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राजस्थान
जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में कलेक्टर कचहरी के सामने भव्य धर्मशाला एवं भोजनशाला
है। बिजली, टेलीफोन व्यवस्था, डोली की सुविधा, भ्रमण हेतु सुन्दर गार्डन में झूले आदि बच्चों के मनोरंजन हेतु तीर्थ पर यह सब उपलब्ध है। धर्मशाला का पता-कंचन गिरी विहार, पुराना बस स्टैण्ड, लक्ष्मी पिक्चर पैलेस के पास जालोर फोन : 32386, 338861 शहर में थ्री स्टार होटल, राजेन्द्र होटल, विटको होटल, अमर गेस्ट हाउस आदि भी उपलब्ध है। दुर्ग पर प्रातः 8.30 से 10 बजे तक भाता की व्यवस्था उपलब्ध है। शहर में भी भोजनशाला उपलब्ध है।
श्री विमलनाथ जिनालय, आहोर
जालोर नगर से पूर्व दिशा में सूकडी नदी के किनारे बसा हुआ आहोर नगर प्राचीन नगर है। यह
जालोर से 18 कि.मी. दूर है। अनेक जिन मंदिरों से मंडित आहोर नगर का दर्शन करना बडा भाग्यशाली माना जाता है। आहोर नगर के स्थानीय बाजार के मध्य में बहुत ऊँची कुर्सी पर बना यह दो मंजिला जिनालय कमनीय संगमरमर के पाषाणों से निर्मित शिखर बद्ध जिनालय है। पहले इसका नाम श्री ऋषभदेव जिनालय था जिसमें मूलनायक प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवंत की विशालकाय, भव्य प्रतिमा विराजमान थी। इस प्रतिमा की अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा वि. सं. 1955 फाल्गुन कृष्णा 5 गुरुवार के दिन खरतरगच्छीय श्री पूज्य जिन मुक्तिसूरिजी के कर कमलों से संपन्न हुई थी। वि.सं. 2005 मार्गशीर्ष शुक्ला 6 सोमवार को पू. मुनिराज श्री कल्याण विजयजी म.सा. व पूज्य मुनिराज श्री सौभाग्य विजयजी म.सा. की प्रेरणा से अंजनशलाका-प्रतिष्ठा का भव्य प्रसंग श्री संघ ने मनाया एवं श्री विमलनाथ भगवंत की मनोहरी व नयनाभिराम प्रतिमा की पू. आ. प्रवर श्रीमद् विजय मनोहरद्भ सूरीश्वरजी म. सा. के कर कमलों से अंजनशलाका विधान होकर मल नायक के रुप में प्रतिष्ठा हई। तब से यह जिनालय श्री विमलनाथ जिनालय के नाम से सुप्रसिद्ध है। श्री विमलनाथ जिनालय के प्रांगण में गुरु मंदिर प.पू. जिनकुशलसूरिजी की गुरुमूर्ति बिराजमान है जिनकी प्रतिष्ठा वि. सं. 2035 वैशाख शुक्ला 13 शुक्रवार को हुई।
आहोर नगर के सुविशाल गगनचुम्बी जिनालय जिन धर्मनिष्ठा का उद्घोष करते हैं। इसमें श्री गोडी
सर्वाधिक प्रतिष्ठित और चमत्कारी श्री गोडीपार्श्वनाथ भगवान का तीन भमती युक्त अति दुर्लभ पार्श्वनाथ बावन बावन जिनालय है जो आहोर का अलंकरण माना जाता है। श्री गोडीपार्श्वनाथ भगवान की जिनालय आहोर मनहर मुद्रा दर्शक को सम्यग्दर्शन की ओर अभिप्रेरित कर आध्यात्मिक आलोक के दर्शन कराती हैं। नयनाभिराम मंदिर में जहाँ आत्म-शांति का बोध प्राप्त होता है, वहीं आत्मानुशासक जिनेन्द्र के दर्शन कर मन तथा मस्तिष्क दोनों ही श्रद्धा से झुक जाते है। कहते है कि इसके एक माह पश्चात वदी 1 को अलौकिक घटना घटी। पुजारी मंदिर के पास सोये हुए थे। तीन प्रहर रात गुजर गई थी, चौथे प्रहर की चौथी घड़ी में आकाशवाणी हुई
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