्ग सुगम होने से, यातायात साधनों का विकास और दूर संचार सुविधाओं का विस्तार तथा तीर्थ क्षेत्रों में आवास आदि की सुविधाएँ बढ़ने से तीर्थयात्रा इतनी कठिन नहीं रही है। फिर भी आज भी तीर्थयात्रियों के लिए तीर्थयात्रा एक कठिन तपस्या से कम नहीं है। लगभग २५ वर्ष पूर्व मद्रास से 'जैन तीर्थ दर्शन' नामक पुस्तक का दो भागों में सचित्र प्रकाशन हुआ था। इसके पूर्ववर्ती प्रकाशनों से यह एक श्रेष्ठ प्रकाशन कहा जा सकता है। भावनाशील और अनुभवी सम्पादकों ने अपने ही संसाधनों से तीर्थ क्षेत्रों की यात्राएँ की, वहाँ के पवित्र मन्दिरों की फोटोग्राफी की और अनेक प्रकार की जानकारियाँ जुटाकर तीर्थ यात्रियों के लिए एक बहुत ही उपयोगी मार्ग दर्शक पुस्तक प्रकाशित की। ऐसी पुस्तक लोकप्रिय होने के बाद उसके दो-तीन संस्करण प्रकाशित हुए। उसके बाद भी तीर्थों की जानकारी देने वाली अनेक छोटी-बड़ी मार्ग दर्शक पुस्तकें, तथा तीर्थों की कला और संस्कृति का परिचय देने वाली अनेक पुस्तकों का भी प्रकाशन हुआ। - iv 2010_03 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन २५ वर्षों में भारत भूमि पर भी जबर्दस्त क्रान्तिकारी परिवर्तन आये। रेलवे, सड़क आदि यातायात सुविधाओं का बहुत विस्तार हुआ है। अन्य सभी प्रकार की सुविधाओं में परिवर्तन और विकास होने से २५ वर्ष में लगभग सभी कुछ बदल-सा गया है। अनेक नये मार्ग बन गये। रेलवे स्टेशन नये बने हैं। डाकखाना, टेलीफोन आदि साधन भी विकसित हो गये और तीर्थ क्षेत्रों में आवास आदि की सुविधाओं पर भी आधुनिक सभ्यता का सीधा प्रभाव पड़ा है। मनुष्य ज्यों-ज्यों सुविधा भोगी बना है, त्यों-त्यों सुविधा-साधनों का बहुत अधिक विस्तार हो गया है। अब तीर्थयात्रा करना इतना कठिन नहीं रहा । अपितु अनेक तीर्थ क्षेत्र तो पर्यटन की दृष्टि से भी भारत के नक्शे पर विकसित हुए हैं । परिवर्तनशील समय में जब एक वर्ष पुरानी जानकारियाँ भी पुरानी पड़ जाती हैं । तीर्थयात्रियों को नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराना बहुत आवश्यक है। ताकि उनकी तीर्थयात्रा सुगम व सहज आनन्ददायी हो सके। कई बार यात्री एक सड़क मार्ग से निकलते हुए जब एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ पर पहुँचते हैं, तो पता चलता है, इस मार्ग के बीच में अनेक तीर्थ छूट गये। रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अनेक दर्शनीय तथा प्रभावक तीर्थ आये हैं जो रह गये। यदि उन्हें पहले से ही जानकारी होती तो वे उन तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा कर लेते। विदेशों से भारत में जो पर्यटक आते हैं वे भारत भूमि पर उतरते ही या उससे पहले ही पर्यटन स्थानों के विषय पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और 'गाइड बुक' हर समय साथ रखते हैं, जिससे उनकी यात्रा में कोई दर्शनीय; रमणीय ऐतिहासिक स्थान छूटे नहीं, भारत में रहने वाले तथा विदेशों से आने वाले जैन तीर्थ यात्री भी चाहते हैं उन्हें इस प्रकार की गाइड बुक मिल जाये, जिसमें समस्त जैन तीर्थ क्षेत्रों का परिचय, रोड मेप, रेलवे मेप, एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की दूरी, तीर्थ क्षेत्र में वहाँ की पेढ़ी का पूरा पता, टेलीफोन नम्बर, वहाँ पर आवास, भोजन आदि की व्यवस्था आदि सम्बन्धित सही-सही समस्त जानकारी प्राप्त हो जाये, ताकि उनकी तीर्थयात्रा हर दृष्टि से स्वल्प समय में आनन्ददायी और परिपूर्ण रहे । देखा जाता है, कुछ प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्रों के विषय में भी लोगों को सही जानकारी नहीं होती । जितने लोग बताने वाले हैं, उतनी तरह की भिन्न-भिन्न बातें सुनने को मिलती हैं जिससे तीर्थयात्री को समय व श्रम तो अधिक लगाना पड़ता ही है, फिर भी यात्रा में कुछ न कुछ तीर्थ क्षेत्र, कुछ दर्शनीय मन्दिर व अन्य महत्त्वपूर्ण चीजें छूट जाती हैं। कुछ वर्ष पूर्व मेरी पूज्य माताजी सौ. लीलादेवी सुराना ने तीर्थयात्रा की अनेक पुस्तकें मँगाई और उनकी जानकारी ली, फिर भी जब तीर्थयात्रा पर निकलीं तो बहुत सी जानकारियाँ और सूचनाएँ गलत और कुछ अधूरी निकलीं। उन्होंने मुझे प्रेरणा दी, कि एक ऐसी पुस्तक तैयार करनी चाहिए, जिसमें भारत के समस्त जैन तीर्थों की सम्पूर्ण और सही-सही जानकारी प्राप्त हो सके। पूज्य माँ की प्रेरणा से मैंने यह कार्य करने का संकल्प किया। जैन तीर्थों के सम्बन्ध छपी हुई प्राचीन, नवीन अनेक पुस्तकें मँगाई, भारत सरकार के पर्यटन विभाग की गाइड, प्रामाणिक रोडमेप आदि आधुनिकतम प्राप्त स्रोतों से भी पर्याप्त नवीन तथा प्रामाणिक जानकारी का संकलन किया। इसी के साथ देश के प्रायः सभी श्वेताम्बर, दिगम्बर तीर्थ क्षेत्रों की पेढ़ियों को व्यक्तिगत पत्र व उनके साथ जानकारी के छपे फार्म भेजे। इस प्रकार विविध स्रोतों से जो सूचनाएँ मिलीं वे पुरानी सूचनाओं से काफी भिन्न और अधिक प्रामाणिक थी । मेरा प्रयत्न रहा है कि समस्त जैन तीर्थों के सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी और प्रमुख - प्रमुख मन्दिरों के चित्र तथा प्रत्येक प्रदेश का स्वतन्त्र रोड मेप आदि देकर इसे अधिक से अधिक सुगम और परिपूर्ण बनाया जाये। प्राचीन तीर्थ क्षेत्रों के साथ ही दक्षिण भारत के अनेक नवीन जैन तीर्थों की जानकारी भी पहली बार एक साथ एक स्थान पर प्रकाशित की जा रही है । इस कार्य में लगभग ३ वर्ष का समय लगा है। नक्शे की ड्राफ्टिंग करने में मेरी धर्मपत्नी सौ. सुषमा ने भी बहुत परिश्रम किया है तथा जानकारी जुटाने व इस पुस्तक को अधिक व्यापक व उपयोगी बनाने में श्री निर्मल जी लोढ़ा हार्दिक सहयोग किया है। ने भरपूर 2010_03 V Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरे पूज्य पिता श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' से समय-समय पर उपयुक्त मार्गदर्शन और परामर्श मिलता रहा है। पूज्य आचार्य भगवंतों ने आशीर्वचन प्रदान कर मुझे उत्साहित किया है तथा अनेक तीर्थ क्षेत्र पेढ़ियों ने व व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने सहयोग देकर इस कार्य को पूर्ण सहयोग प्रदान किया है। मैं उन सबका आभारी हूँ। ___ मैं अपने सभी सहयोगी महानुभावों का जिन्होंने विभिन्न पेढ़ियों से हमें नवीनतम जानकारी प्रदान की, हार्दिक आभार प्रगट करता हूँ। साथ ही इण्डियन मेप सर्विसेज, जोधपुर के श्रीमान् आर. पी. आर्या जी का विशेष आभार मानता हूँ जिन्होंने इस कार्य हेतु राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात एवं Road Distance Guide की प्रतियाँ अपनी ओर से सहायतार्थ हमें भेजीं। जिनकी सहायता से हम नवीनतम एवं सही जानकारी प्राप्त करने में सफल रहे। इस कार्य से जुड़े सभी गणमान्य व्यक्ति विशेष अभिनन्दन के पात्र हैं जिन्होंने किसी न किसी प्रकार से पूर्ण करने में सहयोग प्रदान किया है। मैं प्रयत्न करता रहूँगा कि तीर्थ क्षेत्रों की नवीन-नवीन सूचनाएँ एकत्र कर प्रतिवर्ष नये संस्करण में उनको जोड़ दिया जाये, ताकि तीर्थयात्रियों को कम से कम कठिनाई का अनुभव हो। ___ वे सभी पाठक, जो तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं, या जाने का मन बना रहे हैं इस पुस्तक को 'गाइड' मानकर हर समय अपने साथ रखें, तो उन्हें काफी सहयोग मिलेगा तथा जो यात्रा कर चुके हैं वे भी अपना सुझाव या कोई नई सूचनाएँ हो तो निःसंकोच भेजें। जिसे नवीन संस्करण में सम्मिलित किया जा सकेगा। आप सबके सहयोग के प्रति पुनः हार्दिक कृतज्ञता ! -राजेश सुराना दिवाकर टैक्स्टोग्राफिक्स ए-७, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा VI 2010_03 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ संस्करण के विषय में दो शब्द ! इतने अल्प समय में ही इसका चतुर्थ संस्करण पाठकों की जिज्ञासा और रुचि को ध्यान में रखते हुए करना पड़ा। इस नवीन संस्करण में पंजाब, मुम्बई, जलगाँव आदि के नवीनतम तीर्थों की जानकारी तो समाहित की ही गयी है साथ ही अनेक स्थानों के फोन, पते आदि परिवर्तित होने के कारण उन्हें भी संशोधित किया गया है। मार्गों एवं ठहरने की व्यवस्थाओं में भी सभी उपलब्ध नवीन जानकारियों को समाहित किया गया है। लुधियाना के कर्मठ समाजसेवी एवं लुधियाना संक्रान्ति मण्डल के अध्यक्ष श्री प्रवीण जैन ने विशेष रुचि लेकर हमें हर प्रकार से सहयोग प्रदान किया है। हम उनके आभारी हैं। लुधियाना के ही श्री धनराजजी जैन आदि ने पंजाब की जानकारी प्रदान करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप दोनों के प्रयासों से हमें पंजाब, जम्मू आदि की सही जानकारी एवं व्यवस्थाओं के विषय में सूचनाएं उपलब्ध हो सकी। तीर्थयात्रियों के लिए यह जानकारी अत्यन्त महत्व रखती हैं। आशा है पाठकगण परिचायिका के इस नवीन स्वरूप को पसन्द करेंगे और अपने लिए और अधिक उपयोगी पायेंगे। यदि इन जानकारियों के अतिरिक्त अन्य कोई उपयोगी जानकारी, सुझाव आदि पाठकगण देना चाहें, तो निःसंकोच हमें लिखें ताकि आगामी संस्करणों में उन्हें समाहित किया जा सके। गुजरात की भीषण विपदा के कारण गुजरात के अनेक ऐतिहासिक जैन मन्दिर क्षतिग्रस्त हुए हैं। तथा उनके विषय में पुस्तक के प्रकाशन के समय तक सही स्थिति का पता नहीं चल सकने के कारण हम उस विषय में अधिक कुछ लिखने की स्थिति में नहीं हैं। अतः गुजरात की भूकंप से पूर्व की ही जानकारी समाहित की गयी है। वहाँ क्षतिग्रस्त तीर्थों में से कइयों का जीर्णोद्धार कार्य युद्ध स्तर पर प्रारम्भ हो गया है। इसकी नवीनतम जानकारी हम अपने आगामी संस्करण में समाहित करने हेतु प्रयासरत रहेंगे। 2010_03 www.jaine bviiv.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ തിവില വരലലലലല ലലലല ലലലല ലലലല ലലലലല ലലലല ല ലിലല്ലല श्री शंखेश्वर तीर्थ ല്ല - श्री शंरवेश्वर पार्श्वनाथ भगवान ല്ലലല്ലലലലല ലലലല ലലലല്ലലലലലലലലലലലലലലലലലലലല ലലലല ലലലല ലലലല ലലലല രവാദവവിരാമവലിലവയലിലലിലവിലില്ല വില ലലലലില്ലിലിറ്റി വിവരില്ല ല ല ല ല I ! In the sweet memory of Shri Darshan Lal ji Jain (Lahore Wale) adish Fabrics Pvt. Ltd. B-XXIV-385/2-A/1, Street No. 5, Jain Mandir Road, Ludhiana Phone : (0) 0161-665102, 608103; (B) 652536, 301245 Fax : 91-161-665307 - E-mail : adish@satyam.net.in ലല്ലല്ലല്ലല്ലല്ലലലലലലലലലലലലലലലലലല ലലലല ലലലല ലലലല ലലലല ലലലല ല ജft 9it&It ref it j|l1ch a & 8 1 37 ( CIA, IT VICUT) വ 2010_03 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नाकोड़ा तीर्थ मूलनायक श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ भगवान महान चमत्कारी श्री नाकोड़ा भैरव जी CENT THERMOWARE • DOMESTOWARE Approved by mothers everywhere तीर्थ वन्दना! IA सौजन्य : श्री. ज्ञानचंद धनराज जी जैन (पपनाखा वाले) DISTRIBUTORS cello world DOMESTOWAE SANJEEV JAIN AGENCY Gur Mandi, Ludhiana-141 008 _Ph : (O) 0161-722111, 729795, 719105, 720111; (R) 600514, 600506, 665666, 606354 Fax:0161-722666 श्री नाकोडा तीर्थ की जानकारी हेतु देखें पृष्ठ 58 (राजस्थान, जिला बाड़मेर) 2010_03 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहाज मन्दिर, माण्डवला मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान पूज्य आचार्यश्री जिनकान्तिसागर सूरीश्वर जी म. श्री जहाज मन्दिर की जानकारी हेतु देखें पृष्ठ 72 (राजस्थान, जिला जालौर) 2010_03 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कांगड़ा तीर्थ प्राचीन दुर्ग मन्दिर मूलनायक श्री ऋषभदेव जी. तलहटी मन्दिर तीर्थ वन्दना ! DISTRIBUTORS सौजन्य : श्री. ज्ञानचंद धनराज जी जैन (पपनाखा वाले) cello world THERMOWARE • DOMESTOWARE NJEEV JAIN AGENCY Approved by mothers everywhere Gur Mandi, Ludhiana-141 008 Ph : (O) 0161-722111, 729795, 719105, 720111; (R) 600514,600506, 665666, 606354 Fax : 0161-722666 श्री कांगड़ा तीर्थ की जानकारी हेतु देखें पृष्ठ 5 (हिमाचल प्रदेश) 2010_03 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ নিত্যলো Dি[ালা | | তন্ত্যে তা হুতান [ভি 2010_03 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब 1. श्री स्वर्णमन्दिर तीर्थ 2. नंगल 3. नैना देवी 4. अमृतसर 5. जालन्धर 6. लुधियाना 7. पटियाला 8. पठानकोट 9. चण्डीगढ़ हिमाचल प्रदेश 1. श्री काँगड़ा तीर्थ 2. शिमला 3. शिमला कालीबाड़ी (कालीमन्दिर) 4. चैल 5. बैजनाथ 6. पालमपुर 7. चामुण्डा देवी 8. धरमशाला 9. ज्वालामुखी 10. नूरपुर जम्मू काश्मीर 1. श्री जम्मू तीर्थ 2. वैष्णो देवी 2010_03 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब जैन तीर्थ परिचायिका पंजाब, हिमाचल, जम्मू मूलनायक : श्री वासुपूज्य भगवान। मार्गदर्शन : पंजाब के होशियारपुर रेल्वे स्टेशन से सवा दो कि.मी. की दूरी पर शीशमहल बाजार के बीच यह तीर्थ है। हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिंतापर्णी ज्वाला जी. कांगडा. श्री स्वर्णमन्दिर धरमशाला, चामुण्डा देवी, पालमपुर के लिए यहाँ से निरंतर बस सेवा है। परिचय : इस मंदिर के शिखर पर स्वर्ण चादर मढ़ी गयी है इसलिए यह स्वर्णमन्दिर के नाम से जाना होशियारपर जाता है। मूलनायक जी की सुन्दर भव्य प्रतिमा बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। प्रतिमा की सुन्दरता देखते ही बनती है। यहाँ पर स्थित धातु का सुन्दर समवसरण अत्यंत दर्शनीय है। होशियारपुर होशियारपर जालन्धर से सडक मार्ग से 45 कि.मी. दर है। यहाँ ठाकर दयाराम टिटोवाली मन्दिर की सुन्दर चित्रावलियाँ दर्शकों को विमुग्ध कर देती हैं। इनमें श्रीकृष्ण व रासलीला के चित्र भी काफी सुरुचिपूर्ण एवं आकर्षक हैं। होशियारपुर में ठहरने के लिए होटल व धर्मशालाएँ हैं। नंगल-चण्डीगढ़ 2.30 घण्टे का मार्ग है। इस मार्ग पर अनवरत बस सेवा है। नंगल से नंगल 13 कि.मी. दूर सतलज नदी पर हिमाचल प्रदेश का भाखड़ा बाँध है। नंगल से हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा के लिए बसें जाती हैं। भाखड़ा बाँध का ही एक अंश-विशेष है नंगल। दिल्ली, अम्बाला, पटियाला, जालन्धर, पठानकोट, धरमशाला, मनाली से भी बसें नंगल जाती हैं। वापसी के मार्ग में नंगल-चण्डीगढ़ सड़क पर नंगल से 23 कि.मी. दूर आनन्दपुर साहिब के दर्शन किये जा सकते हैं। नंगल-अम्बाला रेलमार्ग पर नैनादेवी के निकट आनन्दपुर साहिब है। चण्डीगढ़ से बस द्वारा भाखड़ा-नंगल आनन्दपुर एक ही दिन में घूमकर वापस जाया जा सकता है। सिख सम्प्रदाय के लिए आनन्दपुर साहिब एक अति पवित्र तीर्थ-स्थल है। दुग्ध धवल, सुन्दर नक्काशी वाला यह गुरुद्वारा दूर से ही दर्शकों को मोहित कर लेता है। चण्डीगढ़ देश के सभी प्रमुख नगरों से अमृतसर रेल एवं सड़क मार्ग से जुडा हुआ है। दिल्ली से 441 कि.मी., जम्मू से 219 कि.मी., पठानकोट से 112 कि.मी., जालन्धर | अमृतसर से विभिन्न से 65 कि.मी., चण्डीगढ़ से 284 कि.मी. दूर तथा जयपुर से यह 707 कि.मी. दूर शहरों की सड़क मार्ग है। रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर बस स्टैण्ड स्थित है। जहाँ से हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, से दूरी पंजाब आदि के लिए निरन्तर बस सेवाएँ हैं। पठानकोट 112 कि.मी. डलहौजी 190 कि.मी. नैना देवी जालन्धर 65 कि.मी. नंगल-अम्बाला रेलमार्ग पर आनन्दपुर के बाद का स्टेशन है किरतपुर साहिब। आनन्दपुर लुधियाना 136 कि.मी. से इसकी दूरी 8 कि.मी. है। किरतपुर से सड़क मार्ग से 14 कि.मी. जाकर बायीं ओर आगरा 646 कि.मी. के मार्ग पर और 14 कि.मी. जाने पर 3000 फीट की ऊँचाई पर एक त्रिकोणीय पहाड़ी जम्मू । 219 कि.मी. के टीले पर नैना देवी का परिदर्शन भी बसों से जाकर किया जा सकता है। देवी की प्रसिद्धि | धरमशाला 250 कि.मी. कामना-पूरण करने वाली आराध्या के रूप में है। बिलासपुर की दूरी 64 कि.मी. है। नैना |चण्डीगढ़ 284 कि.मी. देवी के मन्दिर से आनन्दपुर साहिब और गोविन्द सागर का दृश्य भी काफी मनोरम और दिल्ली 441 कि.मी. सौन्दर्यपरक होता है। ठहरने के लिए व धर्मशाला है। जयपुर 707 कि.मी. 2010_03 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब, हिमाचल, जम्मू । अमृतसर जैन तीर्थ परिचायिका अमृतसर पाक की सीमा पर स्थित है। सिख धर्म व संस्कृति का अन्यतम पीठस्थान अमृतसर ही है। सिख धर्म का सर्वोच्च तीर्थस्थल भी अमृतसर ही है। अमृतसर में प्राचीन जैन मन्दिर दर्शनीय है। स्वर्णमन्दिर : महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839) ने इस भव्य, आस्थापरक, धर्मस्थल-तीन तल्ले के संगमरमरी मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिरों के गुम्बदों पर ताँबे को 400 किलो सोना से मढ़वा दिया। चाँदी के दरवाजे पर विशेष दिनों पर सोने की परतें भी चढ़ाई जाती थीं। तभी से इस मन्दिर का नाम स्वर्णमन्दिर पड़ा। स्वर्ण मन्दिर का विशेष आकर्षण जगमगाते दीप-पुंजों का त्यौहार दीपावली है। पूरा शहर ही प्रकाश रश्मियों से झिलमिला उठता है। स्वर्णमन्दिर से सटे सरोवर के किनारे स्वर्ण-गुम्बद के पास पाँच तल्ले का अकाल तख्त अर्थात् चिरकालीन देव सिंहासन भवन है। रेल स्टेशन से रिक्शा या ताँगा से स्वर्ण मन्दिर पहुंचा जा सकता है। जालियांवाला बाग : भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दीवानों की दीवानगी, उत्सर्ग का साक्षी यह बाग आज भारतीयों के लिए पवित्र तीर्थ स्थल है। चारों ओर मकान और ऊँची दीवारों से घिरा यह बाग है। इसका एकमात्र प्रवेश पथ काफी संकरा है। स्वर्णमन्दिर से जालियांवाला बाग की दूरी मात्र 2 फर्लाग है। दुर्गियाना मन्दिर : रेल स्टेशन व स्वर्णमन्दिर के बीच स्वर्णमन्दिर से 15 मिनट के रास्ते में गली-कूचे से होते हुए 16वीं शताब्दी के हिन्दू मन्दिर दुर्गियाना मन्दिर तक पहुँचा जा सकता है। इसमें श्वेत संगमरमर की माँ दुर्गा की प्रतिमा है। लेक के बीच नये सिरे से मन्दिर बना है, जिसमें हिन्दू देवता लक्ष्मी व नारायण पूज्य, आराध्य देव हैं। गोविन्द दुर्ग : रेल स्टेशन के दक्षिण-पूर्व दुर्गियाना होकर गोविन्दगढ़ दुर्ग तक रास्ता गया है। सिखों का पहला दुर्ग गोविन्दगढ़ प्रहरी के रूप में खड़ा है। रामबाग उद्यान : रेल स्टेशन के उत्तर-पूर्व नये शहर के आभिजात्य क्षेत्र में रामबाग उद्यान है। प्रशस्त, विस्तत उद्यान में कई खेल-कूद के संगठन हैं. इसके मनोरम फलों की शोभा भी न्यारी है। वायुयान : कोलकाता, वाराणसी-लखनऊ, मुम्बई सेन्ट्रल, बरोद कोटा-मथुरा, नई दिल्ली, भूसावल, आगरा से वायुयान की सुविधा है। रेलमार्ग द्वारा भी अमृतसर देश के प्रमुख नगरों से सीधा सम्पर्क में है। शहर से 10 कि.मी. दूर रामतीर्थ है। किवदंती है कि रामायण के नायक श्री रामचन्द्रजी के पुत्र लव व कुश का जन्म इसी रामतीर्थ में हुआ था। 24 कि.मी. दक्षिण पूर्व गुरु अर्जुन देव की वास-स्थली तरण-तारण सिखों का एक और तीर्थ-स्थल है। जालन्धर अमृतसर से 65 कि.मी. दक्षिण-पूर्व में जालन्धर है। जालन्धर से होशियारपुर, फिरोजपुर, अम्बाला, सहारनपुर, लुधियाना, पठानकोट, जम्मू, कटरा, चण्डीगढ़ सहित उत्तर भारत के हर कोने के लिए ट्रेन व बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। जालन्धर प्राचीन शहर है। जालन्धर अतीत काल में हिन्दू राजाओं की राजधानी था। किन्तु, आज जालन्धर की प्रसिद्धि खेलकूद के विभिन्न साज-सामानों के लिए है। यहाँ जामा मस्जिद, नासिर खाँ समाधि व हिन्दू तीर्थ देवी ताल अर्थात सरोवर दर्शनीय है। जालन्धर में ठहरने के लिए होटल भी हैं। जालन्धर से 18 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में 11वीं शताब्दी का शहर कपूरथला है। ___JalEducation International 2010_03 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका 1480 में लोदी वंश के दो शाहजादों ने इस शहर की स्थापना की थी। इसके गुरुद्वारों से लुधियाना गुरु गोविन्द सिंह की विभिन्न स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। वैसे, लुधियाना का एक और आकर्षण है यहाँ का रेशम, पशम और सूती वस्त्रों की पोशाक । लुधियाना में ही हीरो साइकिल का कारखाना है। पंजाब की हरित क्रांति में लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय का योगदान अनुपम है। पुराने दुर्ग में सरकारी होजियरी इन्स्टीट्यूट के अतिरिक्त पीर-ए-दस्तगीर का मन्दिर है । जालन्धर से 57 कि.मी. और अमृतसर से 136 कि.मी. दूर है। रेल व बसों से जुड़ा हुआ है लुधियाना । लुधियाना के सिविल लाइन क्षेत्र में रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर श्री आदिनाथ प्रभु का सुन्दर मनोरम जिनालय स्थापित है। इस मन्दिर की स्थापना सन् 1972 में की गयी थी । इस मन्दिर में मूलनायक प्रभु श्री आदिनाथ प्रभु की चित्ताकर्षक प्रतिमा विराजमान है। प्रभु प्रतिमा के दाईं ओर श्री शान्तिनाथ प्रभु एवं बाईं ओर चंदाप्रभु एवं श्री संभवनाथ जी की प्रतिमाएँ विराजित हैं । यहाँ उपाश्रय है। रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. दूरी पर किचलू नगर क्षेत्र में श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन मन्दिर की स्थापना सन् 1990 में हुई है। इसमें प्रभु पार्श्वनाथ की 100 वर्ष प्राचीन प्रतिमा स्थापित की गयी है। रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर वल्लभ नगर क्षेत्र में प्रभु विमलनाथ जी का विमलनाथ जैन मन्दिर स्थित है। यहाँ उपाश्रय एवं ठहरने की व्यवस्था है । रेल्वे स्टेशन से 3 कि.मी. दूरी पर सुन्दर नगर क्षेत्र में सन् 1989 में श्री शान्तिनाथ जैन मन्दिर में प्रभु शान्तिनाथ जी का प्रतिमा स्थापित की गयी । मन्दिर का निर्माण वर्ष 1985 में किया गया। यहाँ उपाश्रय एवं ठहरने की व्यवस्था है। रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर वि. संवत् 1968 में दाल बाजार में कलिकुंड पार्श्वनाथ जैन मन्दिर का निर्माण किया गया था। इसमें प्रभु पार्श्वनाथ जी मूलनायक के रूप में विराजित हैं । रेल्वे स्टेशन से 1.5 कि.मी. दूरी पर चौड़ा बाजार में लुधियाना का 140 वर्ष प्राचीन मन्दिर श्री सुपार्श्वनाथ जैन मन्दिर स्थापित है। प्रभु श्री सुपार्श्वनाथ की अत्यन्त आकर्षक प्रतिमा यहाँ मूलनायक जी के रूप में विराजमान है। रेल्वे स्टेशन से 7 कि.मी. दूरी पर श्री विजय इन्द्र नगर में श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैन मन्दिर है जिसमें श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा है । यहाँ उपाश्रय है। रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर सिविल लाइन बसंत रोड पर श्री विजय वल्लभ सूरी जी म. सा. का समाधि मन्दिर है जो कि देखने योग्य है। पंजाब, हिमाचल, जम्मू अतीत में पटियाला सिख राज्य की राजधानी रहा है। पर्यटकों के लिए इसके विशाल दुर्ग, भव्य पटियाला व आकर्षक राजप्रासाद दर्शनीय हैं। पटियाला का मोतीबाग प्रासाद भी दर्शकों के लिए अति आकर्षक है। पठानकोट से हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व पंजाब के विभिन्न शहरों में बसें जाती हैं। जो यात्री पठानकोट डलहौजी (3.30 घण्टे), चम्बा (4 घण्टे), धरमशाला (3 घण्टे ), कांगड़ा, ज्वालाजी जाना चाहते हैं, उनके लिए पठानकोट से बस यात्रा ही सुविधाजनक है। पठानकोट का अमृतसर व दिल्ली से भी बस व रेल से सीधा सम्पर्क है। जम्मू की हर ट्रेन पठानकोट होकर जाती है। 2010_03 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब, हिमाचल, जम्मू चण्डीगढ़ Jain AEducation International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका पठानकोट- जालन्धर सड़क मार्ग पर 5 कि.मी. की दूरी पर दामताल मन्दिर भी दर्शकों को विमुग्ध कर देता है । मन्दिर की दीवारों पर रामायण व महाभारतकालीन आख्यान उत्कीर्ण हैं। ठीक इसी प्रकार 13 कि.मी. उत्तर में सुन्दर नैसर्गिक सुषमा के बीच 16वीं शताब्दी की दुर्गनगरी साहापुर काण्डी का परिभ्रमण भी किया जा सकता है। दिल्ली से 248 कि.मी., अम्बाला से 47 कि.मी. दूर हरियाणा एवं पंजाब की राजधानी केन्द्रशासित चण्डीगढ़ स्थित है । चण्डीगढ़ से आगरा, दिल्ली, जयपुर, देहरादून, हरिद्वार, नंगल सहित उत्तर व पश्चिम भारत की विभिन्न दिशाओं के लिए अनवरत बस सेवा है। रेल मार्ग द्वारा चण्डीगढ़, दिल्ली, कोलकाता, कालका आदि से सम्पर्क में है। दिल्ली से शताब्दी एक्सप्रेस द्वारा चण्डीगढ़ की आरामदायक यात्रा की जा सकती है। चंडीगढ़ से शिमला 117 कि.मी. दूरी पर है। कुल्लू-शिमला से 220 कि.मी. दूरी पर है। मनाली-कुल्लू से 40 कि.मी. दूर है। धर्मशाला-मनाली से 244 कि.मी. तथा पठानकोट से 90 कि.मी. दूर है। धर्मशाला से चामुण्डा देवी 13 कि.मी. है। धर्मशाला से ज्वाला जी कांगड़ा होकर 54 कि.मी. पड़ता है। पठानकोट से 80 कि.मी. दूर डलहौजी है । डलहौजी पहाड़ी शहर है। पठानकोट से 122 कि.मी. दूर चम्बा है। चम्बा - डलहौजी बस सेवा भी है। चंडीगढ़ से 103 कि.मी. दूर अत्यन्त प्रसिद्ध बाँध भाखड़ा नांगल बाँध है। इसको छोड़ अन्य सभी पहाड़ी क्षेत्र है वहाँ सीजन के अनुसार होटल की दरें कम ज्यादा होती रहती हैं। दर्शनीय स्थल : आधुनिकता का परिवेश ओढ़े बसा शहर चण्डीगढ़ अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। अत्यंत सुनियोजित तरीके से सैक्टरों में बंटा यह शहर कलात्मकता से सजाकर इस जादूनगरी की रचना की गयी है । सचिवालय के निकट सैक्टर 1 में नेकचंद द्वारा तैयार रॉक गार्डेन अपनी विचित्रता, अभिनवता व सौन्दर्य के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। इसके अतिरिक्त शुष्क झील, चण्डीदेवी का मन्दिर एवं एशिया का विशालतम बाग जाकिर गुलाब बाग भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए चण्डीगढ़ में अनेकों होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | पंजाब, हिमाचल, जम्मू मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ जटा युक्त प्रतिमा। जिला कांगड़ा मार्गदर्शन : यह तीर्थ रावि व सतलज नदी के संगम-स्थान पर कांगड़ा गाँव के बाहर सुरम्य . पहाडी पर प्राचीन दर्ग में स्थित है। बस स्टैण्ड से तीर्थ-स्थान की दूरी लगभग 4 कि.मी. श्रा कागड़ा ताथ है। मण्डी से उत्तर-पूर्व में पठानकोट से थोड़ी दूर पर है कांगड़ा। नैरो गेज रेल पठानकोट से कांगड़ा होकर 164 कि.मी. दूर योगीन्दर नगर जाती है। कांगड़ा से-धरमशाला 18, पेढ़ी : पठानकोट 86, ज्वालामुखी 36, योगीन्दरनगर 78, मण्डी 134 कि.मी. सहित उत्तर श्री श्वेताम्बर जैन कांगड़ा भारत के विभिन्न स्थानों के लिए बस सम्पर्क भी है। उत्तर भारत के विभिन्न नगरों से यह तीर्थ-यात्रा संघ पेढी, बस मार्ग से संपर्क में है। जैन धर्मशाला, कांगड़ा परिचय : यह तीर्थ क्षेत्र बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान के समय का है। मुनि श्री किले के सम्मुख जिनविजयजी ने आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वरजी से जानकारी पाकर इस तीर्थ की खोज डाकघर कांगड़ा, की। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक मेला लगता है। यहाँ से हिमालय का जिला काँगड़ा प्राकृतिक दृश्य देखते ही बनता है। यहाँ के खण्डित मन्दिरों में प्राचीन कला के नमने नजर (हिमाचल प्रदेश) आते हैं। मूलनायक प्रतिमा की कला विशिष्ट शोभायमान है। यह मन्दिर पुरातत्त्व विभाग के अधीन है। कांगडा का ब्रजेश्वरी देवी का मन्दिर दर्शनीय है। कांगड़ा से 5 कि.मी. दूर मसरूर में पहाड़ को काटकर बनाया गया 15 गुफा मन्दिर भी अत्यंत दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए किले के समीप ही धर्मशाला है। भोजनशाला की व्यवस्था है। कांगड़ा में अनेक होटल भी हैं। दर्शनीय स्थल : उत्तर भारत में हिमालय अपनी नैसर्गिक सौन्दर्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ अनेक पर्यटकों का आवागमन रहता है। देशवासी भी गर्मियों में गर्मी से राहत की खोज में यहाँ छुट्टियों में आते हैं। सर्दियों का अनोखे आनन्द की चाहत रखने वाले उत्साही पर्यटक नवम्बर से जनवरी तक यहाँ आते हैं। शिमला-मनाली आदि स्थानों पर इन दिनों शून्य से नीचे तक तापमान चला जाता है। चारों ओर बर्फीली चादर सी बिछ जाती है, जिसका अवलोकन का एक अलग ही आनन्द होता है। कांगड़ा में कई मन्दिर भी हैं। उनमें से ब्रजेश्वरी का मन्दिर विशेषरूप से उल्लेखनीय है। यह मन्दिर पहाड़ी शिखर पर है-चतुष्कोणीय मन्दिर के ऊपर गुम्बद है। कांगड़ा की देखने योग्य चीजों में कांगड़ा राजाओं के प्राचीन किला का ध्वंसावशेष विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जहाँगीर ने पत्थर की गोलाकृति देवी ब्रजेश्वरी को चाँदी से मढ़वा दिया था। पुष्पचन्दन-वसन-भूषण से मण्डित देवी के दर्शन संध्या व मंगल को आरती के बाद स्नान अभिषेक के समय किए जा सकते हैं। हरी चार कांगड़ा का एक और मुख्य आकर्षण है। इसी बीच बाणगंगा नदी का प्रवाह मन में रोमांच की तंरगे उठाता है। कांगड़ा से 5 कि.मी. दक्षिण में मसरूर की प्रसिद्धि इसके पहाड़ काटकर बनाए गये इन्दो-आर्य शैली के 15 गुफा मन्दिरों के लिए है। 22 1 3 मी. की ऊँचाई पर स्थित सुन्दर पहाड़ी शहर शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला है। शिमला से बस जम्मू, हरिद्वार, देहरादून, चम्बा, डलहोजी, पठानकोट, धरमशाला, कुल्ल मनाली, केलंग, टापरी सहित राज्य एवं पड़ोसी राज्यों के विभिन्न दिशाओं की ओर उपलब्ध हो जाती है। शहर में कार्ट रोड बस स्टैण्ड से सिटी बसें भी चलती हैं। शिमला का निकटतम हवाई अड्डा शहर से 17 कि.मी. दूर जुब्बरहाटी में है। हिमाचल की यात्रा में चण्डीगढ़ से बस से जाने में सुविधा रहती है। बस जाती है चण्डीगढ़ से-शिमला, मनाली, धरमशाला सहित हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों की ओर। 2010_03 www.jainelprary.org Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब, हिमाचल, जम्मू शिमला कालीबाड़ी (कालीमन्दिर) जैन तीर्थ परिचायिका मन्दिर में श्यामला देवी की पूजा होती है। कालीबाड़ी बस स्टैण्ड के ऊपरी सिरे पर माल से सटा हुआ है। शिमला के सर्वोच्च शिखर जाकू हिल्स शिमला शहर की तलहटी में शिमला कालका रेलवे लाइन में शिमला से पहले का स्टेशन का समर हिल है। दरी 5 कि.मी. एवं ऊँचाई 1983 मी. है। 2 कि.मी. आगे जाकर पर्यटक 1586 मी. की ऊँचाई पर 67 मी. की ऊँचाई से गिरनेवाले चाँदवीक जलप्रपात का दर्शन भी कर सकते हैं। हालाँकि जलप्रपात का सौन्दर्य बहुत ही अनूठा है परन्तु यहाँ तक पहुँचने के लिए कठिन पहाड़ी चढ़ाई से गुजरना पड़ता है। शहर से 5 कि.मी. पश्चिम में 2145 मी. की ऊँचाई पर बैलोगंज से 15 मिनट के पहाड़ी रास्ते में वनभोज का बहुत ही मनोरम स्थान है, नाम है प्रास्पेक्ट हिल। नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए वह सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। पहाड़ी शिखर पर कामनादेवी का एक छोटा सा मन्दिर है। शहर में 9.6 कि.मी. दूर रेल या गाड़ी से 1851 मी. की ऊँचाई पर स्थित तारादेवी के मन्दिर पहाड़ी शिखर पर शिवमन्दिर भी है। शहर से 13 कि.मी. दूर कुफरी के रास्ते में 2593 मी. की ऊँचाई पर पाइन वृक्षों से आच्छादित वाइल्ड फ्लावर हॉल है। Wild Flower से 3 और शहर से 16 कि.मी. दूर 2633 मी. की ऊँचाई पर कुफरी है। यह स्थान नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है। दिसम्बर से मार्च महीने में यहाँ स्की का खेल जोरों पर चलता है। और भी 3 कि.मी. आगे बढ़ने पर 2279 मी. की ऊँचाई पर क्रेकानानोर, ओक और पाइन के सघन वन में अम्यूजमेण्ट पार्क मनोरंजन की अभिनव उपलब्धियों से समृद्ध है। कुफरी से 6 और शिमला से 22 कि.मी. दूर 2 510 मी. की ऊँचाई पर है फागु भारत के समतली प्रदेशों के साथ कालका एवं अम्बाला होकर शिमला का रेल सम्पर्क बना है। शिमला पहाड़ एवं उत्तर भारत के विभिन्न शहरों के बीच बस सर्विस भी हैं। चैल (Chail) शिमला के कुफरी होकर 45 कि.मी. दूर 2250 मी. की ऊँचाई पर चैल है। शिमला कालका रास्ते के कन्दाहार होकर रास्ते की दूरी 60 कि.मी. और कालका से 84 कि.मी. है। शिमला और कालका से चैल के लिए बस जाती है। बैजनाथ योगीन्दर नगर से 22 और पालमपुर से 16 कि.मी. पहले ही कांगड़ा उपत्यका की अन्तिम सीमा पर 1360 मी. की ऊँचाई पर बसा है छोटा सा शहर बैजनाथ 1804 ई. में निर्मित मन्दिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अन्यतम बैद्यनाथ शिव के दर्शन करते हुए चलिए। एक ही अहाते में और भी 16 मन्दिर हैं। बस स्टैण्ड के पास ही नक्काशीदार मन्दिर उड़ीसा के मन्दिरों के ढ़ग का है। देवमूर्ति भी सुन्दर है। मन्दिर के प्रवेशपथ में गंगा, यमुना सहित विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। 56 कि.मी. दूर धरमशाला ठरहने के लिए-धरमशाला, पार्वती गेस्ट हाउस एवं टीले के आकार का PWD, IH है बैजनाथ में। IH से धौलाधार भी सुन्दर दृश्यमान है। पालमपुर बैजनाथ दर्शन के बाद पालमपुर घूमफिर कर कांगड़ा/पठानकोट या 40 कि.मी. दूर धरमशाला, बस से पहुँचिए। इस पथ पर हर घडी बस सेवा उपलब्ध है। ट्रेन भी पालमपुर होकर योगीन्दरनगर से आकर 114 कि.मी. दूर पठानकोट जाती है। Jain Edupation International 2010_03 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका पंजाब, हिमाचल, जम्मू पालमपुर-धरमशाला के रास्ते में पालमपुर से 25 और धरमशाला से 13 कि.मी. जाने पर चामण्डा देवी रास्ता और भी 1 कि.मी. दूर चामुण्डा देवी के मन्दिर तक गया है। तीन तरफ से धौलाधार से घिरा पहाड़ी गाँव-मन्दिर के लिए इसकी प्रसिद्ध है। देवी बहुत ही जाग्रता मानी जाती हैं। मन्दिर के पीछे नन्दीकेश्वर शिव की गुफा है। धरमशाला ओक और पाइन वृक्षों से आच्छादित कांगड़ा वैली का एक शांत-स्निग्ध सुन्दर धरमशाला पहाड़ी शहर है। शहर की अन्तिम सीमा पर देवी महाकाली का मन्दिर भी है। मनाली से धरमशाला 244 कि.मी. है। दिल्ली 495, चण्डीगढ़ 248, अम्बाला 285, डलहौजी 162, पठानकोट 92, अमृतसर 192, नांगल 145, मण्डी 147, योगीन्दर नगर 761 धरमशाला से ज्वालामुखी की दूरी 54 कि.मी. है, कांगड़ा की दूरी 36 कि.मी. है। पठानकोट ज्वालामखी 12 3, मण्डी 171, मनाली 281, शिमला 321 कि.मी. सहित पालमपुर, योगीन्दर नगर सहित उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों से ज्वालामुखी आती है। ज्वालाजी 51 पीठों में एक पीठ है। सती की जिह्वा कालीधर पहाड पर गिरी थी, और उसी स्थल पर राजा भमिचन्द्र ने मन्दिर बनवाया था। आज भी वह जिह्वा मन्दिर के बीच छोटे से कण्ड में अनिर्वाण नीलाभ शिखा के रूप में जल रही है। मन्दिर में और भी कई शिखाएँ हैं। ज्वालामुखी में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। शिखा ही देवी के अस्तित्व के रूप में पूजित है। पठानकोट से 23 कि.मी. दूर नूरपुर होकर डलहौजी का रास्ता भी गया है। यात्रा के दौरान नूरपुर बस से उतर कर नूरपुर घूमकर दूसरी बस पकड़कर चला जा सकता है। नूरपुर में प्राचीन किला और बैजानाथ मन्दिर है। नूरपुर के शॉल की भी काफी प्रसिद्धि है। Jan Education international-2003 For Private & Personal use only www.jainenpr .org Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंजाब, हिमाचल, जम्मू जम्मू-कश्मीर श्री जम्मू तीर्थ वैष्णो देवी Jain Educa on International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री महावीर भगवान । मार्गदर्शन : दिल्ली से जम्मू के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। काश्मीर जाने वाले यात्रियों को जम्मू होकर ही आगे जाना पड़ता है। सभी प्रकार की साधन सवारी यहाँ उपलब्ध हैं। देश के सभी प्रमुख शहरों से यहाँ रेल सेवा उपलब्ध है। 1 परिचय : राजा सम्प्रति के समय की मूलनायक जी की यह प्रतिमा है। यह प्रतिमा खंभात से लाकर यहाँ प्रतिष्ठित की गयी है। यहाँ मूलनायक जी के अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथ भगवान, शान्तिनाथ भगवान एवं श्री ऋषभदेव भगवान की सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। शहर में स्थित यह जिनालय सुन्दर एवं दर्शनीय है । ठहरने की व्यवस्था : यहाँ यात्रियों हेतु सुन्दर एवं उत्तम व्यवस्था है । जम्मू शहर मन्दिरों का शहर कहा जाता है। यहाँ रघुनाथ मन्दिर अत्यंत दर्शनीय है। हर ओर सुन्दर कलात्मक मन्दिरों को देखा जा सकता है। जम्मू में शहर से 4 कि.मी. दूर तावी नदी के निकट शैलशिखर पर बाहू दुर्ग भी दर्शनीय है। रामनगर दुर्ग में दीवारों पर चित्रकारी अत्यंत लुभावनी है। दिल्ली, पुणे, कोलकाता, मुम्बई सभी स्थानों से यहाँ रेल सेवा तथा वायु मार्ग सेवा उपलब्ध है। जम्मू में अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। स्टेशन पर ही वैष्णो देवी के लिए टैक्सी मिल जाती है। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला श्रीनगर कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित है। जम्मू के निकट कटरा-वैष्णोदेवी हिन्दुओं का पवित्रतम तीर्थ है। जम्मू से 45 कि.मी. दूरी पर कटरा तक बस, कार, टैक्सी सभी वाहन जाते हैं। कटरा में ठहरने हेतु अनेक होटल हैं। कटरा से गंगा तट से ऊपर 12 कि.मी. की पैदल पहाड़ की चढ़ाई कर भवन पहुँचकर माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये जा सकते हैं। दर्शन हेतु नवरात्र में तो कई-कई दिन इंतजार करना पड़ता है। नीचे कटरा से ही ऊपर के लिए रूम, कम्बल आदि बुक किये जाते हैं। चढ़ाई के आधे रास्ते में अर्थात् 6 कि.मी. पर अर्धकुमारी के दर्शन किये जाते हैं। वहाँ से हाथी मत्था तक कठिन चढ़ाई है। 3 कि.मी. आगे सांझी छत आने पर आगे ढलान का रास्ता है। भवन से 2 कि.मी. ऊपर भैरव का मंदिर है। भवन से दर्शन कर लौटते समय भैरव मंदिर होते हुए दर्शनार्थी वापिस आते हैं। नीचे कटरा में घोड़े, डोली आदि साधन उपलब्ध हैं। पैदल जाने वाले यात्रियों हेतु सामान आदि के लिए पिट्ठू मिलते हैं जो छोटे बच्चों को भी अपने कंधों पर ले जाते हैं। 12 कि.मी. की चढ़ाई मार्ग अत्यन्त साफ सुथरा है व जगह-जगह स्टॉल आदि उपलब्ध हैं। चारों ओर पहाड़ी का मनोरम वातावरण है। श्रीनगर, अमरनाथ, सोनमर्ग आदि दर्शनीय स्थलों पर आतंकवाद के कारण अत्यधिक सुरक्षा व्यवस्थाओं के चलते पर्यटकों को थोड़ी परेशानी उठानी पड़ सकती है। रास्ते में जगह-जगह चैंकिंग से गुजरना पड़ता है। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *.गंगांकी उनकाशी केदारनाथ बद्रीनाथ हिमाचल प्रदेश देहरादून चामाली कगिकंग साडी हरिदार अल्मोडा उत्तर प्रदेश सड़क मानचित्र * जैन तीर्थ क्षेत्र प्रमुख हिन्दु तीर्थ - दर्शनीय स्थल Map not to scale Distances in Kilometers मजफ्फरनगर नैनीताल 05 स्तिनापुर 36" 12 109 मगदावाद 35 दिल्ली गाजियाबाद अहिच्छत्र तीर्थ बरेली 1351 ) शाहजहापुर 34 जलालाबादा कायमगजे दावन . सीतापर बहराइच श्रावस्ती 10 कामगंज ANNO 40 हरदोई / फनेहगढ़ । विमोचन 80 बलरामपुर फिरोजाबाद शिकोहाबाद बाराबंकी 55 वाह - ..... 278 20 अयोध्या बस्ता_66 गोरखपुर S गजस्थानचौलपुर रवपुरी फैजाबाद -10 उन्नाव भोगनीपुर .66.... अकवरपुर 145 शाहगंज मौनथमंजन मध्य प्रदेश V 39 घाटमपुर 3 0 89 134 जौनपुर बामा दागनगर इलाहबाद 160 मामी 3" जमिपुरी चन्द्रपुरी धाराणसी .. कौशाम्बी MON नानवस्ट गाजी CAN R मिर्जापुर वगरAN बालबेहट वा विहार दिल्ली को उतार दिया 2010_03 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिल्ली 1. दिल्ली 2. महरौली दादावाड़ी जिला आगरा जिला इलाहाबाद जिला बरेली जिला फर्रुखाबाद जिला फैजाबाद जिला गोन्डा जिला हरिद्वार जिला झाँसी जिला कौशाम्बी उत्तर प्रदेश 1. श्री शौरीपुर तीर्थ 2. श्री आगरा तीर्थ 3. आगरा के अन्य तीर्थ 1. पुरिमताल तीर्थ 1. आहिच्छत्र तीर्थ 1. श्री कम्पिलाजी तीर्थ 1. श्री रत्नपुरी तीर्थ 2. श्री आयोध्या तीर्थ 1. श्री श्रावस्ती तीर्थ 1. हरिद्वार 1. श्री देवगढ़ तीर्थ 1. श्री कौशाम्बी तीर्थ 2. दारानगर तीर्थ 3. प्रभासगिरि 1. श्री मथुरा तीर्थ 1. हस्तिनापुर तीर्थ 1. श्री चन्द्रपुरी तीर्थ 2. श्री सिंहपुरी तीर्थ 3. श्री भदैनी तीर्थ 4. श्री भेलूपुर तीर्थ जिला मथुरा जिला मेरठ जिला वाराणसी WN NN - 2010_03 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिल्ली दिल्ली जैन तीर्थ परिचायिका भारत की राजधानी दिल्ली ऐतिहासिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल से ही दिल्ली का विशेष महत्त्व रहा है। मुगल शासकों की केन्द्र नगरी रही दिल्ली आज पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। देश-विदेश के पर्यटक यहाँ की मुगल कला शैली को निहारकर भाव विभोर हो जाते हैं। नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली एवं हजरत निजामुद्दीन रेल्वे स्टेशनों से सम्पूर्ण देश हेतु रेल-सेवा उपलब्ध है। पालम हवाई अड्डे से देश-विदेश के सभी प्रमुख स्थलों हेतु वायुयान-सेवा उपलब्ध है। अंतर्राज्यीय बस अड्डे से हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से बस मार्ग द्वारा सम्पर्क में है। राजधानी होने के कारण सम्पूर्ण भारत से व्यापारी, पर्यटक आदि के आवागमन को ध्यान में रखते हुए यहाँ हर स्तर के होटल, धर्मशालाओं, गेस्ट हाउस आदि की सम्पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कण्डकटेड टूर द्वारा दिल्ली का भ्रमण किया जा सकता है। ITDC, E Block कनाट प्लेस, नई दिल्ली से तथा भारत सरकार टूरिस्ट ऑफिस 88 जनपथ, नई दिल्ली से सम्पर्क कर इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। नई दिल्ली स्टेशन पर भी टूरिस्ट विभाग के ऑफिस से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। शहर में बस, टैक्सी, ऑटो आदि सभी साधन सुगमता से उपलब्ध हैं। दिल्ली में कुतुबमीनार से लगभग 3 कि.मी. आगे महरौली गाँव में मणिधारी दादागुरु श्री महरौली दादावाड़ी जिनचन्द्र सूरि जी की भव्य सुन्दर दादावाड़ी स्थित है। यहाँ दादावाड़ी में अत्यंत सुन्दर छोटे-छोटे मन्दिरों का कृत्रिम पर्वत श्रृंखला पर निर्माण किया गया है। यहाँ दर्शनार्थ पेढ़ी : यात्रियों का आवागमन होता रहता है। श्री मणिधारी जिनचन्द्र सूरी शहर की भागदौड़ से दूर यहाँ का शान्त सुरम्य वातावरण मन को असीम शान्ति प्रदान जैन मन्दिर दादावाड़ी, करता है। यहाँ ठहरने हेतु सुन्दर व्यवस्था है। एक कैन्टीन भी यहाँ है। भोजन हेतु पूर्व महरौली, नई दिल्ली-110030 सूचना देनी पड़ती है। फोन : 696140. महरौली में ही प्रसिद्ध कात्यायनी शक्तिपीठ है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों 6857541 लोग आते हैं। पूनम के दिन मन्दिर की मूल अधिष्टायक देवी के दर्शन करने बहुत भीड़ उमड़ती है। इसी के पास श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ का अध्यात्म साधना केन्द्र बना है। जहाँ प्रेक्षाध्यान सम्बन्धी प्रशिक्षण दिया जाता है। साधकों के आवास आदि की सुन्दर सुविधा युक्त व्यवस्था है। दर्शनीय स्थल : (1) कुतुबमीनार-दिल्ली शहर से 14 कि.मी. दक्षिण भाग में स्थित मुगलशासक कुतुबुद्दीन द्वारा प्रारम्भ एवं इल्तुनमिश द्वारा पूर्ण की गयी प्रसिद्ध मीनार कुतुबमीनार स्थित है। पास में ही लौह-मीनार भी दर्शनीय है। (2) लक्ष्मीनारायण मन्दिर-कनाट प्लेस के निकट ही राजा बलदेव बिड़ला द्वारा स्थापित लक्ष्मीनारायण मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। (3) जयपुर के महाराजा द्वारा निर्मित जंतर मंतर कनाट प्लेस के निकट ही है। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन की भव्यता देखते ही बनती है। शीतकाल में राष्ट्रपति भवन के उद्यान के गुलाबों की सुन्दर मनोहर प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। जनवरी-फरवरी में यहाँ पर्यटक अबाध रूप से आकर इस छटा को निहार सकते हैं। 2010_03 www.janglibrary.org Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिल्ली जैन तीर्थ परिचायिका (4) राजघाट-जनपथ से 4 कि.मी. दूर स्थित महात्मा गाँधी का समाधिस्थल राजघाट स्थित है। राजघाट के निकट ही स्थित गाँधी स्मारक संग्रहालय भी अत्यन्त दर्शनीय है। विजयघाट पर भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की समाधि बनी हुई है। (5) लाल किला-यमुना तट पर स्थित दिल्ली का लाल किला अत्यन्त भव्य बना है। सायं को यहाँ ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम द्वारा मुगलकालीन इतिहास को दर्शाया जाता है। यह कार्यक्रम अत्यन्त आकर्षक है। बच्चों के मनोरंजन हेतु प्रगति मैदान के पास ही अप्पूघर है। जहाँ विभिन्न प्रकार के झूलों एवं रोमांचक खेल-वाहनों के माध्यम से बच्चों और बड़ों का भी भरपूर मनोरंजन होता है। दिल्ली का चिड़ियाघर भी बच्चों के आकर्षण का दूसरा बड़ा केन्द्र है। नेहरू प्लेनेटोरियम को देख अंतरिक्ष के गृहों का आनन्द लिया जा सकता है। पुरानी दिल्ली में लाल किले के सामने लाल जैन मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : दिल्ली, भारत की राजधानी होने से होटल, धर्मशाला आदि बहुत हैं। श्वेताम्बर जैन समाज के भी अनेक स्थान बहुत सुन्दर बने हुए हैं। जैसे चाँदनी चौक में मालीवाड़ा में जैन धर्मशालाएँ हैं। कनाट प्लेस के पास गोल मार्केट में जैन भवन है। अणुव्रत विहार (दीनदयाल उपाध्याय मार्ग) भी विशाल स्थान है। साउथ एक्सटेंशन पार्ट 2 मस्जिद मोठ के पास श्री जिन कुशलसूरि दादावाड़ी बनी है। जहाँ पर यात्रियों को ठहरने की अच्छी व्यवस्था है। जी. टी. रोड करनाल के 21 कि.मी. पर विजय वल्लभ स्मारक है जो अति भव्य व विशाल है। जहाँ भगवान आदिनाथ का भव्य मन्दिर तथा माता पद्मावती का दर्शनीय मन्दिर है। 10 lucation International 2010_03 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका उत्तर प्रदेश मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। जिला आगरा मार्गदर्शन : यह तीर्थ आगरा से 71 कि.मी. शौरीपुर में आगरा-बाह मार्ग पर स्थित है। आगरा से फतेहाबाद 35 कि.मी. वहाँ से फरेरा मोड़ 30 कि.मी. तथा फरेरा मोड़ से बांयी ओर 6 कि.मी. जाने पर शौरीपुर तीर्थ आता है। शौरीपुर से 2 कि.मी. पूर्व बटेश्वर तीर्थ है। अन्य दूसरा मार्ग आगरा, फिरोजाबाद-शिकोहाबाद होते हुए बटेश्वर जाता है। इस मार्ग से यह दूरी पढ़ा, कुल 100 कि.मी. की पड़ती है। शिकोहाबाद बटेश्वर 27 कि.मी. की दरी है। श्रा शारापुर जन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी परिचय : यमना के तट पर स्थित यह तीर्थ 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की जन्म भूमि है। इटामिल कम्पाउन्ड वर्तमान चौबीसी के बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान के च्यवन व जन्म कल्याणक जीवनी मण्डी, आगरा इस पवित्र पावन भूमि में होने के कारण यहाँ की विशेष महत्ता है। इसका विशेष उल्लेख फोन : 263830, जैन श्वेताम्बरीय आगमों में एवं श्री हेमाचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष में मिलता 261727 है। कहा जाता है कि यहाँ श्वेताम्बर समाज के सात मन्दिर थे जो काल के प्रभाव से नष्ट 2. श्री शौरीपुर - बटेश्वर हो गये। मूलनायक भगवान श्री नेमिनाथजी की श्यामवर्ण प्रतिमा जन्म कल्याणक मंदिर में दिगम्बर जैन सिद्ध विराजित है, जो बहुत ही चमत्कारिक और मनोहर है। च्यवन कल्याणक मन्दिर, दादावाड़ी, क्षेत्र कमेटी, शौरीपुर श्री नथमल जी गोलेछा के चबूतरे पर दादा कुशलसूरि जी की चरण पादुका एवं धर्मशाला डाकघर बटेश्वर, बनी हुई है। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शुद्ध है। यहाँ प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालुजन यात्रार्थ आते जिला आगरा (उ. प्र.) हैं। आदि मन्दिर (बसमठ) तथा शंखध्वज जिनालय में विराजमान नेमिनाथ भगवान, ऋषभनाथ भगवान, विमलनाथ भगवान, चन्द्रप्रभु भगवान के जिनबिम्ब चित्त को भाव भक्ति से पूर्ण कर देते हैं। क्षेत्र पर उत्खनन पर प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त होती रही हैं। बटेश्वर में एक दिगम्बर मन्दिर है। जहाँ मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान हैं। बटेश्वर मन्दिर का वास्तुशिल्प प्राचीन वास्तुविज्ञान का उत्कृष्ट नमूना है। जिसकी दो मंजिलें यमना तट के नीचे व दो मन्जिल ऊपर हैं। यहाँ अजितनाथ भगवान की कृष्ण पाषाण निर्मित पद्मासनस्थ प्रतिमा विराजमान है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिरों के निकट श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। पूर्व सूचना देने पर भोजन व्यवस्था हो जाती है। तीर्थ विकास हेतु यहाँ आधुनिक धर्मशाला, भोजनशाला अति शीघ्र बनाने का प्रयास हो रहा है। मूलनायक : चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। श्री आगरा तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ यमुना नदी के तट पर स्थित आगरा शहर के रोशन मोहल्ले में घनी आबादी क्षेत्र में स्थित है। आगरा फोर्ट स्टेशन से मन्दिर 1 कि.मी. दूर है। आगरा फोर्ट स्टेशन पार्किंग पेढ़ी : पर वाहन खड़े किये जाते हैं। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान श्वेताम्बर जैन परिचय : सम्राट अकबर के समय आचार्य श्री हीरविजय सूरीश्वरजी का विक्रम सं. 1639 में यहाँ पदार्पण हुआ। आचार्य श्री के सुहस्ते उस समय विशिष्ट पाषाण की श्री चिन्तामणि मन्दिर पेढ़ी आचार्य विजयसूरीश्वरजी पार्श्वनाथ जी मूर्ति प्रतिष्ठा हुई। वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ 10 श्वेताम्बर व कई दिगम्बर मन्दिर भी हैं। शहर के बाहर आगरा-फतेहपुर सीकरी मार्ग पर शाहगंज क्षेत्र में एक विशाल का उपाश्रय, रोशन मोहल्ला, आगरा (उ. प्र.) दादावाड़ी है, जिसे श्री कुशलसूरि दादावाड़ी कहते हैं। विशिष्ठ पाषाण में निर्मित श्री चिन्तामणि पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अति ही सुन्दर व प्रभावशाली है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए श्वेताम्बर धर्मशाला है। शहर में अन्य अनेकों अच्छी सुविधायुक्त धर्मशालाएँ भी उपलब्ध हैं जिनमें ठहरा जा सकता है। 2010_03 www.jainel prary.org Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका ताज रोड पर शहर के प्रमुख होटल हैं। जो कैन्ट रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. की परिधि में आते हैं। राजामण्डी स्टेशन पर उतरते ही बाहर ही यात्री निवास धर्मशाला, प्रतापचन्द जैन धर्मशाला, टूरिस्ट बंगला, स्वामी सोफेटिल होटल आदि हैं। शहर के मध्य स्थित शुद्ध शाकाहारी होटल पंचरत्न (संजय प्लेस) में ठहरने एवं भोजन की अच्छी व्यवस्था है। दर्शनीय स्थल : ऐतिहासिक महत्ता वाला शहर आगरा विश्व के मानचित्र पर विशेष पर्यटन स्थल है। आगरा में विश्व का सातवाँ आश्चर्य ताजमहल देखने देश-विदेश के हजारों पर्यटक प्रतिदिन आते हैं। उत्तर भारत के सभी नगरों से रोड द्वारा यह संपर्क में है। रेलमार्ग द्वारा यह सम्पूर्ण देश से सम्पर्क में है। दिल्ली 200 कि.मी., मथुरा 50 कि.मी., फिरोजाबाद 45 कि.मी. दूरी पर स्थित है। ग्वालियर से यह 118 कि.मी. दूर है। प्रमुख रेल्वे स्टेशन आगरा छावनी से ताजमहल 3 कि.मी. दूरी पर स्थित है। स्टेशन से 1 कि.मी. दूर ईदगाह बस स्टैण्ड है। 4 कि.मी. दूरी पर आगरा फोर्ट स्टेशन है। शहर में विभिन्न स्तर के होटल, धर्मशालाएँ और गैस्ट हाऊस उपलब्ध हैं। ताजमहल : यह स्मारक शुक्रवार को बंद रहता है। इसे देखने हेतु टिकट खरीदना पड़ता है। 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे निःशुल्क ताज देख सकते हैं। ताजमहल में वाहन पार्किंग 1 कि.मी. दूर है। वहाँ से रिक्शा, बैटरी चलित बस या ताँगा द्वारा ताज के प्रवेश द्वार तक पहुँचा जा सकता है। यात्री पार्किंग से ताज तक पैदल भी पहुँच सकते हैं। पार्किंग स्थल से स्मारक तक जाने, देखने व वापिसी में लगभग 3 घण्टे का समय लग जाता है। प्रातः 8.00 बजे से पूर्व एवं सायं 4.00 बजे बाद ताज का टिकट दर 120/- प्रति व्यक्ति है। ताज से 1 कि.मी. दूरी पर बना है यहाँ का लाल किला। किले को 2 घन्टे में देखा जा सकता है। आगरा शहर से जयपुर मार्ग पर 31 कि.मी. दूरी पर विश्व प्रसिद्ध बुलन्द दरवाजा की इमारत फतेहपुर सीकरी है। इसमें रानी जोधाबाई का पंचमहल दर्शनीय है। यहाँ सलीम चिश्ती की दरगाह पर लोग आज भी मन्नतें माँगने आते हैं। जहाँ के लिए नियमित बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं। कन्डैक्टेड टूर द्वारा भी इन इमारतों का भ्रमण किया जा सकता है। फतेहपुर सीकरी में आने-जाने व देखने में कुल 4-5 घन्टे का समय लगता है। पुरातात्विक उत्खलनों से अब यह भी स्पष्ट हो रहा है कि आगरा से 30 कि.मी. दूर फतेहपुर सीकरी भी 10वीं शताब्दी में एक समृद्ध जैन नगरी थी। यहाँ अनेक भव्य जिनमन्दिर थे। जिनके ध्वंसावशेष आज प्राप्त हो रहे हैं। आगरा के राजामण्डी रेल्वे स्टेशन के बाहर ही टूरिस्ट गैस्ट हाउस से कन्डैक्टेड टूर चलते हैं। कैन्ट स्टेशन पर स्थित टूरिस्ट विभाग के ऑफिस से भी इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है। चूंकि राजामण्डी पर अनेकों ट्रेनों का स्टॉपेज नहीं है। अतः कैन्ट उतरना ही श्रेष्ठ है। ग्वालियर से आते समय आगरा छावनी (कैन्ट) पहले आता है। दिल्ली से आगरा आते समय राजामण्डी पहले आता है तथा 5 मिनट बाद कैन्ट आता है। आगरा कैन्ट से लगभग 11 कि.मी. दूरी पर दयालबाग है। जहाँ स्वामीबाग मन्दिर देखने योग्य है यह प्रातः 9 बजे से सायं 5 बजे तक खुला रहता है। आगरा-मथुरा मार्ग पर 8 कि.मी. दूरी पर सिकन्दरा दर्शनीय स्थल है। जहाँ जहाँगीर का मकबरा है। आगरा-कानपुर मार्ग पर आगरा से 5 कि.मी. दूरी पर रामबाग क्षेत्र में इत्माद उद्-दौला दर्शनीय स्थल है। इसकी कलात्मकता अत्यंत दर्शनीय है। खरीददारी हेतु रोशनमोहल्ला मंदिर के निकट ही किनारी बाजार आगरा का महत्वपूर्ण बाजार है जहाँ सभी प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं। सदर बाजार क्षेत्र भी खरीददारी के लिए उत्तम स्थल है। आगरा से जयपुर के लिए बस, रेल दोनों सेवाएँ हैं। आगरा फोर्ट स्टेशन, जो कि कैन्ट से मात्र 3 कि.मी. दूर है, जयपुर, लखनऊ, हावड़ा के लिए ट्रेन आती-जाती हैं। यहाँ से महावीर जी के लिए भी आने-जाने को ट्रेन उपलब्ध है। बस सेवा भी है। मथुरा के लिए आगरा से प्रत्येक घन्टे ट्रेन व बस सेवा उपलब्ध है। आगरा कैन्ट रेल्वे स्टेशन से 1 कि.मी. दूर ईदगाह बस स्टैण्ड है जहाँ से जयपुर, दिल्ली के लिए बस मिलती हैं। आगरा से 45 कि.मी. दूर काँच की नगरी फिरोजाबाद व चडियों के लिए भारत में प्रसिद्ध है। काँच की बनी कलात्मक वस्तुओं के लिए अब इसे विश्व स्तर पर भी पहचाना जाने लगा है। यहाँ सेठ छदामी लाल जैन द्वारा निर्मित संगमरमर का मंदिर अत्यंत कलात्मक एवं मनोहारी है। फिरोजाबाद में स्थापित भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा भी अति मोहक व दर्शनीय है। यहाँ कल 21 जिनालय हैं। धर्मशालाएँ आदि भी हैं। ucation International 2010_03 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका उत्तर प्रदेश आगरा के अन्य मन्दिर परिचय-आगरा एक ऐतिहासिक नगरी है। आगरा नगर, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल आदि वृजमण्डल क्षेत्र की चौरासी कोस की परिधि में आता हैं। आगरा के निकट ही 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी की च्यवन एवं जन्म कल्याणक भूमि शौरीपुर तीर्थ है। आगरा शहर में मुगलकालीन अनेक ऐतिहासिक इमारतें हैं। जिनमें ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी आदि विश्व प्रसिद्ध हैं। यह वही नगर है जहाँ आचार्य हीरविजयसूरि, आचार्य जिनचन्द्रसूरि जैसे भूर्धन्य विद्वान आचार्यों का आगमन हुआ इनकी विद्वता से प्रभावित होकर बादशाह अकबर ने जैन शासन के लिए अनेक कार्य किये थे। जहाँ एक ओर इस शहर में मुगलकालीन मन्दिर अभी भी अस्तित्त्व में है वही दूसरी ओर इस शहर के निकट फतेहपुर सीकरी, कागरौल आदि क्षेत्रों में पुरातत्त्व विभाग द्वारा कराये जा रहे उत्खनन कार्य में 10वीं शताब्दी के अनेक जैन मन्दिरों में अवशेष प्राप्त हो रहे हैं, जो इस शहर की ऐतिहासिकता को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं। वर्तमान में इस नगर में निम्नलिखित जिन मन्दिर अस्तित्व में हैं(1) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर, रोशन मोहल्ला, आगरा-रोशन मोहल्ला क्षेत्र में स्थित इस तीर्थ पर रिषभ नामक बहूमूल्य पाषाण से निर्मित मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्राट अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरु आचार्य श्री हीरविजय सूरीश्वर जी महाराज के कर कमलों द्वारा वि. स. 1640 में हुई थी। इसी मन्दिर परिसर में भू-गर्भ से प्राप्त शीतलनाथ भगवान की चमत्कारिक प्रतिमा कलायुक्त वेदी में विराजमान है। इस वेदी की पच्चीकारी ताजमहल की पच्चीकारी से श्रेष्ठ बतलायी जाती है। इस प्रतिमा के दर्शनों के लिए सुबह से शाम तक भक्त जनों का ताता सा लगा रहता है। मन्दिर जी से संलग्न जगद्गुरु आचार्य श्री हीरविजय सूरीश्वर जी म, का प्राचीन उपाश्रय भी है जहाँ आचार्यश्री के चातुर्मासों के दौरान बादशाह अकबर का भी आवागमन रहा है। मन्दिर जी से संलग्न जैन भवन नामक धर्मशाला भी है, जहाँ यात्रियों के ठहरने के लिए कमरे, बिस्तर आदि की व्यवस्था है। इसी भवन परिसर में ख्याति प्राप्त श्री आत्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मण्डल की स्थापना हुई थी। इस पुस्तकालय के माध्यम से सुप्रसिद्ध जैन विद्वान प्रज्ञा चक्षु पं. सुखलाल ने पधारकर कर्मग्रन्थ आदि अनेक ग्रन्थों का अनुवाद करके अच्छी साहित्य सेवा की थी। सम्पर्क हेतु, पेढ़ी का फोन नं. 2 54 559 है। (2) श्री सीमंधर स्वामी जैन श्वे. मन्दिर, रोशन मोहल्ला, आगरा-इस मन्दिर की प्रतिष्ठा वि. सं. 1668 में चौथे दादागुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरि द्वारा हुई थी। मन्दिर जी में दुर्लभ श्वेताम्बर खडगासन प्रतिमाएँ भी विद्यमान हैं। इस मन्दिर का निर्माण सुश्रावक कर्मचन्द बच्छावत ने कराया था जिनकी अकबर के दरबार में बहुत ख्याति थी। (3) श्री वासुपूज्य जी जैन श्वे. मन्दिर, मोतीकटरा चौराहा, आगरा-मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान का मन्दिर आगरा में विद्यमान जैन श्वे. मन्दिरों में सर्वाधिक प्राचीन मन्दिर है। इसरी प्रतिष्ठा वि. सं. 1501 में हुई थी। इस मन्दिर का समय-समय पर जीर्णोधार होता रहा है।। (4) श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, मोतीकटरा चौराहा, आगरा-भू-गर्भ से प्राप्त मूलनायक श्री गौड़ी पार्श्वनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा संघवी कुँवरपाल सोनपाल लोढ़ा द्वारा वि. सं. 1671 में भरायी गयी थी। इसकी प्रतिष्ठा अंचलगच्छीय आचार्य श्री कल्याणसागरसूरि द्वारा होने का उल्लेख प्रतिमा के लेख में स्पष्ट है जिन्होंने बादशाह जहाँगीर के दरबार में बहुत ख्याति अर्जित की थी। भू-गर्भ से प्राप्त होने पर इस प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा उपकेश गच्छीय आचार्य श्री सिद्धसूरि द्वारा वि. सं. 1940 में हुई। मन्दिर जी में अन्य प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं। मन्दिर जी के समीप सेठ पदमचन्द जैन डागा स्मृति भवन है जहाँ यात्रियों के ठहरने के लिए सुन्दर व्यवस्था है। (5) श्री सुपार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, भैरों बाजार बेलनगंज, आगरा-इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 1980 में सेठ लक्ष्मीचन्द जी वैद द्वारा निज धन से कराया गया था। मन्दिर निर्माण के प्रेरणादाता काशी वाले शास्त्र विशारद श्री विजयधर्मसूरि जी मा. थे, परन्त आचार्यश्री का असमय ही काल धर्म होने के पश्चात इस मन्दिर की प्रतिष्ठा उनके शिष्यों, आचार्य विजेन्द्रसूरि, मुनि श्री विद्या विजय जी. मंगल विजय जी, न्याय विजयजी एवं खरतर खच्छीय साध्वी श्री सुवर्णश्री जी आदि की निश्रा में हुई। मन्दिर परिसर में सेठ जी ने आचार्यश्री की प्रेरणा से श्री विजय धर्म लक्ष्मी ज्ञान मन्दिर नामक पुस्तकालय की स्थापना की थी। इसकी गणना देश के ख्याति प्राप्त पुस्तकालयों में की जाती थी। इस पुस्तकालय में अति दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ मौजूद थे। वर्तमान में इस पुस्तकालय का स्थानान्तरण कुछ वर्षों पूर्व कोबा (गाँधी नगर गुजरात) में हो चुका है। 2010_03 13 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका मन्दिर से संलग्न सेठ लक्ष्मीचन्द जैन भवन है यहाँ भी यात्रियों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। मन्दिर जी का फोन नं. 26 1737 है। (6) श्री वासुपूज्य जैन श्वे., मन्दिर वल्लभ नगर, बालूगंज, (बैकुण्ठी देवी कन्या महाविद्यालय के सामने) आगरा-इस भव्य मन्दिर का निर्माण पंजाब से आये हुए पंजाबी ओसवाल समाज द्वारा किया गया है। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा सन 1988 में आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्नसूरि जी म. के कर-कमलों द्वारा हुई थी। मन्दिर से संलग्न उपाश्रय एवं धर्मशाला है जहाँ यात्रियों के ठहरने के लिए सुन्दर व्यवस्था है। (7) श्री महावीर स्वामी मन्दिर, दादावाड़ी (पृथ्वीनाथ मन्दिर के पास) भोगीपुरा शाहगंजजयपुर रोड, आगरा-जगत सेठ जी द्वारा बनाये गये सेठ के बाग में मूलनायक श्री महावीर स्वामी का मन्दिर है। जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि जी के प्राचीन चरण बाहर दलान में विराजमान है। सेठ के बाग से संलग्न श्री जिनकुशलसूरि दादावाड़ी भी यहाँ स्थित है। मन्दिर जी का फोन नं. 2106 30 है। सेठ का बाग परिसर में यात्रियों के ठहरने के लिए कमरे-हॉल आदि हैं। भोजनशाला भी उपलब्ध है। (8) श्री शान्तिनाथ जी जैन श्वे. मन्दिर, चित्तीखाना, आगरा। (9) श्री नेमीनाथ जी जैन श्वे. मन्दिर, हींग की मण्डी, आगरा। (10) श्री केशरियानाथ जी जैन श्वे. मन्दिर मोतीकटरा, आगरा। (11) श्री सूर्य प्रभु जी जैन श्वे. मन्दिर, जत्तीकटरा के सामने, आगरा। (12) श्री महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर, हरीपर्वत क्रॉसिंग के निकट, आगरा-यहाँ श्री शन्तिनाथ प्रभु जी की चित्ताकर्षक मनमोहक प्रतिमा दर्शनीय है। (13) श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, बेलनगंज चौराहा-इस मंदिर में काँच का कार्य देखने योग्य है। (14) श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, धूलियागंज, आगरा। जिला इलाहाबाद मूलनायक : श्री ऋषभ स्वामी जी, पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर); श्री ऋषभनाथ जी एवं श्री पार्श्वनाथ जी (दिगम्बर मन्दिर)। श्री पुरिमताल तीर्थ मार्गदर्शन : इलाहाबाद रेल्वे स्टेशन से श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर 4 कि.मी. दूर हैं, जहाँ से पेढ़ी : टैक्सी, ऑटो, रिक्शा व ताँगों की सुविधा है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती हैं। 1. श्री पुरिमताल तीर्थ इलाहाबाद शहर के मध्य में स्थित इस तीर्थ पर आवागमन के सभी साधन सरलता से श्री ऋषभदेव जैन उपलब्ध हो जाते हैं। कौशाम्बी तीर्थ यहाँ से 64 कि.मी., अयोध्या तीर्थ 70 कि.मी. दूरी श्वेताम्बर मन्दिर पर है। ग्वालियर स्टेट के परिचय : इस तीर्थ का इतिहास युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान से प्रारम्भ होता है। श्री ऋषभदेव सामने (जीवन ज्योति भगवान को केवलज्ञान यहीं प्राप्त हुआ। अत: इस युग में केवलज्ञानोत्पत्ति का प्रथम स्थान अस्पताल के निकट) होने का सौभाग्य इसी पावन । को प्राप्त हुआ। माता मरूदेवी भी इसी स्थान पर केवलज्ञान 120 बाई का बाग, प्राप्त कर मोक्ष सिधारी। यहाँ पूजा का समय प्रात: 7.30 बजे का है। इस मन्दिर के अतिरिक्त इलाहाबाद-211 003 यहाँ जैन दिगम्बर समाज का एक पंचायती मन्दिर है। यहाँ पूजा का समय प्रात 6 से 9 बजे 2. श्री दिगम्बर जैन तक है। यह अत्यन्त प्राचीन एवं अतिशय युक्त क्षेत्र है। भगवान ऋषभदेव की तप एवं ज्ञान पंचायती मंदिर कल्याणक भूमि पर मन्दिर में स्थानीय प्राचीन प्रतिमाएँ अंग्रेजों के शासनकाल में दिगम्बर 56/62, चाहचन्द जीरो समाज को उपलब्ध कराई गई जो यहाँ पंचायती दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर व छोटा मन्दिर रोड, इलाहाबाद-3 में प्रतिष्ठित है। श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों में कलात्मक प्राचीन प्रतिमाओं आदि के दर्शन फोन : 0532-400263 होते हैं। 14 Jain Edpcation International 2010_03 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : पंचायती दिगम्बर जैन मन्दिर में आधुनिक सुविधाओं से युक्त धर्मशाला है। अधिक यात्रियों के आने पर विद्यालय भवन में व्यवस्था की जाती है। भोजनालय उपलब्ध नहीं है परन्तु निकट ही अनेक शाकाहारी भोजनालय हैं। श्री ऋषभदेव जैन श्वे. मन्दिर में 50 यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था जैन धर्मशाला में उपलब्ध है। 1 कि.मी. की दूरी पर बांगड़ धर्मशाला है। वहाँ पर 2000 यात्रियों के ठहरने की सुविधा है। निकट ही गुजराती समाज की भोजनालय की व्यवस्था है। यहाँ जैन मन्दिर में भोजनशाला नहीं है परन्तु संघ के रसोड़ा साथ में होने पर किचन रूम की सुविधा है। मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । जिला बरेली मार्गदर्शन : यह तीर्थ आँवला स्टेशन से 14 कि.मी. दूर स्थित है। रेवती व बहोड़ा खेड़ा स्टेशन . श्री अहिच्छत्र तीर्थ यहाँ से 7 कि.मी. दूर है। जहाँ से टैक्सी, जीप, बस, टैम्पो व ताँगों की सुविधा है। मन्दिर का माहच्छ तक कार व बस जा सकती हैं। प्रातः 7 बजे से सायं 7 बजे तक बसों का आवागमन रहता पेढ़ी : है। क्षेत्र से 25 कि.मी. दूरी पर लख्खी बाग है। बरेली यहाँ से 50 कि.मी. दूर है। हसि श्री अहिच्छत्र पार्श्वनाथ यहाँ से 185 तथा कम्पिल जी 178 कि.मी. दूर हैं। अतिशय तीर्थ क्षेत्र दिगम्बर परिचय : यह अति प्राचीन तीर्थ है। श्री आदिनाथ भगवान के पश्चात के तीर्थंकरों की विहार- जैन मन्दिर भूमि व ग्यारह चक्रवर्तियों की अधिकार-भूमि होने का सौभाग्य इस पवित्र भूमि को प्राप्त पोस्ट रामनगर किल हुआ है। संकट हरण तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की तपोभूमि रहने के कारण यहाँ तहसील आँवला, की विशिष्ट महत्ता है। इसके अतिरिक्त गाँव में एक और मन्दिर है। प्रभु प्रतिमा की कला जिला बरेली-243 303 अद्भुत व मनमोहक है। यहाँ से 2 कि.मी. दूर द्रुपद किला दर्शनीय है। फोन : (05823) 36418 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए दो धर्मशालाएँ है। जिनमें 180 कमरे व दो बड़े हॉल हैं। निकट ही बाजार है। भोजनशाला की निःशल्क व्यवस्था है। - मूलनायक : श्री विमलनाथ भगवान, पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर); श्री विमलनाथ भगवान, जिला फर्रुखाबाद पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। मार्गदर्शन : यह तीर्थ कायमगंज स्टेशन से 10 कि.मी. दूर कम्पिलपुर गाँव में स्थित है। . । श्री कम्पिलाजी तीर्थ कायमगंज से बस टैक्सी, रिक्शा व ताँगों की सुविधा है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। यहाँ से फर्रुखाबाद 40 कि.मी., कानपुर 170 कि.मी., आगरा 165 कि.मी., कन्नौज पेढ़ी: 80 कि.मी., संकीसा बौद्ध तीर्थ 30 कि.मी. दूर है। श्री विमलनाथ स्वामी जैन वान श्री आदिनाथ द्वारा विभाजित 52 जनपदों में पांचाल जनपद का यह एक मुख्य श्वेताम्बर मन्दिर एवं शहर था। यहाँ भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहाँ अनेकों जिन मन्दिर धर्मशाला थे। तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान ये चार पो. कम्पिल. कल्याणक होने का सौभाग्य भी इसी भूमि को प्राप्त हुआ। महासती द्रौपदी की यह जन्मभूमि जिला फर्रुखाबाद-7 है। पांचाल जनपद की राजधानी थी। यहाँ मन्दिरों में कुषाण व गुप्तकालीन प्रतिमाओं के फोन : 05690-52289 दर्शन होते हैं। प्रतिमाएँ अति सुन्दर व भावात्मक हैं। पूजा का समय प्रातः 9 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। श्वेताम्बर मन्दिर में सुन्दर धर्मशाला है। जिसमें 15 कमरे तथा तीन बड़े हॉल हैं। सभी आधुनिक सुविधाएँ यहाँ उपलब्ध हैं। भोजनशाला की व्यवस्था है। मनीमजी सब व्यवस्था कर देते हैं। 2010_03 www.jainelibjar159 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढी: उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका जिला फैजाबाद मूलनायक : श्री धर्मनाथ स्वामी। मार्गदर्शन : यह तीर्थ फैजाबाद-बाराबंकी मार्ग पर मुख्य मार्ग से अंदर गाँव में है। फैजाबाद से श्री रत्नपुरी तीर्थ यह 20 कि.मी. दूरी पर स्थित है। अयोध्या से इसकी दूरी 28 कि.मी. है। निकटतम रेल्वे स्टेशन सोहावल 4 कि.मी. दूर है। जहाँ पर लखनऊ, सियाल्दाह, जम्मूतवी, देहरादून आदि से ट्रेनों का आवागमन रहता है। स्टेशन से तीर्थ तक आने के लिए टैक्सी, रिक्शा, ताँगा श्री श्वेताम्बर जैन मन्दिर आदि साधन उपलब्ध हैं। प्रत्येक आधे घन्टे में यहाँ से बस सेवा उपलब्ध है। सड़क मार्ग श्री रत्नपुरी तीर्थ अच्छा है। आने-जाने में असुविधा नहीं है। मंदिर तक पक्की सडक है। पोस्ट रोनाही, जिला फैजाबाद-704187 परिचय : यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन तीर्थ है। यह धर्मनाथ स्वामी की च्यवन. जन्म. दीक्षा व (उ. प्र.) केवलज्ञान कल्याणक भूमि है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक दिगम्बर मन्दिर भी है। यहाँ पूजा का समय प्रातः 7 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने के लिए धर्मशाला है। भोजनशाला आदि अभी उपलब्ध नहीं है। निकट ही बाजार है। दिगम्बर मन्दिर में भी ठहरने हेतु धर्मशाला है। श्री अयोध्या तीर्थ पेढ़ी: 1. श्री अयोध्या जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट कटरा पुलिस चौकी के निकट, अयोध्या, जिला फैजाबाद-224 123 फोन : 05278-32113 2. श्री दिगम्बर जैन अयोध्या तीर्थ क्षेत्र कमेटी बड़ी मूर्ति, रायगंज, अयोध्या, जिला फैजाबाद-224 123 फोन : 05278-32308 मूलनायक : श्री अजितनाथ (श्वेताम्बर मन्दिर, कटरा)। श्री ऋषभदेव (दिगम्बर मन्दिर, रायगंज)। मार्गदर्शन : अयोध्या रेल्वे स्टेशन से 1 कि.मी. दूर कटरा पुलिस चौकी के निकट श्वेताम्बर मन्दिर स्थित है। दिगम्बर मन्दिर रायगंज क्षेत्र में स्थित है। रायगंज क्षेत्र में स्थित श्री दिगम्बर जैन मन्दिर स्टेशन से 0.5 कि.मी. दूर है। यहाँ से बस स्टैण्ड भी 0.5 कि.मी. है। अयोध्या स्टेशन पर टैक्सी, ऑटो, रिक्शा आदि सभी साधन उपलब्ध हैं। दिल्ली वाराणसी रेल्वे मार्ग पर प्रमुख स्टेशन अयोध्या पर सभी स्थानों से ट्रेनों का आवागमन होता रहता है। फैजाबाद से अयोध्या, सड़क मार्ग से 5 कि.मी. दूर है। वाराणसी से यह 200 कि.मी., लखनऊ से 120 कि.मी., श्रावस्ती से 108 तथा इलाहाबाद से 160 कि.मी दूर है। रत्नपुरी तीर्थ यहाँ से 28 कि.मी. दूर है। परिचय : यहाँ श्री ऋषभदेव भ. के गर्भ एवं जन्म कल्याणक तथा श्री अजितनाथ, श्री सुमतिनाथ, श्री अनन्तनाथ भ. आदि के च्यवन, जन्म, दीक्षा एवं केवलज्ञान कल्याणक होने के कारण यह अत्यन्त पावन स्थली है। यहाँ कुल 19 कल्याणक सम्पन्न हुए हैं। कटरा के मन्दिर में श्री अजितनाथ जी की प्रतिमा मनभावन है। यहाँ पूजा का समय प्रात 7.30 बजे से 11 बजे तक है। रायगंज स्थित नवनिर्मित दिगम्बर मन्दिर में भगवान ऋषभदेव की अत्यन्त मनोहारी प्रतिमा स्थापित है। ठहरने की व्यवस्था : श्वेताम्बर मन्दिर कटरा में लगभग 1000 यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था मन्दिर प्रांगण में स्थित धर्मशाला में है। यहाँ 25 अटैच्ड बाथ के कमरे तथा तीन बड़े-बड़े न्टा में भी धर्मशाला की व्यवस्था है। जिसमें 40 सविधायक्त फ्लैट हैं। निकट में कई होटल हैं तथा धर्मशालाएँ भी हैं। यात्रियों हेत धर्मशाला परिसर में ही नि: शुल्क भोजनशाला की व्यवस्था है। श्रीराम जन्मभूमि होने के कारण अयोध्या प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी है। यहाँ सरयू तट पर तीर्थंकरों की पाँच टोकें भी दर्शनीय हैं। यहाँ तुलसीदास मंदिर, हनुमानगढ़ी, कनक भवन, सीता रसोई आदि दर्शनीय स्थल हैं। Janbipation International 2010_03 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका | दर्शनीय स्थल : 1. श्री दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ीमूर्ति, रायगंज, अयोध्या। 2. प्राचीन श्री दिगम्बर जैन मन्दिर मोहल्ला कटरा एवं भगवान श्री सुमतिनाथ जन्मस्थान (टोंक) चरणचिन्ह। 3. भगवान श्री ऋषभदेव राजकीय उद्यान, राजघाट । 4. भगवान श्री अनन्तनाथ जन्मस्थान टोंक एवं 19 तीर्थंकरों के चरणचिन्ह विराजमान हैं मोहल्ला राजघाट। 5. भगवान श्री अभिनन्दन नाथ जन्मस्थान टोंक (चरण) चिन्ह (अशर्फी भवन चौराहा) सुसहटी। भरत बाहबली टोंक चरणचिन्ह अशर्फीभवन चौराहा। 6. भगवान श्री अजितनाथ जन्मस्थान टोंक मोहल्ला बक्सरिया टोला, तुलसी नगर। 7. भगवान श्रीऋषभदेव टोंक (जन्मस्थान) मोहल्ला स्वर्गद्वार, निकट पुराना थाना। 8. भगवान श्रीराम जन्मभूमि, मोहल्ला रामकोट। 9. श्री हनुमान गढ़ी मन्दिर, मोहल्ला रामकोट। 10. श्री कनक भवन मन्दिर, मोहल्ला रामकोट। 11. श्री वाल्मीकि रामायण भवन एवं चार धाम मन्दिर छोटी छावनी-अयोध्या, मोहल्ला वासुदेव घाट। मूलनायक : श्री सम्भवनाथ भ., पद्मासनस्थ। जिला गोन्डा मार्गदर्शन : यह तीर्थ अयोध्या से 108 कि.मी. दूर, बलरामपुर रेल्वे स्टेशन से 16 कि.मी. तथा 1 श्री श्रावस्ती तीर्थ बहराइच से 45 कि.मी. दूर है। स्टेशन से बस, टैक्सी तीर्थ पर आने के लिए उपलब्ध है। सुबह 5 बजे से सायं 7.30 बजे तक बसों का आवागमन रहता है। पेढ़ी: परिचय: तृतीय तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणकों श्री दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र से यह भूमि पावन बनी है। मुनि श्री कपिल केवली भी यहीं से मोक्ष सिधारे थे। यह स्थल कमेटी (श्रावस्ती) तीर्थ के साथ-साथ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। चीनी एवं बर्मी मन्दिर भी यहाँ देखने योग्य चित्रशाला रोड, है। यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ भी है। भगवान बुद्ध के जीवन के 25 वर्ष यहीं व्यतीत हुए थे। जैन मन्दिर के पास, यहाँ दिगम्बर जैन मन्दिर में पूजा सुबह 7 बजे तथा शाम 6.30 बजे आरती होती है। बहराइच फोन : 05250-65294 उहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला है तथा तीर्थ पर यात्रियों के आवास हेतु 45 कमरों की व्यवस्था है। निःशुल्क भोजनालय है। आर्डर देने पर भोजन उपलब्ध हो जाता है। बलरामपुर में होटल आदि भी हैं। 2010_03 www.jainelib 17.org Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जिला हरिद्वार हरिद्वार पेढ़ी: श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर भूपतवाला, ऋषिकेश मार्ग, हरिद्वार-249 410 (उत्तरांचल) फोन : 0133-425263, 423773 सम्पर्क सूत्र-दिल्ली: श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर न्यास सी/- मोतीलाल बनारसीदास 40-41 यू. ए. बगलो रोड, दिल्ली-7 फोन : 3911985, 3918335 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : चिन्तामणि पार्श्वनाथ। मार्गदर्शन : दिल्ली से हरिद्वार सड़क व रेल मार्ग द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली तथा पुरानी दिल्ली दोनों स्टेशनों से रेल सेवा उपलब्ध है। सड़क मार्ग से दिल्ली से हरिद्वार की दूरी 200 कि.मी. है तथा लगभग 5 घंटे में पहुँचा जा सकता है। प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल देहरादून हरिद्वार से केवल 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। हरिद्वार प्रमुख हिन्दू तीर्थ होने के कारण यहाँ सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। गंगा के किनारे बसा यह प्राचीन नगर उत्तर भारत के सभी प्रमुख क्षेत्रों से सड़क व रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार स्टेशन पर टैक्सी आदि की सुविधा भी उपलब्ध है। परिचय : नवीन तीर्थों में हरिद्वार का चिन्तामणि पार्श्वनाथ तीर्थ अपने कलात्मक सौन्दर्य और भव्यता के लिए ख्याति प्राप्त करता जा रहा है। जैसलमेर के पीले पाषाण से निर्मित भव्य दो मंजिला जिनालय का सौन्दर्य दर्शनीय है। मख्य तल पर मलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है, उसी रंगमंडप में श्री शान्तिनाथ भगवान एवं नेमिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ हैं। कौली मण्डप में पार्श्व पद्मावती एवं पार्श्व यक्ष प्रतिष्ठित हैं। भूतल पर भगवान आदिनाथ की सुन्दर प्रतिमा विराजमान है। अभी भी जिनालय में शिल्प व श्रृंगार का कार्य अनवरत चल रहा है। मंदिर के पार्श्व में आदिनाथ भगवान के चरण पगले रायण वृक्ष के नीचे सुशोभित हैं। वर्तमान में लुप्त अष्टापद जी तीर्थ की तलहटी स्वरूप ये चरण पगले पूजनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला में ठहरने एवं भोजनशाला की उत्तम व्यवस्था है। नवनिर्मित धर्मशाला के सम्पूर्ण होने पर यहाँ 1000 से 1500 यात्री ठहर सकते हैं। दर्शनीय स्थल : मनसा देवी का मन्दिर जिस पर रोप वे द्वारा भी जाया जा सकता है यहाँ का दर्शनीय मन्दिर है। घाटी का सुरम्य दृश्य यहाँ से परिलक्षित होता है। गंगा घाट-हर की पौड़ी देखकर मन आनन्दित हो उठता है। हरिहर आश्रम में शिवलिंग एवं रुद्राक्ष वृक्ष भी दर्शन योग्य हैं। 5 कि.मी. दूर कनखल देखने योग्य स्थान है। जिला झाँसी मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में। श्री देवगढ़ तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ ललितपुर स्टेशन से 31 कि.मी. दूर पहाड़ी पर स्थित है। ललितपुर से बस, टैक्सी की सुविधा है। यहाँ कार व बस ऊपर पहाड़ तक जा सकती हैं। पहाड़ पर पेढ़ी : घना जंगल है। झाँसी से देवगढ़ 106 कि.मी. दूर है। श्री देवगढ़ क्षेत्र दिगम्बर परिचय : यह तीर्थ क्षेत्र प्राचीन तो है ही, मुख्यतः इसकी विशेषता विभिन्न शैली की प्राचीन मूर्ति जैन प्रबन्ध समिति, देवगढ़ . डाकघर जाखलोन, कला है। जिन प्रतिमाओं, यक्ष यक्षिणियों, मण्डपों, स्तम्भों, शिलापट्टों में उत्कीर्ण भारतीय तहसील ललितपुर शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना यहाँ प्रस्तुत है। पहाड़ पर कर्नाली दुर्ग में 31 बड़े मन्दिर हैं जिला झाँसी (उत्तर प्रदेश) जिनमें विशिष्ट कला के नमूने नजर आते हैं। इस मन्दिर में एक ज्ञानशिलालेख है, जो 18 लिपियों में उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिर के अतिरिक्त पहाड़ पर छोटे-बड़े कुल 39 मन्दिर हैं। यहाँ की मूर्ति कला के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं। हजारों प्रतिमाएँ विभिन्न शैली में निर्मित हैं। देवगढ़ से 13 कि.मी. दूर दशावतार मन्दिर भी दर्शनीय है। देवगढ़ में उत्तर प्रदेश टुरिज्म विभाग का टूरिस्ट बंग्लो उपलब्ध है। Jail 8 ucation International 2010_03 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका झाँसी ग्वालियर से 70 कि.मी. दूर एवं दतिया से 34 कि.मी. दूर झाँसी रानी लक्ष्मीबाई की वीर गाथा की याद ताजा करती है। झाँसी में रानी का महल तथा यहाँ से 17 कि.मी. दूर स्थित ओरछा में जहाँगीर महल, मधुकर महल, लक्ष्मी नारायण मन्दिर, रामराजा मन्दिर अत्यंत दर्शनीय हैं। ar मूलनायक : श्री पद्मप्रभ भगवान, पद्मासनस्थ। जिला कौशाम्बी मार्गदर्शन : यह तीर्थ इलाहाबाद स्टेशन से 54 कि.मी. दूर यमुना तट पर बसे गढ़वा कोशल । श्री कौशाम्बी तीर्थ इनाम गाँव में स्थित है। इलाहाबाद से जबलपुर मार्ग पर यह तीर्थ है। प्रभासगिरि तीर्थ यहाँ से 15 कि.मी. दूरी पर है। पैदल मार्ग, नदी किनारे का, मात्र 6 कि.