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जैन तीर्थ परिचायिका
उत्तर प्रदेश आगरा के अन्य मन्दिर परिचय-आगरा एक ऐतिहासिक नगरी है। आगरा नगर, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल आदि वृजमण्डल क्षेत्र की चौरासी कोस
की परिधि में आता हैं। आगरा के निकट ही 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी की च्यवन एवं जन्म कल्याणक भूमि शौरीपुर तीर्थ है। आगरा शहर में मुगलकालीन अनेक ऐतिहासिक इमारतें हैं। जिनमें ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी आदि विश्व प्रसिद्ध हैं। यह वही नगर है जहाँ आचार्य हीरविजयसूरि, आचार्य जिनचन्द्रसूरि जैसे भूर्धन्य विद्वान आचार्यों का आगमन हुआ इनकी विद्वता से प्रभावित होकर बादशाह अकबर ने जैन शासन के लिए अनेक कार्य किये थे। जहाँ एक ओर इस शहर में मुगलकालीन मन्दिर अभी भी अस्तित्त्व में है वही दूसरी ओर इस शहर के निकट फतेहपुर सीकरी, कागरौल आदि क्षेत्रों में पुरातत्त्व विभाग द्वारा कराये जा रहे उत्खनन कार्य में 10वीं शताब्दी के अनेक जैन मन्दिरों में अवशेष प्राप्त हो रहे हैं, जो इस शहर की ऐतिहासिकता को और अधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं। वर्तमान में इस नगर में निम्नलिखित जिन मन्दिर अस्तित्व में हैं(1) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मन्दिर, रोशन मोहल्ला, आगरा-रोशन मोहल्ला क्षेत्र में स्थित इस तीर्थ पर रिषभ नामक बहूमूल्य पाषाण से निर्मित मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्राट अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरु आचार्य श्री हीरविजय सूरीश्वर जी महाराज के कर कमलों द्वारा वि. स. 1640 में हुई थी। इसी मन्दिर परिसर में भू-गर्भ से प्राप्त शीतलनाथ भगवान की चमत्कारिक प्रतिमा कलायुक्त वेदी में विराजमान है। इस वेदी की पच्चीकारी ताजमहल की पच्चीकारी से श्रेष्ठ बतलायी जाती है। इस प्रतिमा के दर्शनों के लिए सुबह से शाम तक भक्त जनों का ताता सा लगा रहता है। मन्दिर जी से संलग्न जगद्गुरु आचार्य श्री हीरविजय सूरीश्वर जी म, का प्राचीन उपाश्रय भी है जहाँ आचार्यश्री के चातुर्मासों के दौरान बादशाह अकबर का भी आवागमन रहा है। मन्दिर जी से संलग्न जैन भवन नामक धर्मशाला भी है, जहाँ यात्रियों के ठहरने के लिए कमरे, बिस्तर आदि की व्यवस्था है। इसी भवन परिसर में ख्याति प्राप्त श्री आत्मानन्द जैन पुस्तक प्रचारक मण्डल की स्थापना हुई थी। इस पुस्तकालय के माध्यम से सुप्रसिद्ध जैन विद्वान प्रज्ञा चक्षु पं. सुखलाल ने पधारकर कर्मग्रन्थ आदि अनेक ग्रन्थों का अनुवाद करके अच्छी साहित्य सेवा की थी। सम्पर्क हेतु, पेढ़ी का फोन नं. 2 54 559 है। (2) श्री सीमंधर स्वामी जैन श्वे. मन्दिर, रोशन मोहल्ला, आगरा-इस मन्दिर की प्रतिष्ठा वि. सं. 1668 में चौथे दादागुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरि द्वारा हुई थी। मन्दिर जी में दुर्लभ श्वेताम्बर खडगासन प्रतिमाएँ भी विद्यमान हैं। इस मन्दिर का निर्माण सुश्रावक कर्मचन्द बच्छावत ने कराया था जिनकी अकबर के दरबार में बहुत ख्याति थी। (3) श्री वासुपूज्य जी जैन श्वे. मन्दिर, मोतीकटरा चौराहा, आगरा-मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान का मन्दिर आगरा में विद्यमान जैन श्वे. मन्दिरों में सर्वाधिक प्राचीन मन्दिर है। इसरी प्रतिष्ठा वि. सं. 1501 में हुई थी। इस मन्दिर का समय-समय पर जीर्णोधार होता रहा है।। (4) श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, मोतीकटरा चौराहा, आगरा-भू-गर्भ से प्राप्त मूलनायक श्री गौड़ी पार्श्वनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा संघवी कुँवरपाल सोनपाल लोढ़ा द्वारा वि. सं. 1671 में भरायी गयी थी। इसकी प्रतिष्ठा अंचलगच्छीय आचार्य श्री कल्याणसागरसूरि द्वारा होने का उल्लेख प्रतिमा के लेख में स्पष्ट है जिन्होंने बादशाह जहाँगीर के दरबार में बहुत ख्याति अर्जित की थी। भू-गर्भ से प्राप्त होने पर इस प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा उपकेश गच्छीय आचार्य श्री सिद्धसूरि द्वारा वि. सं. 1940 में हुई। मन्दिर जी में अन्य प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं। मन्दिर जी के समीप सेठ पदमचन्द जैन डागा स्मृति भवन है जहाँ यात्रियों के ठहरने के लिए सुन्दर व्यवस्था है। (5) श्री सुपार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, भैरों बाजार बेलनगंज, आगरा-इस मन्दिर का निर्माण वि. सं. 1980 में सेठ लक्ष्मीचन्द जी वैद द्वारा निज धन से कराया गया था। मन्दिर निर्माण के प्रेरणादाता काशी वाले शास्त्र विशारद श्री विजयधर्मसूरि जी मा. थे, परन्त आचार्यश्री का असमय ही काल धर्म होने के पश्चात इस मन्दिर की प्रतिष्ठा उनके शिष्यों, आचार्य विजेन्द्रसूरि, मुनि श्री विद्या विजय जी. मंगल विजय जी, न्याय विजयजी एवं खरतर खच्छीय साध्वी श्री सुवर्णश्री जी आदि की निश्रा में हुई। मन्दिर परिसर में सेठ जी ने आचार्यश्री की प्रेरणा से श्री विजय धर्म लक्ष्मी ज्ञान मन्दिर नामक पुस्तकालय की स्थापना की थी। इसकी गणना देश के ख्याति प्राप्त पुस्तकालयों में की जाती थी। इस पुस्तकालय में अति दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ मौजूद थे। वर्तमान में इस पुस्तकालय का स्थानान्तरण कुछ वर्षों पूर्व कोबा (गाँधी नगर गुजरात) में हो चुका है।
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