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________________ राजस्थान जिला चूरू सालासर जैन तीर्थ परिचायिका मार्गदर्शन : सालासर राजस्थान में चूरू जिले के सुजानगढ़ तहसील में सुजानगढ़ से 24 कि.मी. दूर स्थित है। सीकर यहाँ से लगभग 57 कि.मी. दूर स्थित है। लक्ष्मनगढ़ से सालासर की दूरी लगभग 31 कि.मी. है। जयपुर से सीकर 115 कि.मी. तथा सीकर से लक्ष्मनगढ़ 25 कि.मी. है। परिचय : यहाँ के बालाजी एक खेत में प्रकट हुए थे। वहाँ से सालासर में मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया। बालाजी के चमत्कारों की ख्याति शीघ्र ही चारों दिशाओं में फैलने लगी। श्रद्धालुजनों का यहाँ मेला-सा लगने लगा। जैसे-जैसे लोगों की मान्यता बढ़ने लगी उन्होंने मन्दिर को मान्यता प्रदान करने में सहयोग दिया। आज यह अत्यन्त सुविधा सम्पन्न तीर्थ रूप में विकसित हो गया है। मंगलवार तथा शनिवार बालाजी के दिवसों के रूप में माने जाने के कारण इन दो दिनों में यहाँ विशेष भीड़ रहती है। अत्यधिक यात्रियों का आवागमन होता है। मन्दिर के समीप ही श्री मोहनदास जी की धूणी प्रज्ज्वलित है। ऐसी मान्यता है कि यह धुणी आज तक अखण्ड है। भक्तगण अत्यन्त श्रद्धा भाव से यहाँ की भस्म ले जाते हैं। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने हेतु अनेक धर्मशालाएँ है। भोजनालय आदि की भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। आवागमन हेत अनेकों स्थान से यहाँ बसों का आगमन-निर्गमन होता रहता है। राजस्थान के लगभग सभी प्रमुख स्थानों से यहाँ बसें आती रहती हैं। जिला दूंगरपुर श्री डूंगरपुर तीर्थ पेढ़ी : श्री आदीभर भगवान जैन श्वेताम्बर मंदिर पेढी माणक चौक, मु. पो. डूंगरपुर (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : केसरियाजी से यह तीर्थस्थान 36 कि.मी. एवं उदयपुर से 110 कि.मी. दूरी पर है। उदयपुर-अहमदाबाद मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित खेरवाड़ा से 21 कि.मी. दूर स्थित है। रेल्वे स्टेशन डूंगरपुर मन्दिर से लगभग 2 कि.मी. है। परिचय : इस तीर्थ का निर्माण विक्रम संवत् 1525 में हुआ। प्रभु प्रतिमा विशाल एवं धातुमय है। मुस्लिम आक्रमण के समय यह स्वर्ण प्रतिमा समझकर प्रतिमा को क्षति पहुँचाई गयी, तब यह श्वेतवर्ण प्रतिमा पुनः प्रतिष्ठित की गई। परन्तु धातुमयी परिकर आज भी मौजूद है। अरावली पर्वतमाला की तलहटी में स्थित तीन ओर से सुन्दर रमणीक पहाड़ियों से घिरी इस नगरी का वर्षाकाल में वातावरण अत्यन्त मनभावन हो जाता है। यहाँ की भूमि अनेक प्राचीन मन्दिरों हेतु प्रसिद्ध है। उदय विलास महल, गायब सागर झील, यहाँ से 25 कि.मी. दूर स्थित देव सोमनाथ, 60 कि.मी. दूर स्थित बाणेश्वर अपने वार्षिक मेले हेतु प्रसिद्ध हैं। सैयद फकरुद्दीन की पवित्र स्थली गलियाकोट यहाँ से 58 कि.मी. दूर है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ पर ठहरने के लिए धर्मशाला है। श्री वटप्रद तीर्थ मूलनायक : श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ भगवान, श्वेतवर्ण। मार्गदर्शन : डूंगरपुर तीर्थस्थान से लगभग 35 कि.मी. दूरी पर यह स्थान बड़ौदा गाँव के मध्य पेढ़ी: श्री जैन श्वेताम्बर में है। निकटतम रेल्वे स्टेशन डूंगरपुर है। वहाँ से बस, टैक्सी सुविधा उपलब्ध है। पुरुषादानीय पार्श्वनाथ परिचय : इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1036 में हुआ था, ऐसा माना जाता है। भगवान मंदिर पेढी धुलेवा विराजित श्री केशरीयानाथ भगवान की प्रतिमा विक्रम संवत् 909 में, यही एक पीपल मु. पो. बड़ौदा, के पेड़ के नीचे प्राप्त हुई, वहाँ पर आज भी भगवान की चरणपादुका है। ठहरने के लिए जि. डूंगरपुर (राजस्थान) उपाश्रय है। 62 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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