मी. का है। स्टेशन पर बस व टैक्सी की सविधा उपलब्ध है। मन्दिर तक बस व कार जा सकती हैं। दिन भर बोला प्रत्येक घन्टे इलाहाबाद से यहाँ बसों का आवागमन होता रहता है। कौशाम्बीगढ़, परिचय : इस तीर्थ की प्राचीनता का इतिहास श्री पद्मप्रभ भगवान के समय से प्रारम्भ होता है। जिला कौशाम्बी श्री पद्मप्रभ भगवान का च्यवन, जन्म कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त (उत्तर प्रदेश) हआ। यहाँ प्राचीन नगर के भग्नावशेष मीलों में बिखरे पडे हैं। एक प्राचीन स्तम्भ है। हाल ही में हुई खुदाई में यहाँ प्राचीन महल, किले एवं भवनों के खंडहर निकले हैं जिससे प्राचीन कौशाम्बीगढ़, काल में इसकी भव्यता की ओर संकेत मिलते हैं। यहाँ 16 मन्दिरों का परिसर अति सुन्दर जिला कौशाम्बी है। गढ़वा ताल भी देखा जा सकता है। (उत्तर प्रदेश) ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। बस स्टैन्ड के निकट दो श्वेताम्बर मन्दिर एवं धर्मशालाएँ हैं । इलाहाबाद रूककर यहाँ आना श्रेयकर है। मूलनायक : भगवान ऋषभदेव। श्री दारानगर तीर्थ मार्गदर्शन : कानपुर-इलाहाबाद मार्ग पर इलाहाबाद से 64 कि.मी. दूर यह क्षेत्र स्थित है। कानपुर मार्ग पर सैनी बस स्टॉप से दो कि.मी. उत्तर दिशा में दारानगर ग्राम में यह तीर्थ है। निकटतम पढ़ी : रेल्वे स्टेशन सिरायू यहाँ से 6 कि.मी. दूर है। स्टेशन से ऑटो, रिक्शा तथा ताँगा के साधन श्री ऋषभदेव दिगम्बर जैन मन्दिर हर समय उपलब्ध रहते हैं। यहाँ से इलाहाबाद एवं कानपुर के लिए हर एक घण्टे में बस पोस्ट दारानगर सेवा उपलब्ध है। प्रभासगिरी यहाँ से लगभग 45 कि.मी. दूर है। जिला कौशाम्बी परिचय : यह मन्दिर 350 वर्ष प्राचीन है। 822 वर्ष प्राचीन, कसौटी पाषाण से निर्मित प्रभु की (इलाहाबाद)-212 204 अति मनोज्ञ एवं चमत्कारी प्रतिमा यहाँ विराजमान है। यह प्रतिमा 4 कि.मी. दूर कुएँ से प्राप्त हई थी। वर्तमान में मन्दिर का जीर्णोद्वार कार्य चल रहा है। पूजा प्रात: 7.00 बजे होती है। ठहरने की व्यवस्था : एक धर्मशाला है। क्षेत्र में एक जैन परिवार जो कि पूर्व में जमीदार थे रहता है। उनकी बड़ी कोठी में यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था हो जाती है। पूर्व सूचना देने पर भोजन आदि का भी प्रबन्ध हो जाता है। 2010_03 | 19 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश प्रभासगिरि पेढ़ी : श्री पद्म प्रभु दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र प्रभासगिरि (पभौषा) डाकघर गोराजू, जिला कौशाम्बी (इलाहाबाद) उ.प्र. फोन : 05331-911 66144 इलाहाबाद अध्यक्ष : डॉ. प्रेमचन्द्र जी जैन 37, चाह चन्द जीरो रोड इलाहाबाद फोन : (0532) 400044; 400045 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री पद्मप्रभुजी।। मार्गदर्शन : इलाहाबाद-कानपुर राष्ट्रीय मार्ग नं. 2 पर इलाहाबाद से मंदरी मोड़ होकर । 65 कि.मी., भरवारी से 30 कि.मी., सिराथू (सैनी) से 40 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ है। 3 कि.मी. दूरी पर गोराजू तक इलाहाबाद से प्रत्येक घन्टे बस सेवा है। गोराजू से तीर्थ तक आने का साधन रिक्शा-ट्राली उपलब्ध है। जो यात्रियों को लाने-ले जाने का कार्य करती है। इलाहाबाद से एक रोडवेज बस सायं 5 बजे सीधी तीर्थ के लिए आती है और प्रात: वापस जाती है। गोराजू से पक्की डामर की सड़क है। इलाहाबाद नेहरू पार्क कौशाम्बी प्राइवेट बस स्टैण्ड से दिन भर बसें गोराजू गाँव मोड़ तक आती जाती रहती हैं। परिचय : प्रभासगिरी तीर्थ पूर्व में पभौषा के नाम से जाना जाता रहा है। छठवें तीर्थंकर भगवान पद्म प्रभु ने कौशाम्बी के समीप स्थित 'मनोहर' उद्यान (श्री प्रभासगिरि) में दीक्षा ली। छः माह पश्चात घोर तप कर यहीं पर उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। यह स्थली प्रभु की दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक स्थल होने के कारण यहाँ का कण-कण पवित्र है। वर्तमान में यहाँ 4 जिन मन्दिर हैं-दो तलहटी में और दो पहाड़ी पर । तलहटी पर एक प्राचीन जैन मन्दिर है जो धर्मशाला के ही एक कमरे में है। इसमें भूगर्भ से निकली कुछ प्राचीन जैन प्रतिमाएँ भी हैं। दसरा मन्दिर तीन शिखर और तीन वेदियों वाला नव निर्मित मन्दिर है। मध्य वेदी में भगवान पद्म प्रभु की गुलाबी वर्ण की विशाल पद्मासनस्थ मूर्ति स्थापित है। शेष दोनों वेदियों में भगवान चन्द्र प्रभु व शान्तिनाथ जी की मूर्तियाँ हैं। धर्मशाला के बाहर कुछ ही दूरी पर 184 सीढ़ियाँ चढ़कर पहाड़ी पर स्थित तीसरे मन्दिर में पहुँचा जाता है। इसी मन्दिर में मूलनायक भ. पद्म प्रभु की अतिशय युक्त पद्मनस्थ प्रतिमा है। कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर पहाडी के शिखर पर भगवान की तपस्थली एवं ज्ञानस्थली के दर्शन होते हैं। इन स्थानों पर चरण स्थापित हैं। इस स्थान से पहाड़ी के नीचे बहती हुई यमुना अपनी ओर आकर्षित करती है। यह पहाड़ी गंगा और यमुना के मध्य द्वाबा में अवस्थित है। तीसरे मन्दिर से उतरते समय बाईं ओर चौथा मन्दिर पड़ता है जिसमें एक चतुर्मुखी प्रतिमा व अन्य प्रतिमाएँ हैं। पूजा का समय प्रात : 6 बजे से 9 बजे तक का है। ठहरने की व्यवस्था : क्षेत्र पर आधुनिक सुविधाओं युक्त पचास कमरों की धर्मशाला है। अतिथि गृह एवं बड़ा हॉल है जिसमें 300-400 यात्रियों के विश्राम की व्यवस्था हो सकती है। वर्तमान में भोजनशाला नहीं है परन्तु यात्रियों के आदेशानुसार पुजारी द्वारा भोजन उपलब्ध करा दिया जाता है। जिला मथुरा श्री मथुरा तीर्थ पेढ़ी : अंतिम केवली श्री 1008 जम्बूस्वामी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, चौरासी मथुरा (उ. प्र.) फोन : 0565-420983 मूलनायक : भगवान श्री महावीर के द्वितीय पट्टधर अन्तिम केवली श्री जम्बू स्वामी जी; ___ चरणपादुकाएँ। श्री 1008 भगवान अजितनाथ जी। मार्गदर्शन : यह तीर्थ मथुरा स्टेशन से लगभग 4 कि.मी. दूर चौरासी में स्थित है, स्टेशन से बस, टैक्सी व ताँगा की सुविधा है। बस व कार मन्दिर तक जा सकती हैं। आगरा- दिल्ली मुख्य मार्ग पर आगरा से 50 कि.मी. दूरी पर मुख्य मार्ग से 1 कि.मी. अंदर ही यह तीर्थ है। श्रीकृष्ण जन्मस्थली होने के कारण यहाँ उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों से बस सेवा उपलब्ध है। भरतपुर से मथुरा 34 कि.मी. दूर है। भरतपुर से मथुरा दर्शन करते हुए भी आगरा जाया जा सकता है। दिल्ली यहाँ से लगभग 150 कि.मी. दूर पड़ता है। आगरा एवं दिल्ली से मथुरा के लिए लगभग प्रत्येक घंटे ट्रेन सुविधा उपलब्ध है। मुम्बई से दिल्ली आने वाली ट्रेनों का मथुरा ठहराव है। Jal fedulation International 2010_03 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : यह तीर्थ-क्षेत्र सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के समय का माना जाता है। धर्मरुचि व धर्मघोष नामक दो मुनि की कठोर तपस्या से प्रभावित होकर देवी कुबेरा ने वरदान माँगने के लिये अरदास की। मुनियों की किसी प्रकार की आकांक्षा न होने के कारण देवी ने स्वतः ही एक स्तूप का निर्माण किया तथा उसके चारों दिशाओं में मूर्तियाँ विराजमान की जिनमें मूलनायक प्रतिमा श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की थी। चौरासी में यही एक मन्दिर है। मथुरा में चार दिगम्बर व एक श्वेताम्बर मन्दिर हैं। यहाँ प्राचीन जैन कला का विपुल भन्डार है। सिद्ध क्षेत्र चौरासी मथुरा में पूजा का समय प्रातः 6.30 से 7.30 बजे तक है। घीयामण्डी में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान जैन श्वेताम्बर मन्दिर स्थित है। जहाँ अन्तिम केवली मुनि जम्बूस्वामी के चरण विद्यमान हैं। यह चरण अत्यंत प्राचीन हैं। इसकी व्यवस्था आगरा श्वे. जैन पेढ़ी द्वारा की जा रही है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए विशाल सुन्दर धर्मशाला है। वृन्दावन में इस्कॉन द्वारा श्रीकृष्ण-बलराम का मन्दिर बनवाया है वह देखने योग्य है। मथुरा से वृन्दावन आते समय मार्ग में 5 कि.मी. दूरी पर गीता मन्दिर भी दर्शनीय है। वृन्दावन का गोविन्द देव जी का पुराना मन्दिर, रंगनाथ जी का मन्दिर, कालिया मर्दन मन्दिर, गोपीनाथ जी का मन्दिर, मीराबाई का मन्दिर, काँच का मन्दिर देखे जा सकते हैं। सिद्ध क्षेत्र चौरासी में 21 डीलक्स रूम, 2 हॉल तथा 11 साधारण कमरे एवं मंदिर प्रांगण में ही 3 छोटी धर्मशालाएँ भी हैं। भोजनशाला की व्यवस्था है। निकट में होटल आदि भी हैं। मूलनायक : श्री शान्तिनाथ प्रभु। जिला मेरठ मार्गदर्शन : यह स्थल मेरठ से 36 कि.मी., दिल्ली से 110 कि.मी., मुजफ्फर नगर से 65 कि.मी. दूर है। निकटतम रेल्वे स्टेशन मेरठ है। जहाँ से बस, टैक्सी सभी सुविधाएँ हस्तिनापुर ताथ उपलब्ध है। मेरठ से दिल्ली, आगरा के लिए प्रत्येक घन्टे बस सेवा उपलब्ध है। मेरठ के । भैंसाली रोडवेज बस अड्डे से प्रत्येक घन्टे बस हस्तिनापुर क्षेत्र के लिए प्रात: 7 बजे से रात्रि पेढ़ी : 8.30 बजे तक जाती है। क्षेत्र से प्रातः 5.15 बजे से आधे-आधे घन्टे के अंतराल से मेरठ व 1. श्री दिगम्बर जैन तीर्थ दिल्ली की बसें उपलब्ध रहती हैं। यहाँ से श्री तिजारा के लिए प्रात: 6.15 बजे बस जाती है। क्षेत्र कमेटी परिचय : पावन तीर्थ श्री हस्तिनापुर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। आदि तीर्थंकर प्रभु हस्तिनापुर, आदिनाथ जी के वर्षीतप पारणे का यह मूल स्थल है। यहाँ प्रभु ने श्रेयांसकुमार के हाथों से जिला मेरठ-250 404 इक्षुरस ग्रहण कर 400 दिवसीय महान तप का पारणा किया था। श्री शान्तिनाथ, श्री कुन्थुनाथ, (उ. प्र.) श्री अरनाथ प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान, कुल 12 कल्याणकों की यह पावन । फोन : 01233-80133 भूमि है। भगवान मल्लीनाथ के समवसरण की पुण्य स्थली भी यहीं है। मुनि सुव्रत स्वामी, श्रीमान भगवान पार्श्वनाथ एवं महावीर स्वामी द्वारा देशना यहीं दी गयी थी। यहाँ पूजा का समय सायं 5 श्वेताम्बर तीर्थ समिति बजे तक है। प्रातः 8 बजे प्रक्षाल होता है। निकट ही स्थित दिगम्बर मन्दिर में पूजा का समय हस्तिनापुर, प्रातः 7 बजे है। यहाँ क्षेत्र पर ऐतिहासिक कैलाश पर्वत रचना का कार्य निर्माणाधीन है। 131 जिला मेरठ-250 404 फुट ऊँचे पर्वत पर 21 फुट ऊँची भगवान आदिनाथ की खड़गासन की मनोहारी प्रतिमा 57 (उ.प्र.) फुट ऊँचे शिखर वाले मन्दिर में स्थापित की जाएगी। मन्दिर के निकट जम्बू द्वीप, शांतिनाथ जी, कुन्थुनाथ जी, अरहनाथ जी के तप के चरण चिह्न भी अत्यन्त दर्शनीय हैं। फोन : 01233-80140 ठहरने की व्यवस्था : श्वेताम्बर तीर्थ समिति की धर्मशालाओं में 400 कमरों की व्यवस्था है। प्रात: नाश्ता/भाता एवं दोपहर एवं सायं भोजन की व्यवस्था है। निकट ही रेस्टोरेन्ट एवं बाजार भी हैं। दिगम्बर क्षेत्र कमेटी के अन्तर्गत पूर्ण सुविधायुक्त 100 डीलक्स व 300 सामान्य रूम उपलब्ध हैं। एक 38 डीलक्स फ्लैटों की धर्मशाला का कार्य निर्माणाधीन है जो शीघ्र ही पूर्ण होगा। क्षेत्र पर भोजन व्यवस्था उपलब्ध है। निकट ही जैन भोजनालय एवं रेस्टोरेंट है। 2010_03 www.jainelibr 219 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर प्रदेश जिला वाराणसी श्री चन्द्रपुरी तीर्थ पेढ़ी : श्री चन्द्रपुरी जैन तीर्थ (दिगम्बर जैन मन्दिर) श्री चन्द्रपुरी जैन तीर्थ (श्री श्वेताम्बर तीर्थ सोसाइटी) मु.पो. चन्द्रावती, जिला वाराणसी फोन : 0542-615331 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चन्द्र प्रभु भगवान। मार्गदर्शन : यह तीर्थ वाराणसी से 23 कि.मी. दूर है। वाराणसी स्टेशन से यहाँ आने के लिए बस, टैक्सी, ऑटो आदि सभी साधन उपलब्ध हैं। यहाँ दिन भर बसों का आवागमन रहता है। मन्दिर पर जीप उपलब्ध है। कादीपुर व राजवीरा रेल्वे स्टेशन यहाँ से 4 कि.मी. दूरी पर है। वाराणसी रेल्वे, सड़क एवं वायुमार्ग द्वारा देश के सभी प्रमुख नगरों से सम्पर्क में है। यह तीर्थ वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर सड़क के दाहिनी ओर स्थित है। परिचय : यह स्थल चन्द्रप्रभु की जन्मस्थली है। आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु के चार कल्याण-च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान होने के कारण इस तीर्थ का कण-कण वन्दनीय है। गंगा तट पर बसे दिगम्बर और श्वेताम्बर मन्दिर दोनों आस-पास हैं। दोनों के व्यवस्थापक एक ही हैं। गंगा के किनारे स्थित इस पावन स्थली का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यंत मनोरम है। दिगम्बर मन्दिर में पूजा का समय प्रातः 6 बजे; तथा श्वेताम्बर मन्दिर में पूजा का समय प्रात: 8 बजे व सायं 8 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दो धर्मशालाएँ हैं। 15 कमरें हैं। निकट ही होटल व बाजार भी हैं। भोजनशाला की व्यवस्था नहीं है। श्री सिंहपुरी तीर्थ पेढ़ी: श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ जैन श्वेताम्बर पंचायती बड़ा मन्दिर एवं सिंहपुरी तीर्थ महासभा के-24/5, रामघाट, वाराणसी-1 फोन : 0542-585017 (सिंहपरी तीर्थ) 321346 (रामघाट हेड ऑफिस) मूलनायक : श्री श्रेयांसनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ वाराणसी छावनी स्टेशन से 7 कि.मी. है, जहाँ से बस, टैक्सी, ऑटो व ताँगों की सुविधा है। सारनाथ चौराहे के पास ही दिगम्बर मन्दिर है। श्वेताम्बर मन्दिर सारनाथ से 1 कि.मी. दूर हीरावणपुर गांव में है। चंद्रावती तीर्थ यहाँ से 15 कि.मी. भेलपर तीर्थ 9 कि.मी. तथा भदोनी तीर्थ 11 कि.मी. है। परिचय : इस क्षेत्र का इतिहास वर्तमान चौबीसी के ग्याहरवें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ भगवान के समय से प्रारम्भ होता है। यहाँ पर 103 फुट उत्तुंग प्राचीन कलात्मक अष्टकोण स्तूप हैं, जो लगभग 2200 वर्ष प्राचीन माना जाता है। श्री श्रेयांसनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याणक होने का सौभाग्य इस पावन भूमि के प्राप्त हआ है। यहाँ के प्राचीन विशाल स्तूप की विचित्र कला वर्णातीत है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिरों के पास ही श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं. जहाँ सभी सुविधाएँ हैं। श्वेताम्बर धर्मशाला में 1 बड़ा हॉल, 1 छोटा हॉल व 9 कमरे व 2 किचिन रूप है। निकटतम बाजार सारनाथ यहाँ से 1 कि.मी. दूर है। जहाँ गेस्ट हाउस भी उपलब्ध है। भाता व चाय की व्यवस्था उपलब्ध है। फिलहाल भोजनशाला नहीं है। पूर्व सूचना देने पर पूर्ण व्यवस्था हो जाती है। श्री भदैनी तीर्थ पेढी : 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान जैन श्वेताम्बर मन्दिर मूलनायक : 1. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ भेलूपुर तीर्थ (वाराणसी) से 1.5 कि.मी. दूर गंगा नदी तट पर जैन घाट पर है। यह स्टेशन से लगभग 4 कि.मी. दूर है, जहाँ से टैक्सी, ऑटो रिक्शा व ताँगों की सुविधा है मन्दिर से लगभग आधा फलाँग दूर तक कार व बस जा सकती है। परिचय : यह स्थल वाराणसी का एक अंग है। वर्तमान चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान कल्याण होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुआ है। गंगा नदी के तट पर इन मंदिरों का दृश्य अति ही शोभायमान लगता है। शांत वातावरण में कल-कल बहती हुई नदी भी अपनी मन्द मधुर आवाज से मानों प्रभु का नाम निरंतर स्मरण कर रही हो-ऐसा प्रतीत होता है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए यहाँ श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। 2. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान जैन दिगम्बर मन्दिर भदैनी घाट, वाराणसी Jaiff Education International 2010_03 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढ़ी: जैन तीर्थ परिचायिका उत्तर प्रदेश मलनायक: श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। श्री भेलूपुर तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ वाराणसी स्टेशन से 3 कि.मी. दूर भेलूपुर में स्थित है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। स्टेशन पर यातायात के सभी साधन उपलब्ध हैं। परिचय : यहाँ का इतिहास युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान के समय से प्रारम्भ हो जाता है। 1. श्री जैन श्वेताम्बर तीर्थ प्रकट प्रभावी, साक्षात्प्रभावी भक्तों के संकट हरनार तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के सोसायटी, भेलुपुर चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवलज्ञान से यह भमि पावन बनी है। इन मन्दिरों 2. श्री दिगम्बर जैन के अतिरिक्त 12 श्वेताम्बर व 11 दिगम्बर मन्दिर हैं। यहाँ राजघाट व अन्य स्थानों पर खुदाई पार्श्वनाथ मन्दिर, के समय जो पुरातत्व सामग्री प्राप्त हुई हैं वह स्थानीय कलाभवन में सुरक्षित हैं। इनमें पाषाण भेलुपुर, वाराणसी व धातु की अनेक कलात्मक प्राचीन जैन प्रतिमाएँ भी हैं। (उ. प्र.) फोन : 0542-313407 ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। श्वेताम्बर धर्मशाला में भोजनशाला की भी व्यवस्था है। दर्शनीय स्थल (वाराणसी): दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर वाराणसी स्थित है। तथा देश के सभी प्रमुख नगरों से रेल, वायु व सड़क मार्ग द्वारा सम्पर्क में है। यहाँ से कोलकाता 680 कि.मी., इलाहाबाद 125 कि.मी., अयोध्या 200 कि.मी., आगरा 577 कि.मी., दिल्ली 780 कि.मी. दूरी पर स्थित हैं। श्री श्वेताम्बर पंचायती बड़ा मन्दिर (फोन : 321346) यह मन्दिर वाराणसी स्टेशन से लगभग 3 कि.मी. दूर नगर के मध्य चौक में गंगा के किनारे स्थित है। इसकी कला अत्यंत दर्शनीय है। प्रभु पार्श्वनाथ का उपदेश स्थल होने के कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है। मन्दिर में विशाल वर्तमान चौबीसी जी हैं। भूत, वर्तमान और भविष्य चौबीसी तथा बीस बिरहमान और शाश्वता तीर्थंकरी का संगमरमर का पट्टा एवं कुल 96 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं यहां हैं। ऐसी भव्य प्रतिमाएँ अत्यंत दुर्लभ हैं। यहां उपाश्रय और शास्त्रों का विशाल भंडार भी है। मन्दिर के निकट ही आठ और श्वेताम्बर मन्दिर हैं। निकट ही ठठेरी बाजार है। गंगा के तट पर बसी पवित्र तीर्थ नगरी वाराणसी अत्यन्त प्राचीन नगरी है। इसका प्राचीन नाम काशी था। यहाँ का विश्वनाथ मन्दिर हिन्दुओं की अनन्य आस्था का प्रतीक है। यहाँ दिन भर पूजा अर्चना चलती रहती है। सायंकालीन आरती अपनी ही भव्यता लिए होती है। वाराणसी नगरी मन्दिरों की नगरी है। हर गली हर राह पर यहाँ मन्दिर ही मन्दिर हैं। वाराणसी से 8 कि.मी दूरी पर बौद्ध धर्म के स्तूप की नगरी सारनाथ है। भगवान बुद्ध ने यहीं से अपने धर्म का प्रचार प्रारम्भ किया था। यहाँ धामेक स्तूप तथा उसके निकट ही निर्मित जैन मन्दिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। सारनाथ में ही सम्राट अशोक द्वारा निर्मित प्रसिद्ध अशोक स्तम्भ है। जिसके चार सिंह वाली मूर्ति एवं चक्र आज राष्ट्रीय चिह्न बने हैं। यहाँ धर्मराजिक स्तूप भी अवलोकनीय है। वाराणसी से 17 कि.मी. दूर राम नगर में स्थित राजमहल भी देखने योग्य है। मार्ग में व्यास देव के मन्दिर हैं। वाराणसी उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख नगरी होने के कारण यहाँ होटल, धर्मशालाएं एवं गेस्ट हाऊस बहुतायत में हैं। यहाँ की बनारसी साड़ियाँ विश्व में प्रसिद्ध हैं। यहाँ का बनारसी पान व ठंडाई की अलग ही पहचान है। 2010_03 www.jainelibjanorg Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाराणसी मे मोहानिया 48 ससराम 39 विक्रमगंज 45 औरंगाबाद 2010_03 60 गया डोबि वैशाली पटना मुजफ्फरपुर 54 बख्तियारपुर बिहार 61 शरीफ नालन्दो * कुण्डलपुर 13 * राजगिर 43 लबोद्धगया वारही हजारीबाग रांची 31 23 9 37 51 • दरभंगा गुणायाजी * नवादा पावापुरी कोडरमा 95 • लछुआड (क्षत्रियकुण्ड) काकन्दी सिकन्द्रा खजरी जमुआ वागोदर जमुई डुमरी मुंगे 79 54 चम्पापुरा भागलपुर चकाई 26 97 बिहार सड़क मानचित्र ★ जैन तीर्थ स्थल धनबाद बांका रडीह 37 मधुपुर 14 बराकर (ऋजुवालुका) मधुबन सम्मेदशिखर पारसनाथ 64 32 देवगढ़ 43 41 बाराहट मंदारहिल कोलकाता को दूरियाँ किलोमीटर में ( Map not to scale) ਹਿਕਦ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जिला भागलपुर जिला गिरडिह जिला जमुई जिला नवादा 28 जिला नालन्दा 1. श्री चम्पापुरी तीर्थ (चम्पानगर) 1. श्री ऋजुबालुका तीर्थ 2. श्री सम्मेदशिखर तीर्थ 1. श्री क्षत्रियकुण्ड तीर्थ 2. श्री काकन्दी तीर्थ 1. श्री गुणायाजी तीर्थ 1. श्री पावापुरी तीर्थ 2. कुण्डलपुर तीर्थ 3. श्री राजगृही तीर्थ 4. वीरायतन 1. श्री पाटलीपुत्र तीर्थ (पटना) 1. श्री वैशाली तीर्थ 2. पटना से जैन तीर्थ स्थलों की सड़क मार्ग द्वारा कि.मी. में दूरी 28 29 31 जिला पटना जिला वैशाली 32 2010_03 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका बिहार मूलनायक : श्री वासुपूज्य भगवान, पद्मासनस्थ। जिला भागलपुर मार्गदर्शन : यह तीर्थ भागलपुर स्टेशन से 6 कि.मी. दूर तथा नाथ नगर रेल्वे स्टेशन से 1.5 कि.मी. दूर गंगा नदी के किनारे चम्पा नाला के पास जिसे चम्पानगर (चम्पापुरी) कहते हैं, स्थित है। स्टेशन से बस, टैक्सी, ताँगा, रिक्शा आदि सभी साधन उपलब्ध हैं। भागलपुर । (चम्पानगर) बिहार की प्रसिद्ध सिल्क नगरी है। कोलकाता से यह 575 कि.मी., पटना से 235 कि.मी. पेढ़ी: गया से 297 कि.मी., वाराणसी से 470 कि.मी. दूर है। यहाँ से विभिन्न स्थानों के लिए बस श्री जैन श्वेताम्बर सोसायटी सेवा एवं रेल सेवा उपलब्ध है। तीर्थ श्री चम्पापुरी परिचय : भगवान श्री आदिनाथ ने देश को 52 जनपदों में विभाजित किया था, उनमें अंग जनपद चम्पानगर, भी एक था। चम्पा अंग जनपद की राजधानी थी। किसी समय यह नगर मीलों तक फैला भागलपर-812 004 हुआ अत्यन्त वैभव सम्पन्न था। युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान ने इस पवित्र भूमि को (बिहार) अपने चरणों से स्पर्श करके पवित्र बनाया है। नाथनगर, भागलपुर व मन्दागिरि पर्वत पर फोन : 0641-422205 दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। यह मन्दिर प्राचीन है। नाथनगर का कांच का मंदिर दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये मन्दिर के अहाते में ही सुविधायुक्त धर्मशाला है। मूलनायक : श्री महावीर भगवान, चतुर्मुख चरणपादुकाएँ। जिला गिरडिह मार्गदर्शन : यह तीर्थ बराकर गाँव के पास बराकर नदी के तट पर स्थित है। मधुबन से यह . 18 कि.मी. दूर है। यह गिरडिह से 12 कि.मी. दूर है यहाँ से बस व टैक्सी की सुविधा है। " । श्री ऋजुबालुका तीर्थ गिरडिह रेल्वे स्टेशन पर मधुपुर (37 कि.मी.) से ट्रेनें आती रहती हैं। कोलकाता से धनबाद होते हुए गिरडिह आया जा सकता है। पेढ़ी: परिचय : आज की बराकर नदी को प्राचीन काल में ऋजुबालुका नदी कहते थे। इसके तट पर श्री जैन शेताम्बर श्यामाक किसान के खेत में शाल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ला 10 के दिन पिछली पोरसी सोसायटी. बराकर के समय विजय मुहूर्त में भगवान महावीर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। चौबीसवें तीर्थंकर श्री बन्दरकपी महावीर भगवान के बारह वर्ष की घोर तपश्चर्या के कारण व केवलज्ञान प्राप्ति के कारण यहाँ जिला गिरडिह (बिहार) के परमाणु अत्यन्त पवित्र बन चुके हैं। इस जगह की महानता अवर्णनीय है। नदी तट पर स्थित मन्दिर का दृश्य अतीव रमणीय है। इसी नदी में भगवान महावीर की एक प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसकी कला अति सुन्दर है जो मन्दिर में विराजमान है। ठहरने की सुविधा : ठहरने के लिये सुविधायुक्त धर्मशाला है। मूलनायक : श्री शामलिया पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। श्री सम्मेदशिखर मार्गदर्शन : यह विश्व प्रसिद्ध तीर्थ मधुबन के पास समुद्र की सतह से 4479 फुट ऊँचे तीर्थ सम्मेदशिखर पहाड़ पर, जिसे पार्श्वनाथ हिल भी कहते हैं, पर स्थित है। गिरडिह डुमरी मार्ग पर गिरडिह से 30 कि.मी. दूर तथा डुमरी से 15 कि.मी. दूर मधुबन है। पारसनाथ स्टेशन पेढ़ी : से मधुबन (वाया इसरी) 25 कि.मी. है। पारसनाथ स्टेशन पर लगभग सभी टेनों का ठहराव श्री जन श्वताम्बर है। पारसनाथ स्टेशन से मधुबन के लिए बस सेवा उपलब्ध है। दिगम्बर जैन ट्रस्ट की बस सोसायटा, सुबह-शाम यहाँ आती-जाती है। जीप एवं प्राइवेट बसों की भी सुविधा है। पूर्व सूचना देने कोठा मधुबन, शिखरजा, पर श्वेताम्बर पेढी की बस भी आ सकती है। मधबन से आगे शिखर तक पैदल यात्रा की जिला गिराडह (बिहार) जाती है। वैसे घमावदार मार्ग से 16 कि.मी. की दरी तय कर वायरलैस केन्द्र तक जीप फान : 06532-32226, 32260 आदि जा सकती है। वहाँ से 1 कि.मी. दूरी पर पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर है। 2010_03 www.jainelr25rg Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार | जैन तीर्थ परिचायिका यात्रीगण पैदल यात्रा करके अपनी यात्रा को सफल मानते हैं। आवागमन हेतु 200-300 रुपये में डोली भी मिलती है। पहाड़ी की ऊँची डगर सघन वनों से गुजरती है। अंतिम 3 कि.मी. की चढाई काफी दुरूह है। पहाड पर 9 कि.मी. की चढाई, सभी मन्दिरों पर परिक्रमा के 9 कि.मी. तथा उतराई 9 कि.मी. इस प्रकार कुल 27 कि.मी. की पैदल यात्रा हो जाती है। कोलकाता से इसकी दूरी 300 कि.मी. है। निमइयाघाट 7, गोमो जं. 18, धनबाद 47 कि.मी. है। हजारीबाग रोड 27, कोडरमा 76 तथा गया 152 कि.मी. दूर हैं। परिचय : वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर इस पावन भूमि में तपश्चर्या करते हुए अनेक मुनियों के साथ मोक्ष सिधारें हैं। पूर्व चौबीसियों के कई तीर्थंकर भी इस पावन भूमि से मोक्ष सिधारे हैं-ऐसी अनश्रति है। पहाड पर 31 ट्रॅक स्थित हैं तथा पहाड की तलहटी मधुबन में आठ श्वेताम्बर मन्दिर, दो दादावाड़ियाँ व एक भोमियाजी महाराज का मन्दिर है। इसके अतिरिक्त 17 जिनालय व पेढ़ियाँ भी हैं। तीर्थरक्षक देव श्री भोमियाजी महाराज के दर्शन तलहटी में करने के साथ यात्रा का शुभारंभ करें। यहां से चलने पर आगे गंधर्व नाला आता है। आगे जाने पर दो मार्ग मिलते हैं, एक से गौतमस्वामी जी के शिखर से जल मंदिर जा सकते हैं, दूसरे मार्ग से डाक बंगला होकर श्री पाश्वनाथ शिखर पर जाया जा सकता है। पहली बार यात्रा करने वाले तीर्थयात्री और सभी शिखर की यात्रा जल मंदिर के मार्ग से शुरु करते हैं। इसके आगे सीता नाला आता है। यहीं से चढ़ाई प्रारंभ हो जाती है। पहला शिखर गणधर श्री गौतमस्वामी का आता है। दूसरा 17वें तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथ भगवान का है। तीसरा ऋषभानन, चौथा श्री चन्द्रानन शाश्वत जिन का, पाँचवाँ 21वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान का, छठवाँ 18वें तीर्थंकर श्री अरनाथ, सातवाँ 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भ., आठवाँ 11वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ भ., नौवाँ-नौवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ, दसवाँ छठवें तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु, ग्यारहवाँ 20वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामी और बारहवाँ आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु का है। यहाँ से चढ़ाई कठिन हो जाती है। तेरहवाँ शिखर श्री आदिनाथ भगवान, चौदहवा श्री अनंतनाथ भगवान, पन्द्रहवाँ दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान, सोलहवाँ तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ भगवान, सत्रहवाँ बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य भगवान का है, जिनका निर्वाण चम्पापुरी में हुआ था। अठारहवाँ शिखर चौथे तीर्थंकर श्री अभिनन्दन स्वामी, उन्नीसवें शिखर पर जल मंदिर विद्यमान है। यहाँ पर श्री शामलिया पार्श्वनाथ विराजमान है। यहां पर धर्मशाला एवं सेवापूजा के लिए स्नान की भी अच्छी व्यवस्था है। बीसवें शिखर पर श्री शुभगणधर स्वामी है, इक्कीसवें शिखर पर पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ भगवान की, बाइसवाँ श्री वारिषेण शाश्वत जिन का, तेईसवाँ श्री वर्धमान शाश्वत जिन का, चौबीसवाँ श्री सुमतिनाथ पाँचवें तीर्थंकर का, पच्चीसवाँ सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ का. छब्बीसवाँ श्री महावीर स्वामी चौबीसवें तीर्थंकर, जिनका मोक्ष पावापुरी में हुआ है, का है। सत्ताइसवाँ श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का, अट्ठाइसवाँ एवं उन्नतीसवाँ शिखर श्री अजितनाथ भगवान का है। तीसवाँ शिखर गिरनार पर मोक्ष प्राप्त करने वाले बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ भगवान का है। अंतिम इकत्तीसवाँ शिखर तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का है। यह भगवान का समाधि स्थल है। यहां आकर तीर्थयात्रा पूर्ण होती है। पहाड पर से नीचे निहारते हैं तो मधुबन के सारे मन्दिरों की निर्माण शैली व कला अत्यन्त ही मनोरम लगती है। मधुबन के ऊपर पहाड़ मुकुट के आकार का प्रतीत होता है। पहाड़ी परिवेश, सघन वन, नैसर्गिक सौन्दर्य मन को असीम शान्ति प्रदान करता है। 26 bucation International 2010_03 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मधुबन में श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। श्वेताम्बर धर्मशाला में भोजनशाला भी है। मधुबन में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर समाज की लगभग एक दर्जन से अधिक धर्मशालाओं में डेढ़ हजार यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है। भोमिया जी भवन में यात्रियों को जैन धर्म सम्बन्धी साहित्य भी उपलब्ध होता है। धर्मशालाओं के निकट ही बाजार, बैंक आदि सुविधाएँ हैं। श्री धर्म मंगल जैन विद्यापीठ, फोन : 06532-32230 में 2-3 हजार यात्रियों के ठहरने की सुन्दर व्यवस्था है। धर्मशाला प्रांगण में ही श्री मधुवन पार्श्वनाथ का सुन्दर मन्दिर बना है। धर्मशाला में सभी आधुनिक सुविधाओं युक्त कमरों की व्यवस्था है। सुव्यवस्थित भोजनशाला की सुविधा है। विद्यापीठ के मुख्य संस्थापक आचार्य श्री पद्मप्रभ सूरि जी म. सा. हैं जो विगत 42 वर्षों से यहाँ विराजमान हैं। जिला जमुई मूलनायक: श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : लछुआड़ से 5 कि.मी. दूर स्थित कुण्डघाट तलहटी से ऊपर पहाड़ी पर यह तीर्थ स्थित है। तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई 5 कि.मी. है। लछुआड़ जमुई से 22 कि.मी. दूर है। जमुई स्टेशन से टैक्सी, बस आदि सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। तीर्थ पर भी टैक्सी उपलब्ध हो जाती है। यहाँ प्रातः 6 बजे से बसों का आवागमन प्रारम्भ हो जाता है। यहाँ से पटना 148 कि.मी., भागलपुर 135 कि.मी., काकंदी तीर्थ 40 कि.मी., पावापुरी 95 कि.मी., पेढ़ी : राजगिरी 115 कि.मी., शिखरजी 193 कि.मी. है। श्री जैन श्वेताम्बर सोसाइटी, परिचय : इस तीर्थ का इतिहास 24वें तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी के पर्व से प्रारम्भ होता लछुआड़, वाया सिकन्दरा, है। इस पवित्र भूमि में वर्तमान चौबीसी के चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के च्यवन, जिला जमुई (बिहार) दीक्षा आदि तीन कल्याणक होने के कारण यहाँ की महत्ता है। प्रभ ने अपने फोन : 06345-22361 जीवनकाल के तीस वर्ष इस पवित्र भूमि में व्यतीत किये। तलहटी में दो छोटे मन्दिर हैं इन स्थानों को च्यवन व दीक्षा कल्याणक स्थानों के नाम से संबोधित किया जाता है। यहाँ प्रभ वीर की प्राचीन प्रसन्नचित्त प्रतिमा अति ही कलात्मक व दर्शनीय है । प्रभु प्रतिमा 2500 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। तलहटी से 5 कि.मी. दूर पहाड़ पर प्राकृतिक दृश्य अति मनोहारी है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये 100 कमरों की सुविधायुक्त धर्मशाला है, जहाँ भोजनशाला की सुविधा प्रातः 12 बजे से 5 बजे तक है। पहाड़ पर पानी की पूर्ण सुविधा है। मूलनायक : श्री सुविधिनाथ भगवान। श्री काकन्दी तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ काकन्दी ग्राम में स्थित है। निकटतम रेल्वे स्टेशन जमुई है जहाँ से टैक्सी, बस आदि की सुविधा है। जमुई यहाँ से 17 कि.मी. दूर है। लखीसराय यहाँ से 20 कि.मी., पेढ़ी : 00 कि.मी., क्षत्रियकुंड 40 कि.मी. तथा भागलपुर 100 कि.मी. दूर है। शिखरजी श्री जैन श्वेताम्बर से यहाँ की दरी 170 कि.मी. है। क्षत्रियकंड ठहरकर यहाँ आना ठीक रहता है। वहाँ सभी सोसायटी. प्रकार की व्यवस्थाएँ हैं। तीर्थ काकन्दी परिचय : यहाँ की प्राचीनता का इतिहास नवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ भगवान से प्रारम्भ होता ग्राम पोस्ट काकन, है। श्वेताम्बर मान्यतानुसार भगवान श्री सुविधिनाथ के चार कल्याणक-च्यवन, जन्म, दीक्षा वाया जमई (बिहार) व केवलज्ञान इस पावन भूमि में हुए। सुविधिनाथ भगवान को पुष्पदन्त भी कहते हैं। मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा अति कलात्मक है। मन्दिर की कलात्मकता भी दर्शनीय है। पूजा का समय प्रात: 9 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही 10 कमरों की धर्मशाला है। 2010_03 www.jainelibre, 27 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जिला नवादा श्री गुणायाजी तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर भन्डार, श्री गुणायाजी तीर्थ गाँव गुणायाजी, डाकघर नवादा, जिला नवादा (बिहार) फोन : 06324-24045 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री महावीर स्वामी। मार्गदर्शन : यह तीर्थ नवादा स्टेशन से 2 कि.मी. दूर गुणायाजी गाँव में मुख्य मार्ग से 200 मीटर दूर सरोवर के मध्य स्थित है। नवादा से बस, ऑटो, तांगा तथा रिक्शों की सुविधा है। मन्दिर तक बस व कार जा सकती है। यहाँ दिन में बसों का निरन्तर आवागमन रहता है। यहाँ से पावापुरी 23 कि.मी. दूर है परिचय : राजगृही के इतिहास में गुणशील चैत्य का वर्णन आता है। यह तीर्थ क्षेत्र भी भगवान महावीर के समय का है। गुणायाजी ही गुणशील चैत्य का अपभ्रंश माना जाने के कारण यहाँ की विशेष महत्त्वता हो जाती है। क्योंकि भगवान महावीर का अनेकों बार गुणशील चैत्य में ठहरने का उल्लेख आता है। श्री गौतमस्वामी जी को केवलज्ञान भी यहीं हुआ माना जाता है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक दिगम्बर मन्दिर भी है। इस जल मन्दिर की निर्माण शैली व मन्दिर के सामने स्थित तोरण की कला दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। जिला नालन्दा मूलनायक : श्री महावीर भगवान, चरण पादुका । मार्गदर्शन : यह तीर्थ पावापुरी रोड स्टेशन से 10 कि.मी. दूर पावापुरी गाँव के बाहर सरोवर के श्री पावापुरी तीर्थ । मध्य स्थित है। पटना से 80 कि.मी. पटना-रांची मार्ग पर पावापुरी स्थित है। राजगिरी से बख्तियापुर रेलमार्ग द्वारा पावापुरी पहुँचा जा सकता है। राजगिरी से पावापुरी 31 कि.मी., पेढ़ी : नालन्दा से 23 कि.मी., बख्तियारपुर से 23 कि.मी. है। यहाँ कोडरमा, नवादा, गया, पटना, 1. श्री जैन श्वेताम्बर मोकामा, बख्तियारपुर आदि स्थानों से भी बसों का साधन है। भन्डार ताथ पावापुरा परिचय : यह क्षेत्र प्राचीन काल में मगध देश के अन्तर्गत एक शहर था। आज से लगभग 2500 डाकघर पावापुरी, वर्ष पूर्व भगवान महावीर चम्पापुरी से विहार करके यहाँ पधारे व राजा हस्तिपाल की जिला नालन्दा रज्जुगशाला में ठहरे। भगवान के ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्धन ने अन्तिम देशना स्थल एवं अन्तिम (बिहार) संस्कार स्थल पर चौंतरे बनाकर प्रभु के चरण स्थापित किये जो आज के गाँव मन्दिर व 2. श्री दिगम्बर तीर्थ जल मन्दिर माने जाते हैं। जल मन्दिर में चरण पादुकाओं पर कोई लेख उत्कीर्ण नहीं है। कमेटी पावापुरी समय-समय पर इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ। दीपावली त्यौहार मनाने की प्रथा महावीर भगवान के निर्वाण दिवस से यहीं से प्रारम्भ हुई। गाँव का मन्दिर व जल मन्दिर इन दो डाकघर पावापुरी, श्वेताम्बर मन्दिरों के अतिरिक्त वर्तमान में यहाँ पर पुराना समवसरण मन्दिर, महताब बीबी जिला नालन्दा मन्दिर व नया समवसरण मन्दिर हैं। इनके अतिरिक्त जल मन्दिर के पास ही एक विशाल (बिहार) दिगम्बर मन्दिर है। कमल के फूलों से लदालद भरे सरोवर के बीच जल मन्दिर का दृश्य व निर्माण शैली का सौन्दर्य वर्णनातीत है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए गाँव के मन्दिर व नये समवसरण श्वेताम्बर मन्दिर में सुविधा है। दिगम्बर मन्दिर के निकट ही दिगम्बर धर्मशाला भी है। कुण्डलपुर तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर भंडार तीर्थ कुण्डलपुर, पो. नालन्दा-803 111 (बिहार) मूलनायक : श्री ऋषभदेव भगवान । मार्गदर्शन : यह तीर्थ नालन्दा से 2 कि.मी. दूर कुण्डलपुर में स्थित है। नालन्दा, राजगिरी बख्तियारपुर रेलमार्ग पर स्थित है। राज्य के विभिन्न स्थलों से यहाँ बस सेवा उपलब्ध है। पावापुरी यहाँ से 23 कि.मी. दूर है। राजगिरी से यह 14 कि.मी., बिहार शरीफ से 14 कि.मी., बख्तियारपुर से 40 कि.मी., पटना से 85 कि.मी. दूर है। गया यहाँ से 80 कि.मी. दूर है। स्टेशन पर ऑटो, रिक्शा, ताँगा उपलब्ध रहता है। तीर्थ पर भी टैक्सी मिल जाती है। Ja28dication International 2010_03 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य सर्व सिद्धिदाता गणधर इन्द्रभूति गौतम एवं नके टो भाई अगिभति एवं वायभति गणधरों की जन्मभूमि श्री कण्डलपर जन ताथ स्थल धर्म एवं संस्कृति की एक महान धरोहर है। इसी पावन भूमि पर भगवान महावीर स्वामी ने पहला, सातवां और नौवां चातुर्मास किया तथा अनेकों बार पधारे। कुण्डलपुर जैन तीर्थ स्थल नालन्दा जिला में नालन्दा विद्यापीठ के प्राचीन अवशेष से उत्तर तथा बड़गाँव सूर्य मंदिर से आधा किलोमीटर दक्षिण में अवस्थित है। कुण्डलपुर का प्राचीन नाम गुरूवर (गुब्बर) ग्राम था। प्रथम चातुर्मास के समय में भगवान महावीर ने इस गाँव की परिक्रमा की थी। परिक्रमा के समय अनेक कुण्ड पाये गये। इसलिए इस तीर्थ का नाम "कुण्डलपुर" रखा गया। संवत् 1964 ई. में यहाँ कुल छोटे-छोटे सोलह जिनालय थे, परन्तु आज दो जिनालय ही प्रतिष्ठित हैं। एक को पुराना जिनालय तथा दूसरे को नया जिनालय के नाम से जाना जाता है। नया मंदिर "आनन्द जी कल्याण जी पेढ़ी" द्वारा मनोरम पीत पत्थरों से शिखरबंद शास्त्र सम्मत् तरीके से बनाया गया है, जो कला का एक अनुपम नमूना है। इस नये मंदिर में मूलनायक भगवान ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा करीब दो हजार वर्ष पुरानी है। इस प्रतिमा में ऋषभदेव के माथे पर इनकी माता मरुदेवी विराजमान है तथा जटा प्रदर्शित है। जैन धर्म में जटाधारी भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा का दर्शन एवं सेवा-पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। यह प्रतिमा भव्य, सरस एवं चमत्कारी है। कुण्डलपुर तीर्थस्थल पधारने वाले यात्रीगण मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा की भव्यता और दिव्यता का दर्शन कर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस नये मंदिर में भगवान ऋषभदेव के अतिरिक्त भगवान महावीर स्वामी, श्री शान्तिनाथ स्वामी, श्री पार्श्वनाथ स्वामी, श्री अजीतनाथ स्वामी आदि की प्राचीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। इसी प्रकार पुराने मंदिर में गणधर गौतम स्वामी के प्राचीन मूलचरण हैं, जो लगभग दो हजार वर्ष पुराने है। इसके अतिरिक्त इस पुराने मंदिर में दादा गुरु के चरण एवं ग्यारह गणधरों के चरण प्रतिष्ठित हैं। इसी पुराने जिनालय की पावन भूमि पर गणधर गौतम स्वामी का जन्म हुआ था। कुण्डलपुर तीर्थ पर गुरु गौतम स्वामी की खास कृपा है। कहा जाता है कि यहाँ सच्चे मन से प्रार्थना करने पर तीर्थ यात्रियों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कुण्डलपुर जैन तीर्थ स्थल का पवित्र आध्यात्मिक वातावरण तथा सुन्दर बाग-बगीचे इस तीर्थ की सजीवता में चार चाँद लगा रहे हैं। पूजा का समय प्रातः 7 बजे से है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ 125 यात्रियों के ठहरने हेतु सुन्दर, सुविधायुक्त व्यवस्था है। नवनिर्मित इस धर्मशाला में सभी सुविधाओंयुक्त 8 कमरे हैं। वर्तमान में अस्थाई भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक: श्री राजगृही तीर्थ 1. विपुलाचल पर्वत-श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री चन्द्रप्रभ भगवान (दिगम्बर मन्दिर)। पेढ़ी: 2. रत्नगिरि पर्वत- श्री चन्द्रप्रभ पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री मुनिव्रतस्वामी भगवान, श्री जैन श्वेताम्बर कोठी पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। डाकघर राजगिरी, 3. उदयगिरि पर्वत-श्री पार्श्वनाथ भगवान, चरण पादुका (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री महावीर जिला नालन्दा-803 116 भगवान, खड्गासन (दिगम्बर मन्दिर)। (बिहार) 4. स्वर्णगिरि पर्वत-श्री आदिनाथ भगवान, चरण पादुका (श्वेताम्बर मन्दिर)। फोन : 06112-55220 श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। 2010_03 29 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका 5. वैभारगिरि पर्वत-श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। मार्गदर्शन : यह तीर्थ राजगिरि स्टेशन से 1 कि.मी. दूर राजगिरी के निकट पाँच पर्वतों पर स्थित है। स्टेशन पर टैक्सी, ताँगों व रिक्शों का साधन है। पटना से यह तीर्थ 100 कि.मी., गया से 65 कि.मी. दूर है। गया से बसों का आवागमन रहता है। कोलकाता के हावड़ा स्टेशन से राजगिरी ट्रेन द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। मुगलसराय, बिहार शरीफ, पावापुरी, नालन्दा से भी यहाँ ट्रेनें आती-जाती है। यहाँ से कोलकाता 525 कि.मी. दूर है। बनारस 250 कि.मी., बोध गया 75 कि.मी., सम्मेदशिखर 225 कि.मी., चम्पापुरी, भागलपुर 225 कि.मी., क्षत्रियकुंड 60 कि.मी., गुणायाजी 35 कि.मी., पावापुरी 35 कि.मी., लछुआड़ 90 कि.मी. तथा कुण्डलपुर 13 कि.मी. दूर है। प्रसिद्ध जैन एवं बौद्ध तीर्थ स्थल होने के कारण यहाँ सभी नगरों से बसों का आवागमन लगा रहता है। परिचय : यहाँ की प्राचीनता का इतिहास बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिव्रतस्वामी भगवान के समय से प्रारम्भ होता है। प्राचीन काल में इस नगरी को चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर, बसुमति, गिरिब्रज, क्षितिप्रतिष्ठ, पंचशैल आदि नामों से भी संबोधित किया जाता था। बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिव्रत स्वामी भगवान के चार कल्याणक इस पावन भूमि में हुए। राजगिरी गाँव में श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर हैं । वैभारगिरि पर्वत पर एक भग्न मन्दिर है जिसमें अनेक प्राचीन कलात्मक जिन प्रतिमाएँ हैं। भग्न मन्दिर की सारी प्रतिमाएँ वर्तमान में अपूजित हैं व पुरातत्व विभाग के अधीन है। यह मन्दिर आठवीं सदी का माना जाता है। श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीन प्रतिमाओं की कला अति दर्शनीय है। जरासंध की बैठक सप्तपर्णी गुफा आदि देखने योग्य है। 1. विपुलाचल पर्वत-इस पर्वत पर 555 पगथियां हैं। यहाँ पर श्री मुनि सुव्रत स्वामी का मन्दिर एवं अन्य जिनालय हैं जिनमें प्रभु महावीर स्वामी, चंद्रप्रभुजी तथा श्री ऋषभदेवजी के पगलिए हैं। मार्ग में अयमन्ता मुनि का मंदिर है। 2. रत्नगिरि पर्वत-इस पर्वत पर ऊपर जाने के मार्ग में खतरनाक वाडी होने के कारण लोग समह में यहाँ से गजरते हैं। उतरने का मार्ग अलग है। जिसमें 1277 पगथियां है। इस पर्वत पर श्री चंद्रप्रभु तथा श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमाएं तथा श्री नेमिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री पार्श्वनाथ तथा अभिनंदन स्वामी के पगथिए हैं। 3. उदयगिरि पर्वत-इस पर्वत पर 782 पगथियां हैं। इस पर्वत पर श्री सांवलिया पार्श्वनाथ जी का मन्दिर है। मूलनायक की प्रतिमा नीचे तलहटी में गाँव में मंदिर में विराजित है। 4. स्वर्णगिरी पर्वत-इस पर्वत पर 1064 पगथियां हैं । इस पर्वत पर श्री आदीश्वर प्रभु एवं श्री महावीर स्वामी की पगथियां हैं। इस पर्वत की यात्रा समह में करनी चाहिए। 5. वैभारगिरि पर्वत-इस पर्वत पर 531 पगथियां हैं। पांच मंदिर हैं जिनमें श्री महावीर स्वामी, श्री मनि सुव्रतस्वामी, श्री धन्ना शालीभद्र तथा गौतम स्वामी गणधरों की प्रतिमाएं एवं पगथियां हैं। इस पर्वत पर प्राचीन जैन मंदिर तथा सप्तपर्णी गुफा दर्शनीय है। पर्वत से उतरने पर गर्म जल के कुण्ड हैं जिन्हें ब्रह्मकुंड कहते हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए तलहटी में सुविधायुक्त श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला की सुविधा है। पहाड़ों पर व रास्ते में पानी आदि की कोई विशेष सुविधा नहीं है। धर्मशाला में 110 कमरे हैं। निकट में कई होटल एवं धर्मशालाएँ हैं। बाजार आदि भी निकट में ही है। दर्शनीय स्थल : राजगिरि ऐतिहासिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण नगर रहा है। मगध की राजधानी राजगृह थी। यहाँ अजातशत्रु ने अजातशत्रु दुर्ग बनवाया था। राजा श्रेणिक के समय में अनेक स्थल यहाँ आज भी दर्शनीय हैं। मणियार मठ (निर्मल कुंड), सुवर्ण भंडार-मगधराज बिम्बिसार का कोषागार, भगवान बुद्ध की तपस्या स्थली गृध्रकूट बेणु वन आदि। गाँव में श्वेताम्बर जैन मन्दिर, दिगम्बर जैन मन्दिर, बर्मी बुद्ध मन्दिर, जापानी बुद्ध मन्दिर भी दर्शनीय हैं। जापान के बौद्ध संघ ने भगवान बुद्ध के आदिमार्ग के 2500 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रत्नगिरी पहाड़ की चोटी पर विश्वशांति स्तूप का निर्माण कराया है। 30 2010 03 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका वीरायतन राजगिरी से कुछ ही दूरी पर 'वीरायतन' स्थित है। जहाँ पर श्री अमर मुनि जी की प्रेरणा से एक विशाल सेवा केन्द्र की स्थापना हुई। आचार्य चन्दना जी ने इस सेवा केन्द्र को अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित कर दिया है। यहाँ पर ठहरने व भोजन आदि की सभी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ का ब्राह्मी कला मन्दिर दर्शनीय है। यह पूरा केन्द्र ही अति मनोरम एवं दर्शनीय है। मूलनायक: श्री विमलनाथ स्वामी, पद्मासनस्थ । जिला पटना मार्गदर्शन : पटना साहेब स्टेशन से 2 कि.मी. तथा पटना जंक्शन स्टेशन से यह तीर्थ 10 कि.मी. दूर है। पटना साहेब से रिक्शा, ऑटो तथा पटना जंक्शन से टैक्सी, ऑटो रिक्शा का साधन श्री पाटलीपुत्र तीर्थ उपलब्ध है। यहाँ से गया 90 कि.मी., पावापुरी 80 कि.मी., राजगिरी 102 कि.मी. तथा . पेढी: वैशाली 54 कि.मी. दूर है। पटना से राज्य में सभी स्थलों के लिए नियमित बस सेवा की व्यवस्था है। पटना व हाजीपुर के बीच गंगा पर 3 कि.मी. लम्बा भारत का दीर्घतम पल गाँधी श्री पटना ग्रुप आफ ब्रिज बनने के कारण उत्तर बिहार अब पटना से सगमता से जड गया है। पटना देश के श्वेताम्बर टेम्पल्स कमेटी विभिन्न-विभिन्न प्रान्तों से सडक एवं रेल्वे मार्ग द्वारा जडा है। यहाँ वाययान सविधा भी बाड़ा गली, पटना सिटी उपलब्ध है। दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता वायुमार्ग द्वारा भी यहाँ से संपर्क में है। (बिहार)-800 008 परिचय : आज का पटना शहर प्राचीन काल में कुसुमपुर, पुष्पपुर आदि नाम से प्रचलित था। फोन : 0612-645777 इस नगर की स्थापना राजा उदयन ने की थी तत्पश्चात् महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त आदि पराक्रमी श्री स्थूलभद्र श्रेष्ठी सुदर्शन राजा यहाँ हए। ये सारे राजा जैन धर्मावलम्बी थे। वर्तमान में इस मन्दिर के अतिरिक्त एक तीर्थ जीर्णोद्धार ट्रस्ट, श्वेताम्बर मन्दिर, पाँच दिगम्बर मन्दिर, गुलजार बाग तालाब के किनारे सुर्दशन सेठ स्मारक कमलदह, व आर्य स्थूलिभद्रजी के स्मारक 5 एकड़ क्षेत्र में बने हुए हैं। जो अत्यन्त दर्शनीय हैं। इसी आगमकंआ-पटना मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान की एक प्राचीन प्रतिमा अति मनोरम है। दिगम्बर मन्दिर में भी प्रतिमाएँ अति सुन्दर दर्शनीय हैं। मन्दिर के निकट में गुरुगोविन्द सिंह जी का जन्म स्थान श्री दादावाड़ी जीर्णोद्धार गुरुद्वारा है। गंगा तट, गोलघर, अजायबघर, तारामण्डल, चिड़ियाघर एवं कुराल गार्डन भी। कमेटी, यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं। पटना साहेब स्टेशन के पास नवाब शहीद का मकबरा है। बगमपुर, पटना सिटा पटना के गुरुदेव नगर, बेगमपुर में 400 वर्ष प्राचीन श्री दादावाड़ी जैन मन्दिर भी दर्शनीय है। यहाँ मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि व जिनकुशलसूरिजी के चरण चिह्न विद्यमान हैं। ठहरने की व्यवस्था : वर्तमान में यहाँ ठहरने के लिए मन्दिर के प्रांगण में चार कमरे एवं एक हॉल की व्यवस्था है। मन्दिर के निकट ही होटल एवं बाजार आदि भी हैं। अभी यहाँ भोजनशाला एवं भाता की व्यवस्था नहीं है। डाक बंगला चौक में साधारण होटलों का जमवाड़ा है। शहर में अनेक धर्मशालाएँ एवं विभिन्न स्तर के होटल उपलब्ध हैं। जिला वैशाली मूलनायक : श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : वैशाली के निकटतम स्टेशन, मुजफ्फरपुर 34 कि.मी. तथा हाजीपुर 36 कि.मी. है। ' मुजफ्फरपुर के लिए दिल्ली, पटना, धनबाद, सोनपुर, टाटा नगर, कोलकाता से रेल सेवा उपलब्ध है। मुजफ्फरपुर से वैशाली के लिए बसें उपलब्ध हैं। कोलकाता से वैशाली सी. 686 कि.मी. है। गया से यह 310 कि.मी., वाराणसी से 480 कि.मी. है। पटना से बस , श्री वैशाली कुण्डलपुर द्वारा यह 54 कि.मी. दूर है। बसें लगभग 2 घन्टे लगाती हैं। तीर्थ क्षेत्र कमेटी परिचय : कहा जाता है कि वैशाली की स्थापना इक्ष्वाकु और अलम्वषा के पुत्र विशाल राजा ने डा.-वैशाली-844 128 की थी। यह भी मत है कि कई गाँवों को सम्मिलित करके इसे विशाल रूप दिया गया (बिहार) _ 2010_03 www.jainelie/a31rg Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका जिससे इसका नाम वैशाली पड़ा। दिगम्बर मान्यतानुसार इस स्थान की मुख्य विशेषता यह है कि यह प्रभु वीर की जन्म भूमि मानी जाती है। प्रभु का ननिहाल यहाँ था। प्रभु की प्रतिमा की कला तो विशिष्ट है ही। यहाँ अनेक प्राचीन खण्डहर दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए एक जैन धर्मशाला व बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के आधीन एक इन्फारमेशन सेन्टर है जहाँ रूका जा सकता है। इसके अतिरिक्त बस स्टैण्ड के समीप ही टूरिस्ट गैस्ट हाऊस आदि है। मुजफ्फरपुर में अनेक होटल हैं। पटना से जैन तीर्थ स्थलों की सड़क मार्ग द्वारा किलोमीटर में दूरी स्थान सड़क कि.मी. 105 65 20 80 100 185 30 40 1. पटना से राजगृह (वाया बख्तियारपुर) 2. राजगृह से गया 3. राजगृह से गुणायाजी (वाया हिसुआ, नवादा) 4. पटना से पावापुरी (वाया बख्तियारपुर) 5. पावापुरी से गुणायाजी 6. पावापुरी से क्षत्रियकण्ड (वाया नवादा) 7. पावापुरी से कुंडलपुर (नालंदा) 8. कुंडलपुर (नालंदा) से राजगृह 9. पटना से बिहारशरीफ (वाया बख्तियारपुर) 10. पटना से गया (वाया जहानाबाद) 11. पटना से क्षत्रियकुण्ड (वाया लक्खीसराय, जमुई, कियूल) 12. लक्खीसराय से क्षत्रियकुण्ड 13. क्षत्रियकुण्ड से काकन्दी 14. पटना से काकन्दी (वाया जमुई, मुंगेर) 15. पटना से भागलपुर (चम्पापुर) 16. पटना से श्री सम्मेदशिखर (वाया पारसनाथ स्टे.) 17. पारसनाथ स्टे. से मधुबन (वाया इसरी) 18. पटना से सम्मेदशिखर (वाया गिरिडीह स्टे.) 19. गिरिडीह स्टे. से मधुबन 20. मधुबन से बराकर (ऋजुबालुका) 21. मधुबन से पावापुरी (वाया इसरी, नवादा, हिसुआ) 22. मधुबन से राजगृह (वाया इसरी, नवादा, हिसुआ) 23. मधुबन से लछुवाड़/क्षत्रियकुण्ड (वाया जमुआ एवं जमुई) 24. मधुबन से काकन्दी (वाया जमुआ) 25. मधुबन से चम्पापुर, भागलपुर (वाया चकाई) 26. पटना से कोलकाता 27. पटना से बनारस (वाया आरा, बक्सर, गाजीपुर) 28. पटना से गुलजारबाग स्टे. (स्थूलभद्र मन्दिर) 200 270 279 26 285 235 297 193 176 275 Jai 32 ufation International 2010_03 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ তিনি তা 2010_03 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिला मुर्शीदाबाद पश्चिम बंगाल 1. श्री अजीमगंज तीर्थ 2. श्री जियागंज तीर्थ 3. श्री कठगोला तीर्थ 4. श्री महिमापुर तीर्थ 1. कोलकाता जिला कोलकाता उड़ीसा जिला भुवनेश्वर 1. श्री खण्डगिरि-उदयगिरि तीर्थ 36 2010_03 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ अजीमगंज सिटी रेल्वे स्टेशन से लगभग 1 कि.मी. की दूरी पर स्थित है । मुर्शीदाबाद से यह लगभग 20 कि.मी. दूर पड़ता है। मुर्शीदाबाद से बहरमपुर 14 कि.मी. दूर है। स्टेशन पर ऑटो रिक्शा उपलब्ध रहता है। कोलकाता से यह तीर्थ लगभग 220 कि.मी. तथा भागलपुर से 230 कि.मी. दूर है। अजीमगंज के सभी 8 मंदिर एक दूसरे के समीप ही है। अजीमगंज से जियागंज तथा काठगोला 4 कि.मी. दूर स्थित हैं। दोनों ही तीर्थ गंगा के दूसरी ओर हैं। अजीमगंज से ट्रेन से खागड़ा घाट होकर रोड, बहरमपुर या सीधे-कोलकाता के लिए ट्रेन है। जैन व्यवसायियों के प्रयास से अजीमगंज आजकल एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन गया 1 परिचय : इस मन्दिर का निर्माण लगभग 125 वर्ष पूर्व हुआ बताया जाता है। बंगाल की पंचतीर्थी का यह भी एक मुख्य तीर्थ स्थान है । इस मन्दिर में नवरत्नों की ३० प्रतिमाएँ मनमोहक एवं दर्शनीय हैं। वर्तमान में इसके अतिरिक्त सात और मन्दिर हैं । भागीरथी गंगा नदी के किनारे बसे इस स्थल का दृश्य अत्यन्त सुन्दर है । विशाल प्राचीन इमारतें यहाँ के पूर्व वैभव की याद दिलाती हैं। इस मन्दिर में कसौटी पत्थर में बना बारसाख अति ही कलात्मक व सुन्दर है 1 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए यहां मन्दिर में ही धर्मशाला है। पूर्व सूचना देने पर भोजन व्यवस्था कर दी जाती है । यहाँ एक ही होटल है, होटल अन्नपूर्णा । मूलनायक : श्री सम्भवनाथ भगवान । मार्गदर्शन : यह तीर्थ जियागंज स्टेशन से 2 कि.मी. दूर मुख्य मार्ग पर जियागंज बाजार (महाजन पट्टी) में स्थित है। जियागंज को बालूचर भी कहते हैं । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। जियागंज स्टेशन पर ऑटो रिक्शा आदि साधन मिल जाते हैं। मुर्शीदाबाद से यह स्थान 5 कि.मी. तथा बहरमपुर से 20 कि.मी. दूर है। बहरमपुर के लिए कोलकाता से नियमित बस सेवा उपलब्ध है । बहरमपुर से जियागंज के लिए ट्रेकर, बस, ट्रेन आदि उपलब्ध हैं। जियागंज रेलवे स्टेशन पर कोलकाता आने-जाने वाली 15 से अधिक रेलों का ठहराव है। यह स्टेशन सियाल्दाह स्टेशन से 200 कि.मी. दूर है। यह नगरी जैन व्यवसायियों की व्यापार नगरी है। कोलकाता से जियागंज के लिए कोलकाता परिवहन की बस अपराह्न 1 बजे कोलकाता से निकलकर सायं 7 बजे जियागंज पहुँचती है। प्रातः 7.30 बजे यही बस वापिस कोलकाता के लिए रवाना होती है । परिचय : गंगा नदी के किनारे बसे जियागंज शहर के इस मन्दिर का निर्माण लगभग 150 वर्ष पूर्व हुआ प्रतीत होता है। लेकिन प्रतिमा प्राचीन है। बंगाल की पंचतीर्थी का यह एक तीर्थ स्थान है। वर्तमान में इस मन्दिर के अतिरिक्त चार और मन्दिर हैं। मन्दिर की निर्माण शैली व प्रभुप्रतिमा की कला दर्शनीय है। इसके निकट ही श्री विमलनाथ भगवान के मन्दिर में हाथ के बने प्राचीन चित्र कलात्मक हैं। शहर के दक्षिण में साधक बाग भी दर्शनीय है । यहाँ विष्णु व उनके विभिन्न अवतारों की 500 मूर्तियाँ व हजारों शालीग्राम का संग्रह उल्लेखनीय है । जियागंज और अजीमगंज की 4 कि.मी. परिधि में 14 ऐतिहासिक और प्राचीन विशाल मन्दिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए श्री विमलनाथ भगवान के मन्दिर के अहाते में धर्मशाला है । भोजनशाला व आयम्बिलशाला की सुविधा सूचना देने पर उपलब्ध हो जाती है । दिगम्बर जैन धर्मशाला भी है । बहरमपुर में छोटे-बड़े अनेक होटल उपलब्ध हैं 1 2010_03 पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा जिला मुर्शीदाबाद श्री अजीमगंज तीर्थ पेढ़ी : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन मन्दिर डाकघर अजीमगंज - 742 12: जिला मुर्शीदाबाद (पश्चिम बंगाल) श्री जियागंज तीर्थ पेढ़ी : श्री सम्भवनाथ भगवान जैन मन्दिर मेन रोड, जियागंज जिला मुर्शीदाबाद (पश्चिम बंगाल ) फोन : 03483-55775 www.jainelibrary.o Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा श्री कठगोला तीर्थ पेढ़ी: श्री आदिनाथ भगवान जैन मन्दिर कठगोला, डाकघर नसीमपुर, राजबाटि-342 160 जिला मुर्शीदाबाद (पश्चिम बंगाल) जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ जियागंज स्टेशन से लगभग 3 कि. मी. दूर बरहमपुर मार्ग पर नसीमपुर में सुन्दर बगीचे के मध्य स्थित है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। अजीमगंज यहाँ से 4 कि.मी. दूर है। परिचय : वि. सं. 1933 में बाबू लक्ष्मीपतसिंह ने अपनी मातुश्री महेताब कुंवर से प्रेरणा पाकर विशाल उद्यान के बीच इस भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया था। इस दो मील विस्तार वाले मनोरम उद्यान में हर वस्तु की निर्माण शैली अत्यन्त सुन्दर व दर्शनीय है। सुन्दर सरोवर के सन्मुख स्थित इस मन्दिर में विभिन्न प्रकार की कलात्मक चीजें नजर आती हैं। पाषाण में निर्मित कला का यह अद्वितीय नमूना है। संगमरमर से बना यह नक्काशीदार मंदिर अपनी अदभुत विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। ठहरने की व्यवस्था : जियागंज धर्मशाला में ठहरकर यहाँ दर्शनार्थ आना ही सुविधाजनक - श्री महिमापुर तीर्थ पेढ़ी : श्री जगतसेठ जाड़ी, जिला मुर्शीदाबाद (पश्चिम बंगाल) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ जियागंज स्टेशन से 4 कि.मी. दूर महिमापुर में स्थित है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती है। परिचय : जगतसेठ ने विदेशी कसौटी के पाषाण से भव्य मन्दिर का निर्माण गंगा नदी के किनारे करवाया था। नदी में बाढ़ आ जाने के कारण मन्दिर को स्थानान्तर किया गया व उन्हीं पाषाणों से वि. सं. 1975 में उनके वंशज श्री सौभाग्यमलजी द्वारा मन्दिर का निर्माण करवाकर वही प्राचीन प्रतिमा इस मन्दिर में पुनः प्रतिष्ठित करवाई गई। बंगाल की पंचतीर्थी का यह भी एक मुख्य स्थान है। महिमापुर में नवाब मुर्शिदकुली की पुत्री आजिम उन्नीमा की समाधि है। ठहरने की व्यवस्था : जियागंज धर्मशाला में ठहरकर यहाँ दर्शनार्थ आना ही सुविधाजनक उपरोक्त चारों तीर्थ एक दूसरे के निकट ही हैं एक दूसरे से 4-4 कि.मी. के अंतराल पर स्थित इन तीर्थों पर आने के लिए बहरमपुर उतरकर वहाँ से टैक्सी आदि लेकर आना ही सुविधाजनक होता है। बहरमपुर, मुर्शीदाबाद नवाब मुर्शीदकुली के काल की नगरी होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से भी दर्शनीय है। बहरमपुर में अनेकों होटल, बाजार आदि हैं। मुर्शीदाबाद रेल्वे स्टेशन से लगभग 2.5 कि.मी. दूर हजार दुआरी है। जिसमें 114 कमरे तथा 1000 दरवाजे हैं। यह अत्यन्त भव्य एवं कलात्मक है। हजारदुआरी से 1 कि.मी. उत्तर में जगत सेठ की कोठी से सटी हुई सड़क काठगोला तीर्थ तक गयी है। मुर्शीदाबाद में जयकाली मन्दिर (नूतन बाजार में) तथा बूड़ो शिव मन्दिर भी देखने योग्य है। मुर्शीदाबाद के सिल्क वस्त्र, हाथी दांत की बनी वस्तुएँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। JaiHEducation International 2010_03 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शीतलनाथ भगवान । मार्गदर्शन : पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में बद्रीदास टैम्पल स्ट्रीट (गौरी बाड़ी) में स्थित पार्श्वनाथ मन्दिर अथवा बद्रीदास टैम्पल हावड़ा रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर है । देश के लगभग सभी प्रान्तों से यह रेल्वे, वायु व सड़क मार्ग से सम्पर्क है । परिचय : हालांकि इस मन्दिर का नाम पार्श्वनाथ मन्दिर है परन्तु यहाँ मूलनायक श्री शीतलनाथ प्रभु हैं। सन् 1867 में सेठ बद्रीदास ने इस मन्दिर का निर्माण कराया था । यह मन्दिर अपनी अद्भुत निर्माण शैली व कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है । मन्दिर की नक्काशी बरबस ही सम्मोहित-सा कर देती है। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त सौम्य और मनभावन है । मन्दिर के चारों ओर बगीचों की प्राकृतिक दृश्यावली मन को प्रफुल्लित कर देती है । यहाँ बेलगछिया ब्रिज में निकट दिगम्बर जैन मन्दिर भी अत्यन्त मनभावन है । इनके अतिरिक्त यहां 6 श्वेताम्बर व 2 दिगम्बर मन्दिर हैं । दर्शनीय स्थल : कोलकाता ऐतिहासिक नगरी है इसका इतिहास 310 वर्ष प्राचीन है । भारत में केवल यहाँ पर ही भूमिगत ट्रेन ( ट्राम) चलती हैं। कोलकाता में अनेकों दर्शनीय स्थल हैं। यहाँ का कालीघाट का काली मन्दिर पूरे देश में सुप्रसिद्ध है। यहाँ की देवी काली मां अत्यन्त जाग्रत मानी जाती है। पास में ही भू- कैलास का मन्दिर भी दर्शनीय है। सिद्धेश्वरी मालवा मन्दिर, फिरंगी कालीबाड़ी भी दर्शनीय है। कोलकाता का म्यूजियम, जादूघर एशिया का विशालतम संग्रहालय है। चौरंगी के पार्क स्ट्रीट के पास यह स्थित है। जवाहर बाल भवन, बिड़ला प्लैनेटोरियम कोलकाता के विशिष्ट आकर्षण हैं। चिड़ियाघर, राष्ट्रीय पुस्तकालय, मार्बल पैलेस, कृत्रिम झील रविन्द्र सरोवर आदि स्थल भी दर्शनीय हैं। कोलकाता का विश्व प्रसिद्ध हावड़ा ब्रिज भी देखने योग्य है । यह विश्व का तीसरा विशालतम ब्रिज है । हुगली नदी पर निर्मित एक ब्रिज पर एक साथ आठ लाइन में गाड़ियाँ गुजर सकती हैं। वर्धमान, हावड़ा से 95 कि.मी. दूर दामोदर नदी के तट पर स्थित है । हावड़ा एवं सियालदाह से वर्धमान को निरन्तर रेल सेवा उपलब्ध है। भगवान महावीर ने सर्वप्रथम यहीं अपने धर्म का प्रचार किया था । ठहरने के लिए यहाँ होटल आदि सुविधा उपलब्ध हैं 1 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु यहाँ अनेकों होटल व धर्मशालाएँ हैं। 2010_03 पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा जिला कोलकाता कोलकाता पेढ़ी : श्री बद्रीदास जैन श्वेताम्बर मन्दिर पेढ़ी, 36, बद्रीदास टेम्पल स्ट्रीट, माणकतला (शामबजार) कोलकाता - 700004 (पश्चिम बंगाल ) फोन : 551408 www.jainelibrary35 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा | जैन तीर्थ परिचायिका जिला भुवनेश्वर मूलनायक : श्री आदिनाथ प्रभु पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : तीर्थ भुवनेश्वर स्टेशन से 10 कि.मी., भुवनेश्वर शहर से 5 कि.मी. दूर 37 मीटर ऊँचे श्री खण्डगिरि खण्डगिरि पहाड़ पर स्थित है। रेल्वे स्टेशन से 1 कि.मी. की दूरी पर बस स्टैण्ड है। स्टेशन उदयगिरि तीर्थ पर बस, ऑटो रिक्शा, रिक्शा व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। पेढ़ी : परिचय : कलिंग जनपद जैन-धर्म का प्रारम्भ से ही मुख्य केन्द्र रहा है। इस मन्दिर के निकट श्री खण्डगिरि-उदयगिरि तीन और मन्दिर हैं। इस खण्डगिरि पर्वत के सम्मुख ही उदयगिरि पर्वत है। इन दोनों पर्वत जैन दिगम्बर सिद्धक्षेत्र पर गुफाओं में प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। यहाँ गुफाओं में उत्कीर्ण अनेकों प्राचीन कार्यालय कलात्मक प्रतिमाएँ अत्यन्त ही दर्शनीय हैं। यहाँ का हाथी-गुफा का शिलालेख पुरातव की डाकघर खण्डगिरि दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है जो लगभग 2200 वर्ष प्राचीन माना जाता है। पहाड़ी से भुवनेश्वर जिला भुवनेश्वर (उड़ीसा ) शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। फोन : (0674) 470784 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए पहाड़ी की तलहटी में खण्डगिरि दिगम्बर जैन धर्मशाला है। बाजार, होटल आदि एक फांग की दूरी पर है। दर्शनीय स्थल : उड़ीसा नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता रहा है, परन्तु 1999 में आई चक्रवात के रूप में भीषण विपदा ने, इसके तटीय क्षेत्र पर, अपना क्रूर दृष्टिपात कर इसकी सौन्दर्यता और यहाँ के जनजीवन को तहस-नहस कर दिया। उड़ीसा में भुवनेश्वर में रेल्वे स्टेशन से 3.5 कि.मी. दूर विश्व-विख्यात लिंगराज मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। लिंगराज मन्दिर के निकट ही बिन्दु सरोवर है। सरोवर के तट पर अति प्राचीन अनन्त वासुदेव मन्दिर है। भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर स्थित केदार गौरी के तट पर मुक्तेश्वर मन्दिर है। इसके सामने परशुरामेश्वर मन्दिर है। यहाँ ब्रह्मेश्वर मन्दिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। भुवनेश्वर से 64 कि.मी. कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, अपनी अन्यतम शिल्पकला के लिए यह विश्व में प्रसिद्ध है। पुरी से इसकी मेरिन ड्राइव मार्ग से दूरी मात्र 35 कि.मी. है। यह मन्दिर एक रथ के आकार में बना है। ऐसा प्रतीत होता है मानों अश्व इस रथ को खींच रहे हों। भुवनेश्वर से 25 कि.मी. दूर कटक में चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मन्दिर दर्शनीय है। यहाँ धर्मशाला भी है। भुवनेश्वर से 60 कि.मी. दूरी पर स्थित पुरी हिन्दू तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित है। हिन्दुओं की आस्था का यह प्रमुख स्थान है। पुरी में जगन्नाथ देव का मन्दिर है। पुरी के लिए सभी प्रमुख शहरों से ट्रेन सेवा है। पुरी से राज्य के विभिन्न स्थानों के लिए बस सेवा उपलब्ध है। शहर में बस, रिक्शा, ऑटो टैक्सी सभी उपलब्ध हैं। जगन्नाथ मन्दिर के निकट ही इन्द्रद्युम्न सरोवर भी तीर्थ स्थली है। मार्केण्डेयेश्वर मन्दिर, शिवमन्दिर, लोकनाथ, साक्षी गोपल, चक्रतीर्थ, बड़े ठाकुर शनि आदि भी दर्शनीय स्थल हैं। ucation International 2010_03 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 मध्य प्रदेश सड़क मानचित्र * तीर्थ स्थल • दर्शनीय स्थल ग्वालियर उत्तर प्रदेश राजस्थान 1101 11-/ 2010_03 145 Har tet to scalc दग्यिो किलोमीटर में मानागिगि बितियार *हला शिवपुरी/... নিলামে बजगहो उदयपुर 96/ . गना/बौनजान */ 33ापत्रा . SUR भानपुग गिरि जावंग बांसवाड़ा गुजरात 158 xs/ -117 3 ./दवाम 500-/दवाम होशंगाबाद 21 वरीदा भी मिजवरकर मङला चन्धनदीन विन पचमढ़ी 188/ गवगन) भण्डया 18..तुल 15-चिटवाटा ---निवनी बालाघाट hun 116/ /30 1164 मागत अरिथः 1359 +भानुप्रतापपुर महाराष्ट्र Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिला छत्तरपुर जिला दमोह जिला दतिया जिला दुर्ग जिला धार जिला ग्वालियर मध्य प्रदेश 1. श्री रेषन्दीगिरि तीर्थ 2. श्री द्रोणगिरि तीर्थ 3. श्री खजुराहो तीर्थ 1. श्री कुण्डलपुर तीर्थ 1. श्री सोनागिरि तीर्थ 1. उवसग्गहरं तीर्थ 1. श्री तालनपुर तीर्थ 2. श्री माण्डवगढ़ तीर्थ 3. श्री मोहनखेडा तीर्थ 4. श्री भोपावर तीर्थ 5. श्री अमीझरा तीर्थ 6. श्री बदनावर तीर्थ 1. ग्वालियर 1. श्री थुवौनजी तीर्थ 1. श्री लक्ष्मणी तीर्थ 1. इन्दौर 1. श्री सिद्धवरकूट तीर्थ 1. परासली तीर्थ 1. बावनगजाजी तीर्थ 1. श्री बिम्बडोद तीर्थ 1. श्री मक्सी तीर्थ 1. श्री आहारजी तीर्थ 2. श्री पपोराजी तीर्थ 1. श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ 2. श्री अलौकिक पार्श्वनाथ तीर्थ 3. श्री उन्हेल तीर्थ जिला गुना जिला झबुआ जिला इन्दौर जिला खंडवा जिला मन्दसौर जिला निमाड़ ०००० NU AAN N०० जिला रतलाम जिला शाजापुर जिला टीकमगढ़ जिला उज्जैन 2010_03 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मध्य प्रदेश मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, खड्गासन मुद्रा में। जिला छत्तरपुर मार्गदर्शन : यह तीर्थ रेषन्दीगिरि गाँव के निकट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यह सागर से न 56 कि.मी. दूर है। बक्सवाहो यहाँ से 24 कि.मी. तथा शाहगढ़ 13 कि.मी. दूर है। दमोह । से बक्सवाहो 50 कि.मी. दूर है। सागर तथा दमोह दोनों स्थानों से बस व टैक्सी की सुविधा पेटी: उपलब्ध है। बांदा से यह स्थान 26 कि.मी. दूर है। टीकमगढ़ से अजनौर, घौरा, शाहगढ़ श्री सिद्ध-क्षेत्र रेषन्दी गिरि होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता है। तलहटी तक जाने के लिए पक्की सड़क है। तीर्थ स्थल (नैना गिरि) सागर-छत्तरपुर मार्ग पर स्थित है। डाकघर नैनागिरि जिला छत्तरपुर परिचय : यह तीर्थ पार्श्वनाथ भगवान के समय का बताया जाता है। लेकिन सदियों तक यह (मध्य प्रदेश) तीर्थ अलोप रहा व लगभग एक सौ वर्ष पूर्व चौधरी श्यामलालजी को आये स्वप्न के आधार पर इस पर्वत पर खुदाई करायी गयी। वहाँ पर एक प्राचीन मन्दिर मिला। कहा जाता है कि पार्श्वनाथ भगवान का समवसरण यहाँ भी हुआ था व समवसरण में स्थित पाँचों मुनियों की मूर्तियाँ भी इसी मन्दिर में हैं। यहाँ पर चमत्कारिक घटनाएँ भी अनेकों बार घटती रहती हैं। नदी की धारा के मध्य 50 फुट ऊँची एक पाषाण शिला है जिसे सिद्ध-शिला कहते हैं । यहाँ पर प्रति वर्ष मिगसर शुक्ला 11 से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला होता है। इसके अतिरिक्त पहाड़ी पर 35 तलहटी में 15 मन्दिर हैं। विक्रम के 12 वीं शताब्दी की भूगर्भ से प्राप्त प्राचीन प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में ठहरने के लिए 3 धर्मशालाएँ हैं, जहाँ पानी, बिजली व बर्तन की सुविधाएँ हैं। मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। श्री द्रोणगिरि तीर्थ मार्गदर्शन : यह द्रोणगिरिसन्थप्पा नामक पहाड़ पर स्थित है। यहाँ से हरपालपुर 89 कि.मी. तथा पेढ़ी : सागर 110 कि.मी. हैं। इन स्थानों से टैक्सी और बस की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। तलहटी श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र तक पक्की सड़क है। तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई 1.0 कि.मी. है। पहाड़ चढ़ने के लिए। द्रोणगिरि ट्रस्ट सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। डाकघर द्रोणगिरि, परिचय : यह तीर्थ अति प्राचीन है जिसकी प्राचीनता का निश्चित पता लगाना कठिन है। यहाँ जिला छत्तरपुर पर यह किंवदन्ति भी प्रचलित है कि श्री लक्ष्मण की प्राण-रक्षा के लिए श्री हनुमान जी (मध्य प्रदेश) इसी पर्वत से संजीवनी बूटी ले गये थे। इस पहाड़ पर 27 मन्दिर और भी हैं। यहाँ एक गुफा है जिसमें मुनिवर श्री गुरुदत्तजी ने कठोर तपस्या की थी। उनकी चरण पादुकाएँ इस गुफा में विद्यमान हैं। तलहटी में दो मन्दिर हैं। विविध प्रकार की जड़ी बूटियों से युक्त इस सुरभि से सुगन्धित पर्वत पर, विभिन्न जिनालयों का अनुपम दिव्य दृश्य सुरम्य लगता है। ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में धर्मशाला है जहाँ बिजली, पानी तथा बर्तनों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। 2010_03 www.jaire 37ary.org Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश | श्री खजुराहो तीर्थ पेढ़ी: श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, खजुराहो डाकघर खजुराहो जिला छत्तरपुर (मध्य प्रदेश) जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में। मार्गदर्शन : खजुराहो के लिए पूर्वी भारत से आने पर सतना होकर आना तथा उत्तर, दक्षिण एवं पश्चिम भारत से आने पर झाँसी होकर आना अत्यंत सुविधाजनक है। सतना से खजुराहो 117 कि.मी. दूर है। हरपालपुर यहां से 100 कि.मी., महोवा 63 कि.मी. व झांसी 176 कि.मी. दूर है। इन सभी स्थानों से खजुराहो के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। यह तीर्थ खुजराहो से लगभग एक किलोमीटर पूर्व की ओर खड़सदी के तट पर स्थित है। खुजराहो वायुमार्ग से भी जुड़ा है। परिचय : खजुराहो के जैन मन्दिरों का निर्माण, चन्देलों के राजत्वकाल में विक्रम की नवमी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक हुआ। मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा की पीठिका का संवत 1085 का लेख है। शिल्प और कला की दष्टि से खजराहो परी दनियाँ में प्रसिद्ध है। पत्थरों पर खुदी हुई यहाँ की कलात्मक प्रतिमाओं का अन्यत्र दर्शन दुर्लभ है। कुल 33 मन्दिर हैं जिनमें 22 शिखरयुक्त हैं। इस मन्दिर समूह के पश्चिम में निकट ही घण्टाई जैन मन्दिर के अवशेष हैं। उपरोक्त मन्दिरों के अतिरिक्त श्री शान्तिनाथ संग्रहालय है। उसमें अनेक सुन्दर कलाकृतियों का संग्रह है। श्री शान्तिनाथ मन्दिर अपनी विशालता, कलागत विशेषता तथा सौन्दर्य के कारण विश्व-विख्यात हैं। समूचे मन्दिर का निर्माण वास्तव में इस दक्षता के साथ हुआ है कि संभवत: स्थापत्य में इसके जोड़ की कोई रचना नहीं है, जो इस मन्दिर के अत्यन्त सुन्दर आकार और शिखरसंयोजन की सूक्ष्म विवेचना से युक्त कलागत समृद्धि की समानता कर सके। श्री शान्तिनाथ मन्दिर में भगवान शान्तिनाथ की मनोज्ञ प्रतिमा तो है ही। साथ ही साथ उसमें अन्य अनेक विशिष्ट कलाकृतियों के अतिरिक्त धरणेन्द्र-पद्मावती की एक अत्यन्त चित्ताकर्षक प्रतिमा है, जो अद्वितीय है। खजुराहो प्रमुख पर्यटन स्थल होने के कारण यहां सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। मन्दिरों की इस स्थली में लक्ष्मी मन्दिर, कण्डारीय महादेव मन्दिर, जगदम्बी मन्दिर, चित्रगुप्त मन्दिर, पार्वती मन्दिर, विश्वनाथ मन्दिर, नन्दी का मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर, चौसठ योगिनी मन्दिर, युलादेव मन्दिर और मंतगेश्वर मन्दिर अत्यंत दर्शनीय हैं। यहां की कला और शिल्पकला का सौंदर्य मंत्रमुग्ध सा कर देते हैं। खजुराहो के निकट जबारी मन्दिर तथा वामन मन्दिर भी दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है जहाँ बिजली, पानी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। खजुराहो में अनेकों होटल, धर्मशालाएँ, गैस्ट हाउस उपलब्ध है। अनेकों रैस्टोरेंट एवं कैफे हाउस हैं। जिला दमोह मूलनायक : श्री महावीर भगवान (बड़े बाबा), पद्मासनस्थ, सिंहासनयुक्त। ही मार्गदर्शन : यह तीर्थ तलहटी में बसे हुए कुण्डलपुर गाँव से लगे हुए कुण्डलाकार पर्वत पर श्री कुण्डलपुर तीर्थ स्थित है। यह दमोह से 35 कि.मी. तथा हट्टा से 16 कि.मी. दूर है। स्टेशन से बस और पेढ़ी : टैक्सी की सुविधाएँ हैं। धर्मशाला तक पक्की सड़क है। सागर से दमोह 87 कि.मी. तथा श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र जबलपुर से 106 कि.मी. दूर है। कुण्डलपुर परिचय : तीर्थ बहुत प्राचीन है जिसकी प्राचीनता का पता लगाना कठिन है। इस तीर्थ का उद्धार डाकघर कुण्डलपुर वीर निर्वाण सं. 2017 में हुआ था, ऐसा उल्लेख है। पद्मासन में इतनी प्राचीन भव्य व विशाल तहसील हटा श्री महावीर भगवान की प्रतिमा संभवतः अन्यत्र कहीं नहीं है। यह प्रतिमा बड़े बाबा के जिला दमोह (मध्य प्रदेश) नाम से जानी जाती है। इस मन्दिर के अतिरिक्त पहाड़ पर 46 और मन्दिर हैं तथा तलहटी 38 _ 2010_03 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका में 18 मंदिर हैं। यहां जैन जैनेतर लोगों की विशेष पूजनीय 'बड़े बाबा' की कलात्मक भव्य चमत्कारिक प्रतिमा अत्यंत मनोहारी और मन को मुग्ध करने वाली है। यह प्रतिमा 12' ऊँचाई की है। इसके दोनों ओर उसी ऊंचाई की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं हैं। पहाड़ की तलहटी में एक विशाल वर्धमान सागर नामक तालाब है जो इस स्थान की शोभा और भी बढ़ाता है। ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में विशाल धर्मशाला है जहाँ बिजली, पानी व बर्तनों की सुविधाएँ हैं। पहाड़ पर भी बिजली और पानी की सुविधा है। यहाँ से पहाड़ पर जाने के लिए पक्की सीढ़ियाँ हैं। मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में। जिला दतिया मार्गदर्शन : यह तीर्थ सनावल गाँव के निकट पहाड़ी पर स्थित है जहाँ से सोनागिरि रेल्वे स्टेशन की सोनागिरि तीर्थ 3 कि.मी. दूर है। ग्वालियर से तीर्थ स्थल की दूरी 70 कि.मी. है। तलहटी तक पहुँचने के । लिए पक्की सड़क है तथा पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्टेशन से तीर्थ पेढी : पर आने के लिए क्षेत्र की बस तथा अन्य साधन भी उपलब्ध रहते है। यहाँ से प्रातः श्री दिगम्बर सिद्ध क्षेत्र 8.15 बजे श्री महावीर जी के लिए बस जाती है। यहाँ से झांसी 40 कि.मी. दूर है। पावाजी संरक्षणी कमेटी यहाँ से 90 कि.मी., पपोरा जी 165 कि.मी. तथा आहार जी 175 कि.मी. एवं चन्देरी पोस्ट-सोनागिरि जिला दतिया-475886 175 कि.मी. दूर हैं। (मध्य प्रदेश) परिचय : प्राचीन काल में इसे श्रवणगिरि कहते थे। मन्दिर को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि फोन : 07522-2222 विक्रमी संवत् 335 के बाद अनेकों बार इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ होगा। अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का समवशरण यहाँ पर भी रचा गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। लगभग 108 अनेकों मन्दिर इस पहाड़ी पर हैं। पहाड़ी की तलहटी में 16 मंदिर हैं। इस रमणीक पहाड़ी पर मंदिर निर्माण कला का सौन्दर्य एवं शैली की विशेषता सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं सभी मन्दिरों की निर्माण शैली एक-दूसरे से भिन्न है। पहाड़ पर नारियल कुण्ड है जो एक शिला में नारियल के आकार का फटा हुआ है। एक और शिला है जिसे बजाने पर धातु जैसी स्वर ध्वनि पैदा होती है। इसी कारण उसे बजनी शिला कहते हैं। ठहरने वाले यात्रीगण यहाँ अपराह्न समय परिक्रमा करने जाते हैं जिसमें कई चरण पादुकाओं के भी दर्शन होते हैं। सायंकाल चन्द्रप्रभ भगवान की भव्य आरती होती है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु दिल्ली धर्मशाला, नरबसी वाली धर्मशाला, तेरापंथी कोठी, बीसपंथी कोठी, त्यागी व्रती आश्रम, लभेंचू भवन, भट्टारक कोठी आदि अनेकों सुविधायुक्त धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला प्रातः 10.30 से 12 बजे तक तथा सायं 5 से 6 तक चालू रहती है। 2010_03 www.jainelpr39org Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जिला दुर्ग श्री उवसग्गहरं तीर्थ पेढ़ी : श्री उवसग्गहरं पार्श्वतीर्थ पारस नगर, नगपुरा, दुर्ग (मध्य प्रदेश) जिला धार श्री तालनपुर तीर्थ पेढ़ी : श्री पार्श्वनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी तालनपुर, डाकघर आली जिला धार (मध्य प्रदेश ) श्री तालनपुर दिगम्बर मन्दिर पेढ़ी तालनपुर, डाकघर आली जिला धार (मध्य प्रदेश) श्री माण्डवगढ़ तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी माण्डवगढ डाकघर माण्डु, जिला धार (मध्य प्रदेश) 40 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान । मार्गदर्शन : दुर्ग से 5 कि.मी. दूर, दुर्ग - राजनांदगाँव मार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर यह सुन्दर भव्य तीर्थ नगपुरा ग्राम में स्थित है। परिचय : नगपुरा तीर्थ की प्राचीनता को 1985 से जीर्णोद्धार कर नवीन भव्य स्वरूप प्रदान किया गया। यहाँ भारत का प्रथम श्री उवसग्गहरं पार्श्व जिनालय श्री पार्श्व प्रभु की चरण पादुका युक्त प्राचीन मंदिर स्थल पर बना है। इसके अतिरिक्त उवसग्गहरं के रचियता श्री भद्रबाहु स्वामी तथा तीर्थपति के प्राण प्रतिष्ठाकारक श्री केशीस्वामी की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। यहाँ श्री कल्याण मन्दिर जिनालय, श्री नमिऊण पार्श्व जिनालय, श्री मणिभद्र एवं श्री पद्मावती मन्दिर, श्री चारित्र मन्दिर, श्री जिनकुशल सूरिजी दादावाड़ी, तीर्थंकर उद्यान एवं मेरू पर्वत अत्यन्त कलात्मक एवं दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने हेतु सभी सुविधायुक्त 4 धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला की व्यवस्था भी उपलब्ध है । मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर कुक्षी गाँव से 5 कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। कुक्षी से टैक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध है। परिचय : इस स्थान के प्राचीन नाम तारापुर, तारणपुर तथा तुंगियापत्तन आदि थे। नगर कुक्षी में श्री पार्श्वनाथ भगवान का श्वेताम्बर मन्दिर है जहाँ गोड़ी पार्श्व प्रभु की प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया था । यह प्रतिमा एक बावड़ी में से निर्वाण सं. 2397 विक्रम संवत् 1928 में चमत्कारिक घटनाओं के साथ प्रकट हुई थी । यह क्षेत्र अति प्राचीन है । यहाँ अनेकों प्राचीन बावड़ियाँ हैं और विशाल तालाब हैं। वर्तमान में इसके अतिरिक्त निकट ही एक दिगम्बर मन्दिर है । यह एक प्राचीन व ऐतिहासिक स्थान होने के कारण यहाँ पर अनेकों सुन्दर कलात्मक अवशेष मन्दिरों में से व गाँव के आस-पास जंगल में नजर आते हैं। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं । मूलनायक : श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : मुम्बई आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुजारी से 19 और इन्दौर से 95 कि.मी. दूर माण्डु स्थित है। निकटतम रेल्वे स्टेशन मऊ (66 कि.मी.) तथा इन्दौर हैं। दोनों स्थानों से माण्डु लिए नियमित बस सेवाएँ हैं। रतलाम यहाँ से 105 कि.मी. दूर है। माण्डु से प्रात: 5.30 बजे भोपाल के लिए, प्रातः 7.15 एवं 11.30 व सायं 5 बजे इन्दौर के लिए, 3 बजे उज्जैन तथा धार के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ से धार (35 कि.मी.) होकर अहमदाबाद एवं बड़ौदा के लिए भी बस सेवा है। भोपाल से माण्डु 285 कि.मी. दूर है। यहाँ आटो रिक्शा आदि सवारी साधन उपलब्ध I परिचय : वीर वंशावली के अनुसार श्री संग्राम सोनी ने मक्षी में श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठापना करवायी। संभवतः विक्रम संवत् 1472 में यह तीर्थ पुनः सुसंपादित हुआ है। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका तत्पश्चात् और भी जीर्णोद्धार हुए हैं, ऐसा प्रतीत होता है। वीर निर्वाण की 18 वीं से 22 वीं शताब्दियों के अन्तर्गत यहाँ अनेकों शूर-वीर जैन मन्त्री तथा श्रावक हुए। उन साधकों की साधना आज भी जैन धर्म के इतिहास में अमर और अनुपम मानी जाती है । अनेक प्रमाणों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि एक जमाने में यहाँ पर, सात सौ जैन मन्दिर व पौधशालाएँ थीं तथा छः लाख से भी अधिक जैनों की महानगरी आबाद थी । यहीं श्री शान्तिनाथ भगवान का एक और पुरातन मन्दिर है । यह भारत में एक प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है जहाँ प्राचीन कला और सौन्दर्य के असंख्य अवशेष आज भी दिखायी देते हैं । यहाँ अशर्फी महल, बाज बहादुर का महल, नीलकंठ महल, हाथी महल तथा सागर तालाब पर इकोपोइंट दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिर के पास विशाल सुविधायुक्त धर्मशाला है । भोजनालय की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ होटल एवं धर्मशालाएँ भी उपलब्ध हैं । मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ राजगढ़ से 2 कि.मी. दूर स्थित है। निकटवर्ती स्टेशन मेघनगर यहाँ से 65 कि.मी. तथा दाहोद 100 कि.मी. दूर है। स्टेशन से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। टैक्सी भी उपलब्ध रहती है। राजगढ़ बस स्टैण्ड पर हर समय बसों का आवागमन विभिन्न स्थानों से होता रहता है। यहाँ से भोपावर तीर्थ 14 कि.मी., माण्डव 85 कि.मी. तथा लक्ष्मणी 100 कि.मी. दूर हैं। यहाँ आने के लिए रेल्वे स्टेशन रतलाम, बड़नगर, उज्जैन, महु, इन्दौर से, व्हाया बदनावर होकर, राजगढ़ व मोहनखेड़ा तीर्थ के लिए बस सर्विस उपलब्ध है। अहमदाबाद, बड़ौदा, हिम्मतनगर व नडियाद से यह तीर्थ बस द्वारा संपर्क में है। परिचय: आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के शुभ हाथों से वीर निर्वाण सं. 2409 के मिगशर शुक्ला सप्तमी के शुभ दिन श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी । आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने इस भूमि को देखकर बताया था कि इसका पुण्योदय होकर यहाँ एक महान तीर्थ बनेगा। प्रति वर्ष यहाँ कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा तथा पोष शुक्ला सप्तमी को मेले लगते हैं। यह आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज का समाधि स्थल है। तीर्थ स्थल ऐसे समतल एवं सुरम्य स्थान पर निर्मित हुआ है जिससे यहाँ के आन्तरिक एवं बाह्य दृश्य अतीव आकर्षक एवं मनोहर प्रतीत होते हैं। यह तीर्थ मालवा का शत्रुंजय है। यहाँ मूलनायक श्री आदिनाथ जी की प्रतिमा के अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएं भी दर्शनीय है । यहाँ आचार्य देव श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. एवं श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वर जी के समाधि मन्दिर हैं। यहां गुरुकुल विद्यालय एवं चिकित्सालय ट्रस्ट द्वारा संचालित है। T ठहरने की व्यवस्था : यहाँ 6 धर्मशालाएँ है जिनमें 400 कमरों की व्यवस्था है । यहाँ भोजनशाला एवं भाता दोनों व्यवस्था उपलब्ध है। भोजन का समय प्रातः 11 से 1 बजे तथा सायं 5 से 6 बजे तक है। 2010_03 मध्य प्रदेश श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पेढ़ी : श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी, श्री मोहनखेडा जैन तीर्थ पोस्ट राजगढ़ जिला धार - 454 116 (मध्य प्रदेश) फोन : (07296) 32225, 34369 www.jainelibrar4rg Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश | जैन तीर्थ परिचायिका श्री भोपावर तीर्थ मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में। मार्गदर्शन : यह तीर्थ भोपावर गाँव में मही नदी के निकट स्थित है। निकटतम रेल्वे स्टेशन पेढ़ी: मेघनगर 70 कि.मी. तथा रतलाम 100 कि.मी. दूरी पर हैं। भोपाल की यहाँ से दूरी श्री शान्तिनाथ जैन श्वे. 125 कि.मी. तथा इन्दौर रेल्वे स्टेशन से 80 कि.मी. है। इन स्थानों से बस एवं टैक्सी की मन्दिर ट्रस्ट सुविधा उपलब्ध है। राजगढ़ से यह तीर्थ 12 कि.मी. तथा सरदारपुर से 7 कि.मी. दूर पडता भोपावर, तहसील है। यहाँ से मोहनखेड़ा तीर्थ 14 कि.मी., माण्डव 80 कि.मी. तथा अमीझरा पार्श्वनाथ सरदारपुर 25 कि.मी. दूरी पर है। राजगढ़ व सरदारपुर से दिन भर बसों का आवागमन रहता है। तीर्थ जिला धार-454 111 (मध्य प्रदेश) पर पेढ़ी की जीप की व्यवस्था है। फोन : (07296) 66830, परिचय : इस क्षेत्र के संबंध में एक किंवदन्ति प्रचलित है कि इसका प्राचीन नाम भोजकूटनगर 66861; 32401 था। श्री रुक्मण कुमार ने अपनी बहिन राजकुमारी रुकमणी को श्री कृष्ण भगवान के द्वारा (राजगढ़ पेढ़ी अपहरण कर लेने पर श्री कृष्ण से यहीं पर युद्ध किया था। वर्तमान में इस मन्दिर के अहाते ऑफिस) में ही इसके पूर्व का मन्दिर भूगर्भ में रहने का संकेत मिलता है। श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिमा अतीव प्राचीन और श्री नेमिनाथ भगवान के काल की बताई जाती है। यहाँ पर प्रति वर्ष पोष कृष्ण दशमी को मेला लगता है। इस इलाके के भील लोगों में श्री शान्तिनाथ प्रभु, श्री काला बाबा व खामणा देव के नाम से प्रचलित हैं। इस तीर्थ स्थल पर अनेकों प्रकार के चमत्कार प्रायः होते रहते हैं। मन्दिर में काँच, सिपनी व मीनाकारी आदि का काम विभिन्न कलायुक्त, अति सुन्दर प्रतीत होता है। कलाकारों ने मन्दिर में कोई जगह खाली नहीं रखी। पूजा का समय प्रातः 7.30 बजे से सायं 4 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के ठहरने हेतु राजगढ़ में धर्मशाला की व्यवस्था है। भाता की व्यवस्था प्रात: 9 बजे तक है। भोजन प्रातः 11 से 2 बजे तक तथा सायं 5 से सूर्यास्त तक उपलब्ध होता है। श्री अमीझरा तीर्थ पेढ़ी : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ श्वेताम्बर मन्दिर। डाकघर अमीझरा जिला धार (मध्य प्रदेश) मूलनायक : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासन की मुद्रा में। मार्गदर्शन : यह तीर्थ अमीझरा गाँव के अन्तर्गत एक मोहल्ले में स्थित है। यहाँ से धार 35 कि.मी. तथा धार से इन्दौर 59 कि.मी. दूर है। इन्दौर खण्डवा से यहाँ के लिए बस व टैक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मन्दिर तक पक्की सड़क है। परिचय : अमीझरा का प्राचीन नाम कुन्दनपुर था। प्रतिमा पर अंकित लेख से ज्ञात होता है कि वीर नि. सं. 2017 माघ कृष्ण पक्ष के तृतीय दिवस को आचार्य श्री विजयसोमसूरि जी ने अपने सुहस्ते इस दिव्य व चमत्कारिक प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी थी। किसी समय भगवान की प्रतिमा से अमृत रुपी अमी असीम मात्रा में झरते रहने के कारण अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान कहने लगे। सिन्धिया नरेश ने प्रभु की चमत्कारिक घटनाओं से प्रभावित होकर इस गाँव को भी अमीझरा नाम से परिवर्तित किया। प्रतिमा असीम कलात्मक एवं सौन्दर्य के विविध तथ्यों से ओतप्रोत है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है जहाँ पानी और बिजली की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। Jai 42 ubation International 2010_03 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश श्री बदनावर तीर्थ पेढ़ी : श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर डाकघर बदनावर जिला धार-454 668 (मध्य प्रदेश) जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ विंध्य पर्वतमाला के पठार पर बदनावर गाँव में स्थित है। यहाँ से बड़नगर 13 कि.मी. तथा रतलाम 44 कि.मी. दूर है। यहाँ से बसों की सुविधा उपलब्ध हैं। बस स्टैण्ड से मन्दिर सिर्फ 2 फलांग दूर है। । मन्दिर तक कार जा सकती है। उज्जैन से यह स्थान 58 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : कहा जाता है लगभग 2250 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक के पौत्र श्री संप्रति राजा द्वारा इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा हई थी। मन्दिर भोयरे में है। अनेको बार जीर्णोद्धार होने का भी संकेत मिलता है। अंतिम जीर्णोद्धार यहाँ के श्रीसंघ द्वारा वि. सं. 1984 में पन्यासजी श्री मोतीविजय जी के सुहस्ते पुनः प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। यह अत्यन्त चमत्कारिक स्थल है, जब ही गत शताब्दियों में मन्दिरों पर अनेकों प्रहार होने पर भी इस प्रतिमा को कोई आँच नहीं आई। प्रति वर्ष भादरवा शुक्ला प्रतिपदा को जन्मवाचन के पश्चात् श्रावकगण बाजों-गाजों सहित प्रभु के दर्शनार्थ जाते हैं वह आरती उतारी जाती है। कहा जाता है उस समय भोयरे की दीवारों पर पानी की बूंदे प्रकट होती हैं। हमेशा भक्तजनों को प्रभु के तीन रूपबाल्यावस्था, युवावस्था व प्रौढावस्था के दर्शन होते हैं। मन्दिर के निकट ही एक और मन्दिर है जिसमें मणिभद्रस्वामी की मूर्ति है, वह लगभग 200 वर्ष प्राचीन बतायी जाती है। मन्दिर का नवनिर्माण हो जाने के कारण प्राचीन कला कम नजर आती है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए धर्मशाला है जहाँ बिजली, पानी की सुविधा उपलब्ध है। आगरा से 115 कि.मी. दूर अपने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। झाँसी से यह 69 कि.मी. दूर है। दिल्ली- जिला ग्वालियर भोपाल रेलमार्ग पर स्थित ग्वालियर पर दक्षिण भारत से दिल्ली जाने वाली सभी ट्रेनों का है। इन्दौर. मम्बई से दिल्ली (भोपाल होकर) जाने वाली टेने भी ग्वालियर रुककर ग्वालियर आगे बढ़ती हैं। ग्वालियर से आगरा, झाँसी, शिवपुरी, दिल्ली, खजुराहो, इन्दौर, उज्जैन के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। ग्वालियर का दुर्ग 5 कि.मी. लम्बा व 10 मीटर ऊँची प्राचीर से घिरा है। इसके दो प्रवेश द्वार हैं उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम में। दक्षिण-पश्चिम द्वार लश्कर की ओर है। लश्कर से प्रवेश करने पर रास्ते में जैन मन्दिर पहाड़ी को काटकर बनाए गये हैं। इन मन्दिरों की कला अत्यंत मनोरम और दर्शनीय है। यहाँ प्रभु आदिनाथ की 17 मीटर ऊँची भव्य प्रतिमा विराजमान है। निकट ही प्रभु नेमिनाथ की 10 मीटर ऊँची मनभावन प्रतिमा मन को असीम शान्ति प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त दुर्ग में सूरजकुंड, मस्जिद आदि दर्शनीय हैं। उत्तरपूर्व द्वार को गोयालियर द्वार भी कहते हैं। यहाँ से प्रवेश करते ही गुजारी महल आता है इसकी निर्माण कला मनलुभावन है। आगे चतुर्भुज मंदिर है। हस्ती द्वार से आगे मान मन्दिर पैलेस अपनी कलात्मक एवं उत्कृष्ट कारीगरी के कारण दर्शनीय है। दुर्ग के बाहर पुराने शहर में रेल्वे स्टेशन के सामने ग्वालियर का म्यूजियम भी कम दर्शनीय नहीं है। सिंधिया राजघराने के लिए नये शहर में बने जयविलास के संग्रह मन मुग्ध कर देते हैं। ग्वालियर में बना सूर्य मन्दिर अपना अलग ही आकर्षण रखता है। ग्वालियर प्रमुख औद्योगिक नगर होने के कारण यहाँ धर्मशालाओं, होटलों आदि सभी उपलब्ध हैं। शहर में सवारी साधन भी उपलब्ध हैं। 2010_03 www.jaineli 43. rg Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जिला गुना श्री थुवौनजी तीर्थ पेढ़ी: श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थुवौनजी डाकघर अशोक नगर जिला गुना (मध्य प्रदेश) | जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, खड्गासन। मार्गदर्शन : यह तीर्थ थुवौन गाँव के निकट नैसर्गिक वातावरण के मध्य लीलट नदी के किनारे स्थित है जहाँ से अशोक नगर रेल्वे स्टेशन 20 कि.मी. दूर है। बस की सुविधाएँ उपलब्ध है। मार्ग में गहन जंगल होने के कारण दिन में ही यात्रा करना उपयुक्त है। तीर्थ स्थल से लगभग 400 मीटर की दूरी पर लीलट नदी बहती है, जिसे प्रायः पैदल पार करके ही यहाँ पहुँचा जा सकता है। परिचय : सेठ श्री पाना शाह के द्वारा 12वीं शताब्दी में यहाँ मन्दिर बनवाने का उल्लेख है। अन्य मन्दिर इसके बाद क्रमश: बने हैं। इस भांति की बनावट के मन्दिर भारत में अन्यत्र नहीं मिलेंगे, जहाँ प्रतिमाएँ शिखर से बड़ी हो। प्रभु प्रतिमा का लगभग आधा भाग प्रवेश द्वार की सतह से नीचा है। कहा जाता है कि फाल्गुन, आषाढ, श्रावण तथा भादों माहों की अर्ध रात्रि में, मन्दिरों में कभी-कभी देवों द्वारा भक्ति से परिपर्ण. समधर गीतों की स्वर-लहरी सनायी देती है। इस मन्दिर के निकट ही 24 और जिनालय हैं। यहाँ स्थित सभी मन्दिरों की प्रतिमाएँ खड्गासन में, विभिन्न कलाओं का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला की व्यवस्था है, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध है। जिला झबुआ श्री लक्ष्मणी तीर्थ पेढ़ी: श्री पद्मप्रभ कल्याणजी श्वेताम्बर जैन पेढ़ी, लक्ष्मणी तीर्थ पोस्ट अलीराजपुर जिला झाबुआ (मध्य प्रदेश) मूलनायक : श्री पद्मप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ स्थान अलीराजपुर गाँव से 8 कि.मी. दूर खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है। यहाँ से आने-जाने के लिए बसों और टैक्सियों का साधन है। मन्दिर तक पक्की सड़क है। बड़ौदा से 142 कि.मी. दूर है। कुक्षी से 43 कि.मी. अलीराजपुर है। परिचय : यह तीर्थ लगभग 2000 वर्ष पूर्व प्राचीन माना जाता है। इस तीर्थ का अंतिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1994 में हुआ, प्रतिष्ठा आचार्य श्री विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी के कर-कमलों द्वारा मिगसर शुक्ला दशमी को सम्पन्न हुई। मन्दिर के भीतर भाग में श्रीपाल जीवनी के 137 कलापूर्ण, रंग-बिरंगे पट दर्शनीय हैं । मन्दिर के निकट ही आचार्य प्रवर श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का गुरु मन्दिर है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के पास ही ठहरने के लिए सुविधायुक्त धर्मशाला है। भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। जिला इन्दौर इन्दौर मध्य प्रदेश का प्रमुख औद्योगिक नगर इन्दौर 'लघु मुम्बई' के नाम से प्रसिद्ध है। इन्दौर देश के प्रमुख नगरों से रेल एवं सड़क मार्ग से जुड़ा है। रानी अहिल्याबाई ने इस नगर की स्थापना की। जवाहर रोड पर सेठ हुकुमचंद जैन मन्दिर काँच मन्दिर के रूप में विख्यात है। मन्दिर की सुन्दर काँच की नक्काशी मन को मुग्ध कर देती है। रजत वेदी पर प्रभु आदिनाथ, शान्तिनाथ भगवान व चन्द्रप्रभु भगवान की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। दूसरे तल्ले पर कांस्य प्रतिमाएँ विराजित हैं। शीशे में प्रतिबिम्बित होकर ऐसा प्रतीत होता है मानों चारो ओर प्रभु ही प्रभु हैं। इसके अतिरिक्त गीता भवन भी अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ सर्व धर्म समभाव का रूप दिखाई देता है। मूर्तियों के माध्यम से इसमें पौराणिक कहानियों को साकार किया है। यहाँ का लालबाग पैलेस, अन्नपूर्णा मन्दिर, मानिकबाग पैलेस, चिड़ियाघर, रजवाड़ा भी दर्शनीय हैं। 44 2010_03 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मध्य प्रदेश मूलनायक : श्री संभवनाथ स्वामी। जिला खंडवा मार्गदर्शन : यह तीर्थ नर्मदा एवं कावेरी नदी के संगम के पास ओंकारेश्वर तीर्थ के निकट पर्वत । श्रेणियों के मध्य एक समतल पर्वत शिखर पर स्थित है। यहाँ से बड़वाह 18 कि.मी. दूर श्री सिद्धवरकूट है। बड़वाह से तीर्थ मार्ग में चोरल नदी पर पुल बन जाने के कारण अब मार्ग सुविधाजनक तीर्थ हो गया है। बड़वाह से कार अथवा बस द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है। ओंकारेश्वर रोड स्टेशन से 8 कि.मी. दूर है। ओंकारेश्वर मन्दिर तक बस द्वारा पहुँचा जा सकता है। यहाँ से ऐती. नाव द्वारा तीर्थ पर पहुँचा जा सकता है। ओंकारेश्वर इंदौर से 77 कि.मी. तथा खण्डवा से श्री दिगम्बर जैन सिट क्षेत्र 60 कि.मी. है। ओंकारेश्वर से सनावद 18 कि.मी. दूर है। इन्दौर तथा खण्डवा से मिटा सिद्धवरकूट ओंकारेश्वर रोड के लिए नियमित बस सुविधा उपलब्ध है। इन्दौर-मऊ-खण्डवा रेलमार्ग सोसावा से भी ओंकारेश्वर रोड पहंच सकते हैं। (ओंकारेश्वर) परिचय : इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य चित्त को आकर्षित करता है। जैन शास्त्रों के अनुसार जिला खंडवा यह तीर्थ अति प्राचीन माना जाता है। श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमा पर विक्रम संवत (मध्य प्रदेश) 11 का लेख उत्कीर्ण हैं। इस मन्दिर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान की भव्य प्रतिमा विक्रम संवत् फोन : 07280-71229 1545 में श्री सोमसेन स्वामी जी द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी है। इस मन्दिर का पुनः जीर्णोद्धार विक्रमी संवत् 1951 में हुआ था। यहाँ पर वार्षिक मेला फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णिमा तक लगता है। यहाँ पर श्री सनत कुमार एवं मंधवा, दो चक्रवर्ती, वत्सराज आदि 10 कामदेव व अनेकों मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए थे। वर्तमान में इसके अतिरिक्त यहाँ दस मन्दिर, एक देहरी, एक छत्री मानस्तम्भ और 6 चैत्यालय हैं। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं व 3 गेस्ट हाउस हैं। जहाँ बिजली, पानी, बर्तन व ओढ़ने-बिछाने के वस्त्रों की सुविधाएँ हैं। ओंकारेश्वर में भी एक जैन धर्मशाला है। दर्शनीय तीर्थ : सुन्दर प्राकृतिक वातावरण में ओंकारेश्वर रोड से 9 कि.मी. दूर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अन्यतम-ओंकारेश्वर व मणिलेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर अत्यंत दर्शनीय हैं। श्रद्धालु यात्रिगण यहाँ 11 कि.मी. की परिक्रमा कर अपने को धन्य मानते हैं। परिक्रमा मार्ग में अनेकों देव-देवियों के मन्दिर हैं। नदी में मगरमच्छों के होने के कारण नदी में स्नान करना जानलेवा सिद्ध हो सकता है। यहाँ ठहरने हेतु मन्दिर कमेटी का गैस्ट हाउस तथा रैस्ट हाउस हैं। मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासन की मुद्रा में। जिला मन्दसौर मार्गदर्शन : मुम्बई-दिल्ली रेल्वे मार्ग पर स्थित शामगढ़ रेल्वे स्टेशन से 10 कि.मी. दूर पूर्व में । म श्री परासली तीर्थ परासली ग्राम में यह तीर्थ स्थित है। शामगढ़ से परासली तक पक्का सड़क मार्ग है। स्टेशन आपरासला तय से टैक्सी, बस आदि साधन उपलब्ध हैं। प्रातः 7 बजे से सायं 7 बजे तक प्रत्येक घन्टे में रोती. बसों का आवागमन होता रहता है। मन्दसौर यहाँ से 90 कि.मी. दूर है। श्री नागेश्वर तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर यहाँ से 47 कि.मी. दूर है। शामगढ़ रेल्वे स्टेशन पर पश्चिम एक्सप्रेस, जनता एक्सप्रेस, आदेश्वरजी तीर्थ पेढी निजामुद्दीन एक्सप्रेस, देहरादून एक्सप्रेस, अवध एक्सप्रेस, मथुरा-रतलाम-लोकल, स्वर्ण पोस्ट परासली तीर्थ मन्दिर एक्सप्रेस, फ्रंटियर मेल, गणगौर एक्सप्रेस, जयपुर-चेन्नई एक्सप्रेस तथा जयपुर- श्यामगढ़. जिला मन्दसौर बैंगलोर एक्सप्रेस आदि ट्रेनों का ठहराव है। सुवासरा रेल्वे स्टेशन से तीर्थ 12 कि.मी. दूर (मध्य प्रदेश)-458883 है। वाहन आदि स्टेशन पर उपलब्ध हो जाते हैं। फोन : 07425-32855 2010_03 www.jaine|b45.org Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : मन्दिर की प्रतिस्थापना वीर निर्वाण सं. 1157 माघ शुक्ला दशमी के दिन शाह गुलराज हंसराज बोहरा ने आचार्य प्रवर श्री उदयसागरजी के सुहस्ते करवाई थी। किंवदन्तियों के अनुसार यह तीर्थ अनेकों चमत्कारों का स्थल है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला अष्टमी व नवमी को यहाँ मेला लगता है। मंदिर के निकट ही श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर व एक दादावाडी है जिसमें श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी तथा दादा श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी की सुन्दर व प्रभावशाली प्रतिभा है। ठहरने की व्यवस्था : 35 कमरों की सुविधायुक्त धर्मशाला उपलब्ध है। आधुनिक सुविधायुक्त कमरों का भी यहां निर्माण हुआ है। हॉल भी उपलब्ध है। परम पूज्य पन्यास प्रवर श्री हर्षसागर जी म. सा. की प्रेरणा से विशाल भोजनशाला बनाई गयी है। यात्रियों के पधारने पर भाता व भोजन बनाया जाता है। शामगढ़ में स्टेशन रोड पर तीर्थ की ओर से धर्मशाला बनाई गयी है। जिला निमाड़ श्री बावनगजाजी तीर्थ पेढ़ी : श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चूलगिरी ट्रस्ट बावनगजाजी, पोस्ट बड़वानी - 451 551 जिला पश्चिम निमाड़ (मध्य प्रदेश फोन : 07290-22084 मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, खड्गासन । मार्गदर्शन : जंगल में सुरम्य सतपुड़ा पर्वत की उच्चतम चोटी चूलगिरि पर स्थित यह तीर्थ निकट शहर बड़वानी से 8 कि.मी. की दूरी पर है। बड़वानी खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है।। बड़वानी से ही पहाड़ की चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है जहाँ से 8.0 कि.मी. की दूरी पर चूलगिरि की तलहटी है। बड़वानी से चूलगिरी तक बढ़िया मार्ग है। तलहटी से 1.6 कि.मी. की दूरी पर तीर्थ स्थल है जहाँ 800 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यहाँ से पावागिरी 80 कि.मी., सिद्धवरकूट 180 कि.मी., तालनपुर 45 कि.मी., भाण्डवगढ़ 140 कि.मी. तथा पावागढ़ 220 कि.मी. दूर हैं। बड़वानी से तीर्थ के लिए प्रातः 6 बजे से सायं 7.30 बजे तक प्रत्येक 30 मिनट में बस उपलब्ध है। इन्दौर से यह तीर्थ स्थल 156 कि.मी. तथा खण्डवा से 180 कि.मी. दूर है। दोनों स्थानों से बस, टैक्सी आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह स्थल कुक्षी से 29 कि.मी. तथा आलीराजपुर से 72 कि.मी. दूर है। परिचय : पहाड़ पर अंकित शिला-लेखों और प्रतिमाओं की प्राचीन कलाकृतियों से इस तीर्थ की प्राचीनता अपने आप सिद्ध हो जाती है। श्री आदिनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा में, चूलगिरि के मध्य एक ही पाषाण में उत्कीर्ण इतनी भव्य रमणीक और आकर्षक प्रतिमा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में शायद ही कोई हो। पुराने जमाने में इस प्रदेश में एक हाथ को ही कच्चा गज मानते थे। प्रतिमा लगभग 52 हाथ होने के कारण बावनगजाजी कहने लगे होंगे। यह मूर्ति कुल 84 फुट ऊँची है। एक भुजा से दूसरी भुजा तक का विस्तार 26 फुट 6 इंच है। सिर का घेरा 26 फुट है। यहाँ महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार होता है। इस पर्वत पर 10 और प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। इनमें से एक प्रतिमा भगवान शान्तिनाथ की 4.0 मीटर (13 फुट, खड्गासन मुद्रा में) अति प्राचीन है। तलहटी में 21 मंदिर हैं। यहाँ की प्राचीनतम मूर्ति कला दर्शनीय है। इस पहाड़ पर से, सामने ही नर्मदा नदी कल-कल बहती दिखायी देती है। पूजा का समय प्रातः 6 से 8 बजे तक का है। ठहरने की व्यवस्था : क्षेत्र पर चार बड़ी धर्मशालाएँ व तीन गेस्ट हाऊस हैं जिनमें सभी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। बड़वानी में भी अच्छे होटल उपलब्ध हैं। क्षेत्र पर भोजनशाला प्रातः 10 से 6 बजे तक चालू रहती है। Jai 46ation International 2010_03 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मध्य प्रदेश मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। जिला रतलाम मार्गदर्शन : यह बिम्बडोद गाँव के पास स्थित है जो कि केशरियाजी के मन्दिर के नाम से भी | श्री बिम्बडोद तीर्थ प्रचलित है। यह रतलाम से 8 कि.मी. दूर स्थित है जहाँ से बस, टैक्सी, ताँगों इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। तीर्थ स्थान तक पक्की सड़क है। रतलाम, उज्जैन से 102 कि.मी. दूरी पेढ़ी : पर है। रेल्वे मार्ग द्वारा रतलाम गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से संपर्क श्री जैन श्वेताम्बर में है। प्रमुख स्टेशन होने के कारण यहाँ बस, टैक्सी, टैम्पो आदि सभी सवारी साधन मूर्तिपूजक जिनालय उपलब्ध हो जाते हैं। इन्दौर, उज्जैन, मन्दसौर आदि से यहाँ के लिए नियमित बस सेवाएँ मल्लिनाथ ट्रस्ट बोर्ड उपलब्ध हैं। मोती पूज्यजी का मन्दिर, परिचय : प्रतिमा की कलात्मक आकृति के दर्शन से ही यह प्रतीत होता है कि यह तीर्थ अति चौमुखीपुल, प्राचीन है। प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु की इतनी सुन्दर, भव्य व शान्त, बालू की बनी बिम्बडोद ग्राम प्रतिमा का अन्यत्र देखना दुर्लभ है। यहाँ हर वर्ष पौष व दशमी से अमावस तक मेला लगता डाकघर रतलाम है। यहाँ इस मन्दिर के अतिरिक्त और पाँच मन्दिर हैं। यहाँ का वातावरण अति मनोरम प्रतीत (मध्य प्रदेश) है। प्रभु प्रतिमा की कला विशिष्ट है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर एक विशाल धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, बर्तन व ओढ़ने बिछाने के वस्त्रों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। जिला शाजापुर मार्गदर्शन : यह तीर्थ ग्राम मक्सी के अन्तर्गत सुरम्य सरोवर के तट पर स्थित है। मक्सी गाँव , श्री मक्सी तीर्थ मम्बई-आगरा मार्ग पर उज्जैन से 38 कि.मी. व देवास से 32 कि.मी. है। मक्सी रेल्वे स्टेशन से मन्दिर 1.5 कि.मी. दूर है जहाँ से टैक्सी व तांगे की सुविधा सुबह से सायं उपलब्ध है। पेढ़ी : मन्दिर तक पक्की सड़क है। रात्रि में स्टेशन पर सवारी साधन अत्यंत कठिनाई से उपलब्ध हो पाते हैं। इन्दौर से यह तीर्थ 70 कि.मी. दूर है। शाजापुर यहाँ से 25 कि.मी. दूर है। मुख्य १. श्री आनन्दजी राज मार्ग पर होने के कारण तीर्थ पर बसों का निरन्तर आवागमन रहता है। यहाँ से पुष्पगिरि ___कल्याणजी पेढ़ी जैन श्वेताम्बर मन्दिर तीर्थ 70 कि.मी. गोम्मटगिरी-इन्दौर 78 कि.मी. तथा बनेडियाजी 78 कि.मी. दूर हैं। मक्सी २. श्री दिगम्बर जैन से उज्जैन इन्दौर, गुना, ग्वालियर के लिए प्रत्येक 10 मिनट में बसें उपलब्ध रहती हैं। अतिशय क्षेत्र मक्सी परिचय : इस प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति प्राचीन बताया जाता है। बडीयार देश के लीलाड़ा ग्राम व पोस्ट मक्सी, गाँव निवासी माण्डवगढ़ के खजाँची श्री संग्राम सोनी ने वि.सं. 1472 में इस मन्दिर का जिला शाजापुर निर्माण करवाया था व प्रतिष्ठा आचार्य श्री सोमसुन्दरसूरीश्वरजी के सुहस्ते सम्पन्न हुई थी। (मध्य प्रदेश) एक और मतानुसार मन्दिर अति प्राचीन बताया जाने के कारण हो सकता है खजांची संग्राम फोन : 07363-32028, सोनी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया हो। यहाँ पर चमत्कारिक घटनाओं की अनेकों 32214 किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक समय प्रभु के छत्र-धारक श्री धरणेन्द्र देव ने अपने फणों से दुग्ध धारा बहायी थी जिससे मन्दिर के मूल स्थान में दूध भर गया था। श्वेताम्बर व दिगम्बर बंधुगण अपनी-अपनी विधिपूर्वक बनाये हुए नियमानुसार पूजा करते हैं। वर्तमान में इसके निकट ही एक और दिगम्बर मन्दिर विद्यमान है। उसके मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ भगवान है। प्रभु प्रतिमा का शिल्प सौन्दर्य यात्रीगणों को निरन्तर आकृष्ट करता रहता है। रंग पंचमी पर प्रत्येक वर्ष 2 दिन के मेले का आयोजन होता है। मक्सी बड़ा जैन मन्दिर में दिगम्बर आमनाय से पूजन-प्रक्षाल का समय प्रात: 6 से 9 तक नियत है। 2010_03 www.jaind 47y.org Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश | जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही दिगम्बर व श्वेताम्बर धर्मशालाएँ हैं, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन आदि की सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्वेताम्बर धर्मशाला में भोजनालय की भी व्यवस्था है। क्षेत्र की भोजनशाला में सशुल्क भोजन व्यवस्था है। बाजार एवं होटल निकट ही है। जिला टीकमगढ़ मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा। के मार्गदर्शन : यह तीर्थ अहार गाँव के निकट मदनेस सागर एवं सुरम्य पहाड़ियों के मध्य स्थित श्री अहारजी तीर्थ है। यह स्थल बलदेवगढ़-छत्तरपुर मार्ग में टीकमगढ़ से 25 कि.मी. दूर है। इन स्थानों से पेढ़ी : टैक्सी और बसों की सुविधाएँ हैं। आखिर तक पक्की सड़क है। यहाँ से पपौराजी 30 कि.मी., श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि 58 कि.मी., खुजराहो 132 कि.मी., नैनगिरि 125 कि.मी. दूर है। यहाँ से निकटतम अहारजी, जिला टीकमगढ़ रेल्वे स्टेशन ललितपुर 83 कि.मी. तथा झाँसी 115 कि.मी. है। झाँसी पर सभी प्रान्तों से (मध्य प्रदेश) ट्रेनों का आवागमन रहता है। प्रत्येक गाड़ी का यहाँ ठहराव है। स्टेशन से टीकमगढ़ के लिए फोन : 07683-32345 बस सुविधा उपलब्ध है। सीधे तीर्थ के लिए भी बसें मिल जाती हैं। परिचय : प्राचीनकाल में मदनेसपुर, मदनेसागरपुर, वसुहारिकपुर तथा नन्दनपुर आदि नामों से यह तीर्थ स्थल प्रसिद्ध था। श्री पानाशाह के समय में अनेकों मुनिराजों का यहाँ आहार हुआ करता था। जिससे इसका नाम अहार पड़ा। अनेकों जिन मन्दिरों के अवशेष आज भी यहाँ के आसपास की पहाड़ियों पर पाये जाते हैं। कलाकार श्री पापट द्वारा निर्मित इस भव्य, शान्त प्रतिमा का प्रतिष्ठापन यहाँ के राजा श्री मदन वर्मा के शासन काल में सेठ रलहणजी ने विक्रम सं. 1237 में करवाया था। यहाँ शिलालेखों में जैन समाज की 32 अफ़्रजातियों का व भट्टारकों के शिष्य-प्रशिष्यों एवं आर्यकाओं की शिष्याओं-प्रशिष्यों का वि. सं. 1200 से 1607 तक का उल्लेख मिलता है। यहाँ पर अभी भी अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं। प्रति वर्ष मार्गशीर्ष शुक्ला 13 से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला होता है। इसी परकोटे में सात और मन्दिर हैं। प्रतिमा सुन्दर और कलात्मक है जिसे देखने पर ऐसा लगता है कि प्रतिमा पन्ने की बनी है। एक ही शिला में निर्मित दसवीं सदी का एक युगल मानस्तम्भ दर्शनीय है। मुख्य मन्दिर में पूजा का समय प्रातः 7 बजे से 11 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही सभी सुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है। भोजनशाला उपलब्ध है। समय प्रातः 10 बजे से सायं 5.30 बजे तक है। श्री पपोराजी तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ टीकमगढ़ से 5 कि.मी. दूर विशाल गगनचुम्बी शिखरोंयुक्त 108 मन्दिरों पेढ़ी: के साथ स्थित है। यहाँ से ललितपुर 57 कि.मी. व झाँसी 87 कि.मी. दूर है। इन जगहों से श्री दिगम्बर जैन अतिशय बस व टैक्सी की सुविधाएँ हैं। मन्दिर तक पक्की सड़क है। क्षेत्र, पपौराजी डाकघर पपौराजी, परिचय : कहा जाता है कि इसका प्राचीन नाम पम्पापुर था। तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान जिला टीकमगढ़ की प्राचीन प्रतिमा भोयरे में है जिस पर सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है। कहा जाता है रघुपति (मध्य प्रदेश) श्री रामचन्द्रजी ने अयोध्या से ओरछा के प्रवास काल में इन वनों में निवास किया था। यहाँ पर अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती आ रही हैं। इसी विशाल परकोटे में Jain 48ction International 2010_03 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका गगनचुम्बी शिखरों युक्त विभिन्न शैली के 108 मन्दिर हैं। यहाँ पर भोयरे में स्थित मूर्तियाँ प्राचीन, अति आकर्षक व सुन्दर हैं। एक ही स्थान पर इतने मन्दिरों का समूह दिव्य नगरी जैसा प्रतीत होता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिए 4 बड़ी धर्मशालाएँ हैं जहाँ पानी, बिजली व बर्तनों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। जिला उज्जैन मार्गदर्शन : यह तीर्थ उज्जैन शहर में क्षीप्रा नदी के निकट स्थित है। यहाँ से उज्जैन 1.6 कि.मी. दूर है जहाँ से टैक्सी, रिक्शों तथा ताँगों इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मन्दिर तक श्री अवन्ती पक्की सड़क है। उज्जैन-इन्दौर से 55 कि.मी. दूर है। यहाँ से माण्डु 146 कि.मी., धार पार्श्वनाथ तीर्थ 112 कि.मी., भोपाल 188 कि.मी., ओंकारेश्वर 129 कि.मी. दूर है। उज्जैन दिल्ली-इन्दौर, अहमदाबाद-वाराणसी और इन्दौर-बिलासपुर रेल मार्ग पर स्थित है। पेढ़ी: परिचय : इस नगरी के प्राचीन नाम अवन्तिका, पुष्कर-रजिनी आदि थे। जैन ग्रन्थानुसार भद्रा श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ सेठाणी के सुपुत्र अवन्तीसुकुमाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी से प्रतिबोध पाकर दीक्षा अंगीकार (जैन श्वेताम्बर पेढ़ी) की व जंगल में संथारे में रहते हुए तपश्चर्या में ही मुक्ति पद को प्राप्त हुए। उनके पुत्र श्री अनन्त पेठ : दानी दरवाजा महाकाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी के सदुपदेश से अपने पिताजी के स्मरणार्थ इस भव्य मन्दिर डाकघर उज्जैन का निर्माण करवाया। यह वृतांत वीर निर्वाण संवत् 250 का माना जाता है। समय-समय (मध्य प्रदेश) पर शासन प्रभावक आचार्य भगवन्तों ने अपनी अमूल्य शक्ति का सदुपयोग करके इस तीर्थ की महिमा बढ़ायी। विक्रम की सातवीं सदी में आचार्य श्री मानतुंग सूरिजी ने यहीं पर बृहद् राजा भोज को भक्तामर स्त्रोत्र की रचना द्वारा चमत्कार दिखाकर प्रभावित किया था। ग्याहरवीं सदी में श्री शान्तिसूरिजी विद्या प्रिय परमार वंशी राजा भोज की राज्य सभा में 84 वादियों को जीतकर यहीं पर सुसम्मानित हुए थे। जैन धर्म के प्रचार व प्रसार सम्बन्धी अनेकों घटनाएँ इस तीर्थ से जुड़ी हुई हैं। वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त अन्य 22 मन्दिर विद्यमान हैं। प्रभु पार्श्व की प्राचीन प्रतिमा अति ही सौम्य है। दर्शनीय स्थल : उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर प्रमुख मन्दिर महाकालेश्वर मन्दिर है। उज्जैन में इसके अतिरिक्त भी अनेकों मन्दिर हैं जिनमें गोपाल मन्दिर, चिन्तामणि गणेश मन्दिर, मंगल नाथ मन्दिर, हरसिद्धि मन्दिर, बड़ा गणेश मन्दिर तथा माता संतोषी का मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी और बिजली की सुविधाएँ हैं। शहर में अनेकों धर्मशालाएँ एवं होटल भी हैं। मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। श्री अलौकिक मार्गदर्शन : यह तीर्थ हसामपुरा गाँव के मध्यस्थ स्थित है। यहाँ से उज्जैन लगभग 11 कि.मी. पार्श्वनाथ तीर्थ दूर है जहाँ से बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। परिचय : मन्दिर में स्थित प्राचीन कलात्मक अवशेष से पता चलता है कि यह मन्दिर लगभग पेढ़ी : विक्रम की दसवीं सदी पर्व का होगा। बाहरवीं सदी की बनी धात की चौबीसी मन्दिर में श्री अलौकिक पार्श्वनाथ विद्यमान है। पनः जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1649 में होने का उल्लेख है। राजा विक्रमादित्य के जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी काल में उज्जैन नगरी का यह एक मोहल्ला था व राजा विक्रमादित्य का महल यहाँ पर था। हसामपुर, पोस्ट तालोदा, इसके निकट रानी का महल था जिसे आज रानीकोट कहते हैं। यहाँ अनेकों चमत्कारिक जिला उज्जैन (मध्य प्रदेश) 2010_03 www.jainelike49rg Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्य प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका घटनाएँ घटने के प्रमाण मिलते हैं। श्री पार्श्वप्रभु की प्रतिमा अलौकिक व कलात्मक है। प्रतिमा की हस्तमुद्रा के नीचे दो सर्प बने हैं जो अपने आपमें अद्वितीय है। 11वीं सदी का पूर्ण परिकर कलात्मक प्रस्तरखण्ड आदि दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के पास धर्मशाला है जहाँ पानी, बर्तन व बिजली की सुविधा उपलब्ध है। उज्जैन में अनेकों धर्मशालाएँ हैं। श्री उन्हेल तीर्थ पेढ़ी: श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ की पेढ़ी जिला उज्जैन-456 221 फोन : 07366-20258, 20237 मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ उन्हेल नगर के मध्य जैन मन्दिर गली में स्थित है। यहाँ से उन्हेल रेल्वे स्टेशन 9 कि.मी. दूर है जहाँ पर टैम्पो का साधन उपलब्ध है। यह उज्जैन से व्हाया भेरूगढ लगभग 30 कि.मी. दूर है। नागदा जंक्शन से उन्हेल 22 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ से प्रत्येक 15 से 20 मिनट पर उज्जैन-नागदा जंक्शन एवं जावरा के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ 30 कि.मी. तथा नागेश्वर तीर्थ (राजस्थान) यहाँ से 75 कि.मी. परिचय : जब नागदा में श्री जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया था उस समय चारों दिशाओं में तोरण द्वार बांधे गये थे तब एक तोरण इस स्थान पर भी बाँधा गया था। और यहाँ नगर बस जाने के परिणामस्वरूप इसका नाम तोरण पड़ गया था। वर्तमान नाम मुसलमान काल में परिवर्तित किया गया होगा ऐसा प्रतीत होता है। प्रतिमा की कलाकृति व मन्दिर में उपलब्ध 10वीं व 11वीं सदी के अवशेषों से यह प्रमाणित होता है कि यह तीर्थ दसवीं सदी पूर्व का है। इस तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार विक्रम सं.1700 में उन्हेल श्रीसंघ द्वारा करवाया गया था। यहाँ पर अनेकों तरह की चमत्कारिक घटनाएँ घटने के संकेत मिलते हैं। यहाँ प्रतिमा जी कामितपूरण श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ के नाम से भी पुकारी जाती है। प्रभु प्रतिमा की कला अद्वितीय है। सप्त-फणों के साथ दोनों ओर इन्द्र महाराज की प्रतिमाएँ हैं जो संभवत: अन्यत्र नहीं है। वर्तमान में मन्दिर का जीर्णोद्धार चालू है। पूजा का समय प्रातः 9 से 4 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है। निकट ही बाजार है। पूर्व सूचना देने पर यहाँ भोजन एवं भाता की व्यवस्था हो जाती है। 50 2010_03 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नागौर जिला पाली (राजस्थान) Map not to scale सड़क एवं रेल मानचित्र * तीर्थ स्थल • दर्शनीय स्थल पीपड रोड जोधपुर रायपुर 9 NATA ध्यावर + + जिला अजमेर जिला पाली सोजत रोड जिला अजमेर मारवाड़जा बावड़ी/ जालोर गुंदोज भीलवाड़ा जालोर को करेरा को 16 जिला राजसमन्द तखतगाह मांडेराव मादलाई / दिसूरी पाणेरावाचारमजामिन्की यायाम मुद्याला " महावीर मुमेर कि 16 मा मेवाड़ी कम्भलगद 5 राजसमन्द लेक राजनगररोली राजसमन्दी 15 सिरोही नाथद्वारा हल्दीघाटा. चित्तौड़गढ़ देनवाड़ा* एकलिंगजी उदयपुर दयपुर कोर शाजारस्थाना 2010_03 loyary.org Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारजी पाली पाली को कोरटा सुमेरपुर शिवगंज सिरोही सड़क मानचित्र * तीर्थ स्थल Map not to scale Distances in Kilometers जालोर को गमसिन ++++ जाव जालोर चामन्दी 31 सिरोही सिनेग S वीरवाड़ाNE ण्डवाड़ा जसवन्नपुरा लोटाना 7 tor-15 पिण्डवाड़ा कृष्णगंज मीरपुर कोज X लाज ANE पावापुरी/ दांतराई नितोडा धनारी जीरावला -गुलाबगंज दियाणा, P अनादमा * स्वरूपगंज अचलगह वरमाण “भाउन्ट आबून धवली कासीन्दा .भटाना दनाणा पालनपुर को मुंगथला THदेरणा उदयपुर आबूरोड t +++++++ +++ शवाजी गुजरात 2010_03 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मूलनायक : प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ । जिला अजमेर मार्गदर्शन : राजस्थान का प्रमुख नगर अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग न. 8 पर स्थित है। जयपुर से यह : 120 कि.मी. दर है. पष्कर तीर्थ यहाँ से 11 कि.मी. दर स्थित है। आब, उदयपर, जोधपर. अजमेर अजमर जयपुर, आगरा, दिल्ली, अहमदाबाद, मुम्बई सभी प्रमुख स्थानों के लिए यहाँ से नियमित बस सेवा है। रेलमार्ग द्वारा हावड़ा, दिल्ली, इन्दौर, हैदराबाद, चित्तौड़, आगरा, जोधपुर आदि सभी प्रमुख स्थानों से जुड़ा है। रेल्वे स्टेशन और बस स्टैण्ड के मध्य 2 कि.मी. की दूरी है। परिचय : राजस्थान की प्रमुख पर्यटन स्थली अजमेर ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थली दोनों के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ का प्रमुख दिगम्बर जैन मन्दिर सोनी जी की नसियाँ है। सुभाष बाग के निकट ही लाल पत्थरों से निर्मित यह जैन मन्दिर। इसे लाल मन्दिर भी कहते हैं। यह सुन्दर नक्काशी से अलंकृत है। हॉल के एक अंश में गिलट किये काठ के मॉडल में मानव जन्म के क्रमिक विकास और जैन पुराण को उत्कीर्ण किया गया है। दो पृथक्-पृथक प्रखण्डों में इसका निर्माण हुआ है। दोनों के प्रवेश द्वार अलग-अलग है। इसके एक भाग में तेरह द्वीप की रचना है जिनके ढाई द्वीप की रचना विस्तृत है। दूसरे भाग में अयोध्या एवं पंचकल्याण की भव्य रचना है। सिद्धकट चैत्यालय नसियाँ जी के नाम से प्रसिद्ध इस मन्दिर का निर्माण सेठ मूलचन्द सोनी ने सन् 1865 में करवाया था। उन्हीं के नाम पर इसे सोनीजी की नसियाँ कहा जाता है। मार्गदर्शन-महान चमत्कारी प्रथम दादागुरु आचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी का समाधि स्थल श्री जिनदत्त सरि अजमेर शहर के विनय नगर क्षेत्र में स्थित है। रेल्वे स्टेशन तथा बस स्टैण्ड से यह स्थल । 2 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बस स्टैण्ड एवं स्टेशन से यहाँ आने हेतु रिक्शा, ताँगा, टैक्सी आदि सभी साधन उपलब्ध हैं। पेढ़ी : परिचय-इस पावन प्राचीन तीर्थ का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। दादागुरु श्री जिनदत्त श्री जिनटन श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ सूरि जी का जन्म सन् 1076 में गुजरात के धोलका नगर में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की अल्पायु श्री जिनदत्त सूरि दादावाड़ी में ही दादा गुरु संयम पथ पर अग्रसर हुए थे। अपनी अध्यात्मिक शान्ति, संयम व तपोबल विनय नगर, के प्रभाव से दादा गुरुदेव ने अनेक राजपूत शासकों को भगवान महावीर का अहिंसा का अजमर-305 001 सिद्धान्त अपनाने हेतु प्रतिबोधित किया। सन 1155 में 79 वर्ष का अवस्था में दादागरु देव फोन : (0145) 423530%; अजमेर में स्वर्गलोकवासी हुए। उनके तपोबल के प्रभाव से अन्तिम समय में उनको ओढ़ाई 620357 गई चादर, चोलपट्टा व मुंहपत्ती स्वत: बिना जले अग्नि से बाहर आ गिरी, जिन्हें आज भी (भोजनशाला) जैसलमेर के ज्ञान भण्डार में एक कांच के सुरक्षित पेटिका में देखा जा सकता है। मन्दिर में प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी के पगलियाजी एवं सप्त धातु निर्मित प्रतिमा है। प्रभु विमलनाथ जी की मूर्ति भी है। तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा सुन्दर नैसर्गिक वातावरण में स्थित यह तीर्थ मन में आनन्द एवं शान्ति प्रदान करता है। ठहरने हेतु व्यवस्था-दादावाड़ी में यात्रियों के ठहरने हेतु सुव्यवस्थित धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। ठहरने हेतु यहाँ 52 कमरे हैं। ओढ़ने बिछाने हेतु सभी सामान उपलब्ध हैं। कार, बस आदि पार्किंग हेतु समुचित जगह उपलब्ध है। मन्दिर एवं धर्मशाला की सम्पूर्ण व्यवस्था श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा की जाती है। भोजनशाला में नि:शुल्क भोजन व्यवस्था है। इसका संचालन श्री जिनदत्त सूरि मण्डल दादाबाड़ी द्वारा किया जाता है। ___ 2010_03 www.jaina 51ry.org Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका दर्शनीय स्थल : रेल्वे स्टेशन के सामने मदर गेट पार कर 10/15 मिनट के पैदल रास्ते पर अजमेर का मूल आकर्षण ख्वाजा साहब की दरगाह है। इस्लाम धर्मावलम्बिओं के लिए भारत में यह सबसे पवित्र तीर्थस्थान है। इसके द्वार हर एक के लिए खुले हुए हैं। दरगाह से 5-7 मिनट के रास्ते त्रिपोलिया गेट पार करते ही दाहिनी ओर ढाई दिन का झोंपड़ा है। यह मुहम्मद गोरी की कृति है, जिसने इसे 1198 में बनवाया था। झोंपड़ा के सामने 3 कि.मी. लम्बा खड़ी चढ़ाई वाले डेढ़ घण्टे का रास्ता तय कर 2055 फीट की ऊँचाई पर तारागढ़ पहाड़ पर स्थित दुर्ग में पहुँचा जा सकता है। अकबर ने 1570 ई. में इसका निर्माण कराया था। शहर के मध्य, स्टेशन के निकट ही सफेद पत्थरों से निर्मित अंतिम मुगलकाल में निर्मित अब्दुल्ला खाँ का मकबरा दर्शनीय है। दो पहाड़ों के बीच लूनी नदी पर बांध बनाकर कृत्रिम झील अन्नासागर बनायी गयी है। सूर्योदय व सूर्यास्त के समय इसमें पड़ते इन्द्रधनुष का प्रतिबिम्ब मन को मोह लेता है। जहाँगीर ने इसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर झील के तट पर सुन्दर उद्यान दौलत बाग का निर्माण करवाया और शाहजहाँ ने 1637 में इसे मरमरी दीवारों पर चार सुन्दर छत्र और संगमरमर की प्राचीर बनाकर इसे और भी सुन्दर और मनोहारी कर दिया। खादिम टूरिस्ट बंगला से राजस्थान टूरिज्म का पर्यटन टूर पुष्कर, ढाई दिन का झोंपड़ा, म्यूजियम, दरगाह, जैन मन्दिर, दुर्ग, लेक आदि घुमाकर लाता है। यह टूर दिन में 2 बार है। पहला चक्र प्रात: 8.00 बजे से 1.00 बजे तक तथा दूसरा चक्र 2.00 से सायं 6.30 बजे तक होता है। स्टेशन से 5 कि.मी. दूरी पर अजय नगर में हाल ही में निर्मित श्री साई बाबा का मन्दिर भी अत्यन्त कलात्मक एवं दर्शनीय है। पुष्कर तीर्थ : विश्व पर्यटन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका यह हिन्दू तीर्थ अजमेर से 11 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में 1539 फीट की ऊँचाई पर है। अजमेर व पुष्कर के बीच नाग पहाड़ सीमा रेखा का काम करता है। अजमेर रेल्वे स्टेशन के पीछे गांधी भवन से बस पुष्कर जाती है। राज्य बस स्टैण्ड से भी पुष्कर के लिए बसें मिलती है। पुष्कर के दो विपरीत छोरों पर दो बस स्टैण्ड हैं। उचित होगा रेल्वे स्टेशन से बस द्वारा पुष्कर बस स्टैण्ड जाना इस मार्ग पर टैक्सी व ऑटो भी चलते हैं। इस मार्ग पर विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मन्दिर है। यहाँ अन्य मन्दिर भी हैं। इनकी संख्या 500 से अधिक है और पुष्कर में ठहरने हेतु कई धर्मशालाएँ हैं। यहाँ देशी एवं विदेशी पर्यटकों का बहुतायत आवागमन रहता है। पुष्कर में 52 घाट हैं। हालांकि इनमें उल्लेखनीय घाटों की संख्या 15 है। प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवम्बर) में यहाँ 10 दिनों तक मेला लगता है। अंतेड की माता का मन्दिर चारों ओर अत्यन्त रमणीक वातावरण से घिरा हुआ है। यहाँ प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन पर मेले का आयोजन होता है। अंतेड की माता के मन्दिर के निकट ही अजमेर के दिगम्बर जैन-सम्प्रदाय की छत्रियों एवं चबूतरों का भव्य दर्शन होता है। झील के दूसरी ओर सावित्री पहाड़ है, तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों को यह सीधा-सरल मन्दिर काफी प्रभावित करता है, बरबस अपनी ओर खींच लेता है। मन्दिर में सावित्री देवी की पूजा होती है। देवी सरस्वती की भी प्रतिमा है। मन्दिर में केवल महिलाओं को ही पूजा का अधिकार है। बस स्टैण्ड से थोड़ी दूर और आगे बढ़ने पर मगनी राम बांगड़ द्वारा निर्मित रंगनाथ मन्दिर पुष्कर का एक और आकर्षण है। इस मन्दिर की स्थापत्य-शैली में द्रविड़ीय छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। मन्दिर का सोने का ताड़गाछ भी दर्शनीय है। मन्दिर की शोभा अति मनमोहक है। Samucation International 2010_03 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका | अजमेर से 27 कि.मी. दूर किशनगढ़ का भी परिभ्रमण कर सकते हैं। किशनगढ़ कला व संस्कृति का पीठस्थान है। गुंतलाब लेक, फूल महल प्रासाद, दुर्ग, कृष्ण मन्दिर, मझोला प्रासाद आदि की प्रशस्ति आज समूचे विश्व में है। अजमेर ब्यावर मार्ग पर अजमेर से 30 कि.मी. दूर मांगलियावास गांव में मुख्य मार्ग से 1/2 कि.मी. अंदर कल्पवृक्ष दर्शनीय स्थल है। यहाँ 800 वर्ष प्राचीन दो कल्पवृक्ष अत्यंत दर्शनीय है। मुख्य मार्ग पर पुलिस स्टेशन के निकट से अंदर गांव के लिए मार्ग गया है। थोड़ा आगे जाने पर सीधे हाथ पर मुड़कर 200 मीटर दूर आगे बायीं ओर यह स्थल है। ऐसी किंवदती है कि 12 वर्ष में एक बार इन वृक्षों पर फल एवं श्वेत पुष्प लगते हैं। ठहरने की व्यवस्था : अजमेर शहर राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक होने के कारण यहाँ अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ हैं। बस स्टेशन के सामने राजस्थान टूरिज्म का होटल खादिम, सावित्री, कन्या विद्यालय रोड, अजमेर पर स्थित हैं। रेल्वे स्टेशन के निकट स्टेशन रोड पर कई होटल हैं। मूलनायक : भगवान आदिनाथ (गोड़ आदिनाथ) सरवाड़ मार्गदर्शन : अजमेर-केकड़ी मार्ग पर अजमेर से 56 कि.मी. दूर सरवाड़ अतिशय क्षेत्र स्थित है। (अतिशय क्षेत्र) परिचय : सरवाड़ प्राचीनतम दिगम्बर जैन तीर्थों में से एक माना जाता है। प्राप्त शिलालेखों के अनुसार यह 7वीं 8वीं शताब्दी का माना जाता है। गौड़ वंशीय राजाओं के काल में इसका जीर्णोद्धार हुआ था। यहाँ की प्रभु प्रतिमा अत्यंत चमत्कारिक मानी जाती है। किंवदती है कि अनेकों डाकू, लुटेरों के चमत्कारिक ठंग से इसने हृदय परिवर्तन कर दिये थे। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ एक धर्मशाला है। मार्गदर्शन : अजमेर जिले में स्थित नसीराबाद से 56 कि.मी. दूर, केकड़ी से 17 कि.मी. दूर बघेरा बघेरा अतिशय क्षेत्र स्थित है। यह तीर्थ अजमेर टौंक राज्य सीमा के निकट स्थित है। यह एक छोटा सा गाँव है तथा यहाँ बस या कार द्वारा पहुँचा जा सकता है। वर्षाकाल में रास्ता प्रायः बन्द ही रहता है। परिचय : बघेरा गाँव के बाहर टेकरी पर शिलाओं में उत्कीर्ण 5-6 फुट ऊँची पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ हैं। यहाँ कई गुफाएँ और निषेधिकाएँ हैं। अतिशय क्षेत्र बघेरा में समय-समय पर भू-गर्भ से जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त होती रही हैं। यहाँ कला व पुरातत्व की बहुत ही मूल्यवान सामग्री है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ गाँव में मन्दिर के निकट धर्मशाला है। 2010_03 www.jainell 53 rg Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जिला अलवर अलवर (दर्शनीय स्थल) श्री तिजारा तीर्थ पेढ़ी : श्री 1008 चन्द्रप्रभु दि. जैन अतिशय क्षेत्र देहरा, तिजारा, जिला-अलवर (राज.) फोन : 01469-22119, 22407 सरिस्का (दर्शनीय स्थल) Ja 54ad cation International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका तिजारा से 53 कि.मी. व दिल्ली से 158 कि.मी. दूर अलवर स्थित है। यहाँ के मन्दिरों में अनेक प्राचीन मूर्तियाँ विराजमान हैं। मुख्य मन्दिर श्री नन्दीराम जी के पुत्र मुंशी रिश्कलाल जी द्वारा सन् 1880-90 के लगभग निर्मित करवाया गया था। अलवर शहर की स्थापना महाराज राव प्रतापसिंह ने सन् 1775 ई. में की थी। पहाड़ और झील के मनोरम प्राकृतिक वातावरण में पहाड़ की चोटी पर बने अलवर सिटी पैलेस की छटा मनभावन है। यहाँ वर्तमान में आकाशवाणी केन्द्र बना दिया गया है। जिसमें प्राचीन पांडुलिपियाँ भी हैं। शहर के अन्तिम छोर पर गार्डन, पुरजन विहार आदि दर्शनीय हैं। ठहरने के लिए अलवर में अनेक होटल, गैस्ट हाउस एवं धर्मशालाएँ उचित दर पर मिल जाते हैं। सिलिसेड झील - शहर से 8 कि.मी. दूर कृत्रिम झील सिलिसेड झील भी देखने योग्य स्थल है। मूलनायक : श्री चन्द्र प्रभु, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : दिल्ली से लगभग 117 कि.मी. दूर, अलवर से 52 कि.मी. दूर अलवर जिले के अन्तर्गत स्थित तिजारा अतिशय क्षेत्र, दिल्ली, रिवाडी, अलवर, जयपुर, फिरोजपुर, महावीर जी आदि प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा नियमित बस सेवा से जुड़ा हुआ है । यहाँ प्रत्येक महीने के अन्तिम रविवार को दिल्ली से कई यात्री बसें आती हैं जो लघु मेले का रूप ले लेती हैं। तीर्थ पर जीप उपलब्ध है। परिचय : प्राचीन अभिलेखों में देहरा नाम से प्रसिद्ध इस स्थान से सन् 1956 में श्रावण शुक्ल 10 संवत् 2013 में चन्द्रप्रभु की श्वेत वर्ण की दिव्य चमत्कारी प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त इस क्षेत्र की ख्याति में अवर्णनीय वृद्धि हुई है। यहाँ अनेक लोग मनौती माँगने आते हैं। लोगों का विश्वास है कि यहाँ पर मनोकामना पूर्ण होती है। विशेष रूप से भूत, प्रेतव्यंतर आदि के कष्ट दूर करने की दृष्टि से इस क्षेत्र की बड़ी प्रसिद्धि है । क्षेत्र में एक विशाल मन्दिर में तीन सुन्दर वेदियाँ हैं। मध्य वेदी में चन्द्रप्रभु जी की भव्य चमत्कारी मूर्ति विराजमान है। मन्दिर के पीछे जहाँ से मूर्ति प्रकट हुई थी चरण छतरी बनी हुई है । मन्दिर के सामने दर्शनीय मानस्तंभ भी है। प्रतिवर्ष फागुन वदी सप्तमी तथा श्रावण शुक्ल दशमी को वार्षिक मेले लगते हैं। क्षेत्र में एक अन्य दिगम्बर जैन मन्दिर है जो पार्श्वनाथ जी को समर्पित है। इसमें भी अनेक मनोज्ञ व सातिशय प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ लगभग 300 कमरों की धर्मशाला है जिसमें डीलक्स, सादा सभी प्रकार की सुविधा युक्त कमरे हैं । यहाँ निःशुल्क भोजनशाला की व्यवस्था है। प्रातः 10 से 1 तथा सायं 4 से 5.30 बजे तक भोजनशाला चालू रहती है। निकट में होटल भी है। जयपुर से 110 कि.मी., अलवर से 38 कि.मी. दूर स्थित अरावली पर्वतमाला के नैसर्गिक वातावरण में स्थित यह अभयारण्य आज प्रसिद्ध भ्रमणस्थल के रूप में विकसित हो गया है । यहाँ बाघ, भालू, हिरण, सांभार, वन बिलाव आदि विभिन्न प्राणियों को देखा जा सकता । वर्षाकाल में यहाँ आना निष्फल हो सकता है। पर्यटन के हिसाब से सर्दी के चार महीनों में नवम्बर से फरवरी तक वन्यजीवों को सकूनपूर्वक निहारा जा सकता है। यहाँ नागरिकों को प्रवेश शुल्क देना होता है। कैमरे का शुल्क अतिरिक्त है। रात्रि भ्रमण के लिए यहाँ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका पैकेज टूर की व्यवस्था भी है। इसके लिए राजस्थान टूरिज्म के ऑफिस से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सन् 1979 से यहाँ बाघ परियोजना लागू की गयी जिसके अन्तर्गत यहाँ बाघों को प्रमुखता प्रदान की गयी। कालींजरी रेंजर पोस्ट से वन्य प्राणियों को अच्छी प्रकार देखा जा सकता है। यहाँ वाच टावर भी बना हुआ है। रात्रि में वाच टावर से बाघ आदि भी देखे जा सकते हैं। वाच टावर पर रात्रि में रुकने के लिए पेयजल व खाद्य सामग्री साथ रखना अच्छा रहता है। वन के 22 कि.मी. अन्दर पाण्डुपोल में हनुमान जी के दर्शन लाभ लिए जा सकते हैं। सरिस्का बस द्वारा दिल्ली, जयपुर व अलवर से सम्पर्क में है। यहाँ तीनों स्थान से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। राजस्थान के पूर्वी भाग में आगरा से 56 कि.मी., दिल्ली से 176 कि.मी. तथा जयपुर से 175 जिला भरतपर कि.मी. दूर स्थित भरतपुर कालवादेव राष्ट्रीय उद्यान के लिए जाना जाता है। यह उद्यान पक्षी विहार है। यहाँ पर साइबेरियन सारस, इबीस आदि दुर्लभ पक्षी नवम्बर से फरवरी तक देखने को मिलते हैं। सौ से अधिक विभिन्न जातियों के पक्षी यहाँ दृष्टिगत होते हैं। प्रातःकालीन वेला में पक्षियों को देखने का आनन्द अकल्पनीय है। शीतकालीन मौसम में पक्षी सुदूर विहार करते हुए यहाँ घाना पक्षी विहार में आते हैं। चीन, साइबेरिया, मध्य एशिया आदि के पक्षी यहाँ देखे जा सकते हैं। आगरा ठहरकर प्रात:काल में यहाँ आकर पक्षी विहार देखकर जयपुर की ओर प्रस्थान किया जा सकता है। वैसे यहाँ भी ठहरने हेतु राजस्थान टूरिज्म के होटल आदि उपलब्ध हैं। डीग भरतपुर से 34 कि.मी. उत्तर की ओर बगीचों से सजा, सुन्दर फव्वारों से सुसज्जित है डीग दुर्ग। यहाँ मुख्य आकर्षण हैं गोपाल भवन, कृष्ण भवन, केशव भवन तथा नन्द भवन। गोपाल भवन में संग्राहालय भी दर्शनीय है। दुर्ग देखने का समय 8-12 तथा 1-7 तक है। आगरा से 50 कि.मी. दूर आगरा ग्वालियर मार्ग पर स्थित धौलपुर का लाल पत्थर प्रसिद्ध है। जिला धौलपर बाबर द्वारा बनाया गया प्राचीन मुगल उद्यान जोहर यहाँ से 16 कि.मी. दूर है। बीबी जरीना का मकबरा भी देखने योग्य है। धौलपुर मचकुन्ड जो यहाँ से 5 कि.मी. दूर स्थित है। मन्दिरों से घिरी झील है। जिसके चारों ओर छाए मन्दिर दर्शनीय है। बाड़ी वन विहार क्षेत्र है। यहाँ जंगली पशु विचरण करते हैं। फिरोजशाह द्वारा निर्मित तालाब-ए-शाही झील तथा दुर्ग भी दर्शनीय हैं। राजस्थान का प्रसिद्ध शहर बीकानेर थार रेगिस्तान के मध्य दिल्ली से सड़क मार्ग से 538 कि.मी. जिला बीकानेर तथा जयपुर से 325 कि.मी. दूर स्थित है। रेल द्वारा बीकानेर दिल्ली, अहमदाबाद, जोधपुर, सवाई माधोपुर, जैसलमेर, जयपुर आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। नियमित बस सेवा भी बीकानेर विभिन्न शहरों के लिए यहाँ से उपलब्ध है। बीकानेर शहर पर्यटन केन्द्र होने के कारण, यहाँ होटल एवं धर्मशालाएँ विभिन्न दरों पर उपलब्ध हैं। होटल पाँच तारा से लेकर सामान्य दर तक उपलब्ध हैं। शहर में बस, तांगा, टैक्सी आदि सभी सुविधाएँ हैं। यहाँ एक दिगम्बर जैन व कई श्वेताम्बर जैन मन्दिर हैं। इनमें 16वीं शताब्दी का भण्डारसा जैन मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध और अपनी कलात्मक भव्यता के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं। Jain.Education International 2010_03 www.jair 55,.org Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान | जैन तीर्थ परिचायिका दर्शनीय स्थल : रेल्वे स्टेशन से 1 कि.मी. दूर बस स्टैण्ड है। बस स्टैण्ड के निकट ही बीकानेर का मूल आकर्षण वहाँ का दुर्ग है। दुर्ग के सामने सार्वजनिक उद्यान है। उसके अन्तिम छोर पर गांधी मैदान है। सार्वजनिक उद्यान में जुलॉजिकल गार्डन है और जैन मन्दिर तुलसी है। शुक्रवार को छोड़कर, दुर्ग सुबह 10.00 से सायं 4.30 बजे तक खुला रहता है। भण्डारसा मन्दिर : शहर से 5 कि.मी. दूर 16वीं शताब्दी का जैन मन्दिर परिसर है। स्वर्णमण्डित ध्वज व दण्ड सहित उच्च शिखरवाला यह मन्दिर गौरवोन्नत मस्तक लिए खड़ा है। जैन मन्दिरों में अन्यतम यह मन्दिर 23वें तीर्थंकर भ. पार्श्वनाथ यहाँ मूलनायक के रूप में विराजित हैं। 1505 में निर्मित चिन्तामणि, आदिनाथ मन्दिर भी दर्शनीय हैं। मन्दिर सुबह 6 से 11 एवं सायं 7 से 8 बजे तक खुला रहता है। गंगा गोल्डन म्यूजियम : दुर्ग के सामने गांधी पार्क के निकट राजस्थान टूरिज्म के टूरिस्ट बंगले के निकट बीकानेर का गंगा गोल्डन जुबिली-म्यूजियम है। गुप्त युग के टेराकोटा के साथ कुषाण व हड़प्पा काल के पूर्व के विभिन्न संग्रह इस म्यूजियम की अमूल्य निधि हैं। लालगढ़ प्रासाद : शहर के अन्तिम छोर पर (2.5 कि.मी.) महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता लाल सिंह की स्मृति में गेरुए रंग के बलुआ पत्थरों से लालगढ़ प्रासाद अर्थात् रेड फोर्ट का निर्माण करवाया था। देवी कुण्ड : शहर से 8 कि.मी. दूर बीकानेर के शासकों के स्मृति स्तम्भ देवी कुण्ड में हैं। स्मृति स्तम्भों के बीच राव कल्याण माई स्तम्भ प्राचीनतम है । श्वेत मर्मर पत्थरों से निर्मित राजा सूरथ सिंह की छत्री भी सुन्दर है। कैमेल ब्रीडिंग फार्म : शहर से 10 कि.मी. पश्चिम में सरकार संचालित करीब 300 ऊँटों का एशिया का अन्यतम फार्म है। इस फार्म में पर्यटक ऊँट की सवारी का आनन्द व ऊँटनी के दूध का स्वाद चख सकते हैं। इसके लिए समय अपराह्न 3.00 से 5.00 बजे तक है। करणी जी का मन्दिर : शहर से 26 कि.मी. दूर करणी माता जी का विशेष ख्याति प्राप्त मन्दिर है। दुर्गा की अवतार करणी जी यहाँ की आराध्या हैं। भविष्यवक्ता के रूप में देवी की ख्याति है। इस द्वितल मन्दिर की स्वर्ण छतरी, संगमरमरी पत्थर पर नक्काशी, महाराजा गंगासिंह द्वारा निर्मित चांदी का गेट भी सन्दर है। मन्दिर परिसर में असंख्य मूषक हैं, यदि ये आपकी देह पर चढ़ जायें तो आप पुण्य के भागी होते हैं और इन्हें मारने पर पाप लगता है ऐसा कहा जाता है कि यहाँ एक श्वेत मूषक भी है जो केवल उन्हीं लोगों को दर्शन देता है जिन पर माता की विशेष कृपा होती है। सफेद चूहे के दर्शन करने वाले दर्शनार्थी अपने आपको धन्य मानते हैं। शहर से हर घण्टे मन्दिर के लिये बस सेवा उपलब्ध है। गजन प्रासाद : शहर से दक्षिण-पश्चिम जैसलमेर के मार्ग में 31 कि.मी. जाने पर झील के तट पर यह प्रासाद है। प्रासाद में विभिन्न सामग्रियों, चित्रों व कार्पेट का उल्लेखनीय संग्रह है। गलाब बाग भी सुन्दर है। किसी समय यह राजाओं का आखेट स्थल था। यहाँ नये सिरे व वन्यजीव अभयारण्य बना है। नीलगाय, ब्लैक बक आदि को देखा जा सकता है। शहर से यह बस-सम्पर्क से जुड़ा है। शिकार महल में आज होटल है। बीकानेर से 45 कि.मी. जाने पर बीकानेर जैसलमेर मार्ग पर पवित्र हिन्दू तीर्थ कोलायत के भी दर्शन किये जा सकते हैं। कपिल मुनि ने इसी कोलायत में आश्रम का निर्माण किया था। बीकानेर से जैसलमेर जाते वक्त बस यात्रा के दौरान विश्राम के समय भी कोलायत के दर्शन किए जा सकते हैं। 56 Jain Edupation International 2010_03 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका कोटा से 46 कि.मी. दूर स्थित बूंदी का नामकरण मीणा सरदार दा के नाम पर हुआ है। 17वीं जिला बँदी शताब्दी में निर्मित बूंदी का किला अति मनमोहक है। बस स्टैण्ड के निकट से ही तारागढ़ - दुर्ग पहुँचा जा सकता है। तारागढ़ दुर्ग अत्यन्त लुभावना दुर्ग है। जो पहाड़ी पर किसी सफेद बूदा ताज की भाँति स्थित है। इसमें प्रवेश द्वार को हाथी पोल कहा जाता है। दूसरे तल्ले में उस समय का सुशोभित उद्यान रंग विलास है। समूचा महल ही बूंदी की अपनी विशिष्ट शैली में शिकार व अख्यानों से चित्रित है। आधा घन्टे बाद बजने वाली घड़ी आकर्षण का केन्द्र है। किले से 3 कि.मी. दूर फूल सागर भी दर्शनीय है। जैन सागर झील का परिवेश भी अति रमणीय है। स्मृति स्तम्भ फूलों के बगीचों और झील ने बूंदी के सौंदर्य में कई गुना वृद्धि कर दी है। मूलनायक : भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी, कृष्ण वर्ण, पद्मासन मुद्रा केशोराय पाटन मार्गदर्शन : पश्चिम रेल्वे के बम्बई-दिल्ली लाइन पर कोटा जंक्शन स्टेशन से 20 कि.मी. दर (आतशय क्षत्र) चम्बल नदी के तट पर अवस्थित केशोराय पाटन अतिशय क्षेत्र का पूरा नाम श्री मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र केशोराय पाटन है। यह बूंदी से 43 कि.मी., कोटा से 20 कि.मी. व बूंदी रोड स्टेशन से 3 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ सभी स्थानों से बस सेवा उपलब्ध है। चाँदखेड़ी से कोटा पहुँचकर नाव द्वारा चम्बल पार कर यहाँ पहुँचा जा सकता है। परिचय : प्राचीन काल में (9वीं-10वीं) शताब्दी पूर्व एक स्थान पर भगवान मुनिसुव्रत नाथ की मूर्ति थी। जिसके चमत्कारों की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। शोध के आधार पर विद्वानों का मत है कि वर्तमान केशोराय पाटन ही वह प्राचीन नगर है एवं विष्णु के विग्रह के कारण इसका नाम केशोराय पाटन पड़ा। यहाँ के चमत्कारों की अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि मुहम्मद गौरी की आज्ञा से मूर्ति तोड़ने के असफल प्रयास के दौरान मूर्ति के अंगूठे से दूध की प्रबल धारा निकल पड़ी। कुछ समय पूर्व यहाँ फैली भयंकर प्लेग के कारण नगरवासी जंगल में जाते समय भगवान के आगे जोत जला गये। महामारी के शान्त होने पर जब 3-4 महीने बाद लोग वापस लौटे तो जोत को जलते हुए पाया। जिनालय चम्बल नदी के तट पर 12 मीटर ऊँची चौकी पर बना है तथा बाढ़ आदि की सुरक्षा हेतु मजबूत दीवार बनी हुई है। मन्दिर में 6-6 वेदियाँ ऊपर व भू-गर्भ में है जिनमें कई प्राचीन (सातवीं-आठवीं शताब्दी तक की) मूर्तियाँ हैं। कहते हैं कि ब्रह्म देव मुनि ने यहीं 'वृहद् द्रव्य संग्रह' की टीका लिखी थी। ठहरने की व्यवस्था : कोटा शहर में ठहरने हेतु अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ भी आवास व्यवस्था उपलब्ध है। 2010_03 www.jaineligras/org Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : उदयगढ़ रेल्वे स्टेशन से 50 कि.मी. दूर, बांसवाड़ा जिले में चारों ओर सघन वनों से घिरी एक छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है अंदेश्वर पार्श्वनाथ। यह कुशलगढ़ से पश्चिम की ओर 15 कि.मी. व कलिंगड़ा से पूर्व की ओर 8 कि.मी. दूर स्थित है। यह बांसवाड़ा से 35 कि.मी. दूर स्थित है। उदयपुर से बांसवाड़ा 163 कि.मी. तथा रतलाम से 74 कि.मी. दूर है। परिचय : यह एक अतिशय क्षेत्र है जिसके कई अतिशयों की मान्यता भी है। क्षेत्र में कोई बस्ती नहीं है। यहाँ पार्श्वनाथ भगवान के दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। एक मन्दिर श्री दिगम्बर जैन पंचायत कुशलगढ़ ने बनवाया था इसकी प्रतिष्ठा सं. 1992 में हुई थी। इसी में भगवान पार्श्वनाथ जी की सातिशय चमत्कार सम्पन्न मूर्ति विराजमान है। ठहरने की व्यवस्था : क्षेत्र पर दिगम्बर जैन धर्मशाला है। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ वार्षिक उत्सव होता है। जिला बाड़मेर श्री नाकोड़ाजी तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ मु. पो. मेवानगर, स्टेशन बालोतरा जि. बाडमेर-344 025 (राजस्थान) फोन : (02988) 40005 (पेढ़ी); 40096, 40761 (ऑ.) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्यामवर्ण प्रतिमा। मार्गदर्शन : जोधपुर बाड़मेर मार्ग पर श्री मेवानगर ग्राम में विश्वप्रसिद्ध श्री नाकोड़ा तीर्थ जोधपुर से 120 कि.मी. दूर स्थित है। बाड़मेर यहाँ से 118 कि.मी. दूर है। बालोतरा रेल्वे स्टेशन से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थित इस तीर्थ पर पहुँचने के लिए स्टेशन से जीप, बस आदि की सुविधा उपलब्ध है। श्री नाकोड़ा तीर्थ से जोधपुर के लिए नियमित बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं। नाकोड़ा जी से महावीर जी के लिए भी बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ से बालोतरा के लिए नियमित बसें हैं। बालोतरा से जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, रामदेवरा आदि स्थानों हेतु बस सेवा उपलब्ध है। बालोतरा से बाडमेर मार्ग पर भैरव सर्किल से दाँयी ओर मेवानगर की ओर सड़क जाती है। परिचय : भारत के प्रमुख तीर्थस्थानों में इस तीर्थ की गणना होती है। तीर्थ के अधिष्ठायक देव श्री नाकोड़ा भैरव जी की बहुत मान्यता होने के कारण यहाँ पर यात्रियों की बहुत भीड़ रहती है। यह स्थान पर्वतों की गोद में रमणीय एवं भव्य है। कहा जाता है कि 2300 वर्ष पूर्व वीरसेन, नाकोरसेन नामक बंधुओं ने वीरपुर, नाकोर नगर बसाए और वहाँ विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। विक्रम संवत् 1300 के बाद मुस्लिम आक्रमण के कारण इस नगरी का विनाश हुआ। उसके बाद फिर से मंदिर का निर्माण किया गया। यहाँ का मुख्य मंदिर श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ भगवान का है, साथ ही परिसर में श्री आदिनाथ भगवान तथा श्री शान्तिनाथ भगवान का मंदिर है। श्री शान्तिनाथ भगवान के मंदिर में प्रभु के जीवन प्रसंग संगमरमर के पत्थर पर उत्कीर्ण कर दीवारों पर लगाये हैं। मुख्य मंदिर में पूजा के लिये बड़ी कतार लगती है। यहाँ पर मन्दिर में चढ़ाया प्रसाद मन्दिर से बाहर नहीं ले जा सकते, ऐसी मान्यता है। प्रातः 11.30 बजे से यहाँ श्री भैरव जी पर तेल चढ़ाया जा सकता है, पेढी के निकट ही मोदी खाने में तेल उपलब्ध हो जाता है। मन्दिर के बाहर ही छोटी-सी पहाड़ी पर दादा गुरुदेव जिनकुशल सूरी जी की दादावाड़ी बनी है जहाँ सीढ़ियों द्वारा चढ़कर दादा देव के पगलियों के दर्शन किये जा सकते हैं। ऊपर पहाड़ी से मन्दिर का भव्य दृश्य अत्यन्त मनोहारी लगता है। Jain 20cation International 2010_03 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर पुरानी धर्मशाला के साथ-साथ महावीर भवन, ओसवाल भवन, शान्ति भवन, श्रीपाल भवन, आदेश्वर भवन जिनेश्वर भवन आदि 17 नयी धर्मशालाएँ बनी हैं, जिनमें लगभग 500 कमरे हैं। तथा सभी सुविधा युक्त ब्लॉक हैं। यहाँ अति सुव्यवस्थित भोजनशाला का भी प्रबंध है। नवनिर्मित इस भोजनशाला में एक साथ 650 व्यक्तियों के भोजन करने की सुविधा उपलब्ध है। महावीर भवन के सामने ही छोटे होटलों पर खानेपीने की सुविधा उपलब्ध है। प्रमुख मन्दिर के बाहर ही (मोदीखाने से पूर्व) भोजनशाला के कूपन प्राप्त किये जा सकते हैं । ठहरने हेतु कमरों का आवंटन मन्दिर के प्रवेश द्वार (बाहर वाले) में प्रवेश करने पर सामने बायें हाथ पर स्थित स्वागत कक्ष में बने काउंटरों से किया जाता है। दीपावली के अगले दिन से यहाँ बहुतायत में यात्रियों का आवागमन होता है। तथा कमरों हेतु लम्बी कतार में लगना पड़ सकता है। मन्दिर में वाहन आदि प्रवेश द्वार के बाहर ही खड़े रहते हैं। अंदर की धर्मशालाओं तक सामान स्वयं ले जाना पड़ता है। विशेष अनुमति पेढ़ी से प्राप्त कर छोटे वाहन सामान लाने व छोड़ने हेतु अंदर धर्मशाला तक आजा सकते हैं। मार्गदर्शन : अतिशय क्षेत्र बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में उदयपुर से 224 कि.मी. पूर्व में, कोटा जिला भीलवाडा से 85 कि.मी. पश्चिम में और चित्तौड़ से 112 कि.मी. उत्तर पूर्व में स्थित है। यहाँ पहुँचने का सबसे सुगम रास्ता कोटा, बूंदी होते हुए 85 कि.मी. पक्की सड़क का है। भीलवाड़ा से बिजौलिया मांडलगढ़ होते हुए भी यह 85 कि.मी. दूर पड़ता है। परिचय : बिजौलिया एक प्राचीन गाँव है व इसका प्राचीन नाम विन्ध्याचली था। इसकी चारदीवारी से क्षेत्र डेढ़ कि.मी. दूर नगर के दक्षिण पूर्व में स्थित है। क्षेत्र सुदृढ़ परकोटे से बड़ा है। बीच में पार्श्वनाथ मन्दिर है मन्दिर पंचायती है तथा एक प्राचीन शिलालेख के अनुसार मन्दिर संवत् 1226 में निर्मित है व प्रतिष्ठा श्रेष्ठी लोलार्क द्वारा सम्पन्न हुई थी। यहाँ के चमत्कारों की अनेक कथाएँ हैं। लोग यहाँ मनौती मनाने आते हैं। यहाँ कई ऐतिहासिक महत्त्व के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। ठहरने की व्यवस्था : नगर में दो जैन धर्मशालाएँ, भवन व जैन पंचायती नौहरा हैं । यहाँ बिजली, पानी आदि सभी सुविधा उपलब्ध हैं। मार्गदर्शन : भीलवाड़ा से 56 कि.मी. पूर्व में एक अति सुन्दर प्राकृतिक पहाड़ी क्षेत्र चम्बलेश्वर चंबलेश्वर पार्श्वनाथ स्थित है। पारोली तक सड़क पक्की है तथा आगे 6 कि.मी. का बैलगाड़ी योग्य कच्चा रास्ता क्षेत्र तक पहुँचता है। अजमेर-खंडवा लाइन पर विजय नगर से 42 कि.मी. की पक्की सड़क पर बस द्वारा शाहपुरा फिर आगे बैलगाड़ी द्वारा भी क्षेत्र तक पहुँचा जा सकता है। परिचय : पहाड़ी पर तीन ओर से जाया जा सकता है। पूर्व की ओर 226 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद 375 मीटर का कच्चा रास्ता तय करने के उपरान्त 110 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद मन्दिर में पहुँचा जा सकता है। कच्चे मार्ग पर एक जल कुण्ड है जिसका जल अभिषेक आदि के लिए काम आता है। दूर से दिखते हुए शिखर-युक्त मन्दिर में मूलनायक की प्रतिमा पार्श्वनाथ जी की है। इसके अतिशय के लिए अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। मन्दिर के पास ही एक मस्जिद व महादेव जी का प्रसिद्ध मन्दिर भी है। अतः यह क्षेत्र जैन, हिन्दू व मूसलमान 2010_03 www.jainel 59.org Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका तीनों का ही तीर्थक्षेत्र है। क्षेत्र पर पौषवदी १.से 10 तक मेला लगता है। यहाँ पहाड़ के नीचे तथा ऊपर एक-एक जिन मन्दिर है। ऊपर के मन्दिर में लगभग आधा मीटर ऊँची भगवान पार्श्वनाथ जी की एक प्रतिमा बालू की बनी हुई है। पहाड़ की तलहटी में भी एक जैन मन्दिर है जिसमें भगवान पार्श्वनाथ जी की विशाल अवगाहना की खण्डित प्रतिमा है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के पास एक नवनिर्मित धर्मशाला भी है। पेढी जिला चित्तौडगढ मूलनायक : श्री करेडा पार्श्वनाथ भ., श्यामवर्ण पद्मासनस्थ। - मार्गदर्शन : यह स्थान चित्तौड़गढ़ से 56 कि.मी. दूरी पर भूपालसागर गाँव के मध्य में है। मन्दिर श्री करेडा तीर्थ से थोड़ी दूरी पर बस स्टैंड है। रेल्वे स्टेशन मन्दिर से लगभग 1 कि.मी. दूर पर स्थित है। चित्तौड़गढ़-उदयपुर (वेस्टर्न रेल्वे) पर भूपालसागर रेल्वे स्टेशन तीर्थ से 4 कि.मी. दूर है। पेढ़ी: चित्तौड़गढ़-उदयपुर मार्ग वाया सोवता माताजी की पाण्डोली, नारेला, सींगपुर, छोटा श्री करेडा पार्श्वनाथ तीर्थ निम्बाहेड़ा, केसरखेड़ी, कपासन होते हुए 55 कि.मी. दूरी। मु. पो. भूपालसागर, उदयपुर-चित्तौड़गढ़ मार्ग वाया डबोक-मावली, फतहनगर होते हुए 68 कि.मी. दूरी है। जि. चित्तौड़गढ़ उक्त सड़क मार्ग पर राजस्थान राज्य परिवहन की नियमित बस सेवा उपलब्ध है। (राजस्थान)-312 204 परिचय : यहाँ के कुछ मूर्तियों पर विक्रम संवत 1303, 1341 तथा 1496 के लेख उत्कीर्ण हैं। फोन : 01476-84233 मांडवगढ़ के महामंत्री श्री पेथडशाह ने श्री पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर का निर्माण किया था, ऐसे उल्लेख मिलते हैं, लेकिन आज वह मंदिर अस्तित्व में नहीं है। यहाँ अनेक प्राचीन मंदिरों के खंडहर मिलते हैं। मूलनायक जी की अति आकर्षक, चमत्कारिक प्रतिमा-दोहरे शिखर बंध जिनालय में स्थित है। यह जिनालय विशाल जलाशय "भूपालसागर" के पूर्वी किनारे पर सुन्दर वातावरण में स्थित है। श्री करेडा पार्श्वनाथ जी का जन्म कल्याणक महोत्सव प्रत्येक वर्ष पौष वद 10 को अत्यंत आकर्षक एवं मनमोहकरूप से यहाँ आयोजित किया जाता है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये मंदिर के अहाते में ही विशाल आधुनिक सुविधायुक्त 40 कमरों की धर्मशाला है भोजनशाला एवं नाश्ते का उत्तम प्रबंध है। पेढ़ी : श्री चित्रकूट तीर्थ मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। (चित्तौडगढ) मार्गदर्शन : चित्तौड़गढ़ धर्मशाला से लगभग 3.5 कि.मी. तथा किले के मन्दिरों से 7 कि.मी. दूर चित्तौड़गढ़ रेल्वे स्टेशन है। स्टेशन से बस, तांगा व टैक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मंदिर तक पक्की सड़क है। उदयपुर, जयपुर, अजमेर आदि नगरों से यहाँ रेल सेवा उपलब्ध . श्री आनंदजी कल्याणजी है। पर्यटन क्षेत्र होने के कारण यहाँ नियमित बस सेवा भी उपलब्ध है। चित्तौड़गढ़, उदयपुर जैन श्वेताम्बर मंदिर पेढी से 121 कि.मी., भीलवाड़ा से 55 कि.मी., राजसमन्द से 106 कि.मी. दूर है। मु. पो. चित्तौड़गढ़, परिचय : चित्तौड़ का किला सारे भारत में विख्यात है। "गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गलैया" जि. उदयपुर (राजस्थान) इस कहावत से ही इसकी विशालता बतायी गयी है। महाराणा प्रताप का इस किले के साथ फोन : (01472) 42162 सम्बन्ध था। श्री शत्रुजय तीर्थ का सोलहवाँ उद्धार करने वाले महामंत्री कर्मचंद बच्छावत यहीं के निवासी थे। महाराणा प्रताप जब अकबर की सेना के सामने हार गये और वे देश छोड़कर जा रहे थे, तब दानवीर भामाशाह ने अपना सारा धन उन्हें अर्पण किया। उसकी Ja 50 ubation International 2010_03 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका सहायता से महाराणा प्रताप ने फिर से सेना इकट्ठी कर अकबर का मुकाबला किया। विक्रम संवत् की पहली शताब्दी में आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर यहीं पर विद्या साधना के लिये रहे थे। महाराणा मोकल के मंत्री भदनपाल ने यहाँ पर कई जिनमंदिर बनवाए थे। यहाँ पर ऋषभदेव का बावन जिनालय, श्री पार्श्वनाथ भ. मंदिर, श्री शान्तिनाथ भ. तथा श्री महावीर भ. के प्रमुख मंदिर हैं। लेकिन इन सबमें यहाँ का जैन कीर्तिस्तंभ विशेष विख्यात है। यह स्तम्भ अपनी विजयगाथा कहता हुआ सा लगता है। 7 मंजिला यह स्तम्भ 9 मीटर घेरे का तथा 22 मीटर ऊँचा है। इसकी नक्काशी दर्शनीय है। निकट ही चित्तौड़ेश्वरी मन्दिर है इस मन्दिर की अधिष्टायिका काली माँ हैं जो साक्षात् चमत्कारिक मानी जाती हैं। ऊपर के मंजिल पर जिनप्रतिमा है। श्री शान्तिनाथ प्रभु का मंदिर दर्शनीय है। इसे श्रृंगार चौरी भी कहते हैं। चित्तौड़गढ़ का इतिहास सदैव स्मरणीय रहेगा। यहाँ की महारानी पद्मिनी का स्वाभिमान के लिए दिया गया बलिदान अमर रहेगा। पद्मिनी महल में दर्पण आज भी अक्षत रखा है जिसमें उनका प्रतिबिम्ब अलाउद्दीन खिलजी ने देखा था और उसकी मति भ्रष्ट हुई थी। यह महल देखने हेतु प्रात: 9 से 5 बजे तक खुला रहता है। फतह प्रकाश म्यूजियम के निकट कुम्भ श्यामजी का मन्दिर है जिसमें विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति है। निकट ही मीराबाई का कृष्ण मन्दिर है। यहाँ का कुम्भाप्रासाद दर्शनीय है। यहाँ बाबर की तोप भी दर्शनीय है। कीर्ति स्तम्भ की तरह यहाँ जय स्तम्भ भी अत्यंत कलात्मक एवं दर्शनीय है। 9 मंजिला यह स्तम्भ 9 मीटर घेरे में तथा 37 मीटर ऊँचा है। इस पर देवी-देवताओं, हाथी, सिंह आदि सुन्दर नक्काशी के रूप में उत्कीर्ण है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ किले पर मंदिर के पास धर्मशाला है। नीचे शहर में भी धर्मशाला है, वहाँ ठहरना सुविधाजनक है। मूलनायक : भगवान शान्तिनाथ । भमोतर मार्गदर्शन : प्रतापगढ़-छोटी सादड़ी-चित्तौड़गढ़ मार्ग पर प्रतापगढ़ से 5 कि.मी. दूर भमोतर गाँव (अतिशय क्षेत्र) है। रेल द्वारा मंदसौर रेल्वे स्टेशन से 32 कि.मी. दूर प्रतापगढ़ है। क्षेत्र तक पक्की सड़क है। क्षेत्र सड़क से लगभग 100 मीटर के फासले पर है। परिचय : संवत् 1990 में जीर्णोद्धार के समय मंदिर के छोटे द्वार में प्रतिमा को प्रवेश कराना संभव नहीं लग रहा था। तब प्रतिष्ठाचार्य भट्टारक हेमचंद्रजी ने स्वप्न में सुना कि तुम आज रात्रि प्रतिमा को केवल हाथ लगा देना प्रतिमा स्वयं अपने आसन पर आरूढ़ हो जायेगी। प्रात:काल लोगों ने देखा प्रतिमा अपने निर्दिष्ट स्थान पर विराजमान है। इसके पश्चात् यहाँ चमत्कार की अनेक घटनाएं हुई। ठहरने का स्थान : यहाँ अनेक धर्मशालाएँ हैं। चित्तौड़गढ़ से 120 कि.