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मध्य प्रदेश
जैन तीर्थ परिचायिका परिचय : मन्दिर की प्रतिस्थापना वीर निर्वाण सं. 1157 माघ शुक्ला दशमी के दिन शाह गुलराज हंसराज बोहरा ने आचार्य प्रवर श्री उदयसागरजी के सुहस्ते करवाई थी। किंवदन्तियों के अनुसार यह तीर्थ अनेकों चमत्कारों का स्थल है। प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला अष्टमी व नवमी को यहाँ मेला लगता है। मंदिर के निकट ही श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर व एक दादावाडी है जिसमें श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी तथा दादा श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी की सुन्दर
व प्रभावशाली प्रतिभा है। ठहरने की व्यवस्था : 35 कमरों की सुविधायुक्त धर्मशाला उपलब्ध है। आधुनिक सुविधायुक्त
कमरों का भी यहां निर्माण हुआ है। हॉल भी उपलब्ध है। परम पूज्य पन्यास प्रवर श्री हर्षसागर जी म. सा. की प्रेरणा से विशाल भोजनशाला बनाई गयी है। यात्रियों के पधारने पर भाता व भोजन बनाया जाता है। शामगढ़ में स्टेशन रोड पर तीर्थ की ओर से धर्मशाला बनाई गयी है।
जिला निमाड़ श्री बावनगजाजी तीर्थ
पेढ़ी : श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चूलगिरी ट्रस्ट बावनगजाजी, पोस्ट बड़वानी - 451 551 जिला पश्चिम निमाड़ (मध्य प्रदेश फोन : 07290-22084
मूलनायक : श्री आदिनाथ भगवान, खड्गासन । मार्गदर्शन : जंगल में सुरम्य सतपुड़ा पर्वत की उच्चतम चोटी चूलगिरि पर स्थित यह तीर्थ निकट
शहर बड़वानी से 8 कि.मी. की दूरी पर है। बड़वानी खण्डवा-बड़ौदा मार्ग पर स्थित है।। बड़वानी से ही पहाड़ की चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है जहाँ से 8.0 कि.मी. की दूरी पर चूलगिरि की तलहटी है। बड़वानी से चूलगिरी तक बढ़िया मार्ग है। तलहटी से 1.6 कि.मी. की दूरी पर तीर्थ स्थल है जहाँ 800 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यहाँ से पावागिरी 80 कि.मी., सिद्धवरकूट 180 कि.मी., तालनपुर 45 कि.मी., भाण्डवगढ़ 140 कि.मी. तथा पावागढ़ 220 कि.मी. दूर हैं। बड़वानी से तीर्थ के लिए प्रातः 6 बजे से सायं 7.30 बजे तक प्रत्येक 30 मिनट में बस उपलब्ध है। इन्दौर से यह तीर्थ स्थल 156 कि.मी. तथा खण्डवा से 180 कि.मी. दूर है। दोनों स्थानों से बस, टैक्सी आदि सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह स्थल
कुक्षी से 29 कि.मी. तथा आलीराजपुर से 72 कि.मी. दूर है। परिचय : पहाड़ पर अंकित शिला-लेखों और प्रतिमाओं की प्राचीन कलाकृतियों से इस तीर्थ
की प्राचीनता अपने आप सिद्ध हो जाती है। श्री आदिनाथ भगवान की कायोत्सर्ग मुद्रा में, चूलगिरि के मध्य एक ही पाषाण में उत्कीर्ण इतनी भव्य रमणीक और आकर्षक प्रतिमा भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में शायद ही कोई हो। पुराने जमाने में इस प्रदेश में एक हाथ को ही कच्चा गज मानते थे। प्रतिमा लगभग 52 हाथ होने के कारण बावनगजाजी कहने लगे होंगे। यह मूर्ति कुल 84 फुट ऊँची है। एक भुजा से दूसरी भुजा तक का विस्तार 26 फुट 6 इंच है। सिर का घेरा 26 फुट है। यहाँ महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार होता है। इस पर्वत पर 10 और प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें अनेकों प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। इनमें से एक प्रतिमा भगवान शान्तिनाथ की 4.0 मीटर (13 फुट, खड्गासन मुद्रा में) अति प्राचीन है। तलहटी में 21 मंदिर हैं। यहाँ की प्राचीनतम मूर्ति कला दर्शनीय है। इस पहाड़ पर से, सामने ही नर्मदा नदी कल-कल बहती दिखायी देती है। पूजा का समय प्रातः 6 से 8 बजे
तक का है। ठहरने की व्यवस्था : क्षेत्र पर चार बड़ी धर्मशालाएँ व तीन गेस्ट हाऊस हैं जिनमें सभी आधुनिक
सुविधाएँ उपलब्ध हैं। बड़वानी में भी अच्छे होटल उपलब्ध हैं। क्षेत्र पर भोजनशाला प्रातः 10 से 6 बजे तक चालू रहती है।
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