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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर पुरानी धर्मशाला के साथ-साथ महावीर भवन, ओसवाल भवन, शान्ति भवन, श्रीपाल भवन, आदेश्वर भवन जिनेश्वर भवन आदि 17 नयी धर्मशालाएँ बनी हैं, जिनमें लगभग 500 कमरे हैं। तथा सभी सुविधा युक्त ब्लॉक हैं। यहाँ अति सुव्यवस्थित भोजनशाला का भी प्रबंध है। नवनिर्मित इस भोजनशाला में एक साथ 650 व्यक्तियों के भोजन करने की सुविधा उपलब्ध है। महावीर भवन के सामने ही छोटे होटलों पर खानेपीने की सुविधा उपलब्ध है। प्रमुख मन्दिर के बाहर ही (मोदीखाने से पूर्व) भोजनशाला के कूपन प्राप्त किये जा सकते हैं । ठहरने हेतु कमरों का आवंटन मन्दिर के प्रवेश द्वार (बाहर वाले) में प्रवेश करने पर सामने बायें हाथ पर स्थित स्वागत कक्ष में बने काउंटरों से किया जाता है। दीपावली के अगले दिन से यहाँ बहुतायत में यात्रियों का आवागमन होता है। तथा कमरों हेतु लम्बी कतार में लगना पड़ सकता है। मन्दिर में वाहन आदि प्रवेश द्वार के बाहर ही खड़े रहते हैं। अंदर की धर्मशालाओं तक सामान स्वयं ले जाना पड़ता है। विशेष अनुमति पेढ़ी से प्राप्त कर छोटे वाहन सामान लाने व छोड़ने हेतु अंदर धर्मशाला तक आजा सकते हैं। मार्गदर्शन : अतिशय क्षेत्र बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में उदयपुर से 224 कि.मी. पूर्व में, कोटा जिला भीलवाडा से 85 कि.मी. पश्चिम में और चित्तौड़ से 112 कि.मी. उत्तर पूर्व में स्थित है। यहाँ पहुँचने का सबसे सुगम रास्ता कोटा, बूंदी होते हुए 85 कि.मी. पक्की सड़क का है। भीलवाड़ा से बिजौलिया मांडलगढ़ होते हुए भी यह 85 कि.मी. दूर पड़ता है। परिचय : बिजौलिया एक प्राचीन गाँव है व इसका प्राचीन नाम विन्ध्याचली था। इसकी चारदीवारी से क्षेत्र डेढ़ कि.मी. दूर नगर के दक्षिण पूर्व में स्थित है। क्षेत्र सुदृढ़ परकोटे से बड़ा है। बीच में पार्श्वनाथ मन्दिर है मन्दिर पंचायती है तथा एक प्राचीन शिलालेख के अनुसार मन्दिर संवत् 1226 में निर्मित है व प्रतिष्ठा श्रेष्ठी लोलार्क द्वारा सम्पन्न हुई थी। यहाँ के चमत्कारों की अनेक कथाएँ हैं। लोग यहाँ मनौती मनाने आते हैं। यहाँ कई ऐतिहासिक महत्त्व के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। ठहरने की व्यवस्था : नगर में दो जैन धर्मशालाएँ, भवन व जैन पंचायती नौहरा हैं । यहाँ बिजली, पानी आदि सभी सुविधा उपलब्ध हैं। मार्गदर्शन : भीलवाड़ा से 56 कि.मी. पूर्व में एक अति सुन्दर प्राकृतिक पहाड़ी क्षेत्र चम्बलेश्वर चंबलेश्वर पार्श्वनाथ स्थित है। पारोली तक सड़क पक्की है तथा आगे 6 कि.मी. का बैलगाड़ी योग्य कच्चा रास्ता क्षेत्र तक पहुँचता है। अजमेर-खंडवा लाइन पर विजय नगर से 42 कि.मी. की पक्की सड़क पर बस द्वारा शाहपुरा फिर आगे बैलगाड़ी द्वारा भी क्षेत्र तक पहुँचा जा सकता है। परिचय : पहाड़ी पर तीन ओर से जाया जा सकता है। पूर्व की ओर 226 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद 375 मीटर का कच्चा रास्ता तय करने के उपरान्त 110 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद मन्दिर में पहुँचा जा सकता है। कच्चे मार्ग पर एक जल कुण्ड है जिसका जल अभिषेक आदि के लिए काम आता है। दूर से दिखते हुए शिखर-युक्त मन्दिर में मूलनायक की प्रतिमा पार्श्वनाथ जी की है। इसके अतिशय के लिए अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। मन्दिर के पास ही एक मस्जिद व महादेव जी का प्रसिद्ध मन्दिर भी है। अतः यह क्षेत्र जैन, हिन्दू व मूसलमान Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainel 59.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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