मी. तथा कोटा से 40 कि.मी. दूर प्रताप सागर मार्ग पर स्थित बरोली में बरोली अति प्राचीन सात मन्दिरों के ध्वंसाअवशेष हैं। इनमें राजस्थान का प्राचीनतम शिवमंदिर भी है। यहाँ भी नक्काशी अत्यन्त दर्शनीय है। 2010_03 61 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जिला चूरू सालासर जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : सालासर राजस्थान में चूरू जिले के सुजानगढ़ तहसील में सुजानगढ़ से 24 कि.मी. दूर स्थित है। सीकर यहाँ से लगभग 57 कि.मी. दूर स्थित है। लक्ष्मनगढ़ से सालासर की दूरी लगभग 31 कि.मी. है। जयपुर से सीकर 115 कि.मी. तथा सीकर से लक्ष्मनगढ़ 25 कि.मी. है। परिचय : यहाँ के बालाजी एक खेत में प्रकट हुए थे। वहाँ से सालासर में मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया। बालाजी के चमत्कारों की ख्याति शीघ्र ही चारों दिशाओं में फैलने लगी। श्रद्धालुजनों का यहाँ मेला-सा लगने लगा। जैसे-जैसे लोगों की मान्यता बढ़ने लगी उन्होंने मन्दिर को मान्यता प्रदान करने में सहयोग दिया। आज यह अत्यन्त सुविधा सम्पन्न तीर्थ रूप में विकसित हो गया है। मंगलवार तथा शनिवार बालाजी के दिवसों के रूप में माने जाने के कारण इन दो दिनों में यहाँ विशेष भीड़ रहती है। अत्यधिक यात्रियों का आवागमन होता है। मन्दिर के समीप ही श्री मोहनदास जी की धूणी प्रज्ज्वलित है। ऐसी मान्यता है कि यह धुणी आज तक अखण्ड है। भक्तगण अत्यन्त श्रद्धा भाव से यहाँ की भस्म ले जाते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने हेतु अनेक धर्मशालाएँ है। भोजनालय आदि की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। आवागमन हेत अनेकों स्थान से यहाँ बसों का आगमन-निर्गमन होता रहता है। राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख स्थानों से यहाँ बसें आती रहती हैं। जिला दूंगरपुर श्री डूंगरपुर तीर्थ पेढ़ी : श्री आदीभर भगवान जैन श्वेताम्बर मंदिर पेढी माणक चौक, मु. पो. डूंगरपुर (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : केसरियाजी से यह तीर्थस्थान 36 कि.मी. एवं उदयपुर से 110 कि.मी. दूरी पर है। उदयपुर-अहमदाबाद मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित खेरवाड़ा से 21 कि.मी. दूर स्थित है। रेल्वे स्टेशन डूंगरपुर मन्दिर से लगभग 2 कि.मी. है। परिचय : इस तीर्थ का निर्माण विक्रम संवत् 1525 में हुआ। प्रभु प्रतिमा विशाल एवं धातुमय है। मुस्लिम आक्रमण के समय यह स्वर्ण प्रतिमा समझकर प्रतिमा को क्षति पहुँचाई गयी, तब यह श्वेतवर्ण प्रतिमा पुनः प्रतिष्ठित की गई। परन्तु धातुमयी परिकर आज भी मौजूद है। अरावली पर्वतमाला की तलहटी में स्थित तीन ओर से सुन्दर रमणीक पहाड़ियों से घिरी इस नगरी का वर्षाकाल में वातावरण अत्यन्त मनभावन हो जाता है। यहाँ की भूमि अनेक प्राचीन मन्दिरों हेतु प्रसिद्ध है। उदय विलास महल, गायब सागर झील, यहाँ से 25 कि.मी. दूर स्थित देव सोमनाथ, 60 कि.मी. दूर स्थित बाणेश्वर अपने वार्षिक मेले हेतु प्रसिद्ध हैं। सैयद फकरुद्दीन की पवित्र स्थली गलियाकोट यहाँ से 58 कि.मी. दूर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिए धर्मशाला है। श्री वटप्रद तीर्थ मूलनायक : श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : डूंगरपुर तीर्थस्थान से लगभग 35 कि.मी. दूरी पर यह स्थान बड़ौदा गाँव के मध्य पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर में है। निकटतम रेल्वे स्टेशन डूंगरपुर है। वहाँ से बस, टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। पुरुषादानीय पार्श्वनाथ परिचय : इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1036 में हुआ था, ऐसा माना जाता है। भगवान मंदिर पेढी धुलेवा विराजित श्री केशरीयानाथ भगवान की प्रतिमा विक्रम संवत् 909 में, यही एक पीपल मु. पो. बड़ौदा, के पेड़ के नीचे प्राप्त हुई, वहाँ पर आज भी भगवान की चरणपादुका है। ठहरने के लिए जि. डूंगरपुर (राजस्थान) उपाश्रय है। 62 2010 03 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान । मार्गदर्शन : डूंगरपुर से यह तीर्थ 35 कि.मी. दूर बनकोड़ा गाँव में छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। बड़ौदा ग्राम के श्री केशरियाजी प्राचीन मन्दिर से इसकी दूरी 15 कि.मी. है। डूंगरपुर रेलवे स्टेशन से बस की सुविधा उपलब्ध है। तीर्थ पर आसपुर एवं डूंगरपुर से बसों का आवगमन रहता 1 परिचय : बनकोड़ा गाँव में स्थित यह तीर्थ वांगड़ क्षेत्र का महत्वपूर्ण तीर्थ है । गाँव में छोटी सी पहाड़ी पर 250 फुट की ऊँचाई पर मन्दिर स्थित है। गाँव में श्री चंद्रप्रभ स्वामी का मन्दिर एवं श्री अजितनाथ स्वामी का मन्दिर है। पहाड़ी पर स्थित गुरु मन्दिर अत्यंत चमत्कारी है । पूजा का समय प्रातः 8 से 12 बजे तक है ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के ठहरने हेतु गाँव में व्यवस्था हो जाती है। भोजनशाला का फिलहाल कोई प्रबन्ध नहीं है । परिचय: ओबरी गाँव में काँच का सुन्दर जिनालय एवं सूर्य मन्दिर दर्शनीय है । ओबरी से 2 कि.मी. दूर डेंचा गाँव में 2 जिनालय हैं। (1) शामराजी पार्श्वनाथ मन्दिर तथा (2) सामरा आदिनाथ जिनालय । प्रत्येक पूर्णिमा को अपनी मनोकामनाएँ लेकर अनेक यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। ठहरने की व्यवस्था : ओबरी एवं डेंचा में धर्मशाला है । मार्गदर्शन : यह तीर्थ क्षेत्र डूंगरपुर से 25 कि.मी. दूर तथा सागवाड़ा से 21 कि.मी. स्थित है । ओबरी-डेंचा डूंगरपुर से अंतरी होते हुए ओबरी पहुँचा जा सकता है। मूलनायक : श्री पद्मप्रभु भगवान, गुलाबी वर्ण । मार्गदर्शन : यह स्थान जयपुर से 34 कि.मी. दूरी पर है। यह जयपुर टोंक मुख्य मार्ग पर 28 कि.मी. दूर स्थित शिवदासपुरा से 5 कि.मी. दूर है। जयपुर से खानिया - गोनेर होते हुए पद्मपुरी को बस जाती है। यह दूरी 24 कि.मी. की है। गाँव का नाम बाड़ा है जो कुछ समय पूर्व पद्मप्रभु जी की भूगर्भ से निकली प्रतिमा के कारण पद्मपुरी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ का निकटतम स्टेशन शिवदासपुर - पद्मपुरा रेल्वे स्टेशन क्षेत्र से 6 कि.मी. दूर स्थित है । परिचय : यह एक 'अतिशय' क्षेत्र है। तीर्थ स्थल बाड़ा गाँव के बाहर स्थित है । इस चमत्कारी मूर्ति की बड़ी मान्यता है। इसके अतिशय के लिए विशेषतः भूतबाधा दूर करने के लिए क्षेत्र की विशेष मान्यता है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा एक किसान को खेत में मिली। वह चमत्कारी होने के कारण यहाँ यात्रियों की बहुत भीड़ होने लगी। विक्रम संवत् 2039 में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा भव्य एवं विशाल मंदिर में की गयी। यह मंदिर विशाल घेरे में फैला हुआ है, अन्दर गोलाकार विशाल सभामंडप है। कमल के फूल पर विराजित इस ढंग की प्राचीन प्रभु प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं। मूर्ति के निकलने के दिन वैशाख शुक्ल 5 को तथा भगवान पद्मप्रभु के निर्वाण फाल्गुन कृष्ण 4 को मेले लगते । क्षेत्र का मुख्य वार्षिक मेला दशहरे के अवकाश के दिनों में लगता है । ठहरने की व्यवस्था : यहाँ दो धर्मशालाएँ हैं जिनमें बिजली, पानी आदि की समुचित व्यवस्था है। 2010_03 राजस्थान श्री रत्नागिरी तीर्थ पेढ़ी : : वागड़ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री संघ पेढ़ी रत्नागिरी, पोस्ट बनकोड़ा, जिला डूंगरपुर - 314023 (राजस्थान ) जिला- जयपुर श्री पद्मप्रभुजी तीर्थ पेढ़ी : श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मु. पो. बाडा, पद्मपुरा, जि. जयपुर (राजस्थान) फोन : (014294) 7225, 7220 www.jainellor 63org Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जयपुर लाल और गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित प्रासाद-नगरी जयपुर पर्यटकों की स्वप्न नगरी है। राजस्थान टूरिज्म द्वारा रेल्वे स्टेशन के निकट स्वागतम् होटल से नियमित पर्यटन टूर आयोजित किया जाता है। इस टूर के माध्यम से शहर परिभ्रमण किया जा सकता है। यहाँ टैक्सी आदि की भी घूमने हेतु व्यवस्था है। जैन तीर्थ परिचायिका प्रथम टूर : सुबह 8.00 से अपराह्न 1.00 दिन के 11.30 से अपराह्न 4.30 और अपराह्न 1.30 से सायं 6.30 तक हवा महल, सिटी पैलेस, म्यूजियम, आब्जरवेटरी, सेण्ट्रल म्यूजियम और आमेर का महल दिखाने की व्यवस्था है। द्वितीय टूर : सुबह 7.00 बजे यह टूर शुरू होता है और दिन भर की यात्रा में जयपुर और नाहरगढ़ दिखा लाता है। तृतीय टूर : रविवार व छुट्टियों के दिन इस टूर में भाग लेकर जयपुर और रामगढ़ देखा जा सकता है। यह यात्रा सुबह 10.00 बजे शुरू होती है । सिटी पैलेस (जन्तर-मन्तर ) हवा महल आसपास स्थित है, पैकेज टूर के दौरान समयाभाव के कारण इन्हें मन भर कर नहीं देखा जा सकता। हवा महल के दाहिने जौहरी बाजार (आभूषण), थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर बापू बाजार (सुगंधी सामान व टेक्सटाइल वस्तुएँ), त्रिपोलिया (ताँबे व नक्काशी की वस्तुएँ) अर्थात् पुराने जयपुर के शॉपिंग सेण्टर भी घूमतेघामते देख ले सकते हैं । राजस्थान की इस प्राकृतिक व ऐतिहासिक भूमि पर स्थापत्य कला के प्राचीनतम अप्रतिम सौन्दर्य वाले मन्दिरों, गढ़ों, रानियों के जौहर व महाराणा प्रताप की वीरता से रंगी माटी का एक और अनोखा महल है सिटी पैलेस जो महल ही नहीं, एक छोटा-मोटा शहर है। इसी के उत्तर पश्चिम महल के मध्य में दुग्ध धवल सात मंजिल संगमरमरी पत्थरों के चन्द्र महल में महाराजाओं का अतीत सजीव हो उठा है। अप्रतिम सौन्दर्य, कलात्मकता, शैली व भव्यता वाले चन्द्रमहल से उत्तर में महल के बगीचे में गोविन्दजी का मन्दिर है । जयपुर का सुप्रसिद्ध व हैरतअंगेज पाँच मंजिला हवा महल सिटी पैलेस के निकट ही है। महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 में इसका निर्माण करवाया था । इसकी स्थापत्य शैली भी अद्भुत है। पीछे की 360 खिड़कियों से ठण्डी हवा आकर महल को शीतल करती है। इसमें बिना यंत्र के वातानुकूलन की व्यवस्था है। गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित 5 मंजिला यह महल देखने में पिरामिड जैसा लगता है। सूर्योदय के समय सूर्य की स्निग्ध किरणों से निखरे हवा महल का सौन्दर्य और भी अभिभूत कर देता है । शहर से दक्षिण रामनिवास उद्यान में जयपुर का जादूघर है। शुक्रवार को छोड़कर प्रतिदिन सुबह 10.00 से अपराह्न 4.30 बजे तक यह खुला रहता । जयपुर का चिड़ियाखाना भी रामनिवास उद्यान में ही है। खाई से घिरे इस चिड़ियाखाना में बाघ, सिंह स्वच्छन्द विचरण करते हैं । यहाँ क्रोकोडायल ब्रीडिंग फार्म है। शहर से 6.5 कि.मी. दूर 1734 में जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित नाहर गढ़ या सुन्दरगढ़ दुर्ग है। शहर से 10 कि.मी. पूर्व गलता जी है । कहा जाता है कि गलभ ऋषि ने इसी गलता में तपस्या की थी। निकट ही पहाड़ है। पहाड़ के शिखर पर मन्दिर है। शहर से 8 कि.मी. दक्षिण में आगरा रोड पर 1774 में बना सिसौदिया रानी का बाग है । मानसिंह की तृतीय पत्नी गायत्री देवी द्वारा निर्मित मोती का महल - मोती डूंगरी की भी काफी ख्याति है । शहर से 16 कि.मी. दक्षिण में जयपुर-अजमेर सड़क पर सांगानेर है । यह स्थान रंगीन छपाई एवं हाथों द्वारा निर्मित कागज के कुटीर उद्योग का केन्द्र रहा है। 1500 वीं ई. में निर्मित जैन मन्दिर समूह प्रासाद तथा अतीत का शहर आज ध्वंसावशेष में परिणत हो गया है। वर्तमान में यहाँ 10 जिनालय हैं। इनमें प्रमुख हैं मंदिर संघीजी, मंदिर अढ़ाई पेढ़ी तथा मंदिर बधीचंद्रजी । 64 2010_03 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका रानी के बाग के सामने निकट ही विद्याधर जी का बाग है। जयपुर का मूल आकर्षण शहर से 11 कि.मी. उत्तर-पूर्व में जयपुर दिल्ली रोड पर आमेर या अम्बर या कछवाहा अम्बर है। राजपूत स्थापत्य शैली का एक सुन्दर नमूना है यह अम्बर प्रासाद। 1592 में महाराजा मानसिंह ने इसका निर्माण आरम्भ कराया था और लगभग 100 वर्षों के बाद सवाई जयसिंह ने इसे पूरा कराया, फिर भी इसकी चमक-दमक आज भी ज्यों-की-त्यों है। जयपुर के जोहरी बाजार में स्थित होटल लक्ष्मी मिष्ठान भंडार अपनी मिठाइयों और शाकाहारी रैस्टोरेंट हेत विशेष रूप से प्रसिद्ध है। जयपुर में स्थानकवासी, तेरापंथी श्वेताम्बर, दिगम्बर जैन समाज की बड़ी आबादी है। इनके कई पुराने तथा प्रेक्षणीय जिनमंदिर यहाँ पर हैं। घी वालों का रास्ते में दीवान बघीचंद्रजी साह का बड़ा मंदिर है, उसके छत में सोने की छपाई, खंम्बों पर कुराई अत्यन्त सुन्दर ढंग से की गयी है। घी वालों का रास्ता, हल्दीयों का रास्ता, मोतीसिंह भोमियों का रास्ता, चौकडी आदि भागों में प्रेक्षणीय दिगम्बर जैनमंदिर हैं। यहाँ ठहरने के लिए निम्नलिखित धर्मशालाएँ हैं1. बनजी ठोलिया की धर्मशाला-घी वालों का रास्ता, 2. टाँक धर्मशाला, 3. बैराठिया धर्मशाला, 4. पुंगलिया धर्मशाला, स्टेशन रोड आदि स्थानों पर भी धर्मशालाएँ हैं। बरखेडा तीर्थ-जयपुर के निकट ही बरखेडा में भगवान ऋषभदेव का प्राचीन जिनालय है। जिसका जीर्णोद्धार आचार्य श्री विजय नित्यानन्द सूरि द्वारा 1999 में ही कराया गया। विशाल जैन मन्दिर दर्शनीय है। इसमें श्री शान्तिनाथ भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान, पुण्डरीक स्वामी, श्री सीमधर स्वामी आदि की भव्य प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। राजस्थान की राजधानी होने तथा विश्व मानचित्र पर भारत के प्रमुख पर्यटन शहर के रूप में होने के कारण यहां ठहरने हेतु अनेकों होटल, धर्मशालाएँ विभिन्न दरों पर उपलब्ध हैं। आमेर मार्गदर्शन : जयपुर से 11 कि.मी. उत्तर पूर्व में आमेर दुर्ग स्थित है। आमेर कछवाहा अम्बर के नाम से भी जाना जाता था। कछवाहा राजूपतों की यह प्राचीन राजधानी थी। राजपूत शैली में निर्मित यहाँ महल अपनी चमक दमक हेतु प्रसिद्ध है। सुन्दर कलात्मक जनाना महल, मनोरम जय मन्दिर, सुहाग मन्दिर, सुख मन्दिर अत्यन्त आकर्षित करते हैं। इस महल के निकट ही जयगढ़ का किला है। जो प्रातः 9 बजे से 4.30 बजे तक पर्यटकों हेतु खुला रहता है। यहाँ निम्न जिनालय विशेष दर्शनीय है। मन्दिर सावंला जी में भगवान नेमिनाथ जी की चमत्कारिक प्रतिमा के कारण यहाँ की विशेष मान्यता है। मन्दिर संघी जी छोटी सी पहाड़ी पर बसा यह मन्दिर प्राचीन है। नासियां भगवान चन्द्र प्रभु यहाँ भगवान नेमिनाथ की एक प्राचीन प्रतिमा अत्यन्त मनभावन है। मन्दिर संकट हरण पार्श्वनाथ-इस मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की 7 फुट पद्मासनस्थ प्रतिमा है। कीर्तिस्तंभ की नासियाँ : आमेर से 2 कि.मी. दर 18वीं सदी में अन्त में निर्मित यह नासियाँ है। 2010_03 www.jaind| 65.org Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका पार्श्वनाथ चलगिरी जयपुर आगरा रोड पर आगरा से जयपुर जाने के मार्ग पर जयपुर में प्रवेश से पूर्व ही खानिया जी अरावली पर्वतमाला को जोड़ती एक 400 फुट ऊँची शिखर पर सन् 1953 में आचार्य (अतिशय क्षेत्र) श्री देशभूषण जी की प्रेरणा से इस क्षेत्र का निर्माण हुआ। इस तीर्थ पर ऋद्धि-सिद्धिदायक विजय पताका महायंत्र अत्यन्त चमत्कारिक है। ऐसी मान्यता है कि यह महायंत्र सर्व प्रकार से संकट मोचक है। पहाड़ी पर जाने के लिए वाहन मार्ग के अतिरिक्त लगभग 1000 सीढ़ियों का मार्ग है। महावीर जी से जयपुर आते हुए यहाँ दर्शनलाभ लिया जा सकता है। नरैना पश्चिम रेल्वे के फुलेरा स्टेशन से दक्षिण की ओर 11 कि.मी. दूर नरैना स्टेशन है। सड़क के रास्ते अजमेर-आगरा मार्ग पर दूदू से सांभर जाने वाली सड़क पर 13 कि.मी. दूर पड़ता है। तीर्थ न होने पर भी बड़ी मात्रा में पुरातात्विक सामग्री के कारण तीर्थ की संज्ञा प्राप्त नरैना (नरायना) 11वीं-12वीं शताब्दी में बहत समद्ध व्यापारिक केन्द्र था। यहाँ से प्राप्त मर्तियाँ स्थानीय दिगम्बर जैन मन्दिर में विराजमान हैं। यहाँ आवास हेतु धर्मशाला उपलब्ध है। मौजमाबाद नरैना के पास दूदू से 11 कि.मी. दक्षिण-पूर्व में दूदू-फागी मार्ग पर स्थित मौजमाबाद भी कला और साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहाँ सन् 1607 में निर्मित दिगम्बर जैन मन्दिर दर्शनीय है। इसमें भव्य मूर्तियाँ एवं प्राचीन पाण्डुलिपियों का विशाल भण्डार विशेष रूप से दर्शनीय है। जिला जालोर श्री स्वर्णगिरी तीर्थ (जालोर) पेढ़ी: श्री स्वर्णगिरी जैन तीर्थ, दुर्ग पेढ़ी,स्वर्णगिरी दुर्ग, जालोर-343 001 (राज.) फोन : (02973) 32316 मूलनायक : श्री महावीर स्वामी श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : यह तीर्थ जालोर शहर के निकट मांडोली से 30 कि.मी. दूरी पर है। किले पर स्थित इस मंदिर से तलहटी 1 कि.मी. तथा वहाँ से जालोर रेल्वे स्टेशन 1 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहाँ से भाण्डवपुर तीर्थ 60 कि.मी., जहाज मन्दिर माण्डवला 20 कि.मी., राणकपुर 110 कि.मी., नाकोड़ा जी 95 कि.मी. दूर हैं। जोधपुर से यह 141 कि.मी. दूर पर है। रेल द्वारा अहमदाबाद, जोधपुर भीलड़ी से जालोर सीधा संपर्क में है। टैक्सी, रिक्शा की सुविधा तलहटी तक उपलब्ध है। जालोर शहर में प्रातः 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक विभिन्न शहरों से बसों का आवागमन होता रहता है। परिचय : स्वर्णगिरी पर्वत पर स्थित पश्चिम पहाड़ पर अन्य 12 श्वेताम्बर जैन जिनमंदिर हैं। यह तीर्थ पर्वत पर स्थित है, पहाड पर पैदल जाना पडता है। पहाड पर जाने के लिये आधा घंटा लगता है, डोली की सुविधा उपलब्ध है। पूजा का समय प्रात: 9 बजे से 11 बजे तक है। परम पूज्य स्वर्णगिरि तीर्थोद्वारक राजेन्द्र सूरिश्वर म. सा. की यह साधना भूमि थी। दुर्ग पर गुरुमंदिर दर्शनार्थी का मन मोह लेता है। यहाँ पर स्टेशन रोड पर स्थित नंदीश्वरद्वीप मंदिर एवं कीर्तिस्तम्भ भी दर्शनीय है। जालोर शहर प्राचीनकाल से ही सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहाँ के हिन्दू राजा कला एवं सौन्दर्य के विशेष प्रशंसक थे। स्वर्णगिरी पर्वत पर स्थित दुर्ग की राजस्थान में अपनी ही महत्ता है। दुर्ग के प्रमुख द्वार के निकट मुगल शासक मलिक शाह का मकबरा एवं मस्जिद है। यहाँ अनेक हिन्दू एवं जैन मन्दिर दर्शनीय हैं। 66 2010_03 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में कलेक्टर कचहरी के सामने भव्य धर्मशाला एवं भोजनशाला है। बिजली, टेलीफोन व्यवस्था, डोली की सुविधा, भ्रमण हेतु सुन्दर गार्डन में झूले आदि बच्चों के मनोरंजन हेतु तीर्थ पर यह सब उपलब्ध है। धर्मशाला का पता-कंचन गिरी विहार, पुराना बस स्टैण्ड, लक्ष्मी पिक्चर पैलेस के पास जालोर फोन : 32386, 338861 शहर में थ्री स्टार होटल, राजेन्द्र होटल, विटको होटल, अमर गेस्ट हाउस आदि भी उपलब्ध है। दुर्ग पर प्रातः 8.30 से 10 बजे तक भाता की व्यवस्था उपलब्ध है। शहर में भी भोजनशाला उपलब्ध है। श्री विमलनाथ जिनालय, आहोर जालोर नगर से पूर्व दिशा में सूकडी नदी के किनारे बसा हुआ आहोर नगर प्राचीन नगर है। यह जालोर से 18 कि.मी. दूर है। अनेक जिन मंदिरों से मंडित आहोर नगर का दर्शन करना बडा भाग्यशाली माना जाता है। आहोर नगर के स्थानीय बाजार के मध्य में बहुत ऊँची कुर्सी पर बना यह दो मंजिला जिनालय कमनीय संगमरमर के पाषाणों से निर्मित शिखर बद्ध जिनालय है। पहले इसका नाम श्री ऋषभदेव जिनालय था जिसमें मूलनायक प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवंत की विशालकाय, भव्य प्रतिमा विराजमान थी। इस प्रतिमा की अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा वि. सं. 1955 फाल्गुन कृष्णा 5 गुरुवार के दिन खरतरगच्छीय श्री पूज्य जिन मुक्तिसूरिजी के कर कमलों से संपन्न हुई थी। वि.सं. 2005 मार्गशीर्ष शुक्ला 6 सोमवार को पू. मुनिराज श्री कल्याण विजयजी म.सा. व पूज्य मुनिराज श्री सौभाग्य विजयजी म.सा. की प्रेरणा से अंजनशलाका-प्रतिष्ठा का भव्य प्रसंग श्री संघ ने मनाया एवं श्री विमलनाथ भगवंत की मनोहरी व नयनाभिराम प्रतिमा की पू. आ. प्रवर श्रीमद् विजय मनोहरद्भ सूरीश्वरजी म. सा. के कर कमलों से अंजनशलाका विधान होकर मल नायक के रुप में प्रतिष्ठा हई। तब से यह जिनालय श्री विमलनाथ जिनालय के नाम से सुप्रसिद्ध है। श्री विमलनाथ जिनालय के प्रांगण में गुरु मंदिर प.पू. जिनकुशलसूरिजी की गुरुमूर्ति बिराजमान है जिनकी प्रतिष्ठा वि. सं. 2035 वैशाख शुक्ला 13 शुक्रवार को हुई। आहोर नगर के सुविशाल गगनचुम्बी जिनालय जिन धर्मनिष्ठा का उद्घोष करते हैं। इसमें श्री गोडी सर्वाधिक प्रतिष्ठित और चमत्कारी श्री गोडीपार्श्वनाथ भगवान का तीन भमती युक्त अति दुर्लभ पार्श्वनाथ बावन बावन जिनालय है जो आहोर का अलंकरण माना जाता है। श्री गोडीपार्श्वनाथ भगवान की जिनालय आहोर मनहर मुद्रा दर्शक को सम्यग्दर्शन की ओर अभिप्रेरित कर आध्यात्मिक आलोक के दर्शन कराती हैं। नयनाभिराम मंदिर में जहाँ आत्म-शांति का बोध प्राप्त होता है, वहीं आत्मानुशासक जिनेन्द्र के दर्शन कर मन तथा मस्तिष्क दोनों ही श्रद्धा से झुक जाते है। कहते है कि इसके एक माह पश्चात वदी 1 को अलौकिक घटना घटी। पुजारी मंदिर के पास सोये हुए थे। तीन प्रहर रात गुजर गई थी, चौथे प्रहर की चौथी घड़ी में आकाशवाणी हुई 2010_03 www.jaineligranty.org Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका कि श्री गोडीपार्श्वनाथ तुष्टमान हुए है। पंचतीर्थी बावन जिनालय का निर्माण कराओ। मरुधर में यह प्रतिष्ठित तीर्थ होगा, श्री राजेन्द्रसूरि अंजनशलाका करेंगे। कृष्णपक्ष होने पर भी अद्भुत प्रकाश बरस रहा था, पुजारी जाग पडे। उन्होंने आकाश में दुन्दुभि का स्वर सुना, चारों और कुंकुम के चरण-चिन्ह और पंचवर्णी पुष्प-वर्षा देखी। सेवकों ने नगर में आकर सारा वृत्तान्त सुनाया। श्री संघ ने भावविभोर होकर देव-वाणी को शीश नमाकर, आदेश को शिरोधार्यकर शुभ-मुहूर्त में कार्य प्रारंभ करवाया एवं 19 वर्षों में 52 जिनालय का कार्य पूर्ण हुआ। सं. 1955 फाल्गुण कृष्णा 5 की शुभ तिथि में प. आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के ही कर कमलों से अंजन शलाका सम्पन्न हुई एवं 951 प्रतिमाजी की अंजनशलाका करवाकर बृहत-भंडार की स्थापना की। श्री गोडीजी जिनालय के तत्वावधान में जिनशासन की सांस्कृतिक धरोहर के रुप में श्री राजेंन्द्रसूरि जैन बृहद ज्ञान भंडार की स्थापना आचार्य श्री की पांडुलिपियाँ एवं ग्रंथ आज भी उपलब्ध है जिससे कई जैनाचार्य एवं विद्वान लाभान्वित हुए हैं। श्री उम्मेदपुर तीर्थ मूलनायक : श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथ भ.। मार्गदर्शन : यह तीर्थ जालोर-फालना मार्ग पर आहोर से 10 कि.मी. दूरी पर जालोर-पाली सीमा पर स्थित है। परिचय : इस तीर्थ की प्रतिष्ठा वि. सं. 1995 में योगीराज श्री विजय शांतिगुरु के द्वारा सम्पन्न हुई। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त मनमोहक एवं दर्शनीय है। ठहरेने की व्यवस्था : भोजनशाला एवं धर्मशाला की सुविधा उपलब्ध है। श्री चमत्कारी मूलनायक : श्री चमत्कारी पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण १०३ इंच (परिकर सहित)। पार्श्वनाथ जैन तीर्थ मार्गदर्शन : भिलडी-भीनमाल-जालोर रेल मार्ग पर बाकरा रोड स्टेशन है। जालोर से 28 कि.मी. दूरी पर है। भीनमाल-जालोर से नियमित रेल-बस सेवा उपलब्ध है। पेढ़ी: श्री चमत्कारी पार्श्वनाथ परिचय : पचास वर्ष पूर्व श्रीमद् विजय लब्धिचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. एवं श्री कमल विजय जी जैन तीर्थ की प्रेरणा से, गुरुदेव श्री विजय तीर्थेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. की भविष्यवाणी अनुसार, बाकरा श्री तीर्थेन्द्रसूरि स्मारक रोड स्टेशन पर इस तीर्थ को प्रारम्भ करने हेतु घोषणा की गयी। अत्यन्त कम समय में श्री संघ ट्रस्ट चमत्कारी पार्श्वनाथ जैन मंदिर, श्री गणधर मंदिर, गुरु मंदिर, श्री नाकोडा भैरवजी मंदिर, मु. पो. तीर्थेन्द्रनगर, श्री लब्धिचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. का समाधि मंदिर आदि पांचों मंदिरों की अंजनशलाका बाकरा रोड स्टेशन प्रतिष्ठा का मंगल कार्य सम्पन्न हुआ है। प्रतिष्ठा के पूर्व चमत्कार रूपी नागदेवता प्रकट हुए जि. जालोर-343025 हजारों लोगों ने दर्शन किये एवं दुग्धपान करवाया गया। गुरुदेव श्रीमद् विजय (राजस्थान) राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. की जन्म जयन्ती (गुरु सप्तमी) पोष सुद 7 के अवसर पर प्रतिवर्ष फोन : (02973) 51144 | यहाँ पर मेला लगता है। ट्रस्ट द्वारा जीवदया हेतु गौशाला एवं धर्म शिक्षण हेतु गुरुकुल की स्थापना आदि योजनायें हैं। 68. Jamedication International 2010_03 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका | ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर नूतन विशालतम धर्मशाला बनी हुई है। जिसमें सभी आधुनिक सुविधायें उपलब्ध हैं। यहाँ अति व्यवस्थित भोजनशाला का भी प्रबंध है। भाता आदि हेतु भी यहाँ पूर्ण व्यवस्था है। जालोर से लगभग 55 कि.मी. दूर पूर्वस्थित भुति गाँव एक सम्पूर्ण साधन संम्पन्न गाँव है। भती गाँव तथा फालना, जालोर, पाली, रानी आने जाने हेतु यहाँ नियमित बस सेवा उपलब्ध है। कवला गाँव यहाँ दो जैन मंदिर हैं एक श्री महावीर स्वामी का तथा दूसरा आदिनाथ भगवान का। मंदिरों की प्रतिष्ठा श्रीमद विजय भूपेंद्र सूरीश्वर जी के कर-कमलों द्वारा संवत् 1083 में सम्पन्न हुई थी। भगवान महावीर का मंदिर छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है। वहाँ तक पहुँचने के लिए 50-60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। चारों ओर का वातावरण अत्यंत रमणीक है। मंदिर में भगवान महावीर की चित्ताकर्षक प्रतिमा बरबस ही मंत्र मुग्ध सा कर देती है। इसी मंदिर में श्रीविजय राजेन्द्र सूरीश्वर जी की अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावशाली मूर्ति स्थापित की गयी है। भगवान आदिनाथ का मंदिर बाजार में नीचे ही स्थित है। अति आकर्षक और मनभावन इस मंदिर में प्रभु दर्शन का लाभ उठाकर लोग आनन्दित हो उठते हैं। गाँव में भगवान शिव का एक बड़ा मन्दिर तथा हनुमान एवं श्री कृष्ण के तीन चार मन्दिर हैं। भुति से 2 कि.मी. दूर गाँव कवला स्थित है। यहां की पहाडियों में मूल्यवान ग्रेनाइट पत्थर प्राप्त होने के कारण हजारों श्रमिकोंकी रोजी रोटी का यहाँ साधन है। यहाँ का सम्भवनाथ स्वामी का मन्दिर अत्यंत प्राचीन कहा जाता है। इनमें से एक मूर्ति वि. सं. 111 की है। इस प्राचीन तीर्थ पर प्रतिवर्ष कार्तिक एवं चैत्र पूर्णिमा पर मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ भोजन आदि की व्यवस्था सदैव रहती है। धर्मशाला का भी अच्छा प्रबन्ध है। कवला आने के लिए फालना, रानी, जवाई बाँध स्टेशन से बस व जीप की सुविधा उपलब्ध है। जालौर जिलान्तर्गत, भीनमाल तहसील में बसा यह गाँव भीनमाल से रामसीन जाने वाली मुख्य तवाव सड़क पर तथा भरूड़ी गाँव से पहले एवं धासेड़ी गाँव के बाद उत्तर दिशा में मोदरा जाने वाली मुख्य सड़क के निकट लगभग 3 से 4 कि.मी. की दूरी पर पर्वतराज की गोद में प्राकृतिक छटा एवं विशेषता लिए हुए बसा है। जनश्रुति के आधार पर पहले यह गाँव लगभग 2 कि.मी. दूर वाड़ी में था। किंवदन्ती यह भी है कि लगभग सात सौ वर्ष पूर्व इस गाँव का निर्माण हुआ था। जैन मंदिर का शिलान्यास इस गाँव में संवत् 1958 में हुआ। इस मंदिर के निर्माण में जैन भाईयों ने स्वयं श्रमदान किया जो सवंत 1972 में पूर्ण हुआ। संवत् 1997 में भगवान श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रुप में प्रतिष्ठित की गई। मंदिर के पीछे भाग में दुओं का पेड़ लगभग एक हजार वर्ष से भी पुराना माना जाता है। यहाँ पर विशाल नूतन धर्मशाला, आयंबिल भवन, भोजनशाला एवं उपाश्रय की सुविधा उपलब्ध है। 2010_03 www.jainela69rg Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान सियाणा | जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : सियाणा गाँव राजस्थान के जालोर जिले में जालोर शहर से 36 कि.मी. जालोर सिरोही मार्ग पर स्थित है। सिरोही से यह गाँव 41 कि.मी. बस मार्ग पर आता है। आबूरोड से नाकोड़ा जी जाने वाली बसें वाया सियाणा होकर ही जाती हैं। मांडोली शांतिसूरी जी के समाधि-स्थल से यह गाँव 11 कि.मी. है। तीर्थ यात्रा हेतु पधारने वालों के लिए बसों का साधन उपलब्ध है। परिचय : यहाँ पर दो भव्य गगनचुम्बी शिखर बद्ध जिनालय हैं। 1. श्री सुविधिनाथ भगवान का तिमंजलीय जिनालय महाराज कुमारपाल के समय में बना हुआ है। अति ही प्राचीन, सौम्य, आकर्षक, रमणीय, कलायुक्त, मनोहर है। परमात्मा सुविधिनाथ प्रभु की प्रतिमा अति ही मनमोहक, मन वांछित पूरण, सम्यग दर्शन प्रदायक है। तीसरी मंजिल पर शांतिनाथ भगवान की 81" अति ही भव्य प्रतिमा विराजमान है, बाजू में दादा गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरीश्वर जी एवं श्री धनचन्द्रसूरीश्वर जी की प्रतिमाएँ एवं शत्रुजय, गिरनार पहाड़ बने हुए हैं। 2. आदिनाथ भगवान का एक और शिखरबद्ध 70 वर्षीय प्राचीन जिनालय है जिनमें भमति में प्रभु आदिनाथ के भवों के पट्ट अति सुन्दर रंगों में बने हुए हैं। ठहरने की व्यवस्था : गाँव में दो बड़ी धर्मशालाएँ, भोजनशाला, आयंबिल भवन एवं श्री वर्धमान राजेन्द्र जैन धार्मिक पाठशाला सुचारू रूप से चल रही हैं। श्री भिनमाल तीर्थ मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, सुवर्ण वर्ण। मार्गदर्शन : जालोर से 70 कि.मी. दूर स्थित भिनमाल जाने के लिये जालोर, सिरोही, जोधपुर पेढ़ी: से सीधी बस सेवा है। यह तीर्थ माण्डोली से 31 कि.मी. दूर है। श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर परिचय : भिनमाल एक समय गुजरात की प्राचीन राजधानी था। आबू-देलवाड़ा मंदिरों के तपागच्छीय ट्रस्ट निर्माता विमलशाह इसी गाँव के थे। यहाँ के राजा तथा श्रेष्ठियों ने सारे भारत में धार्मिक मु. पो. भिनमाल, कार्य किये हैं। यहाँ का मुख्य मंदिर भिनमाल, शहर के मध्य में सेठवास में है। इसके जि. जालोर (राजस्थान) अलावा यहाँ दस और जिनमंदिर हैं। किसी जमाने में यह शहर बड़ा प्रभावशाली रहा होगा, यहाँ कई धनवान जैन श्रावक रहते थे। शंखेश्वर गच्छ के आचार्य श्री उदयप्रभसूरी जी ने विक्रम संवत् ७९१ में प्राग्वाट ब्राह्मणों को व श्रीमाल ब्राह्मणों को यहीं जैन बनाया था। माघ कवि की यह जन्मस्थली है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने हेतु उत्तम धर्मशाला एवं सुविधायुक्त भोजनशाला है। श्री मांडोली तीर्थ पेढ़ी: श्री गुरुमंदिर पेढ़ी मु. पो. मांडोलीनगर, जि. जालोर (राजस्थान) आचार्य श्री शान्तिसागर सूरी जी म. का समाधि मंदिर। मार्गदर्शन : जालोर से लगभग 28 कि.मी. दूर जालोर-रामसिन मार्ग पर यह तीर्थ स्थित है। यहाँ से भीनमाल लगभग 31 कि.मी. दर स्थित है। परिचय : महान तपस्वी योगीराज आचार्य श्री शान्तिसागर सूरि जी म. का अंत्य संस्कार इस स्थान पर हुआ था, इसलिये इस स्थान का महत्त्व है। अपनी तपश्चर्या के कारण उनको दिव्यशक्ति प्राप्त हुई थी। उनकी दिव्य शक्ति से अनेकों लोगों को लाभ प्राप्त हुआ। अतः जैन-जैनेतर समाज में उनके भक्तगण बड़ी संख्या में हैं। योगीराज के सिंधी भक्त सेठ किसनचंद ने यहाँ पर भव्य गुरुमंदिर का निर्माण करवाया है। Jain Quation International 2010_03 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : साथ ही यहाँ पर रामपुरीया धर्मशाला, शांताबहन धर्मशाला, रजत जयंती भवन, नाहटा भवन आदि कई भवनों का निर्माण हुआ। आचार्यश्री जिन चीजों का उपयोग करते थे, उनका संग्रहालय यहाँ पर है। लोगों की सेवा के लिये यहाँ पर आँखों का अस्पताल है, इसका लाभ यहाँ के सभी समाज के लोगों को होता है। गुरुपूर्णिमा, बसंत पंचमी, गुरु निर्वाण दिन (आश्विनवद १०) आदि दिवसों पर यहाँ मेला लगता है। गाँव में श्री सुमतिनाथ भगवान का मंदिर है। मूलनायक : श्री महावीर भगवान, श्वेतवर्ण। श्री सत्यपुर तीर्थ मार्गदर्शन : भिनमाल तीर्थ से यह स्थान 47 कि.मी. दूर है। मुख्य राष्ट्रीय मार्ग 15 पर बाड़मेर (सांचोर) से 135 कि.मी. दूर स्थित सांचोर नगर के मध्य में यह तीर्थस्थान है। आने के लिए जालोर, भिनमाल, बाडमेर, आबू, जोधपुर एवं सिरोही से बस सुविधा है। थराद (गुजरात) से यह पेढ़ी : तीर्थ 44 कि.मी. दूर है। श्री जैन मूर्तिपूजक संघ की। परिचय : सांचोर गाँव के मध्य में यह तीर्थस्थान है। यह भगवान महावीर के समय का बताया पढी जाता है। प्राचीन तीर्थों में इसकी विशेष महिमा है। भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री मु. पा. साचार गौतम स्वामी रचित "जग चिंतामणि" स्तोत्र में इस तीर्थ का वर्णन है। बाद में समय-समय जि. जालोर (राजस्थान) पर यहाँ जीर्णोद्धार होते रहे । यहाँ के मूलनायक की प्रतिमा अति मनोहर है। इसके अतिरिक्त यहाँ और चार जिन मंदिर हैं। .. ठहरने की व्यवस्था : बस स्टेण्ड के पास ही धर्मशाला, भोजनशाला है। मूलनायक : श्री भगवान महावीर, श्वेतवर्ण। श्री भाण्डवपुर मागदर्शन : यह तीर्थ जालोर स्टेशन से 56 कि.मी. दूरी पर भिनमाल तीर्थ से 50 कि.मी. सायला तीर्थ मेंगलवा मार्ग पर स्थित है। भिनमाल से मुख्य मार्ग पर पांथेरी 25 कि.मी. है वहाँ से सायला 25 कि.मी. है। सडक मार्ग मख्य राजमार्ग है। पांथेरी से 14 कि.मी. पोसाना है वहाँ होकर पेढी: भी भाण्डवजी जाया जा सकता है। यह मार्ग भी बडा मार्ग है। यहाँ से श्री नाकोडा तीर्थ श्री महावीर श्वेताम्बर पेढी 100 कि.मी. है। तथा जहाज मन्दिर मांडवला 45 कि.मी. है। मोदरा स्टेशन से यह पोस्ट भ 35 कि.मी. दूर है। मेगलवा, वाया सायला जालोर से सुबह प्रातः 8, 10.30, 12, दोपहर 2, 4 व 5 बजे तथा भिनमाल से प्रात: 8 बजे जिला जालोर-343 002 तथा सायं 4 बजे, मोदरा से प्रात: 9 बजे, 12 एवं 4 बजे यहाँ बसें आती हैं। (राजस्थान) फोन : 02977-53433 परिचय : भाण्डवपुर गाँव के बाहर स्थित यह प्राचीन तीर्थ स्थल चमत्कारिक स्थल भी है। प्रभु प्रतिमा का चमत्कार विख्यात है। इस प्राचीन भव्य बावनजिनालय के मन्दिर में प्रभु प्रतिमा की कला अति आकर्षक है। श्री राजेन्द्र सूरीश्वर जी का कमल के फूल के ऊपर बना मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। पूजा का समय प्रात: 7.30 से 3.30 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही विशाल सुविधायुक्त धर्मशाला है जिसमें अटैच्ड बाथरूम के 11 कमरे तथा अन्य साधारण 100 कमरे हैं। भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। समय प्रातः 10 से 1 तथा सायं 5 बजे से 6.30 बजे तक है। भाते की व्यवस्था है। समय प्रातः 8 से 4 बजे तक। 2010_03 www.jainelibar.Org Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जहाज मंदिर, मांडवला पेढ़ी: श्री जिनकांतिसागरसूरि स्मारक ट्रस्ट जहाज मंदिर, पो. मांडवला, जि. जालोर-343 042 (राजस्थान) Website : www.jainjahajmand ir.com टैलीफैक्स : (02973) 56107,56284 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शांतिनाथ भगवान। मार्गदर्शन : मांडवला गाँव राजस्थान राज्य के पश्चिमी क्षेत्र जालोर जिले में बसा हुआ है। जालोर से, नाकोड़ाजी जाते हुए, 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित बिशनगढ़ से 5 कि.मी. सायला रोड पर स्थित है। जोधपुर से इसकी दूरी 160 कि.मी., नाकोड़ाजी से 85 कि.मी., फालना से 90 कि.मी., अहमदाबाद से लगभग 400 कि.मी. है। परिचय : जहाज के आकार में बना यह मंदिर स्थापत्य, कल्पना-प्रवणता और सौन्दर्य की दृष्टि से विश्व का पहला जिनमंदिर है। 30 जनवरी 1999 को इस भव्य और कलात्मक जिनालय की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा पूज्य गुरुदेव श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के सानिध्य में सानन्द संपन्न हुई। विश्व के इस पहले जहाज मंदिर का संपूर्ण निर्माण कार्य मकराणे के धवल उज्ज्वल पाषाण में संपन्न हुआ है। यह मंदिर भूतल से 56 फीट ऊँचा है। मूलनायक श्री शांतिनाथ प्रभु की प्रतिमा उनके स्वर्ण वर्ण के आधार पर पंचधातु की बनी है और उस पर सोने की गहरी परत चढ़ी है। परमात्मा के परिकर का निर्माण पंचधातु में हुआ है और इसका शिल्प अपने आप में अद्वितीय और अन्यत्र अनुपलब्ध है। मूलनायक परमात्मा के दायीं ओर आदिनाथ एवं बायीं ओर वासुपूज्य प्रभु की परिकर युक्त प्रतिमाएँ विराजित हैं तथा सभी प्रतिमाएँ 41 इंच ऊँची हैं। गंभारे में स्थित दो देवकुलिकाओं में सुमतिनाथ भगवान एवं महावीर स्वामी की मनोहारी प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। कोली मंडप में स्तंभन पार्श्वनाथ एवं शंखेश्वर पार्श्वनाथ की फणों सहित भव्य प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं। दादावाड़ी में मूलनायक के रूप में दादा श्री जिनकशलसरिजी की प्रतिमा. दायीं ओर के गोखले में जिनदत्तसरि. बायीं ओर के गोखले में मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी की प्रतिमाएँ विराजित की गई हैं। गुरु मंदिर में पूज्य आचार्य श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी म. की 41 इंच की प्रतिमा एवं जिनहरिसागरसूरिजी एवं दर्शनसागरजी म. की चरणपादुकाएँ प्रतिष्ठित हैं। बाहर रंगमंडप में अतिभव्य बनी विशिष्ट देवकुलिकाओं में दायीं ओर श्री नाकोड़ा भैरव, घंटाकर्ण महावीर की प्रतिमा एवं बायीं ओर अंबिकामाता एवं पद्मावती देवी की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। नीचे पूज्य आचार्यश्री की समाधि भूमि पर पूज्य आचार्यश्री की भव्य कलात्मक चरणपादुका प्रतिष्ठित है। इस जहाज मंदिर परिसर के मुख्य द्वार पर जैसलमेर के पीले पाषाण से निर्मित एक तीन खण्ड वाला भव्य तोरणद्वार लगा है। इस तोरणद्वार के स्तंभों का बहुत सूक्ष्मता के साथ अंकन किया गया है। इस तोरणद्वार के स्तंभों में 16 विद्यादेवी, 24 यक्ष, 24 यक्षिणी, नवग्रह, दशदिक्पाल, अष्टमंगल आदि जैन शास्त्रों में उपलब्ध हर प्रतीक का भव्य चित्रण अत्यंत कलात्मक ढंग से किया गया है। जहाज मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा के समय परमात्मा शांतिनाथ एवं पूज्य आचार्यश्री की प्रतिमाओं से 5 घंटे तक लगातार अमीझरणा हुआ था। जिसे प्रतिष्ठा पर उपस्थित हजारों व्यक्तियों ने देखकर परम धन्यता का अनुभव किया था। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ जिनमंदिर के अलावा विशाल आराधना भवन, यात्रियों के आवास हेत विशाल धर्मशाला, भोजनशाला आदि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ साधु साध्वी प्रशिक्षण केन्द्र, मानव सेवा केन्द्र, साधार्मिक भक्ति केन्द्र, विशाल ज्ञान भण्डार एवं अस्पताल बनाने की योजनाएँ क्रियान्वित हैं। वर्तमान में सभी गतिमान गच्छ एवं संप्रदायों का वर्गीकृत एवं मंडनात्मक इतिहास झाँकियों के रूप में प्रस्तुत करने की योजना साकार रूप ले रही है। 72 Jain Eduation International 2010_03 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मलनायक: श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भ. श्वेतवर्ण। जिला जैसलमेर मार्गदर्शन : जैसलमेर जोधपुर से 290 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बाड़मेर से यह 165 कि.मी., श्री जैसलमेर तीर्थ पोकरण से 112 कि.मी., बीकानेर से 355 कि.मी., रामदेवरा से 126 कि.मी. दूर है । जोधपुर से रेलमार्ग द्वारा भी जैसलमेर जाया जा सकता है। जोधपुर से प्रातः 8.45 बजे एवं रात्रि पेढ़ी : 11.00 बजे जैसलमेर के लिए ट्रेन सेवा हैं जो क्रमश: सायं 4.55 व प्रात: 6.00 बजे जैसलमेर पहुँचती हैं। वायुयान सेवा दिल्ली जैसलमेर के लिए उपलब्ध है। जैसलमेर पंचतीर्थी जैसलमेर लोद्रवपुर पार्श्वनाथ जैन के दर्शन करते हुए बाड़मेर होते हुए नाकोड़ा जी पहुँचा जा सकता है। कुल 285 कि.मी. श्वेताम्बर ट्रस्ट का मार्ग है। जोधपुर से पोकरण होते हुए जैसलमेर पहुँचा जा सकता है। सड़क मार्ग चौड़ा जैन भवन, जैसलमेर और बढ़िया है। जोधपुर से ओसियाँ जी, रामदेवरा, पोकरण मार्ग से भी जैसलमेर पहुँच (राजस्थान) सकते हैं। फोन : (02992) 52404 जोधपुर से जैसलमेर, बीकानेर से जैसलमेर, अहमदाबाद से जैसलमेर, कच्छ-भुज से जैसलमेर तथा जैसलमेर से जयपुर व उदयपुर के लिए अनेक बसें उपलब्ध हैं। परिचय : महाराणा जेसलजी रावल ने विक्रम संवत 1156 में जब यह शहर बसाया. उस समय यहाँ लगभग 2700 मूर्तिपूजक जैन परिवार रहते थे। उसी समय यहाँ पर सुन्दर मंदिर बनवाये गये यहाँ के मंदिर ही नहीं, मकान भी कलात्मक ढंग से बने हैं। मंदिर तथा पटवाओं की हवेलियाँ देखने के लिये विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। इनमें सबसे प्राचीन चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर है इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 1459 में हुआ था। इस मन्दिर के निर्माण में 17 वर्ष लगे थे। इस मन्दिर की प्रतिष्ठा जिनचन्द्रसूरिजी के हाथों 1473 वि. सं. में हुई थी। मन्दिर में मूलनायक चिन्तामणि पार्श्वनाथ 23वें जैन तीर्थंकर की भव्य प्रतिमा, जो बालू रेत से बनी है, स्थापित है। इस मूर्ति के नाचे वि. सं. 2 लिखा है। इस मन्दिर के पास संभवनाथजी प्रभु का भव्य मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 1494 में महारावल लक्ष्मण के राज्यकाल में हुआ था। इसकी प्रतिष्ठा 1497 वि. सं. में महारावल वेरसी के राज्यकाल में हुई थी। संभवनाथजी के मन्दिर के नीचे तलभंवरे में जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार स्थापित है। इस मन्दिर के सामने शीतलनाथजी का मन्दिर बना ह। शातलनाथजी की प्रतिमा अष्ट धातु की बनी है। यह मन्दिर चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर का समकालीन है। मन्दिर के मुख्य द्वार पर सीढ़ियों से ऊपर को जाने पर शान्तिनाथजी एवं अष्टाप्रभुजी के मन्दिर बने हैं। नीचे के भाग में कुन्थुनाथ 17वें तीर्थंकर (प्रभु अष्टाजी) की मूर्ति मूलनायक के रूप में विराजमान है। इस मन्दिर का निर्माण महारावल देवकरण के राज्यकाल में सं. 1536 के लगभग हुआ था एवं प्रतिष्ठा जिन समुद्रसूरिजी के हाथों से हुई थी। मन्दिर के बाहर दो मन्दिर बने हैं-पहला चन्द्रा प्रभु स्वामी का तथा दूसरा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का। ये मन्दिर क्रमश: 1509 वि. सं. 1536 वि. सं. में बने थे। इन मन्दिरों की कला देखते ही बनती है। इन मन्दिरों में 6600 जैन प्रतिमाओं की प्रतिदिन पूजा होती है। मन्दिरों के तोरणों, गर्भगृहों, मण्डपों, शिखरों तथा प्रदक्षिणाओं में बनी जैन और जैनेतर मूर्तियाँ कलाकारों के श्रम और साधना के साथ-साथ उच्च कोटि की कला का स्वरूप प्रस्तुत करती हैं। कीचक कमी मूर्ति व चावल जितनी सूक्ष्म मूर्ति दुर्ग स्थित जैन मन्दिरों की विशेषता है। यह मन्दिर 8.30 से 12.30 बजे तक प्रातः दर्शकों के लिए खुले रहते हैं। 2010_03 www.jaineliya73rg Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार इस ज्ञान भण्डार में प्राचीन ताड़पत्रों, भोजपत्रों, कागजों तथा काष्ठ-पट्टिकाओं पर लिखे विभिन्न प्राचीन भाषाओं के ग्रन्थ, चित्र व प्रतिमाएँ संग्रहित हैं। इस ज्ञान भण्डार की स्थापना जिनभद्रसूरिजी महाराज ने 16वीं शताब्दी में की थी। ज्ञान भण्डार में दादा कुशलसूरिजी की चोल पट्टी रखी है। यह पट्टी उनके दाह संस्कार के समय इनके साथ जली नहीं थी। यहाँ पर कुल 8 जिनमंदिर हैं। यहाँ के मंदिर पीले पत्थर के हैं। मंदिरों के साथ-साथ यहाँ के प्राचीन ग्रंथभंडार देशविदेशों में मशहूर हैं। ताड़पत्र तथा कागज पर हस्तलिखित ग्रंथों का प्रचुर संग्रह है। श्री पार्श्वनाथ भगवान मंदिर के नीचे तलघर में प्रथम दादागुरु श्री जिनदत्त सूरी जी म. की 800 वर्षों से भी प्राचीन चादर, मुँहपत्ती और चोल पट्टे सुरक्षित हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरुदेव के अग्निसंस्कार के समय ये वस्तुएँ दिव्यशक्ति के कारण सुरक्षित रह गयीं। ज्ञानभंडार में स्फटीक की मूर्तियाँ, सोने-चाँदी जड़े हुए चित्र रखे हुये हैं। सभी मंदिरों की शिल्पकला इतनी सुन्दर है कि वे कला के बेजोड़ नमूने माने जाते हैं। तोरण, नर्तकीयाँ, स्तंभों की नक्काशी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। ठहरने की व्यवस्था महावीर भवन एवं जैन भवन में भी है। दर्शनीय स्थल : जैसलमेर भारत के थार (मृतक आवास) के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ चारों ओर बालू ही बालू नजर आती है। यह शहर सुनहरा नगर के नाम से प्रसिद्ध है। 1156 में रावल जैसल ने लोद्रवा से राजपाट यहाँ लाकर शहर की स्थापना की। इसके संस्थापक जैसल के नाम पर ही शहर का नाम जैसलमेर पड़ा है। लोद्रवा के रास्ते 6 कि.मी. जाने पर मरुभूमि में मरु-उद्यान अमर सागर व जैन मन्दिर हैं। लोद्रवा में किंवदंतियों से घिरे राजप्रासाद मायामहल के ध्वंसावशेष आज भी मूमल-महेन्द्र की प्रेम कहानियाँ सुनाते हैं। यह प्रासाद अनुपम कारीगरी व सौन्दर्य का प्रतीक है। यहाँ जैन मन्दिर में कल्पतरु वृक्ष है। जहाँ मनोकामना की पूर्ति के अलावा भाग्यवान पर्यटक हर साँझ खाई से निकल कर नागराज के दूध पीने के चमत्कारिक दृश्य को देख सकते हैं। जैसलमेर से लोद्रवा के लिए बस सेवा भी है। लोद्रवा के मार्ग में ही जैसलमेर से 7 कि.मी. दूर बड़ाबाग की प्रसिद्धि पत्थर की सुन्दर कलाकृतियों के लिए है। उस मार्ग में 9 कि.मी. जाने पर 3025 वर्ग कि.मी. में पसरे डेजर्ट नेशनल पार्क में बास्टर्ड पक्षी, चिंकारा, गैजल, सियार आदि देख लिए जा सकते हैं। पार्क में प्रवेश के लिए अनुमति व प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। नेशनल पार्क में ठहरने की भी व्यवस्था है। सर्दी की अधिकता होने के बावजूद यात्रा का मनोरम मौसम अक्टूबर से मार्च है। राजस्थान के हर शहर की भाँति जैसलमेर भी दुर्ग के आसपास ही बसा है। निर्माण काल के हिसाब से यह द्वितीय प्राचीनतम दुर्ग है और चित्तौड़ के बाद इसी का नाम आता है। दुर्ग के चार दरवाजे हैं। दुर्ग जैसलमेर के पीले पाषाणों से निर्मित है। दुर्ग में 12-15वीं शताब्दी के 8 जैन और 4 हिन्दू मन्दिर हैं-देव विग्रह, नृत्यरता मूर्ति तथा पौराणिक आख्यानों से अलंकृत हैं ये मन्दिर। 18वीं शताब्दी की पाँच तल्ले वाली पटवों की हवेली की कला उत्कृष्ट अनुपम है पटवों की हवेली की कला उत्कष्ट अनपम है। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में तत्कालीन एक प्रधानमंत्री का मकान नथमलजी की हवेली दो कारीगर भाइयों की कला-नैपुण्य का उत्कृष्ट नमूना है। जैसलमेर नगर के मध्य स्थित सालिम सिंह की हवेली सबसे ऊँची हवेली है। इसकी नक्काशी दर्शनीय है। जैसलमेर नगर में नगर का प्रमुख जलस्रोत गड़सीसर (गड़ीसर) सरोवर स्थित है। इस कृत्रिम सरोवर का निर्माण जैसलमेर के रावल गड़सीसिंह ने 1396 वि. सं. (ई. 1340) के लगभग कराया था। यहाँ पर कई शिव मन्दिर, छतरियाँ, बगेचियाँ तथा भव्य टीलों की प्रोल बनी हुई है। प्रात:काल एवं संध्याकाल में इस सरोवर के मध्य बने जल मण्डपों की शोभ देखते ही बनती है। Jahaducation International 2010_03 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका सरोवर के मध्य मार्ग पर एक विशाल द्वार (गेट) बना हुआ है। इसे टीलों की पोल या प्रोल कहा जाता है। जैसलमेर का एक और आकर्षण फरवरी में पूर्णिमा को होने वाला 3 दिवसीय मरु-उत्सव है। विभिन्न प्रकार के नृत्यों की ताल, गीतों के लय पर जैसलमेर झूम उठता है। उत्सवकाल में दूर-दराज के गाँवों से ग्रामीण अपनी परम्परागत पोशाकों में उत्सव का आनन्द लेने आते हैं। हस्तशिल्प की वस्तुओं की खरीद-बिक्री होती है। रेल्वे स्टेशन पार कर शहर में प्रवेश करते ही राजस्थान टूरिज्म का मूमल होटल है। आधा कि.मी. जाने पर बस स्टैण्ड है। और टैक्सी स्टैण्ड अमर सागर गेट के निकट है। बस स्टैण्ड पार करते ही बाजार तथा शहर है। बस स्टैण्ड के आसपास ही होटलों का जमावड़ा है। जैसलमेर में अक्टूबर से मार्च तक की अवधि के बाद होटलों की दरें आधी से भी कम हो जाती है। सम के धोरे जैसलमेर से 44 कि.मी. की दूरी पर सम के धोरे हैं। कनोई गाँव और सम गाँव के मध्य लगभग 2.5 कि.मी. लम्बे तथा 1.5 कि.मी. चौड़े विशाल रेत के टीले हैं। सायंकालीन सूर्यास्त का नयनाभिराम दृश्य तथा रंग बदलते धोरों का सायंकालीन दृश्य देखते ही बनता है। यहाँ पर आप ऊँट की सवारी कर सकते हैं। प्रति ऊँट 50/- रु. लिया जाता है। यहाँ पर आर.टी.डी.सी. का होटल भी बना है। राजस्थानी भोजन मूलसागर ढाणी पर हर समय उपलब्ध रहता है। आजकल सम में 2/- रु. प्रति दर्शक सहायता शुल्क लिया जाता है। मूलनायक : प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ श्वेतवर्ण। श्री अमर सागर मार्गदर्शन : जैसलमेर से लोद्रवपुर जाते हुए मार्ग पर 5 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। यहाँ तीर्थ जैसलमेर रेल्वे स्टेशन 5 कि.मी. दूर है। परिचय : यह मन्दिर गाँव में तालाब के निकट स्थित है। यहाँ की प्रतिमा संप्रति राजा के समय पेढ़ी: की मानी जाती है। इसके अतिरिक्त तालाब के किनारे अन्य दो जिनमंदिर हैं। यहाँ सक्ष्म श्राज जाली का काम दर्शनीय है। यहाँ दो दादावाड़ियाँ भी हैं जिनमें दादा गुरुदेव श्री जिनकुशल पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर सूरीश्वर जी के चरण स्थापित हैं। शिल्पकला की दृष्टि से यह मन्दिर श्रेष्ठ है। ट्रस्ट, महावीर भवन, मु. पो. जैसलमेर ठहरने की व्यवस्था : यहाँ निवास की कोई व्यवस्था नहीं है। जैसलमेर में ठहरकर यहाँ आना (राजस्थान) सुविधाजनक है। श्री जैसलमेर लोद्रवपर नमंदिर हैं। यहाँ सक्षम मूलनायक : श्री सहस्रफणा चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्यामवर्ण। श्री लोद्रवपुर तीर्थ मार्गदर्शन : जैसलमेर से 16 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। यात्रीगण अपनी गाड़ी या जैसलमेर पेढी : से टैक्सी लेकर अमर सागर, लोद्रवपुर (लोद्रुवा), ब्रह्मसागर (ब्रह्मसर) आदि तीर्थों की श्री जैसलमेर लोद्रवपुर यात्रा करते हैं। पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर परिचय : जैसलमेर पंचतीर्थी का प्राचीनतम मंदिर लोद्रवा तीर्थ है। यह एक चमत्कारी तीर्थ के ट्रस्ट रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ काली कसौटी पत्थर की श्री सहस्रफणा चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान मु. पो. लोद्रवपुर, की एक जैसी दो प्रतिमाएँ हैं। जिसमें से एक प्रमुख गर्भगृह में तथा दूसरी पड़ोस के गर्भगृह जि. जैसलमेर (राजस्थान) में है। मंदिर के सामने भव्य तोरण है। यहाँ के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार दानवीर श्रेष्ठी फोन : (02992) 40165 2010_03 www.jainelbr75org Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान | जैन तीर्थ परिचायिका थीरूशाह ने करवाया। यहाँ की दोनों प्रतिमाएँ उन्होंने पाटण के कारीगर को मूर्ति के वजन का सोना देकर ली थीं। दोनों मूर्तियाँ बहुत ही सुन्दर हैं। साथ ही यहाँ की कल्पवृक्ष की रचना दर्शनीय है। लकड़ी के इस कल्पवृक्ष पर पत्ते, फल और पक्षी बने हैं। यहाँ के पत्थरों पर बारीक जालियों की विविधता कलाकारों की उच्च ज्ञान की साक्षी हैं। मन्दिर के बाहर छोटे-छोटे 4 मन्दिर बने हैं। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के नजदीक धर्मशाला, भोजनशाला है। श्री ब्रह्मसागर तीर्थ मूलनायक : श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : जैसलमेर से 15 कि.मी. दूरी पर बागसा मार्ग पर यह तीर्थस्थान है। लोद्रवपुर से भी पेढ़ी: यहाँ जा सकते हैं । लोद्रवपुर तीर्थ यहाँ से लगभग 10 कि.मी. है। जैसलमेर से प्रातः से शाम श्री दादा जिन तक बसों का आवागमन रहता है। ट्रस्ट कशलधाम, पो. ब्रह्मसर, परिचय : ब्रह्मसर गाँव में मन्दिर के निकट ही वैशाखी नामक वैष्णव तीर्थ स्थल है जो जि. जैसलमेर (राजस्थान) बौद्धकालीन है। श्री दादागुरु जिनकुशलसूरी जी म. की दादावाड़ी है। दादावाड़ी में पानी का फोन : 02992-52171 कुंड है जो अकाल के समय भी हमेशा स्वच्छ, निर्मल जल से भरा रहता है। (पी.पी.) ठहरने की व्यवस्था : एक धर्मशाला है। जिसमें 40 कमरे अटैच्ड बाथ, 4 बड़े हॉल हैं। भोजनशाला उपलब्ध है। नाश्ता प्रात: 9 बजे तथा भोजन 11 से 2 बजे एवं 5 बजे से सूर्यास्त तक उपलब्ध रहता है। श्री रामदेवजी तीर्थ जैन और जैनेतर समाज में श्री रामदेव जी बाबा की बहुत मान्यता है। यहाँ भक्तजन दर्शन करने और मनौती हेतु पधारते हैं। यह स्थान जैसलमेर से 126 कि.मी. तथा पोकरण से 10 कि.मी. दूरी पर स्थित है। जैसलमेर से पोकरण, रामदेवरा होते हुए फलोदी, ओसियाँ से जोधपुर पहुँचा जा सकता है। रामदेवरा से फलोदी 58 कि.मी. तथा फलोदी से ओसियाँ 68 कि.मी. तथा ओसियाँ से जोधपुर 66 कि.मी. दूरी पर स्थित है। मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते के दोनों तरफ दुकानें एवं होटल हैं। यहाँ ठहरने हेतु धर्मशाला है। श्री पोकरण तीर्थ मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : जैसलमेर बीकानेर राष्ट्रीय मार्ग (15) पर जैसलमेर से 112 कि.मी. दूरी पर यह पेढ़ी: स्थान है। यहाँ का रेल्वे स्टेशन पोकरण मंदिर से लगभग 1 कि.मी. दूर स्थित है। श्री जैसलमेर लोद्रवपुर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर परिचय : मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1548 में हुई थी। बाद में इसका जीर्णोद्धार होकर फिर ट्रस्ट से विक्रम संवत् 1883 में प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यह जेसलमेर पंचतीर्थी का एक स्थान माना मु. पो. पोकरण, जाता है। यहाँ पर लाल पत्थर की बनी इमारतों में नक्काशी का काम देखने योग्य है। इनके जि. जैसलमेर (राजस्थान) अतिरिक्त यहाँ दो अन्य मंदिर हैं तथा गाँव के बाहर दादावाडी है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास सुविधायुक्त धर्मशाला है। 76 2010_03 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान श्वेतवर्ण। जिला जोधपुर मार्गदर्शन : जोधपुर से, भोपालगढ़ मार्ग पर, 35 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। यहाँ से बनाड़ 20 कि.मी., ओसियाँ जी 30 कि.मी., कापरडाजी 65 कि.मी. दूर है। मंदिर से बस स्टैण्ड : श्री गंगाणी तीर्थ लगभग 200 मी. दूरी पर स्थित है। प्रातः 8 बजे, दोपहर 12 बजे तथा 2.30 बजे जोधपुर से गंगाणी बस जाती है। तथा प्रातः 10 बजे, दोपहर 1 बजे तथा 4.30 बजे गंगाणी से पढ़ा : जोधपुर बस सेवा है। श्री जैन श्वेताम्बर प्राचीन तीर्थ परिचय : इस मंदिर का निर्माण संप्रति राजा द्वारा किया गया था ऐसी मान्यता है। यह तीर्थ 2,250 मु. पो. गंगाणी, वर्ष प्राचीन है। बाद में कई बार इसका जीर्णोद्धार हुआ। यह मंदिर भव्य एवं दो मंजिला तहसील भोपालगढ़ है। प्रतिवर्ष यहाँ होली के पश्चात् चैत्र कृष्णा सप्तमी को मेला लगता है। पूजा का समय जि. जोधपुर (राजस्थान) जाड़ों में प्रात: 7 बजे तथा गर्मियों में 6.30 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर सुविधायुक्त धर्मशाला, भोजनशाला है। धर्मशाला में 24 कमरे हैं। भोजनशाला में भाता की व्यवस्था नहीं है। श्री ओसियाँ तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर स्वामी सुवर्ण वर्ण। मार्गदर्शन : ओसियाँ रेल्वे स्टेशन जोधपुर-जैसलमेर मार्ग पर स्थित है। जोधपुर यहाँ से 66 कि.मी. दूरी पर है। जोधपुर से गंगाणी तीर्थ के दर्शन करते हुए भी ओसियाँ पहुँचा जा सकता है। परिचय : आचार्य श्री रत्नप्रभसूरी जी म. के उपदेश से यहाँ के राजा उपलदेव, मंत्री उहड और अनेक लोगों ने जैनधर्म अंगीकार किया था। ओसवाल वंश का यह उत्पत्ति स्थान है। यहाँ का मंदिर वीर प्रभु निर्वाण के लगभग 70 वर्ष बाद बना। समय-समय पर यहाँ जीर्णोद्धार हुआ। ओसवाल वंश का उद्गम स्थल होने के कारण इसकी बहुत मान्यता है। इस मंदिर में पुनिया बाबा के नाम से श्री अधिष्टायक देव की प्रतिमा नाग-नागिन के रूप में विराजमान पेढ़ी : 1. सेठ श्री मंगलसिंह जी रतनसिंह जी देवकी पेढी ट्रस्ट मु. पो. ओसियाँ, जिला जोधपुर (राज.) फोन : 02922-4260 2. सच्चियाय माता ट्रस्ट फान : 02922-4260 इस मंदिर से कुछ दूरी पर ओसवाल समाज की कलमाता श्री सच्चियाय (ओसिया) माता का मंदिर है। माता का मंदिर छोटी-सी पहड़ी पर है, ऊपर जाने के लिये सीढ़ियों का रास्ता बना है। जोधपुर यहाँ से नजदीक होने के कारण विदेशी पर्यटक भी यहाँ आते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला एवं भोजनशाला की सुविधा है। दर्शनीय स्थल : ब्राह्मण व जैन धर्म के 16 मन्दिरों के ध्वंसावशेष के लिए ओसियाँ की ख्याति है। 8 से 11वीं शताब्दी में निर्मित हरिहर, सूर्य महावीर, शचियामाता व जैन मन्दिर मध्ययुगीन स्थापत्य -शैली की उत्कृष्टता के अपूर्व प्रतीक के रूप में उस युग की स्मृति को ताजा कर देते हैं। वैसे, अन्तिम जैन तीर्थंकर महावीर का वैचित्र्य से भरा जैन मन्दिर ओसियाँ का अन्यतम दर्शनीय मन्दिर है। सच्चियायमाता के मन्दिर में पुत्र की कामना के लिए आज भी दूर-दराज से महिलाएं आती हैं। नागौर जोधपुर मार्ग पर जोधपुर से 74 कि.मी. दर शिव मन्दिर भी देखने योग्य है। 15वीं शताब्दी में राव जोधा द्वारा निर्मित दुर्ग, चतुर्भुज मन्दिर, विध्वस्त शिव मन्दिर के ऊपर औरंगजेब की बनायी गयी मस्जिद, दूध सागर सरोवर, मौनी बाबा का आश्रम व छतरी के लिए नागौर की प्रसिद्धि है। ठहरने के लिए डाक बंगला व धर्मशाला है। 2010_03 www.jainelibraryorg Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जोधपुर पेढ़ी: श्री भैरूबाग पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ सरदारपुरा, जोधपुर (राजस्थान) फोन : (0291) 730386 जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : राजस्थान का प्रमुख पर्यटन नगर जोधपुर सूर्यनगरी के नाम से विख्यात है। जयपुर से यह 340 कि.मी., अजमेर से 208 कि.मी., उदयपुर से 269 कि.मी., अहमदाबाद से 439 कि.मी. तथा बीकानेर से 243 कि.मी. दूर है। जोधपुर रेलमार्ग द्वारा उदयपुर, दिल्ली, अहमदाबाद, मुम्बई, कोलकाता से जुड़ा है। राज्य के विभिन्न नगरों के लिए यहाँ से रेल से बस सेवा उपलब्ध है। वायुमार्ग द्वारा भी यह देश के अनेक प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। परिचय : 1458 में राठौड़ राजपूत प्रधान राव जोधा ने शहर की स्थापना की थी। अतीत के राठौड़ राजाओं के मारवाड़ अर्थात् मरुदेश की राजधानी जोधपुर था। यहाँ पर जैनमंदिर के साथ ही महावीर भवन है, जहाँ कई स्थानकवासी संतों के चातुर्मास हुये हैं। यहाँ के जैनमंदिरों में सरदारपुरा विभाग में श्री पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। वहाँ पर धर्मशाला की भी सुविधा है। जैन क्रिया भवन, खैरातियों का वास, आहोर हवेली के निकट भी व्यवस्था हो जाती है। ठहरने की व्यवस्था : जोधपुर शहर राजस्थान का प्रमुख पर्यटन केन्द्र होने के कारण यहाँ अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ सभी सुविधाएँ सहित उपलब्ध हैं। दर्शनीय स्थल : शहर से 5 कि.मी. दूर 121 मी. ऊँचे पहाड़ी टीले पर जोधपुर का मूल आकर्षण मेहरनगढ़ दुर्ग है। प्रधान राव जोधा ने 1459 ई. में इसका निर्माण करवाया था। यह चारों ओर प्राचीर से घिरा है। सुबह 9.00 से सायं 5.00 बजे तक खुला रहता है। दुर्ग के नीचे यशवंत थाडा है। जोधपुर का एक और आकर्षण शहर के अन्तिम छोर पर गुलाबी मर्मरी पत्थरों से निर्मित उम्मेद भवन पैलेस है। संगमरमर तथा लाल पत्थरों से निर्मित यह भवन 1942 में डेढ़ करोड़ रुपये की लागत पर पूरा हुआ। आजकल इस महल के एक भाग को होटल उम्मेद भवन पैलेस में रूपान्तरित कर दिया गया है। जन-साधारण का प्रवेश मना है। फिर भी 120 रु. दर्शनी टिकट या 350 रु. के लंच के साथ महल का वैभव देख लिया जा सकता है। सुबह 9.00 से सायं 5.00 बजे तक खुला रहता है। टूरिस्ट बंगले से सटे-हाईकोर्ट रोड पर बिलिंगडन अर्थात् उम्मेद पब्लिक गार्डेन में सरदार म्यूजियम व पाठागार है। इस बगीचे में जोधपुर का चिड़ियाघर भी है। यह सुबह 10.00 से सायं 4.30 तक खुला रहता है। शुक्रवार को बंद रहता है। 7 कि.मी. दूर मन्डौर के मार्ग में 1159 में बनी बालसमन्द झील है। यह चारों सुबह 8सायं 6.00 बजे तक खुला रहता है। टिकट 1 रु. है। नव-निर्मित संतोषी माता का मन्दिर भी दर्शकों में काफी लोकप्रिय हो चुका है। 10 कि.मी. उत्तर पूर्व में महामन्दिर भी देख ले सकते हैं। पर्यटकों का प्रिय कैलाना झील भी 10 कि.मी. दूर है। जोधपुर की झीलों में यह सबसे बड़ी है। जोधपुर में स्टेशन रोड पर जनता स्वीट होम की मिठाईयाँ अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसके इर्दगिर्द अनेकों भव्य शोरूम हैं जिन पर पर्यटक यहाँ की विभिन्न वस्तुओं का अवलोकन कर खरीद भी सकते हैं। और उत्साही पर्यटक जोधपुर-बाडमेर मार्ग में 45 कि.मी. दूर धवा वन्य जीव संग्रहालय बस से जाकर देख सकते है। यहाँ काले एण्टीलोप (हिरन) पाये जाते हैं। 78 2010_03 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री स्वयंभू पार्श्वनाथ । श्री कापरडाजी मार्गदर्शन : जोधपुर-जयपुर मार्ग पर जोधपुर से 50 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ है। यहाँ से बिलाड़ा 27 कि.मी. दूर है। निकटतम रेल्वे स्टेशन सिलाड़ी 8 कि.मी. तथा पीपाड़ सिटी 16 कि.मी. दूर स्थित है। श्री गंगाणी तीर्थ यहां से 60 कि.मी. दूर है। जोधपुर से बस एवं टैक्सी का पेढ़ी : साधन उपलब्ध है। प्रमुख मार्ग पर होने के कारण बसों का आवागमन होता रहता है। श्री जैन श्वेताम्बर प्राचीन तीर्थ परिचय : यहाँ का मंदिर चार मंजिला एवं चौमुखी है। मंदिर के ऊँचे शिखरों का दर्शन बहुत मु. पो. कापरडा, वाया दूर से होता है। चार मंजिला चौमुखा भारतवर्ष में प्रथम मन्दिर है। भूतल से मन्दिर का भावी शिखर लगभग 95 फुट ऊँचा है। इसकी कला अति सुन्दर दर्शनीय है। पूजा सायं 4 बजे तहसील बिलाड़ा, जि. तक कर सकते हैं। जोधपुर-342 605 यह मंदिर श्री भानाजी भंडारी द्वारा बनाया गया। यहाँ की प्रभु प्रतिमा इसी गाँव में बबूल (राजस्थान) की झाडी में पायी गयी और वह प्रभु के जन्मकल्याणक दिन को प्रकट होने से उसे श्री फोन : (02930) 63909. स्वयंभू पार्श्वनाथ भगवान कहते हैं। प्रभु प्रतिमा के हस्त रेखा, पैरों में नख एवं पद्म भी है। 63947 पी.पी. ठहरने की व्यवस्था : यहाँ सुविधायुक्त 60 कमरों की धर्मशाला है एवं भोजनशाला की सुविधा है। मावा मार्गदर्शन-जोधपुर-जयपुर मार्ग पर जोधपुर से 79 कि.मी. दूरी पर मुख्य मार्ग से लगभग श्री बिलाड़ा तीर्थ 2 कि.मी. अंदर गाँव में तहसील के सामने जैन दादावाड़ी स्थित है। यह तीर्थ कापरडाजी से 27 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ गाँव के बाहर प्रमुख मार्ग पर सोजत, जोधपुर के लिए बसें पेढी : मिल जाती हैं। श्री जिनचन्द्र सूरि जैन परिचय-यह चतुर्थ दादा गुरुदेव श्री जिनचन्द्र सूरि जी का समाधि स्थल है। दादा गुरुदेव ने दादावाड़ी अकबर को प्रतिबोधित किया था। अतः अकबर प्रतिबोधक दादागुरु के नाम से भी प्रसिद्ध है। तहसील के सामने यहाँ ठहरने हेतु 12 कमरों की सुविधायुक्त व्यवस्था है। ओढ़ने बिछाने का सामान उपलब्ध बिलाड़ा (जिला जोधपुर) फोन : (02930) 22676 है। भोजनशाला आदि की व्यवस्था उपलब्ध है। यहाँ पहुँचने पर पुजारी जी को सूचित करने पर भोजन आदि तैयार कर दिया जाता है। मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, हरितवर्ण, कार्योत्सर्ग मुद्रा। जिला झालावाड़ मार्गदर्शन : यह स्थान राजस्थान के झालावाड़ जिले में है, किन्तु मालवा तीर्थस्थानों की यात्रा श्री नागेश्वर तीर्थ करते हुये यहाँ जाना सुविधाजनक है। यहाँ से नजदीक रेल्वे स्टेशन विक्रमगढ़ आलोट 8 कि.मी. तथा चोमहला (राजस्थान) 15 कि.मी. नागदा-शामगढ़ के मध्य रतलाम कोटा पेढ़ी: लाइन पर स्थित है। स्टेशन से यात्रियों की सुविधा हेतु जीप व मिनीबस की सुविधा पेढ़ी श्री जैन श्वेताम्बर नागेश्वर की ओर से है। चौमहला से भी पक्का रास्ता है तथा नियमित बस सेवा उपलब्ध है। सड़क तीर्थ पेढी मार्ग से रतलाम से लगभग 92 कि.मी. दरी पर तथा उज्जैन से लगभग 100 कि.मी. दरी पर मु. पो. उन्हेल, तथा जाओरा से 55 कि.मी. दूरी पर उन्हेल के निकट स्थित है। स्टे. चौमहला परिचय : यहाँ की श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लगभग ग्यारह सौ वर्ष पुरानी है। उपाध्याय जि. झालावाड़-326 515 श्री धर्मसागर जी म. तथा गणिवर्य श्री अभयसागर जी म. ने इस परिसर के जैनसंघ को (राजस्थान) जागृत किया और उनकी प्रेरणा से उचित सरकारी कदम उठाकर मंदिर का कार्यभार जैनसंघ फोन : (07410) 40711. ने अपने हाथ में सँभालकर विधिवत् सेवा-पूजा प्रारम्भ की। 40715 2010_03 www.jainel 79org Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मंदिर जब कब्जे में मिला, तब वह जीर्ण अवस्था में था। परिसर के जैनसंघ ने यहाँ भव्य मंदिर की योजना बनायी और करोड़ों रु. की लागत से मंदिर का निर्माण किया। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा 14 फुट ऊँची है। कायोत्सर्ग अवस्था में इतनी ऊँची श्वेताम्बर प्रतिमा अन्यत्र कम देखने को मिलती है। मूलनायक के दोनों ओर सफेद संगमरमर की साड़े चार फुट ऊँची श्री शान्तिनाथ भ. और श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाएँ हैं। श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा इतनी तेजस्वी है, ऐसा प्रतीत होता है कि रत्नों से बनायी गयी है। संवत् 2026 में मंदिर की प्रतिष्ठा हुई। मूलनायक प्रभु प्रतिमा अत्यन्त प्रभावी होने के कारण यहाँ भक्तगण बड़ी संख्या में आते हैं। श्री जिनकुशलसूरि ___ ठहरने की व्यवस्था : तीर्थ स्थल पर अनेक धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला का भी प्रबन्ध है। दादावाड़ी आलोर में भी पेढ़ी ने एक विशाल धर्मशाला का निर्माण किया है धर्मशाला ऑफिस से फोन द्वारा जीप, मिनीबस व अन्य वाहन उपलब्ध हो सकते हैं। पेढ़ी: श्री जैन श्वे. खरतरगच्छाचार्य श्री जिनकुशलसूरि दादावाड़ी श्री जिनकुशल गुरु भारतवर्ष में दादा श्री जिनकुशलसूरिजी की प्रथम खड़ी प्रतिमा दिनांक 2-5-82 वि. सं. दादावाड़ी ट्रस्ट उन्हेल (नागेश्वर), 2039 वैशाखसुदी 10 को प. पू. श्री चंद्रप्रभा श्रीजी म. सा. की प्रेरणा से यहाँ प्रतिष्ठित की रेल्वे स्टेशन, चौमहला, गयी। यह दादावाड़ी श्री नागेश्वर तीर्थ के निकट में ही स्थित है। यह प्रतिमा अत्यन्त जि. झालावाड़-326 515 मनमोहक एवं चमत्कारिक है। यहाँ ठहरने हेतु उत्तम व्यवस्था उपलब्ध है। उपाश्रय की फोन : (07410) 40721 सुविधा भी यहाँ है। चाँदखेड़ी मूलनायक : भगवान आदिनाथ जी। मार्गदर्शन : झालावाड़-बारां सड़क मार्ग पर खानपुर से 2 कि.मी. दूर कोटा से 115 कि.मी. दूर तथा झालावाड़ से 42 कि.मी. दूर स्थित है चाँदखेड़ी अतिशय तीर्थ क्षेत्र । यहाँ से बीनाकोटा रेल लाइन पर अटरू स्टेशन 60 कि.मी. व पश्चिमी रेल्वे पर झालावाड़ रोड स्टेशन 72 कि.मी. दूर है। इन्दौर से जयपुर व कोटा जाने वाले मार्ग से भी झालावाड़ पहुँचा जा सकता है। परिचय : औरंगजेब के शासन काल में कोटा महाराजा किशोरसिंह के दीवानशाह बिशनदास बघेरवाल ने इस क्षेत्र का निर्माण करवाया था। सन् 1686 का प्रतिष्ठित विशाल मन्दिर भूगर्भ में है। इस स्थान के चमत्कारों का वर्णन मिलता है। भगवान आदिनाथ जी की प्रतिमा लगभग 2 मीटर ऊँची व पौने दो मीटर चौड़ी है। क्षेत्र के प्रवेश द्वार में घुसते ही एक अहाते में जिन मन्दिर है जिसमें अनेक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ एक नवीन समवसरण मन्दिर है। चैत्र कृष्ण 5 से 9 तक वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। ठहरने की व्यवस्था : सर्व सुविधा सम्पन्न एक विशाल धर्मशाला भी है। मंदिर के चारों ओर धर्मशालाएँ हैं। Jalu ation International 2010_03 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : भगवान शान्तिनाथ जी। झालरापाटन मार्गदर्शन : झालावाड़ रोड स्टेशन से 30 कि.मी. पक्की सड़क व नियमित बस सेवा द्वारा जुड़ा झालरापाटन एक अतिशय क्षेत्र है तथा सड़क मार्ग द्वारा अजमेर, जयपुर, कोटा आदि से भी पेढ़ी: श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जुड़ा हुआ है। बसों का आवागमन निरन्तर है। यह झालावाड़ से 6 कि.मी. तथा चाँदखेड़ी जैन मन्दिर से 45 कि.मी. दूर स्थित है। यह नगर के मध्य स्थित है। झालरापाटन नगर, परिचय : यहाँ विशाल ऊँचे शिखर वाले भव्य जिन मन्दिर जिसमें मलनायक भगवान शान्तिनाथ जि. झालावाड़-326 023 जी की पौने तीन मीटर ऊँची प्रतिमा अति मनमोहक है। पजा का समय प्रातः 7 से 9 बजे (राजस्थान तक है। प्राचीन काल में इस स्थान पर सन् 1044 में निर्मित शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर था। वर्तमान मन्दिर प्राचीन मन्दिर के स्थान पर ही बना हुआ है। द्वार पर दो विशाल श्वेत वर्ण हाथी चौकीदार की भाँति खड़े हैं। मन्दिर में तीन ओर 15 वेदियाँ हैं यहाँ हस्तलिखित ग्रन्थों का विशाल भण्डार व अनेक प्राचीन मूर्तियाँ भी दर्शनीय हैं। नगर में 4 अन्य जिन मन्दिर हैं यहाँ अनेक धार्मिक व सार्वजनिक संस्थाएँ भी कार्यरत हैं। इनमें ऐलक पन्नालाल जी द्वारा संवत् 1972 में स्थापित 'श्री ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन' उल्लेखनीय है। इसकी एक शाखा ब्यावर, उज्जैन आदि में भी है। यहाँ पर 10वीं शताब्दी में निर्मित तीनों स्थानों पर 15000 हस्तलिखित व मुद्रित पुस्तकें संग्रहीत हैं। ठहरने की व्यवस्था : नगर में लक्ष्मणलाल दिगम्बर जैन धर्मशाला समस्त सविधाओं से सम्पन्न है। चम्बल नदी के तट पर बसा कोटा शहर अपने बाँध के लिए भी प्रसिद्ध है। शहर के मध्य में जिला कोटा पुराना दुर्ग है। गढ़ (पैलेस फोर्ट) पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। दुर्ग के प्रवेश द्वार पर म्यूजियम है। कोटा उद्यान में मगरमच्छ का तालाब व वृक्षों को दी गयी जीव- काटा. जन्तुओं की आकृति से दृश्य अति मनोरम हो गया है। अमर निवास में चम्बल उद्यान अत्यन्त रमणीक पिकनिक स्थल है। यहाँ पर नौका विहार की सुविधा भी उपलब्ध है। टूरिस्ट बंगले के निकट ही ब्रिज राजभवन महल, राजाओं की समाधि, विलास उद्यान तथा कोटा सरोवर में द्वीप महल दर्शनीय है। दुर्लभ चतुर्मुखी शिवलिंग का दर्शन लाभ कांसुआ मंदिर में लिया जा सकता है। नाथद्वारा, जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, भोपाल, इन्दौर आदि राज्यों से कोटा बस मार्ग द्वारा नियमित सम्पर्क में है। ट्रेन द्वारा यह मुम्बई, आगरा, दिल्ली आदि अनेकों प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कोटा में हवाई सेवा भी उपलब्ध है। कोटा की साड़ी जग ख्याति प्राप्त है। यहाँ ठहरने हेतु राजस्थान टूरिज्म के होटल, अन्य अनेकों होटल उच्च एवं मध्यम दरों पर उपलब्ध हैं। शहर में धर्मशालाएँ भी हैं। 2010_03 www.jaineli Storg Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जिला करौली श्री महावीरजी तीर्थ (श्री चांदनपुर तीर्थ) पेढ़ी: श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी मु. पो. श्री महावीरजी, (चांदनपुर गाँव) जि. करौली (राजस्थान) फोन : 07469-24323 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, ताम्रवर्ण। मार्गदर्शन : यह तीर्थ राजस्थान के जिला करौली में स्थित है। करौली को हाल ही जिला बनाया गया है। पूर्व में यह तीर्थ जिला सवाईमाधोपुर में था। मुम्बई-दिल्ली रेल्वे मार्ग पर श्री महावीर जी रेल्वे स्टेशन है। विश्व प्रसिद्ध अतिशय तीर्थ क्षेत्र श्री महावीर जी पश्चिमी रेल्वे के भरतपुर-गंगापुर रेल्वे मार्ग पर श्री महावीर जी रेल्वे स्टेशन से 7 कि.मी. दूर चाँदनपुर गाँव के गंभीर नदी के तट पर स्थित है। स्टेशन से मन्दिर तक का मार्ग पक्की सड़क द्वारा जुड़ा है। ताँगे की सवारी भी उपलब्ध रहती है। स्टेशन पर कई गाड़ियाँ रुकती हैं। प्रत्येक गाड़ी पर यात्रियों हेतु बड़े मंदिर तक जाने व स्टेशन आने के लिए निःशुल्क बस सेवा उपलब्ध है। करौली जिले में स्थित इस क्षेत्र से सड़क मार्ग द्वारा जयपुर 140 कि.मी., आगरा 170 कि.मी., दिल्ली 300 कि.मी. तथा महुआ 60 कि.मी. दूर स्थित है। दिल्ली, आगरा, जयपुर, तिजारा, भरतपुर. मथुरा हस्तिनापुर, पदमपुरा, ग्वालियर, सोनागिरी, मेरठ आदि स्थानों से नियमित बस सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है। परिचय : यह अतिशय क्षेत्र राजस्थान का सर्वाधिक व्यवस्थित एवं उन्नतिशील तीर्थ माना जाता है। यह प्रतिमा एक टीले पर भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। कहा जाता है कि एक ग्वाले की गाय उस टीले पर जाकर सारा दूध झर देती थी। वहाँ पर खोदकर देखा गया, तब यह प्रतिमा मिली। इस प्रतिमा के दर्शन करने से ही भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण होने लगी, इसलिए यहाँ भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। यहाँ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तक बड़ा मेला लगता है। इस अवसर पर लाखों की संख्या में जैन-जैनेतर लोग अपने श्रद्धासुमन चढ़ाने आते हैं। श्री महावीर जी का मन्दिर एक सुन्दर कटले के मध्य में हैं। अन्य देवालय-यहाँ तीर्थ क्षेत्र के मुख्य जिन मंदिर के अतिरिक्त तीन जिनालय (मंदिर) और हैं। गम्भीर नदी के दोनों तटों पर स्थित जिनालयों में शांतिवीर नगर में बना विशाल मंदिर बहदाकार खडगासन जिन प्रतिमाओं का दर्शनीय केन्द्र है। यहाँ मंदिर के विशाल प्रांगण में प्रतिष्ठित 16वें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ की श्वेत संगमरमर पाषाण की प्रतिमा है। मंदिर में अन्य खड़गासन प्रतिमाओं के अतिरिक्त लघु वेदियों में विभिन्न 24 तीर्थंकरों एवं जैन देव-देवियों की प्रतिमाएँ हैं। एक जिनालय इस मंदिर के सामने है जो श्री कीर्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथ जिनालय भी है जिसमें काँच की सुन्दर रंगीन पच्चीकारी-चित्रकारी में जैन तीर्थंकरों एवं मुनियों के विभिन्न भावों को दर्शाया गया है। इस मंदिर के साथ ही ब्रह्मचारिणी कमला बाई द्वारा संचालित आदर्श महिला महाविद्यालय है। इसके अतिरिक्त मुख्य मंदिर के पश्चिम में कृष्णा बाई का आश्रम है एवं जिन मंदिर है। चलती ट्रेन से भगवान के दर्शन-दिल्ली-बम्बई ब्रॉडगेज लाइन पर स्थित श्री महावीरजी रेल्वे स्टेशन पर चलती ट्रेन से भगवान श्री के दर्शन की व्यवस्था की गयी है। स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक पन्द्रह फीट ऊँचे विशाल चित्र स्तम्भ में स्थाई रूप से भगवान महावीर के 4 x 6 फीट साइज के बड़े चित्र, तीर्थ क्षेत्र के विहंगम चित्रों के साथ लगाये गये हैं। स्तम्भ के दोनों ओर चित्र हैं और यात्रीगण बिना प्लेटफार्म पर उतरे, बैठे-बैठे ही ट्रेन से भगवान महावीर के दर्शन कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं। क्षेत्र कमेटी ने ही "महावीर दर्शन" नामक इस चित्र स्तम्भ का निर्माण किया है। राजस्थान के कत्थई रंग के ग्रेनाइट पत्थर से बने इस स्तम्भ के बीच किंक्रल ग्लास में जड़ित बड़े चित्र लगाये गये हैं। रात्रि के समय दोनों ओर से चित्र स्पष्ट दिखाई दे सकें, इसके लिए रोशनी का आवश्यक प्रबन्धक भी किया गया है। यह स्तम्भ अत्यन्त मनोहर, कलापूर्ण और आकर्षक है। Jai 82 ufation International 2010_03 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने हेतु अत्यन्त सुविधा सम्पन्न कटला परिसर, सन्मति धर्मशाला, वर्धमान धर्मशाला, यात्रि निवास आदि धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ यात्रियों हेतु क्षेत्र द्वारा भोजनालय की व्यवस्था है। भोजनालय प्रातः 10 से 12 व सायं 4.30 से 5.30 तक खुलता है। यात्रियों के लिए तीर्थ क्षेत्र में सभी आवश्यक सुविधाएं जैसे-जल, बिजली डाक-तार, टेलीफोन, बैंक, औषधालय, डिस्पेंसरी, वाचनालय आदि उपलब्ध हैं। मन्दिर के बाहर अनेकों दुकानें आदि हैं जहाँ आवश्यकता का सामान आदि उपलब्ध हो जाता है। श्री कैलादेवी श्री महावीर जी से लगभग 30 कि.मी. दूर करोली तथा करौली से 23 कि.मी. दूर श्री कैलादेवी मन्दिर स्थित है। यहाँ दुर्गा पूजा के समय विशेष भीड़ रहती है। मंदिर के बाहर ठहरने हेतु अनेक धर्मशालाएँ उपलब्ध है। भोजन आदि हेतु मंदिर के निकट ही कैन्टीन की सुविधा है। आगरा-जयपुर आदि निकटवर्ती क्षेत्रों से लोग यहाँ पर आते हैं। हिन्दु समाज में यहाँ की कैलादेवी की बहुत मान्यता है। मेंहदीपुर बालाजी जयपुर-आगरा मार्ग पर दौसा से 42 कि.मी. दूर महुआ से 15 कि.मी. पूर्व स्थित मेंहदीपुर बाला जी के दर्शनार्थ यात्रीगण आते रहते हैं। बालाजी की मान्यता भूत-प्रेत, दुष्ट छाया आदि के प्रभाव को दूर करने हेतु बहुत अधिक है। मार्गदर्शन : लाडनूं सुजानगढ़-डीडवाना रोड पर स्थित सुजानगढ़ से 11 कि.मी. दूर है। यह जिला नागौर रतनगढ़-डेगाना रेलवे मार्ग पर आता है। सीकर से लक्ष्मनगढ़-सालासर-सुजानगढ़ होते हुए यह 77 कि.मी. दूर पड़ता है। सीकर-जयपुर 115 कि.मी. का राजमार्ग है। जयपुर से लाडनूं लाडनूं की सीधी बस सेवा है। परिचय : लाडनूं में प्राचीन बड़ा मंदिर अपनी वास्तु कला एवं भव्यता के कारण दर्शनीय है। नगर परकोटे के बाहर सुखसदन सम्पूर्ण संगमरमर का निर्मित विशाल जिनालय है। रात्रि में कृत्रिम रोशनी में विशेष दर्शनीय है। यहाँ पर जैन विश्वभारती डीम्ड यूनिवर्सिटी दर्शनीय है। जैन विश्वभारती परिसर में आवास-भोजन आदि की सुविधाएँ उपलब्ध है। मूलनायक : श्री फलवृद्धी पार्श्वनाथ भगवान, श्यामवर्ण । श्री फलवृद्धी मार्गदर्शन : मेड़ता शहर से यह स्थान 15 कि.मी. दूरी पर है। जोधपुर, मेड़ता शहर, नागौर से M पार्श्वनाथ तीर्थ a s यहाँ आने के लिए बसें मिलती हैं। मेड़ता रोड जंक्शन लगभग 200 मीटर दूर है। मेड़ता शहर से जोधपुर 135 कि.मी., नागौर से 64 कि.मी. दूर है। पेढ़ी: परिचय : यह एक महान प्रभावी तीर्थस्थान है। श्री जिनप्रभसूरी जी म. की चौदहवीं शताब्दी में श्री फलवृद्धी पार्श्वनाथ रचित "विविध तीर्थ कल्प" में उल्लिखित है कि "इस तीर्थ के दर्शन से अड़सठ तीर्थों तीर्थ ट्रस्ट के दर्शन का लाभ होता है।" इस कल्प में यह भी बताया है कि यहाँ के गोपालक श्री मु. पो. मेड़ता रोड, धांधल श्रेष्ठी की एक गाय दूध नहीं देती थी। गौ-चरवाहे द्वारा उसकी जाँच करने पर पता जि. नागौर (राजस्थान) लगा कि एक टींबे के पास पेड़ के नीचे गाय के स्तनों से दूध हमेशा झर जाता है। यह बात फोन : 01591-52426, उसने सेठ को बतायी। सेठ को स्वप्न में अधिष्टायक देव ने बताया कि जहाँ दूध झरता है, 76940 2010_03 www.jainel 83.rg Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका वहाँ देवाधि देव श्री पार्श्वनाथ प्रभु की सप्तफणी प्रतिमा है। तब सेठ ने और उनके मित्रों ने वह प्रतिमा निकालकर मंदिर का काम शुरु किया। अर्थाभाव के कारण कार्य कुछ रुक गया किन्तु अधिष्टायक देव की सहायता से स्वर्णमुद्राएँ प्राप्त हुईं और मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा। इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1181 में आचार्य श्री धर्मघोष सूरी जी म. के सानिध्य में संपन्न हुई। इस मंदिर पर सुलतान शहाबुद्दीन सैनिकों ने आक्रमण किया तब सुलतान बहुत बीमार हुआ, इसलिये उसने मंदिर पर आक्रमण न करने का आदेश सैनिकों को दिया। यहाँ पर इस प्रकार कई चमत्कारी घटनाएं होती रहती हैं। प्राचीन प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर, साक्षात एवं चमत्कारी हैं, प्रभु दर्शन से भक्तों की आकांक्षा पूरी होती है ऐसी यहाँ की मान्यता है। यहाँ पार्श्वनाथ भगवान व महावीर भगवान के भवपट्ट अत्यन्त मनोहारी एवं कलात्मक ढंग से गढ़े गये हैं। