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________________ बिहार जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य सर्व सिद्धिदाता गणधर इन्द्रभूति गौतम एवं नके टो भाई अगिभति एवं वायभति गणधरों की जन्मभूमि श्री कण्डलपर जन ताथ स्थल धर्म एवं संस्कृति की एक महान धरोहर है। इसी पावन भूमि पर भगवान महावीर स्वामी ने पहला, सातवां और नौवां चातुर्मास किया तथा अनेकों बार पधारे। कुण्डलपुर जैन तीर्थ स्थल नालन्दा जिला में नालन्दा विद्यापीठ के प्राचीन अवशेष से उत्तर तथा बड़गाँव सूर्य मंदिर से आधा किलोमीटर दक्षिण में अवस्थित है। कुण्डलपुर का प्राचीन नाम गुरूवर (गुब्बर) ग्राम था। प्रथम चातुर्मास के समय में भगवान महावीर ने इस गाँव की परिक्रमा की थी। परिक्रमा के समय अनेक कुण्ड पाये गये। इसलिए इस तीर्थ का नाम "कुण्डलपुर" रखा गया। संवत् 1964 ई. में यहाँ कुल छोटे-छोटे सोलह जिनालय थे, परन्तु आज दो जिनालय ही प्रतिष्ठित हैं। एक को पुराना जिनालय तथा दूसरे को नया जिनालय के नाम से जाना जाता है। नया मंदिर "आनन्द जी कल्याण जी पेढ़ी" द्वारा मनोरम पीत पत्थरों से शिखरबंद शास्त्र सम्मत् तरीके से बनाया गया है, जो कला का एक अनुपम नमूना है। इस नये मंदिर में मूलनायक भगवान ऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा करीब दो हजार वर्ष पुरानी है। इस प्रतिमा में ऋषभदेव के माथे पर इनकी माता मरुदेवी विराजमान है तथा जटा प्रदर्शित है। जैन धर्म में जटाधारी भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा का दर्शन एवं सेवा-पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। यह प्रतिमा भव्य, सरस एवं चमत्कारी है। कुण्डलपुर तीर्थस्थल पधारने वाले यात्रीगण मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा की भव्यता और दिव्यता का दर्शन कर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस नये मंदिर में भगवान ऋषभदेव के अतिरिक्त भगवान महावीर स्वामी, श्री शान्तिनाथ स्वामी, श्री पार्श्वनाथ स्वामी, श्री अजीतनाथ स्वामी आदि की प्राचीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। इसी प्रकार पुराने मंदिर में गणधर गौतम स्वामी के प्राचीन मूलचरण हैं, जो लगभग दो हजार वर्ष पुराने है। इसके अतिरिक्त इस पुराने मंदिर में दादा गुरु के चरण एवं ग्यारह गणधरों के चरण प्रतिष्ठित हैं। इसी पुराने जिनालय की पावन भूमि पर गणधर गौतम स्वामी का जन्म हुआ था। कुण्डलपुर तीर्थ पर गुरु गौतम स्वामी की खास कृपा है। कहा जाता है कि यहाँ सच्चे मन से प्रार्थना करने पर तीर्थ यात्रियों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कुण्डलपुर जैन तीर्थ स्थल का पवित्र आध्यात्मिक वातावरण तथा सुन्दर बाग-बगीचे इस तीर्थ की सजीवता में चार चाँद लगा रहे हैं। पूजा का समय प्रातः 7 बजे से है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ 125 यात्रियों के ठहरने हेतु सुन्दर, सुविधायुक्त व्यवस्था है। नवनिर्मित इस धर्मशाला में सभी सुविधाओंयुक्त 8 कमरे हैं। वर्तमान में अस्थाई भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक: श्री राजगृही तीर्थ 1. विपुलाचल पर्वत-श्री मुनिसुव्रतस्वामी भगवान (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री चन्द्रप्रभ भगवान (दिगम्बर मन्दिर)। पेढ़ी: 2. रत्नगिरि पर्वत- श्री चन्द्रप्रभ पद्मासनस्थ (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री मुनिव्रतस्वामी भगवान, श्री जैन श्वेताम्बर कोठी पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। डाकघर राजगिरी, 3. उदयगिरि पर्वत-श्री पार्श्वनाथ भगवान, चरण पादुका (श्वेताम्बर मन्दिर)। श्री महावीर जिला नालन्दा-803 116 भगवान, खड्गासन (दिगम्बर मन्दिर)। (बिहार) 4. स्वर्णगिरि पर्वत-श्री आदिनाथ भगवान, चरण पादुका (श्वेताम्बर मन्दिर)। फोन : 06112-55220 श्री शान्तिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ (दिगम्बर मन्दिर)। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 29 www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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