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________________ जैन तीर्थ परिचायिका महाराष्ट्र मार्गदर्शन : जिंतूर शहर औरंगाबाद-हैदराबाद महामार्ग पर स्थित होने से सभी बड़े शहरों से श्री नेमगिरी तीर्थ रोड द्वारा सम्बन्धित है। रेलगाड़ी से परभणी जंक्शन पर उतरकर वहाँ से 42 कि.मी. दूरी पर है। औरंगाबाद, जालना, परभणी, नांदेड, अकोला, रिसोड से बहुत सी बसें चलती हैं। पेढ़ी: श्री दिगंबर जैन अतिशय मुक्तागिरी से 300 कि.मी. व्हाया अकोला, अंतरिक्ष शिरपूर या अमरावती, कारंजा, वाशिम, क्षेत्र हिंगोली होते हुए भी जिंतूर पहुँच सकते हैं। नेमगिरी, जिंतूर जिला परभणी (महाराष्ट्र) कुंथलगिरी से 250 कि.मी. व्हाया बीड, माजलगाँव, सेलू जिंतूर या अंबाजोगाई, परली, फोन : 24204 परभणी, जिंतूर आ सकते हैं। कचनेर से 175 कि.मी. व्हाया जालना, जिंतूर आ सकते हैं। परिचय : श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, नेमगिरी महाराष्ट्र मराठवाडा के परभणी जिले में जिंतूर से उत्तर दिशा की ओर 3 कि.मी. की दूरी पर प्राकृतिक निसर्ग सौंदर्य से युक्त सह्याद्री पर्वत की उपश्रेणियों में बसा हुआ है। पहला पर्वत श्री नेमगिरी जी और दूसरा चन्द्रगिरी जी के नाम से जाना जाता है। दोनों पर्वतराज के बीचों बीच युगल चारण ऋद्धिधारी मुनियों के चतुर्थकालीन अति प्राचीन चरण पादुकाएँ विराजमान हैं। लोकोक्ति के अनुसार अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का समवशरण तेर क्षेत्र की ओर जाते समय यहाँ के चन्द्रगिरी जी पर्वत पर आया था। अतः यह क्षेत्र भगवान महावीर स्वामी जी की चरण रज से पवित्र हुआ है। दोनों पर्वतों के मन्दिरों की अति प्राचीन मूर्ति शिल्पकला अनायास ही दर्शनार्थी के मन को मोह लेती हैं। श्री नेमगिरी क्षेत्र की चोटी पर पहाड़ी के 17 फीट अन्दर भू-गर्भ में 7 गुफाओं में छोटेछोटे दरवाजों से युक्त एवं विशाल जिनबिंबों से युक्त यह क्षेत्र अत्यन्त ही मनोज्ञ है। गुफाओं की रचना चक्र-व्युहाकार होने से उसे भूलभलैया कहते हैं। दर्शक लोग अक्सर ही गुफाओं में स्थित जिनबिंबों के दर्शन करते हुए रास्ता भूल जाते हैं। प्रत्येक गुफा की मोटी-मोटी दीवारें और बहुत मोटी आर्च युक्त छत प्राचीन वास्तु निर्माण का अद्भुत शिल्प है। हरेक गुफाओं में प्रतिदिन सूर्यबिंब अपनी अगणित सूर्यरश्मियों से भगवान के पावन चरण कमलों को नियमित रूप से दक्षिणावर्त के क्रम से नमस्कार करते हुए मन्दिर के प्राकृतिक प्रकाश से आपूर्ण कर देता है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelib 153
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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