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के अहाते में ही विशाल धर्मशाला है, भोजनशाला की सुविधा है। श्री नागौर तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर मंदिरमार्गी ट्रस्ट बड़ा जैन मंदिर, मु. पो. नागौर (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान। मार्गदर्शन : मंदिर से लगभग 2 कि.मी. दूर यहाँ का रेल्वे स्टेशन है। नागौर मेड़ता-बीकानेर रेल्वे लाईन पर स्थित है। फलवृद्धि पार्श्वनाथ तीर्थ (मेड़ता रोड) से यह स्थल लगभग 63 कि.मी. दरी पर स्थित है। यहाँ से खींवसर तीर्थ 43 कि.मी. दरी पर स्थित है। नागौर से जोधपर 140 कि.मी., बीकानेर 116 कि.मी. जयपुर 287 कि.मी. तथा अजमेर 160 कि.मी. दूर है। परिचय : यह मंदिर सोलहवीं सदी का माना जाता है, जो बड़े मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। अन्य मंदिर उसके बाद के हैं। यहाँ तपागच्छ, खरतरगच्छ, लोकागच्छ, पार्श्वचंद्रसूरीगच्छ के उपाश्रय हैं। विक्रम की बारहवीं सदी में यहाँ के वरदेव पल्लीवाल नामक धर्मश्रद्धालु श्रावक तथा उनके पुत्र आसधर और उनके पौत्रों ने विभिन्न जैन तीर्थस्थानों के मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। इस प्रकार यह स्थान अनेक दानवीर श्रावकों की जन्मभूमि है। कई महान आचार्यों का यहाँ पर पदार्पण होने से इस स्थान का बड़ा महत्त्व है। मंदिर में काँच का काम अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया गया है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए रेल्वे स्टेशन के पास धर्मशाला है। साथ ही तपागच्छ जैनभवन में पूर्व सूचना देने पर भोजन का प्रबन्ध किया जाता है। यहाँ देखने योग्य अकबर की पंच गंबदीय दरगाह एवं शाम मस्जिद मगलकालीन है। मगल शैली में निर्मित उद्यान आज भी अपना सौंदर्य बखान करते हैं। यहाँ साड़ियों एवं चुनरियों के रंगने एवं छपाई का कार्य प्रमुख है। नागौर के तांबे के सामान भी बहत प्रचलित हैं। खींवसर तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर भगवान. चन्दन वर्ण। मार्गदर्शन : यह तीर्थ नागौर से 43 कि.मी. दूरी पर तथा जोधपुर से 99 कि.मी. दर नागौर-जोधपुर पेढ़ी : मार्ग पर स्थित है। यहाँ से ओसियां जी कपूरिया होते हुए 64 कि.मी. दूर पड़ता है। श्री महावीर भगवान जैन परिचय : कहा जाता है भगवान महावीर मरुभूमि में विचरे तब यहाँ उनका चातुर्मास हुआ था। मन्दिर श्री जैन श्वे. मन्दिर मार्गी 24वें तीर्थंकर श्री महावीर भगवान का यहाँ चातुर्मास हुआ माना जाने के कारण यहाँ की ट्रस्ट (नागौर) महान विशेषता है। मन्दिर गाँव के बाहर एकान्त में होने के कारण वातावरण शान्त व दृश्य डाकघर खींवसर-341025 अति सुन्दर लगता है। जिला नागौर (राजस्थान) ठहरने की व्यवस्था : नागौर ठहरकर ही यहाँ आना उचित है। 84 2010 03 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : नागौर जिले में मकराना, कुचामन नावा होते हुए लुणावा पहुँचा जा सकता है। जयपुर लणावा से बिचून-सांभर होते हुए लुणावा 80 कि.मी. दूर पड़ता है। परिचय : लूणावा गाँव में 2 मन्दिर हैं। बड़ा दिगम्बर मन्दिर प्राचीन है। यहाँ चन्द्र प्रभु एवं आदिनाथ भगवान की अति प्राचीन चमत्कारिक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ लगभग 700 प्राचीन पाण्डुलिपियों का विशाल भण्डार है। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला उपलब्ध है। नि:शुल्क भोजन व्यवस्था है। मूलनायक : श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान. श्वेतवर्ण। जिला पाली मार्गदर्शन : जोधपुर अजमेर मार्ग पर स्थित पाली राजस्थान का बड़ा शहर है। यह जोधपुर से 69 कि.मी. तथा यहाँ से सांडेराव 55 कि.मी. दूर है। श्री पाली तीर्थ परिचय : इसके प्राचीन नाम पल्लिका व पल्ली हैं। यहाँ पर कपड़ा उद्योग बड़े पैमाने पर चलता पेढ़ी: र है। यहाँ पर 10 जैनमंदिर एवं 4 दादावाड़ी हैं, किन्तु इन सबमें नवलखा पाश्र्वनाथ जन मादर नवल सतत विख्यात है। इस मार्ग को नवलखा रोड कहते हैं। विक्रम संवत् 970 में नौ लाख रु. की । जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, , लागत से यह मंदिर बना, इसलिए इसे नवलखा पार्श्वनाथ कहते हैं। यह स्थान पल्लीवाल तपागच्छ देवकी पेढ़ी, गच्छ का उत्पत्ती स्थान माना जाता है। यहाँ के श्रावकों ने धर्म प्रभावना के अनेक कार्य गुजराती कटला, करके इस शहर का नाम रोशन किया है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा अति सुन्दर है। अन्य मन्दिरों पाली-मारवाड़-306 401 में श्री गोड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर, श्री शान्तिनाथ जैन मन्दिर, श्री केसरियाजी का मन्दिर, श्री (राजस्थान) वासपूज्य स्वामी मन्दिर, श्री आत्म वल्लभ-समुद्र विहार, श्री सुपार्श्वनाथ जी का मन्दिर, श्री फोन : (02932) 21742, जीरावाला पार्श्वनाथ मन्दिर, श्री शंखेश्वर पाश्वनाथ देरासर, श्री मुनि सुव्रत स्वामी जी का मंदिर धर्मशाला : मन्दिर, श्री ऋषभ देव जी का मन्दिर (कानजी का मन्दिर) श्री सिमन्धर स्वामी जी का 21929 मन्दिर एवं वागवेरा दादावाड़ी नापातों की बगीची की दादावाड़ी, भालखा दादावाड़ी एवं कालू जी की बगीची की दादावाड़ी दर्शनीय हैं। अन्य मंदिरों का विवरण निम्न प्रकार हैश्री सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर, देरासर गली, पाली श्री शान्तिनाथ जैन मंदिर, केरिया दरवाजा, पाली श्री गोड़ी पार्श्वनाथ जैन मंदिर, सोमनाथ रोड, पाली श्री केशरिया जी (आदिनाथ भगवान) जैन मंदिर, मीरा मार्ग, पाली श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन मंदिर (दो जिनालय), नेहरू नगर, पाली श्री आदिनाथ भगवान जैन मंदिर, स्टेशन रोड, गाँधी मूर्ति, पाली श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर, लोढ़ो का बास, पाली श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर, महावीर नगर, पाली श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर, डागा गली, पाली श्री सम्भवनाथ जैन मंदिर, वीर दर्गादास नगर. पाली श्री सिमंधर स्वामी जैन मंदिर, हाउसिंग बोर्ड (कमला नेहरू नगर), पाली श्री जिनकुशल सूरी दादावाड़ी, कालुजी की बगीची, पाली श्री जिनदत्त सूरी दादावाडी (झालरवा). स्टेशन रोड, पाली श्री जिनकुशल सूरी दादावाड़ी, बागवेरा, पाली 2010_03 www.jainell 85 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका श्री जिरावला पार्श्वनाथ मंदिर, पाली से 4 कि.मी. दूर एक छोटी पहाड़ी की टोकरी, हेमावास बाँध के पास स्थित है। जो दर्शनीय है एवं मणिभद्र वीर अधिष्टायक की देहरी पहाड़ी की तलहटी पर है। ठहरने की व्यवस्था : श्री नवलखा रोड पर श्री नवलखा धर्मशाला एवं भोजनशाला है। श्री सांडेराव तीर्थ पेढ़ी: श्री शान्तिनाथ श्वेताम्बर जैन पेढी मु. पो. सांडेराव, वाया फालना, ता. बाली, जि. पाली (राजस्थान) फोन : (02938) 44756 मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : यह स्थान घाणेराव से 50 कि.मी दूर तथा सादड़ी से 34 कि.मी. दूरी पर बाली आहोर मार्ग पर स्थित है। सांडेराव गाँव के मध्य रावले के पास यह तीर्थ है। पाली से सिरोही मख्य मार्ग पर पाली से 55 कि.मी. तथा सिरोही से 53 कि.मी. दूर है। परिचय : यह तीर्थस्थान 2500 वर्ष प्राचीन माना जाता है। यहाँ का मंदिर कलात्मक तथा प्रभु प्रतिमा भव्य है। प्रतिमा के परिकर की कारीगरी बहुत ही सुन्दर है। यहाँ मंदिर के सामने उपाश्रय में श्री मणिभद्र यक्ष का स्थान है, जहाँ अनेक चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं। यहाँ श्री केसरियानाथ जी का मंदिर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिये धर्मशाला है। श्री खुडाला तीर्थ मूलनायक : श्री धर्मनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : फालना से 3 कि.मी. दूरी पर खुडाला गाँव के रावला वास में यह तीर्थस्थान है। पेढ़ी : फालना सांडेराव से 9 कि.मी. तथा सादड़ी से 25 कि.मी. दूर है। श्री धर्मनाथजी पार्श्वनाथजी देवस्थान जैन पेढी " परिचय : प्रभु प्रतिमा पर विक्रम संवत् 1243 का लेख उत्कीर्ण है। जीर्णोद्धार के समय मंदिर मु. पो. खडाला, ता. बाली म मानाकारी का काम सुन्दर ढंग से किया हुआ है। जि. पाली (राजस्थान) ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये फालना स्टेशन के पास धर्मशाला है, भोजनशाला, आयंबिलशाला का भी प्रबंध है। श्री खिमेल तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन देवस्थान ट्रस्ट मु. पो. खिमेल, ता. बाली, वाया रानी जि. पाली-306 115 (राजस्थान) फोन : (02934) 22052 मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : यह स्थान रानी स्टेशन से 5 कि.मी. तथा फालना से 10 कि.मी. दूरी पर खीमेल गाँव के बाहर स्थित है। नाडोल से 14 कि.मी. तथा सांडेराव से यह 22 कि.मी. दूर स्थित है। रानी स्टेशन से टैक्सी व बस सुविधा उपलब्ध है। बस प्रत्येक एक घण्टे में मिलती है। यहाँ से रमणीया 15 कि.मी. राणकपुर 30 कि.मी., वरकाणा 18 कि.मी. दूरी पर स्थित हैं। परिचय : प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका विक्रम संवत् 1134 में हुई थी ऐसा शिलालेख पाया गया है। प्रभु प्रतिमा अति मनमोहक है। पूजा का समय प्रातः 7 बजे से 12 बजे तक है। पुजारी यहीं रहता है। अत: यात्रियों के बाद में आने पर भी दर्शन लाभ हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त गाँव में शांतिनाथ भगवान का, पावापुरी-महावीर स्वामी का तथा बावन जिनालय श्री आदिश्वर प्रभु का यह तीन मन्दिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु धर्मशाला उपलब्ध है। यहाँ 4 कमरे बने हैं। दोपहर 1 बजे तक तथा सायं सूर्यास्त से पूर्व तक भोजन की सुविधा उपलब्ध है। 86 Jain Edupation International 2010_03 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। श्री वरकाणा तीर्थ मार्गदर्शन : रानी रेल्वे स्टेशन से यह मात्र 8 कि.मी. दूरी पर स्थित है। फालना से 18 कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ स्थान है। पेढ़ी: श्री जैन देवस्थान पेढी परिचय : यह गोडवाल पंचतीर्थी का एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। सकल तीर्थ स्तोत्र में इसका डाकघर वरकाणा, उल्लेख है। यहाँ की प्रतिमा विक्रम संवत् 519 में प्रतिष्ठा हुई मानी जाती है। यहाँ प्रतिवर्ष स्टेशन रानी, पौष कृष्णा दशमी को मेला लगता है। वरकाणा का जैन छात्रालय प्रसिद्ध है। आचार्य श्री जिला पाली (राजस्थान) विजयवल्लभ सूरी जी के शिष्य आचार्य श्री ललित सूरी जी की प्रेरणा से इसका निर्माण हुआ। . फोन : (02934) 22257 ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। मूलनायक : श्री ऋषभदेव भगवान। श्री अष्टापद जैन मार्गदर्शन : श्री राणकपुर-वरकाणा गोडगांव पंचतीर्थी की मुख्य सड़क पर सुकड़ी नदी के तीर्थ पश्चिम दिशा में रानी शहर में यह तीर्थ स्थली स्थित है। परिचय : परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी म. सा. की हार्दिक पढ़ा : श्री अष्टापद जैन तीर्थ भावना के अनुरूप एवं प. पू. आचार्य श्रीमद् विजय जिनोत्तम सूरीश्वर जी म. सा. की मंगल प्रेरणा से श्री अष्टापद जैन तीर्थ पर अष्टापद जिन मंदिर श्री वर्धमान जिनपट्ट परम्परा, देव- सुशा व सुशील विहार, गुरु मन्दिर, श्री नवग्रह शान्ति जिन मन्दिर का सुन्दर एवं भव्य नव निर्माण हुआ है। यहाँ वर * वरकाणा रोड, का कला सौन्दर्य मनमोहक है। यहाँ आराधना भवन, श्रमणी विहार, संघ भवन, आयम्बिल - मु. रानी-306 115 खाता भवन, जैन भवन, भोजनशाला 6 ब्लॉक टॉवर आदि सविधाएं उपलब्ध हैं। प. जि. पाला (राजस्थान) महातपस्वी रूप सागर जी म. की देहरी का निर्माण भी दर्शनीय है। यहां का सुन्दर सुरम्य * फोन : (02934) 22715 वातावरण चित्त को असीम शान्ति प्रदान करता है। मूलनायक : श्री पद्मप्रभु भगवान, श्वेतवर्ण। श्री नाडोल तीर्थ मार्गदर्शन : देसुरी से 15 कि.मी. दूर तथा नाडलाई से 11 कि.मी. दूर तथा घाणेराव से 24 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। पेढ़ी : परिचय : किसी समय नाडलाई और नाडोल दोनों एक ही शहर रहे होंगे, लेकिन आज दो छोटे श्री पद्मप्रभुजी जैन श्वे. देवस्थान पेढी छोटे गाँव हैं। यहाँ जैनसमाज के लगभग 250 परिवार रहते हैं। यहाँ के चार जैनमंदिरों में मु. पो. नाडोल, से श्री पद्मप्रभु भगवान तथा श्री नेमिनाथ भगवान का मंदिर प्राचीन है। स्टेशन रानी, यहाँ के श्री नेमिनाथ भगवान मंदिर में एक सुरंग है। कहा जाता है कि यह सुरंग नाडलाई जि. पाली (राजस्थान) तक जाती है। विक्रम संवत् 300 में इस परिसर में महामारी फैल गयी। जिसकी शान्ति के फोन : 02934-40044 लिये आचार्य श्री मानदेवसूरी जी ने भोयरे में योग साधना कर लघु शान्तिस्तोत्र की रचना की थी। जिससे बीमारी शान्त हो गयी। आज भी इस स्तोत्र का कई भक्तजन प्रतिदिन जाप करते हैं। इस भोयरे के प्रवेशद्वार के पास आचार्य श्री मानदेवसूरी जी की मूर्ति है, जहाँ गत 1800 वर्षों से लगातार अखंड ज्योत जलती रहती है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही भोजन, बिजली, पानी आदि सुविधायुक्त धर्मशाला है। 2010_03 www.jainelp 87org Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान श्री नाडलाई तीर्थ पेढ़ी: नवी मु. पो. नाडलाई, वाया देसूरी जिला पाली (राजस्थान) फोन : 02934-82424 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री नेमिनाथ भ., श्री आदिनाथ भ.। मार्गदर्शन : घाणेराव से लगभग 13 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। परिचय : यहाँ आमने-सामने पहाड़ों पर दो प्राचीन जैनमंदिर हैं, जिन्हें शत्रुजय और गिरनार का प्रतीक माना जाता है। पहाड़ के अलावा यहाँ-तलहटी में भी सात तथा गाँव में एक मंदिर है। गाँव में जो आदिनाथ भगवान का मंदिर है, उसके विशाल रंगमंडप पर सुन्दर चित्रकारी है। पर्वत पर जो मंदिर है, वहाँ जाने-आने में करीब डेढ घंटा लगता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। श्री घाणेराव तीर्थ (कीर्तिस्तंभ) पेढ़ी: श्री विजय हिमाचल कीर्तिस्तंभ डाकघर घाणेराव, ता. देसुरी, जि. पाली फोन : (02934) 7327 मार्गदर्शन : रानी स्टेशन से 15 कि.मी. दूरी पर स्थित है श्री घाणेराव तीर्थ । यहाँ से श्री मुछाला महावीर तीर्थस्थान 5 कि.मी. फासले पर है। परिचय : कुछ साल पहले यहाँ नौ मंजिला कीर्तिस्तंभ निर्माण किया गया। जिसमें आठवीं और नौवीं मंजिल पर चौमुखी प्रतिमाएँ हैं। नीचे कंपाउण्ड में दो मंदिर हैं। राणकपुर तीर्थ के निर्माता धारणशाह के वंशजों की चौदहवीं-पंद्रहवीं पीढी आज भी घाणेराव गाँव में निवास करती है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ यात्रियों के लिये निवास और भोजन की व्यवस्था है। ठहरन श्री मुँछाला महावीर तीर्थ पेढ़ी : श्री आनंदजी कल्याणजी पेढी मूलनायक : श्री महावीर स्वामी, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : पाली जिले में देसुरी तहसील में घाणेराव से 5 कि.मी. तथा राणकपुर से 30 कि.मी. दूर स्थित है यह तीर्थ। सादड़ी से यह स्थान 12 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : यह तीर्थ अत्यन्त प्राचीन है। यहाँ पर भगवान महावीर का 24 जिनालय के साथ भव्य मंदिर है। यहीं भगवान महावीर की एक ऐसी प्रतिमा है जिसमें प्रभु की प्रतिमा पर मूंछ है। इसी से इस तीर्थस्थान का नाम मुँछाला महावीर पड़ गया। यहाँ की मूर्ति प्रभावी मानी जाती है। लोगों को आज भी यहाँ चमत्कार देखने को मिलते हैं। प्रतिवर्ष महावीर जयन्ती के दिन चैत्र शु. 13 को यहाँ बड़ा मेला लगता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर यात्रियों के लिये निवास और भोजन की सुविधा है। मुछाला महावीर जी मु. पो. घाणेराव, जि. पाली (राजस्थान) फोन : 02934-84056 फालना फालना शहर में पार्श्वनाथ स्वामी का मन्दिर बना है। प्रमुख स्टेशन होने के कारण सभी प्रमुख गाड़ियों का यहाँ ठहराव है। दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर सभी स्थानों से यहाँ ट्रेनों का आवागमन है। स्टेशन से 100-150 मीटर की दूरी पर ही धर्मशाला है। भोजनशाला का प्रबन्ध नहीं है। शहर में रेस्टोरेंट आदि उपलब्ध हैं। वाहन भी उपलब्ध हैं। धर्मशाला का फोन नं. 02938-33109 है। राणकपुर की यात्रा करने वालों को फालना-सादड़ी होते हुए राणकपुर जाना पड़ता है। Jain & chition International 2010_03 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | राजस्थान मूलनायक : श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। श्री बाली तीर्थ मार्गदर्शन : फालना से यह तीर्थस्थान 10 कि.मी. दूरी पर है। स्टेशन से तीर्थ तक आने हेतु टैक्सी, रिक्शा, तांगा की सुविधा उपलब्ध है। सांडेराव-फालना-सादड़ी मार्ग पर सांडेराव पेढ़ी : से 18 कि.मी. तथा सादड़ी से 16 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। बाली गाँव के मध्य श्री मनमोहन पार्श्वनाथ पेढी भाग में यह मंदिर है। निकटतम शहर सेसली से यह 3 कि.मी. दर स्थित है। श्री राता मु. पो. बाली, महावीर यहाँ से 18 कि.मी. दूरी पर स्थित है। लुणावा यहाँ से 1 कि.मी. है। स्टेशन फालना जिला पाली (राजस्थान) परिचय : मूलनायक प्रभु प्रतिमा पर विक्रम संवत् 1161 का लेख उत्कीर्ण है। यह तीर्थ अत्यन्त फोन : 02938-22029 प्राचीन है। प्रातः 7 बजे पूजा होती है। तीन सौ वर्ष पूर्व इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। प्रभु प्रतिमा अति सौम्य एवं प्रभावशाली है। मंदिर की निर्माण शैली निराले ढंग की है। लुणावा श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ जैन में मन्दिर में पार्श्वनाथ प्रभु की सुन्दर खड़ी प्रतिमा है। जो मन को बरबस आकर्षित तीर्थ करती है। भद्रंकर नगर, पोस्ट लुणावा ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला एवं भोजनशाला है। भोजनशाला में नि:शुल्क भोजन की स्टेशन फालना, जिला पाली व्यवस्था है। प्रातः 11 बजे से सुविधा उपलब्ध हो जाती है। लुणावा में भी भोजनशाला एवं धर्मशाला का प्रबन्ध है। फोन : 02938-52228 मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। श्री सेवाडी तीर्थ मार्गदर्शन : फालना से 16 कि.मी. दूरी पर सेवाडी गाँव के मध्य बाजार में यह मंदिर है। नाणा तीर्थ से यह स्थान बाली रोड पर 17 कि.मी. दूर स्थित है। हथुण्डी से मात्र 9 कि.मी. दूरी पेढ़ी : पर यह तीर्थ स्थान है। श्री जैन श्वेताम्बर देवस्थान पेढी परिचय : मूल गर्भगृह के द्वार पर 16 विद्यादेवियों की मूर्तियाँ, यक्ष कुबेर की मूर्तियाँ तथा गर्भगृह मु. पो. सेवाडी, ता. बाली में गजलक्ष्मी की मूर्ति हैं। बाली से हथुण्डी जाते समय यह तीर्थस्थान मार्ग में आता है। जिला पाली (राजस्थान) मंदिर के विशाल एवं उत्तुंग शिखर की निर्माणकला अद्वितीय है। बावन जिनालय में सारी प्रतिमाएँ प्राचीन हैं। यहाँ सरस्वती देवी की आकर्षक प्रतिमा है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला, आयंबिलशाला है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, लालवर्ण। श्री हथुण्डी तीर्थ मार्गदर्शन : फालना से 28 तथा राणकपुर से 32 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। यह तीर्थ (राता महावीर) जवाई बांध स्टेशन से सिर्फ 20 कि.मी. है। सिरोही-पाली के राज्यमार्ग 27 पर बाली होकर सीधे आया जा सकता है। पिंडवाड़ा-बाली रोड पर स्थित बीजापुर गाँव (बस स्टैन्ड)से . पेढ़ी : 3 कि.मी. दूरी पर है। बीजापुर पर टैक्सी आदि की सुविधा उपलब्ध है। बीजापुर से आने श्री हथुण्डी राता महावीर जाने के लिए पक्का सड़क मार्ग बना हुआ है। उदयपुर से गोगुंदा-राणकपुर होकर आया जा जैनतीर्थ पेढी सकता है। मु. पो. बिजापुर, परिचय : ईंट, चूना और रेत से बनी लाल रंग (राता वर्ण) की भगवान महावीर स्वामी की जि. पाली- 306 707 प्रतिमा है। अतः यह तीर्थ श्री राता महावीर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान के लांछन (राजस्थान) सिंह को हाथी का मस्तका लगा हुआ है, इस प्रकार का चिह्न अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। फोन : (02933) 40139 दो हजार वर्ष पहले हस्तीकुंड नामक यह एक विशाल नगर था। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 370 में आचार्य श्री सिद्धसेनसरी जी म. की प्रेरणा से यहाँ के धर्मप्रेमी श्रेष्ठी 2010_03 189 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका वीरदेव ने किया। बाद में विक्रम संवत् 973 में विदग्धराजा ने जैनधर्म को स्वीकार कर इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया। इस राजा के वंशजों ने भी जैनधर्म प्रचार का कार्य किया। मंदिर के नीचे तलघर में गुलाबी संगमरमर में से तराशी हुई श्री महावीर स्वामी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। प्रमुख मंदिर के चारों ओर चौबीस देरीयों में चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं। समय के प्रभाव से यह मंदिर जीर्ण हुआ, तब विक्रम संवत् 1942 में बिजापुर निवासी श्री झवेरचंदजी कामदार तथा अन्य धर्मप्रेमी श्रावकों ने नये कलापूर्ण मंदिर की विक्रम संवत् 2006 में आचार्य श्री विजयवल्लभसूरी जी म. के सान्निध्य में प्रतिष्ठा की। इस मंदिर की दीवारों पर शत्रुजय, गिरनार, सम्मेतशिखरजी आदि प्रसिद्ध तीर्थों के पट तथा भगवान महावीर के जीवन प्रसंग पर आधारित चित्र अंकित हैं। हथुण्डी तीर्थ का सर्वांगीण विकास हो रहा है। प. पू. मुनिराज श्री अरुणविजय जी म. की सत्प्रेरणा से श्री महावीर वाणी समवसरण मंदिर का निर्माण हो रहा है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास 32 कमरों वाली दो विशाल धर्मशालाएँ हैं। पंखे आदि की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध है। यहाँ एक उपाश्रय भी है। भोजनशाला का उचित प्रबंध है। एक साथ 200-400 यात्रियों के संघ के आने पर भी ठहरने खाने पीने की पूरी व्यवस्था हो जाती है। यहाँ से 12 कि.मी. दूर सिरोही रोड परद्र मोरीबेड़ा में भगवान वासूपूज्य स्वामी का मन्दिर भी दर्शनीय है। जहाँ आचार्य वल्लभसूरी जी का समाधि मन्दिर भी है। यहाँ से 3 कि.मी. दूर दादा पार्श्वनाथ का अतिप्राचीन मन्दिर है। मोरीबेड़ा पेढ़ी का फोन नं. 02933-43128 है। श्री नाणा तीर्थ पेढ़ी : श्री वर्धमान आनंदजी जैन पेढी मु. पो. नाणा, ता. बाली जिला पाली (राजस्थान) मूलनायक : श्री जीवित स्वामी महावीर भ., श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : नाणा रेल्वे स्टेशन से 2.5 कि.मी. तथा बामणवाडा से 25 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। घाणेराव से सिरोही रोड, पिंडवाड़ा होते हुए नाणा जाना सुविधाजनक है। यह स्थल घाणेराव से 61 कि.मी. तथा सिरोही से 43 कि.मी. दूरी पर स्थित है। परिचय : यह तीर्थ भगवान महावीर के समय का माना जाता है। प्रतिमा अति आकर्षक एवं हँसमुख है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए धर्मशाला है। श्री वेलार तीर्थ पेढ़ी : श्री आदीनाथ जैन पेढी, वेलार तीर्थ मु. पो. चामुडेरी, ता. वेलार, जिला पाली (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : नाणा रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 3 कि.मी. दूरी पर, वेलार गाँव के बाहर, पहाड़ की ओट में है। सिरोही से लगभग 46 कि.मी. दूरी पर यह स्थित है। परिचय : पहाड़ की ओट में स्थित मंदिर अति मनोरम और मनभावन लगता है। प्रभु प्रतिमा सुन्दर एवं प्रभावशाली है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास धर्मशाला है, किन्तु खास सुविधा न होने से श्री नाणा तीर्थस्थान पर ठहरकर यहाँ आना सुविधाजनक है। 90 Jan Edfication International 2010_03 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, लालवर्ण। श्री जाखोडा तीर्थ मार्गदर्शन : जवाईबांध से 7 कि.मी. तथा सुमेरपुर से 5 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। -सांडेराव मार्ग पर स्थित सुमेरपुर से सांडेराव लगभग 13 कि.मी. दर स्थित है। पेढ़ी : जवाई बांध तथा फालना स्टेशन से तीर्थ के लिए टैक्सी, बस, रिक्शा आदि उपलब्ध रहते श्री शान्तिनाथ भगवान जैन हैं। यहाँ दिन में 4 बार विभिन्न स्थलों से रोडवेज बसें आती हैं। यहाँ से 20-25 कि.मी. श्वेताम्बर तीर्थ के दायरे में शिवगंज, वरकाणा, राणकपुर आदि तीर्थ स्थल आते हैं। जाखोडा, मु. पो. सुमेरपुर (कोली वाडा) परिचय : ऐसा कहा जाता है कि प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका आचार्य श्री मानतुंगसूरी जी म. जि. पाली -306902 के सुहस्ते हुई थी। यह तीर्थस्थान प्राचीन होने के साथ-साथ चमत्कारिक क्षेत्र भी है। पूजा फोन : (02933) 54970 प्रात: 6 बजे से 2 बजे तक कर सकते हैं। इस पथरीली भूमि में पानी की बड़ी समस्या थी, किन्तु एक भक्त द्वारा अधिष्टायक देव के संकेत से कुँआ खोदने पर बहत पानी मिला। जैनजैनेतर भक्तगण यहाँ के तरह-तरह के चमत्कारों का वर्णन करते हैं। यहाँ आकर यात्रीगण सुख शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ आदिनाथ भगवान का नया मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ सभी सुविधा युक्त धर्मशाला की व्यवस्था है। भोजनशाला का कार्य चालू है। यात्रियों हेतु निःशुल्क भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक : श्री आदिश्वर भगवान, श्री महावीर स्वामी भगवान । श्री कोरटा तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ पश्चिम रेल्वे के अंतर्गत अहमदाबाद-दिल्ली ब्रॉडगेज मार्ग पर जवाई बाँध रेल्वे स्टेशन से 24 कि.मी. तथा शिवगंज से 12 कि.मी. दूरी पर स्थित है। सिरोही-पाली पेढ़ी : जिलों की सीमा के निकट स्थित यह तीर्थ सिरोही से 45 कि.मी. दूर स्थित है। पाली से आदिनाथ व्यवस्थापक लगभग 80 कि.मी. की दूरी पड़ती है। स्टेशन से यहाँ बस, टैक्सी आदि साधन मिल जाते सतावीश जैन संघ पेढ़ी हैं। शिवगंज से बस मिल जाती है। श्री कोरटा तीर्थ, मु. पो. परिचय : यह अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार हआ। यहाँ पूजा का कोरटा, वाया शिवगंज समय प्रात: 8 से 1.30 बजे तक है। गर्मियों में 7 से 1.30 बजे तक है। इस मन्दिर से जि. पाली-306 901 डेढ़ कि.मी. दूरी पर श्री महावीर स्वामी जी का भव्य मन्दिर स्थित है। ओस वंश के स्थापक (राजस्थान) फोन : 02933-48235 आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि जी ने अपनी अलोकिक विद्या से दो रूप धारण कर एक मुहूर्त ओसियाँ और कोरटा में मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। सहयोगी बंधु(1) वीर संवत् 70 विक्रम संवत् 4000 वर्ष पूर्व ओसवंश के संस्थापक आचार्य भगवंत बाबुलाल भबुतमल जी श्री रत्नाप्रभाचार्य ने इस तीर्थ कोरटा नगर में माघ सद 5 वार गरुवार के दिन धन लग्न में चोपड़ा शासन नामक महावीर स्वामी परमात्मा के बिम्ब की प्रतिष्ठा भव आचार्य भगवन ने दो रूप मु. पा. साडराव धारण करके ओसिया में एक ही मुहर्त में प्रतिष्ठा कराई तब से कोरटाजी तीर्थ प्रसिद्ध हआ। जिला पाला (राजस्थान) (2) मणिरत्न विद्याधर आकाश मार्ग से विमानों द्वारा अंजन गिरि पर शाश्वत जिन चैत्यों की यात्रा करते समय स्वयं प्रभाचार्य के दर्शन के लिए उतरे थे। (3) स्तम्भ लेख से यह ज्ञात होता है कि रत्नाप्रभाचार्य द्वारा प्रतिष्ठा कराई जाने के बाद 1275 में प्रभाचार्य के शासन में श्री जयविजय जी के गणिवार के उपदेश से श्री वीर प्रभु की अन्य प्रतिमा प्रतिष्ठ हुई है यह कथन ज्ञान विमल सूरीश्वर जी के कथन से मिलता है। (4) जैन धर्म के प्रश्नोत्तर में श्री आत्माराम जी (विजयानंद सूरी) महाराज फरमाते हैं कि भगवान स्वामी प्रभु की प्रतिष्ठा श्री रत्नाचार्य ने करायी थी। 2010_03 www.jainelioja91g Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका (5) संवत् 1755 के लगभग ज्ञान विमल सूरी जी रचित "तीर्थमाला" में कोरटाई में । जीवित महावीर स्वामी की मूर्ति होनी चाहिए। (6) भोजराज के पंडितरत्न श्री धनपाल ने संवत् 1086 के करीब सत्यपूरी श्री महावीर स्वामी ग्रंथ में लिखा है। कोरटाजी तीर्थ का स्मरण किया है। अन्य विशेषता-श्री आदिनाथ मन्दिर के ठीक सामने विशाल धर्मशाला में भूगर्भ से अति प्राचीन कलाकृतियों का अनूठा संग्रहालय धर्मशाला आया हुआ है जो दर्शनीय है। कार्तिक सुद 15 (पूनम) व चैत्र महीने की पूनम को भव्य मेलों का आयोजन होता है। सैकड़ों यात्रीगण दर्शनार्थ के लिए आते रहते हैं। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के सामने धर्मशाला है। श्री आदिनाथ जी मन्दिर में भी धर्मशाला है। यहाँ भोजनशाला की व्यवस्था है। तथा पेढ़ी पर भाता की व्यवस्था हो जाती है। श्री तखतगढ़ तीर्थ मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण मार्गदर्शन : तखतगढ़ सांडेराव से 16 कि.मी. सांडेराव-आहोर मार्ग पर स्थित है। तखतगढ़ से आहोर 20 कि.मी. तथा आहोर से जालोर 20 कि.मी. दूर स्थित है। परिचय : तखतगढ़ गाँव में स्थित प्राचीन मन्दिर के निकट ही अन्य मन्दिर भी दर्शनीय है। मुख्य मन्दिर में कलात्मकता एवं सौंदर्य का अत्यन्त मनमोहक साम्य है। संगमरमर का मार्ग अत्यन्त मनभावन और सुन्दर कला का नमूना है। ठहरने की व्यवस्था : जानकारी उपलब्ध नहीं। जालोर से सांडेराव आते-जाते दर्शन किये जा सकते हैं। श्री सेसली तीर्थ पेढ़ी: श्री मनमोहन पार्श्वनाथ जैन पेढी मु. पो. सेसली, ता. बाली जि. पाली (राजस्थान) फोन : 02938-22069 (सेसली); 0293822029 (बाली) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : फालना से 10 कि.मी. दूरी पर पुनडिया गाँव के पास मीठडी नदी के किनारे बसे । हुए सेसली गाँव के मध्य में यह स्थान है। भद्रंग नगर (लुणावा) यहाँ से 0.5 कि.मी. दूर। है। बाली से यह स्थान मात्र 3 कि.मी. दूर स्थित है। फालना स्टेशन से टैक्सी. रिक्शा, ताँगा आदि साधन मिल जाते हैं। परिचय : प्रभु प्रतिमा की कला मनमोहक और प्रभावशाली है। इस तीर्थ की स्थापना विक्रम संवत् 1187 में हुई थी। पूजा का समय प्रातः 7 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला है। भोजनशाला प्रातः 11 बजे से उपलब्ध रहती है। जिला राजसमन्द मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान श्वेतवर्ण। __ मार्गदर्शन : उदयपुर से 89 कि.मी., फालना से 32 कि.मी. और जोधपुर से 160 कि.मी., सादड़ी श्री राणकपुर तीर्थ से 8 कि.मी., घाणेराव से 16 कि.मी. तथा हथुण्डी से 32 कि.मी. दूर यह तीर्थस्थली स्थित है। पेढ़ी : परिचय : स्थापत्यकला की दृष्टि से राणकपुर का धरणविहार मंदिर विश्व में अद्वितीय है। सेठ श्री आनंदजी कल्याणजी पेढी इस मंदिर के शिखरों, गंबजों और छतों में भी कलाविज्ञ और भक्तिशील शिल्पियों की। मु. पो. राणकपुर, मुलायम छेनियों ने कई पुरातन कथा प्रसंगों को सजीव किया है; नये शिल्प अंकित किये जि. राजसमन्द (राज.) हैं। इस मंदिर में स्थित सहस्रफणा पार्श्वनाथ तथा सहस्रकूट के कलापूर्ण शिलापट्ट अति फोन : (02934) 3619 मनमोहक एवं दर्शनीय हैं। 92 Jain Edlication International 2010 03 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता है-उसकी विपुल 1444 खम्भों की स्तंभावली। मंदिर के कुशल शिल्पियों ने इतने सारे स्तंभों की सजावट ऐसे व्यवस्थित ढंग से की है कि, ये प्रभु के दर्शन करने में कही भी बाधारूप नहीं बनते। मंदिर के किसी भी कोने में खड़ा हुआ भक्त प्रभु के दर्शन पा सकता है। इनके अलावा नेमिनाथ व पार्श्वनाथ मन्दिर है। निकट ही सूर्य मन्दिर है। 1 कि.मी. दूर अम्बामाता का मन्दिर है। भारत के 5 जैन तीर्थों में राणकपुर आयतन में बृहत्तम है। इस मंदिर को "चतुर्मुख प्रामद" के अलावा "धरणविहार""त्रैलोक्यदीपक प्रासाद" एवं "त्रिभुवन-विहार" के नाम से भी जाना जाता है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों की सुविधा के लिये यहाँ पर तीन धर्मशालाएँ हैं। जहाँ रहने की अच्छी सुविधा है। साथ ही कुछ नये ब्लॉक भी बने हैं। पेढी की ओर से यहाँ भोजनशाला का भी प्रबंध है। धर्मशाला में रहने वाले यात्रियों के लिये ओढ़ने-बिछाने का सामान मिलता है। यदि कुछ यात्रियों को रसोई बनानी हो, तो बर्तन भी मिलते हैं। श्री देवकुलपाटक तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : उदयपुर से 26 कि.मी. दूरी पर, अजमेर मार्ग पर यह तीर्थस्थान है। परिचय : इस गाँव का प्राचीन नाम देवकुलपाटक था, अब इसे देलवाडा कहते हैं। यहाँ का मंदिर प्राचीन है, किन्तु विक्रम संवत् 1469 एवं 1954 में इसका जीर्णोद्धार हुआ। यहाँ की शिल्पकला देखकर आबू, कुंभारीयाजी और राणकपुर की याद आती है। यहाँ के शिखर, गुंबज, स्तंभ आदि जगह पर सुन्दर कलात्मक काम किया गया है। मूलनायक प्रभु की प्रतिमा सुन्दर, भव्य एवं प्रभावशाली है। आचार्यश्री सोमसुन्दरसूरी अनेकों बार अपने विशाल साधु समदाय के साथ यहाँ पधारे ऐसा "सोम सौभाग्य काव्य" में वर्णन आया है। इसके अतिरिक्त गाँव में अन्य तीन जिनमंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला है, लेकिन कोई खास सुविधा नहीं है। पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर महासभा मु. पो. देलवाडा, जि. राजसमन्द (राजस्थान) श्री राजनगर तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : कांकरोली से राजसमंद मार्ग पर डेढ़ कि.मी. तथा उदयपुर से 60 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। परिचय : मंदिर एक पहाड़ी पर है, जिसे दयालशाह का किला कहते हैं। महाराणा राजसिंह जी के मंत्री ओसवाल वंशज श्री दयालशाह ने उस जमाने में एक करोड़ रु. खर्च कर यह चर्तुमुख प्रासाद बनवाया है। मंदिर के निर्माता दयालशाह की शूरवीरता मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है। तेरापंथ संप्रदाय का उत्पत्ती स्थान यही है। यहीं से आचार्य श्री भिक्षु स्वामी ने अपने मत का प्रचार प्रारम्भ किया था। ठहरने का स्थान : यहाँ पर धर्मशाला एवं भोजनशाला है। दर्शनीय स्थान : जयसमंद झील के तट पर नाथद्वारा मन्दिर के अनुकरण पर श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश का मन्दिर दर्शनीय है। 2010_03 www.jainelib 93, Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान कांकरोली जैन तीर्थ परिचायिका नाथद्वारा से 16 कि.मी. तथा उदयपुर से 63 कि.मी. दूर स्थित कांकरोली में जयसंमद झील के निकट नाथद्वारा मन्दिर जैसा श्रीकृष्ण का सुन्दर रमणीक मन्दिर बना हुआ है। भगवान कृष्ण यहाँ द्वारिकाधीश के रूप में पूजे जाते हैं। नाथद्वारा तथा हल्दीघाटी से कांकरोली के लिए बस सेवा उपलब्ध है। एकलिंगजी मेवाड़ के महाराणाओं के इष्ट देव शिवजी के एकलिंग रूप का मन्दिर उदयपुर से 25 कि.मी. दूर उत्तर में कैलाशपुरी ग्राम में स्थित है। एकलिंगजी के नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र के नाथद्वारा से भी 25 कि.मी. दूर स्थित है। नाथद्वारा यह कोई जैन तीर्थ न होकर भी पर्यटक दृष्टि से व वैष्णव तीर्थ होने के कारण एक प्रमुख स्थान रखता है। एकलिंग जी से 25 कि.मी. दूर स्थित नाथद्वारा। उदयपुर से 50 कि.मी. दूर उदयपुर-अजमेर मार्ग पर स्थित है। यहाँ श्रीनाथ जी का भव्य, प्राचीन व दर्शनीय मन्दिर है। यहाँ अच्छे होटलों का अभाव है। धर्मशालाएँ कई हैं। राज्य के विभिन्न नगरों से नाथद्वारा के लिए बस सेवा उपलब्ध है। हल्दीघाटी महाराणा प्रताप व अकबर की प्रसिद्ध रणस्थली हल्दिया रंग में रंगी माटी वाली हल्दी घाटी उदयपुर से 56 कि.मी. व नाथद्वारा से 14 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि व एक संग्रहालय दर्शनीय है। राजसमन्द झील कांकरोली के निकट ही उदयपुर, अजमेर मार्ग पर राजसमन्द झील स्थित है। उदयपुर से यह 70 कि.मी. दूर है। इसका जैन मन्दिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। निकट ही दुर्ग भी है। कुम्भलगढ़ उदयपुर से 64 कि.मी. दूर अरावली पर्वतमाला के ढाल पर कुम्भलगढ़ दुर्ग अपनी प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान का यह द्वितीय प्राचीन दुर्ग है। पन्नाधाय की ऐतिहासिक दास्तान इसी दुर्ग से सम्बन्धित है। इस दुर्ग के नीचे द्वितीय शताब्दी में बना विध्वस्त जैन मन्दिर है। निकट ही काली मन्दिर, राजा कुम्भा की समाधि, नीलकण्ठ महादेव का मन्दिर दर्शनीय है। कुम्भलगढ़ की मृगयाभूमि भी देखी जा सकती है। मार्च से जून तक वन्य जीव यहाँ झील पर पानी हेतु आते हैं। इसको देखने कुम्भलगढ़ बस स्टैण्ड से पैदल अथवा जीप द्वारा जा सकते हैं। 94 Jain Eucation International 2010_03 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से लगभग 5 कि.मी. दूर सड़क से थोड़ा हटकर जिला सवाई माधोपर चमत्कार जी अतिशय क्षेत्र है। श्री चमत्कार जी परिचय : जनश्रुति के अनुसार विक्रम सं. 1887 में भाद्रपद कृष्णा 2 को नाथ सम्प्रदाय के एक योगी को स्वप्नानुसार एक बाग में भू-गर्भ से आदिनाथ भगवान की स्फटिक मणि की प्रतिमा प्राप्त हुई। जिस समय यह प्रतिमा प्रकट हुई उस समय यहाँ केशर की वर्षा हुई थी। बाद में यह प्रतिमा जैनों द्वारा बनवाए गये मन्दिर में प्रतिष्ठित की गई व बाग में चरण बनवाये गये। यहाँ के चमत्कारों की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। अनेक जैन व जैनेतर बंधु यहाँ मनौती मनाने आते हैं। यहाँ के दर्शनों से सवाई माधोपुर के श्री नसीरुद्दीन व श्री सफारुद्दीन की मनोकामना पूर्ण हुई थी। उन्होंने यहाँ छतरियों का निर्माण करवाया था। ये छतरियाँ अब भी विद्यमान हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ समस्त सुविधाओं से सम्पन्न एक धर्मशाला है। यहाँ वर्ष में पाँच मेले लगते हैं। रणथम्भौर सवाई माधोपुर से लगभग 14 कि.मी. दूर रणथम्भौर का प्राचीन एवं ऐतिहासिक किला है। इस किले में एक प्राचीन जैन मन्दिर है। इसमें चन्द्र प्रभु भगवान की विक्रम संवत् 10 की श्वेत पाषाण की पद्मासन प्रतिमा है। यहाँ वन्य जीव अभयारण्य बना है। फिर भी रणथम्भौर की ख्याति इसमें दुर्ग के लिए हैं। रणथम्भौर की पहाड़ी ढाल पर पदम्, रामबाग व मिलाक तीन तालाब हैं। जहाँ जंगली पशु पानी के लिए आते हैं। पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र यही है। उद्यान में प्रवेश योगी महल पर 10/- का टिकट खरीदने पर मिलता है। यहाँ से 5 कि.मी. दूर नीलकण्ठ महादेव मन्दिर भी देखा जा सकता है। शेरपुर रणथम्भौर से 3-4 कि.मी. दूरी पर शेरपुर है। यहाँ एक अतिशय पूर्ण जैन मन्दिर है। इसमें मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ जी की विक्रम सं. 15 की मनोज्ञ प्रतिमा है। इसके अतिशयों की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। खण्डार जी शेरपुर से 8-9 कि.मी. तथा सवाई माधोपुर से 30 कि.मी. दूर पहाड़ की तलहटी में स्थित खण्डार जी अतिशय क्षेत्र है। यह एक पहाड़ी क्षेत्र है तथा पहाड़ पर प्राचीन जिन मन्दिर है। यहाँ चट्टानों पर डेढ़ मीटर अवगाहना की चार प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । ये विक्रम संवत् 20 से 30 तक की बताई जाती है। 2010_03 www.jainelibr 95 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जिला सीकर सीकर | जैन तीर्थ परिचायिका सीकर में अनेक भव्य जैन मन्दिर हैं। इनमें विराजमान प्रतिमाएँ प्राचीन काल से ही आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। यहीं पर महान् तपोनिधि दिगम्बर जैनाचार्य शान्ति सागर जी महाराज के । तृतीय पट्टाधीश आचार्य धर्मसागर जी महाराज का समाधिमरण हआ था। सीकर जिले में सीकर-जयपुर मार्ग पर रींगस से 18 कि.मी. दूर खाटू श्याम जी का मन्दिर अत्यन्त मान्यतापूर्ण एवं दर्शनीय है। जिला सिरोही श्री सिरोही तीर्थ पेढी: श्री अंचलगच्छ आदेश्वरजी जैन टेम्पल पेढी, पैलेस रोड, सिरोही (राजस्थान)-307 001 फोन : (02972) 30269 मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से तीर्थ 23 कि.मी. दूर सिरोही शहर में स्थित है। यहाँ से जावाल 13 कि.मी. तथा गोहिली तीर्थ 3 कि.मी. दूर है। स्टेशन से तीर्थ के लिए बस व टैक्सी की सुविधा है। रोडवेज की बसें हर समय उपलब्ध रहती हैं। तीर्थ पर टैक्सी आदि की पूर्ण सुविधा है। यहाँ से श्री सारणेश्वर जी (महादेव मन्दिर) 4 कि.मी., श्री आम्बेश्वर महादेव मन्दिर व जैन मन्दिर कोलर 10 कि.मी. दूर है। यहाँ से बामनवाड़ जी 15 कि.मी., मीरपुर 20 कि.मी., जीरावला 60 कि.मी., देलवाड़ा (माउण्ट आबू) 85 कि.मी. दूर हैं। परिचय : विक्रम संवत् 1339 में इस तीर्थ की स्थापना हुई है। यहाँ पूजा का समय प्रातः 6 से 11 बजे तक है। श्री आदीश्वर भगवान मंदिर के अलावा यहाँ अन्य 17 मंदिर हैं। पर्वतों की छाया में एक साथ ही मंदिरों के शिखर समूह का दृश्य अत्यन्त मनोहारी दिखता है। श्री आदिनाथ भगवान के बावन जिनालय में मूलनायक भगवान की प्रतिमा की शिल्पकला अत्यन्त सन्दर है। मर्ति पर मोती का विलेपन है। इस मंदिर में गर्भगह के रंगमंडप के द्वार से राजमहल तक सुरंग बनी हुई है। यहाँ के राजा जैनधर्म कार्यों में भाग लेते थे और उनकी रानियाँ राजमहल से भगवान के दर्शन करने सरंग से आती थीं। यहाँ के मन्दिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ के प्रत्येक मंदिर में प्रतिमा, तोरण, गुम्बजों में अद्भुत कला के दर्शन होते हैं। सिरोही शहर में सर्वधर्म मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला एवं भोजनशाला की सुविधा है। ठहरने हेतु धर्मशालाएँ (1) जैन वीसी, सुनार वाडा, सिरोही; (2) राजमाता धर्मशाला; (3) संघवी डाहजी देवीचंद जी धर्मशाला, सदर बाजार, सिरोही में हैं। भोजनशाला जैन वीसी सुनार वाडा में है। श्री गोहिली तीर्थ पेढ़ी : श्री पार्श्वनाथ भगवान जैन देरासर पेढी मु. पो. गोहिली, जि. सिरोही (राजस्थान) मूलनायक : श्री गोडीजी पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 27 कि.मी. तथा सिरोही से यह स्थान 3 कि.मी. है। परिचय : गोहिली गाँव के मध्य में यह स्थान है। उपलब्ध शिलालेख से प्रतीत होता है कि यह स्थान विक्रम संवत तेरहवीं सदी के पर्व का है। समय-समय पर यहाँ जीर्णोद्धार हुए। इस भव्य बावन जिनालय की निर्माण शैली अति आर्कषक है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये यहाँ धर्मशाला है किन्तु अधिकांश लोग सिरोही ठहरकर यहाँ आते हैं। सिरोही से बस तथा टैक्सी मिलती हैं। Ja96ducation International 2010_03 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | राजस्थान मूलनायक : भगवान आशापूरण पार्श्वनाथ। श्री आशापूरण मार्गदर्शन : यह तीर्थ कालन्द्री से 12 कि.मी. तथा सिरोह रोड रेल्वे स्टेशन से 56 कि.मी. दूर है। सिरोही शहर से कालन्द्री 16 कि.मी. दूर है। तीर्थ पर आने के लिए सिरोही व कालन्द्री । पेढ़ी : से बस सेवा उपलब्ध है। श्री आशापूरण पार्श्वनाथ परिचय : यह तीर्थ 1000 वर्ष प्राचीन है तथा मूलनायक अत्यन्त चमत्कारिक हैं। प्रभु के दर्शन श्वे. तीर्थ पेढ़ी से आशा पूर्ण होती है ऐसा कहा जाता है। मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। ग्राम नून (वाया कालन्द्री) ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला की सुविधा उपलब्ध है। जिला सिरोही (राज.) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। श्री कोलरगढ़ तीर्थ मार्गदर्शन : यह स्थान सिरोही से लगभग 12 कि.मी. दूर शिवगंज रोड पर है। पहाड़ के बीच पेढ़ी : यह मंदिर है। श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढी परिचय : मूलनायक की यह भव्य प्रतिमा महाराजा संप्रतिकालीन मानी जाती है। बाद में समय कोलरगढ़, मु. पो. पालड़ी, समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। ता. शिवगंज, ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के निकट ही धर्मशाला एवं भोजनशाला हैं। जि. सिरोही (राजस्थान) श्री उथमन तीर्थ मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ श्वेत वर्ण । मार्गदर्शन : सिरोही शहर से 22 कि.मी., शिवगंज से 10 कि.मी. तथा जवाई बांध रेल्वे स्टेशन से 20 कि.मी. दूर स्थित है। तीनों स्थानों पर बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। मन्दिर जी तक पक्की सड़क है। परिचय : उथमन गांव के बाहर पहाड़ी की तलहटी में स्थित यह तीर्थ 12 वीं सदी से पूर्व का है। प्राचीन प्रभु प्रतिमा अति सौम्य एंव कलापूर्ण है। ठहरने की व्यवस्था : एक धर्मशाला हैं। पेढ़ी : श्री पार्श्वनाथ भ. श्वेताम्बर जैन देरासर पो. ऑ. उथमन, तहसील शिवगंज, जिला-सिरोही (राज.) मूलनायक : श्री भगवान महावीर, श्वेतवर्ण । श्री राडबर तीर्थ मार्गदर्शन : निकटतम बड़ा गांव पोसालिया 6.5 कि.मी. दूर स्थित है। उथमन तीर्थ से यह तीर्थ __ 12 कि.मी. तथा जंवाई बाँध रेल्वे स्टेशन से 32 कि.मी. दूर है। स्टेशन पर टैक्सी उपलब्ध पेढ़ी: श्री राडबर जैन तीर्थ, हो जाती है। तहसील शिवगंज परिचय : राडबर गांव के बाहर एकान्त पहाड़ी की तलहटी में सुन्दर सौम्य वातावरण में यह पो. ऑफिस राडबर. मंदिर स्थित है। यह तीर्थ लगभग 1400 वर्ष पुराना माना जाता है। जिला सिरोही (राजस्थान) सुविधाएँ : जानकारी उपलब्ध नहीं । 2010_03 www.jainelibary.org Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण। पेढ़ी : श्री कल्याणजी सोभागचंदजी जैन श्वेताम्बर पेढी मु. पो. पिंडवाडा, जि. सिरोही (राजस्थान) मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 8 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। पिंडवाडा गाँव के मंदिर मोहल्ले में यह मंदिर स्थित है। परिचय : मंदिर का निर्माण कार्य अति सुन्दर ढंग से किया गया है। साथ ही मंदिर में गुप्तकालीन प्राचीन प्रभु प्रतिमा का दर्शन होता है। इस जिनालय के अलावा यहाँ चार अन्य जिनमंदिर हैं। ठहरने के लिये स्टेशन के सामने एक और गाँव में दूसरी धर्मशाला है। मूलनायक: श्री संभवनाथ भगवान। पेढ़ी: श्री संभवनाथ जैन पेढी मु. पो. वीरवाडा, स्टे. सिरोही रोड, जि. सिरोही-307 022 (राजस्थान) फोन : 02971-37138 मार्गदर्शन : यह तीर्थ राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 14 पर सिरोही से 15 कि.मी. दूर, सिरोही रोड स्टेशन (पिंडवाडा) से 10 कि.मी. दूर वीरवाडा में स्थित है। आबू रोड से यह 55 कि.मी. दूर है। यहाँ से बामणवाड जी 2 कि.मी. नांदिया 8 कि.मी., बालदा 10 कि.मी., मानपुर 52 कि.मी., दियाणा 35 कि.मी. तथा उदयपुर 115 कि.मी. दूर है। यहाँ निकटतम स्टेशन सिरोही रोड है। जहाँ से बस, टैक्सी, रिक्शा आदि सभी साधन उपलब्ध रहते हैं। गाँव में भी हर समय टैक्सी, बस, रिक्शे की व्यवस्था रहती है। सिरोही रोड रेलवे स्टेशन, अहमदाबाद-दिल्ली ब्रॉडगेज लाईन पर अहमदाबाद से 270 कि.मी. दूर है। परिचय : यहाँ का इतिहास अति प्राचीन है। यह 52 जिनालय लगभग 800 वर्ष प्राचीन हैं। संवत् 2018 में इस मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तथा श्री विमलनाथ भगवान् प्रतिष्ठित हुए। संवत् 2055 में इसका पुनः जिर्णोद्धार किया गया तथा पूरा जिनालय शुभ्र आरस पत्थर से सुन्दर कलात्मक रूप में बनाया गया। उस समय इसकी पुनः प्राण प्रतिष्ठा कर श्री संभवनाथ भगवान् को मूलनायक के रूप में आचार्य पद्मसूरीश्वर जी म. की निश्रा में प्रतिष्ठित किया गया। यहाँ से आधा कि.मी. दूर गाँव के बाहर श्री महावीर स्वामी का अति प्राचीन चौबीस जिनालय है। जो पौसिया मंदिर के नाम से जाना जाता है। गाँव के निकटवर्ती सिवेरा, मालनूँ, अजारी तथा अंदरा आदि अति प्राचीन तीर्थ हैं। पूजा का समय प्रातः 8 से 1 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ एक धर्मशाला है। निकट में बामणवाड जी में सभी सुविधायुक्त धर्मशाला एवं भोजनशाला की व्यवस्था है। अत: वहाँ ठहरकर यहाँ आना ठीक रहता है। श्री झाडोली तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। पेढ़ी: __ मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 3 कि.मी. तथा श्री बामणवाडजी तीर्थ से 4 कि.मी. श्री आदीश्वर जैन श्वेताम्बर पेढी दूरी पर यह तीर्थस्थान है। सिवेरा यहाँ से 5 कि.मी. है। मु. पो. झाडोली, ता. पिंडवाडा, जि. सिरोही (राजस्थान) परिचय : यहाँ के मंदिर में तोरणों पर तथा स्तंभों के ऊपर तराशी हुई प्राचीन कला दर्शनीय है। फोन : (02971) 2170 किसी समय यह एक समृद्ध नगर रहा होगा। ठहरने के लिए धर्मशाला है। 98 2010 03 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मल नायक: श्री शान्तिनाथ भगवान। श्री सिवेरा तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 8 कि.मी. तथा केशवगंज रेलवे स्टेशन से 2 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ से झाडोली तीर्थ 5 कि.मी. तथा चामुन्डेरी 12 कि.मी. है जहाँ पेढ़ी : से टैक्सी, बस, रिक्शा आदि की सुविधा है। दिन में 4 बार यहाँ बसों का आवागमन होता है। तीर्थ पर भी बस टैक्सी आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पेढ़ी परिचय : सिवेरा गाँव के मध्य स्थित इस मन्दिर की निर्माण शैली निराले ढंग की है। प्रभु प्रतिमा गाँव-सिवेरा, डा.-झाड़ोली, रेल्वे स्टेशन-सिरोही रोड, की कला अति आकर्षक है। पूजा का समय प्रात: 8 से 12 बजे तक है। जिला-सिरोही (राज.) ठहरने की सुविधा : ठहरने के लिए छोटी सी धर्मशाला है। भोजनशाला नहीं है। फोन : 02971-33023 मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। श्री वाटेरा तीर्थ मार्गदर्शन : जालोर रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 56 कि.मी. दूरी पर है। पेढी: परिचय : यह तीर्थस्थान प्राचीन होने के साथ-साथ चमत्कारिक है। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र शु. 13 श्री समस्त जैन संघनी पेढी से 15 तक. कार्तिक पर्णिमा को बड़ा मेला लगता है। यह तीर्थ एकान्त जंगल में, विशाल म. पो. वाटेरा, ता. पिंडवाडा परकोटे में स्थित है। मंदिर के आहते में धर्मशाला है। जिला सिरोही (राजस्थान) श्री अजारी तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान। मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. तथा बामणवाडजी तीर्थ से 12 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। परिचय : यहाँ का बावन जिनालय मंदिर अति दर्शनीय है। कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य ने इस गाँव के निकट मंदिर में सरस्वती देवी की आराधना की थी, तब देवी ने साक्षात उन्हें दर्शन दिये थे, ऐसा कहा जाता है। सरस्वती देवी का यह मंदिर यहाँ से डेढ़ कि.मी. दूरी पर है। इस तीर्थस्थान की सभी प्रभु प्रतिमाएँ महाराजा संप्रतिकालीन मानी जाती हैं। आबू के योगीराज श्री विजयशान्तिसूरी जी म. ने यहाँ के निकट जंगलों में कठिन तपश्चर्या की थी। ठहरने के लिए धर्मशाला है। पेढ़ी : सेठ कल्याणजी सोभागचंदजी जैन पेढी मु. पो. अजारी, जि. सिरोही (राजस्थान) मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, लालवर्ण। श्री बामणवाडजी मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान सिरोही रोड से 7 कि.मी. तथा पिंडवाडा गाँव से 8 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से अजारी 12 कि.मी. तथा सिवेरा 10 कि.मी. दूर है। आबू रोड से सिरोही जाने वाली बसें बामणवाडजी होकर जाती हैं। स्टेशन सिरोही रोड से टैक्सी, बस. रिक्शा आदि पेढ़ी : साधन उपलब्ध रहते हैं। श्री कल्याणजी परमानंदजी पेढी परिचय : ऐसा कहा जाता है कि भगवान महावीर के कानों में कीलें ठोकने का उपसर्ग यहीं पर श्री बामणवाडजी तीर्थ, हुआ था। यहाँ पर प्रभु की चरण पादुकाएँ हैं। मंदिर में भगवान महावीर के 27 भव के पट्ट मु. पो. वीरवाडा संगमरमर पत्थरों पर बनवाकर लगाये हैं। आचार्य श्री नागार्जुनसूरी जी, श्री स्कन्दनसूरी जी, जिला सिरोही (राजस्थान) श्री पादलिप्तसूरी जी एवं राजा संप्रति यहाँ पर नियमित रूप से दर्शनार्थ आते थे। इस तीर्थ फोन : 02971-20056 पर श्रद्धा एवं भक्ति के कारण सिरोही के राजा शिवसिंह को राजगद्दी मिली। इसलिए 2010_03 www.jainelibra 99 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका उन्होंने तीर्थ की रक्षा के लिए कुछ भूमि ताम्रपत्र पर लिखकर भेंट दी। विक्रम संवत् 1989 में श्री अ. भा. जैन श्वेताम्बर पोरवाल सम्मेलन यहाँ पर योगीराज श्री विजयशान्तिसूरी जी म. की निश्रा में संपन्न हुआ था। मंदिर के नजदीक पहाड़ पर श्री सम्मेदशिखर जी की रचना अत्यंत सुन्दर ढंग से की गयी है। पूजा का समय प्रातः 10 बजे से 4 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर मंदिर के अहाते में विशाल सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला है। भोजनशाला का समय 11 से 1 बजे तथा सायं 5 से 6 बजे का है। श्री नांदिया तीर्थ पेढ़ी : श्री वर्धमान आनंदजी जैन देरासर पेढी मु. पो. नांदिया, जि. सिरोही (राजस्थान) फोन : 02971-6127 पी.पी. मूलनायक : श्री जीवित स्वामी महावीर भगवान। मार्गदर्शन : बामणवाडजी तीर्थ से यह स्थान 6 कि.मी. तथा सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से ___10 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : "नाणा, दियाणा, नांदिया... जीवित स्वामी वांदिया" ऐसी कहावत है। विश्वविख्यात राणकपुर के निर्माता धरणाशाह और बंधु रत्नाशाह इसी नगरी के निवासी थे। किसी समय यह नगर जाहोजलाली पूर्ण रहा होगा। भगवान महावीर ने चंडकौशिक सर्प को यहीं पर प्रतिबोध दिया था ऐसा प्रसिद्ध है। ठहरने के लिये धर्मशाला है। श्री लोटाणा तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : नांदिया से 7 कि.मी. दूरी पर, लोटाणा गाँव में एक टेकरी पर यह स्थान है। परिचय : मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमा श्री शत्रुजय तीर्थ के तेरहवें उद्धार की मानी जाती है। प्रभु की प्रतिमा अत्यन्त प्रभावशाली है। इस ढंग की परिकरयुक्त प्रतिमा अन्यत्र नहीं है । ठहरने के लिये मंदिर के अहाते में ही कुछ कमरे बने हुए हैं। श्री मीरपुर तीर्थ पेढ़ी : सेठ कल्याण जी परमानंद जी पेढ़ी मीरपुर, पो. ऑ. कृष्णगंज, जि. सिरोही (राजस्थान) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान मार्गदर्शन : आबू रोड से 60 कि.मी. तथा सिरोही रोड से 37 कि.मी. दूर स्थित यह तीर्थ सिरोही शहर से 15 कि.मी. दूर है। इन स्थानों से बस व टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। बस स्थल मीरपुर यहां से 3 कि.मी. दूर स्थित है परन्तु वहाँ से सवारी का उचित साधन उपलब्ध नहीं रहता है। मंन्दिर तक कार, बस जा सकती है। परिचय : तीनों ओर से प्राकृतिक वनों से घिरा यह तीर्थ मीरपुर से लगभग ढाई कि.मी. दूर सुरम्य वातावरण में स्थित है। यहाँ की शिल्पकला देखने योग्य है। शिल्पियों द्वारा अपनी अद्भुत कला का प्रदर्शन किया गया है जो बरबस ही देलवाड़ा के मन्दिरों की याद दिला देती है। यहाँ इसके अतिरिक्त भगवान महावीर का एक अन्य मन्दिर भी है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु सुविधायुक्त धर्मशाला है। 100-ucation International 2010_03 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री संभवनाथ भगवान, श्वेतवर्ण एवं मुनि सुव्रत स्वामी। श्री कोजरा तीर्थ मार्गदर्शन : यह स्थान सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 6 कि.मी. दूरी पर है। यह तीर्थ नांदिया से 4 कि.मी., बामनवाड जी से 8 कि.मी. तथा पिंडवाडा से 6 कि.मी. दूरी पर है। स्टेशन से पढ़ी : तीर्थ तक आने के लिए बस, टैक्सी, रिक्शा आदि उपलब्ध रहते हैं। तीर्थपर भी टैक्सी श्री मुनि सुव्रत स्वामी जैन उपलब्ध हो जाती है। श्वे. ट्रस्ट मु. पो. कोजरा, परिचय : मंदिर का निर्माण कार्य अति सुन्दर ढंग से हुआ है। प्रभु प्रतिमा प्रभावशाली है। इसी मंदिर में काऊसग्ग ध्यान में एक प्राचीन कलात्मक प्रभु प्रतिमा है। पूजा का समय प्रातः जि. सिरोही-307 022 7 बजे से 2 बजे तक है। ठहरने के लिए धर्मशाला है। फोन : 02971-33380 मूलनायक : श्री गोडी पार्श्वनाथ। श्री लाज तीर्थ मार्गदर्शन : सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 8 कि.मी. दूरी पर है। लाज गाँव के मध्य में, विशाल परकोटे में यह स्थान है। स्टेशन से टैक्सी व रिक्शा की सुविधा उपलब्ध है। पेढ़ी: श्री गोडी पार्श्वनाथ जैन तीर्थ पर भी टैक्सी मिल जाती है। यहाँ से बामनवाड जी, नांदिया, लोटाना कोजरा तीर्थ मन्दिर ट्रस्ट 5-7 कि.मी. की दूरी पर हैं। शिवगढ़ (लाज गाँव) परिचय : मंदिर के एक स्तंभ पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार यह मंदिर विक्रम संवत् 1244 पूर्व मु. पो. कोजरा का है। यहाँ प्रतिवर्ष पौष कृष्णा दशमी को मेला लगता है। वाया सिरोही रोड, ता. पिंडवाडा ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के निकट ही धर्मशाला है। यात्रियों के आने पर भोजन की व्यवस्था जि. सिरोही-307 022 कर दी जाती है। फोन : 02971-33380 मूलनायक : श्री कछुलिका पार्श्वनाथ, श्वेतवर्ण। श्री काछोली तीर्थ मार्गदर्शन : स्वरूपगंज रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 5 कि.मी. दूरी पर है। पेढ़ी : श्री काछोली जैन संघ परिचय : यह तीर्थ 650 वर्ष पूर्व का माना जाता है। काछोली वाल गच्छ का उत्पत्ती स्थान म. पो. काछोली. ता. पिंडवाडा. यही है। ठहरने के लिए धर्मशाला है। जि. सिरोही (राजस्थान) मूलनायक : श्री जीवित स्वामी महावीर भगवान, श्वेतवर्ण। श्री दियाणा तीर्थ मार्गदर्शन : स्वरूपगंज से यह स्थान 18 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ धनारी, नितोड़ा होते हुए आया पेढ़ी: जाता है। श्री दियाणाजी जीवित परिचय : यह तीर्थस्थान भगवान महावीर के समय का माना जाता है। कहावत है "नाणा, स्वामीजी कारखाना दियाणा. नांदिया, जीवित स्वामी वांदिया"। भगवान महावीर इस तरफ विचरते थे, तब म. पो. दियाणा. स्टेशन काऊसग्ग ध्यान में यहाँ रहे थे। उनके भाई नंदिवर्धन ने यहाँ बावन जिनालय का निर्माण स्वरूपगंज किया ऐसा माना जाता है। जिला सिरोही (राजस्थान) ठहरने की व्यवस्था : यहाँ मंदिर के आहाते में ही धर्मशाला है, पेढी पर भोजन बनाने की सामग्री __ मिलती है। 2010_03 www.jainelibrar 101 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान श्री धनारी तीर्थ पेढ़ी : श्री परसोत्तमदास परमानन्दजी जैन पेढ़ी डाक घर-धनारी, व्हाया-सरूपगंज, जिला - सिरोही- 307 023 (राजस्थान) श्री नितोडा तीर्थ पेढ़ी : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान कारखाना मु. पो. नितोडा, जि. सिरोही (राजस्थान) श्री कासीद्रा तीर्थ पेढ़ी : श्री शान्तिनाथ भगवान जैन देरासर पेढी कासींद्रा गाँव, मु. पो. भारजा ता. पिंडवाडा, जि. सिरोही श्री किंवरली तीर्थ पेढ़ी : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन देरासर पेढी, डा. किंवरली, वाया आबूरोड, जि. सिरोही श्री देलदर तीर्थ पेढ़ी : श्री देलदर जैन संघ देलदर गाँव आबूरोड़ जिला सिरोही J102ucation International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेत वर्ण । मार्गदर्शन : यह तीर्थ स्वरूपगंज रेल्वे स्टेशन से 2 कि.मी. दूर स्थित है। जहाँ से आने के लिए टैक्सी, तांगा आदि का साधन है। बस, आबू-सिरोही मार्ग में मुख्य सड़क पर ठहरती है, जोकि यहाँ से लगभग 1 कि.मी. है। मन्दिर तक पक्की सड़क है, कार मन्दिर तक जा सकती है। परिचय : बनास नदी के किनारे बसे धनारी गाँव में पुरोहितों के मोहल्ले में बसा यह तीर्थ सं. 1348 से पूर्व का सिद्ध होता है। पूजा का समय प्रातः 7 से 12 तक का है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए कोई खास सुविधा नहीं है । साधारण धर्मशाला है। मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : सरूपगंज रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. तथा दियाणा तीर्थस्थान से 8 कि.मी. दूरी पर सरूपगंज-कालांद्री मार्ग पर यह तीर्थस्थान है । परिचय : यहाँ का बावन जिनालय मंदिर अति रमणीय है । यहाँ की श्री बावेश्वरजी यक्ष की प्रतिमा चमत्कारी है। उसके हाथों में कमण्डल, त्रिशूल, यज्ञसूत्र, नागपाश है तथा सिर पर श्री तीर्थंकर भगवान की प्रतिमा है। अनेकों भक्त यहाँ दर्शनार्थ आकर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं । यहाँ पर ठहरने के लिये धर्मशाला है । मूलनायक : श्री शान्तिनाथ, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : सिरोही-आबूरोड मार्ग पर आबू से यह स्थान 16 कि.मी. दूरी पर तथा भारजा से 25 कि.मी. दूर स्थित है । परिचय : यहाँ का बावन जिनालय मंदिर प्राचीन है । श्री शान्तिनाथ भगवान की परिकरयुक्त प्रतिमा अति ही मनोहर एवं भावात्मक है । ठहरने के लिये कोई सुविधा नहीं है। मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : यह तीर्थ स्थान आबूरोड रेल्वे स्टेशन से 10 कि.मी. दूरी पर तथा पिण्डवाड़ा-आबू रोड मार्ग पर अमथला से डेढ़ कि.मी. दूरी पर स्थित है। परिचय : यहाँ की प्रभु प्रतिमा प्राचीन एवं कलापूर्ण है। अकसर लोग आबूरोड ठहरकर ही यहाँ आते हैं। मूलनायक : श्री महावीर भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : आबू रोड से यह तीर्थ 11 कि.मी. दूर स्थित है। आबू रोड स्टेशन पर टैक्सी आदि की सुविधा उपलब्ध है। मंदिर तक कार व बस जा सकती है। परिचय : देलदर गाँव के मध्य स्थित इस मन्दिर में प्रभु प्रतिमा की कला अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक है। ठहरने की व्यवस्था : वर्तमान में यहाँ ठहरने की सुविधा उपलब्ध नहीं है। आबू रोड रुककर आना ही ठीक है। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मलनायक: श्री संभवनाथ भगवान। श्री डेरणा तीर्थ मार्गदर्शन : आबू रोड रेल्वे स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। स्टेशन पर कार एवं जीप सुविधा उपलब्ध है। परिचय : मन्दिर प्राचीन है एवं अत्यन्त मनोरम है। दूर से ही दृश्य मन भावन प्रतीत होता है। यह तीर्थ डेरणा ग्राम के बाहर स्थित है। इसका निर्माण लगभग 12वीं सदी से पूर्व का है। भगवान की भावात्मक प्रतिमा मन को मोह लेती है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने का यहां साधन उपलब्ध न होने के कारण आबू रोड ठहरना ही श्रेयस्कर है। पेढ़ी: श्री डेरणा जैन श्वेताम्बर तीर्थ डेरणा ग्राम (आबू रोड) जिला-सिरोही (राज.) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। श्री ओर तीर्थ मार्गदर्शन : आबूरोड से यह स्थान पिण्डवाड़ा रोड पर 6 कि.मी. दूरी पर है। पेढ़ी: परिचय : प्रभु प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं। यह तीर्थ नदी किनारे बसे ओर गाँव में स्थित है। श्री जैन देरासर पेढी ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला है किन्तु खास सुविधा नहीं है। इसलिए आबू रोड में मु. पो. ओर वाया आबूरोड ठहरकर यहाँ आना सुविधाजनक है। जिला सिरोही (राजस्थान) मार्गदर्शन : आबू रोड स्टेशन से 27 कि.मी. सड़क मार्ग द्वारा माउन्ट आबू पहुँचा जा सकता है। माउन्ट आब आबू रोड से टैक्सी एवं बसों का साधन उपलब्ध है। आबू रोड पर अहमदाबाद, जोधपुर, जयपुर, अजमेर से ट्रेन सेवा उपलब्ध है। राजस्थान एवं गुजरात के प्रमुख नगरों से आबू के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। माउन्ट आबू पर घूमने के लिए टैक्सी आदि रहते हैं। वर्धमान महावीर केन्द्र परिचय : आबू पहाड़ के अनूठे सौन्दर्य को पैदल ही निहारा जा सकता है। इसके अतिरिक्त सब्जीमंडी के सामने, टूरिस्ट बंगले से सुबह 8.30 से अपराह्न 1.30 बजे तक तथा अपराह्न 1.30 से सायं 6.00 आबूपर्वत-307 501 बजे तक राजस्थान टूरिज्म द्वारा आयोजित टूर में भाग लेकर आबू पहाड़ को देख सकते हैं। (राजस्थान) आबू पर्वत से 4 कि.मी. दूर गोमुख है और आगे जाने पर वशिष्ठ आश्रम, हनुमान मन्दिर मला फोन : (02974) 43566 है। 750 सीढ़ियाँ हैं। शहर से पश्चिम, पैदल दूरी पर सूर्यास्त की छटा निहारने के लिए सनसैट पॉइंट का निर्माण किया गया है। सूर्यास्त का यह दृश्य मन मोहक होता है। सनसैट पॉइंट से बाजार मार्ग में नक्की झील है। शहर की हृदयस्थली में चारों ओर पहाड़ से घिरी है यह कृत्रिम नक्की झील। झील में अनेक द्वीप उभरे हुए हैं। झील में जलविहार के लिए शिकारा या नौका भाड़े पर मिलती है। थोड़ी ही दूर पर पाण्डव भवन संस्थान है जहाँ बहुत बड़ा हॉल भी है, ज्ञान सरोवर भी 4 कि.मी. दूर है। ब्रह्माकुमारी म्यूजियम भी है। यहाँ से 2 कि.मी. दूर जाने पर अधरदेवी का मन्दिर है। पहाड़ को काटकर यह मन्दिर 'बनाया गया है। 220 सीढ़ियों की चढ़ाई के बाद इस मन्दिर का द्वार है। प्रवेश द्वार संकीर्ण तो है ही यह खूब नीचा भी है। काफी झुक कर अन्दर प्रवेश करना पड़ता है। यहाँ की आराध्या देवी दुर्गा हैं-अधरदेवी या अर्बुदा देवी के नाम से विख्यात है। इन्हीं देवी के नाम 2010_03 www.jainelibjar103 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान दिलवाड़ा मंदिर पेढ़ी : श्री कल्याणजी परमानंदजी पेढी देलवाड़ा जैनमंदिर डाकघर माउंटआबू, जिला सिरोही ( राजस्थान) फोन: 02974-38877, 38424 104 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका पर शहर का नाम पड़ा है आबू । मन्दिर से शहर का विहंगम दृश्य भी काफी मनोरम दिखायी पड़ता है। I आबू पहाड़ का रेल - सम्पर्ककारी स्टेशन आबू रोड है। रेल्वे स्टेशन के पास ही बस स्टैण्ड है। आबू रोड से ट्रेन व बसें जोधपुर, अजमेर, जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद सहित पश्चिम भारत के विभिन्न स्थानों को जाती हैं। रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में भी ठहरने की व्यवस्था है । निकट ही भगवती गेस्ट हाउस व साधारण स्तर के कई होटल हैं। पास में मानपुर में आबू तीर्थ तलेटी जैन मन्दिर व पदमावती मन्दिर है। धर्मशाला व भोजनशाल भी है। यात्रियों को ठहरने की अच्छी सुविधा युक्त व्यवस्था है। होटल : आबू पहाड़ के लिए सीजन / ऑफ सीजन दरें भिन्न-भिन्न हैं होटलों में। अप्रैल से जून और सितम्बर-अक्टूबर के महीने सीजन व अन्य महीने ऑफ सीजन हैं। ऑफ सीजन में दरें आधी हो जाती हैं। बस स्टैण्ड से लेक के बीच पैदल दूरी पर आबू के होटल हैं। थ्री स्टार होटल हिलटन । होटल महाराज, नवजीवन, होटल सवेरा पैलेस, होटल आबू इंटरनेशनल आदि प्रमुख होटल के अतिरिक्त यहाँ अनेकों सामान्य दरों के होटल एवं धर्मशालाएँ हैं। फाइव स्टार होटलें जैसे- जाल होटल, अरणीय विलेश, कामा होटल, हिलटोन होटल, रेसोर्ट भी है। ब्रह्माकुमारी का यूनिवर्सल भवन (शान्ति भवन) ग्लोबल हॉस्पीटल जहाँ बहुत ही अच्छी व्यवस्था है। इसके अलावा ज्ञान सरोवर जो आबू से करीब 4-5 कि.मी. पर बहुत सुन्दर व आकर्षक बनाया है। शहर में प्रवेश करते ही बस स्टैण्ड से 7/10 मिनट के रास्ते पहाड़ी टीले पर राजस्थान टूरिज्म का होटल शिखर स्थिर है । अनुयोग प्रवर्तक, उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी म. की प्रेरणा से यहाँ पर सब्जी मंडी के सामने श्री वर्धमान महावीर केन्द्र स्थापित हुआ है। वहाँ स्थानक भवन, ग्रंथालय, दवाखाना, धर्मशाला, भोजनशाला; ये सभी सुविधाएँ हैं। दिलवाड़ा का अद्भुत कलात्मक सौंदर्य हमें दूसरी दुनिया में ले जाता है। शिल्प सौंदर्य का एक उत्कृष्ट नमूना हमें आबू के देलवाड़ा के जैनमंदिरों में देखने को मिलता है। मार्गदर्शन : अहमदाबाद- दिल्ली मार्ग पर आबू रोड रेल्वे स्टेशन है। यह स्थान गुजरात - राजस्थान की सीमा पर है। रेल्वे स्टेशन से लगभग 32 कि.मी. दूरी पर शहर से 4 कि.मी. दूर आबू पहाड़ का अन्यतम आकर्षण आम्रकुंजों में रमा हुआ दिलवाड़ा है। आबू के दिलवाड़ा मंदिर विश्वविख्यात हैं । पूर्वकाल में लोग पगडण्डी या ऐसे कोई छोटे-मोटे रास्ते से ऊपर जाते थे अब पर्वत पर जाने के लिये अच्छी सड़क बनायी गयी हैं। पहाड़ों में टेढ़ा-मेढ़ा घूमता हुआ यह रास्ता आबू पर्वत तक ले जाता है। परिचय : दिलवाड़ा में कुल पाँच जैन मंदिर हैं। सारे विश्व में इतनी सुन्दर शिल्पकला के दूसरे मंदिर नहीं हैं। विमलवसही मंदिर का सबसे आकर्षक भाग रंगमंडप है। यह एक भव्य खुला मंडप है, जिसमें 48 कलायुक्त स्तंभ हैं । प्रत्येक दो स्तंभ आपस में अलंकृत तोरणों द्वारा जुड़े हैं। मंडप के बीचोंबीच एक लटकता हुआ आकर्षक झुमका है। इसके बाद गोलाकार मालाओं में पशु-पक्षी, देवी-देवता इत्यादि बने हैं। इन मालाओं पर आधारित 16 स्तंभों पर 16 विद्या Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका देवियों की मूर्तियाँ हैं। जिनके हाथों में विभिन्न अस्त्रआयुध सुशोभित हैं। रंगमंडप की आसपास की छतों पर सरस्वती, लक्ष्मीदेवी, भरत-बाहुबली के युद्ध का दृश्य, अयोध्या एवं तक्षशिला नगरी, राजदरबार का दृश्य आदि अलंकृत है। विमलवसही और लुणवसही इन दोनों मंदिरों में काफी समानता है। विमलवसही मंदिर में मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान हैं और लुणवसही में श्री नेमिनाथ भगवान हैं। दोनों मंदिरों में 52 देरीयाँ हैं जिसमें तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ स्थापित की गयी हैं। इन देरीयों के सामने जो बरामदा है, उसे परिक्रमा कहा जाता है। परिक्रमा के छतों पर आकर्षक शिल्पकला की गयी है। जैन तीर्थंकरों के चरित्र के कुछ जीवन प्रसंग, उनका पंचकल्याणक महोत्सव, फूल-पत्तियाँ, पशु-पक्षी, नाटक, संगीत आदि के सुन्दर शिल्प यहाँ पर हैं। दोनों मंदिरों में हाथीशाला हैं, जिसमें संगमरमर के 10-10 हाथी हैं। भगवान की पूजा करने वाले जैनश्रावकों के लिये सुबह 12 बजे तक का समय रखा गया है। पर्यटकों के लिए श्रद्धा के ये द्वार दोपहर 12.00 से सायं 6.00 बजे तक खुले रहते हैं। लणवसही मंदिर के दायीं तरफ एक छोटे बगीचे में दादा साहब की पगलियाँ बनी हैं और बायीं तरफ एक कीर्तिस्तंभ है, जो अधूरा-सा प्रतीत होता है। इनके अतिरिक्त दो और मंदिर हैं। पहला पित्तलहर जो महाराणा सांगा के किलेदार भामाशाह ओसवाल ने 15वीं शताब्दी में बनवाया। मंदिर में श्री आदिनाथ भगवान की धातु की विशाल मूर्ति है। दूसरा मंदिर खरतरवसही है, जिसमें मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं। इस मंदिर को "शिल्पियों का मंदिर" भी कहते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ का कारोबार देखने वाले मंदिर की पेढी का नाम सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी है। मंदिर के बाहर सड़क की दसरी ओर दो बडी धर्मशालाएँ हैं। जहाँ यात्रियों की निवास की सभी सुविधा है। यात्रियों के लिये कुछ दूरी पर कुछ नये ब्लॉक भी बने हैं। मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान। श्री अचलगढ़ तीर्थ मार्गदर्शन : माउन्ट आबू शहर से लगभग 11 कि.मी. दूरी पर अचलगढ़ अर्थात् दुर्ग एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थान है। शहर से अचलगढ़ तक सिटी बस व टैक्सी जाती हैं। दिलवाड़ा- पेढ़ी : अचलगढ़ बसें भी चलती हैं। देलवाड़ा से यह 8 कि.मी. एवं आबू रोड से 35 कि.मी. दूरी श्रीमंत सेठ अचलसी पर है। यहाँ टैक्सी उपलब्ध हैं। इस तीर्थ पर आने के लिए आबू पर्वत पर वर्धमान महावीर अमरसी जी जैन श्वे. पेढ़ी केन्द्र के पास से टैक्सी उपलब्ध रहती है। माउन्ट आबू बस स्टैण्ड से प्रात: 9.30 बजे, अचलगढ़, आबू पर्वत 12 बजे तथा 4 बजे यहाँ के लिए बस सेवा है। (राजस्थान) 307 501 फोन : 02974-44122 परिचय : यहाँ पर कई जैन और हिन्दुओं के मंदिर तथा दर्शनीय स्थान हैं । देलवाड़ा से अचलगढ़ तक बसें चलती हैं। अचलगढ़ एक किला है, जो समुद्रतल से लगभग चार हजार फुट ऊँचाई पर है। यहाँ का चौमुखीजी का मंदिर सुप्रसिद्ध है। दो मंजिलों के इस मंदिर में चार-चार बड़ी और भव्य मूर्तियाँ हैं । यहाँ कुल 14 पंच धातु की जिनप्रतिमा हैं, जिनका वजन 1444 मन है। मुख्य मंदिर में जैन तीर्थंकरों के जीवन चरित्र तथा कुछ जैनतीर्थों के दृश्य उत्कीर्ण किये हैं। इसके पास ही श्री आदेश्वर भ., श्री कुंथुनाथ भ., श्री पार्श्वनाथ म., श्री शान्तिनाथ भ. एवं गुरु मन्दिर समाधि के मंदिर हैं। योगीराज श्री शान्तिसूरी जी म. यहाँ पर कुछ दिन तपश्चर्या करते रहे। यहाँ का अचलेश्वर महादेव का मंदिर प्रसिद्ध है। इस मंदिर के उत्तर में 2010_03 www.jaineli 105 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान | जैन तीर्थ परिचायिका एक विशाल कुंड है, जिसे मंदाकिनी कुंड कहा जाता है। इस मंदिर के पास ही पत्थर के तीन विशाल पहाड़ दिखायी देते हैं। इस तीर्थ पर कुल 6 देरासर हैं। यहाँ का प्रमुख मन्दिर श्री आदिनाथ प्रभु का दो मंजिला भव्य मंदिर है। ऊपर वाली मंजिल में श्री पार्श्व प्रभु की चौमुखी प्रतिमा विराजमान है। अचलगढ़ की तलहटी में श्री शान्तिनाथ प्रभु का अत्यन्त प्राचीन मन्दिर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ 10 ब्लॉक हैं एवं 15 कमरे, 2 बडे हॉल युक्त धर्मशाला है। दो भोजनशालाएं हैं। पुस्तकालय, दुकानें आदि भी यहाँ है। भोजनशाला में प्रातः 10 बजे से सूर्यास्त तक भोजन का प्रबन्ध रहता है। श्री मण्डस्थल तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण। (मूंगथला) मार्गदर्शन : आबूरोड से यह स्थान 10 कि.मी. दूरी पर आबूरोड-रेवदर मार्ग पर स्थित है। मुंगथला गाँव के बाहर यह मंदिर है। स्टेशन से टैक्सी, बस, रिक्शा आदि सवारी का साधन पेढ़ी : उपलब्ध रहता है। प्रत्येक आधे घण्टे में बस सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से मानपुर 8 कि.मी. श्री कल्याणजी परमानंदजी दताणी 17 कि.मी. दूरी पर स्थित है। पेढ़ी परिचय : भगवान महावीर केवलज्ञान प्राप्ति के पहले यहाँ नंदीवृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग ध्यान में मुण्डस्थल तीर्थ, रहे थे ऐसा कहा जाता है। पूजा का समय प्रातः 7 बजे तथा सायं 6.30 बजे है। मु. पो. मुंगथला ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला है लेकिन खास सुविधा न होने से आबूरोड ठहरकर यहाँ ता. आबूरोड, आना सुविधाजनक है। भोजनशाला की कोई व्यवस्था नहीं है। आबूरोड पर जैन धर्मशाला जि. सिरोही-307001 एवं अनेक होटल उपलब्ध हैं। आबूरोड से मानपुर जैन तीर्थ पर भोजनशाला आदि व्यवस्था (राजस्थान) है। दताणी तीर्थ पर भोजनशाला, ठहरने की व्यवस्था आदि उपलब्ध है। श्री जीरावला तीर्थ मूलनायक : श्री जीरावला पार्श्वनाथ श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : सिरोही शहर से लगभग 65 कि.मी. तथा भीनमाल से 55 कि.मी. तथा अंबाजी से पेढ़ी: 67 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। निकटतम रेलवे स्टेशन आबू रोड 42 कि.मी. दूर है। श्री जीरावला पार्श्वनाथ यहाँ से जीप, प्राइवेट बस तथा रोडवेज बस उपलब्ध रहती हैं। तीर्थों पर विभिन्न स्थानों से जैनतीर्थ बसों का आवागमन प्रातः 7 बजे से सायं 4 बजे तक होता है। यह वरमाण से 14 कि.मी., मु. पो. जीरावला, दंताणी 19 कि.मी., धवली 12 कि.मी., भेरूतारक धाम 12 कि.मी. तथा पावापुरी ता. रेवदर 20 कि.मी. दूरी पर स्थित है। रेवदर से 7 कि.मी. दूर स्थित है। यह माउंट आबू स्थित जि. सिरोही-307512 देलवाड़ा से 73 कि.मी. दूरी पर है। (राजस्थान) परिचय : इस तीर्थ की महिमा बहत ही अधिक है। भारत में कहीं पर भी मंदिर की प्रतिष्ठा फोन : (02975) 24438 होती है, तो शुरू में "ॐ श्री जीरावाला पार्श्वनाथाय नमः" लिखकर कार्य का प्रारम्भ होता है। अनेक आचार्य भगवंत एवं यात्रा संघ का यहाँ पदार्पण हुआ है। मूलनायक श्री जीरावाला पार्श्वनाथ भ. की प्रतिमा मंदिर के बाहर स्थापित की गयी है। मंदिर में श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा है। मंदिर प्रेक्षणीय है। इस मंदिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान के 108 नाम की प्रतिमाएँ विभिन्न देरियों में स्थापित हैं। मंदिर में पूजा का समय : प्रक्षाल प्रात:काल; 10 बजे से 4 बजे तक पूजा कर सकते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ नवनिर्मित धर्मशाला में 42 कमरे (अटैच्ड बाथ) व तीन हॉल तथा पुरानी धर्मशाला में 40 छोटे कमरे उपलब्ध हैं। यहाँ भोजनशाला उपलब्ध है। समय है प्रातः 10.30 से 1.15 तक तथा सायं 5 से सूर्यास्त तक। 1206dcation International 2010_03 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : रेवदर मंडार मार्ग पर स्थित यह तीर्थ मंडार से 10 कि.मी. तथा रेवदर से 6 कि.मी. तथा जीरावला से 7 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : यह तीर्थस्थान 800 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। बाद में नया मंदिर बनवाकर उसमें पुराने मंदिर के शिल्पकला के प्राचीन नमूने लगाये गये । यहाँ से कुछ दूरी पर 1300 वर्ष पुराना सूर्य मंदिर है, जो सारे भारत में विख्यात है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला एवं भोजनशाला है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : यह स्थान आबू रोड से 42 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ रेवदर होते हुए आ सकते हैं । आबू रोड से रेवदर 26 कि.मी. तथा वहाँ से मंडार 16 कि.मी. दूर स्थित है। परिचय : यह एक प्राचीन तीर्थस्थान है। मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रभु प्रतिमा सुन्दर है । यहाँ पर खुदाई करने पर श्री पार्श्वनाथ भ. तथा श्री विमलनाथ भ. की कार्योत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमाएँ मिलीं, वे भी दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए उपाश्रय है । आयंबिल शाला है । मूलनायक : श्री चन्द्र प्रभु भगवान । मार्गदर्शन : टोंक से 3 कि.मी. दूर टोंक -देवली राजमार्ग पर यह तीर्थ स्थित है। परिचय : चन्द्रपुरी नामक विख्यात इस अतिशय क्षेत्र में भगवान चन्द्रप्रभु की अति चमत्कारिक प्रतिमा स्थापित है । ठहरने की व्यवस्था - जानकारी उपलब्ध नहीं । परिचय : अरावली पर्वत श्रृंखला से तीन ओर से घिरी पर्वतमालाओं एवं सघन वन से आच्छादित सुन्दर सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में स्थित यह अतिशय क्षेत्र मन को शान्ति और प्रसन्नता प्रदान करता है । शान्तिनाथ जिनालय में भगवान शान्तिनाथ की भव्य चमत्कारिक प्रतिमा के दर्शन कर मन मुग्ध हो उठता है । कहावत है इनके दर्शन से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । 1 मार्गदर्शन : जयपुर से फागी, डिग्गी होते हुए मालपुरा तीर्थ पहुँचा जा सकता है। जयपुर से 46 कि.मी. फागी तथा वहाँ से 30 कि.मी. तथा डिग्गी से 15 कि.मी. दूर मालपुरा स्थित है। अजमेर से जयपुर आते समय दूदू होकर मालपुरा दर्शन कर जयपुर जाया जा सकता अजमेर से दूदू 70 कि.मी. दूर स्थित है। दूदू से मालपुरा लगभग 60 कि.मी. दूर है। अजमेर • से किशनगढ़ 26 कि.मी. है। किशनगढ़ से एक छोटा मार्ग भी मालपुरा की ओर जाता है। किशनगढ़ से अरेन 20 कि.मी. अरेन से लाम्बा हरीसिंह 21 कि.मी. तथा वहाँ से मालपुरा 20 कि.मी. पड़ता है। जयपुर हवाई अड्डे से सांगानेर होते हुए डिग्गी मालपुरा रोड जाता है । 1 2010_03 राजस्थान श्री वरमाण तीर्थ पेढ़ी : श्री वर्धमान जैन तीर्थ मु. पो. वरमाण, ता. रेवदर, जि. सिरोही (राजस्थान) मूलनायक : भगवान शान्तिनाथ, पदमासनस्थ । आंवा मार्गदर्शन : टोंक से 49 कि.मी. दूर टोंक -देवली मार्ग पर यह क्षेत्र स्थित है। जयपुर से टोंक ( अतिशय क्षेत्र ) 96 कि.मी. दूर स्थित है। श्री मंडार तीर्थ पेढ़ी : श्री पंच महाजन जैन धार्मिक ट्रस्ट मु. पो. मंडार, रोड वाया आबू जि. सिरोही (राजस्थान) जिला टोंक मेहन्दवास ( अतिशय क्षेत्र ) मालपुरा पेढ़ी : श्री जिनकुशल गुरुदेव दाव मालपुरा (जिला टोंक) फोन : 0143724243 www.jainelibrary107 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान | जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : मालपुरा तीर्थ में तृतीय दादा गुरु श्री जिनकुशल सूरि जी म. की दादावाड़ी स्थित है। यह क्षेत्र चमत्कारिक क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। मालपुरा में ही आदिनाथ भगवान का मन्दिर भी अत्यन्त चमत्कारिक है। यहाँ श्री वासूपूज्य भ. का मंन्दिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। गुरुदेव का हॉल 6200 वर्ग फिट का बिना खम्भे का बनाया गया है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। हॉल की छत अत्यन्त कलात्मक है। हॉल में ही गुरु चरण चौकी वाली छतरी के बाहर की ओर अष्टकोणीय आठ स्तम्भों की संगमरमर की सुन्दर कलात्मक छतरी तैयार की गयी है। दादावाड़ी के बाई ओर अम्बिका माता का मन्दिर बनाया गया है। साधु-साध्वियों हेतु यहाँ एक बड़ा उपाश्रय है। डिग्गी कस्बे में वैष्णवों का कल्याणजी का मन्दिर है जहाँ हजारों श्रद्धालु भक्त दर्शनार्थ आते हैं। ठहरने की व्यवस्था-दादावाड़ी में ठहरने हेतु कमरों की अच्छी व्यवस्था है। भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध है। जिला उदयपर मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्यामवर्ण। । मार्गदर्शन : उदयपुर से 22 तथा सहस्रबाहु एवं एकलिंगजी से 2 कि.मी. तथा पुराना देलवाड़ा श्री अद्भुतजी तीर्थ से 7 कि.मी. तथा आयड से 20 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। प्रत्येक 10 मिनट में (नागहृद) यहाँ बसों का आवागमन होता रहता है। उदयपर रेलवे स्टेशन से तीर्थ तक आने के लिए बस, टैक्सी आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पेढ़ी: श्री शान्तिनाथ जैन परिचय : किसी समय यह नगर मेवाड़ की राजधानी थी। मूलनायक प्रभु की पद्मासनस्थ विशाल श्वेताम्बर मंदिर, नागदा एवं सुन्दर प्रतिमा के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ है। पहाड़ पर जंगल में प्राचीन मंदिरों के कलात्मक मु. पो. कैलाशपुरी, खंडहर दिखायी देते हैं। आज यहाँ खण्डहरों के रूप में अनेक जैन, विष्णु तथा शिव मन्दिर जि. उदयपुर (राजस्थान) दर्शनीय हैं। कुछ वर्षों से यतिवर्य श्री अद्भुत बाबा की प्रेरणा से यहाँ पर मंदिर जीर्णोद्धार फोन : (0294)77218 का कार्य चल रहा है। धर्मशाला का काम भी शुरू हुआ है। रिसोर्ट भी है। यहाँ से 2 कि.मी. पर बाजार है। उदयपुर में सभी सुविधाएँ हैं। यहाँ भोजनशाला में भोजन प्रात: 11 से 1 बजे एवं सायं 5 से 6.30 बजे तक उपलब्ध है। श्री आयड तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर महासभा जैन मंदिर आयडगाँव, मु. पो. उदयपुर (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : उदयपुर से यह तीर्थस्थान 1 कि.मी. दूरी पर है। यह उदयपुर का एक उपनगर है। परिचय : 4000 वर्ष प्राचीन संस्कृति के अवशेष यहाँ पुरातत्त्व विभाग द्वारा दिखाए जाते हैं। यह मंदिर विक्रम संवत् 1029 के पूर्व का है। इसके अलावा यहाँ चार और जिनमंदिर हैं। सारे मंदिर प्राचीन एवं कलात्मक हैं। उदयपुर ठहरकर यहाँ आना सुविधाजनक है। 108ucation International 2010_03 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. . जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान राजस्थान के इस प्रमुख पर्यटन स्थल पर राणकपुर, केशरियाजी आदि स्थानों की यात्रा करने वाले उदयपर अवश्य आते हैं। मनभावन झीलें, संगमरमरी महल, सुन्दर उद्यान और प्राकृतिक छटाओं की स्थान नगरी है। उदयपुर यहाँ पर कई झीलें, सुन्दर राजमहल, बगीचे आदि प्रेक्षणीय स्थान पढ़ा MP पेढ़ी : हैं। यहाँ की पिछोला झील बहत बड़े घेरे में फैली हुई है। इस झील के भीतर जगमंदिर 1. श्री जन श्वेताम्बर तथा लेक पैलेस यह दो राजमहल हैं। इसी किनारे पर महाराणा पैलेस है, जो राजस्थान का महासभा धर्मसभा सबसे बड़ा राजमहल है। हाथी पोल के बाहर, यहाँ के महाराणा के शीत ऋतु के निवास 'सिटी पैलेस' की मनोरमी छटा अत्यन्त उदयपुर (राजस्थान) मनलुभावन है। पिछोला झील के पूर्वी तट पर ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित यह राजस्थान का फोन : (0294) बृहत्तम प्रासाद पर्यटकों को बाँध सा लेता है। भीतर के महलों की कारीगरी अत्यन्त 420462 कलात्मक है। सिटी पैलेस में ही म्यूजियम भी बनाया गया है। इसी के एक भाग में होटल 2. श्री तारक गरु जैन शिव विलास पैलेस बनाया गया है। सुबह 9.30 से सायं 4.30 बडे तक यह पैलेसे-पर्यटकों ग्रंथालय हेतु खुला रहता है। पैलेस के उत्तर में जगदीश मन्दिर भी दर्शनीय है। शास्त्री सर्कल, उदयपुर सिटी पैलेस मार्ग में सज्जन निवास (गुलाब बाग) है। इस बगीचे में म्यूजियम एवं 3. राष्ट्रसंत श्री गणेश मुनि चिड़ियाघर है। बच्चों के मनोरंजन के लिए मिनी ट्रेन है। शास्त्री सिटी पैलेस जेटी से दिन भर बोटिंग की व्यवस्था रहती है। पिछोला झील में महाराणा जगत अमर जैन संस्थान, सिंह ने अपना ग्रीष्मकालीन निवास जगनिवास पैलेस का निर्माण कराया था। पीछे पहाड़ गणेश विहार और चारों ओर विशाल जल राशि से इसकी छटा अनुपम हो उठी है। जगनिवास के सामने सेक्टर नं. 1, उदयपुर तीन मंजिला प्रासाद जगमन्दिर पैलेस बना है। इसमें काँच की कलाकृति अद्वितीय है। फोन : (0294) पिछोला झील के उत्तर में एक और कृत्रिम झील फतह सागर है। फतह सागर में जलविहार 583741 की व्यवस्था भी है। निकट ही एक ओर प्रासाद तथा अतिथि निवास विलास है। पर्यटकों का रमणीय उद्यान नेहरू पार्क फतह सागर में है। मोती मगरी पहाड़ पर सुन्दर प्राकृतिक परिवेश में प्रताप स्मारक बना है। जो प्रातः 9.00 से सायं 6.00 बजे तक खुला रहता है। फतह सागर के पूर्वी तट पर बाँध के नीचे एक अनुपम उद्यान सहेलियों की बाड़ी है। फतह सागर के पूर्वी तट पर बाँध के नीचे तक और अभिनव उद्यान सहेलियों की बाड़ी है। सहेलियों की बाड़ी में कई आकर्षक फव्वारे हैं। बगीचा प्रात: 9.00 से 6.00 बजे तक खुला रहता है। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. को आचार्यपद चादर अर्पण समारोह यहीं पर हुआ था। यहाँ पर शास्त्री सर्कल के निकट "श्री तारकगुरु जैन ग्रंथालय" है, इस संस्था द्वारा जैन धर्मग्रंथ तथा आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के साहित्य का प्रकाशन होता है। यहाँ साथ ही अ. भा. गुरु गणेश समिति का अमर साहित्य संस्थान भी जैन साहित्य प्रकाशन का कार्य करता है। सुखाड़िया सर्किल में फव्वारा भी देखने योग्य है उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. की समाधि है। ठहरने के लिये श्री पद्मप्रभु भ. मंदिर के पास जैन धर्मशाला है। हाथीपोल में भी धर्मशाला है। उदयपुर से 53 कि.मी. दूर जयसमन्द झील एशिया की द्वितीय बृहत्तम झील है। झील के तट पर जय समन्द पैलेस बना है। झील से 8 कि.मी. दूर 45 वर्ग कि.मी. में फैले अभयारण्य में देश-विदेश के पशु-पक्षी देखे जा सकते हैं । ठहरने के लिए झील के तट पर राजस्थान टूरिज्म का होटल जयसमन्द है। 2010_03 1109 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान श्री केशरियाजी तीर्थ पेढ़ी : प्रभारी अधिकारी, भंडार, धुलेव, श्री ऋषभदेव मंदिर, देवस्थान विभाग राजस्थान, मु. पो. रिषभदेव, जि. उदयपुर (राजस्थान) फोन : (02907) 32023, 32025 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्यामवर्ण । मार्गदर्शन : उदयपुर से 66 कि.मी. दूरी पर यह प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। उदयपुर-खैरवाड़ा राष्ट्रीयमार्ग 8 पर ऋषभदेव ग्राम में यह तीर्थ स्थित है। निकटतम रेल्वे स्टेशन ऋषभदेव रोड है। जहाँ से ऑटो, रिक्शा, बस आदि साधन उपलब्ध हैं। शामलाजी से यह तीर्थ लगभग 56 कि.मी. तथा हिम्मतनगर से 100 कि.मी. दूर पड़ता है। परिचय : यहाँ की प्रभु प्रतिमा चमत्कारी एवं भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाली मानी जाती है। मेवाड़ के राणा सदैव प्रभु के दर्शनार्थ यहाँ आते थे। राणा फतेहसिंहजी ने प्रभु के लिए स्वर्णमयी रत्नोंजडित अमुल्य अंगी भी भेंट की थी। यहाँ पर प्रचुर मात्रा में प्रभु पर केशर चढ़ाया जाता है, इसलिए श्री आदीश्वर प्रभु को केशरियानाथ कहते हैं। जैन-जैनेतर भक्तगण इसे बहुत मानते हैं। यह मंदिर 52 जिनालय युक्त है। ऐसा माना जाता है कि लंकापति रावण इसकी पूजा करते थे। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला एवं भोजनशाला है। इस मंदिर को लेकर श्वेताम्बर-दिगम्बर संप्रदाय के बीच संघर्ष होने के कारण फिलहाल इसका कार्यभार सराकर के अधीन है। नागफणी पार्श्वनाथ मूलनायक : भगवान पार्श्वनाथ। मार्गदर्शन : केशरिया जी से 40 कि.मी. बीछावाड़ा और वहाँ से 10 कि.मी. दूर मैस्वो नदी के पास स्थित है अतिशय क्षेत्र नागफणी पावनाथ। बीछावाड़ा से 6 कि.मी. तक बस जाती है वहाँ से पैदल नदी पर पहुँचकर मौदर गाँव से पहले ही नदी के किनारे बांयी ओर लगभग 200 मीटर चलने पर पहाड़ पर मन्दिर दिखाई देने लगता है। यह सारा मार्ग काफी चढ़ाई उतराई का है। लगभग 50 सीढ़ी चढ़कर मन्दिर आता है। सीढ़ियों के आरम्भ में ही जलकुण्ड का जल अभिषेक व पीने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। कहते हैं कि कभी-कभी यहाँ जंगली जानवर भी आ जाते हैं। परिचय : मन्दिर में मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा सातिशय एवं काफी प्राचीन है। प्रतिमा के सिर पर सप्तकण मण्डप बना है इसमें तीन फण खण्डित हैं। यहाँ के अतिशय की बहुत मान्यता है । मन्दिर के दोनों ओर सुविधा सम्पन्न धर्मशाला है। यहाँ प्रत्येक पूर्णिमा को लघु व आषाढ़ी पूर्णिमा को बड़ा मेला लगता है। अणिदा पार्श्वनाथ मूलनायक : श्री अणिदा पार्श्वनाथ प्रभु। (अतिशय क्षेत्र) मार्गदर्शन : उदयपुर से 32 कि.मी. दूर स्थित वल्लभ नगर तहसील के बड़ा बाठराड़ा ग्राम में । यह तीर्थ स्थित है। उदयपुर से बसों की सुविधा उपलब्ध है। (उदयपुर से यात्रीगण मार्ग की पुष्टि कर इस तीर्थ की यात्रा करें ऐसा अनुरोध है) परिचय : 1000 वर्ष पूर्व में बना यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है। सुन्दर रमणीय प्राकृतिक वातावरण में स्थित यह क्षेत्र अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लोग भगवान पार्श्वनाथ को काले बाबा के नाम से पुकारते हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु धर्मशाला की व्यवस्था है। 110 Jantopcation International 2010_03 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात सड़क मानचित्र Map not to scale * जैन तीर्थ दूरियाँ किलोमीटर में (भूकंप पूर्व की जानकारी पर आधारित) भोरोनरी मोटापामीना करियानी 2010_03 उदयपुर मे भीलडियाजी N मा नारंगा/ वा जमणाराणम्मा मतनगर alalent शभर पंचास मियाहा 72 ममिशनी 19/ भावणी मियाउन Ma 50/ Aगांधीधाम भानावर पर । 57 जिंदड़ी *ANTRA alni सिन्नर sdatap aahinila दहोद सुरेना नगरेशियाणी - 32 /3 Tiy लिम्बड़ी किनानपारोली भाषा -भेट द्वारका For Private & Personel USD बोडेती । डबोई वायभीपर धोराजी 38ANावनगर जगड़ियाजी सोचा गरनारजी कदम्बगिरि मोहनीधाम भासपाटण NE सम- SURPRETARonation निधन जलसाड मुंबई में Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 111 130 131 131 131 112 112 112 132 132 113 132 113 114 114 115 115 115 116 116 116 133 133 133 133 134 134 134 135 135 135 117 117 118 118 136 136 जिला अहमदाबाद श्री कर्णावती तीर्थ श्री सरखेज तीर्थ श्री भोयणी तीर्थ श्री धोलका तीर्थ (कलिकुंड तीर्थ) जिला आनंद श्री खंभात तीर्थ जिला बनासकांठा श्री अंबाजी तीर्थ श्री कुंभारीयाजी तीर्थ श्री पालनपुर तीर्थ (प्रल्हादनपुर) श्री डीसा तीर्थ श्री भीलडिया जी तीर्थ श्री थीरपुर (थराड) दर्शन श्री वाव तीर्थ श्री धीमा तीर्थ श्री भोरोल तीर्थ जिला भरूच श्री भरूच तीर्थ श्री झगड़ियाजी तीर्थ श्री गंधार तीर्थ श्री कावी तीर्थ जिला भावनगर श्री वल्लभीपुर तीर्थ श्री शत्रुजय तीर्थ (पालीताना) श्री शत्रुजय डेम तीर्थ श्री कदम्बगिरी तीर्थ श्री हस्तगिरी तीर्थ श्री तलाजा तीर्थ (तालध्वजगिरि तीर्थ) श्री घोघा तीर्थ श्री दाठा तीर्थ श्री महुवा तीर्थ जिला गांधीनगर श्री महुडी तीर्थ श्री चन्द्र प्रभु लब्धि धाम श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा जिला जामनगर द्वारका बेट द्वारका जिला जूनागढ़ : श्री गिरनारजी तीर्थ (जूनागढ़) जूनागढ़ गिर अरण्य श्री प्रभासपाटण तीर्थ/सोमनाथ तीर्थ श्री ऊना तीर्थ श्री देलवाड़ा तीर्थ श्री अजाहरा तीर्थ श्री दीव तीर्थ जिला कच्छ श्री भुज तीर्थ श्री भद्रेश्वर तीर्थ 118 119 121 121 121 122 122 122 122 गुजरात श्री मांडवी तीर्थ श्री सुथरी तीर्थ श्री कोठारा तीर्थ श्री जखौ तीर्थ श्री नलिया तीर्थ श्री तेरा तीर्थ जिला खेड़ा श्री मातर तीर्थ जिला मेहसाणा श्री वामज तीर्थ श्री शेरीशा तीर्थ श्री आगलोड तीर्थ श्री पानसर तीर्थ श्री मेहसाणा तीर्थ श्री विजापुर तीर्थ श्री तारंगा तीर्थ जिला नवसारी-वलसाड नवसारी तपोवन शान्तिनिकेतन साधना केन्द्र -तिथल श्री नंदिग्राम तीर्थ जिला पंचमहल श्री पारोली तीर्थ श्री पावागढ तीर्थ जिला पाटण श्री शंखेश्वर तीर्थ जमणपुर तीर्थ श्री कम्बोई तीर्थ श्री चाणश्मा तीर्थ श्री मोढेरा तीर्थ श्री शंखलपुर तीर्थ श्री गाँभू तीर्थ श्री पाटण तीर्थ श्री चारूप तीर्थ श्री मेत्राणा तीर्थ श्री वालम तीर्थ जिला साबरकांठा श्री ईडर तीर्थ श्री बडाली तीर्थ श्री खेडब्रह्मा तीर्थ श्री मोटा पोसीना तीर्थ जिला सूरत श्री आगम मंदिर महाविदेह तीर्थ धाम, नवागाम जिला सुरेन्द्रनगर श्री उपरियालाजी तीर्थ श्री शियाणी तीर्थ जिला बडोदरा बड़ौदा (बडोदरा) श्री अनस्तु तीर्थ श्री दर्भावती तीर्थ (डभोई तीर्थ) श्री बोडेली तीर्थ 137 137 137 138 138 138 139 139 123 123 123 140 140 140 124 125 141 141 141 142 142 143 125 126 126 127 127 127 127 127 143 143 143 144 144 144 129 129 2010_03 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका गुजरात मूलनायक : श्री धर्मनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। जिला अहमदाबाद मार्गदर्शन : गुजरात का प्रमुख नगर अहमदाबाद, यहाँ की राजधानी गाँधीनगर से 28 कि.मी. श्री कर्णावती तीर्थ दूरी पर स्थित है। देश के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में से एक होने के कारण यह सभी प्रमुख नगरों से रेल, वायु मार्ग एवं सड़क मार्ग से सम्पर्क में है। मुम्बई से 545 कि.मी. दूरी, जयपुर .. पेढ़ी: से 625 कि.मी., दिल्ली से 886, कोलकाता से 2006 कि.मी., जोधपुर से 586 कि.मी. श्री धर्मनाथ भगवान उदयपुर से 229 कि.मी. दूरी पर है। जैनमंदिर परिचय : अहमदाबाद शहर में, दिल्ली दरवाजे के बाहर सेठ हठीसिंह की वाडी में स्थित यह सेठ हठीसिंह केसरीसिंह तीर्थस्थान है। ग्यारहवीं सदी में श्री कर्णदेव ने इस नगरी का नाम कर्णावती रखा, पहले टस्ट इसका नाम आशापल्ली था। उस समय यह एक वैभव सम्पन्न नगर था। काल प्रवाह में कुछ दिल्ली दरवाजा के बाहर, समय बाद उस नगरी का महत्त्व कम हो गया। बाद में फिर अहमदाबाद नाम से नया विराट अहमदाबाद (गुजरात) शहर बना। फोन : (079) 2110774 हठीसिंह की वाडी में बना यह विशाल जिनालय सेठ हठीसिंह जी ने बनवाया था। इस मंदिर की निर्माण कला बेजोड़ है। यहाँ की शिल्पकला आबू, देलवाड़ा मंदिरों की याद दिलाती है। इस शहर में 225 जिनमंदिर हैं। जिसमें जव्हेरीवाड़ा में स्थित श्री संभवनाथ भगवान का मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। आज भी यह शहर जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र है, इसी कारण इसे जैनपुरी भी कहते हैं। यहाँ पर 11 ज्ञानभंडार हैं, जिसमें हस्तलिखित तथा अन्य ग्रंथ हजारों की संख्या में हैं। भारत के समस्त श्वेताम्बर जैन संघों द्वारा स्थापित सेठ श्री आनंद जी कल्याणजी पेढी का संविधान ई. सं. 1880 में इस शहर में पंजीकृत किया गया। यहाँ पर लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर है, जहाँ पर हजारों ग्रंथ, प्राचीन चित्र, शिल्प, मूर्तियाँ आदि प्राचीन सामग्री का संग्रह हैं। यहाँ जैन साहित्य का संशोधन भी किया जाता है। धर्मप्रेमी जैन श्रावकों की बहुत बड़ी आबादी रहने के कारण यहाँ अनेक मुनि भगवन्तों का आवागमन हमेशा होता रहता है। कपड़े की कई मीलें हैं, व्यापार दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यहाँ पर भद्र फोर्ट, सैयद सिद्दी जाली, गीता मन्दिर, कांकरिया झील, बाल वाटिका आदि दर्शनीय स्थल हैं। अहमदाबाद की झूलती मीनारें (शेकिंग टॉवर) पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। प्रमुख नगर होने के कारण यहाँ हर स्तर के अनेकों होटल भी हैं। ठहरने की व्यवस्था : अहमदाबाद में ठहरने के लिए निम्नलिखित धर्मशालाएँ हैं। 1. सेठ दलपत भाई भगूभाई श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन धर्मशाला, मरचीपोल, अहमदाबाद फोन : (079) 5359624 2. बाई इच्छा, धर्मपत्नी रायचंद्र जयचंद्र श्वेताम्बर जैन धर्मशाला रतनपोल मरचीपोल. अहमदाबाद 3. बाई जमना, शाह बालचंद बहेचरदास की पुत्री जैन धर्मशाला रतनपोल, गोलवाड, अहमदाबाद 4. श्री हठीसिंह जिनालय के अहाते में सर्व सुविधायुक्त 12 ब्लॉक हैं। 2010_03 www.jainelibrary 111 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री सरखेज तीर्थ जैन तीर्थ परिचायिका अहमदाबाद से 8 कि.मी. दूर सरखेज गाँव में यह तीर्थ स्थित है। यहाँ मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी हैं। यहाँ पर श्री पद्मावती माँ, श्री चक्रेश्वरी देवी की भव्य प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गयी हैं। जो अत्यंत चमत्कारिक हैं। यह तीर्थ अति दर्शनीय है। यहाँ पर उपाश्रय एवं धर्मशाला की सुविधा उपलब्ध है। श्री भोयणी तीर्थ पेढ़ी : श्री मल्लीनाथ महाराज कारखाना पेढी मु. पो. भोयणी, ता. वीरमगाँव, जि. अहमदाबाद-382 145 (गुजरात) फोन : (02715) 50204 मूलनायक : श्री मल्लीनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : भोयणी रेल्वे स्टेशन अहमदाबाद-पाटण रेल मार्ग पर कडी एवं बेचराजी के मध्य कडी से 8 कि.मी. दूर स्थित है। स्टेशन से रिक्शा का साधन उपलब्ध है। यहाँ राज्य परिवहन की बसों का आवागमन रहता है। अहमदाबाद से कलोल-कडी होते हुए भोयणी 62 कि.मी. दूर है। यहाँ से मेहसाणा की ओर जाने के लिए प्रातः 8 से दोपहर 3.00 बजे तक, वीरमगांम के लिए प्रात: 9 से सायं 6.30 बजे तक दिन में 5 बार बसें मिलती हैं। भोयणी तीर्थ से रणतेज (52 जिनालय) 22 कि.मी. दूर है। परिचय : यह एक प्राचीन तीर्थ है। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर एवं मनोहारी है। भव्यतम मंदिर की दीवारों पर कारीगिरी दर्शनीय है। मंदिर में सात गर्भगृह हैं। यहाँ प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 10 को मेला लगता है। पूजा का समय प्रात: 9.30 बजे से सायं 5 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर विशाल धर्मशाला तथा भोजनशाला है। भाता की व्यवस्था है। श्री धोलका तीर्थ मूलनायक : श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। (कलिकुंड तीर्थ) मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान धोलका रेल्वे स्टेशन से एक किलोमीटर दूरी पर है। अहमदाबाद पालीताणा के रास्ते पर यह तीर्थ है। अहमदाबाद से 40 कि.मी. दूर है। अहमदाबाद से पेढ़ी : कलिकुंड तीर्थ के लिए यहाँ से नियमित बस सेवा है। पालीताना से यही तीर्थ 190 कि.मी. श्री वस्तुपाल तेजपाल दूर पड़ता है। वल्लभीपुर यहाँ से 110 कि.मी. दूर है। चैरिटेबल ट्रस्ट भालापोल, परिचय : युगप्रधान दादा जिनदत्तसूरि जी म. का जन्म विक्रम संवत् 1132 में यहीं पर हुआ। मु. पो. धोलका, उन्होंने हजारों अजैनों को उपदेश देकर जैन धर्म की दीक्षा दी और धर्म प्रचार का विशेष जिला अहमदाबाद कार्य किया। गुजरात के महाराणा वीरधवल ने विक्रम संवत् 1276 में वस्तुपाल और तेजपाल (गुजरात) दोनों भाईयों को मंत्री पद पर नियुक्त किया था। उन्होंने तथा महामंत्री पेथडशाह ने यहाँ फोन : (02714) 23738 जिनमंदिरों का निर्माण करवाया। इन दिनों यहाँ पर विशाल नये मंदिर का काम हो रहा ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही सभी सुविधायुक्त विशाल धर्मशाला तथा भोजनशाला 112 Jain Eucation International 2010_03 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | गुजरात मूलनायक : श्री स्तंभन पार्श्वनाथ भगवान, नीलवर्ण, पद्मासनस्थ। जिला आनंद मार्गदर्शन : खंभात रेल्वे स्टेशन से मंदिर 1 कि.मी. दूर स्थित है। स्टेशन से टैक्सी, बस, रिक्शा आदि सभी सुविधाएँ उपलब्ध है। यहाँ से मातर तीर्थ 50 कि.मी., कलीकुंड तीर्थ 65 कि.मी. श्री खंभात तीर्थ दूर स्थित है। बड़ोदा से यह स्थान 80 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ प्रात: 4.30 बजे से रात्रि पेढ़ी: 8 बजे तक बसों का आवागमन रहता है। यहाँ से श्रीमद् राजचन्द्र धाम 4 कि.मी. तथा श्री स्तंभन पार्श्वनाथ जैन शकरपुर तीर्थ 3 कि.मी. है। देरासर पेढी परिचय : यह एक प्राचीन नगरी है। इसी शहर के खारवाड़ा मोहल्ले में यह तीर्थ है। यहाँ पर खारवाड़ा, मु. पो. खंभात, अनेक चमत्कारी घटनाएँ घटी हैं। इसी प्रतिमा के न्हवणजल से श्री अभयदेवसूरी का शरीर वाया आनंद, जिला आनंद आ था। यहाँ का इतिहास गौरवशाली तथा प्राचीन है। कलिकाल सर्वज्ञ श्री (गुजरात) हेमचंद्राचार्य ने विक्रम संवत् 1125 में यहाँ पर दीक्षा ग्रहण की थी। मंत्री उदायन यहीं के फोन : 02698-20221, थे। जिन्होंने उदयन वसही नामक मंदिर निर्माण कराया था। विक्रम संवत् 1277 में वहाँ के 21816 दंडनायक वस्तुपाल ने ताड़पत्री पर कई ग्रंथ लिखवाये । यहाँ पर जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरी जी, श्री सोमसुन्दर जी, श्री विजयसेन सूरी जी आदि आचार्यों ने अनेक जिनमंदिरों की प्रतिष्ठा करवायी तथा कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। कविवर श्री ऋषभदास जी की भी यह जन्मभूमि है। यहाँ के दानवीर सेठ वाजीया, राजीया, श्रीराम और पर्वत आदि श्रेष्ठियों ने अकाल में अनेकों दानशालाएँ तथा भोजनशालाएँ खुलवाई थीं। यहाँ पर प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला तृतीया को वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। पूजा का समय प्रातः 7 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिये धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। 1. श्री जैन श्वेताम्बर धर्मशाला एवं भोजनशाला, फोन : 20477 2. श्री भांजेलाल अंबालाल जैन यात्रिक भवन एवं भोजनशाला, फोन : 20117 मार्गदर्शन : अंबाजी तीर्थ वैसे तो गुजरात में स्थित वैष्णव तीर्थ है परन्तु पर्यटन के दृष्टिकोण से जिला बनासकांठा इसे आबू के साथ देखा जाना सुविधाजनक है। आबू रोड स्टेशन से यह मात्र 23 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ से अंबाजी के लिए नियमित बस सेवा है। स्टेशन पर जीप, टैक्सी आदि श्री अंबाजी तीर्थ भी उपलब्ध हैं। अहमदाबाद, मेहसाणा से भी अंबाजी के लिए बस सेवा है। यह कुंभारिया जी से 1 कि.मी. दूर है। पेढ़ी: श्री अंबिका जैन भवन परिचय : प्रतिवर्ष यहाँ हजारों की संख्या में हिन्दू तथा जैन समाज के लोग आते हैं। मंदिर में अंबाजी, जि. बनासकांठा दर्शन के लिये बड़ी कतार लगती है। (गुजरात) पहाड़ी शहर अंबाजी में प्राचीन मंदिर के मूल स्थल पर ही सफेद धवल संगमरमरी पत्थरों फोन : (027412) 3109 से नया मन्दिर बना है। यहाँ की अधिष्टायिका देवी दुर्गा है। नटमन्दिर में एक विशाल कड़ाहे में पुरातन से दीपशिखा प्रज्ज्वलित हो रही है। मन्दिर के पीछे पवित्र देवी कुण्ड है। कुण्ड में स्नान के पश्चात् लोग देवी दर्शन करते हैं। प्रात: 8 से 12 तथा फिर शाम को मन्दिर के पट खुलते हैं। मन्दिर से 5 कि.मी. दूर आरण्यक पहाड़ी मार्ग पर देवी का मुख्य पीठ गहवर है। कहा जाता है कि पहाड़ी पर देवी दुर्गा ने हजार वर्षों तक शिव के लिए उपासना की थी। यहाँ माँ दर्गा का छोटा मन्दिर है मन्दिर तक खडी सीधी सीढियां हैं। डोली भी मिलती हैं। 2010_03 www.jainelibjar113 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात | जैन तीर्थ परिचायिका अंबाजी से 7 कि.मी. दूर निर्जन पर्वतीय रास्ते में कोटिश्वर तीर्थ भी दर्शनीय है। एक पहाड़ी पर कोटिश्वर शिव का प्राचीन मन्दिर है। मन्दिर के निकट सरस्वती कुण्ड है। बस स्टैण्ड के सामने वाल्मिकी का तपोवन है। यहाँ राम-सीता का मन्दिर भी है। कहा जाता है कि मुनि वाल्मिकी ने रामायण रचने से पूर्व आश्रम बनाकर यहाँ देवी सरस्वती की आराधना की थी। ठहरने की व्यवस्था : उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी म. की प्रेरणा से एक भव्य जैन स्थानक तथा धर्मशाला बनी है। ठहरने के लिए यहाँ अनेक सुविधायुक्त धर्मशालाओं के अतिरिक्त सभी श्रेणियों के होटल भी उपलब्ध हैं। श्री कंभारीयाजी तीर्थ पेढ़ी : श्री आनंदजी कल्याणजी पेढी कुंभारीयाजी जैनतीर्थ मु. पो. अंबाजी, ता. दांता, जिला बनासकांठा (गुजरात) फोन : 027412-62178 मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह स्थान अंबाजी से 1 कि.मी. दूरी पर है। आबू रोड से अंबाजी आते जाते यहाँ दर्शन किये जा सकते हैं। परिचय : यह तीर्थस्थान एकान्त जंगल में कुंभारीयाजी पहाड़ के टीले पर स्थित हैं। आबू के विमलवसही के निर्माता विमलशाह ने विक्रम संवत् 1031 में यहाँ पर श्री नेमिनाथ भ. का विशाल मंदिर निर्माण किया। यहाँ और चार कलापूर्ण विशाल जिन मंदिर हैं। इन मंदिरों में श्री पार्श्वनाथ भ., श्री शान्तिनाथ भ., श्री संभवनाथ भ., श्री महावीर भ. मूलनायक हैं। इन मंदिरों का कला सौन्दर्य दर्शनीय है, मनोरम नैसर्गिक वातावरण में इन्हें देखकर आबू देलवाड़ा तथा राणकपुर के मंदिरों की याद आती है। मंदिरों की छतों पर सूक्ष्म शिल्पकला का सुन्दर नमूना है। इसमें श्री शान्तिनाथ भ. का समवसरण, श्री नेमिनाथ भ. के पाँच कल्याणक, तीर्थंकर माता के चौदह स्वप्न, मेरू पर्वत पर इन्द्र महाराज द्वारा जन्माभिषेक आदि कई प्रसंग पाषाण में भावपूर्ण ढंग से उत्कीर्ण किये हैं। ठहरने की व्यवस्था : अंबाजी में कई धर्मशालाएँ तथा भोजनशाला है। श्री पालनपुर तीर्थ (प्रल्हादनपुर) पेढ़ी: श्री पल्लवील पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर मु. पो. पालनपुर, जिला बनासकांठा (गुजरात) मूलनायक : श्री प्रल्लहविया पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : पालनपुर रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 1 कि.मी. दूरी पर है। बनासकांठा जिले का प्रमुख नगर पालनपुर मेहसाणा से 68 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहाँ से आबू रोड 47 कि.मी. दूर है। पालनपुर से दांता होते हुए अंबाजी 57 कि.मी. दूर पड़ता है। तारंगा जी हिल क्षेत्र यहाँ से 71 कि.मी. दूर स्थित है। अहमदाबाद से 146 कि.मी., बड़ौदा से 257 कि.मी. दूर है। परिचय : पालनपुर गुजरात का एक प्रसिद्ध शहर है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा प्रहलाद ने किया। उन्हें कुष्ठरोग हुआ था। रोग निवारण हेतु उन्होंने यह मंदिर बनवाया और प्रभु प्रतिमा के स्नानजल से वे व्याधिमुक्त हो गये। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने जैनधर्म को स्वीकार किया और जैनधर्म की प्रभावना का कार्य किया। युगप्रधान आचार्य श्री सोमसुन्दर जी म. तथा अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री हीरविजय सूरी जी म. की यह जन्मभूमि है। इस मुख्य मंदिर के अलावा यहाँ और चौदह मंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला हैं। प्रमुख नगर होने के कारण यहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। JaEucation International 2010_03 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | गुजरात मूलनायक : श्री महावीर स्वामी। श्री डीसा तीर्थ मार्गदर्शन : नजदीक का रेल्वे स्टेशन डीसा लगभग 6 कि.मी. दूरी पर है। पालनपुर से डीसा 29 कि.मी. दूर है। पालनपुर-थराद मार्ग पर यह तीर्थ स्थित है। डीसा स्टेशन पर टैक्सी की पेढ़ी : सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से चारूप जैन तीर्थ 30 कि.मी., भीलडीयाजी 35 कि.मी. तथा श्री जुना डीसा जैन पेढी मैत्राणा 25 कि.मी. दूर है। यहाँ प्रत्येक घन्टे बसों का आवागमन रहता है। यह तीर्थ डीसा मु. पो. जूना डीसा, और पाटन के बीच पड़ता है। अहमदाबाद से इसकी दूरी 175 कि.मी. है। तालुका डीसा जिला बनासकांठा परिचय : जूना डीसा में यह तीर्थ है। यह तीर्थ विक्रम संवत् तेरहवीं सदी पूर्व का माना जाता है। (गुजरात)-385 540 कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य जब यहाँ पधारे, तब उनका प्रवेश उत्सव अत्यन्त फोन : 02747-23337 भव्यतापूर्वक मनाया था। यहाँ की प्रभु प्रतिमा अति सुन्दर व भावात्मक है। यहाँ पूज्य हीर सरिजी म. सा. ने सरि मंत्र की आराधना की थी। पूजा का समय प्रात: 7 से 12 बजे तक है। इसके अतिरिक्त यहाँ सिद्धाम्बिका देवी का भव्य मन्दिर है। गाँव के बाहर एक दादावाडी है। ठहरने की व्यवस्था : तीर्थ पर ठहरने हेतु साधार्मिक भवन है। भोजनशाला की व्यवस्था प्रात: 11 से 1 बजे तक तथा सायं 4 से सूर्यास्त तक है। जैन देरासर के सामने श्रीमती धापून जिवराजभाई नागरदास भाई मेहता साधर्मिक भवन, भोजनशाला के ऊपर ही स्थित है। मूलनायक : श्री भीलडिया पार्श्वनाथ भ., श्यामवर्ण पद्मासनस्थ। श्री भीलडियाजी मार्गदर्शन : डीसा से 24 कि.मी. दूरी पर भीलडी गाँव के बाहर मुख्य मार्ग पर यह स्थान तीर्थ है। यहाँ से थराद 48 कि.मी. दर स्थित है। यहाँ का रेल्वे स्टेशन भीलडी मुख्य मंदिर से 400 मीटर दूरी पर है। पालनपुर से यह तीर्थ 49 कि.मी. तथा अहमदाबाद से 195 कि.मी. पेढ़ी : दूर है। श्री भीलडियाजी पार्श्वनाथ तीर्थ पेढी परिचय : यहाँ की प्रतिमा पूज्य श्री कपिल केवली के हाथों प्रतिष्ठित मानी जाती है। इस मु. पो. भीलडियाजी, तीर्थस्थान के बारे में अनेक चमत्कारी घटनाएँ घटने के वत्तान्त मिलते हैं। यहाँ की प्रभ गु ता. डीसा, जि. बनासकांठा प्रतिमा प्राचीन, कलात्मक तथा दर्शनीय है। (गुजरात) ठहरने की व्यवस्था : यहाँ विशाल धर्मशाला तथा भोजनशाला है। फोन : (02836) 32516 मूलनायक : श्री महावीर स्वामी। श्री थीरपुर मार्गदर्शन : बनासकांठा जिला के थराद शहर में महावीर बाजार में यह तीर्थ स्थित है। निकट (थराद) दर्शन का रेल्वे स्टेशन डीसा यहाँ से 60 कि.मी. है। डीसा से यहाँ के लिए बस एवं टैक्सी सुविधा है। तीर्थ पर जीप एवं बस का साधन उपलब्ध है। यहाँ 24 घन्टे बसों का आवागमन रहता पेढ़ी : है। यहाँ से भोरोल 18 कि.मी., भीलडिया जी 48 कि.मी., पानसर 202 कि.मी., ईडर श्री थीरपुर (थराद) दर्शन 195 कि.मी., जीरावला 100 कि.मी. सांचोर 55 कि.मी. तथा अहमदाबाद 237 कि.मी. है। श्री थराद जैन श्वे. शंखेश्वर वाया राधनपुर यहाँ से 120 कि.मी. है। यहाँ से वाव 12 कि.मी. है। मूर्तिपूजक संघ पेढ़ी महावीर बाजार, थराद, परिचय : यहाँ वर्तमान में 15 जिनालय और है। इन मन्दिरों में कलात्मकता और शिल्पकला जिला बनासकांठा दर्शनीय है। (गुजरात) ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने हेतु धर्मशाला उपलब्ध है। भोजनशाला है। समय प्रातः फोन : 02737-2036 10 से तथा सायं 5.30 से। 2010_03 wwww.jainelior-115 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री वाव तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर मर्तिपजक संघ की पेढी मु. पो. वाव, जि. बनासकांठा (गुजरात) फोन : (02737) 7113 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री अजितनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, धातुमय प्रतिमा। मार्गदर्शन : यहाँ से भोरोल 22, धीमा 11, थराद 11 कि.मी. दूरी पर है। इन स्थानों को आने जाने के लिये बस सुविधा है। परिचय : वाव गाँव के मध्य यह तीर्थ है। ऐसा कहा जाता है कि थराद में सोने की जिनमर्ति है, यह सुनकर अलाउद्दीन ने थराद पर चढ़ाई करने की तैयारी की। तब यहाँ के दूरदर्शी श्रावकों ने दूसरी प्रतिमा पर सुवर्णलेप कर दिया था। यहाँ की पंचधातु की प्रतिमा अत्यन्त प्रभावी है। ठहरने की व्यवस्था : गाँव में ठहरने के लिये संघ की वाड़ी है, जहाँ पानी, बिजली की व्यवस्था श्री धीमा तीर्थ पेढ़ी: श्री श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक संघ मु. पो. धीमा, ता. थराद, जि. बनासकांठा (गुजरात) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : नजदीक का रेलवे स्टेशन डीसा है। वाव से यह तीर्थ 11 कि.मी. दूर स्थित है। वाव से भोरोल जाते समय यह मध्य रास्ते में पड़ता है। परिचय : धीमा गाँव में यह तीर्थस्थान है। सम्राट कुमारपाल ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था ऐसा उल्लेख मिलता है। श्री भोरोल तीर्थ पेढ़ी: श्री नेमिनाथ भगवान जैन पेढी मु. पो. भोरोल, ता. थराद, जि. बनासकांठा-385565 (गुजरात) फोन : (02737) 4321 मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : थराद से यह तीर्थ 17 कि.मी. दूर है। थराद से वाव 13 कि.मी. है। वाव से धीमा होते हुए भोरोल जाया जा सकता है। धीमा तीर्थ से भोरोल 8 कि.मी. दूर है। भीलडीयाजी से 75 कि.मी. तथा शंखेश्वर से 140 कि.मी. दूर है। थराद से यहाँ प्रत्येक घन्टे बस एवं टैक्सी आती-जाती रहती है। निकटतम जंक्शन स्टेशन पालनपुर यहाँ से 102 कि.मी. दूर है। जहाँ से बस उपलब्ध हो जाती है। अन्य स्टेशन धनेरा (61 कि.मी.) डीसा (73 कि.मी.) हैं। अहमदाबाद से यह तीर्थ 250 कि.मी. है। परिचय : किसी समय यहाँ पर सैकड़ों जैन श्रावकों के घर तथा जिनमंदिर होंगे ऐसा भूगर्भ से प्राप्त अनेक प्राचीन अवशेषों से पता चलता है। प्रभु प्रतिमा अति कलात्मक एवं प्रभावशाली है। प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत्र पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है। इस अति प्राचीन तीर्थ में आज से 100 वर्ष पूर्व संप्रतिराजा कालीन प्रभु नेमिनाथ की श्यामवर्ण प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई। यहाँ अन्य 32-32 प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई। यहाँ अत्यंत सुन्दर, दर्शनीय 24 जिनालय नया बनाया गया है। वि. सं. 2052 में यहाँ नेमिनाथ प्रभु एवं सुवर्णमय अत्यंत कलात्मक चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी के बिम्बों की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा हुई। नागराज ने 5 दिन निराहार रहकर पार्श्वनाथ प्रभु का सानिध्य दिया था जिसे हजारों लोगों ने देखा। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर देरासर के ठीक सामने अत्यंत सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। भोजनशाला प्रातः नाश्ते से सायं सूर्यास्त से पूर्व तक चालू रहती है। J u cation International 2010_03 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री मुनिसुव्रत स्वामी भ., श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : झगडिया तीर्थ यहाँ से 22 कि.मी., दहेज 45 कि.मी., गंधार 45 कि.मी. तथा काकी 75 कि.मी. दूर है। बड़ौदा से यह तीर्थ 71 कि.मी. दूर है। यहाँ बसों का आवागमन निरंतर रहता है। शहर में टैक्सी, ऑटो आदि सुविधा उपलब्ध है। भरूच, बड़ौदा - मुम्बई रेल मार्ग पर आता है। स्टेशन पर सभी साधन उपलब्ध रहते हैं । परिचय : भरूच गुजरात का प्रसिद्ध शहर है। यहाँ नर्मदा नदी सागर में समाती है । यह एक प्राचीन तीर्थस्थान है। भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी के जगचिंतामणि स्तोत्र में इस तीर्थ का उल्लेख किया है। ऐसा कहा जाता है कि अश्वमेध यज्ञ के लिये तैयार किये गये अश्व को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी ने यहीं प्रतिबोध दिया था । वह अश्व स्वर्गगमन के बाद देव बना और उसने यह मंदिर बनवाया। बाद में समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार हुआ । यहाँ पर 11 जिनमंदिर हैं । मुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर के गर्भगृह में भारत का प्रथम भक्तामर मंदिर बना है, जिसमें चारों ओर संगरमरमर के पत्थरों पर भक्तामर स्तोत्र सचित्र अंकित किया है । भक्तामर के रचयिता आचार्य मानुतुंग की अत्यन्त मनोहारी प्रतिमा इस मन्दिर में स्थापित है। यहाँ की कला मनमुग्ध कर देती है। मुख्य मन्दिर में पूजा का समय प्रात: 6.30 बजे से सायं 5.00 बजे तक है। यहाँ श्री आदिश्वर प्रभु का शिखरबंध 100 वर्ष पुराना श्रीमालीपोल मंदिर, श्री शांतिनाथ जी, मुनि सुव्रतनाथ जी, गृह मंदिर, अनंतनाथ जी जिनमंदिर, कबीरपुरा का अजितनाथ जी जिनमंदिर, वेजलपुर का आदिश्वर जिनमंदिर अत्यन्त दर्शनीय है I दर्शनीय स्थल : भरूच में भृगु ऋषि का आश्रम भी दर्शनीय शुक्लतीर्थ में विष्णु मन्दिर भी दर्शनीय है । । यहाँ से 16 कि.मी. दूर हिन्दू ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही धर्मशाला तथा भोजनशाला है। यहां भाता की भी सुविधा है। धर्मशाला में ब्लाक युक्त सुविधा युक्त कमरे हैं। मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । I मार्गदर्शन : भरूच से यह स्थान 33 कि.मी. दूरी पर है। राजपिपला से यह 55 कि.मी. दूर भरुच राजपिपला मार्ग पर यह तीर्थ स्थित है । झगड़िया गाँव के मध्य में यह मंदिर है। परिचय : यहाँ की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई । उसको पाने के लिए बड़ौदा एवं भरूच के श्रावक राणा के पास गये। तब राणा ने कहा कि वर्तमान में मेरे नगर में एक भी जैन समाज का घर नहीं तथा जिनमंदिर भी नहीं। मैं स्वयं जिनमंदिर बनाऊँगा, आप यहाँ आकर रहो, आपके लिए व्यापार सुविधा दी जायेगी । तद्नुसार इस मंदिर का निर्माण हुआ । तीस साल तक राणा ने इसकी व्यवस्था देखकर मंदिर श्रीसंघ के सुपुर्द किया। इसकी शिल्पकला अत्यन्त मनमोहक है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के निकट धर्मशाला, भोजनशाला है । 2010_03 गुजरात जिला भरूच श्री भरूच तीर्थ पेढ़ी : श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन तीर्थ जैन धर्म फंड पेढ़ी श्रीमाली पोल, भरूच - 392 001 (गुजरात) फोन: 02642-62586 श्री झगड़ियाजी तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन ऋखबदेवजी महाराज की पेढी मु. पो. झगड़िया, वाया अंकलेश्वर, जि. भरूच (गुजरात) www.jainelibrary.117 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री गंधार तीर्थ पेढ़ी : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ की पेढी मु. पो. गंधार, ता. वागरा, जि. भरूच-392 140 (गुजरात) फोन : 02641-323481 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : भरूच से वागरा 20 कि.मी. तथा वागरा से गंधार 17 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बडोदरा से यह 76 कि.मी. दूरी पर है। भरूच-कावी मार्ग पर लगभग 45 कि.मी. दूरी पर यह स्थित है। भरूच से बस सेवा उपलब्ध है। परिचय : यह गाँव सागर किनारे पर बसा हुआ है। प्राचीनकाल में यह एक बंदरगाह था। अत्यन्त रमणीक वातावरण में स्थित इस स्थान पर तीन मंदिर हैं। विक्रम की 17वीं सदी में जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरी जी म. अपने विशाल शिष्य समुदाय के साथ यहाँ पर चातुर्मासार्थ विराजमान थे। उस समय वह एक बड़ा शहर था। बादशाह अकबर ने उन्हें फतहपुर सीकरी आने के लिए निमंत्रण यहीं पर भेजा था। यहाँ से आगरा जाकर उन्होंने बादशाह अकबर को प्रतिबोध दिया और धर्मप्रभावना के कई कार्य किये। पूजा का समय प्रात: 8.30 से 10.30 तथा 12 से 5 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। भाता की व्यवस्था 8 से 10 तथा दोपहर 2 से 4 बजे तक है। श्री कावी तीर्थ पेढी: श्री कावी जैन तीर्थ मु. कावी, ता. जंबुसर जि. भरूच (गुजरात) फोन : 02644-30229 मूलनायक : श्री आदीश्वर भ., श्री धर्मनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : गंधार से 54 कि.मी. तथा भरुच से 75 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। झगडिया, बडौदा, भरूच, केवडिया से कावी के लिए नियमित बस सेवा है। भरूच से कावी ट्रेन द्वारा भी आया जा सकता है। परिचय : कावी गाँव समुद्र किनारे बसा हुआ है। यहाँ पर दो सुन्दर मंदिर हैं, जिन्हें सास बहू का मंदिर कहा जाता है। सास ने यहाँ पर सुन्दर सर्वजीत प्रासाद मंदिर बनवाया। अपनी सास के ताने से प्रताड़ित होकर बहू ने रत्नतिलक प्रासाद मन्दिर का निर्माण कराया। तब से ये मन्दिर सास बहु के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हो गये। मनोरम नैसर्गिक वातावरण में मन्दिर के शिखर पर गूंजती घण्टियां आत्मिक शांति का अनुभव कराती हैं। यहाँ के विषय में कहा जाता है "कावी, मोक्ष जावी"। इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1655 में हुई। बाद में समय-समय पर दोनों मंदिरों के जीर्णोद्धार हुए। यह मंदिर बहुत ही कलात्मक हैं। समुद्र के उस पार खंभात शहर दिखता है। यह गाँव समुद्र किनारे होने के कारण पानी खारा है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला है। यात्रियों हेतु यहाँ भाता की व्यवस्था है। जिला भावनगर मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : पालीताणा से, अहमदाबाद जाते समय 53 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। यहाँ का श्री वल्लभीपुर तीर्थ निकटतम रेल्वे स्टेशन धोला विशी यहाँ से 29 कि.मी. दूर है। भावनगर से यह स्थान 38 कि.मी. दूर स्थित है । वल्लभीपुर, अहमदाबाद से धंधुका होते हुए भावनगर मार्ग पर है। पेढ़ी: परिचय : जैन इतिहास में इस स्थान का अत्यंत महत्त्व है। विक्रम संवत् 511 में श्री देवर्धिगणि सेठ श्री जिनदास धर्मदास क्षमाश्रमण ने अन्य पाँच सौ आचार्यों के साथ मिलकर जैन धर्मग्रंथ आगमों को सर्वप्रथम धार्मिक ट्रस्ट, हाइवे रोड, यहाँ पर लिपीबद्ध किया था। प्राचीन समय में वल्लभीपुर एक वैभव सम्पन्न नगरी थी। मंदिर पो. वल्लभीपुर-364 310 में मूलनायक श्री आदेश्वर भगवान की प्रतिमा है, नीचे के भाग में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण एवं जि. भावनगर (गुजरात) पाँच सौ आचार्यों की प्रतिमाएँ कलात्मक ढंग से बनायी गयी है। फोन : (02841) 44433 ठहरने की व्यवस्था : यहाँ यात्रियों को ठहरने हेतु धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। 118 JaMEducation International 2010_03 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर दादा । मार्गदर्शन : भावनगर - सुरेन्द्र नगर रेलमार्ग पर सिहोर होकर पालीताना ट्रेन द्वारा पहुँचा जा सकता है । सुबह 6.25, दोपहर 2.45, सायं 6.45 की ट्रेन सीधी पालीताना जाती है। भावनगर से पालीताना के लिए बस सेवा उपलब्ध है। भावनगर से यह 55 कि.मी. है। अहमदाबाद से पालीताना 203 कि.मी. दूर स्थित है। पालीताना से शत्रुंजय गिरि 4 कि.मी. दूरी पर है। सोनगढ़ से यह 22 कि.मी. दूरी पर स्थित है। परिचय : श्रद्धा और कला की दृष्टि से शत्रुंजय तीर्थ जैनों का सर्वोपरि तीर्थ स्थल है। प्राचीन समय में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदव का विहार इस स्थान पर 99 बार हुआ । इस भूमि का एक-एक कण उनके चरण-स्पर्श से पावन हुआ है। साथ ही कई जैन साधु तथा महात्मा पुरुषों ने यहाँ पर महानिर्वाण प्राप्त किया है। अपने मन के क्रोध, द्वेष, मोह, माया, लोभ आदि विकाररूपी शत्रु पर उन्होंने यहाँ पर विजय प्राप्त की, इसलिये इस तीर्थ का नाम शत्रुंजय है । इस तीर्थ के कण-कण में समाधि और कैवल्य की आभा है। शत्रुंजय तीर्थ की ऊँचाई तलहटी से से 2000 फुट है। इस तीर्थ पर 700 मंदिर हैं। इन मंदिरों में हजारों की संख्या में जिन प्रतिमाएँ हैं । तलहटी से भगवान आदिनाथ की टँक तक का रास्ता लगभग 4 किलोमीटर लम्बा है, जिसमें 3750 सीढ़ियाँ हैं और बीच-बीच में सीधा रास्ता । रास्ते में जगह-जगह विश्राम के लिये स्थान बने हैं। वहाँ ठंडा या गरम पानी की व्यवस्था है। पैदल पहाड़ चढ़ने में असमर्थ यात्री डोली में बैठकर जाते हैं । डोली का किराया आदमी के वजन के अनुसार 150 से 300 रु. तक होता है जो यात्रियों के आगमन बढ़ने के साथ बढ़ जाता है। तलहटी से लगभग 3 कि.मी. चढ़ने के बाद दो रास्ते दिखायी देते हैं। एक रास्ता भगवान आदिनाथ के मुख्य मंदिर की ओर जाता है और दूसरा रास्ता नव टँक मंदिर की ओर जाता है। मुख्य टँक की ओर जाने पर सर्वप्रथम रामपोल और वाघणपोल दिखाई देते है । आगे हाथीपोल में प्रवेश करते समय सूरजकुंड, भीमकुंड और ईश्वरकुंड दिखाई देते हैं। इस पर्वत पर बने सभी मंदिर अलग-अलग विभागों में बँटे हैं। हरेक विभाग को टँक कहते हैं। एक-एक ट्रॅक में कुछ मंदिर और उनके चारों ओर बड़ी दीवार का कोट है। छोटे टँक में 3-4 मंदिर हैं। बड़ी ट्रॅक में लगभग 10 मंदिर हैं। मोतीशा की टँक में सोलह मंदिर हैं। इसके अलावा देरीयों में जो मंदिर हैं, वह अलग हैं। सबसे ज्यादा मंदिर आदीश्वर दादा की टँक में हैं। इस प्रकार इस पर्वत पर दस टँक हैं, इनके अलावा तलहटी पर धनवसही टँक है । इसके पास ही पावापुरी जलमंदिर की सुन्दर प्रतिकृती है । इन ग्यारह दूँकों के नाम निम्नलिखित हैं 1. श्री आदिनाथ प्रभु की मुख्य टँक, 2. मोतीशा टँक, 3. बालावसी, 4. प्रेमवसी, 5. हेमवसी, 6. उजमबाई की टँक, 7. साखरवसी, 8. छीपावसी, 9. चौमुखजी या सवासोमकी टँक, 10. खरतरवसही और 11. तलहटी पर धनवसही । इस सबमें सवासोमकी टँक में चौमुखजी का मंदिर सबसे ऊँचा है। यहाँ मुख्य मंदिर में मूलनायक प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। सवासोमकी टँक : शत्रुंजय पहाड़ पर यह सबसे ऊँची टँक है। मोतीशाकी टँक : भ. आदिनाथ जी की टँक के बाद यह सबसे बड़ी टँक है। इसमें 16 जिनमंदिर और 123 छोटी देरियाँ हैं। मोतीवसही के मंदिर नलिनीगुल्म विमान आकार के हैं, उनके चारों ओर किले जैसा दीवारों का घेरा है। 2010_03 गुजरात श्री शत्रुंजय तीर्थ ( पालीताना ) पेढ़ी : सेठ आनंद जी कल्याण जी पेढी तलहटी सड़क, मु. पो. पालीताना, जि. भावनगर (गुजरात) फोन : (02848) 2148 www.jainelibrar119 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जैन तीर्थ परिचायिका श्री अद्भुतजी : इस पहाड़ पर आदीश्वर भगवान की 18 फुट ऊँची और 14 फुट चौड़ी पद्मासन में एक विशाल मूर्ति है। यह मूर्ति पहाड़ के पत्थर में से खुदवाकर बनायी है। घेटी की पाग : पालीताना शहर के पश्चिम दिशा में पहाड़ के तलहटी में श्री आदिनाथ भगवान की पादुका का मंदिर है। साथ ही अन्य तीर्थंकरों के पगलियाँ यहाँ पर हैं। यहाँ की यात्रा करने से शत्रंजय की दो यात्रा हयी माना जाता है। यहाँ से नजदीक ही शत्रुजय नदी बहती है। समवसरण मंदिर : तलहटी से थोड़ा आगे चढ़ने पर भव्य समवसरण मंदिर दिखाई देता है। इसका निर्माण अभी कुछ वर्ष पहले हुआ है। तीर्थंकर जिस समय उपदेश देते हैं, उस समय तीन गढ़ों की रचना की जाती हैं। गढ़ के ऊपर सिंहासन पर बैठकर तीर्थंकर उपदेश देते हैं और उनके मस्तक पर छत्री रहती है। वही दृश्य इस मंदिर में बताया गया है। इस मंदिर की ऊँचाई 108 फुट है, मंदिर के बीचोंबीच 42 फुट ऊँचा तथा 70 फुट चौड़ा गोलाकार घुमट है। इस मंदिर की विशिष्टता यह है कि यहाँ पर भारत के प्रसिद्ध 108 जैन तीर्थस्थानों का दर्शन होता है। इस मंदिर की रचना देखकर ऐसा लगता है मानो कोई देव विमान पृथ्वी पर उतरा हो। श्री विशाल जैन कला संस्थान : आचार्य श्री विशालसेन सरी जी म. की प्रेरणा से यहाँ पर "श्री पीयूषपाणि स्थापत्य संग्रहालय" नाम से एक भव्य जैन म्युजियम तलहटी के पास निर्मित है। यहाँ पर प्राचीन जैन मूर्तियाँ, कलाकृति, हस्तलिखित ग्रंथ आदि संग्रह किया गया है। ठहरने की व्यवस्था : पालीताना प्रमुख तीर्थ होने के कारण यहाँ अनेकों धर्मशालाएं हैं। जिसमें अनेकों सुविधाएं उपलब्ध हैं। पालिताना की धर्मशालाएँ एवं उनके फोन नम्बर पालिताना का एस.टी.डी. नम्बर 02848 है। 1. मंडार भवन 22. राजेन्द्र विहार दादावाडी 2248 2. खुशाल भवन 2873 23. गिरीविहार 2258 3. सुराणी भवन 2631 24. धनसुख विहार 2261 4. हरिविहार 2653 25. सौ धर्म निवास 2333 5. कोटावाली 2662 26. सांडेराव भवन 2344 6. तखतगढ़ मंगल भवन 2167 27. प्रकाश भवन 2348 7. साबरमती 2709 28. घंटाकर्ण जैन पेढ़ी 2413 8. खीवान्द्री मंगल भवन 2810 29. बंगलोर आराधना भवन 2389 9. जैन आराधना भवन 2135 30. भक्ति विहार 2515 10. कच्छी भवन 2137 31. हिम्मत विहार 2549 11. पंजाबी धर्मशाला 2141 32. दिगंबर जैन धर्मशाला 2547 12. पुरबाई 2145 33. आनंद भवन 2562 13. आरीसा भवन 2157 34. डिसावाला 2569 14. केशवजी नायक 2647 35. लुंकड भवन 2609 15. नरशीनाथा 2186 36. प्रेम विहार 2930 16. महाराष्ट्र भवन 2193 37. संघवी विहार 2784 17. जीवन निवास 2197 38. ब्रह्मचारी आश्रम 2248 18. राजेन्द्र भवन 2206 39. हिरा शांता 3256 19. केशरीयाजी 2213 40. पन्ना रूपा 2391 20. यतिन्द्र भवन 2237 41. सादड़ी भवन 3296 21. ओसवाल यात्रिक गृह 2240 42. सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी 2148, 2853 561 पालीताना की उल्लेखनीय वस्तु है हारमोनियम बनाने का उद्योग । 120 JIYEucation International 2010_03 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | गुजरात पालीताना से तलाजा के मार्ग में यह तीर्थ आता है। पालीताना से यह स्थान 10 कि.मी. दूर, श्री शत्रंजय डेम शत्रुजय नदी से आधा कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहाँ का सुन्दर, भव्य और अत्यन्त मनोहारी तीर्थ जिनालय दर्शनीय है। मूलनायक श्री शत्रुजय पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा बरबस ही मन मोह लेती है। यहाँ ठहरने हेतु धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। श्री कदम्बगिरी मार्गदर्शन : बोदानोनेस गाँव के पास 4 कि.मी. दूर यह तीर्थस्थान है। पालीताणा शहर से यह तीर्थ 19 कि.मी. दूरी पर तथा भंडारिया से 8 कि.मी. दूरी पर छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है। पालीताना से बस, टैक्सी आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध है। पेढ़ी: श्री जिनदास धर्मदास परिचय : पर्वत की चढ़ाई में लगभग एक घंटा लगता है। शत्रुजय के पंचतीर्थी में इसकी गणना धार्मिक ट्रस्ट की जाती है। इस पहाड़ी के एक ओर हस्तगिरी पर्वत है तो दूसरी ओर शत्रुजय के दर्शन बोदानोनेस, होते हैं। द्वितीय तीर्थंकर के गणधर श्री कदम्बमुनि यहाँ पर अनेक मुनियों के साथ निर्वाण मु. पो. भंडारिया, प्राप्त हुए, इसलिए इस तीर्थ को कदम्बगिरी कहते हैं । मुख्य मंदिर में मूलनायक श्री आदीश्वर व्हाया पालीताणा, जिला भावनगर (गुजरात) भगवान की लगभग 6 फुट ऊँची भव्य प्रतिमा है। इसके साथ यहाँ पर अन्य 5 भव्य मंदिर हैं। यहाँ पंच मेरू सदृश अष्टापद की रचना अद्वितीय है। ऊपर की टोंक पर श्री ऋषभदेव भगवान की प्राचीन चरणपादकाएँ हैं। श्री कदम्बमनि की चरणपादका भी यहाँ पर हैं। तलहटी के गाँव में वीरप्रभु का विशाल मंदिर है। जो अत्यन्त दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला एवं भोजनशाला की सुविधा है। मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान। श्री हस्तगिरी तीर्थ मार्गदर्शन : पालीताणा से यह स्थान 16 कि.मी. दूरी पर है। पेढ़ी: परिचय : शत्रुजंय नदी उत्तर में स्थित यह प्राचीन तीर्थ 1250 फुट ऊँचाई पर स्थित है। प्रकृति श्री आनंदजी कल्याणजी के शान्त वातावरण में एक छोटी-सी पहाड़ी पर यह जैन तीर्थ क्षेत्र है। इसके एक ओर पेढी, श्री हस्तगिरी तीर्थ शजय तथा दूसरी ओर कदम्बगिरी तीर्थ है। यहाँ पर आदिनाथ भगवान का अनेकों बार पेढी पदार्पण हुआ था। उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत ने इस तीर्थ की स्थापना की। यहाँ पर चक्रवर्ती तलहटी रोड, भरत को मोक्ष प्राप्त हुआ था। उनके हाथी ने भी अनशन कर इसी स्थान पर स्वर्गगमन किया, मु. पा. पालाताणा, जिला भावनगर (गुजरात) इसलिए इस स्थान को हस्तगिरी कहते हैं। प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ श्री आदिनाथ भगवान । की चरणपादुकाएँ थीं। अब भगवान का उत्तुंग शिखर के साथ रमणीय मंदिर बना है, जो राणकपुर की याद दिलाता है। मंदिर में बावन देवियाँ हैं। 145 फुट ऊंचे हस्तगिरी मन्दिर का निर्माण कार्य चालू है। 2010_03 | 121 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री तलाजा तीर्थ ( तालध्वजगिरि तीर्थ ) पेढ़ी : श्री तालध्वज जैन श्वे. तीर्थ कमेटी श्री जैन धर्मशाला, नदीकाडे, मु. पो. तलाजा, जिला भावनगर - 364140 फोन : (02842) 22030, 22313 श्री घोघा तीर्थ पेढ़ी सेठ काला मीठानी पेढी श्री नवखंडा पार्श्वनाथ जैन देरासर, मु. पो. घोघा, जिला भावनगर (गुजरात) फोन : (02781) 82335 श्री दाठा तीर्थ पेढ़ी : श्री वीसा श्रीमाली जैन महाजन मु. पो. दाठा, जि. भावनगर (गुजरात) फोन : (02842) 83324 श्री महुवा तीर्थ पेढ़ी : श्री महुवा वीसा श्रीमाली तपागच्छीय श्वे. म. जैन संघ, मु. पो. महुवा बंदर, जिला भावनगर (गुजरात) फोन : (02844) 22571 122 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री साचादेव सुमतिनाथ भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : पालीताणा से यह स्थान 32 कि.मी. दूरी पर है। भावनगर से यह स्थान 54 कि.मी. दूर है। यहाँ किले में भी कुछ मंदिर हैं। ऊपर पहाड़ पर मन्दिर की चढ़ाई लगभग 20-25 मिनट की सरल चढ़ाई है । परिचय : भगवान सुमतिनाथ की प्रतिमा यहाँ भूगर्भ से प्राप्त हुई है। कहा जाता है कि इस तीर्थ के स्थापित होने पर गाँव में व्याप्त भीषण महामारी का प्रकोप समाप्त हो गया। तलाजा ग्रामवासियों ने भक्ति भाव से गाँव में स्थित पवर्त पर इस मन्दिर को स्थापित किया तब से यह तालध्वजगिरी नाम से जाना जाने लगा । यहाँ श्री पार्श्वनाथ प्रभु, धर्मनाथ जी एवं गौतम स्वामी के भव्य मन्दिर भी दर्शनीय है। चौमुख जी के टोंक पर अत्यन्त स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति होती है । यहाँ किले में अन्य मन्दिर भी दर्शनीय I ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा हैं । मूलनायक : श्री नवखंडा पार्श्वनाथ भगवान । मार्गदर्शन : भावनगर से 19 कि.मी. दूरी पर घोघा बंदरगाह के पास यह तीर्थस्थान है। परिचय : यहाँ का मंदिर विशाल है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा चमत्कारी है। यह तीर्थस्थल खम्बात की खाड़ी के तट पर है। यह स्थल 12वीं सदी से पूर्व का है। इसके अलावा यहाँ अन्य दो मंदिर है। इस गाँव में अति प्राचीन, कलात्मक और विशिष्ट महत्त्वपूर्ण प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं । ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला हैं । मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : पालीताणा से तलाजा होकर महुवा जाते हुये यह तीर्थ आता है। तलाजा महुवा रोड पर 8 कि.मी. अंदर दाठा गाँव में जाना पड़ता है। परिचय : यहाँ पर काँच की सुन्दर कारीगरी की गयी है। इस कलाकृति में अनेक जैन प्रसंगों को दर्शाया गया है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : यह तीर्थ तलाजा से 45 कि.मी. दूर, सावरकुन्डला से 60 कि.मी. दूर स्थित है। ऊना से नागेश्री होते हुए 55 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थली है। परिचय : यहाँ की प्रतिमा को जीवित स्वामी कहा जाता है। यह प्राचीन तीर्थ सागर किनारे पर, नारियल के कई पेड़ों के बीच नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है । शत्रुंजय की पंचतीर्थी में इसकी गणना होती है। शत्रुंजय तीर्थ का तेरहवाँ उद्धार करने वाले श्री जावड शाह, आचार्य श्री नेमिसूरीश्वरजी, आचार्य श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी आदि महान् पुरुषों की यह जन्मभूमि है। यहाँ के मन्दिरों में रंगों की छटा अत्यन्त निराली है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों की सुविधा हेतु यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला की व्यवस्था हैं। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका गुजरात मूलनायक : श्री पद्मप्रभु भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। जिला गाँधीनगर मार्गदर्शन : यह स्थान विजापुर से 10 कि.मी. दूरी पर है। अहमदाबाद से गांधीनगर, हिम्मतनगर, बीजापुर हाइवे मार्ग से होते हुए यह 114 कि.मी. दूर स्थित है। अहमदाबाद से अन्य मार्ग मा श्री महुडी तीर्थ द्वारा यह 70 कि.मी. दूर है। अहमदाबाद से बस सेवा उपलब्ध है। हिम्मत नगर, कलोल, बड़ौदा, वीजापुर से भी बस उपलब्ध है। निकटतम रेल्वे स्टेशन वीजापुर है। वहां से बस सेवा उपलब्ध है। श्री महुडी (मधुपुरी) जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट परिचय : यह प्राचीन तीर्थस्थान है। मूलनायक श्री पद्मप्रभु भ. की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1974 1974 मु. पो. महुडी, में हई। यहाँ पर अति चमत्कारी श्री घंटाकर्ण महावीर के मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् । 1980 में हुई। यहाँ पर प्रतिवर्ष आश्विन कृष्णा 14 के दिन वार्षिकोत्सव बड़े धूमधाम से जिला गाँधीनगर-382 855 मनाया जाता है। यहाँ नजदीक ही श्री बुद्धिसागरसूरी जी का गुरु मंदिर है। यहाँ के घंटाकर्ण फोन : (02763) 84626, जी की बहुत मान्यता है। 84627 ठहरने की व्यवस्था : अत्याधुनिक सभी सुविधायुक्त अनेक धर्मशालाएं तथा विशाल भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभु जी भगवान। श्री चन्द्रप्रभु मार्गदर्शन : अहमदाबाद से अम्बाजी हाइवे पर 28 कि.मी. दूरी पर स्थित है। लब्धिधाम परिचय : दक्षिण केशरी पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय स्थूलभद्रसूरीश्वर जी म. की प्रेरणा से सी. इस तीर्थ का नव निर्माण होने जा रहा है। इस तीर्थ धाम में 84 जिनालयों का निर्माण, पीला 9 ग्रह के 9 जिनालय, 9 निधि के 9 जिनालय, 20 विहरमान जिनालय सहित 44 कल्याण सोय मंदिर का आकर्षित, सुन्दर भव्य अपने आप में प्रथम तीर्थ धाम है। नेशनल हाइवे नं. 8 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु सुविधा उपलब्ध है। भोजनशाला सुविधा उपलब्ध है। पूज्य चिलोड़ा चौकड़ी से 5 कि.मी. मुनि श्री चन्द्रयश विजय जी म. की प्रेरणा से यहाँ भोजनशाला, धर्मशाला, उपाश्रय आदि जिला गाँधीनगर (गुजरात) का निर्माण हुआ है। फोन : (02712) 73071 मार्गदर्शन : गांधीनगर एवं अहमदाबाद के मध्य राजमार्ग पर स्थित कोबा पहुँचने के लिए श्री महावीर जैन अहमदाबाद एवं गांधीनगर से बस तथा साबरमती, इन्दिराब्रीज-हांसोल तथा इन्द्रोडा सर्कल आराधना केन्द्र. से थ्री व्हीलर (ऑटो रिक्शा) उपलब्ध हैं। निकटवर्ती रेल्वे स्टेशन साबरमती यहाँ से को 9 कि.मी., अहमदाबाद 20 कि.मी. दूर है। अहमदाबाद स्टेट ट्रान्सपोर्ट बस स्टेशन 22 कि.मी. तथा गांधीनगर स्टेट ट्रान्सपोर्ट बस स्टेशन 10 कि.मी. दूर है। अहमदाबाद एयर ली. पोर्ट 10 कि.मी. दूर है। श्री महावीर जैन आराधना यहाँ से प्रमुख तीर्थ स्थलों की दूरियाँ निम्न हैं-पेथापुर 20 कि.मी., शेरीसा 35 कि.मी., केन्द्र भोयणी 35 कि.मी., पानसर 40 कि.मी., मेहसाणा 70 कि.मी., महुडी 65 कि.मी., विजापुर कोबा, गांधीनगर-382 009 70 कि.मी., आगलोड 78 कि.मी., पालीताणा 240 कि.मी. तथा शंखेश्वर 140 कि.मी.। (गुजरात) परिचय : आधुनिक युग के मोक्षमार्ग के दो आधार स्तम्भ प्रमुख हैं-(1) विश्व को फोन : (02712) 76204, 76205, 76252 आध्यात्मिक प्रकाश देने वाले जिन बिम्ब की भक्ति भाव पूर्ण प फैक्स : 76249 ज्ञानलक्षी उपासना। इन दोनों का समन्वय अर्थात श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा। 2010_03 | 123 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जैन तीर्थ परिचायिका महावीरालय : जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर मूलनायक भगवान श्री महावीर स्वामी सहित सभी परमपूजनीय मनोहर एवं चुम्बकीय आकर्षण युक्त प्रतिमायें दर्शकों को मोह लेती हैं। इस महावीरालय की विशिष्टता यह है कि आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष 22 मई को दोपहर, समय 2.07 बजे दहेरासर के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के तिलक को दैदीप्यमान करें ऐसी अनुपम एवं अद्वितीय व्यवस्था की गई है। गुरु मंदिर : परम पूज्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वर जी महाराज की पावनस्मृति में उनके अंतिम संस्कार स्थल पर निर्मित संगमरमर के कलात्मक मंदिर में दर्शकों को स्फटिक की अद्वितीय चरण पादुका व स्फटिक की ही अनन्तलब्धि निधान गौतम स्वामी की मनोहर प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यहाँ दर्शकों को गुरु भगवंत की यशोगाथा का स्मरण होता है। आराधना भवन : प्राकृतिक हवा एवं रोशनी से भरपूर इस आराधना भवन में मुनि भगवंत स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ ही विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग प्राप्त करते हैं। दर्शक यहाँ साधु भगवंतों का दर्शन एवं मार्गदर्शन का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह भवन स्थापत्य का एक विशिष्ट उदाहरण है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरी ज्ञानमंदिर : अपने जैसा पहला व कम्प्यूटर जैसी आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न यह सुविशाल ज्ञानमंदिर पूजनीय साधु-साध्वियों, मुमुक्षुओं तथा जिज्ञासु गृहस्थों की साहित्य साधना के लिये अभूतपूर्व आयोजन है। यह अपने पांच विभागों सहित स्वयं में एक विशिष्ट शोध संस्थान है जहाँ जैन धर्म-संस्कृति सहित भारतीय कला के नमूनों का अजोड़ संग्रह है। दुर्लभ हस्तप्रतों, पाषाण, धातु एवं काष्ठ प्रतिमाओं तथा दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रहालय जिज्ञासुओं के लिए दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के लिए उचित मूल्य पर सभी सुविधाओं के साथ कक्ष तथा सामूहिक निवास के लिए हाल की सुविधा मुमुक्षु कुटीर में उपलब्ध है। इस सुविधा के लिए सामान्य तौर पर अग्रिम बुकिंग आवश्यक है। यहाँ पर जैन धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप उत्तम भोजन की व्यवस्था है। नवकारशी एवं चौविहार के समय के बीच यहाँ पर अल्पाहार उपलब्ध है। जिला जामनगर द्वारका पोरबन्दर से 128 कि.मी. जामनगर से 131 कि.मी. दूरी पर अहमदाबाद से 432 कि.मी. दूरी पर स्थित है। राज्य के विभिन्न स्थानों से यह बस मार्ग द्वारा सम्पर्क में है। यहाँ से 30 कि.मी. दूर स्थित ओखा के लिए प्रत्येक घण्टे में बस सेवा उपलब्ध है। रेल्वे मार्ग द्वारा भी द्वारका मुम्बई, अहमदाबाद के सम्पर्क में है। यह हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह चार धामों में से एक माना जाता है। यहाँ का द्वारकाधीश का प्रमुख मन्दिर रेल्वे स्टेशन से 3 कि.मी. दूरी पर स्थित है। 2500 वर्ष से भी अधिक पुराना यह मन्दिर जगत मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य मन्दिर पांच मंजिलों का है। इसका सर्वोच्च शिखर 157 मीटर ऊँचाई का है। द्वारकाधीश मन्दिर के निकट ही बहती गोमती नदी द्वीप पर एक कृष्ण मन्दिर है। यहाँ गोमती का संगम है। इसके दूसरे तट पर पंचनद तीर्थ है। जहाँ पांच कुंए हैं जो पांडवों के नाम पर हैं। द्वारका-ओखा मार्ग पर 2 कि.मी. दूरी पर रुक्मिणी मंदिर, भद्ररानी मंन्दिर अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ से 15 कि.मी. दूरी पर नागेश्वर महादेव तीर्थ है। गोपी तालव तीर्थ द्वारका से 23 कि.मी. दूरी पर स्थित है जो अत्यन्त दर्शनीय है। द्वारका को स्थानीय नागरिक दोयारका के नाम से पुकारते हैं। 124 ducation International 2010_03 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका बेट द्वारका द्वारका से 32 कि.मी. दूर स्थित ओखा पश्चिम भारत का अन्तिम भूक्षेत्र है। शहर में यहाँ प्रवेश करने पर, फेरीघाट है जहाँ से नाव द्वारा 5 कि.मी. का रास्ता तय कर बेट द्वारका पहुँचा जा सकता है। यहाँ अत्यन्त सुन्दर भव्य द्वारकाधीश का मन्दिर है । इससे 1 कि.मी. दूरी पर है शंख तालाब, कृष्ण मन्दिर भी अत्यन्त दर्शनीय है । यहाँ के लोगों का विश्वास है कि श्री कृष्ण अपने परिजनों के साथ यहाँ रहते थे । मूलनायक : श्री नेमिनाथ भ., श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ शत्रुंजय ( पालीताना) तीर्थस्थान से लगभग 231 कि.मी., तथा रोजकोट से 107 कि.मी. दूरी पर स्थित । पालीताना से सिहोर, धोला, ढसा, जेतलसर इस रेलमार्ग से जूनागढ़ जा सकते हैं। अपनी बस द्वारा जाने वाले यात्रीगण तलाजा, दाठा, महुआ, अहरा, ऊना, दीव, चंद्रप्रभास पाटण सासन गिर इन स्थानों की यात्रा करते हुये गिरनार जा सकते हैं। यह स्थान जूनागढ़ शहर के पास है। जूनागढ़ शहर से गिरनार तलहटी 6 कि.मी. है। जूनागढ़ से टैक्सी, ऑटोरिक्शा आदि उपलब्ध रहते हैं । यहाँ से वनथली 15 कि.मी., सक्करबाग 5 कि.मी., सोमनाथ 100 कि.मी., अजारा पार्श्वनाथ 200 कि.मी. है। जूनागढ़ के लिए अहमदाबाद, सोमनाथ, राजकोट, सासनगिरि, वेरावल सभी स्थानों से ट्रेनों की सुविधा है। पालीताना, सोमनाथ, ऊना, दीव के लिए जूनागढ़ से प्रत्येक घन्टे बस सेवा उपलब्ध । शहर मैं टैक्सी, ऑटोरिक्शा तथा तांगा की सुविधा है। परिचय : सौराष्ट्र में श्री शत्रुंजय तीर्थ की तरह श्री गिरनार तीर्थ का भी बहुत बड़ा महत्त्व है। यह तीर्थस्थान सुन्दर सुरम्य नैसर्गिक वातावरण से घिरा हुआ है। इस स्थान पर भगवान नेमिनाथ की दीक्षा, केवलज्ञान, मोक्ष यह तीन कल्याणक सम्पन्न हुए । यहीं पर रथनेमि, राजीमती तथा अन्य कईयों को मोक्ष प्राप्ति हुई। यह तीर्थस्थान 1118 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। तलहटी से लगभग 4200 सीढ़ियाँ लगभग (4000 फीट) चढ़ने पर यहाँ की प्रमुख नेमिनाथ भगवान की ट्रॅक आती है। देरासर तक सीढ़ियाँ गयी हैं। यात्रीगण की सुविधा के लिये यहाँ पर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। रास्ते में जगहजगह विश्राम स्थान तथा पानी की व्यवस्था की गई है। इस चढ़ाई में तलहटी से लगभग 2.30 घन्टे लग जाते हैं। इस पहाड़ पर पैदल चढ़ने में असमर्थ यात्रियों हेतु डोली की सुविधा है। यहाँ पहाड़ की 5 चोटियों पर 5 मन्दिर हैं। पूजा का समय प्रातः 9.30 बजे है। दिगम्बर समाज द्वारा पूजा 7 से 9 बजे तक की जाती है । श्री नेमिनाथ भव्य मंदिर : पहले यह मंदिर लकड़ी का बना हुआ था। बाद में यह जीर्ण होने के कारण विक्रम संवत् 609 में काश्मीर के धर्मनिष्ठ श्रावक अजितशाह और रत्नाशाह ने उसका जीर्णोद्धार किया। 12वीं शताब्दी में फिर इसका जीर्णोद्धार हुआ । कुमारपाल महाराज की टँक : गुजरात के महाराज कुमारपाल ने कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य की प्रेरणा से 1444 मंदिरों का निर्माण कराया। इस तीर्थ पर भी उन्होंने कलापूर्ण जिनालय बनाया है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार मागरोल निवासी सेठ धर्मजी हेमचंद ने किया । 2010_03 गुजरात जिला जूनागढ़ श्री गिरनारजी तीर्थ ( जूनागढ़ ) पेढ़ी : 1. श्री वन्दीलाल दिगम्बर जैन धर्मशाला नेमीनाथ चौक, जूनागढ़ - 362001 फोन: 0285-654108; 621519 (तलहटी) 2. सेठ देवचंद लक्ष्मीचंद पेढी जगमाल चौक, अपरकोट रोड, मु. पो. जुनागढ़ (गुजरात) फोन: 0285-650179 (जूनागढ़ मुख्य ऑफिस), 620059 ( तलहटी), 624309 ( गिरनार जी ) 125 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात | जैन तीर्थ परिचायिका वस्तुपाल-तेजपाल की दूंक : यहाँ पर मेरठ वसही ट्रॅक, संग्राम महाराज ट्रॅक, संप्रति महाराज ट्रॅक आदि जैन मंदिर भी हैं। इस पहाड़ पर दामोदर कुंड, रेवतीकुंड, भीमकुंड, गजपद कुंड आदि पानी के कुछ कुंड भी हैं। जिनका पानी बहुत मीठा है। अंबाजी की ट्रॅक : भगवान नेमिनाथ के प्रमुख ट्रॅक के दर्शन कर आगे जाते हुये रथनेमि का मंदिर आता है, जो नेमिनाथ के भाई थे। उन्होंने यहाँ पर तपश्चर्या कर मोक्षप्राप्ति की। उसके आगे जाने पर अंबाजी की ट्रॅक आती है। अंबाजी भगवान नेमिनाथ की अधिष्टायिका देवी हैं। यहाँ पर श्वेताम्बर समाज की तरह दिगम्बर समाज के भी मंदिर हैं। विवाह के बाद भक्तजन अंबाजी के मन्दिर में कपड़ा बाँधने आते हैं और मंगल वैवाहिक सुख की कामना करते हैं। तलहटी में स्थित एक शिव मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के लिये यहाँ पर तलहटी में ही कई धर्मशालाएँ हैं । जहाँ ओढ़ने बिछाने का सामान मिलता है। दिगम्बर समाज की भी यहाँ धर्मशाला है। जूनागढ़ ठहरकर यहाँ आना भी सुविधाजनक है। जूनागढ़ एवं तलहटी में भोजनशाला है। श्री वन्दीलाल . दिगम्बर जैन धर्मशाला जूनागढ़ में है। श्री देवचंद लक्ष्मीचंद ब्लॉक तलहटी में है। तलहटी में ही श्री नेमिजिन धर्मशाला है। जूनागढ़ जूनागढ़ का प्रमुख आकर्षण यहाँ का किला जूनागढ़ फोर्ट है। राजपूत राजाओं का कीर्तिस्तम्भ यह दुर्ग ऊँची प्राचीरों से घिरा है। यहाँ की बावड़ी अर्थात् कुंआ देखने योग्य है। दुर्ग में नीलम तोप भी अति दर्शनीय है। जूनागढ़-गिरनार जी के रास्ते में शोलापुरी, दामोदर कुण्ड, राजेश्वरी मूर्ति आदि अत्यंत दर्शनीय हैं। इनके अतिरिक्त जूनागढ़ में रंगमहल, सखेर बाग, कृष्ण मन्दिर भी देखने योग्य हैं। ठहने हेतु जूनागढ़ में अनेक होटल भी हैं। गिर अरण्य (सासन गिर) जूनागढ़ से 60 कि.मी. दूरी पर स्थित सासन गिर भी दर्शनीय स्थल है। सिंहों को देखने हेतु यह सर्वोत्तम स्थल है। वैसे एशिया में केवल सासन गिर पर ही सिंह देखने को मिलते हैं । यहाँ वन विभाग द्वारा पर्यटकों हेतु इसकी व्यवस्था की गयी है। सायंकाल में वन विभाग की गाड़ी इस प्रयोजन हेतु उपलब्ध रहती हैं। मार्ग में अन्य जंगली पशु भी दिखाई दे सकते हैं. स्वच्छंद वातावरण में सिंहों को विचरते देखने का अलग ही रोमांच एवं आनन्द आता है। वन विभाग की ओर से अक्टूबर से जून तक सिंहावलोकन की व्यवस्था है। अरण्य में ठहरने हेतु एक डाक बंगला भी है। वेरावल, विसावदर होते हुए जूनागढ़ के लिए यहाँ से रेलमार्ग गया है। गिर के लिए वेरावल से ट्रेन भी आती हैं। 126 2010_03 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | गुजरात पेढी: जैन तीर्थ परिचायिका || मूलनायक : श्री चंद्रप्रभु भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । श्री प्रभासपाटण मार्गदर्शन : यहाँ से वेरावल रेल्वे स्टेशन 7 कि.मी. दूरी पर है। प्रभासपाटण से जूनागढ़ जाते तीर्थ/सोमनाथ तीर्थ समय 1 कि.मी. दूरी पर वनथली गाँव में प्राचीन जैन मंदिर हैं, वहाँ की प्रभु प्रतिमा विशाल है। प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ सोमनाथ यहीं पर है। सोमनाथ से दीव 84 कि.मी. गिरनार 90 कि.मी. श्री प्रभासपाटण जैन श्वे. दूर स्थित है। यहाँ से ऊना 81 कि.मी. दूर पड़ता है। रेलमार्ग से सोमनाथ वेरावल स्टेशन मू. संघ से पहँचा जाता है। वेरावल जं. से सोमनाथ मन्दिर की दूरी 6 कि.मी. है। स्टेशन से बस जैन देरासर की खडकी. ऑटोरिक्शा आदि साधन उपलब्ध रहते हैं। प्रमुख हिन्दू तीर्थ सोमनाथ जी यहीं है। यहाँ प्रभासपाटण, गुजरात के सभी प्रमुख नगरों से बसों का आवागमन रहता है। जि. जूनागढ़-362 268 परिचय : ई. सं. 1025 में मोहम्मद गजनवी ने यहाँ का शिवलिंग खंडित किया था, बाद में यहाँ (गुजरात) फोन : (02876) 31638 फिर नया मंदिर बनवाया गया। इस मंदिर से लगभग चार सौ मीटर दूरी पर श्री प्रभासपाटण तीर्थ है। ऐसा कहा जाता है कि इस तीर्थ की स्थापना चक्रवर्ती भरत राजा ने की। यहाँ के मंदिर के नौ गर्भगृहों में प्रभु प्रतिमाएँ हैं। इस मंदिर के विशाल सभा मंडप में कलात्मक शिल्पकला की गयी है। यहाँ पर और चार जिनमंदिर हैं। सोमनाथ मन्दिरों का शहर है। यह अरब सागर के तट पर बसा एक अत्यन्त रमणीक तीर्थ है। एक पौराणिक कथानुसार सोम (चंद्रदेव) प्रजापति के शाप से निष्प्रभ हो गये थे। तब दक्ष के परामर्श से इस संगम में स्नान कर शिव आराधना कर शिव को प्रसन्न कर शाप मुक्त हए। शिव के आशीर्वाद से चन्द्रमा पुनः आलोकित हए उसी समय इस जगह का नाम प्रभास पाटन पड़ा। ब्रह्मा के निर्देशानुसार तब सोमनाथ मन्दिर की स्थापना भी चंद्रमा ने की। यहाँ पर महामेरु, पुरातन मंदिर, परशुराम तपोभूमि, सूर्य मंदिर, गीता भवन, शारदा आदि अनेक पावन स्थल हैं। सोमनाथ वेरावल मार्ग में भालुका में भालुका तीर्थ मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला उपलब्ध है। भोजन की व्यवस्था है। सोमनाथ मन्दिर के निकट श्री सोमनाथ टैम्पल ट्रस्ट द्वारा 100 से अधिक कमरों वाली धर्मशाला है। मन्दिर के निकट अनेकों गेस्ट हाउस हैं तथा भोजनालय भी हैं। श्री ऊना तीर्थ मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, बादामी वर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : महुआ से 56 कि.मी. दूर स्थित ऊना स्टेशन से मंदिर 1 कि.मी. दूरी पर स्थित है। ऊना से गुजरात के विभिन्न स्थानों के लिए अनवरत बस सेवा है। परिचय : यह तीर्थ संप्रति राजा के समय का है। मंदिर के तलघर में श्री आदिनाथ भगवान की विशाल प्रतिमा दर्शनीय है। यहाँ और पाँच सुन्दर दर्शनीय मंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला है, लेकिन भोजनशाला नहीं है। पेढ़ी: श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थी जैन कारखाना पेढी मु. पो. ऊना, जि. जूनागढ़ (गुजरात) 127 2010_03 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री देलवाड़ा तीर्थ पेढ़ी: श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थी जैन कारखाना पेढी मु. पो. देलवाड़ा, जिला जूनागढ़ (गुजरात) जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : ऊना से 5 कि.मी. दूर यह स्थान अजाहरा से 2 कि.मी. तथा देलवाड़ा गाँव से 1 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : यह स्थान अत्यन्त प्राचीन है। विक्रम संवत् 1734 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था ऐसा उल्लेख मिलता है। इस गाँव के निकट दीव मार्ग पर गुजरात सरकार के पर्यटन विभाग ने अहमदपुर-मांडवी में आधुनिक पर्यटन धाम का निर्माण किया है। यहाँ यात्रियों हेतु अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्री अजाहरा तीर्थ मूलनायक : श्री अजाहरा पार्श्वनाथ भगवान। मार्गदर्शन : ऊना रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 5 कि.मी. दूरी पर है। देलवाड़ा (गुजरात) से पेढ़ी: 2 कि.मी. दूर है। अजाहरा समुद्र तट पर बसा है। मंदिर तक कार-बस जा सकती हैं। श्री अजाहरा पार्श्वनाथ परिचय : अजाहरा गाँव के एक छोटे पहाड़ पर यह तीर्थस्थान है यहाँ की प्रतिमा काफी प्राचीन पंचतीर्थी जैन कारखाना पेढी है। प्राचीनकाल में महाराजा अजयपाल कई रोगों से पीड़ित थे, तब प्रभु प्रतिमा के न्हवणजल से उनके रोगों का निवारण हुआ था। तब राजा ने भक्तिभाव के साथ इस तीर्थ मु. पो. देलवाडा, की स्थापना की। यह तीर्थ अत्यन्त चमत्कारिक तीर्थ है। आज भी यहाँ के प्राचीन घण्टे जि. जूनागढ़ (गुजरात) स्वतः बजने लगते हैं तो कभी केसर की वर्षा होने लगती है। फोन : (02875) 22328 अजाहरा से 1 कि.मी. दूर आमों का बाग शाहबाग, आचार्यदेव श्री विजयदेव सूरिश्वर का समाधि स्थल, दर्शनार्थियों को आत्मिक शांति की अनुभूति कराता है। कहा जाता है कि आचार्य देव के अंतिम संस्कार के समय यहाँ सर्दियों में भी आम के वृक्षों पर आम के फल आ गये थे। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला है। श्री दीव तीर्थ पेढ़ी: श्री अजहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थी जैन कारखाना पेढी, मु. पो. दीव, जिला जूनागढ़ (गुजरात) मूलनायक : श्री नवलखा पार्श्वनाथ भगवान। मार्गदर्शन : पालीताणा से गिरनार जाते समय रास्ते में दीव, अजाहरा, देलवाडा, ऊना और प्रभासपाटण आदि तीर्थस्थानों के दर्शन का लाभ हो सकता है। यहाँ से देलवाड़ा तीर्थ । 8 कि.मी. तथा ऊनातीर्थ 15 कि.मी. दूरी पर है। दीव से सोमनाथ 84 कोदिनार 45 कि.मी. है। दीव का मूल आकर्षण इसका प्राकृतिक सौन्दर्य है। परिचय : गिरनार की पंचतीर्थी में इनकी गणना होती है। यह स्थान समुद्र के मध्य में एक द्वीप पर बसा हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक छटा अत्यन्त मनोहारी है। कुमारपाल महाराज ने यहाँ पर श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर बनवाया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। दर्शनीय स्थल : चक्रतीर्थ बीच, जालंधर समुद्र तट, गंधेश्वर शिव आदि स्थल अत्यंत दर्शनीय हैं। गुजरात टूरिज्म के समुद्र बीच रिजोर्ट में ठहरने व भोजन की उत्तम व्यवस्था है। यहाँ रुककर माण्डवी समुद्र तट पर मनोरम आनन्द उठाया जा सकता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर छोटी-सी धर्मशाला है, लेकिन भोजनशाला नहीं है। 128. 2010_03 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका गुजरात मूलनायक : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान। जिला कच्छ मार्गदर्शन : भुज कच्छ का प्रमुख शहर है। यह गाँधीधाम से नियमित बस सेवा द्वारा जुड़ा हुआ है न श्री भुज तीर्थ है। गाँधीधाम से भुज 57 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। परिचय : यहाँ पर वाणियावाड विभाग में तीन शिखरयुक्त जिनमंदिर हैं। जिसमें से एक देरासर में मूलनायक श्री आदेश्वर भगवान है। दूसरे मंदिर में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ तथा तीसरे मंदिर (खरतरगच्छीय) में मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान है। शहर के बाहर दादावाड़ी है। जिसमें जिनमन्दिर और दादागुरु के पगलिए हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। दर्शनीय स्थल : अतीत में भुज कच्छ की राजधानी था। कच्छ थार रेगिस्तान का एक अंश है। उत्तर में विस्तृत रेगिस्तान को पार करने के पश्चात् पाकिस्तान की सीमा आ जाती है। दूसरी ओर समुद्र होने के कारण कच्छ के वातावरण में क्षारीय स्पर्श है। भुज शहर चारों ओर से दीवारों से घिरा हुआ है। कुछ समय पूर्व तक सूर्यास्त से सूर्योदय तक शहर के प्रवेशद्वार बंद रहते थे। शहर में कच्छ म्यूजियम दर्शनीय है। यह गजरात का प्राचीनतम म्यजियम है। बुधवार तथा द्वितीय शनिवार को यह बंद रहता है। अन्य दिन यह प्रात: 9-12.30 तथा दोपहर 3-5.30 तक खुला रहता है। भुज में आईना महल, महादेव गेट, लक्ष्मीनारायण मंदिर दर्शनीय हैं। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। जुना मूलनायक जी श्यामला पार्श्वनाथ श्री भद्रेश्वर तीर्थ भगवान। मार्गदर्शन : कच्छ प्रान्त के मुंद्रा तहसील में भद्रेश्वर स्थित है। गाँधीधाम शहर से यह स्थान पेढी: 35 कि.मी. तथा मुंद्रा से 27 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से भारत का सुप्रसिद्ध कांडला बंदरगाह सेठ वर्धमान कल्याणजी 45 कि.मी. दूर है। जहाँ से विदेशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार चलता है। यहाँ से नानी ट्रस्ट वसई जैन तीर्थ मोठा पंचतीर्थी की परिक्रमा लेते हुए गाँधीधाम पहुँचते हुए कुल 370 कि.मी. दूरी है। म. पो. भद्रेश्वर, ता. मंद्रा गाँधीधाम रेल्वे स्टेशन पर सभी प्रांतों से गाड़ियों का आवागमन है। स्टेशन से बस, टैक्सी जिला कच्छ-370411 आदि सभी सुविधाएं है। गाँधीधाम से भद्रेश्वर के लिए एवं कच्छ की पंचतीर्थी के लिए भी (गुजरात) टैक्सी सेवा उपलब्ध है। बसें तीर्थ के सामने ही रुकती हैं। मांडवी, मुंद्रा गाँधीधाम, फोन : 02838-83361 अहमदाबाद, मुंबई सभी स्थानों से इस तीर्थ के लिए बस सेवा है। मुंबई, भुज, गाँधीधाम और मांडवी के मध्य डीलक्स लक्जरी बस सेवा उपलब्ध है। परिचय : कच्छ की अपनी प्राचीन संस्कृति अपने में एक अनोखा स्थान रखती है। भारत देश के पश्चिम की ओर समुद्र के किनारे गुजरात राज्य में कच्छ एक विभिन्न भौगोलिक स्थिति लिए हुए है। कच्छ जिले में स्थित मुन्द्रा नामक तालुके में श्री वसई भद्रेश्वर नाम का एक अति प्राचीन तीर्थ स्थान अपनी दिव्य कला कति के लिए जाना जाता है। भद्रेश्वर का पुराना नाम भद्रावती नगरी था जो अपने समय में अति समृद्ध थी। भारत में श्री सम्मेदशिखर तथा श्री शत्रुजय जैसे शाश्वत महातीर्थ के पश्चात् इस भद्रेश्वर तीर्थ का तीसरा स्थान है। कच्छ के धर्म-स्थानों में यह तीर्थ अति प्राचीन है। 