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________________ महाराष्ट्र जैन तीर्थ परिचायिका सान्ताक्रझ (पर्व) सर्वप्रथम यहाँ के गृह मन्दिर में श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की यही भव्य प्रतिमा स्थापित की। गयी थी। इस गृह मन्दिर के स्थान पर एक भव्य शिखरबद्ध जिनालय बना, जिसकी प्रतिष्ठा श्री कलिकुंड वि. सं. 2034 का वैशाख सुद 6 शनिवार ता. 13.5.1978 को हुई थी। पाश्वनाथ भगवान ग्राउण्ड फ्लोर पर ऑफिस हॉल में ही श्री मणिभद्रवीर जी, श्री घंटाकर्ण वीर, श्री आशापुरी भव्य शिखरबद्ध जिनालय माँ, श्री अम्बा माँ, श्री पद्मावती देवी विराजमान हैं। हॉल के बाहर की ओर आ. विजय गुणसागर सूरीश्वर जी म. साहब की प्रतिमा और सामने की ओर पानी की प्याऊ है। प्रथम पेढ़ी : माले पर आरस की 16 प्रतिमा, सिद्धचक्र-3, अष्टमंगल-2 तथा श्री कल्याणसूरि, T.P.S.S. रोड नं. 2, श्री अंबिकादेवी, श्री पार्श्वयक्ष-श्री पद्मावती, श्री सरस्वती, श्री महालक्ष्मी, श्री चक्रेश्वरी देवी ओरिजिनल प्लोट नं. 60, तथा श्री महाकाली देवी विराजमान हैं। B-51 रूप टोकीज के पीछे, 181 प्रतिमा वाला आधुनिक जिनालय दर्शनीय है। आशापुरी देवी जैन चौक, नेहरू रोड, सान्ताक्रुझ (पूर्व), मुम्बई-55 फोन : (ऑ.) 6490881, (घर) 6492866 कशोरभाई श्री आदीश्वर भगवान अंधेरी विभाग में सबसे प्राचीन गृह मन्दिर यही है। यहाँ पंचधातु की 13 प्रतिमा, सिद्धचक्र 9 गृह मन्दिर सुशोभित हैं। पेढ़ी : संघवी विला, इरला ब्रिज, बम्बाखान के सामने, 75 स्वामी विवेकानंद रोड, अंधेरी (पश्चिम), मुम्बई-58 फोन : 6208848, 6283013 शेवन्तीलालभाई आगाशी गाँव श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय पेढ़ी : आगाशी चालपेठ, गाँव-पोस्ट आगाशी, स्टे. विरार, जिला थाणा (महाराष्ट्र) फोन : 912-587618, 587518 खीमराजजी 3864156 महेन्द्रभाई मार्गदर्शन : मुम्बई-पश्चिम रेल्वे लाईन का विरार स्टेशन से 5 कि.मी. आगाशी गाँव का यह प्राचीन सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ है। मुम्बईवासियों के लिए उपनगर का सबसे लोकप्रिय तीर्थ के रूप में प्रचलित है। प्रतिवर्ष चैत्री-कार्तिकी पूर्णिमा को हजारों की संख्या में दर्शन-सेवापूजा के लिए पधारते हैं। इसके अलावा प्रति शनिवार-रविवार तथा अन्य दिनों में भी भक्तजनों का आना-जाना चालू ही रहता है। यहाँ पधारने वाले यात्रालु भाईयों के लिए प्रतिदिन 8 से 12 तक भाता की व्यवस्था है। परिचय : सुप्रसिद्धि मन्दिर निर्माता श्रावक शिरोमणि सेठ श्री मोतीचन्द (मोतीशा) अमीचन्द ने लगभग 162 वर्ष पहले जिनालय बनवाकर आपके ही कर-कमलों द्वारा वि. सं. 1812 फागुण वद 2 को भव्य प्रतिष्ठा कराई थी। उसके बाद श्री जैन संघ की तरफ से मन्दिर का जीर्णोद्वार हुआ एवं वि. सं. 1967 का माह सुदि 10 को खूब ठाठ माठ से पुनः प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था। इसी माह सुदि 10 को प्रतिवर्ष खूब उल्लास उमंग के साथ ध्वजा चढ़ाकर वर्षगाँठ मनाते हैं। 150 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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