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जैन तीर्थ परिचायिका
गुजरात मूलनायक : श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भ., श्वतेवर्ण, पद्मासनस्थ।
श्री गाँभू तीर्थ मार्गदर्शन : मेहसाणा से मोढेरा सड़क मार्ग पर गणेशपुरा होकर यह स्थान 22 कि.मी. दूरी पर
है। मेहसाणा से यहाँ के लिए बस सुविधा उपलब्ध है। यहां से कानोडा 6 कि.मी., मोढेरा पेढ़ी : 7 कि.मी. दूर है। पाटण से यह 30 कि.मी. दूर है। मेहसाणा रेल्वे स्टेशन से टैक्सी, बस श्री गाँभ श्वे. म. जैनसंघ आदि की सुविधा उपलब्ध है। अहमदाबाद से अहमदाबाद-चाणश्मा वाया गाँभू बस सेवा बाजार जैन देरासर उपलब्ध है। अहमदाबाद से गाँभू 96 कि.मी. दूर है।
मु. पो. गाँभ, परिचय : गाँभू गाँव के मध्य में यह तीर्थस्थान है। प्राचीनकाल में यह विराट नगरी रही होगी। यहाँ ता. बेचराजी जि. पाटण पर अनेक जैन ग्रंथों की रचना हुई है। यहाँ की प्रभु प्रतिमा महाराजा संप्रतिकालीन मानी जाती (गुजरात)-384011
प्राचीन प्रभु प्रतिमाएं मुम्बई, तलाजा, पालीताणा आदि स्थानों पर भेजी फोन : (02734) 82325 गयी हैं। प्रभु प्रतिमा अत्यन्त शोभनीय है, ऐसा लगता है कि प्रभु साक्षात मुस्कराते हुए
विराजमान हैं। मंदिर का शिखर भी कलापूर्ण है। पूजा का समय प्रात: 9 से 5 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर 15 अटैच्ड बाथरूम, कमरों की धर्मशाला तथा भोजनशाला की
सुविधा है। समय प्रात 9 बजे से सायं 5 बजे तक है।
मूलनायक : श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ., श्वेतवर्ण, पद्मासनस्थ ।
श्री पाटण तीर्थ मार्गदर्शन : यह तीर्थस्थान शंखेश्वर से 72, मेहसाणा से 25 तथा चारूप से 10 कि.मी. तथा डीसा
से 50 कि.मी. दूर स्थित है। मधेरा से 29 कि.मी. एवं सिद्धपुर से 26 कि.मी. तथा पेढी : अहमदाबाद से 125 कि.मी. दूर है।
श्री पंचासरा पार्श्वनाथ जैन परिचय : इस नगरी का इतिहास प्राचीन होने के साथ-साथ गौरवशाली है। इस नगरी की स्थापना देरासर ट्रस्ट विक्रम संवत् 802 (ई. सं. 745) में वनराज चावडा ने की। बचपन में उन्हें जैन आचार्य हेमचंद्राचार्य रोड, श्री शीलगुण सूरी जी म. ने आश्रय दिया था। इसलिये अपने जीवनकाल में वे उनके प्रति पिपलानी शेरी, कृतज्ञ रहे। उनकी प्रेरणा से वनराज चावडा ने अपनी जन्मभूमि पंचासरा से श्री पार्श्वनाथ मु. पो. पाटण, जि. पाटण भगवान की प्रभ प्रतिमा यहाँ लाकर भव्य मंदिर बनवाकर उसकी प्रतिष्ठा की। चावडा वंश फोन : (02766) 20559 में सात राजा हुए, उसके बाद चालुक्य वंश का गुजरात पर राज रहा। चालुक्य वंश में सिद्धराज जयसिंह व सम्राट् कुमारपाल के काल में गुजरात प्रान्त का बहुत विस्तार हुआ। कुमारपाल के काल में उनका साम्राज्य दक्षिण में कोकण, उत्तर में दिल्ली, पश्चिम में सिंध तथा पूर्व में गौड देश तक फैला हुआ था। सम्राट् कुमारपाल ने अपने राज्य में अहिंसा की घोषणा की थी। किसी प्रकार की हिंसा करने को मनाई थी। कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य की प्रेरणा से उन्होंने कई जिनमंदिर निर्माण किये तथा कई विद्धानों को आश्रय देकर अनेक ग्रंथों की रचना करवायी। श्री हेमचन्द्राचार्य, श्री अभयदेव सूरी जी, श्री मलयगिरी, श्री यशचन्द्रविजयजी, श्री सोमप्रभाचार्य, श्रीवाग्भट आदि विद्धानों का यहाँ पर निवास रहा है। पाटण एक सम्पन्न तथा वैभवशाली नगरी थी। विक्रम संवत् 1390 के करीब मुस्लिम राजाओं ने इस पर आक्रमण किया, अनेक मंदिर, मकान नष्ट किये, जला दिये, तब इस नगरी का काफी विनाश हुआ। विक्रम संवत् 1999 में यहाँ के श्रेष्ठी पन्नालाल पूनमचंद ने श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ. का मंदिर फिर से बनवाया। प्रमुख मंदिर के चारों ओर 51 छोटेछोटे मंदिर हैं। इस प्रकार यह एक भव्य बावन जिनालय है। आज भी यहाँ पर कई मंदिर हैं। श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भ. के भव्य मंदिर के साथ जोगीवाडा विभाग में श्री श्यामला पार्श्वनाथ भ. का मंदिर है। यह स्थान भी प्रसिद्ध है। यहाँ के हेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिर में अनेक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है।
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