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बिहार
जैन तीर्थ परिचायिका 5. वैभारगिरि पर्वत-श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान, पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ
(दिगम्बर मन्दिर)। मार्गदर्शन : यह तीर्थ राजगिरि स्टेशन से 1 कि.मी. दूर राजगिरी के निकट पाँच पर्वतों पर स्थित है। स्टेशन पर टैक्सी, ताँगों
व रिक्शों का साधन है। पटना से यह तीर्थ 100 कि.मी., गया से 65 कि.मी. दूर है। गया से बसों का आवागमन रहता है। कोलकाता के हावड़ा स्टेशन से राजगिरी ट्रेन द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। मुगलसराय, बिहार शरीफ, पावापुरी, नालन्दा से भी यहाँ ट्रेनें आती-जाती है। यहाँ से कोलकाता 525 कि.मी. दूर है। बनारस 250 कि.मी., बोध गया 75 कि.मी., सम्मेदशिखर 225 कि.मी., चम्पापुरी, भागलपुर 225 कि.मी., क्षत्रियकुंड 60 कि.मी., गुणायाजी 35 कि.मी., पावापुरी 35 कि.मी., लछुआड़ 90 कि.मी. तथा कुण्डलपुर 13 कि.मी. दूर है। प्रसिद्ध जैन एवं बौद्ध तीर्थ स्थल होने
के कारण यहाँ सभी नगरों से बसों का आवागमन लगा रहता है। परिचय : यहाँ की प्राचीनता का इतिहास बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिव्रतस्वामी भगवान के समय से प्रारम्भ होता है। प्राचीन काल
में इस नगरी को चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर, बसुमति, गिरिब्रज, क्षितिप्रतिष्ठ, पंचशैल आदि नामों से भी संबोधित किया जाता था। बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिव्रत स्वामी भगवान के चार कल्याणक इस पावन भूमि में हुए। राजगिरी गाँव में श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिर हैं । वैभारगिरि पर्वत पर एक भग्न मन्दिर है जिसमें अनेक प्राचीन कलात्मक जिन प्रतिमाएँ हैं। भग्न मन्दिर की सारी प्रतिमाएँ वर्तमान में अपूजित हैं व पुरातत्व विभाग के अधीन है। यह मन्दिर आठवीं सदी का माना जाता है। श्वेताम्बर व दिगम्बर मन्दिरों में प्राचीन प्रतिमाओं की कला अति दर्शनीय है। जरासंध की बैठक सप्तपर्णी गुफा आदि देखने योग्य है। 1. विपुलाचल पर्वत-इस पर्वत पर 555 पगथियां हैं। यहाँ पर श्री मुनि सुव्रत स्वामी का मन्दिर एवं अन्य जिनालय हैं जिनमें प्रभु महावीर स्वामी, चंद्रप्रभुजी तथा श्री ऋषभदेवजी के पगलिए हैं। मार्ग में अयमन्ता मुनि का मंदिर है। 2. रत्नगिरि पर्वत-इस पर्वत पर ऊपर जाने के मार्ग में खतरनाक वाडी होने के कारण लोग समह में यहाँ से गजरते हैं। उतरने का मार्ग अलग है। जिसमें 1277 पगथियां है। इस पर्वत पर श्री चंद्रप्रभु तथा श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमाएं तथा श्री नेमिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री पार्श्वनाथ तथा अभिनंदन स्वामी के पगथिए हैं। 3. उदयगिरि पर्वत-इस पर्वत पर 782 पगथियां हैं। इस पर्वत पर श्री सांवलिया पार्श्वनाथ जी का मन्दिर है। मूलनायक की प्रतिमा नीचे तलहटी में गाँव में मंदिर में विराजित है। 4. स्वर्णगिरी पर्वत-इस पर्वत पर 1064 पगथियां हैं । इस पर्वत पर श्री आदीश्वर प्रभु एवं श्री महावीर स्वामी की पगथियां हैं। इस पर्वत की यात्रा समह में करनी चाहिए। 5. वैभारगिरि पर्वत-इस पर्वत पर 531 पगथियां हैं। पांच मंदिर हैं जिनमें श्री महावीर स्वामी, श्री मनि सुव्रतस्वामी, श्री धन्ना शालीभद्र तथा गौतम स्वामी गणधरों की प्रतिमाएं एवं पगथियां हैं। इस पर्वत पर प्राचीन जैन मंदिर तथा सप्तपर्णी
गुफा दर्शनीय है। पर्वत से उतरने पर गर्म जल के कुण्ड हैं जिन्हें ब्रह्मकुंड कहते हैं। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए तलहटी में सुविधायुक्त श्वेताम्बर व दिगम्बर धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला की सुविधा है।
पहाड़ों पर व रास्ते में पानी आदि की कोई विशेष सुविधा नहीं है। धर्मशाला में 110 कमरे हैं। निकट में कई होटल एवं
धर्मशालाएँ हैं। बाजार आदि भी निकट में ही है। दर्शनीय स्थल : राजगिरि ऐतिहासिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण नगर रहा है। मगध की राजधानी राजगृह थी। यहाँ अजातशत्रु
ने अजातशत्रु दुर्ग बनवाया था। राजा श्रेणिक के समय में अनेक स्थल यहाँ आज भी दर्शनीय हैं। मणियार मठ (निर्मल कुंड), सुवर्ण भंडार-मगधराज बिम्बिसार का कोषागार, भगवान बुद्ध की तपस्या स्थली गृध्रकूट बेणु वन आदि। गाँव में श्वेताम्बर जैन मन्दिर, दिगम्बर जैन मन्दिर, बर्मी बुद्ध मन्दिर, जापानी बुद्ध मन्दिर भी दर्शनीय हैं। जापान के बौद्ध संघ ने भगवान बुद्ध के आदिमार्ग के 2500 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में रत्नगिरी पहाड़ की चोटी पर विश्वशांति स्तूप का निर्माण कराया है।
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