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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका | अजमेर से 27 कि.मी. दूर किशनगढ़ का भी परिभ्रमण कर सकते हैं। किशनगढ़ कला व संस्कृति का पीठस्थान है। गुंतलाब लेक, फूल महल प्रासाद, दुर्ग, कृष्ण मन्दिर, मझोला प्रासाद आदि की प्रशस्ति आज समूचे विश्व में है। अजमेर ब्यावर मार्ग पर अजमेर से 30 कि.मी. दूर मांगलियावास गांव में मुख्य मार्ग से 1/2 कि.मी. अंदर कल्पवृक्ष दर्शनीय स्थल है। यहाँ 800 वर्ष प्राचीन दो कल्पवृक्ष अत्यंत दर्शनीय है। मुख्य मार्ग पर पुलिस स्टेशन के निकट से अंदर गांव के लिए मार्ग गया है। थोड़ा आगे जाने पर सीधे हाथ पर मुड़कर 200 मीटर दूर आगे बायीं ओर यह स्थल है। ऐसी किंवदती है कि 12 वर्ष में एक बार इन वृक्षों पर फल एवं श्वेत पुष्प लगते हैं। ठहरने की व्यवस्था : अजमेर शहर राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक होने के कारण यहाँ अनेक होटल एवं धर्मशालाएँ हैं। बस स्टेशन के सामने राजस्थान टूरिज्म का होटल खादिम, सावित्री, कन्या विद्यालय रोड, अजमेर पर स्थित हैं। रेल्वे स्टेशन के निकट स्टेशन रोड पर कई होटल हैं। मूलनायक : भगवान आदिनाथ (गोड़ आदिनाथ) सरवाड़ मार्गदर्शन : अजमेर-केकड़ी मार्ग पर अजमेर से 56 कि.मी. दूर सरवाड़ अतिशय क्षेत्र स्थित है। (अतिशय क्षेत्र) परिचय : सरवाड़ प्राचीनतम दिगम्बर जैन तीर्थों में से एक माना जाता है। प्राप्त शिलालेखों के अनुसार यह 7वीं 8वीं शताब्दी का माना जाता है। गौड़ वंशीय राजाओं के काल में इसका जीर्णोद्धार हुआ था। यहाँ की प्रभु प्रतिमा अत्यंत चमत्कारिक मानी जाती है। किंवदती है कि अनेकों डाकू, लुटेरों के चमत्कारिक ठंग से इसने हृदय परिवर्तन कर दिये थे। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ एक धर्मशाला है। मार्गदर्शन : अजमेर जिले में स्थित नसीराबाद से 56 कि.मी. दूर, केकड़ी से 17 कि.मी. दूर बघेरा बघेरा अतिशय क्षेत्र स्थित है। यह तीर्थ अजमेर टौंक राज्य सीमा के निकट स्थित है। यह एक छोटा सा गाँव है तथा यहाँ बस या कार द्वारा पहुँचा जा सकता है। वर्षाकाल में रास्ता प्रायः बन्द ही रहता है। परिचय : बघेरा गाँव के बाहर टेकरी पर शिलाओं में उत्कीर्ण 5-6 फुट ऊँची पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ हैं। यहाँ कई गुफाएँ और निषेधिकाएँ हैं। अतिशय क्षेत्र बघेरा में समय-समय पर भू-गर्भ से जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त होती रही हैं। यहाँ कला व पुरातत्व की बहुत ही मूल्यवान सामग्री है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ गाँव में मन्दिर के निकट धर्मशाला है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainell 53 rg
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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