2500 वर्ष पुराना यह तीर्थ मन्दिर अति भव्य है। इनका गगनचुम्बी शिखर देव विमान जैसी अनुपम कलाकृति और परम पवित्र सुंदर जिनालय दर्शकों को मुग्ध कर देते हैं। 2010_03 www.jainelipra1298 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री मांडवी तीर्थ पेढ़ी : श्री मेघजी सोजपाल जैन आश्रम भुज रोड, मांडवी, कच्छ (गुजरात) 370465 फोन : (02834 ) 20880, 20046 130 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मुख्य जिनालय में मूलनायक विश्व वालेश्वर, त्रिलोकनाथ चरम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी विराजमान है। पद्मासन स्थित मूलनायक भगवान की प्रतिमा श्वेतवर्ण की है और 61 सेन्टीमीटर ऊँची है। प्रभु जी के चेहरे पर प्रेम करुणा और समभाव का सुंदर संगम दर्शकों को भावविभोर कर देता है। मूलनायक के रंगमंडप में शिलालेख पर भगवान श्री महावीर स्वामी के अधिष्ठाता देव देवियां श्री मातंगयक्ष तथा सिद्धिका देवी की देवकुलिकाएं हैं। रंगमंडप के धूम्मट पर प्रभु श्री नेमिनाथ भगवान की बारात के सुन्दर कलात्मक दृश्य अंकित है। जिनालय में पूजा मंडप रंगमंडप और रासमंडप देखने लायक है । भावना मंडप में श्री शत्रुंजय, श्री गिरनार, श्री सम्मेदशिखर, श्री अष्टापद और श्री नंदीश्वरद्वीप के बड़ेबड़े तीर्थ पट हैं। ऊपर के छत पर श्री पावापुरी, श्री चंपापुरी, श्री हस्तिनापुरी, श्री राजगृही और श्री त्रिशलादेवीमाता के चौदह स्वप्न के कलात्मक पांच पट अंकित है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। यात्रियों हेतु अटैच्ड बाथरूम, साधरण एवं किचनयुक्त कमरों की यहाँ सुविधा है। यहाँ भोजनशाला में निःशुल्क भोजन व्यवस्था है। एक से अधिक दिनों तक यहाँ रुकने पर अन्य दिनों के लिए नियत दर पर भोजन उपलब्ध होता है । संघो हेतु भी यहाँ विशेष सुविधाएं हैं। नोट : कच्छ की छोटी पंचतीर्थी में वडाला, मुन्द्रा, भुजपुर, मोटी खाखर, नानी खाखर, बीदड़ा, बहत्तर जिनालय और जैन आश्रम मांडवी आते हैं। भद्रेश्वर से इनकी दूरी निम्न है: वडाला 6 कि.मी., मुन्द्रा 27 कि.मी., भुजपुर 43 कि.मी., मोटी खाखर 48 कि.मी., नानी खाखर 43 कि.मी., बीदड़ा 60 कि.मी., बहत्तर जिनालय 65 कि.मी., जैन आश्रम 72 कि.मी. और मांडवी 75 कि.मी. दूरी पर है। कच्छ की मोटी पंचतीर्थी में सांघाण, सुथरी कोठारा, जखौ, नलीया, तेरा आदि तीर्थ आते हैं । भद्रेश्वर से इनकी दूरी निम्न है : लायजा 91 कि. मी., डुमरा 120 कि.मी., सांघाण 133 कि.मी., सुथरी 142 कि.मी., कोठारा 155 कि.मी., जखौ 187, नलीया 200 कि.मी., तेरा 213 कि.मी., भुज दादावाडी 300 कि.मी., अंजार 344 कि.मी. है। मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान । मार्गदर्शन : मांडवी कच्छ का प्रसिद्ध बंदरगाह है। यह भुज से 60 कि.मी. दूर स्थित है। कोडा यहाँ से लगभग 8 कि.मी. दूर स्थित है।.. परिचय : यहाँ पर श्री शान्तिनाथ भ., श्री महावीर स्वामी, श्री धर्मनाथ भ., श्री शीतलनाथ भ., श्री पार्श्वनाथ भ., श्री अजितनाथ भ. आदि मूलनायक हैं। कच्छ की छोटी पंचतीर्थी में यह तीर्थ गिना जाता है। भुज से यहाँ सीधे कोडाला होते हुए आया जा सकता है। दूसरे मार्ग से प्रागपर, मोटी खाखर- नानी खाखर विदडा कोडांयो आदि तीर्थों के दर्शन करते हुए मांडवी पहुँचा जा सकता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर श्री मेघजी सोजपाल जैन आश्रम है । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | गुजरात मूलनायक : श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथ भगवान। श्री सुथरी तीर्थ मार्गदर्शन : मांडवी से यह स्थान 67 कि.मी. तथा भुज रेल्वे स्टेशन से 86 कि.मी. दूरी पर है। कोठारा होकर यहाँ आना पड़ता है। कोठारा से यह तीर्थ 12 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। पेढ़ी : यहाँ से सांघाण निकट ही है। श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथ परिचय : इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1895 में हुई थी। कला की दृष्टि से यह मंदिर जैन श्वे. तीर्थ पेढी, अत्यन्त सुन्दर है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा बहुत प्रभावी एवं चमत्कारी है। मु. पो. सुथरी, ता. अबडसा, जि. कच्छ कहा जाता है कि श्री उदेशी श्रावक को प्रभु प्रतिमा एक ग्रामीण से प्राप्त हुई थी। प्रतिमा को (गुजरात) अपने पास रखने पर उन्होंने चमत्कारों का अनुभव किया। उवेशी श्रावक ने पूज्य महिवर्य, फोन : 02831-84223 से इस विषय में जिज्ञासा प्रकट की तथा यतिजी के आदेशानुसार मंदिर का निर्माण कराया। इस उपलक्ष्य में आयोजित भोज में एक बर्तन में घी प्रयोग के बाद भी भरा ही रहा। इस चमत्कार से प्रभावित हो लोग प्रभु को घृतकल्लोल पार्श्वनाथ कहने लगे। सांघाण में श्री शांतिनाथ प्रभु की सौम्य मूर्ति विराजमान है। यहाँ तीर्थ में तिलकटुंक नामक नवटुंक है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर से 100 मीटर दूरी पर धर्मशाला है। भोजनशाला की पूर्ण व्यवस्था है। मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । श्री कोठारा तीर्थ मार्गदर्शन : सुथरी से यह तीर्थस्थान 12 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से सीधे नलिया भी जाया जा सकता है। नलिया यहाँ से 18 कि.मी. दूर है। जखौ यहाँ से 28 कि.मी. दूर है। सुथरी जाने पेढ़ी : के लिए कोठारा होकर ही जाना पडता है। मांडवी यहाँ से 63 कि.मी. दर स्थित है। गाँव श्री शान्तिनाथ जैन देरासर के मध्य में जैन मोहल्ले में यह तीर्थस्थान है। भुज यहाँ से 89 कि.मी. दूर है। भुज रेल्वे एवं सधर्म फंड ट्रस्ट स्टेशन पर बस, टैक्सी आदि सभी सुविधाएँ है। तीर्थ पर दिनभर में विभिन्न स्थानों से मु. पो. कोठारा, 47 बसों का आवागमन होता है। ता. अबडसा, परिचय : इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1918 में हुई थी। इस मंदिर के निर्माता केशवजी जि. कच्छ (गुजरात) नायक यहाँ के निवासी थे। उन्होंने यह अत्यन्त कलात्मक मंदिर बनवाया। श्री शत्रुजय तीर्थ फा जो फोन : 02831-82235 पर भी इन्होंने एक ट्रॅक बनवायी। आठ गगनचुंबी शिखरों का यह मंदिर अत्यंत कलापूर्ण एवं दर्शनीय है। पूजा का समय प्रातः 7 से 4 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर 150 यात्रियों के ठहरने की धर्मशाला में सुविधा है। भोजनशाला की सुविधा भी उपलब्ध है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। श्री जखौ तीर्थ मार्गदर्शन : कोठारा से यह तीर्थस्थान 28 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से नलिया 13 कि.मी. दूर , पेढ़ी: स्थित है। श्री जखौ रत्नट्रॅक देरासर पेढी परिचय : इसका निर्माण सेठ जीवराज रतनशी तथा भीमशी रतनशी ने करवाया, इसलिए इसे मु. पो. जखौ, रत्नटॅक जैन देरासर भी कहते हैं। इसी परकोटे के अन्दर आठ और मंदिर हैं। एक ही परकोटे ना अबरमा जिक में नौ मंदिर के शिखरों का दृश्य अति मनभावन और सुरम्य है। (गुजरात) ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। फोन : (02831) 224 131 2010_03 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री नलिया तीर्थ पेढ़ी : श्री चन्द्रप्रभु, श्री शान्तिनाथजी जैन देरासर पेढी वीरवसही हुँक, मु. पो. नलिया, ता. अबडसा, जि. कच्छ (गुजरात) फोन : (02831) 22327 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चंद्रप्रभु भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान जखौ से 13 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से तेरा तीर्थ 12 कि.मी. है। मोथाला यहाँ से 34 कि.मी. दूर है। परिचय : सुथरी, कोठारा, जखौ, नलिया और तेरा यह पाँच तीर्थस्थान कच्छ अबडसा की पंचतीर्थी कही जाती हैं। यहाँ के मंदिर का निर्माण सेठ नरसीनाथा ने करवाया। इस मंदिर में 16 शिखर एवं 14 मंडप हैं। जिसकी मनमोहक कला के कारण यह मंदिर अत्यन्त सुन्दर दृश्य प्रदर्शित करता है। मंदिर के पत्थरों पर स्वर्णकलम से कारीगिरी की है। तथा मंदिर के अन्दर रंगीन काँच की सुन्दर नक्काशी की गयी है। यह मंदिर अपनी कलात्मकता के कारण प्रसिद्ध है। इस परिसर में तीन और मंदिर हैं। दर्शनीय स्थल : नलिया से 64 कि.मी. दूर कच्छ का विशिष्ट हिन्दू तीर्थ कोटेश्वर है। यहाँ का महादेव मन्दिर अत्यंत दर्शनीय है। यहाँ का सागर तट तो रमणीय है ही, नारायण मन्दिर व जलाशय भी विशेष दर्शनीय है। नारायण सरोवर में ठहरने हेतु व्यवस्था है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला की सविधा है। पेढ़ी: श्री तेरा तीर्थ मूलनायक : श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान। मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान नलिया से 12 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से मोथाला 22 कि.मी. दूर स्थित है। श्री जीरावला पार्श्वनाथ जैन । परिचय : यहाँ की प्रभु प्रतिमा लगभग 2200 साल पुरानी संप्रति महाराज द्वारा प्रतिष्ठित मानी देरासर ट्रस्ट जाती है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1915 में हुआ, इसका अंतिम जीर्णोद्धार विक्रम मु. पो. तेरा, ता. अबडसा, संवत् 2027 में होकर आचार्य श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म. के सानिध्य में यहाँ की प्रतिष्ठा जि. कच्छ (गुजरात) हुई। इस मंदिर के नव शिखर की कलात्मकता अत्यन्त मनभावन है। इसके पास ही श्री फोन : 02831-86223 श्यामला पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर है। साथ ही यहाँ के ज्ञानमंदिर में कलात्मक तीर्थपट दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। जिला खेड़ा श्री मातर तीर्थ पेढ़ी: श्री साचादेव कारखाना पेढी, मु. पो. मातर, जि. खेड़ा (गुजरात) फोन : 02697-85530 मूलनायक : श्री साचादेव सुमतिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यहाँ का नजदीक का रेल्वे स्टेशन नडीयाद 21 कि.मी. दूरी पर है। अहमदाबाद से मातर तीर्थ 54 कि.मी. है। स्टेशन से आने के लिए बस एवं टैक्सी की सुविधा है। यहाँ से खेड़ा 5 कि.मी. है। तीर्थ पर अहमदाबाद, बड़ौदा से बस सेवा है। परिचय : यह प्रतिमा सुहुंज गाँव में भूगर्भ से निकाली गयी। वह अति चमत्कारी होने की वजह से श्री साचादेव सुमतिनाथ भ. के नाम से प्रसिद्ध हई। इसी मंदिर में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की अत्यन्त प्राचीन प्रतिमा है। यह तीर्थ 240 वर्ष पुराना है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर पूर्ण सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला है। धर्मशाला में 20 कमरे हैं। प्रत्येक पूर्णिमा को भाता दिया जाता है। 132 2010_03 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जिला मेहसाना श्री वामज तीर्थ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : शेरीसा तीर्थ से यह स्थान 12 कि.मी. दूरी पर है। वामज गाँव से तीर्थ 5 कि.मी. फासले पर है। शेरीशा से कलोल 8 कि.मी. तथा कलोल से अहमदाबाद 29 कि.मी. है। परिचय : एक महात्मा को यहाँ की प्रतिमा भूगर्भ से मिली। यह प्रभु प्रतिमा बहुत ही चमत्कारी है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर एक छोटी-सी धर्मशाला है। पेढी: सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी मु. पो. वामज, ता. कलोल, जि. मेहसाना (गुजरात) मूलनायक : श्री शेरीशा पार्श्वनाथ भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। श्री शेरीशा तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान अहमदाबाद-मेहसाणा मार्ग पर कलोल से 8 कि.मी. दूरी पर है। कलोल अहमदाबाद 29 कि.मी. का मार्ग है। मेहसाणा से कलोल 45 कि.मी. मेहसाणा पेढ़ी : अहमदाबाद मार्ग पर पड़ता है। सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढी परिचय : यह तीर्थ अत्यन्त प्राचीन है। विक्रम संवत् 1500 के ग्रंथों में इस तीर्थ का उल्लेख है। मु. पो. शेरीशा, ता. कलोल, प्रभु प्रतिमा 65 इंच ऊँची है। मंदिर के नीचे तलघर में श्री पार्श्वनाथ भगवान तथा मंदिर में जि. मेहसाना (गुजरात) श्री पद्मावती देवी की प्रतिमा भव्य और सुन्दर है। विक्रम की 16वीं शताब्दी के समय फोन : (02764) 4438 मुस्लिम आक्रमण द्वारा यह तीर्थ खंडित हुआ था। बाद में नया मंदिर बनवाकर विक्रम संवत् 2002 में प्रतिष्ठा करायी गयी। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। श्री आगलोड तीर्थ मूलनायक : श्री वीर मणिभद्र। परिचय : विजापुर गाँव के निकट मेहसाणा-हिमतनगर मुख्य सड़क मार्ग से कुछ भीतर जाकर जैन शासन रक्षक देव श्री वीर मणिभद्र का यह प्रसिद्ध स्थान है। वे जैनधर्म के अनुयायी हैं और जैनों का विघ्नों से रक्षण करते हैं। यहाँ से महुडी (घंटाकर्ण तीर्थ) नजदीक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला की व्यवस्था है। श्री पानसर तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : अहमदाबाद मेहसाणा मार्ग पर कलोल के पास यह स्थान है। कलोल से पानसर 7 कि.मी. दूर स्थित है। मेहसाणा से यह स्थान 45 कि.मी. दूर है। पानसर रेल्वे स्टेशन भी है। ऑटो तथा रिक्शा के साधन मिल जाते हैं। परिचय : यहाँ की प्रभु प्रतिमा वि. सं. 1966 में भूगर्भ से प्राप्त हुई। बाद में यहाँ और भी प्रतिमाएँ मिलीं। यहाँ की प्रतिमा चमत्कारी होने के कारण यहाँ हमेशा यात्रियों का मेला लगता है। यहाँ का मंदिर तीन शिखरयुक्त तथा सात गर्भगृह का भव्यतम है। यहाँ से दो फलांग पर पानसर गाँव में भी श्री धर्मनाथ भ. का मंदिर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। पेढ़ी : श्री महावीर स्वामीजी महाराजनी पेढी मु. पो. पानसर, वाया कलोल, जि. मेहसाणा (गुजरात) फोन : (02764) 88240 2010_03 www.jainelib 133 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री मेहसाणा तीर्थ पेढ़ी: श्री सीमंधर स्वामी जिनमंदिर पेढी नेशनल हायवे, मेहसाणा (गुजरात) फोन : (02762) 51674 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री सीमंधर स्वामी, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : मेहसाणा बस स्थल से मंदिर की दूरी लगभग 2 कि.मी. है। रेल्वे स्टेशन से यह तीर्थ 1.5 कि.मी. दूर स्थित है। गुजरात का प्रमुख नगर होने के कारण यहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अहमदाबाद से कलोल होते हुए यह 80 कि.मी. दूर पड़ता है। सिद्धपुर यहाँ से 37 कि.मी. दूरी पर स्थित है। शंखेश्वर यहाँ से 94 कि.मी., तारंगा हिल 56 कि.मी. पाटण 51 कि.मी. मोढेरा 25 कि.मी. और महुडी 53 कि.मी. दूर हैं। परिचय : आचार्य श्री कैलाससागरसूरी जी म. की प्रेरणा से यहाँ पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण हुआ है। अहमदाबाद-दिल्ली रेल मार्ग पर यह तीर्थस्थान होने के कारण यात्रियों का आवागमन बडी संख्या में रहता है। मूलनायक श्री सीमंधर स्वामी की प्रतिमा 145 इंच ऊँची तथा विशाल है। पद्मासन में विराजित इतनी भव्य प्रतिमा अन्यत्र कम देखने को मिलती है। इस मंदिर में शिल्पकला का सुन्दर नमूना देखने को मिलता है। इस मंदिर के अलावा मेहसाणा में और चौदह प्राचीन जिनमंदिर हैं। यहाँ पर अनेक जैन संस्थाएँ कार्य करती हैं। यहाँ की यशोविजय जैन पाठशाला का कार्य प्रशंसनीय है। यहाँ से शिक्षित अनेक विद्यार्थी धार्मिक शिक्षक बने हैं, तो कईयों ने जैन साधु की दीक्षा ली है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही बड़ी धर्मशालाएँ तथा भोजनशाला हैं। श्री विजापुर तीर्थ ___ मूलनायक : श्री स्फुल्लिंग पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। पेढ़ी : मार्गदर्शन : यह तीर्थ मेहसाणा-हिम्मतनगर मार्ग पर मेहसाणा से 50 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ श्री स्फुल्लिंग पार्श्वनाथ से हिम्मतनगर 24 कि.मी. दूर स्थित है। महान चमत्कारिक घंटाकर्ण महावीर का तीर्थस्थल भगवान महुडी यहाँ से 10 कि.मी. दूर है। श्रीमद बद्धिसागरसरि जैन परिचय : इस तीर्थ का निर्माण अभी कुछ वर्ष पूर्व हुआ है। नई शैली से यहाँ पर सुन्दर जिनमंदिर समाधि मंदिर बना है। मंदिर के पास ही श्री पद्मावती माता, श्री घंटाकर्ण महावीर, श्री मणिभद्र इनके मंदिर मु. विजापुर, जि. मेहसाणा हैं। यहाँ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरी जी की दादावाड़ी है। यहाँ के मन्दिर परिसर में शासन (गुजरात) देवियों के भव्य भित्ति चित्र बहुत ही कलात्मक हैं। मन्दिर की शोभा दर्शनीय है। फोन : (02763) 20209 ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। श्री तारंगा तीर्थ मूलनायक : श्री अजितनाथ भ., श्वेतवर्ण, श्री संभवनाथ भ. (दिगम्बर मंदिर)। पेढ़ी : मार्गदर्शन : यहाँ से लगभग 1 कि.मी. दूरी पर कोटिशिला स्थल है, जो अनेक मुनियों की 1. श्री आनंद जी तपोभूमि है। यह स्थान मेहसाणा से 61 कि.मी. दूरी पर है। पहाड़ तक पक्की सड़क है। यह कल्याणजी श्वेताम्बर तीर्थ खेरालू से 14 कि.मी. दूर स्थित है। तारंगा रेल्वे स्टेशन से मन्दिर 10 कि.मी. दूर स्थित मर्तिपूजक जैन पेढी, है। स्टेशन से तीर्थ के लिए बस सेवा उपलब्ध है। तारंगा हिल, ता. खेरालू, परिचय : इस गांव का नाम बौद्ध देवी 'तारा देवी' के नाम पर है। इस तीर्थ का निर्माण जैन जि. मेहसाणा (गुजरात) सम्राट कुमारपाल ने विक्रम संवत् 1221 में किया। बाद में विक्रम संवत् 1479 में ईडर फोन : 02761-5340 निवासी गोविंदभाई श्रेष्ठी ने इसका जीर्णोद्धार किया। यह मंदिर 230 फुट लम्बे तथा चौड़े 2. श्री दिगम्बर जैन कोठी चौक के मध्य में स्थित हैं, मंदिर 142 फुट ऊँचा, 150 फुट लम्बा तथा 100 फुट चौड़ा है। तारंगा टैम्पल सिद्ध क्षेत्र भारत में इतने विशाल चौक में ऐसा भव्य मंदिर अन्यत्र दुर्लभ है। मंदिर के निर्माण में पत्थर मु. पो. तारंगा हिल, के साथ केघट नाम की लकड़ी का उपयोग किया है। इस लकड़ी की विशेषता यह है कि ता. खेरालू, जि. मेहसाणा आग लगने पर भी वह नहीं जलती। मंदिर का चार मंजिला चंदनवर्ण पाषाण का गगनचुंबी फोन : 02761-53439 कलात्मक शिखर विशाल रंगमंडप के साथ दिव्यलोक जैसा प्रतीत होता है। मंदिर के 134 2010_03 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जैन तीर्थ परिचायिका सभामंडप में कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य जी का कुमारपाल राजा को उपदेश देते हुए भव्य चित्र लगाया है। इस क्षेत्र में 14 मन्दिर हैं, 9 श्वेताम्बर तथा 5 दिगम्बर जिनमंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दोनों संप्रदायों की धर्मशालाएँ हैं। सभी धर्मशालाओं में सुविधाएँ उपलब्ध हैं। दिगम्बर क्षेत्र भोजनशाला का समय प्रात: 11 से 1 बजे एवं सायं 5.30 से 6 बजे तक है। मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान। जिला नवसारीमार्गदर्शन : मुम्बई-अहमदाबाद हाइवे पर नवसारी शहर से 6 कि.मी. दूरी पर प्राकृतिक वलसाड वातावरण में यह स्थान है। महाराष्ट्र से श्री शत्रुजय तीर्थयात्रा राजस्थान तीर्थयात्रा को जाने वाले यात्रियों को नवसारी तपोवन या झगड़ियाजी रुकना सुविधाजनक होता है। - नवसारी तपोवन परिचय : यह कोई प्राचीन तीर्थस्थान नहीं, पंन्यास श्री चंद्रशेखर विजयजी म. की प्रेरणा से यहाँ पर एक गुरुकुल बना है, जहाँ पर लगभग पाँच सौ छात्रों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ पढ़ी: धार्मिक शिक्षा देकर उन्हें सुसंस्कार दिये जाते हैं। इस संस्था के लिये उनकी प्रेरणा से तपोवन संस्कारधाम लीस एकड़ जमीन ली गयी है। जहाँ पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण हआ है। यहाँ का पोस्ट-डबीलपोर, भ. शान्तिनाथ का मंदिर बहुत विशाल 195 फुट लम्बा, 95 फुट चौड़ा तथा 104 फुट ऊँचा जिला नवसारी (गुजरात) है। मंदिर के तीन शिखर, 5 गाभारे हैं, यह तीन मंजिला हैं। फोन : (0297) 58624, ठहरने की व्यवस्था : यहाँ छात्रों को मिलने के लिये आने वाले पालक तथा यात्रियों के लिये 58656 भव्य अतिथिगृह हैं। हर एक ब्लॉक में दो कमरे, बाथरूम, ओढ़ने-बिछाने का सामान है। यहाँ भोजनशाला है। मुम्बई-अहमदाबाद रेलमार्ग पर वलसाड से 3 कि.मी. दूरी पर समुद्र तट पर सुन्दर बालुई किनारे शान्तिनिकेतन साधना पर नैसर्गिक वातावरण में यह स्थान है। सापुतारा से यह 135 कि.मी. दूर पड़ता है। के निशल अहमदाबाद से 341 कि.मी. दूरी पर स्थित है। सूरत से 80 कि.मी. दूर पड़ता है। इसका निर्माण मुनिश्री त्रिपुटी बंधू की प्रेरणा से हुआ है। श्री मुनिचंद्र जी म., श्री कीर्तिचंद्र जी म., दी. श्री जिनचंद्र जी म. इन तीन भाइयों ने अपने परिवारजनों के साथ जैन साधु की दीक्षा ग्रहण शान्तिनिकेतन साधना केन्द्र की थी। बहत सालों तक साधु जीवन का पालन करने के बाद विदेशों में रहने वाले जैन . डाकघर तिथल, भाइयों में जागृति हो इसलिए उन्होंने वाहन प्रयोग शुरू किया। देश-विदेश में कई बार उनके स्टेशन वलसाड, व्याख्यान होते हैं। उनके व्याख्यानों की कई कॅसेट्स निकली हैं, जिनकी देश-विदेश में माँग है। ध्यान साधना शिविरार्थियों के लिए यहाँ पर भव्य धर्मशाला है। प्राकृतिक सौम्य । जिला वलसाड (गुजरात) वातावरण स्थान होने के कारण यहाँ कई लोग घूमने के लिए आते हैं, वे भी यहाँ दर्शनार्थ फोन : (02632) 63074 आते हैं। यहाँ भोजन की भी अच्छी व्यवस्था है। मार्गदर्शन : मुम्बई से यह स्थान 140 कि.मी. की दूरी पर है। श्री नंदिग्राम तीर्थ परिचय : आचार्य श्री कल्याणसागर म. की प्रेरणा से यहाँ नये तीर्थस्थान का निर्माण हुआ है। यहाँ पर श्री सीमंधर स्वामी का भव्य जिनमंदिर का निर्माण हो रहा है। दूसरे मंदिर में श्री पढ़ी : भीड़ भंजन पार्श्वनाथ भ. की 450 साल पुरानी प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है। 18 एकड भमि श्री ओसियाजीनगर पर एक तीर्थधाम के निर्माण का काम चल रहा है। सर्वप्रथम यहाँ अधिष्ठायक देव श्री जैनतीर्थ मणिभद्र जी म. के देरी की 14 साल पहले स्थापना हुई। साथ ही ओसियाँ कुल की माता पोस्ट नंदिग्राम, श्री ओसियाँ माता की देवकलिका भी यहाँ बनेगी। स्टेशन भिलाड, ठहरने की व्यवस्था : यहाँ 2 धर्मशालाएँ बनी हैं। जिन में 72 कमरे हैं। साथ ही बड़े हॉल भी जिला बलसाड़ (गुजरात) __ हैं। भोजन तथा अल्पाहार गृह की भी यहाँ सुन्दर व्यवस्था है। फोन : (02638) 82089 1135 2010_03 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जैन तीर्थ परिचायिका जिला पंचमहाल मूलनायक : श्री नेमिनाथ स्वामी भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह स्थान वेजलपुर (गोध्रा) से 15 कि.मी. है। पावागढ़ से यह तीर्थ 20 कि.मी. श्री पारोली तीर्थ है। राजगढ़ पाल्लाणी बस से भी पारोली पहुँचा जा सकता है। यहाँ आने के लिये बस की सुविधा है। अहमदाबाद से यहाँ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। अहमदाबाद यहाँ से पेढ़ी : श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक 177 कि.मी. दूर है। गोद्रा से यह स्थान 41 कि.मी. पड़ता है। यह घोंघबा से बारिया रोड जैन देरासर पर 5 कि.मी. दूर है। बोडेली यहाँ से 55 कि.मी. तथा बड़ोदा 50 कि.मी. दूर है। मुंबई मु. पो. पारोली, दिल्ली रेल मार्ग पर खरशालिया स्टेशन से यह तीर्थ 20 कि.मी. दूर है। खरशालिया वेजलपर वाया वेजलपुर, से 5 कि.मी. है। पारोली पर हर दो घन्टे में बसों का आवागमन होता रहता है। जि. पंचमहाल (गुजरात) परिचय : कहा जाता है कि बादशाह मोहम्मद के समय में यह प्रतिमा धनेश्वर गाँव में थी। फोन : 02676-34539, आक्रमण के भय से इसे नदी में सुरक्षित रखा गया। कई साल बाद एक श्रावक को स्वप्न 34510 में प्रतिमा का संकेत मिला। उस समय वेजलपुर तथा अन्य गाँवों के श्रावकों ने वह अपनेअपने गाँव ले जाने की इच्छा प्रकट की, तब तय हुआ कि प्रतिमा बैलगाड़ी में रखी जाए और जहाँ पर बैलगाड़ी रुकेगी वहीं पर प्रतिमा की स्थापना होगी। इस प्रकार बैलगाड़ी पारोली आकर रुकी। फिर यहाँ पर भव्य जिनमंदिर बनाया गया और प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। यह एक चमत्कारी स्थान है। यहाँ दर्शनार्थ जैने-जैनेतर सभी आते हैं। प्रतिमा अत्यंत जागृत हैं अतः प्रभु को श्री साचादेव नेमिनाथ भगवान भी कहते हैं। पूजा का समय प्रात: 7 से 4 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला एवं भोजनशाला का प्रबन्ध है। भोजनशाला का प्रबन्ध पूर्व सूचना पर मुनीम जी करा देते हैं। धर्मशाला में 20 कमरे हैं। पेढ़ी: श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कोठी मु. पो. पावागढ़, तह. हलोल, जि. पंचमहाल-389 360 (गुजरात) फोन : 02676-45625 मूलनायक: श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ, भ. महावीर स्वामी। मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान बड़ौदा से 50 कि.मी. दूरी पर है। गोद्रा से यह 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। हलोल से इसकी दूरी 7 कि.मी. है। तथा कलोल से 20 कि.मी. । चंपानेर गाँव के निकट ऊँचे पर्वत पर यह तीर्थ है। तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई लगभग 5 कि.मी. है, रास्ता कठिन है। पालीताना यहाँ से 340 कि.मी., महुवा 225 कि.मी. है। स्टेशन से बस का साधन है। तीर्थ पर प्रात: 5 बजे से रात्रि 8.30 बजे तक बसों का आवागमन रहता है। परिचय : यह एक सिद्धक्षेत्र है, यहाँ पर कई मुनिगण घोर तपस्या करके मोक्ष पधारे। इस क्षेत्र से भगवान राम के पुत्र लव, कुश को भी मोक्ष प्राप्त हुए हैं। मुख्य मंदिर के अलावा पहाड़ पर और सात दिगम्बर मंदिर हैं। चांपानेर गाँव में 2 दिगम्बर मंदिर हैं। पूजा का समय 6 से 10 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में ठहरने के लिये धर्मशालाएँ हैं। मन्दिर कम्पाउन्ड में किले के अन्दर 50 कमरों की सर्व सुविधायुक्त धर्मशाला है। पुरानी धर्मशाला में 40 कमरे हैं। भोजनशाला प्रात: 11 से 2 बजे तक तथा सायं 5 से सूर्यास्त तक उपलब्ध है। 136 2010 03 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : सामी से 25 कि.मी. दूर हारीज से 40 कि.मी. दूर स्थित यह तीर्थ शंखेश्वर गाँव के मध्य स्थित है। पंचासर गाँव यहाँ से 8 कि.मी. है। मेहसाना यहाँ से 94 कि.मी. दूर पड़ता है । तारंगा हिल से 138 कि.मी. पाटण से 67 कि.मी. महुडी से 138 कि.मी. दूर है। परिचय : भारत के महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थानों में इसकी गणना की जाती है। इस तीर्थ का इतिहास श्री नेमिनाथ भगवान के समय का है। यह अत्यंत चमत्कारिक स्थल है। विक्रम संवत् 1158 में महाराजा सिद्धराज जयसिंह के महामंत्री सज्जनशाह ने यहाँ की यात्रा की और इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य मंदिर का निर्माण किया। यहाँ का बावन जिनालय मंदिर भव्य है तथा उसके चारों ओर परकोटा है। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और पौष वदी दशमी को बड़ा मेला लगता है । इस मंदिर के कुछ दूरी पर भव्य आगम मंदिर का निर्माण हुआ है। जैन धर्मग्रंथों को आगम कहते हैं । इन ग्रंथों की संख्या 45 है । शंखेश्वर आगम मंदिर के नजदीक ही 108 पार्श्वनाथ प्रभु प्रतिमाओं का भव्य जिनमंदिर निर्माण हुआ है। जिसे " भक्तिविहार महाप्रासाद" कहते । यह मंदिर 84 हजार फुट चौरस भूमि पर फैला हुआ है। 108 शिखरयुक्त यह मंदिर बहुत ही सुन्दर है I यहाँ पर पद्मावती शक्तिपीठ आदि अनेक मन्दिर दर्शनीय हैं। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही धर्मशाला, पेढी और अन्य इमारतें हैं । इसके अलावा यहाँ अन्य छह धर्मशालाएँ हैं। मंदिर के नजदीक ही जैन भोजनालय है, जहाँ पर अल्प मूल्य में अच्छा भोजन मिलता है। श्री १०८ पाश्वनार्थ - भक्तिविहार में ठहरने हेतु अत्याधुनिक सुविधायुक्त कमरों की व्यवस्था है । सुन्दर - सुव्यवस्थित भोजनशाला का भी प्रबन्ध है । मूलनायक : श्री चंद्रप्रभु भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ हारीज गाँव से 8 कि.मी. दूरी पर । सामी से यह 23 कि.मी. दूर स्थित है। शंखेश्वर से इस तीर्थ की दूरी लगभग 20 कि.मी. है। परिचय : यह तीर्थस्थान विक्रम संवत् तेरहवीं शताब्दी से पहले का माना जाता है। श्री वस्तुपाल मंत्री के पुत्र जेत्रसिंह ने अपनी पत्नी जमणदेवी के नाम पर यह नगरी बसायी थी । प्राचीनकाल में इस नगरी का बहुत महत्त्व रहा होगा। प्रभु प्रतिमा की कला अत्यन्त मनोहारी है। मूलनायक : श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : इस स्थान पर आने-जाने के लिये चाणश्मा तीर्थ से बस-टैक्सी आदि सुविधा है। यह तीर्थस्थान हारीज- मेहसाणा मार्ग पर स्थित चाणश्मा तीर्थ से लगभग 16 कि.मी. दूरी पर है। नजदीक का रेल्वे स्टेशन कम्बोई 1 कि.मी. दूरी पर है। परिचय : प्राचीन तीर्थक्षेत्र में इसकी गणना की जाती है। प्रभु प्रतिमा शान्त एवं सुन्दर है। इस मंदिर में शीशे का कलापूर्ण काम किया गया है। यहाँ प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला 2 को मेला लगता है । तब हजारों भक्तगण यहाँ पर आते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है । भाता की भी व्यवस्था है । 2010_03 गुजरात जिला पाटण श्री शंखेश्वर तीर्थ पेढ़ी : 1. सेठ जीवनदास गोडीदासनी पेढी मु. पो. शंखेश्वर, वाया हारीज, जि. पाटण (गुजरात) फोन : 73324 2. श्री 108 पार्श्वनाथ भक्तिविहार जैन ट्रस्ट हायवे शंखेश्वर जि. पाटण (गुजरात) फोन: 02733-73325 श्री जमणपुर तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन देरासर पेढी मु. पो. जमणपुर, ता. टाटीज, जि. पाटण (गुजरात ) श्री कम्बोई तीर्थ पेढ़ी : श्री मनमोहन पार्श्वनाथ तीर्थ पेढी मु. पो. कम्बोई, ता. चाणश्मा, जि. पाटण (गुजरात) 137 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात जैन तीर्थ परिचायिका श्री चाणश्मा तीर्थ __ मूलनायक : श्री भटेवा पार्श्वनाथ भ., धरणेन्द्र-पद्मावती सहित परिकर युक्त, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : मेहसाणा से यह तीर्थ 32 कि.मी. दूर स्थित है। मेहसाणा हारीज रेल्वे मार्ग पर पेढ़ी: यह तीर्थ आता है। मेहसाणा से बस सेवा उपलब्ध है। कंबोज से यह 10 कि.मी., गांभु से श्री चाणश्मा जैन महाजन 11 कि.मी., पाटण एवं चारूप से 18 कि.मी. दूर है। पेढी मोटी वाणीया वाड परिचय : इस तीर्थ की स्थापना कई शताब्दी पूर्व हुई है। ईडर गाँव के निकट भाटुआर गाँव के मु. पो. चाणश्मा, श्रावक सूरचंद को यह प्रतिमा भूगर्भ से मिली। उसके बाद प्रतिदिन सूरचंद के यहाँ ऋद्धीजि. पाटण-384 220 सिद्धी की वृद्धी होती रही। समाचार को सुनकर वहाँ के राजा ने प्रभु प्रतिमा माँगी। राजा (गुजरात) के यहाँ प्रभु प्रतिमा की आशातना होगी यह सोचकर श्रावक ने प्रतिमा भूगर्भ में सुरक्षित फोन : (02934) 82325 रखी। बाद में यहाँ सुन्दर मंदिर बनाया गया, जिसमें इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की गयी। यह प्रतिमा बालू से निर्मित की गयी है। श्रद्धालु भक्तगणों की मनोकामना यहाँ पूरी होती है यहाँ की ऐसी मान्यता है। बावन जिनालय युक्त इस मंदिर की निर्माण शैली बहुत सुन्दर है और धरणेन्द्र देव, पद्मावती माता इनकी प्रतिमा अति मनोहारी है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ रहने के लिये सुविधा सम्पन्न धर्मशाला की व्यवस्था है। भोजनशाला की सुविधा है। समय प्रातः 9-1 तथा सायं 5.30 तक है। भाता सुविधा प्रात: 8 से 5.30 तक है। श्री मोढेरा तीर्थ पेढ़ी: श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भ. जैन देरासर पेढी मु. पो. मोढेरा, जि. पाटण (गुजरात) . मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह स्थान बेचराजी से 14, चाणश्मा से 19 और रांतेज से 6 कि.मी. दूरी पर है। गांभू तीर्थ से यह 7 कि.मी. दूर स्थित है। मेहसाणा से बस सुविधा उपलब्ध है। मेहसाणा यहाँ से 25 कि.मी. दूर है। शंखेश्वर से यह 80 कि.मी. दूर है। मोढेरा से चाणश्मा कम्बोई, सामी होते हुए शंखेश्वर जाया जा सकता है। परिचय : मोढेरा गाँव के मध्य यह तीर्थस्थान है। यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है। विक्रम संवत् आठवीं शताब्दी में आचार्य श्री सिद्धसेनसूरी जी म. यहाँ यात्रा के लिए आये थे। यह स्थान प्राचीन होने के कारण प्राचीन प्रतिमाएँ तथा कला के अवशेष जगह-जगह पर पाये जाते हैं। यहाँ का विशाल सूर्यमंदिर अपनी शिल्पकला के कारण सुविख्यात है। इसे सन् 102627 में सोलंकी राजा भीमदेव द्वारा निर्मित कराया गया। यहाँ की आंतरिक कला के साथ साथ बाह्य शिल्पकला भी अत्यन्त मनोहारी है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने के लिये जैन धर्मशाला नहीं है, किन्तु गाँव में सार्वजनिक धर्मशाला है। श्री शंखलपर तीर्थ मोढेरा से 14 कि.मी. दूर तथा बेचराजी स्टेशन से 2 कि.मी. दूरी पर शंखलपुर गाँव में यह जिनालय स्थित है। यहाँ का मन्दिर तीन शिखरवाला सुन्दर और प्राचीन है। यहाँ तहखाने में विशाल देवालय है जिसमें अनेकों प्राचीन मूर्तियाँ विराजित हैं। यहाँ मूलनायक श्री शान्तिनाथ प्रभु हैं। Jamedication International 2010_03 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका गुजरात मूलनायक : श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भ., श्वतेवर्ण, पद्मासनस्थ। श्री गाँभू तीर्थ मार्गदर्शन : मेहसाणा से मोढेरा सड़क मार्ग पर गणेशपुरा होकर यह स्थान 22 कि.मी. दूरी पर है। मेहसाणा से यहाँ के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। यहां से कानोडा 6 कि.मी., मोढेरा पेढ़ी : 7 कि.मी. दूर है। पाटण से यह 30 कि.मी. दूर है। मेहसाणा रेल्वे स्टेशन से टैक्सी, बस श्री गाँभ श्वे. म. जैनसंघ आदि की सुविधा उपलब्ध है। अहमदाबाद से अहमदाबाद-चाणश्मा वाया गाँभू बस सेवा बाजार जैन देरासर उपलब्ध है। अहमदाबाद से गाँभू 96 कि.मी. दूर है। मु. पो. गाँभ, परिचय : गाँभू गाँव के मध्य में यह तीर्थस्थान है। प्राचीनकाल में यह विराट नगरी रही होगी। यहाँ ता. बेचराजी जि. पाटण पर अनेक जैन ग्रंथों की रचना हुई है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा महाराजा संप्रतिकालीन मानी जाती (गुजरात)-384011 प्राचीन प्रभु प्रतिमाएं मुम्बई, तलाजा, पालीताणा आदि स्थानों पर भेजी फोन : (02734) 82325 गयी हैं। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त शोभनीय है, ऐसा लगता है कि प्रभु साक्षात मुस्कराते हुए विराजमान हैं। मंदिर का शिखर भी कलापूर्ण है। पूजा का समय प्रात: 9 से 5 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर 15 अटैच्ड बाथरूम, कमरों की धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। समय प्रात 9 बजे से सायं 5 बजे तक है। मूलनायक : श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । श्री पाटण तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान शंखेश्वर से 72, मेहसाणा से 25 तथा चारूप से 10 कि.मी. तथा डीसा से 50 कि.मी. दूर स्थित है। मधेरा से 29 कि.मी. एवं सिद्धपुर से 26 कि.मी. तथा पेढी : अहमदाबाद से 125 कि.मी. दूर है। श्री पंचासरा पार्श्वनाथ जैन परिचय : इस नगरी का इतिहास प्राचीन होने के साथ-साथ गौरवशाली है। इस नगरी की स्थापना देरासर ट्रस्ट विक्रम संवत् 802 (ई. सं. 745) में वनराज चावडा ने की। बचपन में उन्हें जैन आचार्य हेमचंद्राचार्य रोड, श्री शीलगुण सूरी जी म. ने आश्रय दिया था। इसलिये अपने जीवनकाल में वे उनके प्रति पिपलानी शेरी, कृतज्ञ रहे। उनकी प्रेरणा से वनराज चावडा ने अपनी जन्मभूमि पंचासरा से श्री पार्श्वनाथ मु. पो. पाटण, जि. पाटण भगवान की प्रभ प्रतिमा यहाँ लाकर भव्य मंदिर बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा की। चावडा वंश फोन : (02766) 20559 में सात राजा हुए, उसके बाद चालुक्य वंश का गुजरात पर राज रहा। चालुक्य वंश में सिद्धराज जयसिंह व सम्राट् कुमारपाल के काल में गुजरात प्रान्त का बहुत विस्तार हुआ। कुमारपाल के काल में उनका साम्राज्य दक्षिण में कोकण, उत्तर में दिल्ली, पश्चिम में सिंध तथा पूर्व में गौड देश तक फैला हुआ था। सम्राट् कुमारपाल ने अपने राज्य में अहिंसा की घोषणा की थी। किसी प्रकार की हिंसा करने को मनाई थी। कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य की प्रेरणा से उन्होंने कई जिनमंदिर निर्माण किये तथा कई विद्धानों को आश्रय देकर अनेक ग्रंथों की रचना करवायी। श्री हेमचन्द्राचार्य, श्री अभयदेव सूरी जी, श्री मलयगिरी, श्री यशचन्द्रविजयजी, श्री सोमप्रभाचार्य, श्रीवाग्भट आदि विद्धानों का यहाँ पर निवास रहा है। पाटण एक सम्पन्न तथा वैभवशाली नगरी थी। विक्रम संवत् 1390 के करीब मुस्लिम राजाओं ने इस पर आक्रमण किया, अनेक मंदिर, मकान नष्ट किये, जला दिये, तब इस नगरी का काफी विनाश हुआ। विक्रम संवत् 1999 में यहाँ के श्रेष्ठी पन्नालाल पूनमचंद ने श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ. का मंदिर फिर से बनवाया। प्रमुख मंदिर के चारों ओर 51 छोटेछोटे मंदिर हैं। इस प्रकार यह एक भव्य बावन जिनालय है। आज भी यहाँ पर कई मंदिर हैं। श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ. के भव्य मंदिर के साथ जोगीवाडा विभाग में श्री श्यामला पार्श्वनाथ भ. का मंदिर है। यह स्थान भी प्रसिद्ध है। यहाँ के हेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिर में अनेक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है। 2010_03 www.jainelibar139 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात | जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला तथा भोजनशाला है। मधेरा-मधेरा की ख्याति कारीगरी की अनुपम उत्कृष्टता वाले सूर्य मन्दिर के लिए है। इस मन्दिर में कुण्ड, सभागार एवं प्रासाद है। यहाँ की नक्काशी आदि पर कोणार्क के सूर्य मन्दिर की छाप है। इस मन्दिर की विशिष्टता यह थी कि सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें सीधी सूर्यदेव की प्रतिमा पर पड़ती थी। आज मूल प्रतिमा यहाँ नहीं है। परन्तु अन्दर प्रासाद में , 12 मूर्तियाँ हैं। मधेरा से 17 कि.मी. दूर बेचराजी मन्दिर भी दर्शन योग्य है। यह मन्दिर अनेकों किंवदतियों से घिरा है। यहाँ की आराध्य देवी दुर्गा है। श्री चारूप तीर्थ पेढ़ी: श्री चारूप जैन श्वेताम्बर महातीर्थ पेढी मु. पो. चारूप, जिला पाटण-384 285 (गुजरात) फोन : 02766-84609 मूलनायक : श्री श्यामला पार्श्वनाथ भ., श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : पाटण से यह तीर्थस्थान 14 कि.मी. दूरी पर है। चारूप रेल्वे स्टेशन से बस और रिक्शा का साधन उपलब्ध है। तीर्थ पर प्रात: 9 बजे, दोपहर 3 एवं 3.30 बजे बस उपलब्ध रहती है। यहाँ से मेत्राणा 24 कि.मी. दूर है। परिचय : प्राचीनकाल में श्री आषाढ़ी श्रावक ने यहाँ पर तीन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवायी, उनमें से यह एक है। यह प्रतिमा प्राचीन शिल्पकला का अद्वितीय नमूना है। विक्रम की अठारहवीं शताब्दी में यह मंदिर जीर्ण हो गया, तब विक्रम संवत् 1938 में पाटण के श्रावकों ने इस तीर्थ की व्यवस्था संभाली, उसका जीर्णोद्धार करके विक्रम संवत् 1984 में पुनः प्रतिष्ठा करवायी। यहाँ पूजा का समय प्रातः 10 बजे है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। भोजनशाला का समय प्रातः 12 बजे एवं सायं 5.30 बजे का है।। श्री मेत्राणा तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान सिद्धपुर से 12 कि.मी. दूरी पर है। चारूप से 20 कि.मी. तथा पाटण पेढ़ी : से 35 कि.मी. दूर है। निकटतम रेल्वे स्टेशन सिद्धपुर है। पालनपुर 47 कि.मी. दूर है। श्री ऋखबदेव भगवान जैन अहमदाबाद से 148 कि.मी. है। सभी स्थानों से तीर्थ के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। श्वैताम्बर देरासर कारखाना परिचय : प्राचीन शिलालेख के अनुसार यह तीर्थ चौदहवीं शताब्दी पूर्व का प्रतीत होता है। कुछ मु. पो. मेत्राणा, समय तक यह तीर्थस्थान अज्ञात रहा, बाद में एक धर्मनिष्ठ श्रावक ने स्वप्न में कुछ प्रतिमाएँ ता. सिद्धपुर, देखीं, उसने उन्हें भूगर्भ से निकाला, विक्रम संवत् 1947 में विशाल मंदिर बनवाकर प्रतिमा जि. पाटन-384 290 की पुनः प्रतिष्ठा करवायी। यहाँ अखंड दीपक 155 वर्ष से प्रज्ज्वलित है। (गुजरात) ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर पूर्ण सुविधायुक्त 54 कमरों की धर्मशाला तथा भोजनालय है। फोन : 02867-87458 एक बजे भोजनालय बंद हो जाता है। श्री वालम तीर्थ पेढ़ी: जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक देरासर मु. पो. वालम, ता. वीसनगर, सी जि. पाटण (गुजरात) फोन : (02765) 85043 मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, श्यामवर्ण। मार्गदर्शन : वीसनगर रेल्वे स्टेशन से यह स्थान 10 कि.मी. दूरी पर है। ऊँझा से यह स्थान __ 11 कि.मी. है। ऊँझा से बस, टैक्सी आदि की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पाटण, मेहसाणा व महुडी से यहां के लिए बस सेवा उपलब्ध है। परिचय : वालम गाँव के मध्य में नागरवाडे मोहल्ले में यह मंदिर है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा प्राचीन एवं सुन्दर है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट धर्मशाला है। तथा भोजनशाला की सुविधा है। 140 2010 03 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन: ईडर से 1 कि.मी. दूरी पर ईडरगढ़ में यह तीर्थस्थान है। यह तीर्थ हिम्मतनगर से 28 कि.मी. शामलाजी से 43 कि.मी. तथा विजापुर तीर्थ से 51 कि.मी. दूर पड़ता है। हिम्मतनगर होकर प्रमुख मार्ग गया है। तलहटी से पहाड़ की चढ़ाई लगभग डेढ़ कि.मी. है। पहाड़ पर जाने के लिये 600 सीढ़ियाँ हैं । अहमदाबाद-खेडब्रह्मा मार्ग पर ईडर रेल्वे स्टेशन है। स्टेशन पर बस, टैक्सी, ऑटोरिक्शा आदि साधन उपलब्ध हैं। अहमदाबाद से यह स्थल 107 कि.मी. दूर है। अहमदाबाद से यहाँ बस सेवा उपलब्ध है । परिचय : भगवान महावीर के 285 वर्षों के बाद संप्रति महाराज ने यहाँ पर श्री शान्तिनाथ प्रभु मंदिर की प्रतिष्ठा करवायी ऐसे उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं। इसका जीर्णोद्धार कविकुल किरिट पू. पाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वर जी म. सा. की प्रेरणा से हुआ था । यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक तथा चैत्र पूर्णिमा को मेले लगते हैं। ईडर गाँव में पाँच श्वेताम्बर मंदिर और हैं। साथ ही पहाड़ पर एक दिगम्बर जैन मंदिर तथा गाँव में 3 दिगम्बर जैन मंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : ईडर गाँव में धर्मशाला तथा भोजनशाला है, पहाड़ पर भी धर्मशाला है । मूलनायक : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भ., श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : ईडर तीर्थ से यह स्थान 12 कि.मी. दूरी पर है । हिम्मतनगर से इसकी दूरी 40 कि.मी., खेडब्रह्मा से 15 कि.मी. तथा अहमदाबाद से 119 कि.मी. है। अहमदाबाद से भी बस उपलब्ध है । परिचय : बडाली गाँव में यह तीर्थस्थान है। लगभग 12वीं शताब्दी पूर्व का यह प्राचीन तीर्थ है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर श्री शान्तिनाथ भगवान और श्री आदेश्वर भगवान के मंदिर हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला की व्यवस्था है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भ. । मार्गदर्शन : हिम्मतनगर से इसकी दूरी 55 कि.मी. है। यहाँ से अंबाजी 49 कि.मी. दूर स्थित | अंबाजी होकर आबू जाया जा सकता है। अहमदाबाद से यह स्थल 134 कि.मी. दूर । अहमदाबाद एवं आबू से यहाँ के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ रेल्वे स्टेशन भी है। यहाँ पर सभी साधन (बस, टैक्सी, ऑटो) उपलब्ध हैं। ईडर से यह 22 कि.मी. दूर है। परिचय : यह अति प्राचीन तीर्थस्थान है। समय के प्रवाह में यहाँ अनेक बार उत्थान पतन हुआ । वर्तमान मंदिर लगभग पाँच सौ वर्ष पुराना माना जाता है। इसके अलावा यहाँ श्री आदिनाथ प्रभु का मंदिर है। इसी स्थान पर हाटकेश्वर महादेव का मंदिर होने के कारण हिन्दू लोग भी इस तीर्थ को बहुत मानते हैं। गाँव से 1 कि.मी. दूरी पर श्री अंबाजी का प्राचीन मंदिर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला है । 2010_03 गुजरात जिला साबरकांठा श्री ईडर तीर्थ पेढ़ी : सेठ आनंदजी मंगलजीनी पेढी कोठारीवाडा, मु. पो. ईडर जि. साबरकांठा (गुजरात) फोन : 50442 श्री बडाली तीर्थ पेढ़ी : श्री वडाली जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ मु. पो. वडाली, जि. साबरकांठा (गुजरात) फोन : (02778) 2181, 2525 श्री खेडब्रह्मा तीर्थ पेढ़ी : श्री दशा पोरवाल जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक पंच महाजन, मु. पो. खेडब्रह्मा, जि. साबरकांठा (गुजरात) 141 Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री मोटा पोसीना तीर्थ पेढ़ी : श्री मोटा पोसीनाजी जैन तीर्थ पेढी मु. पो. मोटा पोसीना, ता. खेडब्रह्मा, जि. साबरकांठा - 383 422 (गुजरात) फोन : (02775) 83471 जिला सूरत श्री आगम मंदिर 142 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : नजदीक का रेल्वे स्टेशन खेडब्रह्मा 45 कि.मी. दूरी पर है। स्टेशन से बसों एवं टैक्सियों की सुविधा उपलब्ध है। तीर्थ पर सुबह 9 से शाम 5 बजे तक बसों का आवागमन रहता है । खेडब्रह्मा से अंबाजी मार्ग में अंबाजी (कुंभरियाजी) से लगभग 29 कि.मी. पूर्व पोसीना के लिए मार्ग गया है। यह ईडर से 70 कि.मी. दूर है। यह तीर्थ राजस्थान - गुजरात सीमा के निकट है। परिचय : यहाँ की प्रतिमा एक पेड़ के नीचे भूगर्भ से विक्रम की तेरहवीं सदी में प्राप्त हुई थी। यहाँ श्री महावीर भगवान के मंदिर में श्री क्षेत्रपाल जी अति ही चमत्कारी है, जैन जैनेतर लोगों में इनकी अति मान्यता है । यहाँ के मंदिरों की प्रतिमाएँ प्राचीन एवं कलात्मक हैं । ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला है। धर्मशाला में अटैच्ड बाथरूम के 15 कमरे उपलब्ध है। मूलनायक : श्री महावीर स्वामी भगवान । मार्गदर्शन : यह तीर्थ मुम्बई-अहमदाबाद मार्ग पर यह स्थित है । अहमदाबाद से 255 कि.मी. दूर, मुम्बई से 263 कि.मी. धुले से 220, नासिक से 235 - बडोदरा से 142 कि.मी. दूरी पर स्थित है। राज्य के सभी प्रमुख स्थानों से यह बस, रेल मार्ग के सम्पर्क में है । परिचय : सूरत भारत का प्रसिद्ध शहर है। यहाँ पर रत्नजड़ित अलंकार तैयार करना, हीरों का काम, जरी की साड़ियाँ तैयार करना प्रमुख उद्योग हैं। यहाँ कपड़ों का बाजार सुप्रसिद्ध है । यह कोई प्राचीन तीर्थस्थान नहीं है किन्तु आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागर सूरी जी म. प्रेरणा से यहाँ पर भव्य आगम मंदिर का निर्माण हुआ है। इसमें जैनधर्म ग्रंथ आगमों को ताम्रपट पर अंकित कर मंदिर के चारों ओर दीवारों पर लगाये गये हैं। भारत में 6-7 जगह पर आगम मंदिर बने हुए हैं किन्तु सूरत का यह मंदिर सबसे पुराना है। इस मंदिर में मूलनायक श्री महावीर भगवान तथा दूसरी मंजिल पर श्री आदेश्वर भगवान की प्रतिमा है । भोयरे में श्री पार्श्वनाथ भगवान तथा अन्य आकर्षक दर्शनीय प्रतिमाएँ हैं । सूरत शहर में लगभग 74 जिनमंदिर हैं। जिनमें कई मंदिर गोपीपुरा भाग में हैं। यहाँ के मंदिर दर्शनीय और कलात्मक I देसाई पोल क्षेत्र में स्थित श्री सुविधिनाथ भगवान का 108 जैन तीर्थ जिनालय अत्यंत दर्शनीय है । ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर गोपीपुरा भाग में जव्हेरी बाजार, ओसवाल मोहल्ला, पुरानी अदालत इन विभागों में 4 धर्मशालाएँ हैं । गोपीपुरा में ही सूरत ब्लड बैंक के पास जैन भोजनशाला है । वहाँ यात्रियों की निवास की भी व्यवस्था है। इसके अलावा सूरत स्टेशन के सामने रुक्मिणीबेन दलिचंद जैन श्वे. धर्मशाला है । प्रमुख व्यापारिक नगर होने के कारण सूरत में होटल आदि की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका। गुजरात सिद्ध पुरुष दादा भगवान की प्रेरणा से यहाँ पर तीन मंदिर बने हैं। दादा भगवान सभी धर्मों में महाविदेह तीर्थ समभाव रखने वाले थे। इसलिए बीच में श्री सीमंधर स्वामी का मंदिर है। एक और धाम नवागाम शिवलिंग का मंदिर है तथा दूसरी ओर श्रीकृष्ण का मंदिर है। ऐसा कहते हैं कि सूरत स्टेशन पेढ़ी : पर दादा भगवान को ब्रह्मांड दर्शन हुआ। और तब से वे लोगों में सदाचार प्रचार का काम जय सच्चिदानंद संघ, करने लगे। यहाँ के जैनमंदिर में श्री सीमंधर स्वामी की 145 इंच ऊँची भव्य प्रतिमा है, जो नवागाम, डाकघर-कामरेज, मेहसाणा के मंदिर की प्रतिकृती है। मंदिर के पास ही बड़ी धर्मशाला बनी है तथा भोजन चार रास्ता, मुम्बई-अहमदाबाद की भी सुविधा है। धर्मशाला में 72 कमरे हैं। यात्रियों को 30 रु. नाममात्र भेट रकम में यहाँ हाइवे, जिला सूरत (गुजरात) पर ब्लॉक निवास के लिए मिलता है। भोजन यहां निःशुल्क उपलब्ध रहता है, किन्तु फोन .0003150110 यात्रीगण अपनी इच्छा से भेंट रकम देते हैं। 52729 मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। जिला सुरेन्द्रनगर मार्गदर्शन : वीरमगाँव-दसाड़ा सड़क मार्ग से यहाँ जा सकते हैं। पाटड़ी यहाँ से 10 कि.मी. श्री उपरियालाजी तीर्थ दूर स्थित है। वीरमगाँव से यह लगभग 32 कि.मी. दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद तथा वीरमगाँव से यहाँ जाने के लिये बसों की सुविधा हैं। पेढ़ी : परिचय : यह तीर्थस्थान विक्रम संवत् 15वीं शताब्दी पूर्व का माना जाता है। यहाँ की प्रभु श्री आनंदजी कल्याणजी पेढी प्रतिमाएँ एक किसान को अपने खेत में मिली, उसने वे जैन श्रावकों को दी। जैन श्रावकों म. पो. उपरियालाजी, ने वे प्रतिमाएँ जिनमंदिर में प्रतिष्ठित की। यहाँ की प्रभु प्रतिमा बहुत ही चमत्कारी है। जि. सुरेन्द्रनगर (गुजरात) श्री शियाणी तीर्थ मूलनायक : श्री शांतिनाथ भगवान। मार्गदर्शन : लिम्बड़ी से 13 कि.मी. दूर, लिम्बड़ी-लख्तर मार्ग पर शियाणी गांव के मध्य यह तीर्थ स्थित है। सुरेन्द्रनगर से लिम्बड़ी 30 कि.मी. दूर पड़ता है। शंखेश्वर से लख्तर होकर पालीताना जाते समय मार्ग में यह तीर्थ आता है। वीरमगांम से लख्तर 43 कि.मी. तथा लख्तर से शियाणी 20 कि.मी. पड़ता है। परिचय : यह भव्य तीर्थ संप्रति महाराज के काल का बना हुआ माना जाता है। मंदिर की शिल्पकला अत्यन्त दर्शनीय है। देवी सरस्वती की मूर्ति की कला-सौन्दर्य मन को मुग्ध कर देती है। मंदिर के तहखाने वाला भाग तहखाना वाला प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ निवास एवं भोजन की व्यवस्था उपलब्ध है। बड़ौदा यह कोई प्राचीन तीर्थक्षेत्र नहीं है। किन्तु यहाँ जैन समाज की आबादी काफी होने से इस जिला वडोदरा शहर में लगभग 21 भव्य जिनमंदिर हैं। यह मंदिर घाड़ियाली पोल, जानी शेरी, पटोलिया पोल, नवी पोल, मामानी पोल आदि विभिन्न भागों में बने हैं। बड़ौदा यह एक भारत का सुन्दर शहर है। स्टेशन से आधा कि.मी. दूरी पर सयाजी उद्यान नामक भव्य बगीचा है। जहाँ कई बड़े-बड़े पेड़ तथा सुन्दर पौधे हैं। इसी के अन्दर प्राणी संग्रहालय हैं जिसमें कई प्राणी हैं। यहाँ पर एक म्युजियम भी हैं। जो देखने योग्य है। यहाँ के प्लेनेटोरियम में आकाश दर्शन के हर शाम दो शो किये जाते हैं । यहाँ और भी सुन्दर बगीचे बने हुए हैं। धर्मशालाएँ 1. जैन धर्मशाला-घड़ियाली पोल, मांडवी 2. श्री उत्तमचंद जव्हेरी धर्मशाला-नरसिंहजी पोल 3. खतरगच्छीय मूलचंदजी जैन धर्मशाला-नया बाजार, चापानेर गेट के पास 2010_03 www.jainelibar143 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात श्री अनस्तु तीर्थ पेढ़ी : श्री अनस्तु तीर्थ पेढी अनस्तु, ता. करजन, जि. बड़ौदा (गुजरात) फोन : (02666) 32225 | जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ । मार्गदर्शन : यह स्थान भरूच और बड़ौदा के बीच में है। बड़ौदा से 40 कि.मी. की दूरी पर तथा भरूच से 44 कि.मी. की दूरी पर यह नया तीर्थस्थान है। परिचय : श्री शंखेश्वर प्रभु की प्रतिमा 1200 वर्ष पुरानी है। इस तीर्थ की ओर से मियागाम में एक अत्याधनिक पांजरापोल (गोशाला) चलाई जाती है। जिसमें 1400 जानवरों की देखभाल होती है। इस गोशाला का वातावरण बहुत ही धार्मिक है। यहाँ रोज सुबह भक्तामर की कैसेट लगाई जाती है। पशुओं को रखने की व्यवस्था है, उनके नहाने के लिए बड़ा हौज को बनाने के लिए पूना निवासी श्रीमती गोमतीबेन चुन्नीलाल जी संघवी और नाशिक निवासी श्रीमती सुंदरबाई गोवर्धनदास जी शामसुखा इन्होंने दान दिया। जानवरों की देखभाल के लिए डॉक्टर आदि की व्यवस्था है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला और भोजनशाला की अच्छी व्यवस्था है। श्री दर्भावती तीर्थ (डभोई तीर्थ) पेढ़ी : देवचंद धरमचंद श्वेताम्बर जैन पेढी . जैन वागा, मु. पो. डबोई, जि. बड़ौदा-391 110 (गुजरात) फोन : 02663-52313, 52150, 52218 मूलनायक : श्री लोढण पार्श्वनाथ भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : बड़ौदा से 36 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। यहाँ डभोई स्टेशन पर टैक्सी एवं रिक्शा उपलब्ध है। जहाँ से हर समय बस और टैक्सी उपलब्ध रहती है। डभोई शहर में भी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अनस्तु तीर्थ यहाँ से 60 कि.मी. दूर है। परिचय : यहाँ की प्रभु प्रतिमा प्राचीन है। इसका अंतिम जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1990 में हुआ। बालू से बनी यह प्रतिमा दीर्घकाल तक जलघर में रहने पर भी बालू का एक कण भी प्रतिमा से अलग नहीं हुआ। जलगर्भ से प्रकट हुई यह प्रतिमा लौह प्रतिमा जैसी दिखाई देती है। अतः लोग इन्हें लोढन पार्श्वनाथ के नाम से पुकारने लगे। प्रसिद्ध जैन न्यायग्रन्थ के रचयिता श्री वादिदेव सूरिजी के गुरु श्री भुमिचन्द्र सूरीश्वर जी की यह जन्म भूमि है। यहाँ कुल 6 मंदिर है। 1. श्री लोढन पार्श्वनाथ जिनालय; 2. श्री नवा शांतिनाथ जिनालय; 3. जूना शांतिनाथ जिनालय; 4. श्री आदिश्वर जिनालय; 5. श्री श्यामला पार्श्वनाथ जिनालय; 6. श्री मुनि सुव्रत जिनालय। शहर के बाहर जिनालय तालाब के पास यशोवाटिका में है। जहाँ न्याय विशारद श्री यशोविजय जी म. सा. की चरणपादुका स्थित है। ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के ठहरने हेतु सुविधायुक्त धर्मशाला है। भोजनशाला प्रातः 8.30 से 2 बजे तथा सायं 4.30 से 6.30 बजे तक चालू रहती है। भाता प्रातः 8 से 11 बजे तक मिलता है। श्री बोडेली तीर्थ पेढ़ी : श्री परमार क्षत्रिय जैनधर्म प्रचारक सभा मु. पो. बोड़ेली, जि. बडोदरा (गुजरात) मूलनायक : श्री महावीर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : हलोल से 43 कि.मी. दूर, दभोई से 40 कि.मी. तथा वडोदरा से 65 कि.मी. दूरी पर गाँव के मध्य में यह तीर्थस्थान है। यह स्थान खंडवा-बडौदा रेलमार्ग पर है। परिचय : इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 2011 में आचार्य श्री विजयसमुद्रसूरीश्वर जी म. मितिमा निता ia के हाथों हुई। यहाँ पर हजारों आदिवासी परमार क्षत्रियों ने जैनधर्म को अंगीकार किया। उसमें से कुछ लोगों ने जैन साधु की दीक्षा भी ली है। यहाँ का नवनिर्मित जिनमंदिर कलात्मक एवं सुन्दर है। प्रभु प्रतिमा भव्य, शान्त एवं चमत्कारी है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला, भोजनशाला है। 144 bucation International 2010_03 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वानिया 1/ सिवनी को महाराष्ट्र सड़क मानचित्र * तीर्थ क्षेत्र • दर्शनीय स्थल मकदेश सेंधवा 2010_03 मण्डता को Shen 153 tra भंडाग मनकापूरब गजनांदगांव मांगीतुंगी आकोला.. NG T 20132 हिगेनपाट सिबोड़ n/ समावेगॉव तोरा / / रावतमाळ नामिन 166 शिरपू वाशिम महक पोटी 32 . हिंगोली वाभिवरी अहमदनगर "हैदराबाद को ओग्मानाबाद मापदंश 5 मनाग देवगवार आहाराष्ट्र 1101 NX3 कोजापुर भाजनित 'बीजापुर rondom 1108 दूरियाँ किलोमीटर में (Map not to scale) Date org Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र 145 145 146 146 146 147 1. श्री रामटेक तीर्थ 2. श्री भद्रावती तीर्थ 3. श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ (शिरपुर) 4. श्री मांगीतुंगी तीर्थ 5. श्री गजपन्था तीर्थ 6. जलगाँव 7. मुम्बई (i) श्री गोडीजी पार्श्वनाथ भगवान बालकेश्वर का मन्दिर (ii) श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय (iii) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय (iv) श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान भव्य शिखरबद्ध जिनालय (v) श्री आदीश्वर भगवान गृह मन्दिर (vi) श्री अगाशी तीर्थ (vii) श्री मुनि सुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय (viii) श्री कोंकण शत्रुजय तीर्थ 8. श्री दहीगाँव तीर्थ 9. श्री कुम्भोजगिरि तीर्थ तथा श्री बाहुबली तीर्थ 10. श्री नेमगिरी तीर्थ 148 148 149 150 150 150 150 151 151 152 153 2010_03 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा । मार्गदर्शन : यह तीर्थ रामटेक रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर स्थित है, जहाँ से ताँगों, रिक्शों इत्यादि की सुविधा उपलब्ध हैं। नागपुर से 42 कि.मी. नागपुर रामटेक शाखा का यह अंतिम स्टेशन है। प्रात: 5.45, 11.20 एवं सायं 6.30 बजे नागपुर से यहाँ के लिए ट्रेनें जाती हैं। वापसी प्रातः 7.40, दोपहर 2.00, रात्रि 8.20 बजे है। नागपुर से बस सेवा भी उपलब्ध है। परिचय : रामटेक क्षेत्र का इतिहास बीसवें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के काल का है। आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में रामचन्द्रजी द्वारा वंशगिरि में हजारों जिन मन्दिरों के निर्माण का उल्लेख करते हुए यह भी सूचित किया है कि इस वंशगिरि का ही नाम रामगिरी हो गया। भगवान शांतिनाथ को मनवांछित फल को पूर्ण करने वाले बताया है । इस मन्दिर के अतिरिक्त आठ और मन्दिर हैं एवं एक भव्य मानस्तम्भ भी है । यहाँ पर दिव्य मन्दिरों के शिखरों की वास्तु कला अत्यधिक प्राचीन, अनुपम एवं निराले ढंग की है। कहा जाता है कि रामटेक की नैसर्गिक सौन्दर्यता से अभिभूत होकर महाकवि कालीदास ने मेघदूतम की रचना की थी । ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट एक विशाल धर्मशाला है जिसमें भोजनालय के अतिरिक्त अन्य सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। 6 कि.मी. दूरी पर हालिडे रिजॉर्ट भी उपलब्ध है। मूलनायक : स्वप्नदेव श्री केशरिया पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ भांदक रेल्वे स्टेशन से 1.6 कि.मी. दूर भद्रावती गाँव में विशाल बगीचे के मध्य स्थित है, जहाँ से रिक्शे की सुविधा उपलब्ध है। तीर्थ स्थल तक पक्की सड़क है। चंद्रपुर यहाँ से 32 कि.मी. दूर है। चंद्रपुर से बस सुविधा उपलब्ध है। चंद्रपुर- वर्धा जाने वाली बसों का यहाँ ठहराव होता है। चंद्रपुर रेल्वे स्टेशन पर कई एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव है। चंद्रपुर नागपुर से 195 कि.मी. दूर है। भांदक जी चंद्रपुर से बस द्वारा जाना अधिक सुविधाजनक है । चन्द्रपुर से 8 कि.मी. दूर बल्लारपुर स्टेशन पर नागपुर से दक्षिण भारत की ओर आने-जाने वाली प्रत्येक गाड़ी का ठहराव है। परिचय : पुरातन अवशेषों से पता चलता है कि यह तीर्थ अति प्राचीन है जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने रक्षित स्मारक घोषित किया था । यहाँ अनेक चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं। प्रति वर्ष पौष कृष्ण को यहाँ मेला लगता है। इसके अतिरिक्त श्री आदीश्वर भगवान का मन्दिर तथा गुरु मन्दिर भी इसी बगीचे में स्थित हैं । यहाँ भूगर्भ से प्राप्त अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ व खण्डहर के अनेक अवशेष भी पाये जाते हैं। चौमुखी प्रतिमा में भगवान श्री पार्श्वप्रभु, श्री चन्द्रप्रभु, श्री आदिनाथ प्रभु के प्रतिबिम्ब है, जो इस प्रतिमा की विशेषता है। ठहरने की व्यवस्था : सभी सुविधायुक्त धर्मशाला है। भोजनालय आदि की पूर्ण सुविधा उपलब्ध हैं। गाँव में बाजार भी है । दर्शनीय स्थल : चंद्रपुर से 45 कि.मी. दूर ताड़ोबा राष्ट्रीय उद्यान में चीता, बाघ, तेंदुआ, भेड़िया, हिरण, बारहसिंगा आदि देखे जा सकते हैं। उद्यान में मिनी बस द्वारा इन्हें दिखाने की सुन्दर व्यवस्था है। 2010_03 महाराष्ट्र महाराष्ट्र तीर्थ श्री रामटेक तीर्थ पेढ़ी : श्री 1008 शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र डाकघर रामटेक, जिला नागपुर (महाराष्ट्र) श्री भद्रावती तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर मण्डल डाकघर भद्रावती, जिला चन्द्रपुर (महाराष्ट्र ) www.jainelibrary.145 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ (शिरपुर) पेढ़ी: श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ महाराज संस्थान डाकघर शिरपुर, जिला वासिम जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ वासिम स्टेशन से 19 कि.मी. दूर शिरपुर गाँव के छोर पर स्थित है, जहाँ से टैक्सी व बसों की सुविधाएँ हैं। मन्दिर तक पक्की सड़क है। कार व बस मन्दिर तक जा सकती है। अकोला से यह तीर्थ 72 कि.मी. दूर है। अमरावती से यह 125 कि.मी. दूर । है। अकोला मुम्बई-नागपुर रेल्वे मार्ग पर स्थित है। अकोला से टैक्सी एवं बस का साधन उपलब्ध है। परिचय : राजा रावण के बहनोई खरदूषण के लिए पूजा के निमित्त यहाँ पर इस प्रतिमा का बालू व गोबर से निर्माण किया गया और जाते समय जलकुण्ड में विसर्जित किया था। जो कि अंत में संघ मन्दिर में प्रतिष्ठित की गयी। इसके निकट ही श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथ भगवान का सुन्दर कलात्मक शिखरबन्ध श्वेताम्बर मन्दिर है। श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर भोयरे के अन्दर स्थित प्राचीनतम तीर्थ है। प्राचीन प्रतिमा होने के कारण इसकी कलात्मकता दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही श्वेताम्बर धर्मशलाएँ हैं, जहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पास में ही दिगम्बर धर्मशाला भी है। श्री मांगीतुंगी तीर्थ मूलनायक : श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान। मार्गदर्शन : यह तीर्थ नासिक से 125 कि.मी. तथा धुलिया से 100 कि.मी. दूर है। नासिक व पेढ़ी : धुले से बस सुविधा उपलब्ध है। मनमाड रेल्वे स्टेशन से बस द्वारा सटाणा होते हुए श्री मांगीतुंगी जी दिगम्बर तहाराबाद तक 81 कि.मी. दूरी है। तीर्थ पर 10.00 बजे, 2.00 बजे, 6.00 बजे, रात्रि 8.00 जैन सिद्ध क्षेत्र बजे बसें आती हैं। तीर्थ पर भी सवारी साधन उपलब्ध हो जाते हैं। तालुका सटाणा, परिचय : गालना हिल्स के नाम से जाना जाने वाला यह पहाड़ी क्षेत्र तहाराबाद के निकट स्थित जिला नासिक-423 302 है। मांगी व तुंगी नामक, पर्वत की, दो चूलिकाएं हैं। मांगी एवं तुंगी पर गुफाएं हैं। मांगी (महाराष्ट्र) पर सीता गुफा, महावीर गुफा, श्री आदिनाथ गुफा, श्री शांतिनाथ गुफा, श्री पार्श्वनाथ गुफा एवं रत्नत्रय गुफा हैं। पर्वत के ऊपर से ही तुंगी गिरी के लिए मार्ग गया है। तुंगी मार्ग पर ही नवनिर्मित छत्रियां दर्शनीय हैं। तुंगीगिरी पर श्री राम गुफा तथा श्री चंद्र प्रभु गुफा है। लौटते वक्त दोनों पर्वतों के मध्य उतरने का मार्ग है। जो सरल सीढ़ियों का निर्माण कर सुगम बना दिया गया है। यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन है। तलहटी में भी दो जिनालय हैं। ठहरने की व्यवस्था : क्षेत्र पर तलहटी में अटैच 50 कमरों की धर्मशाला है। यहाँ भोजन की भी व्यवस्था है। प्रातः 11.00 से 1.00 बजे तक। पहाड़ से उतरते वक्त भाता मिलता है। श्री गजपन्था तीर्थ मूलनायक : मार्गदर्शक : यह तीर्थ नासिक रोड स्टेशन से 19 कि.मी. दूर नासिक शहर के पास मसरुल की पेढ़ी : एक पहाड़ी पर स्थित है। तलहटी से पहाड़ी की चढ़ाई 1 कि.मी. है। चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ श्री दिगम्बर जैन गजपन्था बनी हुई हैं तथा तलहटी तक पक्की सड़क है। सैन्ट्रल रेल्वे मार्ग पर मुम्बई से 190 कि.मी., तीर्थ क्षेत्र कमेटी औरंगाबाद से मनमाड होकर 218 कि.मी. दूर नासिक रोड स्टेशन स्थित है। नासिक रोड डाकघर मसरूल, से नासिक सिटी 8 कि.मी. दूर है। नासिक रोड पर सभी वाहन उपलब्ध हैं। नासिक रोड जिला नासिक (महाराष्ट्र) स्टेशन से मसरुल के लिए बस, टैक्सी, ऑटो उपलब्ध रहते हैं। मुम्बई के निकट प्रमुख उद्योग नगरी एवं दर्शनीय स्थल होने के कारण देश के सभी प्रान्तों से आने-जाने वाली गाड़ियों का यहाँ ठहराव है। 146 JanEducation International 2010_03 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : यहाँ से सात बलभद्र मुनि तथा अनेकों यादव वंशी मुनि मोक्ष सिधारे, जिनमें गजसुकुमार मुनि भी थे। इसीलिए इस स्थान का नाम गजपन्था पड़ा। श्री चामराज उड़यार ने जब से इसका उद्धार करवाया तब से लोग इसे चामरलेणी कहने लगे। छोटे गाँव के जंगल में एक टेकरी पर स्थित इस मन्दिर का दृश्य अत्यधिक मनोरम प्रतीत होता शान्त, सौम्य और गंभीर मुद्रा में है। मूर्ति भी I ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में धर्मशाला है, जिसमें बिजली, पानी व बर्तन आदि सभी सुविधाएँ उपलब्ध है । नासिक शहर में अनेकों धर्मशालाएँ एवं होटल उपलब्ध हैं। दर्शनीय स्थल : नासिक शहर पवित्र हिन्दू तीर्थ भी है । गोदावरी तट पर बसा यह शहर इतिहास की अनेकों धरोहरों को अपने में संजोये हुए है। यहाँ कपालेश्वर महादेव मन्दिर, कालाराम मन्दिर, कापर्ण कुटीर, सीताहरण गुफा आदि दर्शनीय तीर्थ स्थल हैं। रेल्वे स्टेशन के निकट नासिक रोड पर ही मुक्तिधाम मन्दिर भी दर्शनीय है । नासिक शहर में पंचवटी क्षेत्र में अनेकों धर्मशालाएँ हैं। नासिक रोड से 37 कि.मी. दूर पंचपूड़ा में त्रयम्बकेश्वर मन्दिर दर्शनीय है । नासिक - मुम्बई मार्ग पर इगतपुरी होते हुए 750 मीटर की ऊंचाई पर हिल रिजार्ट भंडारदारा का आनंद भी लिया जा सकता है। नासिक सिटी से श्री सांई बाबा का स्थल शिरडी 90 कि.मी. दूर है। यहाँ से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। शिरडी में भी अनेक धर्मशालाएँ हैं । महाराष्ट्र राज्य में जलगाँव शहर सुवर्णनगरी के नाम से सुविख्यात है । हावड़ा-मुम्बई, दिल्ली - जलगाँव मुम्बई, दिल्ली - बैंगलोर रेलमार्ग पर महत्त्वपूर्ण स्टेशन है जलगाँव। इस सुवर्णनगरी में स्टेशन से 3 कि.मी. दूरी पर जलगाँव - धूलियन राष्ट्रीय राजमार्ग पर दादा गुरुदेव की दादावाडी का भव्य निर्माण किया गया है। इस दादावाडी निर्माण के प्रेरणास्त्रोत आत्मज्ञानी जैन कोकिला स्व. प्रवर्तिनी श्री विचक्षण श्री जी म. सा. की विदुषी शिष्या परमपूज्या प्रखर ज्योति श्री मणिप्रभाश्री जी म. सा. हैं। आज इस दादावाडी के प्रांगण में उत्तम कलामुद्रा से आकर्षक मंदिर का निर्माण हुआ है । जिसमें श्री जिनकुशल सूरि दादा गुरुदेव की भव्य मूर्ति की प्रतिष्ठा मध्य भाग में की गयी है। साथ-साथ श्री कालेभैरवजी, श्री गोरे भैरवजी, घंटाकर्ण श्री महावीर स्वामी, श्री नाकोडा भैरवजी की भी प्रतिष्ठा समाज चिंतामणी श्री सुरेशदादाजी जैन एवं उनके सभी परिवारजनों के हाथों से सुसम्पन्न हुई । इस दादावाडी के भव्य प्रांगण में दादा गुरुदेव के मंदिर के साथ-साथ एक भव्य “विचणक्ष विश्राम भवन" बनाया है जिसमें रहने की सुविधा उपलब्ध है। दादावाडी के निकट ही अत्यंत कलात्मक ढंग से श्री भाग्यवर्धन पार्श्वनाथ तीर्थ का निर्माण कार्य तेजी से प्रगति पर है । जलगाँव रेल स्टेशन से अजंता की दूरी 59 कि.मी. है। बस दो घण्टे में गंतव्य तक पहुँचा देती है। वैसे जलगाँव औरंगाबाद कह बसें (हर घण्टे सेवा) अजंता गुफा से 2 कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही उतार देती है । अतः अजंता के भ्रमणार्थियों को अजंता की बस से ही यात्रा करनी चाहिए । एलोरा और औरंगाबाद घूमघाम कर मानमाड होते हुए सिरडी / नासिक का परिदर्शन कर मुम्बई जाया जा सकता है। जलगाँव से 59, भुसावल से 80, औरंगाबाद से 103 कि.मी. दूर अजंता की विश्व प्रसिद्ध गुफाएँ हैं। तीनों स्थानों से अजंता के लिए नियमित बस सेवा है। अजंता की गुफाएँ अपने भितिचित्रों की मोहकता के लिए प्रसिद्ध हैं । अजंता में कुल 29 गुफाएँ हैं । 2010_03 महाराष्ट्र 147 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र मुम्बई श्री गोडीजी पार्श्वनाथ भगवान वालकेश्वर का मन्दिर पेढ़ी : जीवन विला कम्पाउण्ड, 7वाँ माला, नारायण दाभोलकर रोड, वालकेश्वर, मलबार हिल, मुम्बई - 400004 फोन : 3698036 श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय पेढ़ी टेंबीनाका, थाणा (महाराष्ट्र ) फोन : 5342389, 5369811 (ऑ.), बाबूलालजी (ऑ.) 5341177, (घर) 5340490 जुगराजजी पुनमिया (ऑ.) 5334319 (घर) 5366087 148 Jam Education International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मुम्बई की विचित्रता, उसकी स्तम्भित कर देने वाली गगन चुम्बी भव्य अट्टालिकाएँ समुद्र की गहराई को माप लेने की होड़ सी करती प्रतीत हो रही है। इतना ही नहीं, समुद्र का विस्तार घटता जा रहा है और वहाँ शहर पसरता जा रहा है। भारत के प्रमुख जनप्रिय शहरों में आज मुम्बई शीर्षस्थ है। केवल भारत ही क्यों, विश्व के आधुनिकतम शहरों में मुम्बई का छठा स्थान है। मुम्बई के मार्ग भी अति भव्य, प्रशस्त और सुन्दर हैं। यानवाहनों की व्यवस्था भी काफी सुन्दर है 1 यहाँ की जलवायु भी विविधतापूर्ण है । मुम्बई वायुमार्ग से समूचे विश्व से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। शहर से 26 कि.मी. दूर भारत का व्यवस्ततम हवाई अड्डा मुम्बई अर्थात् सांताक्रुज है। एयर इण्डिया के विमान मुम्बई से विश्व के 36 देशों के लिए उड़ान भरते हैं । रेलमार्ग द्वारा मुम्बई भारत के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन के सामने महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट डिपो है । इसी डिपो में महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, कर्नाटक राज्य परिवहन के भी कार्यालय हैं। मुम्बई के प्राचीन मन्दिरों में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ बालकेश्वर मन्दिर का नाम अग्रणीय है । इस जिनालय में पंच धातु की 7 प्रतिमा, 3 रत्नों की चाँदी की 1 प्रतिमा (चौबीसी ), सिद्धचक्रजी- 5, अष्टमंगल - 1 तथा माताजी श्री चक्रेश्वरी देवी व पद्मावती देवी भी विराजमान हैं । मुम्बई में वैसे 450 से अधिक जैन मन्दिर हैं। हर क्षेत्र में अपने आप में दर्शनीय जैन मन्दिर 3-4 की संख्या से अधिक में है। कई स्थानों पर ठहरने एवं भोजन की सुन्दर व्यवस्था भी उपलब्ध है। यह जिनालय श्री मुनिसुव्रत प्रभु नवपद जिनालय एवं कोंकण शत्रुंजय के नाम से विशेष रूप सुप्रसिद्ध है। श्रीपाल महाराज अपने विदेशाटन काल में सागर में गिरने के बाद यहाँ थाणा नगरी में आये थे, यह घटना भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी के शासनकाल में बनी थी, इसलिए थाणा में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी श्री नवपद जिनालय का आयोजन हेतु पूर्ण है। इस मन्दिर का निर्माण मुनि श्री शान्तिविजय जी के उपदेश से हुआ था। वे आत्माराम जी (विजयानन्द सूरीश्वर जी म. ) के शिष्य थे । वे बड़े विद्वान, तार्किक तथा जैन सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे। उनकी कृपा दृष्टि थाणा पर ज्यादा थी । अपने स्वरोदय तथा प्रश्न तंत्र के आधार पर उन्होंने यहाँ के लोगों से कहा कि यह इस भूमि पर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मन्दिर बन जाये, तो यह संघ के लिए श्रेयस्कर होगा । श्रीसंघ उनकी बात सहर्ष मान ली और मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू किया। कुछ समय पश्चात् खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनऋद्धि सूरीश्वर जी महाराज का थाणा में आगमन हुआ। वे शुद्ध चारित्र पालक और ज्ञानी- ध्यानी महात्मा थे। उनके साथ गुलाब मुनि भी थे। उनकी देखरेख में मन्दिर का काम हुआ । इस लोकप्रिय मन्दिर के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी की बड़ी भव्य प्रतिमा की अंजनशलाका वि. सं. 2004 के वैशाख मास में वढवाण शहर में परम पूज्य शासन सम्राट आचार्य भगवन्त श्री विजय नेमिसूरीश्वर जी म. सा. की पुण्य निश्रा में हुई थी, यह अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन परम पूज्य युग दिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजयधर्म सूरीश्वर जी म. सा. की पुण्य प्रेरणा से Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र जैन तीर्थ परिचायिका वढवाण शहर के नवनिर्मित श्री शान्तिनाथ जिनालय में हुआ था, उस समय आ. भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वर जी म. सा. भी वहाँ उपस्थित थे। बाद में श्री मनिसव्रत स्वामी जी भगवान के इस भव्य जिनालय की प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनऋद्धि सूरीश्वर जी म. तथा परम पूज्य सिद्धान्तनिष्ठ आचार्य भगवंत श्री विजय प्रताप सूरीश्वर जी म. आदि मुनि भगवंतों की पावन निश्रा में वि. सं. 2005 का माह सुदि 5 को भव्य रूप से हुई थी। इस भव्य जिनालय का संचालन श्री ऋषभदेव महाराज जैन टेम्पल ज्ञाति ट्रस्ट, थाणा द्वारा हो रहा है। मन्दिर में ऊपर नीचे आरस की 20 प्रतिमा, आरस का बनाया हुआ श्री सिद्धचक्र जी नवपद यंत्र सुशोभित हैं। चारों तरफ दीवारों में श्रीपाल महाराज का जीवन चरित्र, आ. श्री हेमचन्द्राचार्य और महाराजा सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल महाराजा का जीवन चरित्र, विक्रमादित्य के क्रान्तिकारक गुरुदेव श्री कालक सूरि, श्री सिद्धसेन दिवाकर चरित्र, श्री शय्यंभवसूरि, रत्नसूरि चरित्र, अकबर प्रतिबोधक श्री हीरसूरीश्वर जी म. चरित्र, सम्प्रति महाराजा चरित्र, श्रेणिक महाराजा चरित्र ये सभी चित्र पत्थर की खुदाई पर बनाये हैं। चित्रों के नीचे परिचय भी लिखा हुआ है। मन्दिर के साइड में श्री मणिभद्र सभागृह के एक कमरे में पंचधातु की 25 प्रतिमा, पद्मावती देवी की 2 प्रतिमा तथा एक तरफ परम पूज्य आ. भगवंत श्री वल्लभसूरीश्वर जी म. की आरस की प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर की मुख्य शणगार चौकी के ऊपर, दूर से दृश्यमान आ. श्री जिनऋद्धिसूरीश्वर जी म. और आ. श्री प्रतापसूरीश्वर जी म. की आरस की प्रतिमा विराजमान हैं। मन्दिर के द्वार पर दो बाजू दो बड़ा-बड़ा हस्ती दर्शनार्थियों का स्वागत करता है। मन्दिर में प्रवेश करते समय जिस द्वार से प्रवेश करते हैं, वो उपाश्रय चार मंजिल का भवन है। ग्राउण्ड फ्लोर पर कार्यालय तथा साधु-साध्वी जी महाराजाओं का भिन्न-भिन्न उपाश्रय तथा व्याख्यान भवन है। दोनों लिफ्ट का उपयोग 4 माले तक गमनागमन के लिए होता है। यहाँ की मख्य संस्थाओं में श्री सिद्धचक्र जैन नवयवक मंडल. श्री महावीर मण्डल. श्री अभिनन्दन मण्डल, श्री वर्धमान मण्डल, श्री मुनिसुव्रत स्वामी महिला मण्डल, श्री राजस्थान पार्श्व महिला मण्डल, श्री केसरिया गुण महिला मण्डल, श्री आदिनाथ महिला मण्डल, श्री चंदप्रभ स्वामी महिला मण्डल एवं श्री मुनिसुव्रत स्वामी पाठशाला का संचालन सुन्दर ढंग से हो रहा है। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान जैन देरासर ट्रस्ट द्वारा संचालित इस मन्दिर जी की प्रतिष्ठा वि. सं. 1878 का श्रावण वद 5 को हुई थी। वि. सं. 2010 का श्रावण वद 1 रविवार को पार्वनाथ भगवान महावीर स्वामी वगैरह प्रतिमा अंजनशलाका की हुई विराजमान है। इस मन्दिर के संचालन में विशेष रूप से राजस्थानी भाईयों का सहयोग है। मन्दिर के नीचे ऑफिस हॉल में जिनालय श्री जिनकुशल सूरीश्वर जी म. व अनेक देवी-देवता की भव्य प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर में आरस की कुल 50 प्रतिमा, पंचधातु की 67 प्रतिमा, सिद्धचक्र जी-46, चाँदी की पेढी: प्रतिमा तथा एक सिद्धचक्र जी है। मन्दिर की दीवारों में प्राचीनकाल में आरस पर बनाये गलालवादीकीका गये शत्रुजय तीर्थ अष्टापद तीर्थ सुशोभित है। स्ट्रीट, मुम्बई-400 002 यहाँ चिन्तामणि हितवर्धक युवक मण्डल है। पूजा करने आने वाले महानुभावों के लिए फोन : (ऑ.) 3755574 नहाने की भी व्यवस्था है। प्रमुख क्षेत्र में होने से दर्शन-पूजा करने वाले भाई-बहनों की मोहनलालजी भीड़ लगी रहती है। 2055146 2010_03 www.jainelibary. 49 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र जैन तीर्थ परिचायिका सान्ताक्रझ (पर्व) सर्वप्रथम यहाँ के गृह मन्दिर में श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की यही भव्य प्रतिमा स्थापित की। गयी थी। इस गृह मन्दिर के स्थान पर एक भव्य शिखरबद्ध जिनालय बना, जिसकी प्रतिष्ठा श्री कलिकुंड वि. सं. 2034 का वैशाख सुद 6 शनिवार ता. 13.5.1978 को हुई थी। पाश्वनाथ भगवान ग्राउण्ड फ्लोर पर ऑफिस हॉल में ही श्री मणिभद्रवीर जी, श्री घंटाकर्ण वीर, श्री आशापुरी भव्य शिखरबद्ध जिनालय माँ, श्री अम्बा माँ, श्री पद्मावती देवी विराजमान हैं। हॉल के बाहर की ओर आ. विजय गुणसागर सूरीश्वर जी म. साहब की प्रतिमा और सामने की ओर पानी की प्याऊ है। प्रथम पेढ़ी : माले पर आरस की 16 प्रतिमा, सिद्धचक्र-3, अष्टमंगल-2 तथा श्री कल्याणसूरि, T.P.S.S. रोड नं. 2, श्री अंबिकादेवी, श्री पार्श्वयक्ष-श्री पद्मावती, श्री सरस्वती, श्री महालक्ष्मी, श्री चक्रेश्वरी देवी ओरिजिनल प्लोट नं. 60, तथा श्री महाकाली देवी विराजमान हैं। B-51 रूप टोकीज के पीछे, 181 प्रतिमा वाला आधुनिक जिनालय दर्शनीय है। आशापुरी देवी जैन चौक, नेहरू रोड, सान्ताक्रुझ (पूर्व), मुम्बई-55 फोन : (ऑ.) 6490881, (घर) 6492866 कशोरभाई श्री आदीश्वर भगवान अंधेरी विभाग में सबसे प्राचीन गृह मन्दिर यही है। यहाँ पंचधातु की 13 प्रतिमा, सिद्धचक्र 9 गृह मन्दिर सुशोभित हैं। पेढ़ी : संघवी विला, इरला ब्रिज, बम्बाखान के सामने, 75 स्वामी विवेकानंद रोड, अंधेरी (पश्चिम), मुम्बई-58 फोन : 6208848, 6283013 शेवन्तीलालभाई आगाशी गाँव श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय पेढ़ी : आगाशी चालपेठ, गाँव-पोस्ट आगाशी, स्टे. विरार, जिला थाणा (महाराष्ट्र) फोन : 912-587618, 587518 खीमराजजी 3864156 महेन्द्रभाई मार्गदर्शन : मुम्बई-पश्चिम रेल्वे लाईन का विरार स्टेशन से 5 कि.मी. आगाशी गाँव का यह प्राचीन सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ है। मुम्बईवासियों के लिए उपनगर का सबसे लोकप्रिय तीर्थ के रूप में प्रचलित है। प्रतिवर्ष चैत्री-कार्तिकी पूर्णिमा को हजारों की संख्या में दर्शन-सेवापूजा के लिए पधारते हैं। इसके अलावा प्रति शनिवार-रविवार तथा अन्य दिनों में भी भक्तजनों का आना-जाना चालू ही रहता है। यहाँ पधारने वाले यात्रालु भाईयों के लिए प्रतिदिन 8 से 12 तक भाता की व्यवस्था है। परिचय : सुप्रसिद्धि मन्दिर निर्माता श्रावक शिरोमणि सेठ श्री मोतीचन्द (मोतीशा) अमीचन्द ने लगभग 162 वर्ष पहले जिनालय बनवाकर आपके ही कर-कमलों द्वारा वि. सं. 1812 फागुण वद 2 को भव्य प्रतिष्ठा कराई थी। उसके बाद श्री जैन संघ की तरफ से मन्दिर का जीर्णोद्वार हुआ एवं वि. सं. 1967 का माह सुदि 10 को खूब ठाठ माठ से पुनः प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था। इसी माह सुदि 10 को प्रतिवर्ष खूब उल्लास उमंग के साथ ध्वजा चढ़ाकर वर्षगाँठ मनाते हैं। 150 2010_03 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र जैन तीर्थ परिचायिका जिनालय में आरस की 29 प्रतिमा, पंचधातु की 18 प्रतिमा, सिद्धचक्रजी-5 एवं चाँदी के 10 सिद्धचक्रजी वगैरह प्रतिमा का दर्शन कर आनन्द से झूम जाते हैं। प्रतिमाएँ अपनी प्राचीनता एवं कलात्मकता के कारण दर्शनीय हैं। यहाँ के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी की प्रतिमा नालासोपारा के तालाब से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति श्रीपालराज के समय की खूब प्राचीन और चमत्कारिक कही जाती है। आजकल जीर्णोद्वार चालू है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के सामने ही मन्दिर की ऑफिस व दो पुरानी धर्मशालाएँ हैं (1) महुवा निवासी सेठ वीरचन्द गाँधी सेनेटरीयम, (2) सेठ चन्दुभाई वच्छराज सेनेटरीयम। सेठ रूपचन्द लल्लुभाई झव्हेरी नूतन धर्मशाला का उद्घाटन वि. सं. 