SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजरात श्री गंधार तीर्थ पेढ़ी : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ की पेढी मु. पो. गंधार, ता. वागरा, जि. भरूच-392 140 (गुजरात) फोन : 02641-323481 जैन तीर्थ परिचायिका मूलनायक : श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : भरूच से वागरा 20 कि.मी. तथा वागरा से गंधार 17 कि.मी. दूरी पर स्थित है। बडोदरा से यह 76 कि.मी. दूरी पर है। भरूच-कावी मार्ग पर लगभग 45 कि.मी. दूरी पर यह स्थित है। भरूच से बस सेवा उपलब्ध है। परिचय : यह गाँव सागर किनारे पर बसा हुआ है। प्राचीनकाल में यह एक बंदरगाह था। अत्यन्त रमणीक वातावरण में स्थित इस स्थान पर तीन मंदिर हैं। विक्रम की 17वीं सदी में जगद्गुरु श्री हीरविजय सूरी जी म. अपने विशाल शिष्य समुदाय के साथ यहाँ पर चातुर्मासार्थ विराजमान थे। उस समय वह एक बड़ा शहर था। बादशाह अकबर ने उन्हें फतहपुर सीकरी आने के लिए निमंत्रण यहीं पर भेजा था। यहाँ से आगरा जाकर उन्होंने बादशाह अकबर को प्रतिबोध दिया और धर्मप्रभावना के कई कार्य किये। पूजा का समय प्रात: 8.30 से 10.30 तथा 12 से 5 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला तथा भोजनशाला है। भाता की व्यवस्था 8 से 10 तथा दोपहर 2 से 4 बजे तक है। श्री कावी तीर्थ पेढी: श्री कावी जैन तीर्थ मु. कावी, ता. जंबुसर जि. भरूच (गुजरात) फोन : 02644-30229 मूलनायक : श्री आदीश्वर भ., श्री धर्मनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : गंधार से 54 कि.मी. तथा भरुच से 75 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थ स्थित है। झगडिया, बडौदा, भरूच, केवडिया से कावी के लिए नियमित बस सेवा है। भरूच से कावी ट्रेन द्वारा भी आया जा सकता है। परिचय : कावी गाँव समुद्र किनारे बसा हुआ है। यहाँ पर दो सुन्दर मंदिर हैं, जिन्हें सास बहू का मंदिर कहा जाता है। सास ने यहाँ पर सुन्दर सर्वजीत प्रासाद मंदिर बनवाया। अपनी सास के ताने से प्रताड़ित होकर बहू ने रत्नतिलक प्रासाद मन्दिर का निर्माण कराया। तब से ये मन्दिर सास बहु के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हो गये। मनोरम नैसर्गिक वातावरण में मन्दिर के शिखर पर गूंजती घण्टियां आत्मिक शांति का अनुभव कराती हैं। यहाँ के विषय में कहा जाता है "कावी, मोक्ष जावी"। इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1655 में हुई। बाद में समय-समय पर दोनों मंदिरों के जीर्णोद्धार हुए। यह मंदिर बहुत ही कलात्मक हैं। समुद्र के उस पार खंभात शहर दिखता है। यह गाँव समुद्र किनारे होने के कारण पानी खारा है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला है। यात्रियों हेतु यहाँ भाता की व्यवस्था है। जिला भावनगर मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : पालीताणा से, अहमदाबाद जाते समय 53 कि.मी. दूरी पर यह स्थान है। यहाँ का श्री वल्लभीपुर तीर्थ निकटतम रेल्वे स्टेशन धोला विशी यहाँ से 29 कि.मी. दूर है। भावनगर से यह स्थान 38 कि.मी. दूर स्थित है । वल्लभीपुर, अहमदाबाद से धंधुका होते हुए भावनगर मार्ग पर है। पेढ़ी: परिचय : जैन इतिहास में इस स्थान का अत्यंत महत्त्व है। विक्रम संवत् 511 में श्री देवर्धिगणि सेठ श्री जिनदास धर्मदास क्षमाश्रमण ने अन्य पाँच सौ आचार्यों के साथ मिलकर जैन धर्मग्रंथ आगमों को सर्वप्रथम धार्मिक ट्रस्ट, हाइवे रोड, यहाँ पर लिपीबद्ध किया था। प्राचीन समय में वल्लभीपुर एक वैभव सम्पन्न नगरी थी। मंदिर पो. वल्लभीपुर-364 310 में मूलनायक श्री आदेश्वर भगवान की प्रतिमा है, नीचे के भाग में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण एवं जि. भावनगर (गुजरात) पाँच सौ आचार्यों की प्रतिमाएँ कलात्मक ढंग से बनायी गयी है। फोन : (02841) 44433 ठहरने की व्यवस्था : यहाँ यात्रियों को ठहरने हेतु धर्मशाला तथा भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। 118 JaMEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy