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________________ जैन तीर्थ परिचायिका राजस्थान मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, लालवर्ण। श्री जाखोडा तीर्थ मार्गदर्शन : जवाईबांध से 7 कि.मी. तथा सुमेरपुर से 5 कि.मी. दूरी पर यह तीर्थस्थान है। -सांडेराव मार्ग पर स्थित सुमेरपुर से सांडेराव लगभग 13 कि.मी. दर स्थित है। पेढ़ी : जवाई बांध तथा फालना स्टेशन से तीर्थ के लिए टैक्सी, बस, रिक्शा आदि उपलब्ध रहते श्री शान्तिनाथ भगवान जैन हैं। यहाँ दिन में 4 बार विभिन्न स्थलों से रोडवेज बसें आती हैं। यहाँ से 20-25 कि.मी. श्वेताम्बर तीर्थ के दायरे में शिवगंज, वरकाणा, राणकपुर आदि तीर्थ स्थल आते हैं। जाखोडा, मु. पो. सुमेरपुर (कोली वाडा) परिचय : ऐसा कहा जाता है कि प्रभु प्रतिमा की अंजनशलाका आचार्य श्री मानतुंगसूरी जी म. जि. पाली -306902 के सुहस्ते हुई थी। यह तीर्थस्थान प्राचीन होने के साथ-साथ चमत्कारिक क्षेत्र भी है। पूजा फोन : (02933) 54970 प्रात: 6 बजे से 2 बजे तक कर सकते हैं। इस पथरीली भूमि में पानी की बड़ी समस्या थी, किन्तु एक भक्त द्वारा अधिष्टायक देव के संकेत से कुँआ खोदने पर बहत पानी मिला। जैनजैनेतर भक्तगण यहाँ के तरह-तरह के चमत्कारों का वर्णन करते हैं। यहाँ आकर यात्रीगण सुख शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ आदिनाथ भगवान का नया मन्दिर भी दर्शनीय है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ सभी सुविधा युक्त धर्मशाला की व्यवस्था है। भोजनशाला का कार्य चालू है। यात्रियों हेतु निःशुल्क भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक : श्री आदिश्वर भगवान, श्री महावीर स्वामी भगवान । श्री कोरटा तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थ पश्चिम रेल्वे के अंतर्गत अहमदाबाद-दिल्ली ब्रॉडगेज मार्ग पर जवाई बाँध रेल्वे स्टेशन से 24 कि.मी. तथा शिवगंज से 12 कि.मी. दूरी पर स्थित है। सिरोही-पाली पेढ़ी : जिलों की सीमा के निकट स्थित यह तीर्थ सिरोही से 45 कि.मी. दूर स्थित है। पाली से आदिनाथ व्यवस्थापक लगभग 80 कि.मी. की दूरी पड़ती है। स्टेशन से यहाँ बस, टैक्सी आदि साधन मिल जाते सतावीश जैन संघ पेढ़ी हैं। शिवगंज से बस मिल जाती है। श्री कोरटा तीर्थ, मु. पो. परिचय : यह अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार हआ। यहाँ पूजा का कोरटा, वाया शिवगंज समय प्रात: 8 से 1.30 बजे तक है। गर्मियों में 7 से 1.30 बजे तक है। इस मन्दिर से जि. पाली-306 901 डेढ़ कि.मी. दूरी पर श्री महावीर स्वामी जी का भव्य मन्दिर स्थित है। ओस वंश के स्थापक (राजस्थान) फोन : 02933-48235 आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि जी ने अपनी अलोकिक विद्या से दो रूप धारण कर एक मुहूर्त ओसियाँ और कोरटा में मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। सहयोगी बंधु(1) वीर संवत् 70 विक्रम संवत् 4000 वर्ष पूर्व ओसवंश के संस्थापक आचार्य भगवंत बाबुलाल भबुतमल जी श्री रत्नाप्रभाचार्य ने इस तीर्थ कोरटा नगर में माघ सद 5 वार गरुवार के दिन धन लग्न में चोपड़ा शासन नामक महावीर स्वामी परमात्मा के बिम्ब की प्रतिष्ठा भव आचार्य भगवन ने दो रूप मु. पा. साडराव धारण करके ओसिया में एक ही मुहर्त में प्रतिष्ठा कराई तब से कोरटाजी तीर्थ प्रसिद्ध हआ। जिला पाला (राजस्थान) (2) मणिरत्न विद्याधर आकाश मार्ग से विमानों द्वारा अंजन गिरि पर शाश्वत जिन चैत्यों की यात्रा करते समय स्वयं प्रभाचार्य के दर्शन के लिए उतरे थे। (3) स्तम्भ लेख से यह ज्ञात होता है कि रत्नाप्रभाचार्य द्वारा प्रतिष्ठा कराई जाने के बाद 1275 में प्रभाचार्य के शासन में श्री जयविजय जी के गणिवार के उपदेश से श्री वीर प्रभु की अन्य प्रतिमा प्रतिष्ठ हुई है यह कथन ज्ञान विमल सूरीश्वर जी के कथन से मिलता है। (4) जैन धर्म के प्रश्नोत्तर में श्री आत्माराम जी (विजयानंद सूरी) महाराज फरमाते हैं कि भगवान स्वामी प्रभु की प्रतिष्ठा श्री रत्नाचार्य ने करायी थी। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelioja91g
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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