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________________ मध्य प्रदेश जैन तीर्थ परिचायिका गगनचुम्बी शिखरों युक्त विभिन्न शैली के 108 मन्दिर हैं। यहाँ पर भोयरे में स्थित मूर्तियाँ प्राचीन, अति आकर्षक व सुन्दर हैं। एक ही स्थान पर इतने मन्दिरों का समूह दिव्य नगरी जैसा प्रतीत होता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिए 4 बड़ी धर्मशालाएँ हैं जहाँ पानी, बिजली व बर्तनों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मूलनायक : श्री अवन्ती पार्श्वनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। जिला उज्जैन मार्गदर्शन : यह तीर्थ उज्जैन शहर में क्षीप्रा नदी के निकट स्थित है। यहाँ से उज्जैन 1.6 कि.मी. दूर है जहाँ से टैक्सी, रिक्शों तथा ताँगों इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मन्दिर तक श्री अवन्ती पक्की सड़क है। उज्जैन-इन्दौर से 55 कि.मी. दूर है। यहाँ से माण्डु 146 कि.मी., धार पार्श्वनाथ तीर्थ 112 कि.मी., भोपाल 188 कि.मी., ओंकारेश्वर 129 कि.मी. दूर है। उज्जैन दिल्ली-इन्दौर, अहमदाबाद-वाराणसी और इन्दौर-बिलासपुर रेल मार्ग पर स्थित है। पेढ़ी: परिचय : इस नगरी के प्राचीन नाम अवन्तिका, पुष्कर-रजिनी आदि थे। जैन ग्रन्थानुसार भद्रा श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ सेठाणी के सुपुत्र अवन्तीसुकुमाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी से प्रतिबोध पाकर दीक्षा अंगीकार (जैन श्वेताम्बर पेढ़ी) की व जंगल में संथारे में रहते हुए तपश्चर्या में ही मुक्ति पद को प्राप्त हुए। उनके पुत्र श्री अनन्त पेठ : दानी दरवाजा महाकाल ने आर्य सुहस्तीसूरिजी के सदुपदेश से अपने पिताजी के स्मरणार्थ इस भव्य मन्दिर डाकघर उज्जैन का निर्माण करवाया। यह वृतांत वीर निर्वाण संवत् 250 का माना जाता है। समय-समय (मध्य प्रदेश) पर शासन प्रभावक आचार्य भगवन्तों ने अपनी अमूल्य शक्ति का सदुपयोग करके इस तीर्थ की महिमा बढ़ायी। विक्रम की सातवीं सदी में आचार्य श्री मानतुंग सूरिजी ने यहीं पर बृहद् राजा भोज को भक्तामर स्त्रोत्र की रचना द्वारा चमत्कार दिखाकर प्रभावित किया था। ग्याहरवीं सदी में श्री शान्तिसूरिजी विद्या प्रिय परमार वंशी राजा भोज की राज्य सभा में 84 वादियों को जीतकर यहीं पर सुसम्मानित हुए थे। जैन धर्म के प्रचार व प्रसार सम्बन्धी अनेकों घटनाएँ इस तीर्थ से जुड़ी हुई हैं। वर्तमान में यहाँ पर इसके अतिरिक्त अन्य 22 मन्दिर विद्यमान हैं। प्रभु पार्श्व की प्राचीन प्रतिमा अति ही सौम्य है। दर्शनीय स्थल : उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर प्रमुख मन्दिर महाकालेश्वर मन्दिर है। उज्जैन में इसके अतिरिक्त भी अनेकों मन्दिर हैं जिनमें गोपाल मन्दिर, चिन्तामणि गणेश मन्दिर, मंगल नाथ मन्दिर, हरसिद्धि मन्दिर, बड़ा गणेश मन्दिर तथा माता संतोषी का मन्दिर अत्यन्त दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी और बिजली की सुविधाएँ हैं। शहर में अनेकों धर्मशालाएँ एवं होटल भी हैं। मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ। श्री अलौकिक मार्गदर्शन : यह तीर्थ हसामपुरा गाँव के मध्यस्थ स्थित है। यहाँ से उज्जैन लगभग 11 कि.मी. पार्श्वनाथ तीर्थ दूर है जहाँ से बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। परिचय : मन्दिर में स्थित प्राचीन कलात्मक अवशेष से पता चलता है कि यह मन्दिर लगभग पेढ़ी : विक्रम की दसवीं सदी पर्व का होगा। बाहरवीं सदी की बनी धात की चौबीसी मन्दिर में श्री अलौकिक पार्श्वनाथ विद्यमान है। पनः जीर्णोद्धार विक्रम सं. 1649 में होने का उल्लेख है। राजा विक्रमादित्य के जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी काल में उज्जैन नगरी का यह एक मोहल्ला था व राजा विक्रमादित्य का महल यहाँ पर था। हसामपुर, पोस्ट तालोदा, इसके निकट रानी का महल था जिसे आज रानीकोट कहते हैं। यहाँ अनेकों चमत्कारिक जिला उज्जैन (मध्य प्रदेश) Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelike49rg
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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