2066 का चैत्र वद 5 रविवार ता. 26-04-1976 को श्रीमती ललिताबेन लल्लुभाई झव्हेरी के करकमलों से हुआ था। यहाँ उपाश्रय, पाठशाला आयंबिल शाला की व्यवस्था है। यहाँ यात्रालु भाईयों के लिए जैन भोजनशाला की अति सुन्दर व्यवस्था है। मूलनायक : श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, पद्मासनस्थ। श्री कोंकण मार्गदर्शन : यह तीर्थ मुम्बई से 24 कि.मी. दूर थाणा में टेभी नाका के बीच में स्थित है। शत्रुजय तीर्थ निकटतम रेल्वे स्टेशन ठाणे है। जहाँ से हर प्रकार का साधन उपलब्ध है। परिचय : इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 2005 के माघ शुक्ला 5 को हुई थी। इसके सामने पेढ़ी : श्री ऋषभदेव जी महाराज ही श्री आदिनाथ भगवान का मन्दिर है। श्रीपाल राजा, श्री विक्रमादित्य राजा तथा सम्प्रति जैन धर्म टैम्पल एण्ड ज्ञाती ट्रस्ट राजा इत्यादि के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बने भव्य एवं सुन्दर रंग-बिरंगे पट बने जैन मन्दिर मार्ग, टेंभी हुए हैं, जो बहुत ही आकर्षक हैं। पूजा का समय प्रातः 7.30 बजे है। नाका, ठाणे-400 601 ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के पास ही धर्मशाला है। जहाँ सभी सुविधाएँ हैं। भोजनशाला व फोन : 022-5472389, 5475811 आयंबिलशाला की सुविधा है। मूलनायक : श्री भगवान महावीर, पद्मासनस्थ। श्री दहीगाँव तीर्थ मार्गदर्शन : नातेपुते से यह 5 कि.मी., बालचंद नगर से 13 कि.मी., अकलुच से 30 कि.मी. शिखर शिंगणापुर महादेव मंदिर से 20 कि.मी. दूर है। बारामती से यह 35 कि.मी. दूर है। पेढ़ी : पंढरपुर से 60 कि.मी. तथा सतारा से 130 कि.मी. दूर है। तीर्थ पर बस सेवा उपलब्ध है। श्री श्री महावीर स्वामी नातेपुते से बालचंदनगर जाने वाली बसें यहाँ रुकती हैं। प्रातः 6.30 बजे से सायं 6.00 बजे दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तक बसों का आवागमन रहता है। निकटवर्ती स्टेशन पंढरपुर है। जहाँ से बस एवं टैक्सी दहीगाँव, वाया नातेपुते तालुका मालसिरस की सुविधाएँ हैं। जिला सोलापुर परिचय : यह तीर्थ अत्यंत प्राचीन है। यहाँ का विशाल, पत्थरों से निर्मित गुफा मन्दिर अत्यंत फोन : 02985-62582 2010_03 www.jainelibrar151 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्र श्री कुम्भोजगिरि तीर्थ तथा श्री बाहुबली तीर्थ पेढ़ी श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट कुंभोजगिरि तीर्थ डाकघर बाहुबली, तालुका हाथकलंगड़े : जिला कोल्हापुर फोन: 0230-484445 श्री बाहुबली विद्यापीठ ब्रह्मचार्याश्रम एवं बाहुबली विद्यापीठ 'पोस्ट बाहुबली, तालुका हाथकलंगड़े जिला कोल्हापुर - 416 110 फोन: 0230-484422 152 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका दर्शनीय है। मुख्य मन्दिर में काले वर्ण की भगवान महावीर की 5 फुट 5 इंच की अत्यंत मन भावक प्रतिमा विराजमान है। मंदिर की चौखट पर सुन्दर चांदी की कारीगरी अत्यंत मनमोहक है। निकट ही भगवान पार्श्वनाथ का सुन्दर मन्दिर है। गुफा मन्दिर में विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों की श्वेत पाषाण से निर्मित प्रतिमाएँ विराजित हैं। गुफा मन्दिर से बाहर निकलने पर बायें हाथ पर भगवान बाहुबली की प्रतिमा स्थित है। यहाँ की कला अत्यंत सुन्दर है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर में सुविधा सम्पन्न धर्मशाला है। पूर्व सूचना देने पर भोजन की व्यवस्था हो जाती है । मूलनायक : श्री बाहुबली भगवान, पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ । (कुम्भोजगिरि बाहुबली) मार्गदर्शन : यह तीर्थ हाथकलंगडे स्टेशन से 6.5 कि.मी. दूर स्थित है। स्टेशन पर बस, टैक्सी, रिक्शा आदि साधन उपलब्ध हैं। तीर्थ पर प्रात: 6.30 बजे से रात्रि 8.45 बजे तक बसों का आवागमन होता रहता है । यहाँ से कोल्हापुर 30 कि.मी., सांगली 32 कि.मी. दूर है। यहाँ से निकटवर्ती दर्शनीय स्थल पंडार हिल स्टेशन 46 कि.मी., वडगांव 13 कि.मी., दादावाड़ी 23 कि.मी., इचलकरंजी 16 कि.मी. तथा जयसिंहपुर 20 कि.मी. है। धर्मनगर यहाँ से 12 कि.मी. तथा नांदणी 15 कि.मी. दूर है । परिचय : इस मन्दिर का उद्धार विक्रम संवत् 1926 माघ शुक्ला 7 को हुआ था । कार्तिक पूर्णिमा, चैत्र पूर्णिमा व पोष कृष्णा 10 को यहाँ पर मेला लगता है। इसके अतिरिक्त एक और दिगम्बर मन्दिर है। इन नूतन मन्दिर की प्रतिष्ठापना परम पूज्य 108 आचार्य श्री समन्तभद्रजी महाराज की निश्रा में दिनांक 8.2.1963 को सम्पन्न हुई थी । इस मन्दिर के अहाते में ही विभिन्न सिद्ध क्षेत्रों की प्रतिकृतियाँ व समवसरण बड़े ही सुन्दर व कलात्मक ढंग से आकर्षक बने हुए हैं। यह स्थान जंगल में स्थित पहाड़ी की ओट में अत्यधिक सुन्दर व मनोरम प्रतीत होता है। समवसरण की रचना कलात्मक व भावात्मक ढंग से की गयी है। बाहुबली में भ. बाहुबली की 28 फुट ऊँची भव्य चित्ताकर्षक प्रतिमा विराजमान है। यहाँ गुरुकुल में जरूरतमन्द मेधावी छात्रों को शिक्षा दी जाती है। यहाँ 400 छात्र हैं। इसकी कर्नाटक में 3 शाखाएँ हैं । स्कूल में आसपास के विद्यार्थी भी शिक्षा ग्रहण करके आते हैं। ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला में 70 कमरे हैं। जहाँ बिजली, पानी व भोजनशाला आदि सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ आधुनिक सुविधायुक्त 29 ब्लॉक हैं। भोजनशाला में प्रातः 11.30 से 1.30 एवं सायं 5.00 से 6.30 बजे तक भोजन व्यवस्था रहती है। पहाड़ पर भाता प्रातः 8.30 से 4.00 बजे तक उपलब्ध होता । दिगम्बर मन्दिर में भी धर्मशाला एवं भोजनशाला की सुविधा हैं। भोजन व्यवस्था प्रातः 10 से 12 तथा सायं 5.00 से 6.30 तक उपलब्ध है। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका महाराष्ट्र मार्गदर्शन : जिंतूर शहर औरंगाबाद-हैदराबाद महामार्ग पर स्थित होने से सभी बड़े शहरों से श्री नेमगिरी तीर्थ रोड द्वारा सम्बन्धित है। रेलगाड़ी से परभणी जंक्शन पर उतरकर वहाँ से 42 कि.मी. दूरी पर है। औरंगाबाद, जालना, परभणी, नांदेड, अकोला, रिसोड से बहुत सी बसें चलती हैं। पेढ़ी: श्री दिगंबर जैन अतिशय मुक्तागिरी से 300 कि.मी. व्हाया अकोला, अंतरिक्ष शिरपूर या अमरावती, कारंजा, वाशिम, क्षेत्र हिंगोली होते हुए भी जिंतूर पहुँच सकते हैं। नेमगिरी, जिंतूर जिला परभणी (महाराष्ट्र) कुंथलगिरी से 250 कि.मी. व्हाया बीड, माजलगाँव, सेलू जिंतूर या अंबाजोगाई, परली, फोन : 24204 परभणी, जिंतूर आ सकते हैं। कचनेर से 175 कि.मी. व्हाया जालना, जिंतूर आ सकते हैं। परिचय : श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, नेमगिरी महाराष्ट्र मराठवाडा के परभणी जिले में जिंतूर से उत्तर दिशा की ओर 3 कि.मी. की दूरी पर प्राकृतिक निसर्ग सौंदर्य से युक्त सह्याद्री पर्वत की उपश्रेणियों में बसा हुआ है। पहला पर्वत श्री नेमगिरी जी और दूसरा चन्द्रगिरी जी के नाम से जाना जाता है। दोनों पर्वतराज के बीचों बीच युगल चारण ऋद्धिधारी मुनियों के चतुर्थकालीन अति प्राचीन चरण पादुकाएँ विराजमान हैं। लोकोक्ति के अनुसार अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का समवशरण तेर क्षेत्र की ओर जाते समय यहाँ के चन्द्रगिरी जी पर्वत पर आया था। अतः यह क्षेत्र भगवान महावीर स्वामी जी की चरण रज से पवित्र हुआ है। दोनों पर्वतों के मन्दिरों की अति प्राचीन मूर्ति शिल्पकला अनायास ही दर्शनार्थी के मन को मोह लेती हैं। श्री नेमगिरी क्षेत्र की चोटी पर पहाड़ी के 17 फीट अन्दर भू-गर्भ में 7 गुफाओं में छोटेछोटे दरवाजों से युक्त एवं विशाल जिनबिंबों से युक्त यह क्षेत्र अत्यन्त ही मनोज्ञ है। गुफाओं की रचना चक्र-व्युहाकार होने से उसे भूलभलैया कहते हैं। दर्शक लोग अक्सर ही गुफाओं में स्थित जिनबिंबों के दर्शन करते हुए रास्ता भूल जाते हैं। प्रत्येक गुफा की मोटी-मोटी दीवारें और बहुत मोटी आर्च युक्त छत प्राचीन वास्तु निर्माण का अद्भुत शिल्प है। हरेक गुफाओं में प्रतिदिन सूर्यबिंब अपनी अगणित सूर्यरश्मियों से भगवान के पावन चरण कमलों को नियमित रूप से दक्षिणावर्त के क्रम से नमस्कार करते हुए मन्दिर के प्राकृतिक प्रकाश से आपूर्ण कर देता है। 2010_03 www.jainelib 153 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्षिण भारत सड़क मानचित्र उड़ीसा * तीर्थ स्थल मध्य प्रदेश महाराष्ट्र भोजापर विशाखापट्टनम नलगोंडा N.H. 13 धारवाड श्री पार्थमणी तीर्थ / आंध्रप्रदेश कर्नाटक सम्ब>िशिमोगा तीर्थहल्ली वारंग कारकल चैन्नई धर्मस्थल मंगलोअडकिती प्रवणबेलगोला बैंगलो मनिगिरि Hin PA गिरी च पप्पुहार विजयमंगलम मनाशुड़ी ON SWERS तमिलना Map not to scale. ইতােদিত, দাগিকিতে তো তাতে যুক্ত 2010_03 For Private & Personal use of Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिला बेंगलोर जिला शिमोगा जिला दक्षिण कन्नड़ जिला हसन 2010_03 कनार्टक 1. बेंगलोर 2. श्री नाकोड़ा अवन्ति 108 पार्श्वनाथ जैन तीर्थधाम 3. दिव्य चमत्कार का तीर्थधाम श्री सिद्धाचल स्थूलभद्रधाम 4. श्री पार्श्वलब्धि तीर्थधाम 5. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मन्दिर 6. श्री अजितनाथ जैन श्वे. मन्दिर 7. बेंगलोर - गाँधीनगर जैन श्वे. मन्दिर 8. श्री विजय शान्ति सूरीश्वर जी ज्ञानमन्दिर 9. श्री बेंगलोर महानगर के समस्त जैन मन्दिरों की सूची 10. बेंगलोर में तीर्थ यात्रियों को ठहरने हेतु स्थान 11. भोजनशाला 1. 1. श्री हुम्बज तीर्थ श्री कारकल तीर्थ 2. श्री वारंग तीर्थ 3. श्री मूडबिद्री तीर्थ 4. श्री धर्मस्थल तीर्थ 1. श्री श्रवणबेलगोला तीर्थ 155 155 156 156 156 157 157 157 158 159 159 159 160 160 160 161 161 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्नाटक बेंगलोर जैन तीर्थ परिचायिका बगीचों का शहर बेंगलोर कर्नाटक की राजधानी है। यहाँ का वातावरण अत्यन्त रमणीक है। इलैक्ट्रॉनिक सिटी के रूप में यह नगर प्रसिद्ध है। देश के सभी प्रमुख नगरों से बेंगलोर वायु, रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। हसन से यह 180 कि.मी., मैसूर से 140 कि.मी., चैत्रई से 330 कि.मी. तथा तिरुपति से 260 कि.मी. दूर है। मैसूर के लिए यहाँ से नियमित बस सेवा है। बेंगलोर रेल्वे स्टेशन व बस स्टैण्ड आमने-सामने हैं। यहाँ की सिल्क साड़ियाँ, चन्दन तेल, चन्दन के बने अन्य सामान हाथी दाँत के सामान अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। बेंगलोर देखने हेतु कर्नाटक टूरिज्म द्वारा कण्डक्टैड टर आयोजित किये जाते हैं। रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर कुब्बन पार्क जो अब जोयारामराजेन्द्रा पार्क के नाम से जाना जाता है, अपने आकर्षण की छाप यात्रियों पर छोड़ता है। यहाँ का म्यूजियम, टॉप ट्रेन, शिशु उद्यान अति आकर्षक है। लालबाग का आकर्षण भी कम नहीं है। पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए यहाँ अनेकों मानोहारी आकर्षण हैं। हैदरअली द्वारा निर्मित तथा टीपू द्वारा पूर्ण किया गया टीपू का महल एवं बुल टैम्पल भी यहाँ दर्शनीय हैं। शहर से 28 कि.मी. दूर रामोहल्ली अर्थात् विशाल वट वृक्ष तीन एकड़ भूमि में अपनी शाखाएँ पसारे हुए हैं। बेंगलोर से 55 कि.मी. दूर पहाड़ी शहर शिवगंगा है। यह पहाड़ पूर्व से नन्दी, पश्चिम से गणेश, दक्षिण से शिवलिंग और उत्तर से फण फैलाए नाग के समान दीखता है। यहाँ के दो मन्दिर एवं झरना प्रसिद्ध हैं। बेंगलोर से 35 कि.मी. दूर देवनहल्ली में टीपू का जन्म हुआ था। यहाँ स्मारक के रूप में मीनार और दुर्ग हैं । बेणुगोपाल का सुन्दर मन्दिर भी यहाँ है। राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 7 पर स्थित देवनहल्ली में श्री नाकोड़ाअवन्ती 108 पार्श्वनाथ जैनतीर्थ धाम का निर्माण हो रहा है। श्री लब्धि विक्रम पट्टालंकार, दक्षिण केशरी पूज्य आचार्य श्री स्थूलभद्रसूरीश्वरजी म. सा. की श्री नाकोडा अवन्ति प्रेरणा से एवं पज्य मनिराज शिल्पकला मनीषी श्री चन्द्रयशविजय जी म. सा. के मार्गदर्शन १०८ पार्श्वनाथ जैन में देवनहल्ली, बेंगलोर की धरा पर एक भव्य तीर्थ श्री नाकोड़ा अवन्ति १०८ पार्श्वनाथ जैन तीर्थधाम तीर्थधाम का निर्माण हो चुका है। पेढ़ी : भारत की ऐतिहासिक भूमि उज्जैन में प. पू. आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित श्री नाकोड़ा अवन्ति १०८ श्री कल्याण मन्दिर स्तोत्र के प्रभाव से प्रमदित श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति का पार्श्वनाथ जैन तीर्थधाम टर प्रतिछाया रूप प्रतिमा एवं राजस्थान का चमत्कारिक तीर्थ नाकोड़ा आदि अन्य तीर्थों में (विक्रम स्थूलभद्र विहार) विराजित १०८ पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्तियों के इस तीर्थ पर एक साथ दर्शन-वन्दन का लाभ बेंगलोर से 38 कि.मी., प्राप्त होता है। साथ ही यहाँ 117 जिनालय का निर्माण किया गया है और प्रकट प्रभावी देवनगरी देवनहल्ली जिला बेंगलोर-562 110 श्री मणिभद्र देव, भैरूजी के दर्शन कर मन को असीम शान्ति प्राप्त होती है। फोन : (08119) 82226 यात्रियों की सविधार्थ यहाँ ठहरने की उत्तम व्यवस्था एवं भोजनशाला का भी निर्माण किया गया . गया है। इस तीर्थ पर प्रतिमास की वदी १०वीं को मेला आयोजित होता है। जिसमें नाकोड़ा कॉम्पलैक्स, श्री श्रद्धालुजन भाग लेकर पूजा अर्चना और भक्ति का लाभ लेते हैं। आदिनाथ जैन मन्दिर स्ट्रीट, चिकपेट, बेंगलोर फोन : (080) 2873663 2010_03 www.jaineliba 155 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्नाटक दिव्य चमत्कार का तीर्थधाम श्री सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम पेढ़ी: श्री सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम शासन प्रभावक ट्रस्ट बेंगलोर हैदराबाद नेशनल हाईवे नं. 7, देवनहल्ली , बेंगलोर फोन : 08119-82886 जैन तीर्थ परिचायिका श्री लब्धि विक्रम पट्टालंकार, दक्षिण केशरी परम पूज्य आचार्यदेव श्री स्थूलभद्रसूरीश्वरजी म. सा. के स्वप्न की साकारता रूप एवं पूज्य मुनिराज श्री चन्द्रयशविजयजी म. सा. की संकल्प सिद्धरूप श्री वीर माणिभद्र की दिव्य शक्ति और आदेशरूप श्री सिद्धाचल स्थूलभद्रधाम तीर्थ निर्माण कार्य जोरों से अग्रसर है। तीर्थधाम में श्री वर्षांतप मंदिर, श्री घेटीपाग मंदिर, अधिष्ठायक देव-देवी मंदिर, धर्मशालाभोजनशाला का निर्माण हो चुका है। कंकर कंकर पर अनंत परमात्मा सिद्ध हुए ऐसे पावन गिरिराज पालीताणा से लाये गये पाषाणों की स्थापना करके इस तीर्थ का निर्माण होने जा रहा है। श्री स्थूलभद्रसूरि संस्कार धाम, विशालकाय तपोवन जैसा जैन विद्यालय आदि अनेक धर्मधामों की योजनाएँ साकार होने जा रही है। 52 जिनालय, 4 मुख्य जिनालय, नवढूंक सहित यह भव्य तीर्थ सुन्दर प्राकृतिक वातावरण में स्थित है। श्री पार्श्वलब्धि तीर्थधाम पेढ़ी: श्री पार्श्वलब्धि शासन प्रभावक ट्रस्ट पूना-बेंगलोर हाइवे नं. 4, पो. अडकमनहल्ली माकली टुमकुर रोड, (21 कि.मी. पर), बेंगलोर-562 123 फोन : 08118-23103 बेंगलोर-पूना राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 4 टुमकुर रोड पर बेंगलोर से 21 कि.मी. की दूरी पर प. पू. दक्षिण केशरी आचार्यदेव श्री स्थूलभद्र सूरि जी म. सा. की प्रेरणा से इस भव्य तीर्थ का । उदगम हुआ है। उक्त तीर्थ में अष्टकोणीय मन्दिर जी में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन देती श्री लब्धि पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति साथ ही लब्धि निधान श्री गौतम स्वामी, लब्धिधारी दादागुरु श्री लब्धिसूरीश्वर जी म. सा. की गुरुमूर्ति एवं अधिष्ठायक भैरूजी और अम्बिकादेवी की मूर्ति विराजित है जो श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। दक्षिण भारत के अल्प समय में निर्मित इस तीर्थ का नैसर्गिक वातावरण श्रद्धालु यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ भोजनशाला की व्यवस्था उपलब्ध है। इस तीर्थधाम में प्रतिमास की पूर्णिमा को भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें अनेक श्रद्धालुजन उपस्थित होकर भक्ति का लाभ लेते हैं। श्री आदिनाथ जैन श्वे. मन्दिर, चिकपेट, बेंगलोर पता: श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर, चिकपेट, बेंगलोर-560053 फोन : 2873678 75 वर्ष पूर्व स्थापित चिकपेट का श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर यहाँ का प्रथम एवं प्राचीन जिनालय है। मूलनायक प्रभु आदिनाथ की अत्यंत सुन्दर और मन भावन प्रतिमा मन को आनन्द अभिभूत कर देती है। इस भव्य जिनालय की कलात्मकता और शिल्पकला अत्यंत दर्शनीय है। द्वार पर विशालकाय गजराज की कलात्मकता, अन्दर की गयी मनमोहक तेल चित्र मन को बरबस अपनी ओर खींच लेती हैं। मूलनायक के निकट ही पार्श्वप्रभु एवं संगमरमर की शांतिनाथ प्रभु एवं महावीर भगवान की चित्ताकर्षक नयन-रम्य प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। आदिनाथ प्रभु के सामने ही गजराज पर माता मरुदेवी की प्रतिमा विराजित है। गर्भगृह के ठीक सामने अधिष्ठायक गौमुखजी एवं अधिष्ठात्री चक्रेश्वरी माता की अनुपम प्रतिमाएँ हैं। वर्तमान में चिकपेट मन्दिर जी के अन्तर्गत आयंबिल खाता, भोजनशाला सुविधा उपलब्ध हैं। 156 _ 2010_03 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका बेंगलोर के नगरथ पेठ क्षेत्र में हाल ही में आचार्य श्री स्थूलभद्र सूरीश्वरीजी म. की सद्प्रेरणा से अजितनाथ प्रभु के नवनिर्मित भव्य जिनालय में मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान एवं श्री पार्श्वनाथ प्रभु, श्री महावीर स्वामी, श्री वासुपूज्य स्वामी, श्री ऋषभदेव भगवान, श्री नेमिनाथ जी, श्री शांतिनाथ जी आदि जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुईं। मन्दिर में अधिष्ठायक देव श्री महायक्ष, श्री अजितादेवी, पद्मावती देवी, मणिभद्रजी एवं नाकोड़ा भैरवजी आदि की मनमोहक प्रतिमाएं मन मोह लेती हैं। मंदिर से लगा एक भव्य उपाश्रय का निर्माण भी हो गया | बेंगलोर के गाँधीनगर क्षेत्र में प्रभु श्री पार्श्वनाथ भगवान का सुन्दर, भव्य दर्शनीय जिनालय स्थित है। रेल्वे स्टेशन, बस स्टैण्ड आदि से लगभग 2-3 कि.मी. की परिधि में यह क्षेत्र स्थित है। प्रमुख शहर होने के कारण यहाँ आने हेतु प्रत्येक साधन उपलब्ध है। मूलनायक प्रभु की प्रतिमा के निकट ही अधिष्ठायक देव धरणेन्द्र एवं माता पद्मावती देवी की चमत्कारिक प्रतिमायें विराजित हैं। मन्दिर के निकट ही युग प्रधान श्री जिनदत्त सूरि जी की दादावाड़ी स्थित है। जिसमें चारों दादागुरु की सुन्दर आकर्षक प्रतिमायें एक ही छत्री में चारों दिशा मुखी स्थापित हैं। यहाँ अम्बिका देवी, माता पद्मावती, श्री घंटाकर्ण, महावीर एवं श्री नाकोड़ा भैरव जी की प्रतिमायें विराजित हैं । दादा गुरु के चमत्कारिक प्रसंगों को सुन्दर कलात्मक ढंग से परिसर में चित्रित किया गया है। चित्रकारी अत्यन्त कलात्मक है। छत पर सुन्दर कांच का कार्य किया गया है। यहाँ पर उपाश्रय, पाठशाला, जैन भवन ( नाहर भवन ) भोजनशाला तथा जैन क्लीनिक की सुविधा उपलब्ध है। नाहर भवन में यात्रियों को ठहरने हेतु सुन्दर व्यवस्था है। भोजनशाला का भी उचित प्रबन्ध है। इन सभी संस्थाओं की व्यवस्था समाजसेवी श्रावक - रत्न श्रीमान् रविलाल लबजी भाई पारेख की अध्यक्षता में वर्षों से निरन्तर सुचारु रूप से संचालित है। 2010_03 कर्नाटक श्री अजितनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर पेढ़ी : श्री अजितनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ, नागरथ पेठ, बेंगलोर-2 फोन : 2215980 बेंगलोर-गाँधीनगर जैन श्वेताम्बर मन्दिर पेढ़ी : श्री जैन श्वे. मूर्तिपूजक मन्दिर (गाँधी नगर जैन मन्दिर) चौथा मेन रोड, गाँधी नगर, पो. बॉ. 9717, बेंगलोर-560009 फोन : 2200036 बेंगलोर में नं. 46, शिव प्लाजा, संजीवप्पा लेन, एवेन्यू रोड, क्रॉस, राइस मैमोरियल चर्च के श्री विजयशांति सामने स्थित है। यहाँ योगिराज शांतिगुरु के दर्शन लाभ लिया जा सकता है। ठहरने हेतु : श्री हीराचन्द नाहर जैन भवन नं. 26, तीसरा क्रास (जैन मन्दिर के निकट), गाँधी नगर, बेंगलोर-560009 फोन : 2203919, 2263805 सूरीश्वर जी ज्ञान मन्दिर www.jainelitra157 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्नाटक जैन तीर्थ परिचायिका श्री बेंगलोर महानगर के समस्त जैन मंदिरों की सूची 1. श्री आदिनात जैन श्वेताम्बर मंदिर चिकपेट, बेंगलोर फोन : 2873678 2. श्री संभवनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर दादावाड़ी वी. पी. पुरम, बेंगलोर फोन : 6508208 3. श्री धर्मनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर जयनगर, बेंगलोर फोन : 6548492 4. श्री अजितनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर नगरथ पैठ, बेंगलोर फोन : 2215980 5. श्री मुनिसुव्रत राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर मंदिर एवेन्यु रोड, बेंगलोर फोन : 2095800 6. श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर माधव नगर, बेंगलोर फोन : 2250117 7. श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर गांधीनगर, बेंगलोर फोन : 2200036 8. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर राजाजी नगर, बेंगलोर फोन : 3409769 9. श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर केन्टोनमेन्ट, बेंगलोर फोन : 5365343 पी.पी. 10. श्री सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर यलहंका, बेंगलोर फोन : 8460149 पी.पी. 11. श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर यलगुन्डपाल्यम्, बेंगलोर फोन : 5542018 पी.पी. 12. श्री सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर यशवंतपुर, बेंगलोर फोन : 3372343 पी.पी. 13. श्री सुमतिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर मागड़ी रोड, बेंगलोर फोन : 3388931 पी.पी. 14. श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर अक्कीपेट, बेंगलोर फोन : 2205303 पी.पी. 15. श्री मुनि सुव्रत स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर कल्पतरू, बेंगलोर 16. श्री महावीर स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर त्यागराज नगर, बेंगलोर फोन : 2239468 पी.पी. 17. श्री विमलनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर बसवनगुडी, बेंगलोर फोन : 6523548 18. श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर फोक्स टाउन, बेंगलोर फोन : 5485159 19. श्री अजितनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर टेनरी रोड, बेंगलोर फोन : 2253172 पी.पी. श्री सिमंधर जैन श्वेताम्बर मंदिर दासरहल्ली, बेंगलोर फोन : 8391838 पी.पी. 21. श्री महावीर स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर चिकपेट, बेंगलोर श्री महावीर स्वामी जैन श्वेताम्बर मंदिर चामराज पेट, बेंगलोर फोन : 6706358 (पी.पी.) श्री संभवनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर पाईप लाइन, विजयनगर, बेंगलोर फोन : 3407516 श्री संभवनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर क्लब के सामने, विजयनगर, बेंगलोर फोन : 3356150 पी.पी. श्री विमलनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर श्री रामपुरम, बेंगलोर फोन : 3324708 पी.पी. 26. श्री कुंथुनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर श्रीनगर, बेंगलोर फोन : 2290872 पी.पी. 27. श्री सिमंधर स्वामी राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर मंदिर एस. वी. लेन, चिकपेट, बेंगलोर 28. श्री विजयशांति सूरीश्वरजी ज्ञान मंदिर बेंगलोर 29. श्री पार्श्वलब्धि धाम तीर्थ पूना-बेंगलोर हाइवे नं. 4, पो. अडकमनहल्ली . माकली, टुमकुर रोड, बेंगलोर फोन : (08118) 23103 श्री नाकोडा अवन्ति १०८ पार्श्वनाथ जैन तीर्थधाम देवनहल्ली, बेंगलोर फोन : (08119) 82226 31. श्री सिद्धाचल तीर्थधाम देवनहल्ली, बेंगलोर फोन : (08119) 82886 158 dication International 2010_03 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका 1. श्री दानवीर सेठ कपूरचंद राजमल जी जैन धर्मशाला बी. एस. लेन, चिकपेट क्रास, बेंगलोर-53 2. श्री तुरखीया जैन भवन चौथा क्रास, गाँधीनगर, बेंगलोर 1. श्री आदिनाथ जैन भोजनशाला बेंगलोर में तीर्थ यात्रियों को ठहरने हेतु स्थान वी. एस. लेन, चिकपेट क्रास, बेंगलोर-53 3. 4. श्री दिगम्बर जैन भवन भोजनशाला 2010_03 श्री हीराचंद नाहर जैन भवन नं. 26, तीसरा क्रास (जैन मन्दिर के निकट), गाँधीनगर, बेंगलोर - 9 फोन : 2203919, 2263805 18वां क्रास, आर. टी. स्ट्रीट, बेंगलोर - 9 मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ ।. मार्गदर्शन : यह तीर्थ शिमोगा नगर से 60 कि.मी., सागर से 60 कि.मी., तीर्थहल्ली से 30 कि.मी. दूर है। यहाँ प्रातः 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक प्राइवेट बसों का आवागमन रहता है। शिमोगा स्टेशन से बस अथवा टैक्सी द्वारा आया जा सकता है। तीर्थ पर भी टैक्सी एवं बस सुविधा उपलब्ध हो जाती है। कुंदाद्रि तीर्थ यहाँ से 65 कि.मी. तथा वारंग तीर्थ यहाँ से 85 कि.मी. दूर है। 2. श्रीमती विमलाबेन दलपतलाल जैन भोजनशाला तीसरा क्रास, गाँधीनगर, बेंगलोर - 9 परिचय : शांत, स्वच्छ, मनोरम वातावरण में स्थित इस तीर्थ की स्थापना विक्रम की सातवीं शताब्दी में श्री जिनदत्तराय के द्वारा हुई जो मथुरा के राजा श्री साकार के सुपुत्र थे। श्री पद्मावती देवी का रथोत्सव प्रति वर्ष मार्च महीने में 'मूला नक्षत्र' के दिन होता है । श्री भगवान पार्श्वनाथ मन्दिर व श्री पद्मावती देवी के मन्दिरों के अतिरिक्त तीन मन्दिर और हैं। सभी मन्दिरों में कई प्राचीन प्रतिमाएँ हैं जिनकी कला दर्शनीय है। यहाँ का पूजा का समय प्रातः 9.30 बजे से 12.30 बजे तक है। देवी पद्मावती का दिवस शुक्रवार है। इस दिन पूजा 11 बजे के बाद कभी भी कर सकते हैं । श्रीमद देवेन्द्र कीर्ति महास्वामी जी यहाँ के अध्यक्ष हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ सभी सुविधाओं युक्त धर्मशाला उपलब्ध है। यहाँ निःशुल्क भोजन की व्यवस्था है । प्रातः नाश्ता भी उपलब्ध हो जाता 1 कर्नाटक दर्शनीय स्थल : यहाँ निकट के दर्शनीय स्थल नरसिंहराजपुर तीर्थ यहाँ से 75 कि.मी. है। इसके लिए 30 कि.मी. तीर्थहल्ली होते हुए वहाँ से 25 कि.मी. कोरपा तथा कोरपा से 18 कि.मी. यह स्थल है। हुंबज से 90 कि.मी. दूर 1500 फीट की ऊँचाई पर सुन्दर नैसर्गिक वातावरण सारावती नदी पर जल प्रपात जोगफॉल्स भी दर्शनीय स्थल है। श्रृंगेरी हुंबज से 80 कि.मी. तथा कोप्पा से 22 कि.मी. दूर है। कोप्पा से श्रंगेरी होते हुए कारकल तीर्थ पहुँचा जा सकता है। श्रृंगेरी में जगद्गुरू शंकराचार्य का पहला मठ तुंगा नदी के तट पर स्थित हैं । यहाँक आराध्या देवी सरस्वती हैं। जिला शिमोगा श्री तीर्थ हुम्बज पेढ़ी : श्री हुम्बज जैन मठ पोस्ट हुमचा, तहसील होसानगर जिला शिमोगा - 577436 (कर्नाटक) फोन : (08185) 62721 (स्वामी जी); 62722 (ऑफिस) www.jainelibar1.59 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्नाटक जैन तीर्थ परिचायिका जिला दक्षिण कन्नड मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासन की मुद्रा में। मार्गदर्शन : यह तीर्थ मेंगलूर स्टेशन से 50 कि.मी. दूर कारकल के निकट ही स्थित है। यहाँ श्री कारकल तीर्थ पर बस, टैक्सी तथा रिक्शों आदि की सुविधा उपलब्ध है। मूडबिद्री यहाँ से 16 कि.मी. दूर है यहाँ से 32 कि.मी. दूर उडिपी है। पेढ़ी: श्री जैन धर्म जीर्णोद्धार संघ - परिचय : यह तीर्थ विक्रम संवत् 1514 से पूर्व का है। मन्दिर के सामने 59 फुट ऊँचा एक 'मान स्तम्भ' है, जो एक ही पत्थर का बना है। गाँव के निकट पहाड़ी पर श्री बाहुबली भगवान हीरेअगडी, डाकघर की 13 मीटर ऊँची भव्य प्रतिमा है। एक ओर श्री आदीश्वर भगवान का मन्दिर है, जिसमें कारकल, चौमुखी प्रतिमा है। हीरे अगडी में आठ और मन्दिर हैं। यहाँ की मूर्ति कला प्रसिद्ध है। जिला दक्षिण कन्नड़ कारकल की ख्याति कॉफी और काजू के व्यापार के लिए भी है। (कर्नाटक) ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिर के पास ही धर्मशाला है जहाँ पर सभी सुविधा उपलब्ध है। दर्शनीय स्थल : यहाँ से 32 कि.मी. दूर उडिपी का कृष्ण मन्दिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। मंगलोर में मंगला देवी का मन्दिर भी प्रमुख आकर्षण है। श्री वारंग तीर्थ पेढ़ी: श्री दिगम्बर जैन मन्दिर डाकघर वारंग, जिला दक्षिण कन्नड़ (कर्नाटक) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, खड्गासन की मुद्रा में। मार्गदर्शन : यह तीर्थ कारकल से 16 कि.मी. दूर वनयुक्त पहाड़ की तलहटी सरोवर के मध्य स्थित है। परिचय : यह कर्नाटक का प्राचीन तीर्थ है। यह मन्दिर दक्षिण प्रांत के जल मन्दिर के नाम से विख्यात है। हर शुक्रवार को यहाँ सैकड़ों लोग दर्शनार्थ आते हैं। इस जल मन्दिर के अतिरिक्त निकट ही दो और मन्दिर विद्यमान हैं। मन्दिर का शिखर अत्यन्त निराले ढंग से निर्मित है। प्राकृतिक सौन्दर्य और शान्ति के बीच प्राचीन कला का सुन्दर नमूना है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिए विशेष सुविधाएँ नहीं हैं। कारकल से यहाँ आना । ठीक रहता है। श्री मडबिद्री तीर्थ मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में। __मार्गदर्शन : यह तीर्थ मेंगलूर रेल्वे स्टेशन से 34 कि. मी. दूर मूडबिद्री में स्थित है। स्टेशन से पेढ़ी: बस व टैक्सी की सुविधा है। मेंगलोर देश के सभी प्रमुख नगरों से रेल द्वारा संपर्क में है। स्वस्ति श्री चारूकीर्ति मंगलोर से बेंगलोर 347 कि.मी., मैसूर 248 कि.मी., हसन 160 कि.मी. दूर है। स्वामीजी श्री जैन मठ परिचय : आचार्य महाराज को श्री पार्श्वप्रभु की विशालकाय इस मनोज्ञ प्रतिमा के दर्शन हुए। डाकघर मूडबिद्री-574 227 उन्होंने उसी स्थान पर सुन्दर जिनालय का निर्माण करवाकर ई. सं. 714 में इस अपूर्व सुन्दर जिला दक्षिण कन्नड़ प्रभु प्रतिमा को प्रतिष्ठित कराया इसीलिए यह मन्दिर गुरू वसदि नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस (कर्नाटक) मन्दिर में धवल, जयधवल एवं महाधवल नाम के महान सिद्धान्त ग्रन्थ होने के कारण इसे सिद्धांत मन्दिर भी कहते हैं। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त सुन्दर व अतिशयकारी है। यहाँ पर नवरत्नों की 35 प्रतिमायें हैं। ऐसी प्रतिमाओं के दर्शन, अन्यत्र दुर्लभ है। इस मन्दिर के अतिरिक्त यहाँ पर 17 और अन्य मन्दिर हैं। श्री पार्श्वप्रभु की चमकती हुई प्रतिमा किस पाषाण से निर्मित है, उसका पता लगाना कठिन है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए गाँव में सुन्दर सुव्यवस्थित धर्मशाला है। 160 2010_03 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभु भगवान, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : यह तीर्थ मंगलूर से 62 कि.मी. दूर धर्मस्थल के पास छोटी पहाड़ी पर (जिसे चन्द्रनाथ स्वामी कहते हैं) स्थित है । हसन - मंगलोर मार्ग पर, यहाँ से हसन लगभग 120 कि.मी. दूर है। यह ग्राम चारों ओर से नेत्रावती नदी से घिरा हुआ है। परिचय : इसका प्राचीन नाम कुडुमा था । दानी जैन परिवार के श्री विरेन्द्र हेगड़े के पूर्वजों ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था । हेगड़े परिवार के सदस्य निःस्वार्थ भाव से आज भी इस तीर्थ की देख-रेख करते हैं। यह एक सर्वधर्म समन्वय का केन्द्र है। हर वर्ष सामूहिक विवाह यहाँ इस संस्था के प्रबन्ध से होते हैं । हेगड़े भवन में दो जिन मन्दिर हैं। गाँव के निकट ही एक पहाड़ी पर श्री बाहुबली भगवान की खड्गासन भव्य प्रतिमा है। एक मंजुनाथ स्वामी (शिव) देवालय भी है। प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए धर्मस्थल प्रसिद्ध है । मन्दिर की शिल्पकला और सौन्दर्य दर्शनीय है । ठहरने की व्यवस्था : नेत्रावती व वैशाली सभी सुविधायुक्त धर्मशालाएँ हैं । यहाँ और भी अनेक धर्मशालाएँ हैं । मूलनायक : श्री बाहुबली भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में 1 मार्गदर्शन : यह तीर्थ विन्ध्यगिरि पर्वत पर स्थित है। हसन-बेंगलोर मार्ग पर हसन से 52 कि.मी. दूर यह तीर्थ है। यह मैसूर से 115 कि.मी., बेंगलोर से 155 कि.मी. तथा बेलूड़ से 86 कि.मी. दूर है। मैसूर से प्रातः प्रत्येक घन्टे श्रवणबेलगोला के लिए बस सेवा उपलब्ध है। हसन से भी बस सेवा उपलब्ध है। तलहटी से 644 सीढ़ियाँ तय कर ऊपर बाहुबली भगवान की विशाल प्रतिमा के चरणों तक पहुँचा जाता है। हसन से बस लगभग डेढ़ घन्टे में श्रवणबेलगोला पहुँच जाती है। परिचय : यहाँ प्रभु का महामस्तकाभिषेक बारह वर्षों के अंतराल से होता है। एक मान्यता के अनुसार सम्राट् चन्द्रगुप्त तपस्या करते हुए यहीं पर स्वर्ग सिधारे इसलिए इस पर्वत का नाम चन्द्रगिरि पड़ा । विन्ध्यगिरि पर्वत पर सात मन्दिर हैं तथा चन्द्रगिरि पर्वत पर 15 मन्दिर हैं । श्री बाहुबली भगवान की भव्य 17.5 मीटर ऊँची प्रतिमा का सौम्य, शान्त, गंभीर रूप बरबस मन को भक्तिभाव की ओर खींच लेता है। विन्ध्यगिरि व चन्द्रगिरि पर्वतों के मध्य विशाल जलकुण्ड की अपनी एक विशिष्ट शोभा है । उहरने की व्यवस्था : तलहटी में ठहरने के लिए धर्मशाला है। कर्नाटक टूरिज्म का टूरिस्ट होम तथा एक अन्य गेस्ट हाऊस भी यहाँ है । 2010_03 कर्नाटक श्री धर्मस्थल तीर्थ पेढ़ी : धर्मस्थल संस्था डाकघर धर्मस्थल - 574 216, जिला दक्षिण कन्नड़ (कर्नाटक) जिला हसन श्री श्रवणबेलगोला तीर्थ पेढ़ी : श्री दिगम्बर जैन इंस्टीट्यूशन कमेटी डाकघर श्रवणबेलगोला, जिला हासन - 573 135 ( कनार्टक ) www.jainelibrary161 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमिलनाडु 163 163 163 164 164 165 165 1. श्री पारसनाथ भगवान जैन तीर्थ 2. श्री विजयमंगलम तीर्थ 3. श्री पोन्नूरमलै तीर्थ 4. श्री मुनिगिरि तीर्थ 5. श्री तिरूमलै तीर्थ 6. श्री जिनकांची तीर्थ 7. श्री मन्नारगुड़ी तीर्थ 8. चेन्नई (मद्रास) 9. श्री पुड़ल तीर्थ (चेन्नई) 10. श्री चन्द्रप्रभु जी महाराज जैन जूना मन्दिर 11. श्री चन्द्रप्रभु जी जैन नया मन्दिर 12. श्री महावीर स्वामी जैन मन्दिर 13. श्री विजय शान्ति सूरीश्वर जी गुरु मन्दिर 14. चेन्नई के अन्य दर्शनीय मन्दिर 15. चेन्नई के भवन, स्थानक, उपाश्रय की नामवली 166 166 166 167 168 168 168 170 2010_03 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका तमिलनाडु मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, खड़गासन मुद्रा में। तमिलनाडु मार्गदर्शन : यह तीर्थ उलुन्दरपेट से 4 कि.मी. दूर थिरूनरुकंद्रम के पास एक पहाड़ी पर स्थित श्री पारसनाथ है। चेन्नई से यह लगभग 200 कि.मी. दूर है। स्टेशन से बस व टैक्सी की सुविधा है। आखिर तक कार व बस जा सकती है। विल्लीपुरम यहाँ से 40 कि.मी. दर है। तीर्थ पर प्रात: 4 भगवान जन ताथ बजे से रात्रि 10 बजे तक प्रत्येक 2 घन्टे से बसों का आवागमन होता है। (जिनगिरि) परिचय : यहाँ प्राचीन गुफाएँ हैं, जिनमें शय्याएँ बनी हुई हैं। चोल नरेश की बहिन राजकुमारी पेढ़ी : कुन्दवै ने इसके समीप एक जलाशय का निर्माण कराया था। जो आज भी कुन्दवै जलाशय श्री पारसनाथ भगवान जैन के नाम से प्रसिद्ध है। पार्श्वनाथ भगवान को वर्तमान में स्थानीय लोग श्री अप्पाण्डैनादर के नाम से पुकारते हैं । अनेक मुनि संघों का यहाँ आवास रहा है। प्रति वर्ष वैशाख शुक्ला दशमी मन्दिर (श्री अप्पान्डैनादर) थिरूनरूकुन्द्रम, पोस्ट से पूर्णिमा तक मेला लगता है। ये तीनों शिखर चोल राजवंशीय कला के नमूने, आदर्श व नानाराम-606 102 अत्युत्तम प्रतीक के रूप में स्थित हैं। इसी मन्दिर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा भी जिला विल्लीपुरम् अत्यन्त प्रभावशाली है। (तमिलनाडु) ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए तलहटी में धर्मशाला है। भोजन की व्यवस्था, यदि यात्री 4-6 हो तो ही, सम्भव होती है। मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। श्री विजयमंगलम मार्गदर्शन : यह तीर्थ ईरोड स्टेशन से 20 कि.मी. दूर विजयमंगलम गाँव के उत्तरी भाग के तीर्थ वस्तिपुरम में स्थित है। स्टेशन से बस, टैक्सी, ऑटो आदि साधन उपलब्ध हैं। मंदिर तक बस व कार जा सकती है। पेढ़ी: परिचय : कोंगनाडके राजा श्री कोंगवेलिर ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था जो आज भी श्री चन्द्रप्रभ भगवान जन उनकी धर्मभावना की याद दिलाता है। वर्तमान में स्थानीय लोग इसे अमनेश्वर मन्दिर कहते ' मन्दिर हैं। मन्दिर के स्तम्भों, छतों में भगवान के पंचकल्याणक वैभव व चौबीस तीर्थंकर भगवान डाकघर विजयमंगलम की मूर्तियाँ अंकित हैं। इसी मन्दिर में श्री आदिनाथ भगवान की व भगवती अम्बिका देवी जिला ईरोड (तमिलनाडु) की कलात्मक प्राचीन प्रतिमाएँ अति ही दर्शनीय हैं। आज मन्दिर का कार्यभार पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने की कोई सुविधा नहीं है। मूलनायक : श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, आचार्य कुन्द कुन्द चरण । श्री पोन्नूरमलै तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ दिण्डीवनम् रेल्वे स्टेशन से 40 कि.मी. तथा चेन्नई से 130 कि.मी. दूर है। । पेढ़ी : वन्दवासी से यह स्थान 9 कि.मी. दूर है। चेन्नई से यहाँ सीधी बस सेवा उपलब्ध है। - श्री आचार्य कुन्द कुन्द जैन वन्दवासी के लिए चेन्नई से प्रत्येक घन्टे में बस सेवा है। वन्दवासी से पोन्नूरमलै के लिए संस्कृति सेन्टर भी बस सेवा है। प्रत्येक आधे घन्टे में पोन्नूरमलै पर बसों का आवागमन होता रहता है। कुन्द कुन्द नगर, पोस्ट बैंगलोर की ओर से आने के लिए कृष्णगिरी-तिरूवन्नामुलै होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता वडवणक्कमबडी, है। मेलचिनामूर जैन मठ यहाँ से ६० कि.मी. तथा तिरूमलै मठ 70 कि.मी दूर है। जिला तिरूवन्नामलै-604 505 परिचय : इस तीर्थ की प्राचीनता ई. प्रथम शताब्दी के प्रारम्भ से होने का उल्लेख मिलता है। उस (तमिलनाडु) समय प्रसिद्ध आचार्य कल्प श्री कुन्दकुन्द आचार्य जैसे प्रकाण्ड विद्वान आचार्य ने इसे अपनी फोन : 04183-25033 2010_03 1F Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमिलनाडु जैन तीर्थ परिचायिका तपोभूमि बनाया। शास्त्रों में इस प्रदेश का मलयप्रदेश, पर्वत को नीलगिरि व पोन्नूर गाँव को हेमग्राम नाम से संबोधित किया है। आचार्य भगवन्त के प्राचीन चरण चिन्ह आज भी पर्वत पर मौजूद हैं। प्रतिवर्ष पौष शुक्ला दशमी को मेला लगता है। इस मन्दिर के अतिरिक्त श्री कुन्दकुन्दाचार्य के चरण चिन्ह दर्शनीय हैं। पहाड़ के प्राकृतिक, सुन्दर व शान्त वातावरण से मन मुग्ध हो जाता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है। भोजनशाला शीघ्र ही चालू होने वाली है। निकटवर्ती शहर वंदवासी में होटल आदि की सुविधा है। श्री मुनिगिरि तीर्थ मूलनायक : श्री कुंथुनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ कांचीपुरम से 15 कि.मी. दूर तालाब के किनारे बसे करकन्दे गाँव में स्थित पेढ़ी: श्री कुंथुनाथ भगवान जैन है। बस व कार मन्दिर तक जा सकती है। मन्दिर परिचय : ईसा की तीसरी शताब्दी से यह जैन मुनियों की तपोभूमि रहने का उल्लेख मिलता है। करकन्दे गाँव, इसी मन्दिर में शास्त्रार्थ हुआ बताया जाता है। स्मृति हेतु आचार्य श्री की मूर्ति इस मन्दिर डाकघर वेम्बाक्कम के अहाते के अर्न्तगत श्री अम्बिका देवी के मन्दिर के मण्डप में प्रतिष्ठित है। प्रतिवर्ष फाल्गुन जिला उत्तर आर्काड़ शुक्ला सप्तमी से चतुर्दशी तक मेला लगता है। वार्षिक मेले के उपरान्त तीन दिन तक (तमिलनाडु) तपोत्सव होता है। वर्तमान में इसी मन्दिर के अहाते में श्री महावीर भगवान, पार्श्वनाथ भगवान, आदिनाथ भगवान व श्री अम्बिका देवी के मन्दिर हैं। तालाब के दूसरी तरफ स्थित तिरूप्पणमूर गाँव में भी एक मन्दिर है। यहाँ प्रभु-प्रतिमाओं की कला विशिष्ट आकर्षक है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही सभी सुविधायुक्त धर्मशाला है। श्री तिरूमलै तीर्थ मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा। मार्गदर्शन : यह तीर्थ आरणी पोलूर मार्ग पर वडमादिमंगलम् स्टेशन से 5 कि.मी. दूरी पर है। पेढ़ी : श्री जैन मन्दिर, परिचय : भगवान श्री नेमिनाथ का यहाँ भी समवसरण रचा गया था। पाण्डवों का जब इस भूमि तिरूमलै गाँव, डाकघर में आगमन हुआ तब उन्होंने दर्शन हेतु इस प्रतिमा का निर्माण करवाया था। वर्तमान में यह वडमादिमंगलम्, क्षेत्र पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है। श्री ऋषभसेन, समन्तभद्र, वरदत्त, वादिराज, तहसील आरणी, जिला गजकेसरी आदि आचार्यों की यह तपो भूमि है। प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला छठ एवं मकर उत्तर आर्काडु संक्रान्ति के तृतीय दिवस पौष शुक्ला तृतीया को मेलों का आयोजन होता है। इसी पहाड़ (तमिलनाडु) पर श्री पार्श्वनाथ भगवान का एक और मन्दिर है। पहाड़ की चोटी पर श्री ऋषभसेन, समन्तचन्द्र, वरदत्त आचार्यों की चरणपादुकाएँ हैं। यहाँ तलेटी में व पहाड़ पर स्थित मन्दिरों में प्राचीन कलात्मक प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। पहाड़ पर कई जलकुण्ड व गुफाएँ है। ठहरने की व्यवस्था : वर्तमान में ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं हैं। 164 Jain Eucation International 2010_03 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका | तमिलनाडु मूलनायक : श्री महावीर भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। श्री जिनकांची तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ कांचीपुरम् रेल्वे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर तिरूप्पतिकुण्ड्रम में स्थित है। . स्टेशन से टैक्सी, ऑटो व तांगों की सुविधा है। मन्दिर तक कार व बस जा सकती हैं। पेढ़ी : कांचीपुरम् चेन्नई से 76 कि.मी. दूर है। चेन्नई से बस एवं टैक्सी सविधा उपलब्ध है। चेन्नई श्री त्रैलोक्यनाथ स्वामी जैन समुद्र तट से सायं पैसेन्जर ट्रेन कांचीपुरम् जाती है। मन्दिर तिरूरप्पतिकुण्ड्रम, परिचय : इस मन्दिर का निर्माण पल्लव नरेशों के काल में ई. सातवीं सदी में हुआ माना जाता पोस्टऑफिस सेविलिमेडु, है। इसके निकट ही श्री चन्द्रप्रभ भगवान का इससे भी प्राचीन मन्दिर अभी भी स्थित है। जिला कांचीपुरम् ई. सं. 1199 में चन्द्रकीर्ति गुरु का वास-स्थान यहाँ होने का उल्लेख है। भट्टारक श्री (तमिलनाडु) लक्ष्मीसेन स्वामीजी की गद्दी यहीं पर थी। इस मन्दिर को त्रैलोक्यनाथ भगवान का मन्दिर भी कहते हैं। इस मन्दिर के संगीत मण्डप में छत पर रंग-रंगीले प्राचीन चित्र अंकित हैं। श्री आदिनाथ भगवान के पाँच कल्याणक, समवसरण की रचना, श्री महावीर भगवान का जीवन कृत व श्री नेमिनाथ भगवान के पूर्व भवों के वृतांत मनमोहक वर्गों में चित्रित किये गये हैं जो बहुत ही आकर्षक लगते हैं। कांचीपुरम् मंदिरों की नगरी है। भारत की 7 मोक्षपुरियों में कांचीपुरम् अन्यतम है। यहाँ शिवलिंग के अनेकों सुन्दर, दर्शनीय मन्दिर हैं। यहाँ का कैलाश नाथ मन्दिर प्राचीनतम मन्दिर है। ठहरने की व्यवस्था : कांचीपुरम् में अनेकों होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री मल्लिनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। श्री मन्नारगुड़ी तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ नीडामंगलम से 12 कि.मी. दूर पमनी नदी के निकट बसे मुन्नारगुड़ी के हरिद्रानदी में स्थित है। निकट के स्टेशन कुंभकोणम् व तंजावर, जो तंजोर के नाम से भी जाना पेढ़ी : जाता है, यहां से क्रमश: 40 तथा 37 कि.मी. दूर है। स्टेशन से बस सुबिधा उपलब्ध हो जाती श्री मल्लिनाथ स्वामी है। यह तीर्थ मन्नारगुड़ी शहर के मध्य में स्थित है। शहर में ऑटो, रिक्शा आदि साधन मिल तीर्थंकर मन्दिर जाते है। दिन में बसों का आवागमन रहता है। कंभकोणम से चिदम्बरम 68 कि.मी. तथा हरिद्रानदी पश्चिमतट, चेन्नई 310 कि.मी. दूर है। तंजोर के लिए जाने वाली सभी ट्रेनें कुम्भकोणम् होते हुए गुजरती मन्नारगुड़ी-614 001 हैं। तंजोर कंभकोणम के मध्य प्रत्येक 10 मिनट पर बस सेवा उपलब्ध है। (तमिलनाडु) फोन : 0467-21185 परिचय : यह मन्दिर बारहवीं सदी में चौलन राजा के राज्यकाल में निर्मित हुआ माना जाता है। इस मन्दिर में श्री सरस्वती देवी, श्री पद्मावती देवी, श्री धर्मदेवी, श्री ज्वाला मालिनी आदि देवियों की प्रतिमाएँ अति ही प्रभावशाली हैं। प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला दशमी को ब्रह्म-महोत्सव का आयोजन होता है। प्रभु-प्रतिमा अति ही सुन्दर व आकर्षक है। यहां निकटवर्ती दर्शनीय स्थल तेखकुल्लम, राजगोपाल स्वामी मन्दिर तथा दीपंगुडी (निरूवा रूट के निकट) हैं। कुम्भकोणम् मन्दिरों का शहर है। यहाँ 18 मन्दिर हैं। तंजोर में श्री वृहदेश्वर मन्दिर अत्यंत सुन्दर और कलात्मक है। तंजोर की कांस्य-मूर्तियों की ख्याति दूर-दूर तक है। मन्दिर के निकट ही तंजोर का महल भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु सुविधा उपलब्ध नहीं है। पूर्व सूचना पर भोजन व्यवस्था की जा सकती है। कुम्भकोणम् में ठहरने के लिए अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं। तंजोर में भी ठहरने हेतु होटल, धर्मशालाओं की व्यवस्था है। | 165 2010_03 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमिलनाडु चेन्नई (मद्रास) श्री पुड़ल तीर्थ (चेन्नई) पेढ़ी : श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर (श्री पुड़लतीर्थ ) पोलाल, चेन्नई-67 फोन : 044-6418292 श्री चन्द्रप्रभुजी महाराज जैन जूना मन्दिर पेढ़ी : श्री चन्द्रप्रभु महाराज जैन जुना मन्दिर ट्रस्ट 345, मिन्ट स्ट्रीट, साहुकार पेठ, चेन्नई-79 फोन : 044-5387311 संपर्क सूत्र : श्री एस. मोहनचंद जी ढठा, अध्यक्ष श्री रिखबचंद समदड़िया, मंत्री 166 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका ब्रिटिश काल में स्थापित यह नगर दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। देश के सभी प्रमुख स्थलों से वायु, रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा यह महानगर सम्पर्क में है। शहर में हर प्रकार के यातायात के साधन उपलब्ध हैं। शहर के भ्रमण के लिए टूरिज्म विभाग द्वारा कण्डकटैड टूरों की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। विश्व का विशालतम समुद्र तट यात्रियों के विशेष आकर्षण का केन्द्र है। इस समुद्र तट मैरिना पर भ्रमण मन को आनन्द विभोर कर देता है । शहर से 3 कि.मी. दूर मैरीना-कपालेश्वर मार्ग में पार्थसारथी मन्दिर अपनी सुन्दर कला के लिए प्रसिद्ध है। शहर से 30 कि.मी. दूर अन्ना जुलाजिकल पार्क भी अति दर्शनीय है। यहाँ लायन सफारी भी है। शहर में अनेकों जैन मन्दिर अत्यंत कलात्मक और दर्शनीय हैं। मूलनायक : श्री आदिश्वर भगवान । मार्गदर्शन : यह तीर्थ चेन्नई - कोलकाता मार्ग पर पुडल गांव में चेन्नई से लगभग 15 कि.मी. दूरी पर है। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सभी प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। देश के पांच महानगरों में एक चेन्नई है । देश के हर प्रान्त से यह रेलमार्ग, सड़कमार्ग एवं वायुमार्ग द्वारा संपर्क में है । परिचय : कहा जाता है यह तीर्थ 2500 वर्ष प्राचीन है। एक ही पाषाण से निर्मित इस प्रतिमा चामरधारी इन्द्र, अशोक वृक्ष, छत्र आदि होने से यह अति मनोरम लगती है। केशरियाजी तीर्थ की प्रतिमा के समान प्रभावी एवं सौम्य होने से इस तीर्थ को केशरवाड़ी भी कहते हैं । मन्दिर के ऊपरी खण्ड में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की गुलाबी प्रतिमा अत्यंत मनमोहक है। यहां पद्मावती देवी की प्रतिमा भी विराजमान है। निकट ही एक और भव्य मन्दिर का निर्माण चल रहा है । ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के ठहरने हेतु धर्मशाला उपलब्ध है। भोजनशाला व आयम्बिलशाला की भी व्यवस्था उपलब्ध है। मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभु भगवान । मार्गदर्शन : चेन्नई महानगर में, साहुकार पेट क्षेत्र में बना, यह प्रथम जैन मन्दिर है । परिचय : मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम सं 1972 मिनी माघ सुदी 13 को आचार्य श्री जिनसिद्ध सूरिजी की शुभ निश्रा में सम्पन्न हुई। मन्दिर के संस्थापक श्री सुखलाल जी समदड़िया/ श्री जतनलाल जी डागा, श्री लालचंद जी ढढा तथा श्री चम्पालाल जी सावनसुखा हैं। यहां श्री गोड़ी पार्श्वनाथ, श्री संभवनाथ जी एवं श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभु की श्वेतवर्णीय प्राचीन एवं चमत्कारिक प्रतिमाएं विराजित हैं। प्रथम मंजिल में विशाल श्री सिद्धाचल जी का पट एवं पेढ़ी है। एक अन्य मन्दिर श्री सुमतिनाथ भगवान जैन श्वेताम्बर मन्दिर दादावाड़ी के नाम से है जो विशाल दादावाड़ी के प्रांगण में हैं । यहाँ सभी प्रकार की सुविधाएं की गयी हैं जिससे यात्री बहुतायत में यहां दर्शनार्थ पधारते हैं। Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभु स्वामी। मार्गदर्शन : यह मंदिर साहुकारपेठ में मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई में स्थित है। परिचय : श्री चन्द्रप्रभु स्वामी की मूलनायक के रूप में संवत् 1982 मि. जेठ सुदि 13 को इस मंदिरजी में प्रतिष्ठा हुई थी। द्वितीय मंजिल पर श्री पार्श्वनाथ प्रभु को सं. 1985 में विराजमान किया गया था। संघ ने यहाँ शिखरबद्ध जिनालय बनाने का निर्णय लिया एवं एक भव्य कलात्मक देव विमान तुल्य अति ही रमणीय मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया। इस नये मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा प. पू. आचार्य श्रीमद् विजयकलापूर्णसूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रा में सं. 2050 मिति माघ शुक्ला तेरस, दि. 24.2.1994 के शुभ दिन सम्पन्न हुई। इस मंदिरजी के मूलनायक श्री चन्द्रप्रभुस्वामी श्वेत वर्णीय 51 इंच के पद्मासनस्थ अवस्था में है। मूलनायक भगवान के साथ ही शांतिनाथ भगवान एवं आदिनाथ भगवान महावीरस्वामी एवं पार्श्वनाथ भगवान विराजमान हैं। मूल गम्भारे के बाहर श्री मुनिसुव्रत स्वामी एवं वासुपूज्य स्वामी तथा श्री मल्लीनाथ एवं श्री सीमंधरस्वामी विराजमान हैं। रंगमण्डप में ज्वालादेवी एवं श्री पद्मावतीदेवी, श्री विजययक्ष एवं श्री मणिभद्रवीर विराजमान है। प्रथम मंजिल पर मूलनायक स्वरूप श्वेतवर्णीय श्री चन्द्रप्रभ स्वामी, श्री अजितनाथजी, श्री चन्द्रप्रभुस्वामी तथा महावीरस्वामी, श्री सुपार्श्वनाथजी, श्री नेमिनाथजी, विराजमान है। गम्भारे के बाहर श्री शीतलनाथजी एवं श्री गौतमस्वामी जी, श्री नेमनाथजी एवं श्री सुधर्मास्वामीजी विराजमान हैं। दूसरे मंजिल पर श्वेतवर्णीय श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान, श्री जीरावला पार्श्वनाथ एवं श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ, श्री गोडी पार्श्वनाथ एवं श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ विराजमान | तमिलनाडु श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मन्दिर ही श्री चन्द्रप्रभ जैन नया मंदिरजी ट्रस्ट 142, मिन्ट स्ट्रीट, साहुकारपेठ, चेन्नई 79 फोन : 582628 सम्पर्क सूत्र : श्री जी. पुखराजजी जैन (अध्यक्ष) श्री गोकुलचन्दजी जैन (सेक्रेटरी) गम्भारे के बाहर श्री पार्श्वयक्ष एवं श्री पद्मावती देवी विराजमान हैं। इस मंदिर पेढ़ी से सम्बन्धित उपाश्रय श्री जैन आराधना भवन नं. 351, मिन्ट स्ट्रीट में बना हुआ है। इस भवन के चौथे मंजिल पर यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था है जिसमें 6 कमरे एवं एक हॉल है। महिलाओं का उपाश्रय मंदिरजी के बाजु में चन्द्रप्रभु स्वामी पेढ़ी के ऊपर है। एवं इसी संस्था के अर्न्तगत सुव्यवस्थित आयम्बिल खाता भी चालू है। धार्मिक पाठशाला श्री जैन तत्व ज्ञान केन्द्र में चलती है। _ 2010_03 www.jainelibrar167 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमिलनाडु जैन तीर्थ परिचायिका श्री महावीर स्वामी जैन मूलनायक : श्री महावीर स्वामी। मंदिर (चिन्ताद्रिपेट) मार्गदर्शन : चेन्नई शहर के चिन्ताद्रिपेट क्षेत्र में यह मंदिर बना हुआ है। पेढ़ी: परिचय : भवन के दूसरे माले में मूलनायक श्री महावीरस्वामी विराजमान है। इनके दोनों में श्री महावीर स्वामी जैन मंदिर श्री धर्मनाथ जी एवं श्री शांतिनाथ जी विराजमान है। 61, मंगपति नायक्कन स्ट्रीट, प्रथम तल पर गम्भारे में 19 इंच के श्वेत वर्ण के श्री सीमन्धरस्वामी विराजमान है। चिन्ताद्रिपेट, चेन्नई-2 सम्पर्क सूत्र : मंदिरजी की प्रतिष्ठा पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रा श्री एम. गौतमचन्दजी वैद में वि. सं. 2039 मिति श्रावण शुक्ला 14 दिनांक 17.8.1978 के शुभ दिन फोन : 8535699 सम्पन्न हुई। श्री विजय मूलनायक : श्री विजय शांतिसूरीश्वर। शांतिसूरीश्वर जी मार्गदर्शन : चेन्नई शहर के चिन्ताद्रिपेट क्षेत्र में यह गुरु मंदिर बनाया गया है। गुरु मंदिर परिचय : श्री विजय शांतिसूरीश्वर जी की श्वेत वर्णीय लगभग 4 फीट की प्रतिमाजी पेढ़ी: विराजमान है। मंडप में दादागुरु श्री धर्मविजय जी म. सा. के चरण पादुका तथा श्री श्री विजय शांतिसूरीश्वरजी | दादागुरु श्री तीर्थविजयजी म. सा. के चरणपादुका स्थापित किये गये है। श्री पद्मावती गुरु मंदिर, 68, देवी एवं श्री सरस्वती देवी की प्रतिमा भी स्थापित है। अरुणाचल नायक्कन स्ट्रीट, चिन्ताद्रिपेट, चेन्नई-2 फोन : 8551032 सम्पर्क सूत्र : श्री मिलापचन्दजी पांड़िया फोन : 5352728, 586792 चेन्नई के अन्य दर्शनीय मन्दिर 1. श्री आदिनाथ जैन मंदिर 62, तोलसिंगम स्ट्रीट, पेरम्बुर, चेन्नई-600 011 फोन : 5515356 2. श्री आदिनाथ जैन मंदिर श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ संघ, 18, धर्मराजा कोईल स्ट्रीट, सैदापेट, चेन्नई-600015 3. श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर 3, बी. वी. नायक्कन स्ट्रीट ट्रिप्लीकेन, चेन्नई-600 005 4. श्री वेपेरी श्वे. मूर्तिपूजक जैन संघ 59, ई. वी. के. सम्पत रोड, वेपेरी, चेन्नई-7 फोन : 587580 5. श्री संभवनाथ जैन मंदिर ई. वी. के. सम्पत रोड, महावीर कालोनी, चेन्नई-7 6. श्री संभवनाथ जैन मंदिर ट्रस्ट 33, ई. एच. रोड, व्यासरपाड़ी, चेन्नई-600 039 7. श्री संभवनाथ जैन मंदिर 11, सन्नदी स्ट्रीट, वडपलनी, चेन्नई-600 026 फोन : 4803831 8. श्री जिनदत्तसूरी जिनकुशलसूरी जैन ट्रस्ट 97, कोन्नुर हाई रोड, चेन्नई- 600 012 फोन : 6446293 - - 168 Jucation International 2010_03 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका 9. श्री सुमतिनाथ जैन मंदिर 82, कोरल मर्चेन्ट स्ट्रीट, मन्नडी, चेन्नई-600001 10. श्री सुमतिनाथ भगवान जैन श्वे. जिनालय 56 / 1, मन्नारस्वामी कोईल स्ट्रीट, रायपुरम, चेन्नई-600013 11. श्री सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर, 43, चेल्ल पिल्लैयार कोइल स्ट्रीट, रायपेटा, चेन्नई-600014 12. श्री सुपार्श्वनाथ जैन नया मंदिर 4, अम्मिअप्पन स्ट्रीट, रायपेटा, चेन्नई-600014 13. श्री चन्द्रप्रभु जैन मंदिर श्री चूलै वेपेरी जैन संघ 38, वेंकटाचलम मुदली स्ट्रीट, चेन्नई- 112 फोन : 562436 15. श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिरजी ट्रस्ट 142 मिन्ट स्ट्रीट, साहुकारपेठ, चेन्नई 79 फोन : 582628 16. श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी जैन ट्रस्ट 9, एकाम्बरेश्वर स्ट्रीट, चेन्नई-600003 फोन : 5356312, 5356321 17. श्री वासुपूज्य स्वामी जैन श्वेताम्बर संघ 69/1, स्वामी रेड्डी स्ट्रीट, एग्मोर, चेन्नई-600008 18. श्री वासुपूज्य जिनालय अरिहन्त अपार्टमेन्ट, चेन्नई-600084 फोन 6412379 19. श्री वासुपूज्यस्वामी जैन मंदिर 49, कचेरी रोड, मैलापुर, चेन्नई-600004 फोन 4940561 20. श्री अम्बत्तूर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ पद्मनाभ नायुडु स्ट्रीट, अम्बतूर, चेन्नई - 53 21. श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ दृस्ट 53, तिरूमलै राजपुरम, आवड़ी, चेन्नई - 54 22. श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ ट्रस्ट 26. एकाम्बर दफेदार स्ट्रीट, आलन्दूर, चेन्नई-600016 23. श्री विमलनाथ जैन मंदिर वासुपूज्य अपार्टमेन्ट, हंटर्स रोड, चेन्नई-600 112 24. श्री धर्मनाथ जैन मंदिर 84 / 85, अम्मन कोईल स्ट्रीट, चेन्नई-600079 25. श्री शांतिनाथ जैन मंदिर 33, जी. एन. चेट्टी स्ट्रीट, टी. नगर, चेन्नई-600017 फोन : 8271779 2010_03 तमिलनाडु 26. श्री शांतिनाथजी जैन श्वेताम्बर मंदिर 10, बेरेक्स गेट रोड, पट्टालम, चेन्नई - 12 फोन 6423759 : 27. श्री शांतिनाथ भगवान जैन श्वेताम्बर मंदिर 404, टी. एच. रोड, पुरानी धोबीपेट, चेन्नई-600021 फोन: 5951004 पी.पी. 28. श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन मंदिर कारम्पाकम, पोरूर, चेन्नई-600116 फोन 4769142 29. श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन मंदिर 71, टी. एच. रोड, कालाड़ीपेट, चेन्नई-600021 फोन: 5951004 पी.पी. 30. श्री मुनिसुव्रतस्वामी श्वेताम्बर जैन मंदिर 1, श्रीनिवास अय्यर स्ट्रीट, नेहरू बाजार, चेन्नई-1 31. श्री रूपचन्द छबीलदास चेरीटेबल ट्रस्ट 12, वेस्ट मादा चर्च रोड, रायपुरम, चेन्नई-600 013 फोन: 5952489 32. श्री गुजराती जैनवाड़ी जैन मंदिर, - 99 मिन्ट स्ट्रीट, साहुकारपेट, चेन्नई 79 फोन : 5175251 33. श्री जैन प्रार्थना मंदिर ट्रस्ट 16, वेपेरी हाई रोड, चेन्नई - 7 34. श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ 65, ताना स्ट्रीट, पुरसवाकम, चेन्नई 7 फोन : 6416207 35. श्री पार्श्वनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर 8, जगन्नादान स्ट्रीट, एल्डाम्स रोड, तेनाम्पेठ, चेन्नई-600018 36. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर 1/26, मेइन बाजार रोड, केलम्बाक्कम 603103 फोन : 91574105 37. श्री महावीरस्वामी जैन मंदिर 61, मंगपति नायकन स्ट्रीट, चिन्ताद्रिपेट, चेन्नई-600002 38. श्री जैन आराधना भवन 351, मिन्ट स्ट्रीट, साहुकारपेट, चेन्नई-600079 फोन 568917 : 39. श्री महावीर जिनालय 1, बारनाबी रोड, देवदर्शन, अपार्टमेन्ट, कीलपाक, चेन्नई-600010 169 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तमिलनाडु 40. श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर कोण्डालय्यर स्ट्रीट, कोण्डितोप, चेन्नई-600 079 41. श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर 34, सुब्रमणियम स्ट्रीट, चेन्नई-600 079 42. श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर 14, चन्द्रप्पा मुदली स्ट्रीट, चेन्नई-600 079 जैन तीर्थ परिचायिका 43. श्री डी. राणुलालजी लोढ़ा 51, वैद्यनाथ मुदली स्ट्रीट, चेन्नई-600 079 फोन : 516833 44. श्री विजय शांतिसूरीश्वरजी गुरु मंदिर 68, अरूणाचल नायक्कन स्ट्रीट, चिन्ताद्रिपेट, चेन्नई-2 फोन : 8551032 1905 चेन्नई के भवन, स्थानक, उपाश्रय की नामवली 1. श्री सी. यू. शाह भवन 78/79, रिथरडन रोड, वेपेरी, चेन्नई-7 फोन : 5322077 2. श्री चूलाल जैन स्थानक 62, मेडोक्स स्ट्रीट, चेन्नई-112 3. श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला ____34, सुब्रहमनियम मुदाली स्ट्रीट, चेन्नई-1 4. श्री गुजराती जैनवाडी 99, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 587525 5. श्री जैन आराधना भवन 351, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 586715, 568917 6. श्री जैन भवन पोर्टगैस चर्च लेन, नेहरु बाजार, चेन्नई-1 फोन : 5244099, 5248872 7. श्री जैन भवन 113, कलवना स्ट्रीट, चिन्ताद्रिपेट, चेन्नई-2 8. श्री जैन भवन 35, एकाम्बरेवसर, अग्रहरम, चेन्नई-3 फोन : 5359230, 5355892 9. श्री जैन भवन 126, कचहरी रोड, मइलापोर, चेन्नई-4 फोन : 75208 10. श्री जैन भवन 33, पुलियनथोपे हाइ रोड, चेन्नई-12 11. श्री जैन भवन 108, सन्नाधी स्ट्रीट, कोडम्बक्कम, चेन्नई-24 12. श्री जैन भवन वेदापलानी, चेन्नई-26 13. श्री जैन महिला स्थानक 21, पेरिया नाइकेन स्ट्रीट, साहकारपेट, चेन्नई-79 14. श्री जैन स्थानक 348, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 581549 15. श्री जैन स्थानक भवन थाउजेन्ड लाइट, चेन्नई-2 16. श्री जैन स्थानक भवन 125, बाजार रोड, मइलापोर, चेन्नई-4 17. श्री जैन स्थानक भवन 225, बिग स्ट्रीट, त्रिप्लिकेन, चेन्नई-5 18. श्री जैन स्थानक भवन मदावरम हाई रोड, 20, कनडप्पा मुदाली स्ट्रीट, चेन्नई-60 19. श्री जैन स्थानक (मम्बालम) ट्रस्ट 46, बुरकिट रोड, टी. नगर, चेन्नई-17 20. श्री जैन केशरवाड़ी पजल, रैधिल्स, चेन्नई-66 फोन : 6418292 21. श्री खन्डेलवाल दिगम्बर जैन भवन 11, कोनडालियार स्ट्रीट, कोन्डीथोपे, चेन्नई-79 22. श्री जैन क्रिया भवन 142, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 582628 23. श्री जिनदत्तसूरि जैन धर्मशाला 85, अम्मान कोइल स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 5247875 24. श्री जिनेन्द्र श्रीपाल भवन 136, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 5261663 170 2010_03 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका 25. श्री कुटछी जैन समाज 13, वेन्कट्रोयन स्ट्रीट, चेन्नई-18 फोन : 5323249 26. श्री महावीर जैन भवन एण्ड श्री जिन कुशल भवन 370, कोन्नुर हाई रोड, चेन्नई-23 फोन : 6446293 27. श्री राजस्थानी जैन समाज भवन 66, त्याग्यारया रोड, पोन्डी बाजार, चेन्नई-17 फोन : 4343172 28. श्री राजेन्द्र भवन 19, रवेनियर स्ट्रीट, चेन्नई-3 फोन : 5353612, 5256321 29. श्री रूपचन्द छबीलदास जैन ट्रस्ट 12, मडा चर्च स्ट्रीट, रोयापुरम, चेन्नई-13 फोन : 5952488 30. श्री रूपचन्द सुराना जैन धर्मशाला 111, औडियाप्पन नइकेन स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 5228077 31. श्री एस. एस. जैन बोर्डिंग 3, मेंदाली रोड, टी. नगर, चेन्नई-17 फोन : 8351490 32. श्री एस. एस. जैन चैरिटेबल ट्रस्ट 8, पुलिस स्टेशन रोड, पल्लावरम, चेन्नई-43 33. श्री एस. एस. जैन संघ 91, मार्केट, स्ट्रीट, पैरम्बुर, चेन्नई-11 फोन : 5377555 तमिलनाडु 34. श्री एस. एस. जैन संघ 76, जे. जे. खान, रोड, मिरसाहिबपेट, चेन्नई-14 फोन : 8531701 35. श्री एस. एस. जैन संघ 708, ट्रंक रोड, पूनमाली, चेन्नई-56 फोन : 6273165 36. श्री सधारण भवन 346, मिन्ट स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 587311 37. श्री समता भवन 168, जी. ए. रोड, टोंडियारपेट, चेन्नई-81 फोन : 5960706 38. श्री समदरिया कुरपाचन्द प्रकाशचन्द जैन उपाश्रय 38, वीरप्पन स्ट्रीट, चेन्नई-79 39. श्री सेठ कालूराम रतनलाल मालू जैन भवन 30, वेंकटाचल मुदाली स्ट्रीट, चेन्नई-112 फोन : 562436 40. श्री तेरापंथी भवन 14, टन्डावरायन मुदाली स्ट्रीट, चेन्नई-21 फोन : 5950102, 5951326 41. श्री तेरापंथी भवन 34, मनगप्पन स्ट्रीट, चेन्नई-79 फोन : 5220880 श्री वर्धमान एस. एस. जैन संघ 18, सन्नाधी सुब्रहमनयम स्ट्रीट, आलंदूर, चेन्नई-16 फोन : 2341796 42. 2010_03 www.jainelibrary pd Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आन्ध्र प्रदेश 173 173 173 174 174 जिला गुन्टूर 1. श्री अमरावती तीर्थ 2. श्री ह्रींकार तीर्थ जिला कर्नूल 1. श्री पार्श्वमणी तीर्थ जिला कृष्णा 1. गुड़िवाड़ा तीर्थ जिला नल्लगोन्डा 1. श्री कुलपाकजी तीर्थ जिला नेल्लोर ____ 1. श्री राजेन्द्र नगर तीर्थ 2. श्री काकटूर तीर्थ जिला पश्चिमी गोदावरी 1. पेदमीरम तीर्थ जिला पूर्व गोदावरी 1. श्री गुम्मिलेरू तीर्थ 2. श्री तिरूपति बालाजी 174 174 175 176 176 2010_03 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न तीर्थ परिचायिका आन्ध्र प्रदेश मूलनायक : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान। जिला गुन्टूर मार्गदर्शन : यह तीर्थ गुन्टूर रेल्वे स्टेशन से 32 कि.मी. दूर स्थित है। विजयवाड़ा वाया गुन्टूर की 64 कि.मी. दूर है। गुन्टूर से बस, टैक्सी उपलब्ध है। हैदराबाद से यह 33 कि.मी. दूर है। यह तीर्थ अमरावती में कृष्णा नदी के दक्षिण तट पर शान्त, सुरम्य वातावरण में स्थित है। पेढी : परिचय : आन्ध्र प्रदेश में नदी तट पर बसा प्राचीन तीर्थ यही एक मात्र है। प्रति वर्ष पोष कृष्णा श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ दशमी को मेला लगता है। प्रभु प्रतिमा की कला सुन्दर व निराले ढंग की है। नदी तट पर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी डाकघर अमरावती, स्थित इस तीर्थ का प्राकृतिक दृश्य दिव्य लोक सा प्रतीत होता है। गुन्टूर में जिनालय, जिला गुन्टूर गुरू मंदिर आदि दर्शनीय है। गुंटूर रुककर आना श्रेयस्कर है। यहाँ का शिव मन्दिर भी (आन्ध्र प्रदेश) दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला व भोजनशाला उपलब्ध है। अमरावती में ठहरने हेतु कई होटल आदि भी हैं। मूलनायक : श्री प्रमाण पार्श्वनाथ प्रभु। श्री ह्रींकार तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान विजयवाड़ा-गुंटूर मार्ग पर नागार्जुना यूनिवर्सिटी के सामने है। यहाँ पेढ़ी : से पेदमीरम तीर्थ लगभग 135 कि.मी. है। श्री ह्रींकारमय चिन्तामणि परिचय : इस नवनिर्मित तीर्थ पर 108 फीट ऊँचा शिखर बन पाया है। रंगमंडपादि का काम पार्श्वनाथ, चालू है। 24 जिन युक्त ह्रींकार जो 21 फीट ऊँचा विराजमान है। मध्य भाग में कमल शोभित जैन तीर्थ, नागार्जुन नगर, गादी पर 65 इंच प्रमाण पार्श्वनाथ प्रभु विराजमान हैं । वातावरण सुन्दर है। श्री भद्रानंद विजय जिला गुंटूर-522 510 जी गणी के उपदेश से इस तीर्थ का निर्माण हुआ है। (आन्ध्र प्रदेश) फोन : 0863-293213 ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला सर्व सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : तीर्थाधिपति श्री पार्श्वनाथ प्रभु। जिला कर्नूल मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान कर्नूल जिले के आदोनी नगर से 19 कि.मी. की दूरी पर पेदतुम्बलम भी गाँव में निर्माण हुआ है। परिचय : तीर्थाधिपति श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा कुएँ के उत्खनन के समय भूगर्भ से पेढ़ी : ___ प्राप्त हुई है। प्रतिमाजी की कला अति सुन्दर है। दादावाड़ी का काम चालू है। श्री पार्श्वमणि तीर्थ, पोस्ट पेदतुम्बलम, ठहरने की व्यवस्था : धर्मशाला, भोजनशाला आदि सर्व सुविधाएँ उपलब्ध हैं। वाया आदोनी जिला कर्नूल-518301 (आन्ध्र प्रदेश) फोन : 08512-57432 2010_03 173 www.jainelibrey.org Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आन्ध्र प्रदेश | जैन तीर्थ परिचायिका जिला कष्णा मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। 5 मार्गदर्शन : यह तीर्थ गुड़िवाड़ा रेल्वे स्टेशन से 1.5 कि.मी. दूर गुड़िवाड़ा गाँव के मध्य स्थित श्री गुड़िवाड़ा तीर्थ है, यहाँ से रिक्शा, टैक्सी आदि का साधन है। भीमावरम (पेदमीरम) से यह 68 कि.मी. दूरी पर है। विजयवाड़ा-भीमावरम मार्ग पर विजयवाड़ा से 43 कि.मी. दूर है। पेढ़ी : परिचय : प्रतिमा लगभग आठवीं सदी की मानी जाती है। प्रतिमा की कलात्मकता व प्राचीनता श्री श्वेताम्बर जैन पार्श्वनाथ । ही यहाँ की विशिष्टता है। प्रतिमा के दर्शन करते ही ऐसा लगता है मानो श्री धरणेन्द्र देव मन्दिर साक्षात् प्रकट होकर प्रभु पर अपने फण फैलाकर छत्र कर रहे हैं। इसी मन्दिर में एक और जैन टेम्पल स्ट्रीट श्री पार्श्वप्रभु की प्राचीन प्रतिमा है, जिसकी कला भी विशिष्ट है। निकट ही शिव मंदिर पोस्ट गुड़िवाड़ा, भी है। 90 वर्ष पूर्व शिव मंदिर के प्रांगण से प्रभु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी। जिला कृष्णा-521 301 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए धर्मशाला है, पूर्व सूचना पर भोजन की व्यवस्था हो जाती है। फोन : (08674) 45488, 44291 नोट : गुडिवाडा स्टेशन पर 7055-7056 नरसापुर एक्स; 7479-7480 नितरूपति-हौरा एक्स; 7615-7616 विशाखा एक्स; तथा 7043-7044 सरकार एक्स; गाड़ियाँ रूकती हैं। जिला नल्लगोन्डा मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। - मार्गदर्शन : यह तीर्थ आलेर स्टेशन से 6 कि.मी. दूर कुलपाक गाँव के बाहर विशाल परकोटे श्री कुलपाकजी __ के बीच स्थित है। यह हैदराबाद-वारंगल मार्ग पर हैदराबाद से 80 कि.मी. दूर है। स्टेशन तीर्थ से तीर्थ तक जाने के लिए सभी सुविधाएँ हैं। मन्दिर तक पक्की सड़क है। आखिर तक बस व कार जा सकती है। यह तीर्थ पेदमीरम से 390 कि.मी. दर है। पेढ़ी: परिचय : श्री आदीश्वर प्रभु की प्रतिमा श्री माणिक्य स्वामी के नाम से प्रख्यात है। प्रतिमा अति श्री जैन तीर्थ कुलपाक प्राचीन है। यहाँ फिरोजी नगीने से बनी महावीर स्वामी की प्रतिमा सुन्दर व वर्णनातीत है। वाया आलेर, यहाँ के अधिष्ठायक देव चमत्कारिक है। यहाँ कुल 15 प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। यहाँ के शिखर जिला नल्लगोन्डा-508 101 की कला भी निराले ढंग की है। आंध्र प्रदेश का यह प्राचीनतम एवं प्रथम तीर्थ है। फोन : 08685-81696 ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए मन्दिर के अहाते में ही सुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है, भोजनशाला की व्यवस्था है। नोट : आलेर स्टेशन पर 7047-7048 गौमती एक्स; 7001-7002 गोलकोडा एक्स; 7021-22 दक्षिण एक्स.; 7405-7406 कृष्णा एक्स. गाड़ियाँ रूकती हैं। जिला नेल्लोर श्री राजेन्द्र नगर तीर्थ पेढ़ी: श्री राजेन्द्रसूरी कीर्ति मंदिर ट्रस्ट, श्री राजेन्द्र नगर तीर्थ, पोस्ट इंदुकूरीपेटा (देविसपेटा), जिला नेल्लोर-524 314 फोन : (0861) 35447, 35257 मूलनायक : श्री सुमतिनाथ भगवान। मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान नेल्लोर नगर से 10 कि.मी. दूर इंदुकूरी पेटा में स्थित है। यहाँ से पेदमीरम तीर्थ लगभग 375 कि.मी. है। परिचय : तीर्थाधिपति श्री सुमतिनाथ भगवान विराजमान हैं। श्री राजेन्द्र सूरिश्वरजी की खड़ी मूर्ति गुरुमंदिर में स्थापित की गई है। वातावरण सुन्दर है। श्री जयंतसेन सूरिश्वरजी के उपदेश से इस तीर्थ का निर्माण हुआ है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ धर्मशाला व भोजनशाला आदि बने हैं तथा सर्व सुविधाएँ उपलब्ध 174 2010_03 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थ परिचायिका आन्ध्र प्रदेश मूलनायक: भगवान महावीर। श्री काकुटूर तीर्थ मार्गदर्शन : इस तीर्थ का निर्माण नेल्लोर-चेन्नई मार्ग पर नेल्लोर नगर से लगभग 10 कि.मी. दूरी पेढ़ी : पर हुआ है। चेन्नई से यह तीर्थ 162 कि.मी. दूर है। तिरुपति से इसकी दूरी 130 कि.मी. 24 तीर्थंकर तीर्थ धाम ट्रस्ट, है। यहाँ से पेदमीरम तीर्थ लगभग 373 कि.मी. है। पोस्ट काकुटूर, परिचय : भगवान महावीर की 51 इंच की चतुर्मुख प्रतिमाओं व अन्य 23 तीर्थंकरों युक्त जिला नेल्लोर-524 320 समवसरण गगनचुंबी जिनालय का निर्माण हुआ है। रमणीय स्थान है। (आन्ध्र प्रदेश) फोन : 0861-38341 ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला तथा सर्व सुविधा उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान। जिला पश्चिम मार्गदर्शन : विजयवाड़ा से 120 कि.मी. दूर भीमावरम से 5 कि.मी. दूर पेदमीरम गाँव में यह गोदावरी तीर्थ स्थित है। निकट का रेल्वे स्टेशन भीमावरम टाऊन व भीमावरम जंक्शन 5 कि.मी. दूरी पर पर है। वहाँ से टैक्सी, बस, ऑटो, रिक्शा आदि सभी साधन उपलब्ध हैं । भीमावरम से प्रातः 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक बस सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से गुड़िवाड़ा तीर्थ 65 कि.मी. पेढी. गुम्भीलेरू तीर्थ 75 कि.मी. तथा राजमहेन्द्री 70 कि.मी. दूरी पर है। विजयवाड़ा पर सभी श्री आदिनाथ जैन श्वेताम्बर प्रमुख ट्रेनें रुकती हैं। यहाँ उतरकर बस या ट्रेन द्वारा भीमावरम पहुँचा जा सकता है। मंदिर तीर्थ ट्रस्ट तक कार, बस जा सकती है। पेदमीरम वाया भीमावरम 534 204 परिचय : यहाँ पर स्थित मूलनायक जी की प्रतिमा 2500 वर्ष प्राचीन है। यह प्रतिमा भूगर्भ से जिला पश्चिम गोदावरी 130 वर्ष पूर्व प्राप्त हुई। 80 वर्ष पूर्व यहाँ मुनि श्री नंदनविजय जी की निश्रा में मन्दिर बनाकर (आ पटेश) मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया। प्रतिमा पर लांछन (चिह्न) न होने के कारण विमलनाथ जी फोन : 08816-23632 की प्रतिमा मानी गयी। 1980 में अनुभवी श्रावकों एवं श्री भद्रानंद विजय जी म. के मतानुसार यहाँ के तीर्थाधिपति का नाम आदिनाथ स्थापित किया गया। प्रतिमा की कला अत्यन्त आकर्षक है। यह प्रतिमा अत्यन्त चमत्कारिक है। पूजा का समय प्रातः 9 बजे से 4 बजे तक है। यहाँ दादावाडी का कार्य प्रगति पर है। भीमावरम में गृह मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था: तीर्थ क्षेत्र पर ही 25 कमरों, 3 बड़े हॉल एवं 3 छोटे हॉल युक्त धर्मशाला है। यहाँ भोजनशाला की भी व्यवस्था है। नोट : भीमावरम टाऊन रेल स्टेशन पर रुकने वाली गाडियां। 7043, 7044 सरकार, 7479, ___7480, तिरुपति-हौरा, 7615, 7616 विशाखा, 7055, 7056 । _ 2010_03 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आन्ध्र प्रदेश जिला पूर्व गोदावरी श्री गुम्मिलेरू तीर्थ पेढ़ी : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन तीर्थ, पोस्ट गुम्मिलेरू वाया मंडपेटा, जिला पूर्व गोदावरी-533 232 फोन : 08855-34037 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान । मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान पूर्व गोदावरी जिले के मंडपेटा से लगभग 4 कि.मी. दूर गुम्मिलेरू गाँव में है। यह स्थान रावुलपालेम से 13 कि.मी. काकिनाडा के तरफ है। राजमन्द्री से लगभग 35 कि.मी. दूरी पर है। यहाँ से पेदमीरम तीर्थ लगभग 80 कि.मी. है। परिचय : तीर्थ का निर्माण कार्य चालू है। आज से लगभग तीस साल पहले रोड चौड़ा करते वक्त भूगर्भ से प्राप्त हुई यह प्रतिमा श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की है। वर्तमान में यह प्रतिमा एक कमरे में विराजमान है। बाजु में नाकोड़ा भैरूजी की मूर्ति भी विराजमान की गयी है। भूगर्भ से प्राप्त प्रतिमा के अलावा और अनेक नई प्रतिमाएँ स्थापित की जायेंगी। इस तीर्थ को दक्षिण भारत का नाकोड़ा तीर्थ स्वरूप बनाने की योजना है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला आदि सर्व सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्री तिरूपति बालाजी आन्ध्र प्रदेश का यह तीर्थ स्थल भारतवर्ष का सुप्रसिद्ध तीर्थ है। देश-विदेश से पूरे वर्ष श्रद्धालु भक्तगण यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। यह चेन्नई से 144 कि.मी., गुन्टूर से 64 कि.मी., बैंगलोर से 228 कि.मी. दूर है। चितूर जिले में सात पहाड़ियों से घिरे तिरूमलाई (तिरूपति जी) के लिए चेन्नई में सुबह 5.30 से रात्रि 8.30 तक बस सेवा उपलब्ध है। तिरूपति से तिरूमलाई मन्दिर तीर्थ 22 कि.मी. पहाड़ी मार्ग है। ठहरने के लिए मन्दिर के निकट ही मन्दिर कमेटी का गैस्ट हाऊस धर्मशालाएँ, होटल, काटेज आदि अनेकों प्रकार की सुविधाएं हैं। मन्दिर कमेटी के डायनिंग हॉल में भोजन भी मिलता है। तिरूपति में एक दिन ठहरकर 11 कि.मी. दूर विजय नगर के राजाओं का दुर्ग चंद्रागिरि में देखा जा सकता है। वहाँ मन्दिर भी हैं। चेन्नई -तिरूपति मार्ग पर चेन्नई से 90 कि.मी. दूर फोनाई जल प्रपात दर्शनीय है। नारायणवनम में 2 कि.मी. अंदर निर्मल स्थान पर यह दर्शनीय जल-प्रपात तिरूपति आतेजाते इसे देख सकते हैं। आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में नौबत पहाड़, बिड़ला मंदिर, गोलकुण्डा का किला, उस्मान सागर, चार मिनार आदि दर्शनीय स्थल है। 76 bucation International 2010_03 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_03 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 तीर्थंकर तीर्थधाम, काकुटूर श्री मक्सी तीर्थ श्रीराणकपुर तीर्थ श्री पुडल तीर्थ (केशरवाडी) श्री आदिनाथ भगवान श्रीमवारी पाजाया मगदान श्री आदीहरभगवान भगवान महावीरस्वामी विस्तृत जानकारी पृष्ठ 174 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 47 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 92 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 166 महारदार श्रीराजगृहातीर्थ श्री सम्मेद शिरवर तीर्थ मुनि सुन्तस्वामी भगवान भीमामालिया पार्श्वनाथ भगवान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 18 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 29 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 25 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 797 श्री.लोद्रया, तीर्थ श्री ओसियां जी तीर्थ श्रीमाण्डवगढ़ तीर्थ श्री कापरडाजीता भगवान महावीर स्वामी श्री तुपानाथ भगवान विस्तृत जानकारी पृष्ठ 7 विस्तृत जानकारी पृष्ठ 75 पर Jan Education internationar201005, विस्तृत जानकारी पृष्ठ 77 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 40 पर ForPihate spersonal usconmy Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुलपाकजी तीर्थ श्री तारंगा तीर्थ श्री शौरीपुर तीर्थ भिगवाज जितनायभायाज भगवान महावीर स्वाम पारी पृष्ठ 166 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 174 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 134 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 11 पर , पालथार्थ श्रीश जय तीर्थ पालीवाना श्री उज्जैन तीर्थ श्री पावापुरी तीर्थ श्री अवन्ति पार्थनाथ भगवान AEEM कारी पृष्ठ 79 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 119 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 49 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 28 पर कापरडाजी तीर्थ श्री केसरियाजी तीर्थ श्री पुविधिनाथ जैन मंदिर श्री महावीरजी तीर्थ सिवाणा (जिला जालौर) श्रीरवठभूपहनाया भगवान नकारी पृष्ठ 79 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 110 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 70 पर विस्तृत जानकारी पृष्ठ 82 पर Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुधियाना नगर के जैन मन्दिर, श्री आदिनाथ भगवान श्री पार्श्वनाथ भगवान श्री आदिनाथ भगवान जैन मन्दिर। सिविल लाइन्स श्री कल्याण पार्श्वनाथ भगवान जैन मन्दिर किचलू नगर श्री कलिकुड पार्थनाथ क्षगवान श्री विमलनाथ भगवान श्री शान्तिनाथ भगवान श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान जैन मन्दिर दाला बाजार शान्ति नापजैन श्वनाम श्री सुपार्श्वनाथ भगवान श्री विमलनाथ भगवान जैन मन्दिर वल्लभ नगर श्री शान्तिनाथ भगवान जैन मन्दिर सुन्दर नगर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान जैन मन्दिर चौड़ा बाजार शिरोमणि संघ श्री आत्मानन्द जैन सभा (रजि.) महावीर भवन, पुराना बाजार, लुधियाना (पंजाब) फोन : 0161-709463 प्रधान : संघवी संघरत्न श्री रमेश कुमार जैन बरड tormation mamtonomore