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________________ जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री मुनिसुव्रत स्वामी भ., श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ । मार्गदर्शन : झगडिया तीर्थ यहाँ से 22 कि.मी., दहेज 45 कि.मी., गंधार 45 कि.मी. तथा काकी 75 कि.मी. दूर है। बड़ौदा से यह तीर्थ 71 कि.मी. दूर है। यहाँ बसों का आवागमन निरंतर रहता है। शहर में टैक्सी, ऑटो आदि सुविधा उपलब्ध है। भरूच, बड़ौदा - मुम्बई रेल मार्ग पर आता है। स्टेशन पर सभी साधन उपलब्ध रहते हैं । परिचय : भरूच गुजरात का प्रसिद्ध शहर है। यहाँ नर्मदा नदी सागर में समाती है । यह एक प्राचीन तीर्थस्थान है। भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी के जगचिंतामणि स्तोत्र में इस तीर्थ का उल्लेख किया है। ऐसा कहा जाता है कि अश्वमेध यज्ञ के लिये तैयार किये गये अश्व को भगवान मुनिसुव्रत स्वामी ने यहीं प्रतिबोध दिया था । वह अश्व स्वर्गगमन के बाद देव बना और उसने यह मंदिर बनवाया। बाद में समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार हुआ । यहाँ पर 11 जिनमंदिर हैं । मुनिसुव्रत स्वामी के मंदिर के गर्भगृह में भारत का प्रथम भक्तामर मंदिर बना है, जिसमें चारों ओर संगरमरमर के पत्थरों पर भक्तामर स्तोत्र सचित्र अंकित किया है । भक्तामर के रचयिता आचार्य मानुतुंग की अत्यन्त मनोहारी प्रतिमा इस मन्दिर में स्थापित है। यहाँ की कला मनमुग्ध कर देती है। मुख्य मन्दिर में पूजा का समय प्रात: 6.30 बजे से सायं 5.00 बजे तक है। यहाँ श्री आदिश्वर प्रभु का शिखरबंध 100 वर्ष पुराना श्रीमालीपोल मंदिर, श्री शांतिनाथ जी, मुनि सुव्रतनाथ जी, गृह मंदिर, अनंतनाथ जी जिनमंदिर, कबीरपुरा का अजितनाथ जी जिनमंदिर, वेजलपुर का आदिश्वर जिनमंदिर अत्यन्त दर्शनीय है I दर्शनीय स्थल : भरूच में भृगु ऋषि का आश्रम भी दर्शनीय शुक्लतीर्थ में विष्णु मन्दिर भी दर्शनीय है । । यहाँ से 16 कि.मी. दूर हिन्दू ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के पास ही धर्मशाला तथा भोजनशाला है। यहां भाता की भी सुविधा है। धर्मशाला में ब्लाक युक्त सुविधा युक्त कमरे हैं। मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ । I मार्गदर्शन : भरूच से यह स्थान 33 कि.मी. दूरी पर है। राजपिपला से यह 55 कि.मी. दूर भरुच राजपिपला मार्ग पर यह तीर्थ स्थित है । झगड़िया गाँव के मध्य में यह मंदिर है। परिचय : यहाँ की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई । उसको पाने के लिए बड़ौदा एवं भरूच के श्रावक राणा के पास गये। तब राणा ने कहा कि वर्तमान में मेरे नगर में एक भी जैन समाज का घर नहीं तथा जिनमंदिर भी नहीं। मैं स्वयं जिनमंदिर बनाऊँगा, आप यहाँ आकर रहो, आपके लिए व्यापार सुविधा दी जायेगी । तद्नुसार इस मंदिर का निर्माण हुआ । तीस साल तक राणा ने इसकी व्यवस्था देखकर मंदिर श्रीसंघ के सुपुर्द किया। इसकी शिल्पकला अत्यन्त मनमोहक है। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के निकट धर्मशाला, भोजनशाला है । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only गुजरात जिला भरूच श्री भरूच तीर्थ पेढ़ी : श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन तीर्थ जैन धर्म फंड पेढ़ी श्रीमाली पोल, भरूच - 392 001 (गुजरात) फोन: 02642-62586 श्री झगड़ियाजी तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन ऋखबदेवजी महाराज की पेढी मु. पो. झगड़िया, वाया अंकलेश्वर, जि. भरूच (गुजरात) www.jainelibrary.117
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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