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________________ राजस्थान जिला अलवर अलवर (दर्शनीय स्थल) श्री तिजारा तीर्थ पेढ़ी : श्री 1008 चन्द्रप्रभु दि. जैन अतिशय क्षेत्र देहरा, तिजारा, जिला-अलवर (राज.) फोन : 01469-22119, 22407 सरिस्का (दर्शनीय स्थल) Ja 54ad cation International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका तिजारा से 53 कि.मी. व दिल्ली से 158 कि.मी. दूर अलवर स्थित है। यहाँ के मन्दिरों में अनेक प्राचीन मूर्तियाँ विराजमान हैं। मुख्य मन्दिर श्री नन्दीराम जी के पुत्र मुंशी रिश्कलाल जी द्वारा सन् 1880-90 के लगभग निर्मित करवाया गया था। अलवर शहर की स्थापना महाराज राव प्रतापसिंह ने सन् 1775 ई. में की थी। पहाड़ और झील के मनोरम प्राकृतिक वातावरण में पहाड़ की चोटी पर बने अलवर सिटी पैलेस की छटा मनभावन है। यहाँ वर्तमान में आकाशवाणी केन्द्र बना दिया गया है। जिसमें प्राचीन पांडुलिपियाँ भी हैं। शहर के अन्तिम छोर पर गार्डन, पुरजन विहार आदि दर्शनीय हैं। ठहरने के लिए अलवर में अनेक होटल, गैस्ट हाउस एवं धर्मशालाएँ उचित दर पर मिल जाते हैं। सिलिसेड झील - शहर से 8 कि.मी. दूर कृत्रिम झील सिलिसेड झील भी देखने योग्य स्थल है। मूलनायक : श्री चन्द्र प्रभु, श्वेतवर्ण । मार्गदर्शन : दिल्ली से लगभग 117 कि.मी. दूर, अलवर से 52 कि.मी. दूर अलवर जिले के अन्तर्गत स्थित तिजारा अतिशय क्षेत्र, दिल्ली, रिवाडी, अलवर, जयपुर, फिरोजपुर, महावीर जी आदि प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा नियमित बस सेवा से जुड़ा हुआ है । यहाँ प्रत्येक महीने के अन्तिम रविवार को दिल्ली से कई यात्री बसें आती हैं जो लघु मेले का रूप ले लेती हैं। तीर्थ पर जीप उपलब्ध है। परिचय : प्राचीन अभिलेखों में देहरा नाम से प्रसिद्ध इस स्थान से सन् 1956 में श्रावण शुक्ल 10 संवत् 2013 में चन्द्रप्रभु की श्वेत वर्ण की दिव्य चमत्कारी प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त इस क्षेत्र की ख्याति में अवर्णनीय वृद्धि हुई है। यहाँ अनेक लोग मनौती माँगने आते हैं। लोगों का विश्वास है कि यहाँ पर मनोकामना पूर्ण होती है। विशेष रूप से भूत, प्रेतव्यंतर आदि के कष्ट दूर करने की दृष्टि से इस क्षेत्र की बड़ी प्रसिद्धि है । क्षेत्र में एक विशाल मन्दिर में तीन सुन्दर वेदियाँ हैं। मध्य वेदी में चन्द्रप्रभु जी की भव्य चमत्कारी मूर्ति विराजमान है। मन्दिर के पीछे जहाँ से मूर्ति प्रकट हुई थी चरण छतरी बनी हुई है । मन्दिर के सामने दर्शनीय मानस्तंभ भी है। प्रतिवर्ष फागुन वदी सप्तमी तथा श्रावण शुक्ल दशमी को वार्षिक मेले लगते हैं। क्षेत्र में एक अन्य दिगम्बर जैन मन्दिर है जो पार्श्वनाथ जी को समर्पित है। इसमें भी अनेक मनोज्ञ व सातिशय प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ लगभग 300 कमरों की धर्मशाला है जिसमें डीलक्स, सादा सभी प्रकार की सुविधा युक्त कमरे हैं । यहाँ निःशुल्क भोजनशाला की व्यवस्था है। प्रातः 10 से 1 तथा सायं 4 से 5.30 बजे तक भोजनशाला चालू रहती है। निकट में होटल भी है। जयपुर से 110 कि.मी., अलवर से 38 कि.मी. दूर स्थित अरावली पर्वतमाला के नैसर्गिक वातावरण में स्थित यह अभयारण्य आज प्रसिद्ध भ्रमणस्थल के रूप में विकसित हो गया है । यहाँ बाघ, भालू, हिरण, सांभार, वन बिलाव आदि विभिन्न प्राणियों को देखा जा सकता । वर्षाकाल में यहाँ आना निष्फल हो सकता है। पर्यटन के हिसाब से सर्दी के चार महीनों में नवम्बर से फरवरी तक वन्यजीवों को सकूनपूर्वक निहारा जा सकता है। यहाँ नागरिकों को प्रवेश शुल्क देना होता है। कैमरे का शुल्क अतिरिक्त है। रात्रि भ्रमण के लिए यहाँ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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