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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका सहायता से महाराणा प्रताप ने फिर से सेना इकट्ठी कर अकबर का मुकाबला किया। विक्रम संवत् की पहली शताब्दी में आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर यहीं पर विद्या साधना के लिये रहे थे। महाराणा मोकल के मंत्री भदनपाल ने यहाँ पर कई जिनमंदिर बनवाए थे। यहाँ पर ऋषभदेव का बावन जिनालय, श्री पार्श्वनाथ भ. मंदिर, श्री शान्तिनाथ भ. तथा श्री महावीर भ. के प्रमुख मंदिर हैं। लेकिन इन सबमें यहाँ का जैन कीर्तिस्तंभ विशेष विख्यात है। यह स्तम्भ अपनी विजयगाथा कहता हुआ सा लगता है। 7 मंजिला यह स्तम्भ 9 मीटर घेरे का तथा 22 मीटर ऊँचा है। इसकी नक्काशी दर्शनीय है। निकट ही चित्तौड़ेश्वरी मन्दिर है इस मन्दिर की अधिष्टायिका काली माँ हैं जो साक्षात् चमत्कारिक मानी जाती हैं। ऊपर के मंजिल पर जिनप्रतिमा है। श्री शान्तिनाथ प्रभु का मंदिर दर्शनीय है। इसे श्रृंगार चौरी भी कहते हैं। चित्तौड़गढ़ का इतिहास सदैव स्मरणीय रहेगा। यहाँ की महारानी पद्मिनी का स्वाभिमान के लिए दिया गया बलिदान अमर रहेगा। पद्मिनी महल में दर्पण आज भी अक्षत रखा है जिसमें उनका प्रतिबिम्ब अलाउद्दीन खिलजी ने देखा था और उसकी मति भ्रष्ट हुई थी। यह महल देखने हेतु प्रात: 9 से 5 बजे तक खुला रहता है। फतह प्रकाश म्यूजियम के निकट कुम्भ श्यामजी का मन्दिर है जिसमें विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति है। निकट ही मीराबाई का कृष्ण मन्दिर है। यहाँ का कुम्भाप्रासाद दर्शनीय है। यहाँ बाबर की तोप भी दर्शनीय है। कीर्ति स्तम्भ की तरह यहाँ जय स्तम्भ भी अत्यंत कलात्मक एवं दर्शनीय है। 9 मंजिला यह स्तम्भ 9 मीटर घेरे में तथा 37 मीटर ऊँचा है। इस पर देवी-देवताओं, हाथी, सिंह आदि सुन्दर नक्काशी के रूप में उत्कीर्ण है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ किले पर मंदिर के पास धर्मशाला है। नीचे शहर में भी धर्मशाला है, वहाँ ठहरना सुविधाजनक है। मूलनायक : भगवान शान्तिनाथ । भमोतर मार्गदर्शन : प्रतापगढ़-छोटी सादड़ी-चित्तौड़गढ़ मार्ग पर प्रतापगढ़ से 5 कि.मी. दूर भमोतर गाँव (अतिशय क्षेत्र) है। रेल द्वारा मंदसौर रेल्वे स्टेशन से 32 कि.मी. दूर प्रतापगढ़ है। क्षेत्र तक पक्की सड़क है। क्षेत्र सड़क से लगभग 100 मीटर के फासले पर है। परिचय : संवत् 1990 में जीर्णोद्धार के समय मंदिर के छोटे द्वार में प्रतिमा को प्रवेश कराना संभव नहीं लग रहा था। तब प्रतिष्ठाचार्य भट्टारक हेमचंद्रजी ने स्वप्न में सुना कि तुम आज रात्रि प्रतिमा को केवल हाथ लगा देना प्रतिमा स्वयं अपने आसन पर आरूढ़ हो जायेगी। प्रात:काल लोगों ने देखा प्रतिमा अपने निर्दिष्ट स्थान पर विराजमान है। इसके पश्चात् यहाँ चमत्कार की अनेक घटनाएं हुई। ठहरने का स्थान : यहाँ अनेक धर्मशालाएँ हैं। चित्तौड़गढ़ से 120 कि.मी. तथा कोटा से 40 कि.मी. दूर प्रताप सागर मार्ग पर स्थित बरोली में बरोली अति प्राचीन सात मन्दिरों के ध्वंसाअवशेष हैं। इनमें राजस्थान का प्राचीनतम शिवमंदिर भी है। यहाँ भी नक्काशी अत्यन्त दर्शनीय है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 61 www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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