SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराष्ट्र जैन तीर्थ परिचायिका वढवाण शहर के नवनिर्मित श्री शान्तिनाथ जिनालय में हुआ था, उस समय आ. भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वर जी म. सा. भी वहाँ उपस्थित थे। बाद में श्री मनिसव्रत स्वामी जी भगवान के इस भव्य जिनालय की प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनऋद्धि सूरीश्वर जी म. तथा परम पूज्य सिद्धान्तनिष्ठ आचार्य भगवंत श्री विजय प्रताप सूरीश्वर जी म. आदि मुनि भगवंतों की पावन निश्रा में वि. सं. 2005 का माह सुदि 5 को भव्य रूप से हुई थी। इस भव्य जिनालय का संचालन श्री ऋषभदेव महाराज जैन टेम्पल ज्ञाति ट्रस्ट, थाणा द्वारा हो रहा है। मन्दिर में ऊपर नीचे आरस की 20 प्रतिमा, आरस का बनाया हुआ श्री सिद्धचक्र जी नवपद यंत्र सुशोभित हैं। चारों तरफ दीवारों में श्रीपाल महाराज का जीवन चरित्र, आ. श्री हेमचन्द्राचार्य और महाराजा सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल महाराजा का जीवन चरित्र, विक्रमादित्य के क्रान्तिकारक गुरुदेव श्री कालक सूरि, श्री सिद्धसेन दिवाकर चरित्र, श्री शय्यंभवसूरि, रत्नसूरि चरित्र, अकबर प्रतिबोधक श्री हीरसूरीश्वर जी म. चरित्र, सम्प्रति महाराजा चरित्र, श्रेणिक महाराजा चरित्र ये सभी चित्र पत्थर की खुदाई पर बनाये हैं। चित्रों के नीचे परिचय भी लिखा हुआ है। मन्दिर के साइड में श्री मणिभद्र सभागृह के एक कमरे में पंचधातु की 25 प्रतिमा, पद्मावती देवी की 2 प्रतिमा तथा एक तरफ परम पूज्य आ. भगवंत श्री वल्लभसूरीश्वर जी म. की आरस की प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर की मुख्य शणगार चौकी के ऊपर, दूर से दृश्यमान आ. श्री जिनऋद्धिसूरीश्वर जी म. और आ. श्री प्रतापसूरीश्वर जी म. की आरस की प्रतिमा विराजमान हैं। मन्दिर के द्वार पर दो बाजू दो बड़ा-बड़ा हस्ती दर्शनार्थियों का स्वागत करता है। मन्दिर में प्रवेश करते समय जिस द्वार से प्रवेश करते हैं, वो उपाश्रय चार मंजिल का भवन है। ग्राउण्ड फ्लोर पर कार्यालय तथा साधु-साध्वी जी महाराजाओं का भिन्न-भिन्न उपाश्रय तथा व्याख्यान भवन है। दोनों लिफ्ट का उपयोग 4 माले तक गमनागमन के लिए होता है। यहाँ की मख्य संस्थाओं में श्री सिद्धचक्र जैन नवयवक मंडल. श्री महावीर मण्डल. श्री अभिनन्दन मण्डल, श्री वर्धमान मण्डल, श्री मुनिसुव्रत स्वामी महिला मण्डल, श्री राजस्थान पार्श्व महिला मण्डल, श्री केसरिया गुण महिला मण्डल, श्री आदिनाथ महिला मण्डल, श्री चंदप्रभ स्वामी महिला मण्डल एवं श्री मुनिसुव्रत स्वामी पाठशाला का संचालन सुन्दर ढंग से हो रहा है। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान जैन देरासर ट्रस्ट द्वारा संचालित इस मन्दिर जी की प्रतिष्ठा वि. सं. 1878 का श्रावण वद 5 को हुई थी। वि. सं. 2010 का श्रावण वद 1 रविवार को पार्वनाथ भगवान महावीर स्वामी वगैरह प्रतिमा अंजनशलाका की हुई विराजमान है। इस मन्दिर के संचालन में विशेष रूप से राजस्थानी भाईयों का सहयोग है। मन्दिर के नीचे ऑफिस हॉल में जिनालय श्री जिनकुशल सूरीश्वर जी म. व अनेक देवी-देवता की भव्य प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर में आरस की कुल 50 प्रतिमा, पंचधातु की 67 प्रतिमा, सिद्धचक्र जी-46, चाँदी की पेढी: प्रतिमा तथा एक सिद्धचक्र जी है। मन्दिर की दीवारों में प्राचीनकाल में आरस पर बनाये गलालवादीकीका गये शत्रुजय तीर्थ अष्टापद तीर्थ सुशोभित है। स्ट्रीट, मुम्बई-400 002 यहाँ चिन्तामणि हितवर्धक युवक मण्डल है। पूजा करने आने वाले महानुभावों के लिए फोन : (ऑ.) 3755574 नहाने की भी व्यवस्था है। प्रमुख क्षेत्र में होने से दर्शन-पूजा करने वाले भाई-बहनों की मोहनलालजी भीड़ लगी रहती है। 2055146 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibary. 49
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy