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________________ गुजरात श्री वाव तीर्थ पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर मर्तिपजक संघ की पेढी मु. पो. वाव, जि. बनासकांठा (गुजरात) फोन : (02737) 7113 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री अजितनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, धातुमय प्रतिमा। मार्गदर्शन : यहाँ से भोरोल 22, धीमा 11, थराद 11 कि.मी. दूरी पर है। इन स्थानों को आने जाने के लिये बस सुविधा है। परिचय : वाव गाँव के मध्य यह तीर्थ है। ऐसा कहा जाता है कि थराद में सोने की जिनमर्ति है, यह सुनकर अलाउद्दीन ने थराद पर चढ़ाई करने की तैयारी की। तब यहाँ के दूरदर्शी श्रावकों ने दूसरी प्रतिमा पर सुवर्णलेप कर दिया था। यहाँ की पंचधातु की प्रतिमा अत्यन्त प्रभावी है। ठहरने की व्यवस्था : गाँव में ठहरने के लिये संघ की वाड़ी है, जहाँ पानी, बिजली की व्यवस्था श्री धीमा तीर्थ पेढ़ी: श्री श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक संघ मु. पो. धीमा, ता. थराद, जि. बनासकांठा (गुजरात) मूलनायक : श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : नजदीक का रेलवे स्टेशन डीसा है। वाव से यह तीर्थ 11 कि.मी. दूर स्थित है। वाव से भोरोल जाते समय यह मध्य रास्ते में पड़ता है। परिचय : धीमा गाँव में यह तीर्थस्थान है। सम्राट कुमारपाल ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था ऐसा उल्लेख मिलता है। श्री भोरोल तीर्थ पेढ़ी: श्री नेमिनाथ भगवान जैन पेढी मु. पो. भोरोल, ता. थराद, जि. बनासकांठा-385565 (गुजरात) फोन : (02737) 4321 मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, श्यामवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : थराद से यह तीर्थ 17 कि.मी. दूर है। थराद से वाव 13 कि.मी. है। वाव से धीमा होते हुए भोरोल जाया जा सकता है। धीमा तीर्थ से भोरोल 8 कि.मी. दूर है। भीलडीयाजी से 75 कि.मी. तथा शंखेश्वर से 140 कि.मी. दूर है। थराद से यहाँ प्रत्येक घन्टे बस एवं टैक्सी आती-जाती रहती है। निकटतम जंक्शन स्टेशन पालनपुर यहाँ से 102 कि.मी. दूर है। जहाँ से बस उपलब्ध हो जाती है। अन्य स्टेशन धनेरा (61 कि.मी.) डीसा (73 कि.मी.) हैं। अहमदाबाद से यह तीर्थ 250 कि.मी. है। परिचय : किसी समय यहाँ पर सैकड़ों जैन श्रावकों के घर तथा जिनमंदिर होंगे ऐसा भूगर्भ से प्राप्त अनेक प्राचीन अवशेषों से पता चलता है। प्रभु प्रतिमा अति कलात्मक एवं प्रभावशाली है। प्रतिवर्ष कार्तिक व चैत्र पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है। इस अति प्राचीन तीर्थ में आज से 100 वर्ष पूर्व संप्रतिराजा कालीन प्रभु नेमिनाथ की श्यामवर्ण प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई। यहाँ अन्य 32-32 प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई। यहाँ अत्यंत सुन्दर, दर्शनीय 24 जिनालय नया बनाया गया है। वि. सं. 2052 में यहाँ नेमिनाथ प्रभु एवं सुवर्णमय अत्यंत कलात्मक चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी के बिम्बों की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा हुई। नागराज ने 5 दिन निराहार रहकर पार्श्वनाथ प्रभु का सानिध्य दिया था जिसे हजारों लोगों ने देखा। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर देरासर के ठीक सामने अत्यंत सुविधायुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा है। भोजनशाला प्रातः नाश्ते से सायं सूर्यास्त से पूर्व तक चालू रहती है। J u cation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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